हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ आईएएस हो तो ऐसी संवेदनशील : दीप्ति उमाशंकर… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – आईएएस हो तो ऐसी संवेदनशील : दीप्ति उमाशंकर ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

हिसार में मैं सन् 1997 में आया था , पहली जुलाई से ! तब नहीं जानता था कि इस हिसार में कैसे पत्रकारिता  में पांव जमा पाऊंगा ! रोशन लाल सैनी उपायुक्त थे और दीप्ति उमाशंकर अतिरिक्त उपायुक्त ! मुझे चंडीगढ़ मुख्य कार्यालय से चलने से पहले बहुत ही सुंदर विजाटिंग कार्ड बनवा कर दिये गये थे ताकि सभी अधिकारियों को जब मिलने जाऊं तब यह कार्ड मेरा ही नहीं, हमारे संस्थान का भी परिचय दे ! इस तरह मैं उपायुक्त रोशन लाल सैनी से मिला और उन्होंने बहुत ही गर्मजोशी से स्वागत् किया और विश्वास दिलाया कि वे मुझे खबर से बेखबर नहीं रहने देंगे ओर उन्होंने वादा निभाया भी । वे खुद लैंडलाइन पर फोन करते और खबर बताने के बाद कहते कि ये रहीं खबरें आज तक ! इंतज़ार कीजिये कल तक ! वाह! इतने ज़िंदादिल ! इतने खुशमिजाज ! उनकों एक शेर बहुत पस़ंद था :

माना कि इस गुलशन को गुलज़ार न कर सके

 कुछ खार तो कम कर गये, निकले जिधर से हम!

इनके साथ ही दीप्ति उमाशंकर अतिरिक्त उपायुक्त थीं जबकि इनके पति वी उमाशंकर तब हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव ! इनसे मेरी अच्छी निभने लगी! हुआ यह कि एक दिन मैं इसी विश्वास में उपायुक्त दीप्ति उमाशंकर को भी अपना विजिटिंग कार्ड भेजकर मिलने चला गया । उन्होंने बहुत आदर से बुलाया, चाय मंगवाई और चाय पीते पीते मन में आया कि इनकी इंटरव्यू करूं ! जैसे ही मैंने यह बात उन्हें कही, वे एकदम असहज सी हो गयीं क्योंकि वे मीडिया से दूरी बना कर रखती थीं । उन्होंने कहा कि आप चाय लीजिए लेकिन इंटरव्यू नहीं ! इस तरह मैं चाय खत्म कर सीधे वी उमाशंकर के पास चला ! उन्हें सारी बात बताई ! उन्होंने कहा कि अच्छा ऐसे किया ! चलो, अब मैं मिलवाता हूँ उनसे और उन्होंने गाड़ी में बिठाया और फिर पहुंचे श्रीमती दीप्ति के पास ! श्री उमाशंकर ने कहा कि ये बहुत विश्वास के काबिल पत्रकार हैं, आप इनसे खबरें शेयर कर सकती हैं और फिर यह विश्वास आज तक बना हुआ है! वे कहती थीं कि यू आर वन ऑफ द बेस्ट जर्नलिस्ट इन हरियाणा!

जब स्वयं दीप्ति उमाशंकर उपायुक्त बनीं तब सुबह सवेरे मैं इनसे बात कर लेता ! एक सुबह बातों बातों में बताया कि बालसमंद गांव से एक छोटे से बच्चे को लाकर अस्पताल में भर्ती करवाया है क्योंकि उसकी मां ने दूसरी शादी कर ली और बाप बच्चे की तरफ से लापरवाह था, परिवार ने बच्चे को तबेले में रख छोड़ा था, जो बेचारा मिट्टी और गोबर खाकर जी रहा था, यह बात एक समाजसेविका सोमवती ध्यान में लाई और मैंने तुरंत बच्चे को सिविल अस्पताल पहुंचाया क्योंकि वह बहुत कमज़ोर हो चुका था !

