भारतीय साहित्य व संस्कृती मंच, बीड यांचेतर्फे आयोजित मुक्तकाव्य लेखन स्पर्धेत आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखक व कवी श्री.रविंद्र सोनावणी यांना प्रथम क्रमांक प्राप्त झाला आहे.
💐 ई-अभिव्यक्ती समुहातर्फे श्री.रविंद्र सोनावणी यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि शुभेच्छा 💐
संपादक मंडळ
ई अभिव्यक्ती मराठी
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ लघु पत्रिकाओं के महत्त्व व योगदान पर सम्मेलन – कमलेश भारतीय ☆
लघु पत्रिका सम्मेलन, दिनेशपुर (उत्तराखंड)
अभी आया हूं दिनेशपुर से जो उत्तराखंड का एक छोटा सा गांव है। जहां न कोई बड़ा होटल है और न कोई गेस्ट हाउस लेकिन पलाश विश्वास का हौसला देखिए कि दो दिन का सम्मेलन रख दिया देश की लघुपत्रिकाओं के योगदान और उनकी भूमिका को लेकर। कितने ही रचनाकार /संपादक दूर दराज से, देश के कोने कोने से पहुंचे और जमकर चर्चा हुई दो दिन। जनता का साहित्य, जनता की संस्कृति और जनता का मीडिया यह विषय रहा चर्चा परिचर्चा के लिए। प्रसिद्ध रचनाकार मदन कश्यप ने बहुत बढ़िया बात कही -देशहित और जनहित में इतना विरोध क्यों है? बाजार और विचार के बीच खाई क्यों है? बाजार और विचार की लड़ाई बड़ी है और इन दोनों के बीच खाई भी बढ़ती जा रही है। विचारहीनता का संकट बढ़ता जा रहा है देश में। सत्य को समझने, पहचानने और अभिव्यक्त करने की चुनौती बढ़ती जा रही है। हम संस्कृति से विमुख करने वालों के लिए चुनौती बन सकें यह बहुत जरूरी हो गया है। देवशंकर नवीन ने कहा कि चेतना को प्रबुद्ध करने की जरूरत है। उन्होंने एक लघुकथा से समझाया कि जिन्होंने रावण के पाप को झेला वो भी कसूरवार होते हैं बराबर के। हमें वैकल्पिक मीडिया बनाना है। ये लघुपत्रिकायें ही हैं जिन्होंने हर आंदोलन को जन्म दिया।
मैंने हरियाणा की ओर से गये इकलौते प्रतिनिधि के रूप में कहा कि कोई पत्र पत्रिका लघु नहीं होता। यदि ऐसा होता तो छत्रपति के पूरे सच ने जो काम कर दिखाया वह बड़े बड़े अखबार नहीं कर सके। लघु पत्रिका ‘वामन के तीन डग’ भरतीं आसमान तक नाप जाती हैं।
पाश ने कहा भी था कि
सबसे खतरनाक होता है
सब कुछ देखकर भी चुप रहना
और सुरजीत पातर ने भी कहा था :
कुज्ज किहा तां हनेरा जरेगा किवें,,,
जी हां। हनेरा यानी अंधकार यानी तानाशाह कभी सहता नहीं विरोध और यह विरोध हमें करना है। इन लघु पत्रिकाओं को करना है क्योंकि मीडिया बिकाऊ होता जा रहा है और बड़े संस्थानों से कोई आस नहीं बची।
‘आजकल’ के संपादक राकेश रेणु ने कहा कि जितने बड़े आंदोलन देश में हुए सबमें लघु पत्रिकाओं का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है लेकिन जिस स्तर पर और जितनी गहरी बहस होनी चाहिए वह होनी चाहिए। इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है।
सम्मेलन में ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट, ‘नैनीताल समाचार’ के संपादक राजीव लोचन साह, शेखर पाठक,कौशल किशोर, बेबी हालदार, कपिलेश भोज, अमृता पांडे, मीन अरोड़ा, गीता पपोला, रूपेश कुमार सिंह, नगीना खान, कितने जाने अनजाने मित्रों ने इसे गरिमा प्रदान की।
रूपेश कुमार सिंह द्वारा लिखित ‘मास्साब’ पुस्तक का विमोचन किया गया जिसमें मास्टर मास्टर प्रताप सिंह के जीवन की घटनाओं को समेटने की कोशिश की गयी है। सम्मेलन में देश के अनेक स्थानों से प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं व पुस्तकों की प्रदर्शनी व बिक्री भी खूब हुई और दोनों शाम कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम व नाटक प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम का मुख्य संचालन हेतु भारद्वाज ने किया और इसे पटरी से उतरने से बार बार सही जगह लाने पर बीच में आते रहे।
इस पूरे आयोजन के लिए पलाश विश्वास और प्रेरणा अंशु को बधाई देता हूं। संयोग से प्रेरणा अंशु के प्रकाशन का यह 36 वां गौरवशाली वर्ष भी था।
प्रेरणा अंशु को भी बहुत बहुत बधाई। एक छोटे से गांव दिनेशपुर से जो अलख जगी है, वह बहुत दूर तक जायेगी, पूरी आशा है, विश्वास है।
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
☆ प्यार और कुर्बानी के इलावा माँ के मसलों को भी याद करें – वानप्रस्थ (वरिष्ठ नागरिकों की संस्था) का आयोजन ☆
हिसार। मई 9.
