हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 13 ☆नया ज़माना ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “नया ज़माना ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 13 ☆

 

☆ नया ज़माना 

ज़िंदगी के कदम कुछ परेशान, जिस्म लगता लाचार

हर कोई है चैन की खोज में, पर मिलता नहीं क़रार

 

बहला लेता है हर कोई दिल को, माना कि वो झूठ है

और इस दाग़ से लिपटे कपट की, लगती जाती कतार

 

नए ज़माने के नए रंग-ढंग हैं, किसको किसकी फिकर

पहले जो ठोस से खड़े थे रिश्ते, उनमें आ गयी दरार

 

हर कोई सोचता है अपनी-अपनी, नरमी खो गयी है

प्यार भी एक धोखे सा रह गया, मिट गया ऐतबार

 

सुकून अब कहाँ पाएंगी हवाएं, वो भी प्रदूषित हो गयीं

नीलम बैठे-बैठे सोच में खोयी है, कहाँ जा रहा संसार

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – प्राणज्योति ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – प्राणज्योति

 

जगत में रहकर

जगत से निर्लिप्त रहने की

वृत्ति पर मुस्कराती रही,

विदेह होने के लिए

पहले देह होने का पाठ

प्राणज्योति पढ़ाती रही!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 10 ☆ इस समय तक ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  पुस्तक “इस समय तक ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक  चर्चा।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 10  ☆ 

☆ पुस्तक – इस समय तक 

पुस्तक – इस समय तक

लेखक : धर्मपाल महेंद्र जैन, टोरंटो, केनेडा

कविता संग्रह इस समय तक क)

धर्मपाल महेंद्र जैन, टोरंटो, केनेडापृष्ठ १६०, मूल्य २५०, हार्ड बाउंड,  टेबल बुक

पृष्ठ  १६०, मूल्य २५०, हार्ड बाउंड,  टेबल बुक

प्रकाशक.. शिवना प्रकाशन सीहोर

☆ काव्य संग्रह : इस समय तक – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

कवि के समाज सापेक्ष मनोभावो की कलात्मक अभिव्यक्ति ही कविता होती है. धर्मपाल महेंद्र जैन का अनुभव संसार व्यापक रहा है, वे झाबुआ जैसे गांव में जन्म लेकर आज टोरंटो में जा बसे हैं, ३५ वर्षो तक भारतीय बैंको में  जिम्ंमेदार पदो पर कार्यरत रहते हुये उन्होने लोगों को बहुत पास से पढ़ा हैं. शिवना प्रकाशन सीहोर ने इंटरनेट के माध्यम से और मुद्रण के स्तरीय पैमानो पर नये लेखको को वैश्विक मंच दिया है. इसी क्रम में इस समय तक कविता संग्रह के रूप में  माँ, प्यार, बेटी, शब्द, गांव, प्रकृति, सत्ता, आदमी जैसे शीर्षको के अंतर्गत विभिन्न उप शीर्षको से छोटी बड़ी कवितायें करीने से प्रस्तुत की गई हैं. शिवना प्रकाशन ने किंचित न या प्रयोग करते हुये चौकोर आकार की सुंदर सी पुस्तक के रूप में इन कविताओ को साफ सुथरी प्रिंटिग में सहेजा है.डा कमल किशोर गोयनका नें भूमिका में बहुत अच्छी तरह  कवि की रचनात्मक संवेदना को पहचाना  है. हर कविता एक सुविचार को रेखांकित करती है, व पाठक को वैचारिक सामग्री देती है, जिसे वह अपनी समझ के अनुसार पोषित कर  सकता है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 20 – अधूरा ख्वाब ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर लघुकथा “अधूरा ख्वाब”।  श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी  ने  इस लघुकथा के माध्यम से  एक सन्देश दिया है कि – ख्वाब देखना चाहिए। यह आवश्यक नहीं की सभी ख्वाब अधूरे ही होते हों । कभी कभी अधूरे ख्वाब भी  पूरे हो जाते हैं। ईमानदारी से प्रयास का भी अपना महत्व है।) 

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 20 ☆

 

☆ अधूरा ख्वाब ☆

 

