सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यसाहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “सड़क और यातायात ”। इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
Amazon Link for eBook : सकारात्मक सपने
Kobo Link for eBook : सकारात्मक सपने
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने # 33 ☆
☆ सड़क और यातायात ☆
रोटी, कपड़ा, मकान की ही तरह सार्वजनिक विकास के लिये बिजली पानी और कम्युनिकेशन आज अनिवार्य बन चुके हैं. सड़के वे शिरायें है जो देश को, एक सूत्र में जोड़ती हैं. सड़कें संस्कृति की संवाहक हैं. स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी अनेक महत्वपूर्ण परियोजनायें इसी उद्देश्य से चलायी जा रही हैं. सड़कें केन्द्र व राज्य दोनो सरकारो का संयुक्त विषय है. सरकारें अरबों रुपयों का वार्षिक बजट सड़को पर व्यय कर रही हैं. विश्व बैंक, एडीबी आदि संस्थाओ से ॠण लेकर देश के विकास हेतु परिवहन क्षेत्र में सतत व्यय किया जा रहा है. समय की आवश्यकता है कि अब सड़को की सुरक्षा, तथा यातायात के नियमन हेतु नवाचार अपनाया जावे.
सड़को पर जहां तहां टैन्ट लगाकर घरेलू या सार्वजनिक कार्यक्रमो के आयोजन करना गैर कानूनी घोषित किया जावे, जिससे सड़को पर यातायात सुविधापूर्वक हो सके, ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओ से बचा जा सके.सड़को पर टैंट आदि लगाये जाने से सड़कें खराब भी होती हैं, यातायात बाधित भी होता है.वर्तमान भागदौड़ की दुनियां में सड़क यातायात को लेकर चर्चा और कानूनो का नवीकरण अनिवार्य हो चला है.
बिल्ड आपरेट एण्ड टैक्स “(B.O.T.) पद्धति पर रोड रेल क्रासिंगों पर ओवर ब्रिज बनाये जावें
आज देश भर में ढ़ेरो लेवल क्रासिंग है, जहां रेलवे फाटक बंद होने से सड़क यातायात घंटो प्रभावित होता है. यदि इन लेवल क्रासिंगों पर “बिल्ड आपरेट एण्ड टैक्स “(B.O.T.) पद्धति से निजि निवेश से ओवर ब्रिज बनाये जावें तो सरकार का कोई व्यय नहीं होगा, सुरक्षा निधि जमा करवाने से आय ही होगी. निजि निवेशक टर्न की आधार पर ओवर ब्रिजों का निर्माण करेंगे व टोल टैक्स के रूप में स्वयं की पूंजी व मुनाफा उन वाहनों से वसूल कर सकेंगे जो इन ओवर ब्रिज का उपयोग अपनी सुविधा हेतु करेगे. इस तरह ढ़ेर से रोजगार उत्पन्न किये जा सकते हैं, व इस तरह देश का इंफ्रास्ट्रक्चरल विकास हो सकेगा साथ ही लोगो को सुरक्षित व त्वरित यातायात सुलभ हो सकेगा.
वाहनो में.ओवरटेकिंग और टर्निंग इंडीकेटर्स अलग अलग रंग की लाइटो के हों
सड़क पर, लेफ्ट या राइट टर्न के लिये, या लेन परिवर्तन के लिये चार पहिये वाले वाहन में बैठा ड्राइवर जिस दिशा में उसे मुड़ना होता है, उस दिशा का पीला इंडीकेटर जला कर पीछे से आने वाले वाहन को अपने अगले कदम का सिग्नल देता है. स्टीयरिंग के साथ जुड़े हुये लीवर के उस दिशा में टर्न करने से वाहन की बाडी में लगे अगले व पिछले उस दिशा के पीले इंडीकेटर ब्लिंकिंग करने लगते हैं, वाहन के वापस सीधे होते ही स्वयं ही स्टीयरिंग के नीचे लगा लीवर अपने स्थान पर वापस आ जाता है, व इंडीकेटर लाइट बंद हो जाती है. जब आगे चल रही गाड़ी का ड्राइवर दाहिने ओर से पीछे से आते हुये वाहन को ओवर टेक करने की अनुमति देता है तब भी वह इन्ही इंडीकेटर के जरिये पीछे वाली गाड़ी को संकेत देता है. इसी तरह डिवाइडर वाली सड़को पर, बाई ओर से पीछे से आ रहे वाहन को भी ओवरटेक करने की अनुमति इसी तरह वाहन के बाई ओर लगे इंडीकेटर जलाकर दी जाती है.इस तरह पीछे से आ रहे वाहन के चालक को स्व विवेक से समझना पड़ता है कि इंडीकेटर ओवरटेक की अनुमति है या आगे चल रहे वाहन के मुड़ने का संकेत है, जिसे समझने में हुई छोटी सी गलती भी एक्सीडेंट का कारण बन जाती है. यदि वाहन निर्माता ओवर टेकिंग हेतु हरे रंग की लाइट, साइड बाडी पर और लगाने लगें तो यह दुविधा की स्थिति समाप्त हो सके व पीछे चल रहा चालक स्पष्ट रूप से आगे के वाहन के संकेत को समझ सकेगा.क्या मेरे इस सुझाव पर आर टी ओ व वाहन निर्माता ध्यान देंगे ?