मैं सीता नहीं बनूंगी, किसी को अपनी पवित्रता का प्रमाण पत्र नहीं दूंगी , आग पर चल कर…..
मैं राधा नहीं बनूंगी, किसी की आंख की किरकिरी बन कर…
मैं यशोधरा भी नहीं बनूंगी, इंतज़ार करती हुई, ज्ञान की खोज में निकल गए किसी बुद्ध का..
मैं गांधारी भी नहीं बनूंगी, नेत्रहीन पति की साथी बनूंगी पर आंखों पर पट्टी बांध कर नहीं..
प्रो राज गर्ग ने यह कविता सुनाते हुए कहा कि आज की नारी बदल रही है, वह देवी रूप नहीं चाहती, केवल समानता और सम्मान चाहती है।
विश्व मातृत्व दिवस पर रविवार की शाम वानप्रस्थ संस्था द्वारा आयोजित वेबिनार में एक तरफ जहां माँ के असीम प्यार और कुर्बानी को याद किया गया, वहीं मां के उन मसलों को भी उल्लेखित किया गया जिन्हें लेकर सन 1908 में एक अमेरिकी महिला ने इसकी शुरुआत की थी।
प्रो सुनीता श्योकंद का कहना था कि मां अनथक रोबोट या मशीन नहीं है जो हर वक्त सेवा में लगी रहे, वह भी इंसान है, उसे भी आराम की जरूरत है और उसके भी सपने हैं।
इसी तरह माँ से जुड़े मुद्दे अन्य ने भी उठाए। कुरुक्षेत्र से जुड़े प्रो दिनेश दधीचि ने कहा,
घर घर चूल्हा चौका करती, करती सूट सिलाई माँ,
बच्चों खातिर जोड़ रही है, देखो पाई पाई माँ,
घटते घटते आज बची है, केवल एक तिहाई माँ
सिरसा से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार बी के दिवाकर ने कहा,
माँ मरी ते रिश्ते मुक गए,
पेके हुंदे मावां नाल
माँ पर शायरी करने वाले मुन्नवर राणा की शायरी का भी खूब जिक्र हुआ।
अजीत सिंह ने तरन्नुम में उनकी ग़ज़ल के कुछ शेर पढ़े।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ बहुत गुस्से में होती है, तो रो देती है
प्रो स्वराज कुमारी ने पार्टीशन की पृष्ठभूमि पर लिखा राणा का यह शेर पढ़ा,
बीवी को तो ले आए,
मां को छोड़ आए हैं..
प्रो सुरेश चोपड़ा ने भी राणा के कई शेर पढ़े..
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
डी पी ढुल ने भी मां पर एक मार्मिक कविता पढ़ी।
युगों युगों से मां ने तो भगवानों को भी पाला है,
उसकी गोद जन्नत है,
गिरजाघर और शिवाला है
कुरुक्षेत्र से जुड़ी प्रो शुचि स्मिता का गीत था,
मां सुना दो मुझे वो कहानी,
जिसमें राजा न हो न हो रानी
प्रो शमीम शर्मा की कविता थी,
मां बुहारे हुए आंगन का सबूत,
मां अंधेरे में मुंडेर पर टंगा सूरज है
वेबीनार में शामिल बहुत से सदस्यों ने मां पर आधारित फिल्मी गीत भी सुनाए।
रोहतक से जुड़े प्रो हुकम चंद ने मान की लोरी पेश की। चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया, जागे सारी रैन, तेरे मेरे नैन…
प्रो एस एस धवन का गीत था, मां तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी
डॉ सत्या सावंत ने गाया, चलो चलें मां, सपनों की छांव में..
