(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “– नामालूम किस्सा… –” ।)
~ मॉरिशस से ~
☆ कथा कहानी ☆ — नामालूम किस्सा… —☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆
एक आदिम कथा है। पिछले जन्म में एक आदमी की तीन इच्छाएँ अपूर्ण रह गई थीं। पहली इच्छा थी ज़मीन खरीदने की, दूसरी इच्छा थी मकान बनाने की और तीसरी इच्छा थी अपने निर्मित मकान में रहने की। इसके लिए वह अथक परिश्रम करता था। उसे डर लगता था कहीं किसी कारण से बाधित होने लगे और ऐसे में हो कि जो इच्छाएँ अपनी आँखों में चमकती हैं और अपने हृदय में नवजात हिरण की तरह कुलाँचे मारती हैं वे इच्छाएँ कुम्हलाने लगें। तब तो उसकी इच्छाएँ उसके लिए उपास्य हो जाती थीं। खाए तो वह कटौती कर के, ताकि अपनी इच्छाओं की आपूर्ति के लिए कुछ रूपयों की बढ़ोत्तरी हो सके। बोले तो वह शब्दों को घटा कर। झोंपड़ी जैसे मकान में ज्यादा बोलना शोभा भी तो न देता। बोलने के लिए अपनी विशेष संपदा हो। अपनी ज़मीन और अपने मकान से बड़ी संपदा और क्या हो सकती है। अपने आलीशान मकान में रहें और कोई आए तो अपनी अद्भुत शान प्रतिबिंबित हो। ज़ोर से बोलने और खास कर अधिक बोलने में तब कोई तुक हो। सुनने वाले को मानना पड़े कमाया है तभी तो ऐसे बातूनीपन की फसल काट रहा है।
पर विधाता के बनाए हुए जन्म – मृत्यु के बंधन से वह मुक्त तो था नहीं। जन्म से आया था तो मृत्यु से जाने का संदेशा आया। वह मृत्यु से कंधों पर गया तो जैसे अपनी तीन अधूरी इच्छाओं को गिनते हुए। चिता में शरीर का दाह हुआ तो तीनों इच्छाएँ आग की लपटें बन कर आकाश की यात्रा पूरी कर रही हों। यह वही आकाश था जहाँ उसका अगला जन्म निर्धारित था। उसने अगले जन्म में जोर लगाया कि अपनी तीन इच्छाओं का लोक ऐसा हो कि ज़मीन मकान होने में यह भी हो कि अपने मकान में रहने का सुख अर्जित हो जाए। पर इस जन्म में वह मात्र ज़मीन खरीद पाया और उसके जीवन के दिन पूरे हो जाने से उसे जाना पड़ा। एक इच्छा पूरी हो जाने का उसे संतोष था, लेकिन दो इच्छाएँ अधूरी रह जाने का मनस्ताप उसे गहरी आत्मा तक कुरेद कर रख देता था। इसी मनस्ताप ने उसे नए जन्म में ढाला। जन्म था तो इच्छाओं के लिए ही तो था। बेहद स्फूर्ति और लगन से उसने दूसरी इच्छा के अनुरूप पहले से खरीदी हुई अपनी ज़मीन पर अपना मकान बनाना शुरु किया। मकान तो बना, लेकिन मृत्यु ने अपने मकान में रहने से उसे वंचित कर दिया। सच यह था आवागमन का अब वह इतना शौकीन हो गया था कि अगले जन्म का मानो वह स्वयं नियंता हो और भगवान तो बस एक द्रष्टा हो। अगले जन्म में अपने मकान में रहने की उसकी तीसरी इच्छा पूरी तो हुई, लेकिन अब तो इच्छाओं का दास हो जाने से उसने चौथी इच्छा का आविष्कार कर लिया था। उसे धुन थी अपने मकान में अपने बच्चों की शादी देखने की। वह मानता था बहुत ही जोश – खरोश से वह अपनी इच्छाओं का दासत्व निभाता है। पर भगवान जानता था वह कितना थकता टूटता और चिंदा – चिंदा बिखरता है। भगवान ने उससे कहा बच्चों की शादी देखने की इच्छा तुम्हारा एक बहुत बड़ा भ्रम है। उन्होंने तो शादी कर ली है और उनके बड़े – बड़े बेटे – बेटियाँ हैं। बल्कि वे अपने बच्चों की शादी करने की चिंता करते हैं। यह उसके लिए बड़े ही अचरज और धक्के की बात हुई। अपने बच्चों के अपने प्रति इस तरह दुराव कर लेने से उसने जैसे तैसे अपनी इच्छाओं से अपने को मुक्त किया। उसे नए जन्म से अब बहुत विरक्ति हो गई थी। उसकी विरक्ति देखते हुए भगवान सोच में पड़ गया। मृत्यु का जिस तरह सिलसिला था जन्मों का भी तो वही उपक्रम था। इस दृष्टि से उसका पुन: जन्म तो हुआ, लेकिन एक रद्दोबदल के साथ। बल्कि भगवान ने तो सब के लिए एक ही जैसा नियम बना लिया। जन्मों से सदाबहार वसंत की तरह धरती लदती रहे, लेकिन किसी को अपने पूर्व जन्म का हल्का सा भी किस्सा मालूम न होता।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 281 ☆ परिवर्तन का संवत्सर…
