डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील सार्थक एवं समसामयिक कविता “ कोरोना ”. डॉ मुक्ता जी ने इस नवीन त्रासदी के दोनों पहलुओं (दो भागों में ) से रूबरू कराने का एक सार्थक एवं सफल प्रयास किया है। अब पहल आपको करना है और इस त्रासदी से उबर कर आप सब एक नए युग में पदार्पण करें ,ईश्वर से यही कामना है। समाज को सचेत करती कविता के लिए डॉ मुक्ता जी की कलम को सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 40 ☆
☆ कोरोना ☆
कोरोना (भाग एक)
कोरोना…
‘कोई भी रोड पर न निकले’
जी हां यह संदेश है
माननीय नरेंद्र मोदी जी का
ताकि हम कोरोना वायरस की
चेन तोड़कर उसे अलविदा कह पाएं
वैसे बड़ा स्वाभिमानी है वह
बिन बुलाए मेहमान की तरह
दस्तक देगा नहीं
जब तक तुम द्वार पर खिंची
लक्ष्मण-रेखा पार कर
बाहर जाओगे नहीं
तुम सुरक्षित रहोगे
अपने आशियां में
उनके अंग-संग
अपनों के बीच
हां!सीमा-रेखा पार करते
वह दबोच लेगा तुम्हें इस क़दर
तुम व तुम्हारा परिवार ही नहीं
आस-पड़ोस को भी
शिकंजे में ले डूबेगा
सो!अपने घर की चौखट
को भूल कर भी पार करने की
ग़ुस्ताख़ी कभी मत करना
वरना अनर्थ हो जाएगा
और
कोरोना…
किसी को रोने न देना
के अर्थ बेमानी हो जाएंगे
और तुम सबको पड़ेगा उम्र भर रोना
सो! तीन सप्ताह अपनों के साथ बिताइए
ज़िंदगी भर के ग़िले-शिक़वे मिटाइए
उनकी सुनिए, कुछ अपनी सुनाइए
बच्चों के मान-मनुहार का लु्त्फ़ उठाइए
संवादहीनता से पसरे सन्नाटे को
मगर की भांति लील जाइए
अजनबीपन के बढ़ते अहसास को
ग़लती स्वीकार पाट जाइए
यदि तुम रहे आत्मनियंत्रण
करने में असफल
ओर भूले से निकाला
घर से बाहर कदम
तो संभव है टूट जाए
आपका उस घर से नाता
और हो जाएं सदा के लिए दूर
क्योंकि यदि कोई व्यक्ति
कोरोना से पॉज़िटिव पाया गया
तो उसे अस्पताल वाले
उठाकर ले जाएंगे उसी पल
और यदि आप बच निकले
तो आपकी तक़दीर
यदि हुआ इसके विपरीत
तो आपके मरने की सूचना
आपके परिवार को मिल जाएगी
और वे आपके अंतिम दर्शन भी
नहीं कर पाएंगे और न ही प्राप्त होगा
उन्हें अंत्येष्टि करने का अवसर
तो सोचिए! क्या मंजूर है
दोनों में से कौन-सा करोना
पसंद है आपको
अपनों का साथ या बाहर की
ज़हरीली आबो-हवा
जो छीन ले आपकी ज़िंदगी
व आपके अपनों से उम्र-भर का सूक़ून
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कोरोना (भाग दो)
कोरोना एक मुहिम है
देशवासियों को भारतीय संस्कृति
की ओर प्रवृत्त करने की
‘हैलो-हाय’ के स्थान पर
झुक कर नमस्कार करने की
परिवारजनों के साथ मिल-बैठ कर
सुख-दुख सांझे करने की
परिवार में स्नेह, सौहार्द
व सामंजस्य स्थापित करने की
दिलों के फ़ासले मिटाने की
अजनबीपन का अहसास
व गहरा सन्नाटा
जो पसरा है हमारे बीच
उसे अलविदा कहने की
ताकि संवेदनाएं जीवित रहें
आओ! सब मिल बैठें
एक-दूसरे की भावनाओं को समझें
ताकि ग़लतफ़हमियाँ दूर हो जाएं
मन शांत रहे और ख़ुद से
ख़ुद की मुलाक़ात हो जाए
मिट जाए मैं और तुम का भाव
‘हम सबके, सब हमारे’
का भाव जगे सृष्टि में
अंतर्मन में शांति का बसेरा हो जाए
और ज़िंदगी की इक नयी
शुरुआत हो जाए…
स्वर्णिम प्रभात हो जाए
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो• न•…8588801878