जीवन लाल और धनिया दोनों मजदूरी करते थे। दिन भर काम करने के बाद जो मिल जाता उसे बड़े प्रेम से ग्रहण कर भगवान को धन्यवाद करते थे। उनकी एक छोटी सी बिटिया थी। वह भी बहुत धीरज वाली थी। कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं करती थी। बहुत कम उम्र में ही उसने अपने आप को संभाल लिया और सहनशक्ति, संतोष की धनी बन गई। उसके दिन भर इधर-उधर चहकने और खेलने कूदने के कारण जीवन लाल और धनिया अपनी बेटी को ‘चिरैया’ कहते थे।

चिरैया धीरे-धीरे बड़ी होने लगी आसपास के घरों में मां के साथ जाती। बड़े बड़े झूले लगे देख उसके बाल मन में बहुत खुशी होती कि, उसका अपना भी कोई बड़ा सा झूला हो, जिसमें बैठकर वह पढ़ाई करती, गाना गाती और माँ-बापू को भी झूला झूलाती। पर किसी के घर उसको झूले में बैठने की अनुमति नहीं मिलती थी।

गार्डन में लगा झूला देख मन  ही मन प्रसन्न हो जाती थी। कभी-कभी बापू के साथ झूल आया करती थी। पर उसका ख्वाब उसके मन में घर बना चुका था।

चिरैया बड़ी हो गई पास में ही एक अच्छे परिवार के लोग किराए से रहने आए। उनका सरकारी स्थानांतरण हुआ था। चिरैया की माँ उनके घर काम पर जाती थी। पर अब चिरैया बड़ी हो गई थी। उसे किसी के यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता था।

एक बार बाहर से उनका पुत्र आया, रास्ते में जाते हुए चिरैया को देख उसे पसंद कर अपने मम्मी पापा से शादी की इच्छा बताई। पूछने पर पता चला वह तो अपनी धनिया की बिटिया है। मम्मी पापा अपने इकलौते बेटे की खुशी को तोड़ना नहीं चाह रहे थे। उन्होंने धनिया से उसकी लड़की का पसंद जानना चाहा। परन्तु, गरीब की क्या पसंद और क्या नापसंद।

चिरैया तैयार हो गई। घर में ही सगाई हो गई, और जीवनलाल ने हाथ जोड़कर समधी जी से कहा “मेरी बिटिया को बड़े झूले में बैठने का बहुत शौक है। अब आपके घर पूरा होगा। मैं आपको कुछ भी नहीं दे सकता। अब बिटिया आपकी बहू हो गई।” शहर में शादी होनी थी। जीवनलाल धनिया और चिरैया सभी को लेकर शहर आ गए।

उनका आलीशान बंगला देख कर इन लोगों का मन भर आया। सभी आसपास पूछने लगे कि लड़की के घर से क्या आया है। सज्जन व्यक्ति ने सभी से कहा “शाम को आइए घर  पर सब दिख जाएगा।”  माँ बापू दोनों एक कमरे में बैठे थे बंगला चारों तरफ से सजा हुआ था। शाम को बड़े से गार्डन के बीच बहुत बड़ा झूला लगा था। बहुत कीमती उस पर सोने चांदी, हीरो की हार पहने चिरैया बैठी थी। किसी राजकुमारी की तरह कीमती पोशाक पहन। दुल्हन को कीमती झूले पर बैठे देख सबकी आंखें देखती रह गई।

चिरैया तो बस अपनी सुंदरता लिए बड़ी- बड़ी आंखों से सब देख रही थी। बेटे के पिताजी ने सबका ध्यान आकर्षित कर कहा “यह खूबसूरत सी बिटिया और यह कीमती झूला हमारे समधी साहब के यहाँ से आया है।” पास खड़े जीवनलाल और धनिया बस अपनी बिटिया को झूले पर सोलह सिंगार किए बैठे अपलक देख रहे थे।

बरसों का अधूरा ख्वाब आज पूरा हुआ दोनों की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 5 – ☆ चंद्रकळा  – कवयित्री शांताबाई ☆ – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

(सुश्री ज्योति  हसबनीस जीअपने  “साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी ” के  माध्यम से  वे मराठी साहित्य के विभिन्न स्तरीय साहित्यकारों की रचनाओं पर विमर्श करेंगी. आज प्रस्तुत है उनका आलेख  चंद्रकळा  – कवयित्री शांताबाई। इस क्रम में आप प्रत्येक मंगलवार को सुश्री ज्योति हसबनीस जी का साहित्यिक विमर्श पढ़ सकेंगे.)

