हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “कविता का दिन…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – कविता का दिन☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

विश्व भर में कविता

अच्छा है, कविता मन की थाह

सामने ला देती है

कविता, चिड़िया के घोंसले सी सुकून देती है!

कविता बहुत कुछ कहने को उकसाती है।

कविता का दिन है

और मैं खामोश कैसे रहता?

यों कवि कम, कथा ज्यादा कहता हूं

पर कविता भी लिखवा लेती है

कुछ न कुछ!

लोग भूल जाते हैं!

कि मैं भी कविता से प्यार करता हूं

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆श्रेयस साहित्य # १ – श्री राम ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # 1 ☆

☆ कविता ☆ ~ श्री राम ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

आंखें तुमको देखती,

आंखों में है प्राण

रघुवर तेरे अधर पर,

अति मीठी मुस्कान

प्राण तत्व तुम जगत के

कर धारे संधान

रोम रोम में राजते

तुममें रमते प्राण

प्राण प्रिया जू सियाजी

राजे तेरे बाम

तुम प्रिय हो इस दीन के

प्रिय है तेरो नाम

राम नाम है मंत्र मणी

जपते आठो याम

मीरा के तुम राम हो,

कबीरा के भी राम

तुलसी के उर में बसों

घट में श्री रैदास,

गुरु नानक अरदास में

गुरु वाणी में वास

रहिमन दोहन में लिख्यो

ब्रह्म राम को नाम

राम शब्द परमात्मा,

आप सभी के राम

राम नाम महिमा बड़ी,

राम नाम को छाँव

जो जानन सो जान गा

माथ मोहि तोहि पाँव

श्रेयस रचि अति सोचि के

लिखियो शब्द सियराम

रतन महा बहुमूल्य है,

नाम तुम्हारो राम l

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – माँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – माँ ? ?

माँ,

अकेले यात्रा करने से डरती थीं,

अब अकेले ही निकल गईं अनंत यात्रा पर,

साथ देने की सोचता भी,

पर क्या साथ जाना होता भी?

शास्त्र कहते हैं, वैतरणी स्वयं ही तरनी होती है, यह यात्रा अकेले ही करनी होती है।

 

माँ,

आप प्रकांड अनुभव की धनी रही,

आपकी स्मृति सदा घनी रही,

एक बार आप चल लीं जिस मार्ग पर,

सदा के लिए अंकित हो गया वह

आपके स्मृतिसर्ग पर।

 

माँ,

पहले भी कभी की होगी यह यात्रा,

पहले भी कभी चरण पड़े होंगे इसी पथ पर,

मार्ग के कंकड़-कंकड़ से परिचित होंगी आप, हर मोड़, हर घुमाव के प्रति निश्चिंत होंगी आप।

 

माँ,

भले ही अब तक यात्रा रही निरंतर है,

लेकिन इस बार थोड़ा-सा अंतर है,

एक मोड़ से अब आप

चली जाएँगी प्रभापथ की ओर,

यह पथ आपको ले जाएगा गोलोक की ओर।

 

माँ,

अब मार्ग स्मरण न रहे

तो कोई बात नहीं,

मर्त्यलोक को तजकर

गोलोक की वासी हो चुकीं आप,

आवागमन चक्र से

मुक्त हो चुकीं आप,

जीवात्मा से अब

परमात्मा हो चुकीं आप..!

?

प्रातः 8:51 बजे, गुरुवार दिनांक 13 फरवरी 2025

(आज 29 मार्च को माँ के गमन को 60 दिन हो गए।)

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Transcendent steps…… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present Capt. Pravin Raghuvanshi ji’s amazing poem “~ Transcendent steps… ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.) 

? ~ Transcendent steps… ??

Merging with the crowd, but never drifting apart,

Their criticisms, can never deter my sanguine heart

My path is my duty, my journey my sacred creed,

Undaunted by praise or blame, even if I bleed

*

Entranced by the odyssey, I just walk, unhindered

A traveller focused on the destination, undeterred

For me, journey’s goal, is to reach its fruitful end,

I follow the path, steadfast, unfazed but contend

*

My mantra echoes in “Karmanye vadhikaraste’s” tone

I’m detached, my spirit finds its sacred space, alone

The path unfolds its splendor, a journey to ascend,

Embracing each step, as heart and soul transcend

* “Karmanye Vadhikaraste” is a Sanskrit phrase from the Bhagavad Gita, meaning: “Your right is to perform your duty only, but never on the fruit of work.”