पुणे से जुड़ी दीपशिखा पाठक की प्रस्तुति थी, तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, ओ मां, ओ मां
वीणा अग्रवाल पंजाबी गीत, मांवां ते धीयां रल बैठियां नी माए.. गाते हुए भावुक हो गईं, उनका गला रुंध गया और वे गीत पूरा न कर सकीं।
(मदर डे पर आयोजित वानप्रस्थ की गोष्ठी का दृश्य)
लगभग तीन घंटे चली वैब गोष्ठी में करीबन 30 सदस्यों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक माँ केंद्रित रचनाएं प्रस्तुत की। दूरदर्शन हिसार के पहले डायरेक्टर रहे एस एस रहमान अजमेर से गोष्ठी में जुड़े और हिसार निवास की यादों को ताज़ा किया।
साहित्य जगत में ग्रामीण क्षेत्र से उभरती प्रतिभा – श्रीमती योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ – अभिनंदन
श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’, झिगिराघाट अंजनिया, मंडला, मध्यप्रदेश के बहुत ही छोटे से गाँव से हैं। आप स्व. विजय चौरसिया (पिता), श्रीमति रजनी देवी चौरसिया (माता) की सुपुत्री एवं श्री योगेश चौरसिया जी की अर्धांगिनी अपना व्यापार संभालते हुए सामाजिक व साहित्यिक सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती है।
आपने बहुत ही कम उम्र में कई मुकाम हासिल किए हैं। विगत दिनों आपने ‘भारत जानो’ पुस्तक पर राजस्थान से संबन्धित होते हुए दोहे व चौपाई से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कविसम्मेलन द्वारा मंत्रमुग्ध कर दिया। हाल ही में दिल्ली में सम्मान समारोह में हमारे देश के भारतरत्न साझा संकलन में डाँ. अब्दुल कलाम जी पर स्वरचित रचना जो गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में चयनित हुई है, नई दिल्ली में सम्मानित किया जाएगा।
आपने कई साझा संकलन पर काम किया है। दो सौ से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। जिसमे कोरोना सम्मान, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रमुख है।
वर्तमान में आपके ‘प्रेमिल सृजन काव्य कलश 1’ नामक दोहा-छंद संग्रह व ‘विविध प्रकार के छंद काव्य कलश-2’ प्रकाशनधीन है।
आप कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत अपने हृदयभावों को विश्व के समक्ष रखने का प्रयास करती है। स्वयं को जोगन मान बहुत सी रचनाओं द्वारा शब्दाजंली अपने माधव को अर्पित करती है।
आपकी रचनाएँ (गीत, गज़ल, छंदबद्ध, छंदमुक्त, कहानी, लघुकथा, संस्मरण आदि) विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं में सतत् प्रकाशित होती रहती हैं।
आपकी लेखनी का उद्देश्य समाज की व्यथा को उजागर करना व समाज में चेतना का संचार करना। हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करना।
साहित्यिक जगत में एकल काव्य पाठ, दोहा शिक्षक व समीक्षक साथ ही संस्थागत दायित्व कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष अदि पदों का निर्वहन भी कर रही हैं।
आप समाजिक कार्यकर्ता के रुप में नारी समिति संस्था मंडला, आदर्श महिला क्लब मंडला, चौरसिया सेवा ट्रेस्ट मध्यप्रदेश, से जुड़ी है।
प्रेमिल सृजन :
विधा – नरहरि छंद
आज योगिता जोगन है, बावरी।
कृष्ण रंग मैं रँगती बन, साँवरी।।
हृदय धरे चलती अब जो, सार है।
दर्श आस रख अश्रु बहे, धार है ।।1!!
विरह वेदना करती है, सामना ।।
आ जाओ बंशी धारी, कामना ।
हृदय पीर बढ़ती है अब, साजना ।
सुनो प्रार्थना करती हूँ, साधना ।।2!!