 

☆साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 5 ☆

 

☆ चंद्रकळा  – कवयित्री शांताबाई  ☆ 

 

काव्य दिंडीचा आजचा चौथा दिवस ! उद्यापासून दिंडीचा भोई बनून येत्येय माझी अष्टपैलू व्यक्तिमत्व लाभलेली रसिक विदुषी मैत्रिण, सौं अनघा नासेरी ! श्वेताने दिलेलं सस्नेह निमंत्रण आणि पर्यायाने

एका उत्सवात सामील झाल्याचा आनंद, त्या आनंदात पडलेली पावलं, आणि आता हळूच काढतं पाऊल घेण्याची आलेली वेळ. एक विचित्र हुरहूर मनाला लागली असतांनाच शांताबाईंची अपूर्व शब्दसाजातली, भावगर्भरेशमी, देखणी ‘चंद्रकळा’मनात भरली. तिचा गहिरा रंग, तिचा मुलायम स्पर्श एका अनोख्या भावविश्वात घेऊन गेला, आणि आठवणींचं मोहोळ उठलं ते त्या चंद्रकळेला बिलगूनच़! निर्व्याज निरागस बाल्य, मुग्ध किशोरावस्था, अवखळ, नवथर तारूण्य, परिपक्व, जवाबदार प्रौढ कर्तेपण, जीवनातल्या ह्या सा-याच टप्प्यांचे भावबंध ह्या चंद्रकळेतच गुरफटलेत ह्याची जाणीव झाली, आणि जाणीव झाली ती एका हळव्या टप्प्याची…मावळतीच्या वाटचालीची ! आयुष्यातला रंगोत्सव आता ओसरलाय, ऐन भरातल्या चंद्रकळेची गहिरी रंगछटा आता फिकट होतेय, तिची घप्प वीण आता विसविशीत झालीय, याचा अपरिहार्यपणे स्वीकार करतांना काळजात कळ उठतेच, चंद्रकळेची ओसरणारी रूपकळा बघून नकळतपणे एक खिन्न उसासा बाहेर पडतोच !

अप्रतिम वीणीची ही ‘चंद्रकळा’ शांताबाईंच्या तरल संवेदनक्षम स्पंदनांचा नादमय झंकारच ठरावा !

 

☆ चंद्रकळा ☆

 

आठवणीतिल चंद्रकळेचा

गर्भरेशमी पोत मऊ

गर्भरेशमी पदरापोटी

सागरगोटे नऊखऊ

 

आठवणीतिल चंद्रकळेवर

तिळगुळनक्षी शुभ्र खडी

कल्पनेत मी हलक्या हाती

उकलून बघते घडीघडी

 

आठवणीतिल चंद्रकळेचा

हवाहवासा वास नवा

स्मरणाने अवतीभवती

पुन्हा झुळझुळे तरूण हवा

 

आठवणीतिल चंद्रकळेच्या

पदराआडून खुसूखुसू

जरा लाजरे, जरा खोडकर

पुन्हा उमटते गोड हंसू

 

आठवणीतिल चंद्रकळेवर

हळदीकुंकू डाग पडे

संक्रांतीचे वाण घ्यावया

पदर होतसे सहज पुढे

 

आठवणीतिल चंद्रकळा ती

जीर्ण होऊनी आज विटे

उदास फिकट रंगाआडून

एक उसासा क्षण उमटे

 

© ज्योति हसबनीस,

नागपुर  (महाराष्ट्र)

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #21 – माझा परिचय ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “माझा परिचय”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 21 ☆

 

☆ माझा परिचय ☆

 

प्रदूषणाने घटे तुझे वय

मी वनवासी नसे मला भय

 

ताड माड हे माझे स्वामी

सांगतील ते माझा परिचय

 

त्यांच्या चरणी सेवा माझी

मिळे सावली नाही संशय

 

वृक्ष वल्लरी सखे सोयरे

त्यांचे माझे नाते अक्षय

 

कसे जगावे वृक्ष सांगती

पानोपानी हिरवा आशय

 

