श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा रचनाओं को “विवेक साहित्य ” शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे. आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का महात्मा गाँधी जी के 150 वे जन्म वर्ष पर एक विचारोत्तेजक आलेख “गांधी जी और गाय”. श्री विवेक जी को धन्यवाद इस सामयिक किन्तु शिक्षाप्रद आलेख के लिए। इस आलेख को सकारात्मक दृष्टि से पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन आलेख के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 32 ☆
☆ आलेख – गांधी जी और गाय ☆
भारतीय संस्कृति में गाय की कामधेनु के रूप की परिकल्पना है. गाय ही नही लगभग प्रत्येक जीव जन्तु हमारे किसी न किसी देवता के वाहन के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इस तरह हमारी संस्कृति अवचेतन में ही हमें जीव जन्तुओ के संरक्षण का पाठ पढ़ाती है. गौवंश के पूजन को आदर्श बनाकर भगवान श्री कृष्ण ने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए गौवंश की महत्ता का प्रतिपादन किया. भगवान शिव ने गले में सर्प को धारण कर विषधर प्राणी तक को स्नेह का संदेश दिया और बैल को नंदी के रूप में अपने निकट स्थान देकर गौ वंश का महत्व स्थापित किया.
यथा संभव हर घर में गौ पालन दूध के साथ ही धार्मिक आस्था के कारण किया जाता रहा है. मृत्यु के बाद वैतरणी पार करने के लिये गाय का ही सहारा होता है यह कथानक प्रेमचंद के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास गोदान का कथानक है. आज भी विशेष रूप से राजस्थान में घरों के सामने गाय को घास खिलाने व पानी पिलाने के लिये नांद रखने की परम्परा देखने में आती है. १८५७ की क्रांति के समय पहली बार गाय के प्रति आस्था राजनैतिक रूप से मुखर हुई थी. बाद में लगातार अनेक बार यह हिन्दू मुस्लिम विरोध का कारण बनती रही है. क्षुद्र स्वार्थ के लिये कई लोग इस भावना को अपना हथियार बना कर समाज में विद्वेष फैलाते रहे हैं. अनेक साम्प्रदायिक दंगे गाय को लेकर हुये हैं. पिछले कुछ समय से गौ रक्षा के नाम पर माब लिंचिंग जैसी घटनाये मीडीया में शोर शराबे के साथ पढ़ने मिलीं. यह वर्ष महात्मा गांधी के जन्म का १५० वां साल है. गांधी जी वैश्विक विचारक के रूप में सुस्थापित हैं. यद्यपि स्वयं गांधी जी बकरी पाला करते थे व उसी का दूध पिया करते थे किंतु गाय को लेकर उन्होनें समय समय पर जो विचार रखे वे आज बड़े प्रासंगिक हो गये हैं, तथा समाज को उनके मनन, चिंतन की आवश्यकता है.
महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम गौ रक्षा की बात सार्वजनिक तौर पर करते हुए 1921 में यंग इंडिया में लिखा ‘गाय करुणा का काव्य है. यह सौम्य पशु मूर्तिवान करुणा है. यह करोड़ों भारतीयों की मां है. गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीव जगत से अपना तादात्म्य स्थापित करता है. गाय को हमने पूजनीय क्यों माना इसका कारण स्पष्ट है. भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है. वह केवल दूध ही नहीं देती बल्कि उसी की वजह से ही कृषि संभव हो पाती है. ‘गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा। गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसा प्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी.
एक बार साबरमति आश्रम में एक बछड़े की टांग टूट गई. उससे दर्द सहा नहीं जा रहा था, ज़ोर-ज़ोर से वह कराह रहा था.पशु डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए, कहा कि उसे बचाया नहीं जा सकता. उसकी पीड़ा से गांधी बहुत परेशान थे.जब कोई चारा न बचा तो उसे मारने की अनुमति दे दी. अपने सामने उस जहर का इंजेक्शन लगवाया, उस पर चादर ढंकी और शोक में अपनी कुटिया की ओर चले गए. कुछ लोगों ने इसे गोहत्या कहा. गांधी को गुस्से से भरी चिट्ठियां लिखीं. तब गांधी ने समझाया कि इतनी पीड़ा में फंसे प्राणी की मुक्ति हिंसा नहीं, अहिंसा ही है, ठीक वैसे ही, जैसे किसी डॉक्टर का ऑपरेशन करना हिंसा नहीं होती.
गांधी जी बहुत पूजा-पाठ नहीं करते थे, मंदिर-तीर्थ नहीं जाते थे, लेकिन रोज सुबह-शाम प्रार्थना करते थे. ईश्वर से सभी के लिए प्यार और सुख-चैन मांगते थे.
उनके आश्रम में गायें रखी जाती थीं. गांधी गोसेवा को सभी हिंदुओं का धर्म बताते थे. जब कस्तूरबा गंभीर रूप से बीमार थीं, तब डॉक्टर ने उन्हें गोमांस का शोरबा देने को कहा. कस्तूरबा ने कहा कि वे मर जाना पसंद करेंगी, लेकिन गोमांस नहीं खाएंगी. गाय के प्रति उनकी ऐसी आस्था थी.
यंग इंडिया व हरिजन में उनके समय समय पर छपे लेखो को पढ़ने से समझ आता है कि, गांधी जी उस ग्रामस्वराज की कल्पना करते थे जहां कसाई अपनी कमाई के लिये गौ हत्या पर नही वरन केवल अपनी स्वाभाविक मृत्यु मरी हुई गायों के उन अवयवो के लिये कार्य करे जो मरने के बाद भी गौमाता हमारे उपयोग के लिये छोड़ जाती है. इसके लिये वे कसाईयो को वैकल्पिक संसाधनो से और सक्षम बनाना चाहते थे. वे कानूनन गौ हत्या रोकने के पक्ष में नही थे. गौ रक्षा से गांधी जी की सार्व भौमिक व्यापक दृष्टि का तात्पर्य समूचे विश्व में गाय ही नही सारे जीव जंतुओ के संरक्षण से था. आज गो सेवा के नाम पर सरकारें व कई संस्थायें बहुत सारा काम कर रही हैं, जरूरी है कि गाय दो संप्रदायो में वैमनस्य का नही मेल मिलाप के प्रतीक के रूप में स्थापित की जावे, क्योंकि गाय हमेशा से मानव जाति के लिये स्वास्थ सहित विभिन्न प्रयोजनो के लिये बहुउपयोगी थी और रहेगी.
विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .
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