हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ -12 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 12 ☆

मेरे शब्द

चुराने आए थे वे,

चुप्पी की मेरी

अकूत संपदा देखकर

मुँह खुला का खुला

रह गया…..,

समर्पण में

बदल गया आक्रमण,

मेरी चुप्पी में

कुछ और पात्रों का

समावेश हो गया!

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:07 बजे, 2.9.18)
(कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – स्वप्नपाकळ्या ☆ ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है होली के अवसर पर उनकी कविता “होळीचा रंग “.) 

(दिनांक २३-०२-२०२०ला राज्यस्तरीय साहित्य व संस्कृती महोत्सव २०२०चे कवि कट्टा मंचाचे अध्यक्ष पद स्विकारतांना , कविंना प्रमाणपत्र व सन्मानचिन्ह प्रदान करतांना श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 1 ☆

☆ कविता – होळीचा रंग  ☆ 

रंग खेळू, रंग उधळू, उधळू गुलाल

रंगात रंगू या, निळ्या पिवळ्या लाल ।।

 

काही रंग ओले, काही सुकलेले रंग

जीवनाच्या अंतरंगी, वेगळे  तरंग

माणुसकीचे काही, काही चवचाल।।

रंगात रंगू या…….

 

होळीच्या निमित्ताने, खरे खरे बोलू

रंगलेल्या चेह-याची, आज पोल खोलू

मानू नका वाईट, ही होळीची धमाल।।

रंगात रंगू या…….

 

मित्रांनो धुता येईल, तन रंगलेले

कसे धुता येईल हो, मन मळलेले

होळीच्या गुलालात, आहे ही कमाल ।।

रंगात रंगू या…..

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 39 – त्या हळूवार, अलवार  क्षणांची  साक्षीदार ……… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनके चौदह वर्ष की आयु से प्रारम्भ साहित्यिक यात्रा के दौरान उनके साहित्य  के   ‘वाङमय चौर्य’  के  कटु अनुभव पर आधारित एक विचारणीय आलेख “त्या हळूवार, अलवार  क्षणांची  साक्षीदार ……….  सुश्री प्रभा जी  का यह आलेख इसलिए भी विचारणीय है, क्योंकि  हमारी समवयस्क पीढ़ी को साहित्यिक चोरी का पता काफी देर से चलता था जबकि सोशल मीडिया के इस जमाने में चोरी बड़ी आसानी से और जल्दी ही पकड़ ली जाती है। किन्तु, शब्दों और विचारों के हेर फेर के बाद  ‘वाङमय चौर्य’  के  अनुभव को आप क्या कहेंगे। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को अपने तरीके से जीता है।  जैसे वह जीता है , वैसा ही उसका अनुभव होता है।  इस अतिसुन्दर  एवं विचारणीय आलेख के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 39 ☆

☆  त्या हळूवार, अलवार  क्षणांची  साक्षीदार ……… ☆ 

वयाच्या तेरा चौदाव्या वर्षी कविता माझ्या आयुष्यात आली. शाळेत असताना हस्तलिखिताच्या निमित्ताने!

विसाव्या वर्षा नंतर कविता थांबेल असं मला वाटलं होतं, पण काही  वर्षे थांबल्या नंतर….कवितेच्या पुन्हा प्रेमात पडले, कवितेला व्यासपीठ मिळालं, अनेक ग्रुप मिळाले,  एका ग्रुप मधल्या बारा तेरा वर्षांनी मोठ्या असलेल्या कवयित्री बरोबर मैत्री झाली. आमची घरे जवळ असल्यामुळे  एकमेकींच्या घरी जाणं, कविसंमेलनात एकत्र सहभागी होणं, रिक्षा शेअर करणं यामुळे मैत्री वाढली, पण काही वर्षापासून असा शोध लागला की त्या कवयित्री कडे स्वतःची चांगली कविता नाही, ती सादर करत असलेल्या, दाद घेणा-या सर्व कविता मान्यवर कवींच्या चोरलेल्या कविता आहेत, हल्ली फेसबुक, व्हाटस् अॅप मुळे तिच्या चो-या उघडकीस आल्या, तिने त्या त्या कवींची माफीही मागितली पण निर्ढावलेपण अंगी मुरलेलं, वयाची पंचाहत्तरी उलटून गेली तरी व्यासपीठावर कविता सादर करण्याची इच्छा, दुस-यांच्या कविता वाचून दाद, मोठेपणा मिळवायची सवय लागलेली, कवयित्री म्हणून प्रतिमा पूर्ण डागाळलेली……पण मैत्रीच्या नात्याचं काय?