फळा-फुलांची ही वनराई

त्यांची कत्तल तुझा पराजय

 

निसर्ग करतो वृक्षारोपण

नाही फोटो नाही अभिनय

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 17– व्यंग्य – नीबू मिर्ची के टोटके ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  व्यंग्य   “नीबू मिर्ची के टोटके” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 17☆

 

व्यंग्य –  नीबू मिर्ची के टोटके  

 

हमारा गंगू छोटा आदमी है, कम पढ़ा लिखा है पर तेज बुद्धि का है। पहले सड़क के किनारे लकड़ी का पटा बिछाकर आम आदमी के बाल काटता था, फिर बाद में कचहरी की दीवार के किनारे एक पुरानी कुर्सी में ग्राहकों को बैठाकर दाढ़ी बनाने लगा, बाल काटने लगा, चम्पी करने लगा तो थोड़ी इन्कम बढ़ी। गंगू खुश रहता। दिन भर में जितना पैसा आता उससे गुजर बसर हो जाती। इधर जबसे गंगू ने बाई के बगीचे में छोटी सी दुकान किराये पर ली है तब से गंगू कुछ परेशान सा रहता है। पड़ोसी भाईजान से परेशान है, पुलिस की उगाही से परेशान है, बढती उधारी से परेशान है, मोहल्ले के दादा लोगों की हफ्ता वसूली से परेशान है, बिजली के बिल से परेशान है, मंहगाई डायन से परेशान है और मकान मालिक से परेशान है। जब दुकान ली थी तो काम अच्छा आता था। अच्छी ग्राहकी जम गई थी। सब लोग अपनी सुविधानुसार बाल कटवाने दाढ़ी बनवाने आते थे जब से ये अमित और नरेन्दर ने दाढ़ी रखने का फैशन निकाला है लोग दाढ़ी नहीं बनवाते सिर्फ दाढ़ी सेट कराते हैं। जब दुकान ली थी तो दिन भर ग्राहकों का आना जाना लगा रहता था कोई दिन-रात का टोटका नहीं था। इधर जबसे पड़ोसी भाईजान से झगड़ा हुआ है, झगड़ा क्या बहस हो गई। क्या है कि फ्रांस में जाकर नेता जी ने राफेल के दोनों चकों के नीचे हरा नीबू रखने का टोटका कर दिया तो भाईजान नाराज हो गए, कहने लगे – टोटका करना ही था तो पीले नीबू भी रख सकते थे। भाईजान चिढ़ गए। कहने लगे राफेल के चकों के नीचे हरा नीबू रखना, सिंदूर से ॐ लिखना फिर नारियल फोड़ने से जनता के बीच अंधविश्वास को बढ़ावा मिलेगा। बहस के बीच नेता जी का बचाव करते हुए गंगू बोला – राफेल भले अभी फ्रांस में खड़ा है पर हमारी लोक परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं का पालन करने से नेताओं का जनता के बीच विश्वास बढ़ता है और वैश्विक स्तर पर मीडिया में पब्लिसिटि भी अच्छी मिलती है और विरोधियों को भी बड़बड़ाने का मुद्दा मिल जाता है। हो सकता है कि नेता जी ने ये टोटका इसीलिए किया हो कि विरोधियों की बुरी नजर राफेल पर न लगे इसीलिए नजर उतारने के लिए नीबू का उपयोग करना पड़ा साथ ही आतंकवाद फैला रहे पड़ोसी को भी संकेत देना रहा होगा कि जब राफेल उड़ान भरेगा तो हरे रंग के नीबू को कुचल देगा। गंगू के तर्कों से पड़ोसी नाराज हो गया, और खुन्नस निकालने के लिए गंगू के सब ग्राहकों को धीरे-धीरे भड़काने लगा, राफेल के साथ किए गए टोटकों के बहाने गंगू के ग्राहकों को बरगलाने लगा। गंगू का धंधा धीरे-धीरे चौपट होने लगा।