अरे ! इतनी बड़ी बात और आप इतने सहज ढंग से बता रही हैं, आपने एक बच्चे को नवजीवन दिया है, आप आज सिविल अस्पताल में बच्चे का हाल चाल जानने पहुंचिए और मैं भी आऊंगा। मैं अपने कुछ साथी पत्रकारों के साथ पहुंच गया ! हिसार सिटी और हिसार दूरदर्शन पर उनका समाचार वायरल होने लगा और वे अपने स्वभावानुसार बहुत संकोच महसूस कर रही थीं ! फिर वह बच्चा स्वस्थ होने पर कैमरी रोड पर बने बालाश्रम को सौंप दिया गया ! वे वहाँ भी कुछ दिनों बाद उस बच्चे का हालचाल जानने गयीं, जिसका नाम लड्डू गोपाल रख दिया गया था ! जैसे ही लड्डू गोपाल को दीप्ति उमाशंकर के सामने लाया गया, वह बच्चा दौड़कर आया और उनकी टांगों से ऐसे लिपट गया जैसे उसे मां मिल गयी हो ! यह ममतामयी दीप्ति एक ऐसी ही आईएएस थीं ! बहुत संवेदनशील, बहुत भावुक ! यह दृश्य कभी नहीं भूल पाया ! उन्होंने एक कदम भी पीछे नहीं हटाया था कि मेरी साड़ी न खराब हो जाये बल्कि लड्डू गोपाल को प्यार से गोदी में उठा कर खूब लाड किया ! आज वह लड्डू गोपाल खूब बड़ा हो चुका होगा!

दूसरा ऐसा ही दृश्य याद है, जब वे हररोज़ लगभग ग्यारह बजे अपने कार्यालय से सटे छोटे से मीटिंग हाल में बैठकर सचिवालय आये लोगों की समस्यायें सुनतीं और तत्काल संबंधित अधिकारी को बुलातीं और वहीं समाधान करवा देतीं ! एक दिन हांसी के निकटवर्ती गा़व से एक युवा महिला आई अपनी समस्या लेकर और दीप्ति ने उस अधिकारी को फोन लगाया तो पता चला कि वह अधिकारी छुट्टी पर है ! इस पर उन्होंने महिला से कहा, कि कल आ जाना ! वह तो फूट फूट कर रोने लगी और बोली मैं तो आज भी किसी से पैसे उधार मांग कर आई हूँ । किराया लगाने के लिए मेरे पास कल  पैसे कहां से आयेंगे !

इस पर दीप्ति ने अपना पर्स खोला और सौ रुपये का नोट थमाते कहा कि अब तो कल आ सकती हो न !

जब वह चली गयी तब मैंंने कहा कि अब तो आपके खुले दरबार में भीड़ और भी ज्यादा होती जायेगी !

– वह कैसे और क्यों?

– अब तो आप आने जाने का टी ए, डी ए भी तो देने लगीं !

वे बोलीं कि भाई! देखे नहीं गये उसके आंसू! इतनी संवेदनशील, सहृदय! दोनों पति पत्नी हिसार में अलग अलग पदों पर लगभग बारह साल रहे और सन् 2003 को जब मुझे कथा संग्रह ‘ एक संवाददाता की डायरी’ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों पचास हज़ार रुपये का सम्मान मिला, तब वे बहुत खुश हुईं और यह सम्मान अप्रैल माह में मिला था ! जब पंद्रह अगस्त आने वाला था तब ठीक एक दिन पहले दीप्ति उमाशंकर का फोन आया कि अभी आपको लोक सम्पर्क अधिकारी का फोन आयेगा, आप अपना बायोडेटा लिखवा देना!

– वह किसलिए?

– मेरे भाई जिसे देश का प्रधानमंत्री सम्मानित करे, उसे जिला प्रशासन को भी सम्मानित करना चाहिए कि नहीं ! कुछ हमारा भी फर्ज़ बनता है कि नहीं?

स्वतंत्रता दिवस के आसपास ही राखी भी आती है तो मैंने कहा कि बहन को राखी के दिन कुछ देते हैं, लेते नहीं ।

इस पर दीप्ति ने हंसकर जवाब दिया कि भाई अब घोर कलयुग आ गया है, भाई कुछ नही देते, बहनें ही भाइयों का ख्याल रखती हैं, बस, आप ऐसे ही अच्छा लिखते रहना!

कितने प्रसंग हैं! वे यहाँ से मुख्यमंत्री प्रकोष्ठ में भी रहीं और फिर अम्बाला की कमिश्नर भी! तब बेटी की शादी में आने का न्यौता एक माह पहले ही दिया वाट्सएप पर ! मैंने कहा, इतने समय तक तो भूल ही जायेगा ! उन्होंने जवाब दिया कि भूलने कैसे दूंगी ? याद दिलाती रहूंगी और आप, क्या यह न्यौता भूल जाओगे !

चलते चलते बताता चलूँ कि वे पंजाब के पटियाला से हैं और जब समय मिलता और नेता या समाजसेवी न रहते तब वे कहतीं कि अब तो प़जाबी बोल ले भाई !