अपराधों के नियंत्रण हेतु गाड़ियों की नम्बर प्लेट अलग न होने वाली हों..
अपराध नियंत्रण में वाहनो के रजिस्ट्रेशन नम्बर की भूमिका स्वस्पष्ट है. ज्यादातर आतंकवादी गतिविधियाँ, हिट एण्ड रन एक्सीडेंटंल अपराध, वाहनों की चोरी, डकैती, कार में बलात्कार आदि आपराधों के अनुसंधान में प्रयुक्त वाहनों के रजिस्ट्रेशन नम्बर से पोलिस को बड़ी मदद मिलती है. वर्तमान में यह रजिस्ट्रेशन नम्बर एक, दो या तीन स्क्रू से कसी हुई नम्बर प्लेट पर लिखा होता है. जिसे अपराधी बड़ी सरलता से निकाल फेंकता है या नम्बर प्लेट बदलकर चोरी की गाड़ी से अपराध को अंजाम देता है. मेरा सुझाव है कि इस पर नियंत्रण हेतु वाहन की चेसिस व बाडी पर ही निर्माता कम्पनी द्वारा फैक्टरी में ही रजिस्ट्रेशन नम्बर एम्बोसिंग द्वारा अंकित करने की व्यवस्था का कानून बनाया जाये. उस नम्बर का वाहन किस व्यक्ति द्वारा खरीदा गया यह विक्रय के बाद रजिस्ट्रेशन अथारिटी अपने कम्प्यूटर पर, रजिस्ट्रेशन शुल्क आदि लेकर दर्ज कर ले. इससे अपराधी सुगमता से वाहन का नम्बर नहीं बदल पायेंगे.सरकार को गाड़ी निर्माताओं को उनके उत्पादन के अनुरूप रजिस्ट्रेशन नम्बर पहले ही अलाट करने होंगे. इससे नये खरीदे गये अनरजिस्टर्ड वाहनों से घटित अपराधों पर भी नियंत्रण हो सकेगें.सरकारो के द्वारा वर्षो पुराने वाहन रजिस्ट्रेशन कानून में सामयिक बदलाव की इस पहल से गाड़ियों की चोरी में कमी आयेगी, अपराधों मे वाहनो के उपयोग में कमी होगी. अपराढ़ों तथा आतंकी गतिविधियों में कमी होगी, आम नागरिक, पोलिस व अन्य अपराध नियंत्रण संस्थायें राहत अनुभव करेंगी.
बैलगाड़ियों के चके ट्रकों के टायर के हों
वर्तमान में हमारे देश में बैलगाड़ियों के चके पारंपरिक तरीके के लोहे व लकड़ी के ही बन रहे हैं.इस से न केवल बैलों को अधिक श्रम करना होता है वरन जो सड़कें हम गाँव गाँव में बना रहे हैं वे भी जल्दी खराब हो जाती हैं. पंजाब आदि प्रदेशों में बैलगाड़ियों के चके के रूप में ट्रकों के पुराने टायर का उपयोग होता है. मेरा सुझाव है कि चूंकि किसान स्वेच्छा से यह परिवर्तन जल्दी नही करेंगे अतः उन्हें कुछ सब्सिडी आदि देकर अपनी बैलगाड़ियो में पारंपरिक चकों की जगह टायर का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करने की योजना बनाई जावे. इससे बैलगाड़ी अधिक वजन ढ़ो सकेगी वह भी बिना सड़को को खराब किये.जरूरी हो तो इसके लिये कानून बनाया जाना चाहिये.