काही आयोजकांच्या मते आता तिच्या या वयात तिला वाळीत टाकणं म्हणजे तिला धक्का बसून ती कोलमडून जाईल, म्हणून वाङमय चौर्य हा गुन्हा माफ करायचा का ? थोड्या थोडक्या नव्हे वीस पंचवीस चोरलेल्या कवितांच्या आधारे सगळी कारकीर्द गाजवली! बाई उच्चशिक्षित, मराठीत एम.ए. असलेली, पण कवितेची चोर नव्हे तर अट्टल दरोडेखोर! तिला वृत्ताची जाण नाही पण अनेक वृत्तबद्ध कविता अनेक वर्षे सादर केल्या इतकंच नव्हे त्या दुस-यांच्या कविता स्वतःच्या संग्रहातही छापल्या. एका कवीने “पोलिसकेस करीन” म्हटल्यावर तिने  त्याला जाहीर माफी पत्र लिहून दिले ते फेसबुक वर प्रसिद्ध झाले!

केवढी ही शोकांतिका! असे मोह का होत असतील? तिच्या बरोबर केलेल्या अनेक मैफिली आठवल्या, तिचं खोटेपण, चोरटेपण आज लक्षात आलं!

कवयित्री म्हणून ती निश्चितच बाद झाली पण मैत्री चं काय?? त्या हळूवार, अलवार  क्षणांची  साक्षीदार असलेली पण सतत काव्यक्षेत्रात दुस्वास करणारी, कुरघोडी करू पहाणारी ती……एक प्रश्नचिन्ह बनूनच राहिली आहे!

तिने मुक्तपणे माळली, दुस-याच्या बागेतली

सुंदर सुंदर फुले स्वतःच्या केसात…

आणि मिरवली

गंध स्वतःच्याच मालकीचा असल्याच्या तो-यात,

ती फुलं ही दुस-याची आणि गंधही परकाच असल्याचं समजलं सगळ्यांना

आणि बागेतल्या सा-याच फुलांनी केला  उठाव…..

तिची लूट थोपवण्यासाठी…

कवितेचे कित्येक ताटवे…   परतताहेत आता…

आपापल्या मालकांकडे  !

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ पुस्तक विमर्श (English Review) # – स्त्रियां घर लौटती हैं – “There exists books like this that make you halt and observe” – Shri Archit Ojha ☆ श्री विवेक चतुर्वेदी

पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं 

श्री विवेक चतुर्वेदी 

( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह  स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ।  यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति  की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है।  इस श्रृंखला की चौथी कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं श्री अर्चित ओझा जी  के अंग्रेजी भाषा में विचार “There exists books like this that make you halt and observe” ।)

अमेज़न लिंक >>>   स्त्रियां घर लौटती हैं

 

☆ पुस्तक विमर्श #9 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “There exists books like this that make you halt and observe” – Shri Archit Ojha  ☆

When I was in school, I remember waiting for Wednesdays because I would get to read poetry in Hindi newspapers. I would sit patiently, devouring the content and take delight in the unique arrangement of words. It used to wonder me how the simple play of some letters can bring euphoria on someone’s face. How captivating! Such power they had on people seeking peace and pleasure in literature.

Years passed by and I forgot what it was like to be that person again. The rush we feel today to keep on moving forward, without pausing to be attentive towards every day things, without smiling at them and when it’s time to get old, lamenting “If only, I had stopped a bit.”