~Pravin Raghuvanshi

 © Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune
23 March 2025

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१९ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१९ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

30 सितंबर 2023 को सुबह डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में हमारा हनुमान महोत्सव दल किष्किंधा क्षेत्र के आंजनेय पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान दर्शन को तैयार था। अंजनाद्रि पहाड़ियाँ हम्पी के निकट हनुमानहल्ली में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  अंजनी माता के गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ था, इसीलिए हनुमान को आंजनेय भी कहा जाता था। अंजनेयाद्रि पहाड़ी की चोटी पर हनुमान मंदिर है। वहाँ लगभग 575 सीधी सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जा सकता है। हनुमान मंदिर के आसपास राम और सीता के मंदिर और अंजना देवी मंदिर भी हैं। रामायण  में इस स्थान की पहचान किष्किंधा क्षेत्र के नाम से की गई है। चलिए, पौराणिक आख्यानों में शिव के हनुमान अवतार की खोज पर चर्चा करते पहाड़ी चढ़ते हैं। किस्से-कहानी से एक तरफ़ आनंद आता है तो दूसरी तरफ़ सनातन सिद्धान्तों को समझने में भी सहूलियत होती है।

एक विद्वान वेट्टम मणि द्वारा 1921 में संकलित पौराणिक विश्वकोश में भारतीय और ग्रीक पुराणों की गाथाएँ संकलित हैं। जिसके अनुसार किष्किन्धा दक्षिण भारत में वानरों का एक प्राचीन राज्य था। रामायण काल में ऋक्षराज नामक एक वानर राजा किष्किन्धा का शासक था। वह निःसंतान था। इंद्र ने ऋक्षराज की पत्नी अरुणीदेवी को बाली नामक पुत्र और सूर्य ने सुग्रीव नामक पुत्र दिया। दोनों बालकों का पालन-पोषण गौतम ऋषि के आश्रम में हुआ। जब वे बड़े हुए, तो इंद्र ने उन्हें ऋक्षराज को सौंप दिया और इस तरह बाली और सुग्रीव किष्किंधा चले आए।

यह सुनने में कुछ अजीब सा लगता है कि इंद्र और सूर्य पुत्र उत्पन्न कर रहे हैं। इंद्र और सूर्य मनुष्य नहीं अपितु पौराणिक चरित्र हैं। वेदों में ही नहीं, ये दोनों सदैव ही ऊर्जा के केंद्र हैं। वैदिक काल में इनके हवन होते थे। इन्द्रियों को प्रजनन शक्ति भी इनकी ऊर्जा से उत्पन्न होती है। पुराणों में कथाओं को रोचक बनाने हेतु इन्हें व्यक्तिक स्वरूप प्रदान किया गया। ताकि वेदों के सिद्धांतों को पुराणों में उतारा जा सके। अग्नि, पवन, वरुण और अरुण भी वेदों से पुराणों तक यात्रा करते हैं। निरे सिद्धांत साधारण मनुष्य की समझ में नहीं आते। यहीं पुराणों की महत्ता प्रतिपादित होती है।

ऋक्षराज की मृत्यु के बाद बाली किष्किंधा का राजा बन गया और सुग्रीव अपने भाई की सेवा में रहने लगा। उस समय दुंदुभि नामक एक बहुत शक्तिशाली असुर था। युद्ध के लिए कोई भी योग्य न पाकर उसने वरुण को चुनौती दी। वरुण ने उसे हिमवान के पास भेजा, जिसकी चोटियों को उसने चीरकर उनसे खेला। तब हिमवान ने दुंदुभि से कहा कि वह शांत स्वभाव का है और बाली उस (दुंदुभि) के बराबरी का होगा। तदनुसार दुंदुभि ने बाली से युद्ध किया और मारा गया। बाली ने दुंदुभि के शव को फेंक दिया। दुंदुभि की नाक से बहता हुआ रक्त ऋषि मतंग के शरीर पर गिरा, जो ऋष्यमूक पर्वत पर तपस्या में लीन थे। अपनी दिव्य शक्तियों के माध्यम से, ऋषि ने अपने शरीर को दूषित करने वाले रक्त की उत्पत्ति का पता लगाया, और शाप दिया कि बाली उसी समय मृत्यु को प्राप्त  हो जाएगा, यदि वह ऋक्षराज पर्वत पर पैर रखेगा।