कार पंचर हो तो ड्राइवर को इंडीकेशन मिले
कार में बजता होता है तेज संगीत, चलता होता है ए.सी., बंद होती है कांच.. आप मस्त और व्यस्त होते हैं साथ बैठे लोगो से बातों में…. तभी किसी टायर में होने लगती है हवा कम… घुस गई होती है कोई कील.. टायर पंचर हो जाता है.. पर इसका पता आपको तब लगता है जब कार लहराने को ही होती है.. ट्यूब और रिम ड्रम लड़ भिड़ चुके होते हैं, ट्यूब खराब हो जाता है… ऐसा हुआ ही होगा आपके भी साथ कभी न कभी. ऐसी स्थिति में जरा सी चूक से.दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है.यूं तो आजकल ट्यूबलैस टायर लग रहे हैं…पर फिर भी लोअर सैगमेंट वाली कारो, व अन्य व्यवसायिक गाड़ियो में तो पुराने तरह के ही टायर हैं.मेरा आइडिया है कि टायर में सेंसर लगाये जायें जिससे हवा का प्रेशर कम होते ही ड्राइवर को सिगनल मिल जाये कि अब हवा भरवाई जानी चाहिये.इस तरह बहुत कम अतिरिक्त व्यय से वाहन के डैश बोर्ड पर ही पहियो की हवा संबंधी सूचना मिल सकेगी.
जिन लोगो के पास स्वयम् की पार्किग हेतु स्थान नही है, उन पर नगर निकाय पार्किग टैक्स लगाये
अनेक लोग घर के सामने सड़को पर अपने वाहन कार इत्यादि नियमित रूप से पार्क करते हैं, ऐसे लोगो पर नगर निकायो को पार्किंग टैक्स लगाकर अतिरिक्त आय अर्जित करनी चाहिये, अनेक फ्लैट वाले भवनो में सोसायटी इस तरह के टैक्स लेती ही हैं. इससे लोग स्वयं की पार्किंग बनाने हेतु प्रोत्साहित होंगे तथा सड़को पर कंजेशन नियंत्रित हो सकेगा.
नवाचार का स्वागत….क्यों न हो हमारी कार युनिक ?
हम सब अपनी कार को करते हैं प्यार..कही लग जाये थोड़ी सी खरोंच तो हो जाते हैं उदास.मित्रो से, पड़ोसियों से, परिवार जनो से करते हैं कार को लेकर ढ़ेर सी बात…केवल लक्जरी नही है, अब कार.
जरूरत बन चुकी है. घर की दीवारो पर हम मनपसंद रंग करवाते हैं, अब तो वालपेपर या प्रिंटेड दीवारो का फैशन है. पर आज भी कार पर वही एक रंग का, रटा पिटा कंपनी के द्वारा किया गया कलर ही होता है,कार पार्किंग में खड़ी कई सफेद कारो में अपनी कार पहचानना वैसा ही जैसे स्कूल यूनीफार्म में बराबरी के ढ़ेर से बच्चो में दूर से अपने बच्चे को पहचानना. कार की बाहरी और भीतरी सतह पर हो रंग, प्रिंट, डिजाइन जिसे देखते ही झलके हमारी अपनी अभिव्यक्ति, विशिष्ट पहचान हो हमारी अपनी कार की…कार के भीतर भी,हम मनमाफिक इंटीरियर करवा सकें. कार में हम जाने कितना समय बिताते हैं.रोज फार्म हाउस से शहर की ओर आना जाना, या घंटो सड़को के जाम में फंसे रहना..कार में बिताया हुआ समय प्रायः हमारा होता है सिर्फ हमारा तब उठते हैं मन में विचार, पनपती है कविता.तो हम क्यों न रखे कार का इंटीरियर मन मुताबिक,क्यों न उपयोग हो एक एक क्युबिक सेंटीमीटर भीतरी जगह का हमारी मनमर्जी से..क्यो कंपनी की एक ही स्टाइल की बेंच नुमा सीटें फिट हो हमारी कार में.. जो प्रायः खाली पड़ी रहे, और हम अकेले बोर होते हुये सिकुड़े से बैठे रहें ड्राइवर के डाइगोनल.. क्या अच्छा हो कि हमारी कार के भीतर हमारी इच्छा के अनुरूप सोफा हो, राइटिंग टेबल हो, संगीत हो, टीवी हो, कम्प्यूटर हो,कमर सीधी करने लायक व्यवस्था हो, चाय शाय हो, शेविंग का सामान हो, एक छोटी सी अलमारी हो, वार्डरोब हो कम से कम दो एक टाई, एक दो शर्ट हों..ड्राइवर और हमारे बीच एक पर्दा हो.. बहुत कुछ हो सकता है….बस जरूरत है एक कंपनी की जो कार बनाने वाली कंपनियो से कार का चैसिस खरीदे और फिर ले आपसे आर्डर, और आपकी पसंद के अनुसार कार को खास आपके लिये तैयार किया जावे, तो ऐसे परिवर्तनो का स्वागत करने के लिये जरूरी है कि हम कार, सड़क आदि पर खुला चिंतन करे और समय के अनुसार पुरानी व्यवस्थाओ में परिवर्तन करे.
© अनुभा श्रीवास्तव्