Thankfully there exists books like this that make you halt and observe.

Reading Vivek Chaturvedi’s book felt like being transported to the fields of sunflowers, oleander, mangoes, berries, guavas, basal leaves and marigolds, being surrounded by the fragrances these little things create, unknowingly, unapologetically being themselves; soaking in the aroma of Earth after the first rain, running back to home from school, celebrating festivals, resting in the sun during Summer, flying kites, racing with friends, waiting for the rainy days and when the rainy season came, then craving for the winters and those warm blankets, seeing a father’s tears when his daughter is leaving her home to make another one her own, conversing with mothers who never seem to get tired of nurturing their kids, waking up early to see the sunrise, gardening, chit-chatting with the neighbors, visiting fairs, persisting to buy toys that will be played only for a few days, laughing with friends without any reason, believing in funny superstitions, sitting under a tree, mourning when it was taken down in the name of development, sending letters without stamping them, appreciating the calmness of the moon on a peaceful night, caring for pets and weeping in the corner, lest somebody sees; when they leave us saying goodbyes.

Reading this book felt like living the childhood, the life once again and that there is no place for regrets.

There were a number of instances which took me by surprise with their lucidity and easy-going manner. All the 56 poems have their own distinctive charisma. It was difficult for me to select my favorites but following lines in these poems would stay with me. I’m providing English translation for the titles, so the readers can adore the magnificence of the author’s creativity. Here are a few lines, I hope they don’t get lost in translation:

  1. Women Return their Homes: A home too, is a child for a woman, that grows a little more, every day.
  2. The domestic/household women have been treated like pencils: Thrown with anger and boredom, dropped down from the desk and mentality, a bit of nib got saved, but the lead inside is broken, still they were picked up and employed for selfish purposes again and again.
  3. Where are you: The kids who were locked inside their homes are now playing in the mud, rolling and laughing, a tuft of grass has started growing through a crack in the concrete, where are you?
  4. Typist: I said “Courage”, and she wrote it once, I said “courage” again, and the whole page got filled with that one word!
  5. Dad: All your life, many icy storms went through you, and you did not let any of them touch us. Dad, you were Himalayan.

I believe that of all the literature in the world, Hindi poetry is a genre that you cannot get enough of. They take time to build upon you. They sing a song that means multiple things to different people, according to the life they have seen. Some years back, I read a poem by a Russian Poetess about how much she loved Hindi and reading this book, kept reminding me of why I also love Hindi so much.

I admired how nature was the core and strength of this book. Finding similarities between the nature and human activities, it warms the heart and develops imagination. More than that, I’m grateful for it brought the observer in me back again. It made me notice things around me, every day, mundane, normal things that nobody pays attention to.

Though the title says Women Return their Homes, the book carries insightful and smart observations, poems about environment, seasons, motherhood, parenting, friendship, love, home, children, elders, mythology, women empowerment and the society. You read a few lines and realize the richness of experiences these poems posses. I will turn back to this book again and again for its brevity, clarity and the wisdom it contains.

I wish that English translation of these poems would also be published some day, so that English speakers can take delight in the beauty that the author has fabricated.

If, like me, you haven’t been around Hindi poetry for a while, this book will remind you to go back to your roots, appreciate and feel the charm again in observing the effortless joy our surroundings carry.

If you have been around Hindi poetry for a while, this book will solidify the faith that Hindi Literature’s future is in gifted hands.