सदा प्रीत ही जीत बने, हार कर ।
करें जिंदगी न्यौछावर, वार कर ।।
मीत अनोखे कृष्ण बने, खास हैं ।
हृदय पटल पर जो रचते, रास हैं ।।3!!
– योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’
मंडला म.प्र.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
रूग्ण सेवा प्रकल्प तर्फे आयोजित केलेल्या निबंध स्पर्धेत आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखिका सौ.पुष्पा नंदकुमार प्रभू देसाई यांनी द्वितीय क्रमांक प्राप्त केला आहे.
हा निबंध आपल्या वाचनासाठी दोन भागात देत आहोत.
💐 ई- अभिव्यक्ती कडून त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन.💐
संपादक मंडळ
ई-अभिव्यक्ती मराठी.
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
(पूर्वसूत्र- मी आता त्याना एकटक न्याहाळत राहिलो. ते मला वेगळेच वाटू लागले. देवासारखे. खिशातून औषधे बाहेर काढणारा माझा हात तसाच घुटमळत राहिला. ती औषधे त्यांना दाखवायची मला आता गरजच वाटेना. “व्हॉट इज दॅट?” डॉक्टरांचं लक्ष माझ्या हाताकडे होतंच. )
“मी सध्या ही औषधं. . ” मी काहीसं घुटमळत औषधं त्याना दाखवली. ती पाहून त्यानी परत दिली आणि ते प्रिस्क्रिप्शन लिहू लागले.
“ती औषधं बरोबर आहेत पण डोस थोडा माईल्ड आहे. तुमच्या खोकल्याशी तुमची फ्रेंडशीप झालीय. ती या माईल्ड डोसला जुमानत नाहीय. अर्लीअर रुटीन इन्फेक्शन आता क्राॅनिक स्टेजला पोचू लागलंय. सो यू हॅव टू टेक धीस स्ट्राॅन्ग डोस फाॅर अ वीक. यू वील बी ऑल राईट. जमेल तेव्हा रेस्ट घ्या. रुटीन चालू राहू दे. या. . “
“सर,तापाचं काय?”
ते हसले.
“त्याचं काय?तो या खोकल्याचा लहान भित्रा भाऊ आहे. पहिल्या डोसला घाबरुनच तो पळून जाईल. डोण्ट वरी. “
“सर, पैसे ?”
“थर्टी रुपीज”
मला आश्चर्य वाटलं. फक्त तीस रुपये ?मी काही बोलणार तेवढ्यात त्यानी पुढच्या पेशंटला बोलावलं. पैसे देऊन मी जायला निघालो. मला इथून बाहेर पडावंसंच वाटेना. दाराजवळ जाताच मी मागं वळून पाहीलं. ते समोरच्या पेशंटशी हसून बोलू लागले होते. माझा स्वीच त्यानी केव्हाच ऑफ केला होता. मी बाहेर पडलो ते डाॅ. मिस्त्रींबद्दलची उत्सुकता मनात घेऊनच.
मी घरी आलो. दोन घास खाऊन मी औषध घेतलं. अंथरुणावर पाठ टेकली. डोळे मिटले. ग्लानी आली तरी मनातून डाॅ. मिस्त्री जाईचनात.
“कसं वाटतंय?”रात्री गप्पा मारताना भावानं विचारलं.
“खूपच छान. “
“डाॅ. मिस्त्री कसे वाटले?” त्याने सहजच विचारलं. मला खूप काही बोलायचं होतं,पण ते शब्दात सापडेचना.
“खूsप वेगळे आणि चांगले”
बोलता बोलता मी प्रत्यक्ष पाहिलेला तो आजी-आजोबांचा प्रसंग त्याला सांगितला.
“असे अनुभव मी तिथे अनेकदा घेतलेयत. प्रत्येक पेशंटची कुंडली त्यांच्या मनात पहिल्या भेटीतच अचूक नोंदली गेलेली असते. तू पुन्हा कधी गेलास,तर कांही क्षण तुझ्याकडे रोखून बघतील. ते बघणं म्हणजे मनात साठवलेल्या त्या कुंडल्या धुंडाळणं असतं. आणि मग हसून तुझं नाव घेऊन तुझ्याशी बोलायला सुरुवात करतील. . ” भाऊ असंच खूप कांही सांगत राहिला आणि मी थक्क होत ऐकत राहिलो.
