हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 87 ☆ काम दौलत न आया था रुतवा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “काम दौलत न आया था रुतवा“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 87 ☆

✍ काम दौलत न आया था रुतवा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

आपकी मुझको रहनुमाई थी

ज़िन्दगी में बहार आई थी

 *

मोड़ तुमने लिया था रुख अपना

आशिक़ी खूब क्या निभाई थी

 *

झूठ ने सच का दम था घौट दिया

आपने की न लबकुशाई थी

 *

जो भी थी खानदान की इज़्ज़त

नस्ले नौ ने सभी मिटाई थी

 *

थामते लोग पहले गिरते को

आज ठोकर मगर लगाई थी

 *

काम दौलत न आया था रुतवा

मौत जब मुझको लेने आई थी

 *

मैंने चाही थी जो मिली मन्ज़िल

राह वो माँ मुझे दिखाई थी

 *

गोपियाँ तोड़ के चली बन्धन

कृष्ण ने वंशी जब बजाई थी

 *

आप दिल में जगह नहीं देते

बात करने में क्या बुराई थी

 *

खाया बिल्डर न राज्य है सुनता

उम्र भर की रही कमाई थी

 *

है अरुण मुद्दतों से अफ़सुर्दा

प्यार ने नज़्र की जुदाई थी

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 2 ☆ कविता – युवा दोहे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके  – “युवा दोहे“।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 2 ☆

✍ युवा दोहे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह 

पुत्र कहे पितृ से, तुम राखौ अपनों देश,

 टैक्स टक्का तीस, बदले  मिले क्लेश।

*

रात दिन एक करि, पाई शिक्षा व व्यापार,

जैसे जैसे आय बढे,  टैक्स बढे आकार।

*

अरु टैक्स के बदले, मोहिं मिले कछु नांय,

गड्ढे पड़े सड़क में, टायर घिस घिस जांय।

*

मेरी टैक्स रकम ते, सड़क बने चहुँ ओर,

और मोहिऐ देनौ पड़े टोलटैक्स घनघोर।

*

जादा कमानौ या देश में बन गयौ अपराध,

बिन किए कुछ लोग चुपड़ी खात अघाय।

*

और अपनी कमाई पै जो टैक्स देनौ चूकौ ,

अपयश मिले जहां में इल्जाम लगे चोरी कौ।

*

और, टैक्स कैसे बढे, नित नित होत विचार,

टैक्सपेयर की सुविधा पै करै न कोइ विचार।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : पुणे महाराष्ट्र 

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 553 ⇒ लेखन और अवचेतन ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लेखन और अवचेतन।)

?अभी अभी # 553 ⇒ लेखन और अवचेतन ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

लेखन का संबंध सृजन से है, चेतना और विचार प्रक्रिया से है। पठन पाठन, अध्ययन, चिंतन मनन, अनुभव और अनुभूति के प्रकटीकरण का माध्यम है लेखन, जिसमें वास्तविक घटनाओं एवं कल्पनाशीलता का भी समावेश होता है। एक अच्छे लेखक के लिए, एक अच्छी याददाश्त और अनुभवों का खजाना बहुत जरूरी है। अगर चित्रण रुचिकर ना हुआ, तो लेखन नीरस भी हो सकता है।

जिन लोगों का चेतन अधिक सक्रिय होता है, वे अच्छे लेखक बन जाते हैं लेकिन जिनका अवचेतन अधिक प्रबल होता है, वे केवल सपने ही देखते रह जाते हैं।।

लेखन की ही तरह एक संसार सपनों का भी होता है, जहां कथ्य भी होता है, घटनाएं भी होती है, सस्पेंस, रोमांस और मर्डर मिस्ट्री, क्या नहीं होता अवचेतन के इस संसार में ! लेकिन अफसोस, यहां कर्ता केवल दृष्टा बनकर सोया होता है, मानो किसी ने उसके हाथ पांव बांधकर पटक दिए हों। जब इस लाइव टेलीकास्ट वाले एपिसोड का अंत आने वाला होता है, तब उसे सपने के अवचेतन के चंगुल से मुक्त कर होश में ला दिया जाता है। ना कोई डायरी ना कोई वीडियो शूटिंग, सब कुछ सपना सपना।