बहुत बहुत सह्रदय आईएएस दम्पति उमाशंकर को आज यादों में फिर याद किया ! आजकल वी उमाशंकर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव हैंं जबकि दीप्ति दिल्ली में डेपुटेशन पर ! वह पारिवारिक रिश्ता आज भी कायम है ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – संस्मरण ☆ दस्तावेज़ # 20 -दो देश – दो परिवार, एक संस्कृति एवं एक ही तीज त्यौहार ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ जी का एक शोधपरक दस्तावेज़ दो देश – दो परिवार, एक संस्कृति एवं एक ही तीज त्यौहार।) 

☆  दस्तावेज़ # 20 – दो देश – दो परिवार, एक संस्कृति एवं एक ही तीज त्यौहार ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

तोर धानवा मोर धानवा एक में मिलाओ रे

मॉरीशस में गंगा तालाब पूज्य गंगा मां सी गयीं

भारतीय विवाह संस्कार में वर और बधु दो पक्ष होतें है l शादी के एक रस्म में जब पहली बार दोनो पक्ष यानि दो परिवार मिलते हैं तो भारतीय अन्न (धान) एवं शुभ प्रतीक (हल्दी) को दोनों पक्ष अपने-अपने घर से गमछे में बाँध कर लातें है l फिर शुरू होती है एक रस्म l जिसे हम हल्दी -धान बांटना कहते हैं l

शादी कराने वाले पुरोहित दोनों पक्ष द्वारा लाये हुए हल्दी और धान को पहले एक में मिलाते हैं और फिर आधा-आधा बाँट कर दोनों पक्ष को वापस दे देते हैं l

भारतीय संस्कृति में इस वैवाहिक विधि का क्या अर्थ क्या है, इस विषय पर हम चर्चा करते हैं l

इस वैवाहिक विधि के भाव को कुछ इस प्रकार समझें कि क्या चाह करके भी इन दोनों परिवार के लोग आपस में इस प्रकार मिल चुके हल्दी और धान में से अपने अपने हिस्से हल्दी और धान का बंटवारा अलग-अलग कर सकतें है?

जी बिल्कुल नहीं कर सकते है l

कहने का अर्थ यह है कि अब जब दो परिवार आपस में मिल गए lयह रिश्ता जन्म-जन्मांतर का हो गया l इन्हें अब अलग किया जाना मुश्किल ही नही असंभव है l

आज इस बात की चर्चा मैं मॉरीशस के साहित्यकार रामदेव जी से कर रहा था l इस बात की चर्चा मैंने क्यों किया इसको समझते हैं –

धुरंधर जी ने शिवरात्रि पर्व की बात की और पूछा कि आपके यहां शिवरात्रि कब है तो मैंने कहा कि मेरे यहां शिवरात्रि 26 फरवरी को है तो उन्होंने कहा कि मेरे यहां भी शिवरात्रि 26 फरवरी को है और मैं देख रहा हूं कि काफी युवा काँवर लेकर के गंगा तालाब की तरफ आगे बढ़ रहे हैं l यह गंगा तालाब जाएंगे और वहां से जल लेंगे और उस जल को शंकर जी के शिवलिंग पर चढ़ाएंगे l

गंगा तालाब क्या है ??

रामदेव धुरंधर कहते हैं – गंगा तालाब को शुरू में परी तालाब के नाम से जाना जाता था l भारतीय लोग उसे परी तालाब ही बोलते थे l मैंने अपने कई साहित्यिक ग्रंथों में उसे परी तालाब कहा है l कालांतर में भारतीय लोगों ने भारत से गंगाजल लाकर एक बड़े धार्मिक विधि विधान से परी तालाब के पानी में मिलाया और उसे उसका नामकरण कर दिया गया गंगा तालाब l

1- गंगा संगम तट प्रयागराज, उप्र (भारत)

2- गंगा तालाब (मारिशस)

चित्र साभार : गूगल

यानी परी तालाब के जल में गंगाजल मिल गया और दोनों एक दूसरे में इस तरह से घुल मिल गए कि मानो दोनों एक हो गए l

अब इन दोनों जल को पृथक कभी नहीं किया जा सकता और इसकी मान्यता एक धार्मिक सरोवर जैसी हो गई, मॉरीशस में गंगा तालाब पूज्य गंगा मां सी गईl

इसका तात्पर्य हुआ कि भारत और मॉरीशस की संस्कृतियों आपस में इस कदर मिल गई हैं कि वे युग युगांतर तक पृथक हो ही नहीं सकती l

रामदेव धुरंधर जी कहते थे कि हम युवा अवस्था में पैदल तो नहीं जाते थे लेकिन साइकिल से हम लोग थे 100 से कुछ काम किलोमीटर मेरे घर से वह जगह होगी वह हम कई लोग कई किलोमीटर की यात्रा कर पहुंचते थे l वहां से हम लोग वापस घर नहीं लौटते थे बल्कि वहां से कुछ दूर आगे एक जगह है त्रयोलेट l