रावण द्वारा सीता-हरण के बाद उनकी तलाश के दौरान ऋष्यमूक पर्वत पर प्रभु राम की सुग्रीव से भेंट होती है। यहीं राम को सुग्रीव पर उसके भाई बाली द्वारा किए गये अत्याचार का पता लगता है। भगवान राम सुग्रीव को अपना मित्र मान कर उन्हें बाली के त्रास से मुक्त करवाते हैं और उन्हें किष्किन्धा का राजा घोषित करते हैं। इसी पर्वत के किनारे से होकर आज आँजनेय पर्वत की चढ़ाई करनी थी। दल सुबह नौ बजे नाश्ता करके तैयार हो बस के आसपास मंडराने लगा। हमने सीटी बजाकर सबको बस में चढ़वाना शुरू किया। राजेश जी की होटल मलिक से दोस्ती हो गई है। दोनों मुस्कुराते बस के नज़दीक पहुँचे। राजेश जी ने सभी यात्रियों की विशेषता का बखान करते हुए होटल मालिक से परिचय कराया। उन्होंने सबको यात्रा की शुभकामनाएँ दीं। बस ने आंजनेय पर्वत की दिशा में प्रस्थान किया। रास्ते में हॉस्पेट बस्ती का मुआइना करते बस्ती के बाहर निकले तो गोल बोल्डर पत्थरों के ढेर नज़र आने लगे। हमने सबको बताया कि आंजनेय इलाक़ा लग चुका है।

तुंगभद्रा नदी के किनारे चल कर उसे पार करते ही सड़क के दोनों तरह दुकानों का रेला आरंभ हुआ। तभी ज्ञात हुआ कि आज शनिवार को हनुमान जी की विशेष पूजा और दर्शन हेतु आसपास के दो तीन सौ गांव के हज़ारों तीर्थयात्री पर्वत पर पहुँचने वाले हैं। हमारी बस मेला क्षेत्र में खड़ी नहीं की जा सकती थी। थोड़ी देर बस ने सांस क्या ली, ट्रैफ़िक पुलिस ने बस पर डंडे बरसाना शुरू किया। इसलिए बस को चढ़ाई स्थल से आधा किलोमीटर दूर खड़ा करना पड़ा। बस में से आंजनेय पर्वत के दर्शन होने लगे तो कुछ यात्रियों के हौसले भी पस्त होने लगे। बस से नीचे उतर कर देखा तो भीड़ बिना जूता चप्पल के पर्वत की तरफ़ खिसक रही थी। चलते-चलते एक तिराहे पर पहुँचे। वहाँ किसी ने चाय पी, किसी ने गुटखा ख़रीदा, किसी ने प्रसाद ख़रीदा और किसी ने कुछ नहीं किया। बस दूसरों को ताकने का ज़रूरी काम करते रहे। पहाड़ की पहली सीढ़ी पर खड़े होकर सबको समझाया कि सभी एक साथ मिलकर चढ़ेंगे। पीने का पानी साथ रखें और निस्तार से फुरसत हो लें।

हमने सीटी से सबको एकत्रित कर चढ़ना शुरू किया। यह तय किया कि सभी साथ रहेंगे लेकिन थोड़ी ही दूर चलकर शारीरिक क्षमता के अनुसार यात्री आगे-पीछे होकर बिछड़ गए। भारी भीड़ में दोनों तरफ़ के यात्री उतरने और चढ़ने वाले सीढ़ियों को अवरुद्ध कर देते थे। इसका यह नुक़सान था कि चढ़ाई में देरी हो रही थी परंतु लाभ यह था कि यात्रियों को  सुस्ताने का समय मिलता जाता था। हमने भी सीटी का प्रयोग करके भीड़ को नियंत्रित करना आरंभ किया तो तीर्थयात्री हमे पुलिस समझकर नियंत्रित होने लगे। फिर क्या था साथियों को लेकर तेज़ी से चढ़ाई करने लगे।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 153 ☆ मुक्तक – ।। हो गये साठ के पार अभी असली इम्तिहान बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 153 ☆

☆ मुक्तक – ।। हो गये साठ के पार अभी असली इम्तिहान बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