 

 – Archit Ojha

© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र ) 

ई-अभिव्यक्ति  की ओर से  युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें  एवं बधाई।

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 23 ☆ इंगळ्यांची मंजुळा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होत आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  अपनी सासु माँ को समर्पित उनकी  एक अतिसुन्दर कविता  “इंगळ्यांची मंजुळा”।  कविता का प्रकार – मुक्तछंद है। श्रीमती उर्मिला जी की कवितायेँ हमारे सामजिक परिवेश को रेखांकित करती हैं। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 23 ☆

ज्या घरात आजी-आजोबा,म्हणजे सासू सासरे,दीर जावा ,नणंदा , बाळगोपळ  आहेत असं घर गोकुळच असतं.सासरे घराचा कणा असतात तर सासूबाई  आपल्या घरातल्या चालीरीती,रुढी परंपरा चढून जाण्यासाठीचा जिना असतात.

आपण जेव्हा लग्न होऊन सासरी येतो तेव्हा पतीनंतर सगळ्यात पहिली चांगली ओळख होते ती सासूबाईची. त्यांचे मुळे आपल्या खऱ्या सासरच्या  आयुष्याची सुरुवात होते. घरातल्यांची आपले कुलाचार कुल परंपरांची ओळख होते , ती केवळ आणि केवळ सासुबाईंमुळेच.अशाच माझ्या सासूबाईं त्यांचं नाव ” मंजुळा ” त्यांची ओळख मी माझ्या कवितेतून करुन देते आहे.:-

 काव्यप्रकार:-मुक्तछंद

 शीर्षक:- “‘इंगळ्यांची मंजुळा “

 

मंजुळाबाई मंजुळा, सासुबाई

माझ्या मंजुळा !

मंजुळा त्यांचं नाव अन् वडगाव

आमचं गाव !

बरं कां म्हणून त्या ” ‘वडगावच्या

इंगळ्यांची मंजुळा ” !!१!!

 

गोरा गोमटा रंग त्यांचा ,

ठेंगणा ठुसका बांधा !

त्या होत्या आमच्या घराण्याचा

सांधा !!२!!

 

गोड गोड खायची सवय त्यांना

भारी !

लग्नकार्यात उठून दिसे

त्यांची भारदस्त स्वारी  !!३!

 

शिक्षणात होत्या अडाणी,

पण होत्या अगदी तोंडपाठ

त्यांच्या आरत्या अन् गाणी  !!४!!

 

जरब होती बोलण्यात,

रुबाब होता वागण्यात!

पण खूप खूप माया होती त्यांच्या

अंतरंगात  !!५!!

 

 

अहेवपणी मोठ्ठ कुंकू कपाळावर

शोभे छान !

गावातल्या साऱ्याजणी द्यायच्या

त्यांना मान !

पाणीदार मोत्यांची नथ शोभे

त्यांच्या नाकात !

नवऱ्यासह सारेजण असायचे

त्यांच्या धाकात  !!६!!

 

म्हणायच्या त्या नेहमी !…..

डझनभर माझ्या नातींचा

अभिमान लयी भारी !

सुंदर माझ्या चिमण्या घेतील

पटापट भरारी !

अशा माझ्या सासुबाई वाटायच्या

खूप करारी !

पण होती आम्हांवर त्यांची मायेची

पाखर सारी !!

त्यांची मायेची पाखर सारी !!

त्यांची मायेची पाखर सारी !!७!!

 

©️®️उर्मिला इंगळे

 

दिनांक:-१८-२-२०२०

 

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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English Literature – Book-Review/Abstract – ☆ Winning Strategies for Parents ☆ – Ms. Gayatri Kalra Sehgal

Ms. Gayatri Kalra Sehgal

An accomplished artist and a passionate educationist; Ms. Gayatri Kalra Sehgal conducts academic seminars, intensive workshops on child development, curriculum design, effective communication, train the trainer, etc., to help parents, educators, curriculum designers, entrepreneurs understand specific and more profound requirements of children.

She has set up a day care centre and two schools, first as the principal and later as a dean, and carefully designed the academic curricula. She innovated and revolutionized a novel way of writing the report cards – ‘Child’s Intelligence Profile.’

Her five books are an extensive collection of her unique experiences and her vision to inspire the global leaders for tomorrow.

 

??‍? Winning Strategies for Parents – Ms. Gayatri Kalra Sehgal ??‍?