नूतन और पुरातन का अद्भुत संगम है प्रकृति। वह अगाध सम्मान देती है परिपक्वता को तो असीम प्रसन्नता से नवागत को आमंत्रित भी करती है। जो कुछ नया है स्वागत योग्य है। ओस की नयी बूँद हो, बच्चे का जन्म हो या हो नववर्ष, हर तरफ होता है उल्लास, हर तरफ होता है हर्ष।
भारतीय संदर्भ में चर्चा करें तो हिन्दू नववर्ष देश के अलग-अलग राज्यों में स्थानीय संस्कृति एवं लोकचार के अनुसार मनाया जाता है। महाराष्ट्र तथा अनेक राज्यों में यह पर्व गुढी पाडवा के नाम से प्रचलित है। पाडवा याने प्रतिपदा और गुढी अर्थात ध्वज या ध्वजा। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। सतयुग का आरंभ भी यही दिन माना गया है।
स्वाभाविक है कि संवत्सर आरंभ करने के लिए इसी दिन को महत्व मिला। गुढीपाडवा के दिन महाराष्ट्र में ब्रह्मध्वज या गुढी सजाने की प्रथा है। लंबे बांस के एक छोर पर हरा या पीला ज़रीदार वस्त्र बांधा जाता है। इस पर नीम की पत्तियाँ, आम की डाली, चाशनी से बनी आकृतियाँ और लाल पुष्प बांधे जाते हैं। इस पर तांबे या चांदी का कलश रखा जाता है। सूर्योदय की बेला में इस ब्रह्मध्वज को घर के आगे विधिवत पूजन कर स्थापित किया जाता है।
माना जाता है कि इस शुभ दिन वातावरण में विद्यमान प्रजापति तरंगें गुढी के माध्यम से घर में प्रवेश करती हैं। ये तरंगें घर के वातावरण को पवित्र एवं सकारात्मक बनाती हैं। आधुनिक समय में अलग-अलग सिग्नल प्राप्त करने के लिए एंटीना का इस्तेमाल करने वाला समाज इस संकल्पना को बेहतर समझ सकता है। सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा तरंगों की सिद्ध वैज्ञानिकता इस परंपरा को सहज तार्किक स्वीकृति देती है। प्रार्थना की जाती है, “हे सृष्टि के रचयिता, हे सृष्टा आपको नमन। आपकी ध्वजा के माध्यम से वातावरण में प्रवाहित होती सृजनात्मक, सकारात्मक एवं सात्विक तरंगें हम सब तक पहुँचें। इनका शुभ परिणाम पूरी मानवता पर दिखे।” सूर्योदय के समय प्रतिष्ठित की गई ध्वजा सूर्यास्त होते- होते उतार ली जाती है।
प्राकृतिक कालगणना के अनुसार चलने के कारण ही भारतीय संस्कृति कालजयी हुई। इसी अमरता ने इसे सनातन संस्कृति का नाम दिया। ब्रह्मध्वज सजाने की प्रथा का भी सीधा संबंध प्रकृति से ही आता है। बांस में काँटे होते हैं, अतः इसे मेरुदंड या रीढ़ की हड्डी के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है। ज़री के हरे-पीले वस्त्र याने साड़ी-चोली, नीम व आम की माला, चाशनी के पदार्थों के गहने, कलश याने मस्तक। निराकार अनंत प्रकृति का साकार स्वरूप में पूजन है गुढी पाडवा।
कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में भी नववर्ष चैत्र प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। इसे ‘उगादि’ कहा जाता है। केरल में नववर्ष ‘विशु उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। असम में भारतीय नववर्ष ‘बिहाग बिहू’ के रूप में मनाया जाता है। बंगाल में भारतीय नववर्ष वैशाख की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इससे ‘पोहिला बैसाख’ यानी प्रथम वैशाख के नाम से जाना जाता है।
तमिलनाडु का ‘पुथांडू’ हो या नानकशाही पंचांग का ‘होला-मोहल्ला’ परोक्ष में भारतीय नववर्ष के उत्सव के समान ही मनाये जाते हैं। पंजाब की बैसाखी यानी नववर्ष के उत्साह का सोंधी माटी या खेतों में लहलहाती हरी फसल-सा अपार आनंद। सिंधी समाज में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाने की प्रथा है। कश्मीर में भारतीय नववर्ष ‘नवरेह’ के रूप में मनाया जाता है। सिक्किम में भारतीय नववर्ष तिब्बती पंचांग के दसवें महीने के 18वें दिन मनाने की परंपरा है।
सृष्टि साक्षी है कि जब कभी, जो कुछ नया आया, पहले से अधिक विकसित एवं कालानुरूप आया। हम बनाये रखें परंपरा नवागत की, नववर्ष की, उत्सव के हर्ष की। साथ ही संकल्प लें अपने को बदलने का, खुद में बेहतर बदलाव का। इन पंक्तियों के लेखक की कविता है-
न राग बदला, न लोभ, न मत्सर,
बदला तो बदला केवल संवत्सर।
परिवर्तन का संवत्सर केवल काग़ज़ों तक सीमित न रहे। हम जीवन में केवल वर्ष ना जोड़ते रहें बल्कि वर्षों में जीवन फूँकना सीखें। मानव मात्र के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हो, मानव स्वगत से समष्टिगत हो।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है