सफर जारी  पर अभी तो आने को  मुकाम बाकी है।

किया जा चुका बहुत कुछ पर  अभी काम बाकी है।।

साठ    के      पार   हो    चुके  तो   कोई   बात  नहीं।

अभी  तो   नापी  है  ज़मीं  अभी  आसमान   बाकी है।।

=2=

अभी अदा करने को शुक्रिया वह हर इन्सान बाकी है।

पूरे   जो   कर   नहीं  पाए  वह हर अरमान बाकी है।।

अभी   तो  शुरू   ही   हुई   है जीवन   की  दूसरी पारी।

जान लो कि   जिन्दगी का असली  इम्तिहान  बाकी है।।

=3=

अभी   भी   दुनियादारी  का  कुछ   लगान   बाकी  है।

कर नहीं पाए इस्तेमाल वह साजो सामान  बाकी  है।।

रुकना  नहीं   थमना  नहीं   तुम्हें   इस  बीच   दौड़ में।

अभी  भी  जीतने   को   हर  तीर    कमान   बाकी  है।।

=4=

सेवा निवृत हो गए पर अभी अनुभव का सम्मान बाकी है।

कुछ नया करने सीखने को जज्बाऔर तूफ़ान बाकी है।।

अब   तो   वरिष्ठ  नागरिक  का  दायित्व  भी  है  कंधों पर।

अभी     देखने    घूमने  को   भी   पूरा   जहान  बाकी  है।।

=5=

चुप   रह  गई  जो  अब  तक  अभी  वह  जुबान बाकी है।

ऊपरवाले ने भी दिए कामअभी वह फरमान  बाकी है।।

पूरा   करना  है   हर  काम  इसी  एक  ही  जिन्दगी  में।

भागते रहे जिंदगी भर अब जरा सा चैन आराम बाकी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 640 ⇒ – व्यंग्य – नोटों की गर्मी ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “नोटों की गर्मी।)

?अभी अभी # 640 ⇒ व्यंग्य – नोटों की गर्मी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिस पैसे की हम अक्सर बात करते हैं, वह गांधी छाप नोट ही तो होता है। यानी गांधीजी की सादगी और ईमानदारी का प्रतीक ही तो हुई हमारी भारतीय मुद्रा। उसके पास पैसा है, इतना कहना ही काफी होता है किसी संपन्न व्यक्ति के बारे में, क्योंकि पैसे से सभी सुख सुविधा के साधन खरीदे जा सकते हैं।

किसी भी शासकीय काम के लिए चपरासी की मुट्ठी गर्म करना अथवा छोटी मोटी रिश्वत से किसी की जेब गर्म करना इतना आम है कि इसे सामान्य शिष्टाचार समझा जाने लगा है। बख्शीश और इनाम जैसे शब्द अब बहुत पुराने हो गए क्योंकि इनसे भीख मांगने जैसी बू आने लगी है आजकल।।

एक आम नौकरीशुदा आदमी तो सिर्फ पहली तारीख को ही कड़क कड़क नोटों के दर्शन कर पाता था। खुश है जमाना, आज पहली तारीख है। वेतन के पीछे, तन मन अर्पण कर देता था आम आदमी। जब तक जेब गर्म मिजाज नर्म, और इधर पैसा हजम, उधर खेल खत्म।

पेट की भूख तो रोटी से ही भरती है, लेकिन होते हैं कुछ पापी पेट, जिनकी भूख पैसे से ही भरती है।

सुना है, वह बाबू पैसा खाता है और उसका अफसर भी। और इसे ही व्यावहारिक भाषा में रिश्वत और भ्रष्टाचार कहते हैं।

रिश्वत खा, रिश्वत देकर छूट जा।।

इस तरह का पैसा ऊपर का पैसा कहलाता है, जो कभी टेबल के नीचे से लिया जाता था। अब तो सब कुछ खुल्लम खुल्ला, खेल फर्रुखाबादी चलने लगा है। पैसा भी एक नंबर और दो नंबर का होने लगा है।

लेकिन हमारे देश में देर है, अंधेर नहीं। पहले नोटबंदी हुई, फिर पेटीएम (paytm) का विज्ञापन आया और अचानक देश डिजिटल हो गया। अचानक पैसेवाला अमीर आदमी कैशलैस हो गया।

सब्जी और खोमचेवालों को भी पेटीएम से पैसा मिलने लगा। देश में डिजिटल क्रांति हो गई।।

तो क्या फिर नोट छपने बंद हो गए, या लोगों ने रिश्वत लेना देना ही बंद कर दिया ? इधर कुछ समझ नहीं आया और उधर ईडी भ्रष्ट व्यापारियों और अफसरों के घर छापे मार मारकर नोटों का जखीरा बरामद करने लगी।

करेंसी नोट का भी एक मनोविज्ञान होता है। जब तक वह एक हाथ से दूसरे हाथ का स्पर्श करता है, उसे कभी मेहनत और कभी ईमानदारी की गंध आती रहती है। ऐसे नोट बेचारे थोड़े तुड़े मुड़े और गंदे भी होते रहते हैं। नोटबंदी के वक्त तो महिलाओं की बिस्तर, आलमारी और मसाले के डिब्बों तक के नोट बाहर आ गए थे  आत्मसमर्पण के लिए।।