इसके आसपास ही हिंदी के बड़े साहित्यकार अभिमन्यु अनत जी का घर भी है l त्रयोलेट में एक शिव मंदिर है जिसे महेश्वर नाथ जी का मंदिर कहते हैं l हम गंगा तालाब से जल भरकर उस शिव लिंग पर चढ़या करते थे l

(श्री रामदेव धुरंधर जी के फेसबुक पटल में एक पिन किया गया पोस्ट है l जिसमे एक फोटोग्राफ गंगा तालाब का है l इस फोटोग्राफ में माताजी यानी धुरंधर जी की पत्नी का भी चित्र है l यह चित्र गंगा तालाब के पास का ही लिया हुआ है l रामदेव धुरंधर जी इस चित्र से बहुत ही स्नेह करते हैं और इसके ही बहाने वे अपनी धर्मपत्नी स्व.देवरानी जी को याद करते हैं )

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कविता ? ?

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का अपना आप

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्त्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन

कविता से मिलन

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

?

© संजय भारद्वाज  

सोमवार दि. 30 .05 .2016, संध्या  7:15  बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘Inner Light…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present Capt. Pravin Raghuvanshi ji’s amazing poem “~ Inner Light… ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

? ~ Inner Light??

O’ soul  awaken  to absolute truth divine,

And  let the ego’s  fleeting dreams decline

In  slumber’s  realm, the world’s  loud din

Fades  to  a whisper, and  thy heart  wins

 *

The  soul’s  voice, a radiant  leading light,

Leads thee to the eternal the heavenly sight

‘That Thou Art,’ a truth to realize and see,

A reflection of the effulgent divine, in thee

 *

Resolve to seek this truth, thy heart’s desire,

And let ego’s illusions, like mist or jungle fire

In this pursuit, find liberation’s roaring clap,

And union with thy divine Self,  in God’s lap

 *

May thy journey inward, be guided by the light,

That shines within thee, through the dark night

When thou findest thy true Self, thou shalt see,

The divine within thee, with all smiles and glee

 ~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 21: Pearls of Wisdom ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Meditate Like The Buddha # 21: Pearls of Wisdom 

 As we progress on the path of meditation, we develop valuable insights. We share below some gems shared by experienced meditators:

“Meditation is a practice that makes it possible to cultivate and develop certain basic positive human qualities in the same way as other forms of training make it possible to play a musical instrument or acquire any other skill.”

-Matthieu Ricard

“Meditation has the effect of creating biological calm and reducing stress. Research shows that long-term meditators have a lessened cortisol response (a key stress hormone) under stress.”

-Daniel Goleman

“Breath is the bridge which connects life to consciousness, which unites your body to your thoughts. Whenever your mind becomes scattered, use your breath as the means to take hold of your mind again.”

“Mindfulness is a kind of energy that helps us to be fully present in the here and the now, aware of what is going on in our body, in our feelings, mind, and in the world, so that we can get in touch with the wonders of life that nourish and heal us.”

“With mindfulness, concentration, and insight, you can generate a feeling of joy and happiness, whenever you want. With the energy of mindfulness, you can also handle a painful feeling or emotion.”

“Your breath should be light, even, and flowing, like a thin stream of water running through the sand. Your breath should be quiet, so quiet that a person sitting next to you cannot hear it. Your breathing should flow gracefully, like a river, like a water snake crossing the water, and not like a chain of rugged mountains or the gallop of a horse.”

“If each one can meditate an hour each day that is good, but it’s nowhere near enough. You have got to practice meditation when you walk, stand, lie down, sit, and work, while washing your hands, washing the dishes, sweeping the floor, drinking tea, talking to friends, or whatever you are doing.”

“When you are washing the dishes, washing the dishes must be the most important thing in your life. Just as when you are drinking tea, drinking tea must be the most important thing in your life. When you’re using the toilet, let that be the most important thing in your life.”

“Chopping wood is meditation. Carrying water is meditation. Be mindful 24 hours a day, not just during the one hour you may allot for formal meditation or reading scripture or reciting prayers.”

“Each act must be carried out in mindfulness. Each act is a rite, a ceremony. Raising your cup of tea to your mouth is a rite, a ceremony. Do it mindfully.”

“Do not drink your tea like someone who gulps down a cup of coffee during a work break. Drink your tea slowly and reverently, as if it is the axis on which the whole earth revolves – slowly, evenly, without rushing toward the future.”

“Live the actual moment. Only this actual moment is life.”