मैं अक्सर गंगू के सैलून में कटिंग कराने और डाई लगवाने जाता हूँ। हर महीने गंगू से मुलाकात हो जाती है।  गंगू दिलचस्प आदमी है इसलिए उससे दुनियादारी की बात करने में मजा आता है। उस दिन बाल काटते हुए गंगू बोला – साहब… आजकल पडोसियों से बड़ा डर लगता है कब क्या कर दें, कब क्या कह दें कोई भरोसा नहीं। हमारा पड़ोसी राफेल के टोटके का बहाना लेकर हमारी ग्राहकी बिगाड़ने पर तुला है, हमारे ग्राहकों को अंधविश्वास वाले तरह-तरह के टोटके बताकर सैलून का धंधा चौपट करा दिया है। ग्राहकों से कहता है कि वृहस्पतिवार को दाढ़ी और बाल कटवाने से घर की लक्ष्मी भाग जाती है और मान सम्मान की हानि होती है। एक ग्राहक को तो ऐसा डराया कि वो हमारे सैलून तरफ झांकता भी नहीं है।  उससे कह दिया कि सोमवार के दिन भूलकर भी गंगू की दुकान जाना नहीं क्योंकि सोमवार के दिन बाल कटवाने से मानसिक दुर्बलता आती है और संतान के लिए हानिकारक होता है। कुछ ग्राहकों को कह दिया कि मंगलवार के दिन बाल कटवाने से अपनी उम्र का नुकसान होता है और इसे ही अकाल मृत्यु का कारण माना जाता है।

गंगू की बातें सुनकर कुछ अजीब सा लगा कि हर दिन अशुभ है तो आम आदमी बाल कब कटायेगा? फिर मैंने पूछा – गंगू इतवार को छुट्टी का दिन रहता है तो इतवार को तो खूब काम मिल जाता होगा?

अनमने मन से गंगू बोला – ऐसा नहीं है साहब, पड़ोसी ने सब जगह ये फैला दिया है कि रविवार का दिन सूर्य का दिन होता है इस दिन बाल कटवाने से धन, बुद्धि और धर्म का नाश हो जाता है। मुझे आश्चर्य हुआ फिर मैंने कहा कि  सुना है बुधवार का दिन सबसे अच्छा होता है बुधवार को तो काफी लोग आते होंगे?

गंगू बोला – कहां साब, बुधवार को तो मार्केट बंद होने का दिन होता है उस दिन दुकान खोल नहीं सकते। और यदि खोल लिया तो पडोसी गुमाश्ता एक्ट में चालान करा देता है।

मैंने गंगू से मजाक करते हुए कहा – कि यदि पडोसी ज्यादा गड़बड़ कर रहा है तो ट्रंप से मध्यस्थता करा देते हैं। या फिर एक काम करो कि राफेल जैसा टोटका करने के लिए नीबू मिर्ची के 251 जोड़ा दुकान में टंगवा देते हैं और दुकान की पूरी दीवार पर बड़े अक्षरों में 786 लिखवा देते हैं। गंगू को हमारी बात जम गई। उसने दूसरे दिन ही सैलून के बाहर हरे नीबू और हरी मिर्ची के 251 जोड़े लटका दिये और बाहर की दीवार में 786 लिखवा दिया। पूरे मार्केट में हरे नीबू और मिर्ची की अचानक डिमांड बढ़ गई। गंगू के पास इतने अधिक आर्डर आये कि सब आश्चर्यचकित हो गए, उसकी दुकान में नीबू हरी मिर्ची का जोड़ा लेने वालों की भीड़ बढने लगी। पडोसी देख देख कर जलने भुनने लगा। पडोसी को जलता – भुनता देख एक रात गंगू ने पड़ोसी की दुकान के सामने सिंदूर एवं नारियल रखकर अण्डा फोड़ दिया। दूसरे दिन पडोसी जब दुकान खोलने पहुंचा तो दुकान के सामने टोना – टोटका का सामान देखकर डर से कांपने लगा। बेहोश होकर गिर पड़ा तो गंगू ने दौड़ कर उसे संभाला। पडोसी टोना टोटका से मुक्ति का उपाय गंगू से पूछने लगा। गंगू गदगद हो गया, 56 इंच का सीना फुलाकर बोला – देखो भाईजान, आपने राफेल के टोटके से नाराज होकर मेरे खिलाफ जो षड्यंत्र रचा उसके लिए हमें दुख है पर आपके टोटकों से प्रेरणा लेकर टोटके वाले सामान की दुकान खोलने से हमारे ऊपर लक्ष्मी प्रसन्न हो गई है इसलिए आपके भले के लिए हम जो सलाह दे रहे हैं उसका शुद्ध मन से पालन करना तो लक्ष्मी आप पर भी प्रसन्न हो जाएगी। अब आप सिर्फ बुधवार को बाल कटवाना ये दिन बाल कटवाने के लिए शुभ दिन है। इस दिन बाल कटवाने से धन बढ़ता है, घर में खुशहाली आती है और धन्धे में बरक्कत होती है। बाल कटवा कर मंगलवार को नारियल अगरबत्ती बजरंगबली को चढ़ाना फिर नमाज पढ़ने जाना तो लक्ष्मी जल्दी घर में प्रवेश कर जायेगी। लक्ष्मी आगमन का एक और उपाय पता चला है, अपने मकान के बाहर कौड़ियों का तोरण बनवाकर बाहर लटका देना इससे बुरी नजर और ऊपरी हवाएं दूर रहती है साथ ही लक्ष्मी आगमन के द्वार खुल जाते हैं फिर लक्ष्मी हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख ईसाई नहीं देखती सीधे घर में प्रवेश कर जाती है। पड़ोसी को डरा देख गंगू ने उसे समझाया कि ये टोटके किसी को हानि नहीं पहुंचाते, ये मंगलसूचक, अनिष्टकारी, रोगनिवारक या टोने से बचाव के लिए किए जाते हैं। डरने की कोई बात नहीं है चुपके से अकेले में करते रहना। सब कहेंगे ये अंधविश्वास है तो तुम भी राफेल का उदाहरण दे देना। तुम्हें लक्ष्मी से मतलब है धर्म – वर्म तो बाद की चीज है।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #20 – कैमरो की निगरानी ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “ घरेलू बजट” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 20 ☆