लेकिन जो नोट छपने के बाद सीधे भ्रष्ट तंत्र के हवाले हो जाते हैं, उन्हें तहखानों और बाथरूम के टाइल्स के नीचे तक अपना मुंह छुपाना पड़ता है। वे बेचारे अभिशप्त कभी बाजार का मुंह नहीं देख सकते।

यह तो जगजाहिर है, नोटों में गर्मी होती है। करेला और नीम चढ़ा, बेचारा कब तक गोदाम और किसी के आउटहाउस में पसीने पसीने होता रहेगा। वह अपनी ही आग में झुलस जाता है और जल मरता है और इधर हंगामा हो जाता है। आग आग, जाओ जाओ जाओ, किसी फायरब्रिगेड को बुलाओ।।

अभी आग बुझी नहीं है। गरीबों के मेहनत और पसीने की कमाई थी इन नोटों में। भले ही यह नोटों का आत्मदाह का मामला हो, गरीबों की हाय तो लगना ही है। सभी को विश्वास है कानून के रखवाले कानूनी कार्यवाही तो अवश्य करेंगे..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #218 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – आदमी जिये नित आदमी के लिये… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – आदमी जिये नित आदमी के लिये। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 218

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आदमी जिये नित आदमी के लिये…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जाति में धर्म में भिन्नता हो भले,

भिन्न परिवेश हों और व्यवस्था अलग

हो पढ़ा या अनपढ़ हो गुणी-अवगुणी

आदमी कोई किसी से रहे न विलग ।

 

ऊपरी भेद दिखते अनेकों भले,

भीतरी पर कहीं कोई अन्तर नहीं

 हैं वही भावनाएँ, वही सोच सब

बातें वैसी ही, वैसा ही व्यवहार भी ॥

 

रूप रंग साजसज्जा तो हैं बाहरी मन के,

भावों का अन्दर है एक-सा चलन एक-सी जिंदगी,

एक-सी आदतें, एक-सी लालसा एक जीवन-मरण।

स्वार्थ है हर जगह आपसी वैर भी, प्रेम का भाव भी

द्वेष भी द्वन्द भी इसी से प्रीति की बेल पलती नहीं,

होती रहती अंजाने ही खटपट कभी ॥

 

बुद्ध, महावीर, ईसा, मोहम्मद ने आ, आदमी को सिखाया

कि मिल के रहें मन को मैला न कर, कुछ छपाये नहीं,

जो भी सच हो उसे साफ निर्भय कहें।

प्रेम ही धर्म है, प्रेम ही जिंदगी

आदमी जिये नित आदमी के लिये

अपने श्रम से है जब लोग पाते खुशी,

खुद भी हर व्यक्ति को खुशी मिलती तभी ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “गहरे रिश्ते…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “गहरे रिश्ते” 🕯️ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

  ढूँढने  से नहीं मिल रहा,

 ना जाने कहाँ ये खो गया,

 एक रिश्ता प्यार का,

  दिल के बहुत जो करीब था!

 व्यस्त हुए है, हम कुछ ऐसे,

  खबर हुई ना, ये ख्याल आया,

 छूटता रहा संबाद और,

  बढती गई ये दुरियाँ !

 *

  कहाँ शिकायत दर्ज कराएँ,

  कौन इसे वापस ले आए,

  नहीं जरूरत कोई इसकी,

  चलो प्यार से ये सुलझाएँ!

 *

 प्यार और विश्वास की जड़ से,

 गहरे है ये अपने रिश्तें,

 व्यस्त अपने कार्यकलापों से,

 फुरसत के चंद, पल निकालें!

 *

एक बार फिर से कर ले,

 खट्टी-मीठी, थोडी  बातें,

मिट जाएगा अंतर सारा,

 धूल आईने से हट जाएँ!

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

दिनांक.. 26/03/2025.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मनापासुनी मनास अपुल्या… ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मनापासुनी मनास अपुल्या ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

स्वतःत रमता भान कशाला बेभान होऊनी जावे

कोशामधला किडा तसे विश्वाला विसरुन जगावे

*

शोधित जावे आत स्वतःला भेदून सा-या भिंती

ढवळून सारा डोह दिसावी तळात नितळ कांती

*

वळवळ सारी जावी संपून शांत मनाला करीत जावे

सोडुन सा-या ईर्ष्या, इच्छा पिसापरी मन झोके घ्यावे

*

स्वतःस शोधून बघता बघता व्यक्तीत्वाचे भान सरावे

संवाद सरावा देहबोलीचा, मनबोलीला शब्द फुटावे

*

आत दिसावा एक आरसा प्रतिबिंबाला निरखीत जावे

मनापासुनी मनास अपुल्या वेळोवेळी घडवीत जावे

© श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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