-Thich Nhat Hanh

“Beyond the pleasant states meditation can produce, the real payoffs are the lasting traits that can result.”

Daniel Goleman & Richard J Davidson

 “By the practice of meditation, you will find that you are carrying within your heart a portable paradise.”

Paramahansa Yogananda

“All walking can be walking meditation. You can focus on your footsteps, on bodily awareness, or on breathing itself, anything that brings you into the present.”

“I love to walk for exercise, and I find my walks around the city to be wonderful occasions for mindfulness practice.”

-Larry Rosenberg

“The fruition of meditation could be described as an optimal way of being, or again, as genuine happiness. This true and lasting happiness is a profound sense of having realized to the utmost the potential we have within us for wisdom and accomplishment. Working towards this kind of fulfilment is an adventure worth embarking upon.”

“If we consider that the possible benefit of meditation is to have a new experience of the world each moment in our lives, then it does not seem excessive to spend at least twenty minutes a day getting to know our mind better and training it towards this kind of purpose.”

“Mindfulness is a kind of energy that helps us to be fully present in the here and the now, aware of what is going on in our body, in our feelings, mind, and in the world, so that we can get in touch with the wonders of life that nourish and heal us.”

“Experienced meditators have demonstrated qualities of focused attention that are not found among beginners. For example, they are able to maintain more or less perfect concentration on a particular task for forty-five minutes, whereas most people cannot go beyond five or ten minutes before they begin making an increasing number of mistakes.”

“Meditation reduces anxiety, the tendency towards anger and the risk of relapse for people who have previously undergone depression.”

“Eight weeks of meditation for thirty minutes a day significantly strengthens the immune system, reinforces positive emotions, and reduces arterial pressure in those suffering from high blood pressure.”

-Matthieu Ricard

“First, let the mind follow the movement of the breath, in and out, until it becomes calm and tranquil. Then increasingly rest the mind on the breath until one’s whole being seems to be identified with it.”

“When performing the meditation practice, one should develop the feeling of opening oneself completely to the whole universe with absolute simplicity and nakedness of mind, ridding oneself of all protecting barriers.”

“Meditation is always perfect, so there is no need to correct anything. Since everything that arises is simply the play of the mind, there are no “bad” meditation sessions and no need to judge thoughts as good or evil.”

“Simply plunge straight into meditation at this very moment with your whole mind, and be free from hesitation, boredom, or excitement.”

“When meditating it is traditional and best, if possible, to sit cross-legged with the back erect but not rigid. However, it is most important to feel comfortable, so it is better to sit in a chair if sitting cross-legged is painful.”

-Dilgo Khyentse Rinpoche

“Sit comfortably. Keep your back straight. Follow your breath. Let go of everything. If you can, maintain a half-smile. As the half smile appears, all the facial muscles begin to relax. The longer the half smile is maintained, the better. It is the same smile you see on the face of the Buddha.”

“Half-smile when you first wake up in the morning. Use these first seconds before you get out of bed to take hold of your breath. Inhale and exhale three breaths gently while maintaining the half smile. Follow your breaths.”

“Half-smile during your free moments – anywhere you find yourself sitting or standing. Look at a child, a leaf, a painting on the wall, anything which is relatively still, and smile. Inhale and exhale quietly three times. Maintain the half smile and consider the spot of your attention as your true nature.”

“Half-smile while listening to music. Pay attention to the words, music, rhythm, and sentiments. Smile while watching your inhalations and exhalations.”

“When you realize you’re irritated, half-smile at once. Inhale and exhale quietly, maintain the half smile for three breaths.”

“Those who are without compassion cannot see what is seen with the eyes of compassion.”

-Thich Nhat Hanh

♥ ♥ ♥ ♥

Please click on the following links to read previously published posts Meditate Like The Buddha: A Step-By-Step Guide” 👉

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 8: Midway Recap ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 9: Experience Your Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 10: Liberate the Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 12: The End of suffering ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 13: A Summary of the Steps ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 14: A Lifetime’s Work ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 18: THE FOUR NOBLE TRUTHS ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 19: THE NOBLE EIGHTFOLD PATH ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 20: The Four Jhanas ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

© Jagat Singh Bisht

Laughter Yoga Master Trainer

FounderLifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 611 ⇒ पंचवटी ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी।)

?अभी अभी # 611 ⇒ पंचवटी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

पंचवटी एक खंड काव्य है। बचपन में मैथिलीशरण गुप्त की पंचवटी और मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर पढ़ी थी। आज के तीर्थ स्थल नासिक में पंचवटी स्थित है, जहां कभी लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। पांच वृक्षों का समूह अशोक, पीपल, वट, बेल और पाकड़, पंचवटी कहलाता है और प्रेमचंद के पंच परमेश्वर भी पांच पंचों का एक समूह है, जिनके सर को सरपंच कहते हैं। एक परमेश्वर से भले ही काम चल जाए, पंच तो पांच ही भले।