प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
Anonymous Litterateur of social media # 229 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 229)
Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.
Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.
He is also an IIM Ahmedabad alumnus.
His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!
English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 229
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – राह लंबी हो भले ही।)
विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ?
☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (31 मार्च से 6 अप्रैल 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
जिंदगी एक यात्रा है जिसको आत्मा शरीर रूपी वाहन के माध्यम से चलकर पूरा करती है। इस प्रकार वाहन आपका है। समय आपका है। यात्रा आपकी है और शरीर भी आपका है। आपको अपने पर विश्वास कर इस यात्रा को पूर्ण करना है। 31 मार्च से 6 अप्रैल 2025 तक के सप्ताह की यात्रा में आपको सफल बनाने के लिए मैं पंडित अनिल पांडे इस सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के माध्यम से अच्छे और बुरे समय के बारे में आपको बताऊंगा।
इस सप्ताह सूर्य और शनि मीन राशि में है। इनके अलावा वक्री बुध बक्री राहु और बक्री शुक्र भी मीन राशि में भ्रमण कर रहे हैं। मंगल ग्रह मिथुन राशि में है परंतु 2 तारीख के 9:42 रात से कर्क राशि में प्रवेश कर जाएगा। गुरु पूरे सप्ताह वृष राशि में रहेगा। आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।
मेष राशि
इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। संतान का स्वास्थ्य भी ठीक रहने की उम्मीद है। छठे भाव पर मंगल की दृष्टि के कारण आपको थोड़ा बहुत रक्त संबंधी बीमारी हो सकती है। दूसरे भाव में बैठे चंद्रमा के कारण धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में और ऋण संबंधी व्यवसाय में सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 31 मार्च 1 और 6 अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। दो और तीन अप्रैल को अगर आप प्रयास करेंगे तो आपके पास धन आ सकता है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
वृष राशि
इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। लाभ के भाव में स्थित सूर्य के कारण इस सप्ताह आपके पास धन आएगा परंतु इसी भाव में वक्री शुक्र, वक्री बुध और बक्री राहु के होने के कारण धन आने में बहुत सारी बाधाएं भी हैं। धन भाव में शत्रु क्षेत्री मंगल भी है जिसके कारण भी धन आने के मार्ग में बाधा रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए दो और तीन अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 31 मार्च और 1 अप्रैल को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन चावल का दान दें और शुक्रवार को मंदिर में जाकर पुजारी जी को सफेद वस्त्रो का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
मिथुन राशि
यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए उत्तम रहेगा। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। माताजी और पिताजी के स्वास्थ्य में उच्च नीच चलती रहेगी। मित्र राशि में स्थित सूर्य के कारण कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। परंतु आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। आपके द्वादश भाव का स्वामी शुक्र उच्च का वक्री होकर कर्म भाव में बैठा हुआ है। अतः आपको कचहरी के कार्यों में सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए चार और 5 अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। दो और तीन अप्रैल को आपको सोच विचार कर कार्य को करना चाहिए। 6 अप्रैल को आपके पास धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