 

☆ कैमरो की निगरानी 

 

हर क्राइम का अपराधी अंततोगत्वा पकड़ ही लिया जाता है. पोलिस के हाथ बहुत लम्बे होतें हैं. बढ़ती आबादी, बढ़ते अपराध पोलिस के प्रति खत्म होता डर, अपराध की बदलती स्टाइल अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते अब इलेक्ट्रानिक संसाधनो का उपयोग करके पोलिस को भी अपराधियो को खोजने तथा अपराधो के विश्लेषण में मदद लेना समय की जरूरत बनता जा रहा है.

वीडियो कैमरे की रिकार्डिंग इस दिशा में बहुत बड़ा कदम है. यही कारण है कि चुनाव आदि में वीडियो कवरेज किया जाने लगा है.  उन्नत पाश्चात्य देशो में जहाँ बड़े बड़े माल, सड़के आदि सतत वीडियो कैमरो की निगरानी में होते हैं, अपराध बहुत कम होते हैं क्योकि सबको पता होता है कि वे वीडियो सर्विलेंस में हैं. अति न्यून मानवीय शक्ति का उपयोग करते हुये भी इलेक्ट्रानिक कैमरो की मदद से बड़ी भीड़ पर नजर रखी जा सकती है. आवश्यक है कि अब पोलिस इस बात को बहु प्रचारित करे कि हम सब अधिकांशतः वीडियो कवरेज के साये में हैं. इस भय से किंचित अपराध कम हों. हमारे जैसे देश में यदि सरकार ही सारी आबादी पर वीडियो कवरेज करने की व्यवस्था करे तो चौबीसों घंटे वीडीयो निगरानी की रिकार्डिंग पर भारी व्यय होगा. अभी सरकार की प्राथमिकता में यह नही है.

निजी तौर पर प्रायः मध्यम वर्गीय लोग भी घरो व अपने कार्यस्थलो पर वीडीयो कैमरे स्थापित कर रहे हैं, जिनकी मदद से वे अपने घरो की सुरक्षा, अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानो में कामगारो पर नजर, तथा अपनी दूकान आदि में ग्राहको को कवर कर रहे हैं. गाहे बगाहे पोलिस भी इन्ही रिकार्डिंग्स की मदद से अपराधियो को पकड़ पाती है. पर अब तक आधिकारिक रूप से इन आम लोगो के द्वारा करवाई गई रिकार्डिंग पर सरकार का कोई नियंत्रण या अधिकार नही है.