पांच उंगलियों से ही पंजा बनता है और पांच ही नदियों से पंजाब ! गुरुद्वारे में भी पंच प्यारे होते हैं, पांच तत्वों से ही हमारा यह शरीर बनता है। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश, पांच ही यम नियम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान।।

कुछ विशेष धार्मिक अवसरों पर पूजा आरती के बाद ठाकुर जी को अन्य पकवानों के साथ पंचामृत का भी भोग लगाया जाता है। पांच तरह के अमृत की जब संधि होती है तो वह पंचामृत कहलाता है। ये पांच अमृत हैं, दूध, दही, शहद, शकर और घी। क्या शब्दों का खेल है, अमृत का सिर्फ अ हटाने से मृत हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे शिव की मात्रा हटाओ, तो वह शव हो जाता है। शिव अमर है, सबको अमृत की आस है, जीवन मीठी प्यास है।

एक पहलवान हुए हैं खली और एक मुक्केबाज हुए हैं मोहम्मद अली। मुक्केबाजी को बॉक्सिंग भी कहते हैं। पांच उंगलियों से मिलकर ही मुट्ठी बनती है जो जब तक बंद रहती है, लाख की रहती है, और खुलते ही ख़ाक की हो जाती है। मुष्टि प्रयोग को आजकल पंच कहा जाता है।

हाथ में दस्ताने और चेहरे पर सुरक्षा कवच। फिर भी पंच इतना तगड़ा कि चेहरा लहूलुहान !

समय समय की बात है, आज लोगों के हाथों में दस्ताने हैं, चेहरे पर मास्क है। नियति का एक ऐसा पंच मानवता पर पड़ा है कि इंसान सभी प्रपंच भूल गया है। करारा तमाचा तो भाग्य मारता ही है, लेकिन कोरोना के इस पंच ने तो इंसान की शक्ल ही बिगाड़कर रख दी है।।

विसंगतियों से ही व्यंग्य पैदा होता है। व्यंग्य भी कभी सहलाता है, कभी पुचकारता है, फिर धीरे धीरे चिकौटी काटने लगता है और कभी कभी तो प्रचलित इन मान्यताओं और विसंगतियों पर जमकर प्रहार करता है। इसे भी अंग्रेजी में पंच ही कहते हैं। एक प्रसिद्ध अंग्रेजी कार्टून पत्रिका पंच भी कभी प्रकाशित होती थी। आज की तारीख में पंच का स्थान मानसिक हिंसा, चरित्र हनन और नफ़रत ने ले लिया है।

व्यंग्य भी एक तरह की वटी ही है जो पांच औषधियों को मिलाकर बनी है। ज़माना मिक्सड पेथी का है, देसी विदेशी सब जायज़ है। हिंदी में हास्य है, विनोद है, अगर तंज है तो विद्रूप भी है। ठहाका और अट्टहास है, थोड़ा परिहास भी है। आप इन्हें wit, satire irony, laughter और punch भी कह सकते हैं।।

शरीर के विकारों के लिए तो कई औषधियां हैं, सामाजिक विसंगतियों का कोई इलाज नहीं। महंगाई, भ्रष्टाचार, निंदा स्तुति, और नफ़रत की राजनीति से स्थायी निदान तो संभव नहीं, हां यह पंचवटी आपको थोड़ी राहत जरूर दे सकती है।

व्यंग्य एक तरह का रसायन है, जो मीठा कम, कड़वा अधिक है। अगर इसे शुगर कोटेड पिल के रूप में लिया जाए तो अधिक असरकारक व लाभप्रद है। आप भी व्यंग्य रूपी इस पंचवटी का सेवन करें और अवसाद, कुंठा और संत्रास जैसी मनोवैज्ञानिक बीमारियों से निजात पाएं।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – नरसिम्हा – भाग-१४ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – नरसिम्हा – भाग-१४ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विरुपाक्ष मंदिर दर्शन उपरांत हम लोग हम्पी के आइकोनिक पहचान वाले लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर पहुँचे। आप मुख्य सड़क मार्ग से इस स्थान तक पहुंच सकते हैं। यह मंदिर मुख्य सड़क पर मध्य में स्थित है जो इसको रॉयल सेंटर से जोड़ता है। कृष्ण मंदिर से लगभग 200 मीटर दक्षिण में मेहराब से होकर गुजरने वाली सड़क को पार करती हुई एक छोटी सी नहर दिखी।  दाहिनी ओर एक कच्चा रास्ता आपको नरसिम्हा प्रतिमा और उसके बगल से मंदिर तक ले जाता है। मंदिर तो पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था। लेकिन खंडित लक्ष्मी नरसिम्हा मूर्तिभंजक अत्याचार की कहानी कहती खड़ी है।