कर्क राशि
इस सप्ताह आपके पास समान्य धन आने की उम्मीद है। आपका आपके जीवनसाथी का, आपके माता-पिता जी का और आपकी संतान का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने परिश्रम पर विश्वास करें। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि भाग्य इस सप्ताह आपका साथ नहीं देगा। भाग्य भाव में स्थित सूर्य आपको भाग्य के कारण लाभ दिलवाएगा परंतु बक्री बुध शुक्र शनि और राहु के कारण भाग्य से लाभ की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 31 मार्च और 1 अप्रैल तथा 6 अप्रैल कार्यों को करने हेतु अनुकूल हैं। चार और पांच अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना चाहिए। दो और तीन अप्रैल को आपके पास धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।
सिंह राशि
इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। दुर्घटनाओं से आपको इस सप्ताह सावधान रहना चाहिए। लाभ भाव में स्थित मंगल के कारण इस सप्ताह अगर आप दुर्घटनाग्रस्त होते हैं तो भी आपको ज्यादा चोट नहीं आएगी। थोड़े धन आने की उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए दो और तीन अप्रैल कार्यों को करने के लिए लाभदायक है 6 अप्रैल को आपको सावधानीपूर्वक कार्यों को करना चाहिए। दो और 3 अप्रैल को आपकी कुंडली के गोचर में गजकेसरी योग बन रहा है जिसके कारण दो और तीन को किए गए कार्यों में आपको शत-प्रतिशत सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
कन्या राशि
इस सप्ताह आपके माता जी का, आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक रह सकता है। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। सप्तम भाव में बैठे शुक्र के कारण अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। नीच के बुध के बक्री होने के कारण व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच अप्रैल कार्यों को करने हेतु फलदायक हैं। 31 मार्च और 1 अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। दो और तीन अप्रैल को भाग्य आपका विशेष रूप से साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
तुला राशि
इस सप्ताह आपके परिवार के लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा क्योंकि शत्रु क्षेत्री मंगल आपके भाग्य भाव में विराजमान है। छठे भाव में बैठे वक्री ग्रहों के कारण आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। परंतु मजबूत सूर्य आपको शत्रुओं से बचाएगा। कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 31 मार्च और 1 अप्रैल तथा 6 अप्रैल कार्यों को करने के लिए परिणाम दायक है। दो और तीन अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
वृश्चिक राशि
इस सप्ताह आपका आपके माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवन साथी के साथ में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। नवम भाव में बैठे नीच के मंगल के कारण इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर यकीन करना पड़ेगा। आपको भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिल पावेगी। पंचम भाव में मित्र राष्ट्र में सूर्य बैठा हुआ है। इस कारण आपको अपने संतान से मदद मिल सकती है। छात्रों के लिए यह सप्ताह बड़ा उलझन भरा रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए दो और तीन अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दोनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
धनु राशि
इस इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी को रक्त संबंधी कोई समस्या हो सकती है। माता जी को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आपको भी पेट में कोई तकलीफ हो सकती है। आपकी प्रतिष्ठा इस सप्ताह बढ़ेगी। कार्यालय के कार्यों में आपकी उत्साह में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच अप्रैल कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। 2, 3 और 6अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