अपराध नियंत्रण हेतु पोलिस द्वारा निजी सी सी कैमरो की वीडियो फुटिंग्स का उपयोग आधिकारिक रूप से कभी भी कर सकने हेतु कानून बनाया जाना चाहिये. जिससे पोलिस सौजन्य नही, अधिकारिक रूप से किसी भी सी सी टीवी की फुटिंग प्राप्त कर सके. सार्वजनिक स्थलो सड़को, चौराहों, नगर प्रवेश द्वारो, पार्कों, बस स्टेंड, आदि स्थलो पर नगर संस्थाओ द्वारा सी सी टी वी बढ़ाये जाने चाहिये. किसी भी अपराध में पोलिस को दिग्भ्रमित करने वाले अपराधियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही तथा अर्थदण्ड लगाये जाने के कानून भी जरूरी हैं.  पोलिस की सक्रिय भूमिका, मोबाइल व वीडीयो कैमरो की मदद से ही सही पर अपराध मुक्त वातावरण एक आदर्श समाज के लिये आवश्यक है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-19 – मनकवडा ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मानवीय रिश्तों पर आधारित  चारोळी विधा में  रचित एक भावप्रवण कविता  – “मनकवडा। )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 19☆ 

 

 ☆ मनकवडा  ☆

 

भाव माझा भाबडा, देव तू रे  मनकवडा ।

न मागताच देशी मला हा योग केवाढा।।धृ।।

 

शाशू वायी मी अजाण, स्वछंदी असे मन।

क्रिडेमधे बालपण , भले बुरे नसे ज्ञान।

किशोरवयी गाजवती मित्र पगडा।।१।।

 

तरुणपण लागताच, तरंगलो मी हवेत।

वाटे मज घ्यावे जणू , जग सारे हे कवेत।

स्वप्न रंगी रंगलो मी प्रेम वेडा।।२।।

 

संसाराची धुंदी चडे, बायका मुले चोहिकडे।

होस मौज भागेना , हे मजशी कोडे।

स्वार्थासाठी होई कसा मार्ग वाकडा।।३।।

 

वृद्धपणी दीनवानी, दुःखाचा मी होता धनी।

संसारी हो कुचकामी,  तत्त्वज्ञान जागे मनी।

सांग कुठे शोधू तुला, हा मार्ग  तोकडा।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार – # 20 – व्यंग्य – एक संगीतप्रेमी ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

 

(आपसे यह  साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं.  हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं.  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं. कुछ पात्र तो अक्सर हमारे गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं.  उन पात्रों की वाक्पटुता को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं ,जो कथानकों को सजीव बना देता है. डॉ परिहार जी ने   एक ऐसे चरित्र का विश्लेषण किया है जो आपके आस पास ही मिल जायेंगे.  फिर ऐसे चरित्रों से पीछा छुड़वाना किसी कठिन कवायद से कम नहीं है. ऐसे सार्थक व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  कलम को नमन. आज प्रस्तुत है उनका ऐसे ही विषय पर एक व्यंग्य  “एक संगीतप्रेमी ”.)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 20 ☆

 

☆ व्यंग्य  – एक संगीतप्रेमी ☆

 

नन्दू भाई को वैसे तो संगीत से कभी कुछ लेना-देना नहीं रहा। संगीत में वे कव्वाली ही पसन्द करते थे, या फिर कोई ‘आसिक मासूक’ की ‘सायरी’ सुनकर मगन हो जाते थे। लेकिन एक दिन एक घटना हो गयी। एक मित्र उनको संगीत समाज के एक कार्यक्रम में पकड़ ले गया। नन्दू भाई वहाँ शास्त्रीय गायन सुनकर उबासियाँ लेते रहे और चुटकियाँ बजाते रहे। गायिका वृद्धावस्था की देहरी पर थी, इसलिए वे उसके मुखमंडल में भी कोई रुचि नहीं ले सके। लेकिन गायिका के साथ जो तबलावादक था उसने समय मिलने पर तबले के कुछ ‘लोकप्रिय’ हाथ दिखाये। नन्दू भाई को और हाथ तो खास नहीं रुचे, लेकिन जब तबलावादक ने तबले पर ट्रेन चलने की आवाज़ निकाली तब वे मुग्ध हो गये। उसी क्षण उन्होंने निश्चय कर लिया कि तबला सीखना है और ज़रूर सीखना है।