हेमकुटा पहाड़ी के विरुपाक्ष मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर दक्षिण में इसी रास्ते ओर दूसरी ओर कृष्ण मंदिर है, जिसे बालकृष्ण मंदिर भी कहा जाता है। हम्पी परिसर के इस हिस्से को शिलालेखों में कृष्णपुरा कहा गया है। खंडहर हो चुके मंदिर के सामने एक बाज़ार के बीच स्तंभयुक्त पत्थर की दुकान के खंडहरों के बीच एक चौड़ी सड़क है जो रथों को बाजार से सामान लाने और ले जाने के काम  आती थी। उत्सव समारोहों के जुलूस  निकला करते थे। इस सड़क के उत्तर में और बाजार के मध्य में एक बड़ी सार्वजनिक उपयोगिता वाली सीढ़ीदार पानी की टंकी है। टंकी के बगल में लोगों के बैठने के लिए एक मंडप है। मंदिर पूर्व की ओर खुलता है; इसमें नीचे मत्स्य अवतार से शुरू विष्णु के सभी दस अवतारों की नक्काशी वाला एक प्रवेश द्वार है। अंदर कृष्ण का खंडहर हो चुका मंदिर और देवी-देवताओं के छोटे-छोटे खंडहर हैं। मंदिर परिसर मंडपों में विभाजित है, जिसमें एक बाहरी और एक आंतरिक घेरा शामिल है। परिसर में दो गोपुरम प्रवेश द्वार हैं। इसके गर्भगृह में रखी बालकृष्ण  की मूल छवि अब चेन्नई संग्रहालय में है। पूर्वी गोपुरा के सामने से एक आधुनिक सड़क गुजरती है, जो हम्पी के सबसे नज़दीक बस्ती कमलापुरम को हम्पी से जोड़ती है। पश्चिमी गोपुरम में युद्ध संरचना और सैनिकों की भित्तिचित्र हैं।

कृष्ण मंदिर के बाहरी हिस्से के दक्षिण में दो निकटवर्ती मंदिर हैं, एक में सबसे बड़ा अखंड शिव लिंग है और दूसरे में विष्णु का सबसे बड़ा अखंड योग-नरसिम्हा अवतार है। 9.8 फीट का शिव लिंग एक घनाकार कक्ष में पानी में खड़ा है और इसके शीर्ष पर तीन आंखें बनी हुई हैं। इसके दक्षिण में 22 फीट ऊंचे नरसिम्हा – विष्णु के नर-शेर अवतार – योग मुद्रा में बैठे हैं। नरसिम्हा मोनोलिथ में मूल रूप से देवी लक्ष्मी भी थीं, लेकिन इसमें व्यापक क्षति के संकेत और कार्बन से सना हुआ फर्श दिखाई देता है – जो मंदिर को जलाने के प्रयासों का सबूत है। प्रतिमा को साफ कर दिया गया है और मंदिर के कुछ हिस्सों को बहाल कर दिया गया है।

नरसिम्हा हम्पी की सबसे बड़ी मूर्ति है। नरसिम्हा विशाल सात सिर वाले शेषनाग की कुंडली पर बैठे हैं। साँप का फन उसके सिर के ऊपर छत्र के रूप में है। भगवान घुटनों को सहारा देने वाली बेल्ट के साथ (क्रॉस-लेग्ड) पालथी योग मुद्रा में हैं। इसे उग्र नरसिम्हा अर्थात अपने भयानक रूप में नरसिम्हा भी कहा जाता है। उभरी हुई आंखें और चेहरे के भाव ही इस नाम का आधार हैं। तालीकोटा के युद्ध के बाद इस मूर्ति को पूरी तरह ध्वस्त करने के प्रयास  आयातितों ने किए। पत्थर को जब नहीं तोड़ा जा सका तो इसे गंदगी से अपवित्र किया गया। चारों तरफ़ आग लगाकर नष्ट करने के प्रयास हुए। फिर भी यह मूर्ति वर्तमान स्वरूप में बच गई।