Helping Your Child Excel at Home and School : 

Parenting is never perfect; imperfections are beautiful, but inadequacies are not! ‘Winning Strategies for Parents’ is a ready reckoner that helps emotionally intelligent parents to channelize the substantial capacity programmed into their child by birth well into the correct direction at the right time.

The author helps parents and educators of the present age to transform with renewed understanding and expanded paradigms of parenting a genius; the child!

The author offers solutions that work and empowers parents to enable the child and remove the label given to the child by combining personal growth methods with innovative parenting techniques of the present era.

 

Books by Ms. Gayatri Kalra Sehgal:

  1. WINNING STRATEGIES FOR PARENTS – Helping Your Child Excel at Home and School
  2. SUPER CHILD! – Unlocking the Secrets of Working Memory
  3. BEING A MATHEMATICIAN – Mastering Secrets of Mental Math
  4. BEING A BRILLIANT THINKER – Mastering Intelligent Thinking Skills
  5. BEING A CREATIVE GENIUS – Mastering Activities that Inspire Creativity

Literary Journey

My literary journey began when I started teaching rather learning with pre-schoolers. I felt the urgent requirement to adequately understand each child at his or her level of understanding.

Concurrently, the academic curricula needed to be re-focused to be ‘child-led’ rather than ‘teacher-led’ to carefully nurture their unconditional love for learning. This required parents and teachers to be ‘sensitized’ with deeper knowledge and profound understanding about the child. To bridge the increasing gap between the key facilitator and the active learners; required thoughtful attention to raise children in a nurturing and secure environment to promote an atmosphere rich in love, respect, gratitude, self-discipline, self-reliance, responsibility and leadership.

This insight marked the turning point which made me resign as a Dean and put pen to paper. I experienced the urgent need to present this insight to the world so that we de-emphasize the focus from score-based results and shift the primary focus to a deeper and more profound understanding of learning.

 

Excerpt (Chapter # 9 – Expectations):

 

Begin by equating your ‘expectations’ with the facts of your child’s development (Chapter-2, Child’s Development Milestones). Check the current stage of your child’s development and the learning styles of your child (Chapter-3, Learning Preferences-Know ‘Yourself’ and ‘Your Child’). Now, compare your expectations with the facts about your child and question yourself if your expectations are well within the parameters of reason. Weed out the expectations that hold no meaning for your child at his or her stage of development.

Learning is innate for the child, and the child continues building on experiences over his or her lifetime. If the child’s learning experiences are good, it adds to his or her life; but think about the reverse situation!

Will the ‘unrealistic’ expectations help the child become a better person?

Or, is there a ‘miss?’

Think and think again, if your expectations are ‘that’ important; that you are prepared to risk the lifetime-relationship that exists between you and your child.

 

Links to the Book 

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Books of Ms. Gayatri Kalra Sehgal

Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

 

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Winning Strategies for Parents- Helping Your Child Excel at Home and School

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Goodreads Link : 

Author Ms. Gayatri Kalra Sehgal 

 

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पुस्तक समीक्षा/आत्मकथ्य – पूर्ण विनाशक (स्वयं की तलाश) – श्री आशीष कुमार

पूर्ण विनाशक (स्वयं की तलाश) – श्री आशीष कुमार 

Book: Purn Vinashak
Author: Ashish Kumar
Published by: Evincepub Publications
Publication Year: 2019
Formats: Amazon Kindle, Paperback
Genre: Philosophical, Spiritual, Mystery, Religious
Reviewed by: Ashish
Rating: 4/5 stars

Amazon Link – Purn Vinashak

आत्मकथ्य: 

एक दिन, जब मैं विलासिता का आनंद ले रहा था (आम तौर पर जिसे मैं पसंद नहीं करता हूँ), तो मुझे एहसास हुआ कि कहीं कुछ कमी है। उस समय मैं सोच रहा था कि अगर कोई रिश्तेदार या मित्र उस आनंद का भाग ना हो तो कोई भी विलासिता का आनंद कैसे ले सकता है। उस समय एक सेकंड का एक अंश मुझे एक युग की तरह लग रहा था। इसलिए मैंने दृढ़ विश्वास किया कि अकेले जीवन जीना खुद के लिए अपराध है। और यदि वह जीवन सबसे लम्बा हो, तो?