शहर में संगीत विद्यालय नया नया खुला था। उसे छात्रों की ज़रूरत थी। इसलिए जब नन्दू भाई वहाँ पहुँचे तो प्राचार्य ने सर-आँखों पर बैठाया। जब नन्दू भाई ने तबला सीखने की इच्छा प्रकट की तो प्राचार्य ने गौ़र से उनकी अरवी के गट्टे जैसी उँगलियों को देखा। पूछा, ‘आप तबला सीखेंगे?’ नन्दू भाई ने उत्तर दिया, ‘जी हाँ, मुझे बड़ा ‘सौक’ है। ‘

नन्दू भाई की तबला ट्रेनिंग शुरू हो गयी। तबला शिक्षक अपनी मेहनत को अकारथ जाते देखता और कुढ़ता, लेकिन क्या करे? बेचारा रेत में से तेल निकालने के लिए मगज मारता रहता।

ट्रेनिंग के दूसरे महीने में एक दिन नन्दू भाई ने तबले पर ज़ोर का ठेका लगाया कि उनका हाथ तबले में घुस गया। तबले का चमड़ा उनकी शक्ति के आगे चीं बोल गया। तबला-शिक्षक का खून सूख गया, लेकिन वह क्या कहे?

उसके अगले महीने फिर एक तबले ने नन्दू भाई के प्रहार के आगे दम तोड़ दिया। संस्था में खलबली मच गयी। नया नया काम था, अगर ऐसे दस-बीस विद्यार्थी आ जाएं तो संस्था का दम निकल जाए।

चौथे महीने में फिर नन्दू भाई ने जोश में ठेका लगाया और उनका हाथ फिर भीतर घुसकर तबले की भीतरी खोजबीन करने लगा। प्राचार्य जी ने हथियार फेंक दिये।

उन्होंने नन्दू भाई को बुलाया, कहा, ‘नन्दू भाई, हमारे खयाल से आप काफी सीख चुके, और फिर पूरा कोर्स करके कौन आपको कहीं नौकरी करना है। जो बाकी बचा है उसे आप घर पर खुद ही सीख सकते हैं। ‘

नन्दू भाई बोले, ‘साहब, नौकरी तो नहीं करनी है लेकिन मेरी डिगरी लेने की इच्छा थी। ‘

प्राचार्य महोदय को पसीना आ गया। बोले, ‘डिग्री लेकर क्या करोगे? वैसे हमने विशिष्ट व्यक्तियों को देने के लिए कुछ मानद उपाधियाँ रखी हैं। आप चाहें तो इनमें से एक आपको दे सकते हैं। ‘

नन्दू भाई ने पूछा, ‘कौन कौन सी उपाधियाँ हैं?’

प्राचार्य बोले, ‘एक ‘तबला वारिधि’ की उपाधि है, एक ‘तबला निष्णात’ की और एक ‘तबलेश’ की। आप जो उपाधि पसन्द करें हम आपको दे सकते हैं। ‘

‘तबला वारिधि’ और ‘तबला निष्णात’ शब्द नन्दू भाई की समझ में नहीं आये। उन्हें ‘तबलेश’ पसन्द आया। एक दिन प्राचार्य जी ने विद्यालय के दस-पाँच लोगों को इकट्ठा करके भाई धनीराम को यह उपाधि प्रदान कर दी और छुटकारे की साँस ली।

चलते समय नन्दू भाई ने प्राचार्य से पूछा, ‘क्या मैं इन फूटे हुए तबलों को निशानी के तौर पर रख सकता हूँ? मैं इनका पैसा दे दूँगा। ‘ प्राचार्य जी ने सहर्ष उनको तीनों फूटे हुए तबले सौंप दिये।

अब नन्दू भाई अपनी तबला ट्रेनिंग के प्रमाण के रूप में लोगों को अपनी ‘तबलेश’ की उपाधि और तीनों फूटे हुए तबले दिखाते हैं। उनको एक ही अफसोस है कि तबला शिक्षक ने उन्हें तबले पर ट्रेन चलाना नहीं सिखाया।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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