आधीच भारावून गेलेल्या मला डाॅक्टर मिस्त्रींची खरी ओळख आत्ता होतेय असंच वाटत राहीलं. पस्तीस वर्षांपूर्वी स्विकारलेलं वैद्यकीय सेवेचं व्रत सचोटीने अव्याहत सुरु आहे. ‘पारखी नजर’ हे त्याना मिळालेल़ं ईश्वरी वरदान तर होतंच,पण आजच्या प्रदूषित वातावरणातही त्याचा बाजार न मांडता त्यानी ते निगुतीने जपलेलं होतं. मुलगा सर्जन होऊन अमेरिकेत स्थायिक झाल्यावर ते दुखावले असणारच ना?पण खचले मात्र नाहीत. आपला वारसा पुढे कोण चालवणार हा विचार डोकावला असणारच ना त्यांच्या मनात?पण ती सल ते कुरवाळत बसले नाहीत. रुग्णसेवेचं व्रत त्यानी वानप्रस्थातही अखंड सुरु ठेवलंय आणि मिळणाऱ्या पैशांचा अव्याहत ओघ त्यानी अलगद गरजूंकडे वळवलाय. तेसुध्दा कसलाही गाजावाजा न करता. कधीही सुट्टी न घेणारे डाॅ. मिस्त्री वर्षातून दोन दिवस मात्र आपलं क्लिनिक पूर्णपणे बंद ठेवतात. पण हे आराम करण्यासाठी किंवा बदल म्हणून नव्हे. त्या दोन दिवसातला एक दिवस दहावीच्या आणि दुसरा बारावीच्या परीक्षांचा आदला दिवस असतो. या दोन्ही दिवशी या परिक्षांना बसणाऱ्या मुलामुलींची डाॅक्टरांचे आशिर्वाद घेण्यासाठी रीघ लागलेली असते. त्या सर्वांची अडलेली शिक्षणं डाॅक्टरांच्या आर्थिक मदतीमुळेच मार्गी लागलेली असतात. म्हणूनच त्या मुलाना डाॅक्टरांच्या आशिर्वादाचं अप्रूप असतं आणि डाॅक्टरना त्या मुलामुलींच्या भावनांची कदर. . !
हे आणि असं बरंच काही. सगळं ऐकताना मी भारावून गेलो होतो.
मुंबईची असाईनमेंट पूर्ण करुन परतताना मी अस्वस्थ होतो. मुंबईला येतानाची अस्वस्थता आणि ही अस्वस्थता यात मात्र जमीन अस्मानाचा फरक होता. ती अस्वस्थता उध्वस्त करु पहाणारी आणि ही हुरहूर लावणारी. . !डाॅ. मिस्त्रीनी मला औषध देऊन बरं तर केलं होतंच आणि जगण्याचं नवं भानही दिलं होतं. डाॅ. मिस्त्रींचा विचार मनात आला आणि उन्हाने तापलेल्या वातावरणात एखादी गार वाऱ्याची सुखद झुळूक यावी तसं मला वाटत राहिलं. ती झुळूक मी इतक्या वर्षांनंतरही आठवणीच्या रुपात घट्ट धरुन ठेवलीय. . !!