उस दिन मैंने इस पुस्तक को लिखने का निर्णय किया। मेरा सिर्फ एक ही विचार पूरी किताब में परिवर्तित हो गया है। मैंने ब्रह्मांड के सबसे कठिन विषयों पर अपने बारह साल के शोध, अनुभव, अन्वेषण, खोज, इच्छाओं और भावनाओं को इस पुस्तक में जोड़ दिया है। लेकिन सबसे अधिक, यह पुस्तक उस अनंत शक्ति के गुप्त मार्गदर्शन द्वारा लिखी गई है, जिसने मुझे सुझाव दिया, ध्यान और सपनों के चरणों में और यहाँ तक कि गहरी नींद में भी, इस पुस्तक में जोड़ने के लिए लेखों, और अवधारणाओं की स्पष्टता का।

कुछ वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्यचकित करने वाले हैं, अन्य वैज्ञानिकों के लिए सहायक हो सकते हैं। मुझे ध्यान, सपनों और गहरी नींद की स्थिति में भगवान से सन्देश और निर्देश प्राप्त हुए हैं। केवल मुझे पता है कि मैंने इस पुस्तक में अपना पूरा जीवन डालने के लिए कितना दर्द सहन किया है। मेरे पास कोई संख्या उपलब्ध नहीं हैं जो मुझे बता सके कि मैंने सोये बिना कितनी रातें बिताई है यहाँ तक कि नींद ने मुझे कई बार चेतावनी दी कि या तो मेरा आनंद लो या दर्द से चूर चूर होने के लिए तैयार हो जाओ।

मुझे लगातार सिरदर्द का सामना करना पड़ा, जिसे मैं पिछले बारह वर्षों से सामना कर रहा था, अंत में इस पुस्तक के रूप में मेरे प्रयासों को न्याय संगत बनाने में सक्षम है। पिछले दस सालों से, मैं ‘कई’ स्थितियों से गुजर रहा था मैं मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से, आर्थिक रूप से, सामाजिक रूप से, भावनात्मक रूप से, तार्किक रूप से, टूटा हुआ था। यह पुस्तक आपको रहस्यों की यात्रा पर ले जाएगी। आपको कुछ तथ्यों की व्याख्या मिलेगी जो आप अपने बचपन से सुन रहे हैं, और अचानक वे बदल जाएंगे।

मैंने हिंदू धर्म पर सभी संभावित उपलब्ध ग्रंथों को पढ़ा है जिनमें 4 वेद, 18 पुराण, 108 से अधिक उपनिषद, भगवद-गीता, रामायण, महाभारत, उप वेद, वास्तु-शास्त्र, ज्योतिष, हस्त रेखा, संगीत, आयुर्वेद, पौराणिक कथाओं, दर्शन, आगाम और कई अन्य। मैंने भौतिक प्रारूप और ई-किताबों में धर्म, दर्शन, विज्ञान इत्यादि के पिछले बारह वर्षों में 3000 से अधिक किताबों को पढ़ा हैं।

मैंने ज्ञान के लिए अपनी खोज को पूरा करने के लिए इंटरनेट पर अत्यधिक शोध किया है जिस पर यह पुस्तक आधारित है। तो इस पुस्तक को लिखने के लिए, मेरे प्राथमिक संसाधन हिंदू शास्त्र और इंटरनेट था। मैंने इस पुस्तक को एक रूप देने के लिए अपने दृष्टिकोण और चेतना के साथ एकत्र की गई जानकारी को एक कहानी में संकुचित कर दिया है। लेकिन कुछ हद तक केवल दिव्य स्रोत से प्राप्त निर्देश ही इस पुस्तक में हैं वो मुझे तब प्राप्त हुए जब मैं ध्यान या नींद की अवस्था में था।