मकर राशि
इस सप्ताह आपका, आपके पिताजी और माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। सप्तम भाव में नीच के मंगल के कारण आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत समस्या हो सकती है। पंचम भाव में बैठा गुरु छात्रों की पढ़ाई को ठीक ढंग से कराएगा तथा आपको अपने संतान से सहयोग भी दिलवाएगा। भाग्य से आपके सहयोग मिल सकता है। लंबी यात्रा हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 31 मार्च, 1 अप्रैल और 6 अप्रैल कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। चार और पांच अप्रैल को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
कुंभ राशि
इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति हो सकती है। थोड़ा सा प्रयास करने पर भी आपको अधिक धन की प्राप्ति होगी। परंतु यह सब धन आपको गलत रास्ते से ही आता हुआ प्रतीत होता है। आपका, आपके पिताजी का और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए दो और तीन अप्रैल लाभदायक है। 6 अप्रैल को आपको कोई भी कार्य बड़े सोच समझ कर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मीन राशि
इस सप्ताह मंगल पंचम भाव में नीच भंग राजयोग बना रहा है। जिसके कारण छात्रों की शिक्षा उत्तम चलेगी। आपको अपने संतान से सहयोग भी प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लग्न भाव में पांच ग्रह हैं जिसके कारण आपको इस सप्ताह काफी उथल-पुथल का सामना करना पड़ सकता है। इन ग्रहों में बुध और शुक्र अस्त हैं अतः इनका कोई खास प्रभाव नहीं रहेगा। राहु के कारण सूर्य भी कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पाएगा। इस सभी कारणों से आपको कोई चिंता करने की विशेष आवश्यकता नहीं है। इस सप्ताह आपके लिए चार और पांच अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहले रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – आदमी जिये नित आदमी के लिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 218 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आदमी जिये नित आदमी के लिये… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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जाति में धर्म में भिन्नता हो भले,
भिन्न परिवेश हों और व्यवस्था अलग
हो पढ़ा या अनपढ़ हो गुणी-अवगुणी
आदमी कोई किसी से रहे न विलग ।
ऊपरी भेद दिखते अनेकों भले,
भीतरी पर कहीं कोई अन्तर नहीं
हैं वही भावनाएँ, वही सोच सब
बातें वैसी ही, वैसा ही व्यवहार भी ॥
रूप रंग साजसज्जा तो हैं बाहरी मन के,
भावों का अन्दर है एक-सा चलन एक-सी जिंदगी,
एक-सी आदतें, एक-सी लालसा एक जीवन-मरण।
स्वार्थ है हर जगह आपसी वैर भी, प्रेम का भाव भी
द्वेष भी द्वन्द भी इसी से प्रीति की बेल पलती नहीं,
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जीद्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सुख सौभाग्य…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 236 ☆सुख सौभाग्य… ☆
प्रकृति ने पूरी सृष्टि को नियमों के दायरे में रखा है, जब इनका उल्लंघन होता है तभी आकस्मिक घटनाएँ देखने को मिलती हैं। अक्सर किसी को कुछ सिखाने के लिए हम स्वयं भी वही गलती करते हैं जिससे सामने वाले को अहसास हो और वो सुधर जाए किन्तु परिणाम इसके विपरीत होता है। जैसे ही हमने जानबूझकर गलती की वैसे ही दूसरे लोग अनुगामी बन वही करने लगते हैं। इस प्रक्रिया से बात बनने के बजाय बिगड़ जाती है।
सर्वसुलभ यदि कुछ है, तो वो केवल सलाहकार होता है, जो बिन माँगे अपने अनुभवों की पिटारी से नुस्खे देता जाता है। भले ही वो अपनी समस्याओं का हल खोजने में अक्षम हो पर आपकी उलझन चुटकियों में सुलझा सकता है ऐसा उसका दावा है।
सबसे सहज और सरल मार्ग शुभाशीष का है, जिसके ऊपर गुरुजनों का आशीर्वाद होता उसे सौभाग्य अर्थात अच्छा भाग्य, कुशल, मंगल जीवन, सुख, प्रसन्नता, खुशहाली का वातावरण सहजता से मिलने लगता है।