☆ भारतीय स्टेट बैंक द्वारा साहित्यकारों का सम्मान समारोह, भोपाल ☆
भारतीय स्टेट बैंक जन जन की आकांक्षाओं का ट्रस्टी हैं। सामाजिक सेवा बैंकिंग के अन्तर्गत बैंक से सेवानिवृत्त ऐसे बैंक कर्मी जो बैंक सेवा के साथ साहित्य सेवा के प्रति भी समर्पित रहे हैं, ऐसे साहित्यकारों का सम्मान करने की स्टेट बैंक की परिकल्पना एक सराहनीय कदम है।
ऐसे साहित्यकारों का एक भव्य सम्मान समारोह शनिवार दिनांक 23 अप्रेल 2022 को भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय, भोपाल में आयोजित किया जा रहा है।
विदित हो कि इस सम्मान समारोह में सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेश जोशी (भोपाल), ब्रजेश कानूनगो (इंदौर), जय प्रकाश पाण्डेय (जबलपुर), श्याम खापर्डे (भिलाई), सुरेश पटवा (भोपाल), अरुण दनायक (भोपाल), शांति लाल जैन (उज्जैन), सुश्री अलकनंदा साने (इंदौर), आर एस माथुर, सतीश राठी (इंदौर), अर्पण कुमार, अजय बाजपेई (भोपाल), कुमार अंबुज (भोपाल), सुश्री द्रोपदी धनवानी (भोपाल), मधु कांत चतुर्वेदी, लक्ष्मी कांत लावने, गोकुल सोनी, दीपक पंडित, दीपक गिरकर, के टी बदलानी, टी एस खरबंदा, संजय कुमार, बिपिन बिहारी वाजपेई, सुश्री दीपा मिश्रा जी को सम्मानित किया जायेगा।
यह ई- अभिव्यक्ति के लिए भी गौरव के क्षण हैं जिसमे ई-अभिव्यक्ति पत्रिका के कुछ सम्माननीय साहित्यकारों में जय प्रकाश पाण्डेय (जबलपुर), सुरेश पटवा (भोपाल), अरुण दनायक (भोपाल), शांति लाल जैन (उज्जैन), ,श्याम खापर्डे (भिलाई), दीपक गिरकर को आज सम्मानित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि आज सम्मानित होने वाले ख्यातिलब्ध लेखक कवियों ने भारतीय स्टेट बैंक में लम्बे समय अपनी सेवाएं प्रदान कीं हैं।
💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से सभी आदरणीयों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 💐
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ साहित्यिक कार्य के लिए श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ सम्मानित ☆
रतनगढ़। श्री राम मंदिर में भगवन राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर सोमवंशी क्षत्रिय समाज द्वारा साहित्यिक कार्य के लिए श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को शाजापुर में एक भव्य सामाजिक कार्यक्रम में भारत भर से पधारे अतिथियों के सम्मुख सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर रमेश मनोहरा जावरा को भी शाल श्रीफल देकर कर सम्मानित किया गया है। स्मरण रहे कि श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय को आजादी के 75 वे अमृत महोत्सव पर समर्पित भारत कथा माला के 28 राज्य व 9 केंद्र शासित प्रदेशों की प्रकाशित पुस्तकों में ’21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां (मध्यप्रदेश)’ का संपादन कार्य कर कहानियों की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट संकलन प्रस्तुत किया गया हैं। इस संकलन में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे, देवपुत्र के संपादक श्री गोपाल महेश्वरी सहित मध्यप्रदेश के अनेक बाल साहित्यकारों की कहानियां सम्मिलित की गई है।
💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” इस उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र लघुकथा सम्मान – वर्ष 2022 – प्रविष्टियाँ आमंत्रित ☆
☆ लघुकथा शोध केंद्र, अहमदनगर (महाराष्ट्र) का आयोजन ☆
लघुकथा शोध केंद्र, अहमदनगर (महाराष्ट्र) के प्रथम वार्षिक कार्यक्रम (मई 2022) के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर ‘आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र लघुकथा सम्मान’ का आयोजन किया जा रहा है। इसमें प्रविष्टि भेजने के लिए नियम व शर्तें इस प्रकार हैं —
प्रेषित लघुकथा मौलिक तथा अप्रकाशित, अप्रसारित हो। इसका प्रमाण पत्र लघुकथाकार द्वारा देना अनिवार्य है।