इस पुस्तक में आपको पता चलेगा कि नाम क्या कर सकते हैं। तो अगली बार “नाम में क्या है?” पूछने से पहले दो बार सोचें। कई जगहों पर मैंने एक शब्द के अर्थ की व्याख्या करने के लिए वाक्यों या शब्दों के समूह का उपयोग किया है। कुछ स्थानों पर कुछ शब्दों का एक अर्थ होता है, और दूसरी जगह पर पुस्तक के प्रवाह के अनुसार कुछ मामूली अंतर के साथ उसी शब्द का कुछ अलग अर्थ हो जाता है। कुछ शब्द बहुत ही साधारण हैं, जिनका अर्थ हर कोई जानता है, लेकिन मैंने फिर से उन लोगों के लिए उनका अर्थ दिया है जो हिन्दुत्व के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं। मैंने शब्दों और अर्थों को आसान से आसान बनाने का प्रयास किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, समान नाम रखने वाले कई व्यक्तित्व हैं। इसलिए मैंने उनके अर्थों को उसी स्थान पर समझाया है, जिस स्थान पर इस पुस्तक में उनका उपयोग किया गया है, जैसे कि बाली वानर सुग्रीव के भाई हैं और लगभग समान नाम बलि पाताल लोक के राजा भी हैं। इसके अतरिक्त जंबुमली, सुसैन, आदि एक से अधिक व्यक्तित्व का नाम है। प्राण और चेतना जैसी उच्च अवधारणाओं के भी एक से अधिक अर्थ हैं। कभी-कभी मैंने विशिष्ट वाक्य के अनुसार किसी नाम का अर्थ इस्तेमाल किया, और अन्य अर्थों का उपयोग वहाँ किया है जहाँ यह एक अलग वाक्य में उपयोग किया गया हैं जिसमें उसका अर्थ पूरी तरह से अलग या उसके अर्थ का थोड़ा सा अलग संदर्भ है।

  • आशीष कुमार

Book Review:

Purn Vinashak, as the title suggests very clearly, is a novel that mixes many things together to create a completely different experience for the readers – thriller, mystery, adventure, spirituality, philosophy, and also religious elements. The novel fixates around a character named Surya Singha who is a travel guide and also a mysterious person as perceived by the characters around him – Ashish, Avinash and Puja. The novel is a mystery in itself as we, as the readers, are taken through different passages and paths only to understand that the character who is the fulcrum of the novel is none other but the brother of great King Ravana – Vibhishan himself.

Ashish, Avinash and Puja are people of the modern era and interested in researching about epics, religious texts and ancient scriptures. They are baffled when Surya Singha shocks them by revealing his true identity as a person who has lived many thousand years, has seen the great battle between Ram and Ravana, the great war of Mahabharata and also the two world wars. This revelation shocks Puja and others, especially Ashish who, thereafter, remains in awe throughout the novel.

‘Vibhishan Sir’ as other characters call him, reveals many secrets to these characters. Secrets and knowledge from Yoga, Spirituality, Karma, Ramayana and Mahabharata and many other ancient treasures that Ashish (and other characters) enjoy immensely.

Towards the conclusion, however, the novel takes a very different turn and a twist occurs that leaves Ashish shocked! This is something that the readers will find out themselves.

Purna Vinashak is written in Hindi and the author Ashish Kumar hasn’t left any spaces empty – content, language, plot, and theme – everything is properly maintained. However, at times, the novel’s narrative takes the shape of non-fiction as Vibhishan begins explaining things in details. That is something that only religious and spiritual readers will find exciting. Otherwise, the novel is exciting for the readers in general minus the Vibhishan’s extreme knowledge of things.

You can get a copy of the novel from Amazon and enjoy reading it right away!

Review by Sumit for Indian Book Critics

साभार: श्री आशीष कुमार 

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