मूल प्रतिमा में लक्ष्मी की छवि भी थी, जो उनकी गोद में बैठी थीं। लेकिन मंदिर तोड़ने के दौरान यह मूर्ति गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई। यहां तक कि उनकी गोद में उकेरी गई लक्ष्मी की मूर्ति का क्षतिग्रस्त हिस्सा गायब है। संभवतः यह छोटे-छोटे टुकड़ों में इधर-उधर बिखर गई होगी। लेकिन देवी का हाथ आलिंगन मुद्रा में देव की पीठ पर टिका हुआ दिखाई देता है। अगर आपको इस घेरे के अंदर जाने का मौका मिले तो देवी का हाथ दिख सकता है। यहां तक कि उसकी उंगलियों पर नाखून और अंगूठियां भी बहुत अच्छी तरह से बनाई गई हैं। किसी तरह यह अकेली मूर्ति एक ही समय में प्रदर्शित कर सकती है कि मानव मन कितना रचनात्मक और विनाशकारी हो सकता है। नरसिम्हा दर्शन करके दाहिनी तरफ़ देखा तो कुछ दुकानों के बीच से विट्ठल मंदिर गोपुर दिखा। कदम बरबस ही इस बिट्ठल मंदिर की ओर बढ़ गए। 

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 148 ☆ गीत – ।। सबको चाहिए स्वर्ग पर मरने को तैयार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 148 ☆

☆ गीत – ।। सबको चाहिए स्वर्ग पर मरने को तैयार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

सबको  चाहिए  स्वर्ग  पर  मरने  को  तैयार  नहीं है।

सुख के सब साथी पर दुख में कोई सरोकार नहीं है।।

**

ग़मों का इस   दुनिया में    अब कोई खरीदार नहीं है।

चाहते हैं खुशी पर खुशियों का कोई बाजार   नहीं है।।

प्रेम विश्वास हवा से अदृश्य इनका कोई व्यापार नहीं है।

सबको   चाहिए  स्वर्ग  पर  मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

****

एक पल में भी आदमी का दिल जीता और हारा जाता है।

दुआ देने वाला आदमी ही  हर किसी का सहारा पाता है।।

सोने चांदी चम्मच वाले   कभी दुख से हुए दो चार नहीं हैं।

सबको    चाहिए   स्वर्ग  पर   मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

****

इंसान का महत्व नहीं   होता है उसके अच्छे स्वभाव का।

सदा दुनिया ही  चर्चा करती है मधुर वाणी के प्रभाव का।।

कर्मफल परिणाम स्वर्ग इसपर किसीका अधिकार नहीं है।

सबको   चाहिए    स्वर्ग   पर   मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #214 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – हम सब हैं भारत के वासी… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – हम सब हैं भारत के वासी…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 214 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – हम सब हैं भारत के वासी…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

स्मिथ, राजिन्दर ,उस्मानी, वेंगल, नानू, गोपीनाथ

 आओ, आओ, हाथ मिलाओ, हिलमिल हम सबको लें साथ ॥

*

भारत माँ हम सबकी माता, हम भारत माता के लाल ।

मिलजुल कर सब साथ चलें तो कर सकते हैं बड़े कमाल ॥

*

जिनने की है बड़ी तरक्की उनमें है भारत का नाम ।

पर अब भी आगे बढ़ने को करने हैं हमको कई काम ॥

*

गाँधीजी ने दी आजादी नेहरूजी ने दिया विकास ।

अब भी दूर गाँव तक शिक्षा का फैलाना मगर प्रकाश ॥

*

 खेल कूद शिक्षा श्रम संयम अनुशासन साहस विज्ञान

का प्रसार करके समाज में रखना है भारत का मान ॥

*

बढ़ें प्रेम से हम समान सब, तो हो अपना देश महान् ।

भारत की दुनिया में उभरे अपनी एक अलग पहचान

*

माँ आशा जग उत्सुकता से देखो हमको रहा निहार ।

यही विविधता में भी एकता है अपने सुख का आधार ॥

*

हम सब हैं भारत के वासी, सबके हैं समान अधिकार ।

सबको मिलकर के करना है बापू के सपने साकार ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वसंता… ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे)

? कवितेचा उत्सव ?

☆ वसंता☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

आला का वसंता, धिम्या पावलाने

मागे पानझड, ऋतू पालटाने

*

आलीच कोकीळ, घेऊनी सांगावा

सुटला सुगंध, करण्या कांगावा

*

तुझ्या आगमने, कात टाकतील

धरुनी अंकुरे, सारे सजतील

*

आता स्फूरतील, गाणी प्रेमाचीच

साज चढायाला, साथ सुरांचीच

*

बरं का वसंता, तुझ्या पंचमीला

माय सरस्वती, ठेवितो पूजेला

कवी : म. ना. देशपांडे

(होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)

+९१ ८९७५३ १२०५९ 

https://www.facebook.com/majhyaoli/ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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