प्रेषित लघुकथा वर्ड फाइल में यूनीकोड मंगल फोंट अथवा कृतिदेव 10 फोंट में टाइप की हुई हो ।
वर्तनी की अशुद्धियां नहीं होनी चाहिए तथा व्याकरण चिह्नों का समुचित प्रयोग हो ।
एक लघुकथाकार एक लघुकथा भेजें। लघुकथा का शीर्षक, अपना पूरा नाम, डाकपता, फोन नंबर, ई-मेल आदि का स्पष्ट उल्लेख अलग फाइल में करें।
लघुकथाएँ इस ई-मेल पर भेजें – [email protected] व्हाट्स एप पर अथवा डाक/कूरियर से नहीं।
रचना ओपन फाइल में भेजें, पीडीएफ में नहीं।
रचना भेजने की अन्तिम तिथि – 5.5.2022 है। इसके बाद प्राप्त रचनाएँ प्रतियोगिता में शामिल नहीं की जाएँगी।
परीक्षकों का निर्णय ही मान्य तथा अंतिम होगा ।
प्रतियोगिता का परिणाम वार्षिक कार्यक्रम (ऑनलाईन) के अवसर पर घोषित किया जाएगा। इससे पूर्व इस संदर्भ में कृपया कोई संपर्क न करे ।
प्रथम पुरस्कार – 2000/=
द्वितीय पुरस्कार -1000/=
तृतीय पुरस्कार – 700/=
तीन प्रोत्साहन पुरस्कार- 500/=
विशेष:- प्रतियोगिता के नियमों में आवश्यक परिवर्तन का अधिकार ‘आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र लघुकथा सम्मान’समिति, अहमदनगर (महाराष्ट्र) के पास सुरक्षित रहेगा।
प्रो. डॉ. ऋचा शर्मा, अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर (महाराष्ट्र)
संयोजक – लघुकथा शोध केंद्र, अहमदनगर, [महाराष्ट्र (लघुकथा शोध केंद्र,भोपाल की शाखा)]
☆ श्रीमती वीनु जमुआर द्वारा लिखित पुस्तक ‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध’ लोकार्पित ☆
भारतीय नव वर्ष के अवसर पर दिनांक 2 अप्रैल को श्रीमती वीनु जमुआर द्वारा लिखित पुस्तक ‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध’ का ऑनलाइन लोकार्पण हुआ। यह कार्यक्रम क्षितिज प्रकाशन और इन्फोटेनमेंट के तत्वाधान में आयोजित किया गया था।
संचालक-समालोचक के रूप में कार्यक्रम का आरम्भ करते हुए हिन्दी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष श्री संजय भारद्वाज ने कहा कि ऑनलाइन पुस्तकों के जमाने में भी ‘बिटवीन द लाइंस’ पढ़ने के लिए मुद्रित पुस्तकें सदा प्रासंगिक रहेंगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती ऋता शुक्ल ने की । उन्होंने कहा कि रामत्व, बुद्धत्व हमारे रक्त में है। शब्द यज्ञ, कला यज्ञ आदि के माध्यम से हमें वाचन संस्कृति की ओर लौटना होगा।
मुख्य अतिथि डॉ. सुदर्शन वशिष्ठ ने कहा कि लेखिका ने सरल, बोधगम्य भाषा में बुद्ध के चरित्र को सामने रखा है। सभी पीढ़ियाँ इसे पढ़ने का आनंद ले सकती हैं।
डॉ रमेश गुप्त मिलन ने इस पुस्तक को साहित्यिक जगत में निधि के रूप में शृंगारित की उपमा दी। श्री देवेंद्र कुमार बहल ने कहा कि किसी भी धर्मगुरु के दर्शन को समझने के लिए तत्कालीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझनी होती है। इस मानक पर यह पुस्तक खरी उतरी है। डॉ. रवींद्र नारायण पहलवान ने कहा कि लेखिका अपने मन की आँखों से उस समय घटित घटनाओं के साकार चित्रण में सफल रही हैं। श्री इंदुभूषण कोचगवे ने कामना व्यक्त की कि लेखिका आगे भी साहित्य की वाटिका को इसी भाँति सुवासित करती रहें।
उत्सवमूर्ति श्रीमती वीनु जमुआर ने कहा कि जीवन में उन्हें सदा अच्छे लोगों का साथ मिला। सृजन के संसार ने उन्हें हमेशा नये रिश्तों में बाँधा। उन्होंने सबके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की।
स्वागत भाषण में क्षितिज की प्रमुख सुधा भारद्वाज ने कहा कि साहित्यकारों-परिजनो की उपस्थिति से आयोजन उत्सव में परिवर्तित हो गया है। अमिता अम्बस्ट, विनीता सिन्हा, रश्मि वर्मा, डॉ. अनूप सिन्हा, नवीन सिन्हा, प्रदीप वर्मा, उपासना जमुआर, स्निग्धा जमुआर, काश्वी जमुआर ने भी अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं।
वेरा सिन्हा ने आभार व्यक्त किया। कृतिका भारद्वाज ने तकनीकी व्यवस्था में विशेष सहयोग किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार और मित्र उपस्थित थे।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