सपना मेरा टूट गया। जागने पर चेतन मन अवचेतन की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश जरूर करता है, लेकिन कामयाब नहीं होता, क्योंकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। जागृत और सुषुप्तावस्था में यही तो अंतर है। सोते समय बहुत कुछ याद रहता है, जो अवचेतन को प्रभावित करता है, लेकिन जागने के बाद अवचेतन मन इतना प्रभावित नहीं करता। सपनों के सहारे कोई लेखक नहीं बना। केवल जाग्रत प्रयास से ही कई लेखकों के सपने सच हुए हैं और वे एक अच्छा लेखक बन पाए हैं।।

लेखन साहित्य का विषय है मनोविज्ञान का नहीं, सपने और अवचेतन, मनोविज्ञान का विषय है, लेखन का नहीं। लोग कभी सपनों को गंभीरता से नहीं लेते, उनकी अधिक रुचि सपनों को सच करने में होती है, जो जाहिर है, कभी कभी सपने में भी सच हो जाती है, जब वे कहते हैं, मैने तो सपने में भी नहीं सोचा था, मैं एक सफल लेखक बन पाऊंगा।

सपनों का एक लेखक के जीवन में कितना योगदान होता है, यह तो कोई लेखक ही बता सकता है। सुना है लेखन में एक लेखक को इतना आत्म केंद्रित होना पड़ता है कि भूख प्यास और नींद सब गायब हो जाती है। मुर्गी की तरह विचार अंडा देने को बेताब होते हैं और तब तक देते रहते हैं, जब तक सुबह मुर्गा बांग नहीं दे देता। उधर सूर्योदय और इधर हमारे सूर्यवंशी जी ऐसी तानकर सोते हैं कि आप चाहो तो घोड़े बिकवा लो।

सपना तो पास ही नहीं फटक सकता उनके और गहरी नींद के बीच।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 52 – नेक कार्य…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – नेक कार्य।)

☆ लघुकथा # 52 – नेक कार्य  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

क्या हो गया बाबूजी, आज आप मुझे स्कूल यह कहां ले जा रहे हैं? हम यह कपड़े की दुकान में क्यों आए हैं? बेटा आज तुम्हारे चाचा के बेटे की शादी है, सब लोग वही गए हैं। तुम्हें भी वही चलना है आज तुम्हारी परीक्षा थी, इसलिए तुम्हें स्कूल से लेने में आ गया। अब तुम यहां पर एक अच्छा सा कपड़ा खरीद लो । तुम्हें मैं शादी में छोड़ देता हूं कोई पूछेगा तो बोल देना कि चाचा जी ने मुझे कपड़े दिए हैं।

बाबूजी आपको पता है कि माँ कितना नाराज होगी यह सुनेगी तो?

मैं घर जाती हूं आप शादी में चले जाओ।

नहीं बेटा, जो कह रहा हूं वह चुपचाप मानो और उसे एक सुंदर सी फ्रॉक दिला देते हैं और कहते हैं इसे तुम पहनो और उसके कपड़े पैक करके उसके बैग में डाल देते हैं।

अरे !यह सुनीता ने तो बहुत सुंदर फ्रॉक पहना है। कैसा हुआ तेरा पेपर? यह किसकी फ्रॉक पहन के आ गई ?

माँ यह फ्रॉक मुझे चाचा जी ने दिया है।

भाई की शादी बोले आज है तो तू यहीं पर रहो ठीक है।

चल उसने कुछ खर्चा तो किया।

देखो जी मेरा भतीजा आ रहा है उसे एक अच्छा सा कोट पेंट दिला दो मैं अपने भतीजे को गोद लेना चाह रही थी तुमने नहीं लेने दिया वह मेरा बेटा है।

ठीक है भाग्यवान तो मायके के मोह में हो। तुम्हें क्या पता मेरे निर्णय पर एक दिन तुम खुश होगी जब हमारी सुनीता कुछ बड़ा नाम करेगी और तुम्हारी देखभाल यही करेगी। लेकिन इस सच्चाई से तुम भाग रही हो।

अच्छा शादी में तो चुप रहो। घर चलकर तुम्हारा प्रवचन तो मैं सुनती रहती हूं। नाम तो तुम्हारा शांति है पर हमेशा अशांत रहती हो।

चल! बेटा सुनीता आज हम आराम से रहते हैं। तेरे सहारे मेरा जीवन अच्छे से कट जाएगा मुझे बहुत खुशी है कि मैंने सही समय पर तुझे गोद लेकर एक नेक कार्य किया है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 253 ☆ देशातील मुलींची पहिली शाळा… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 253 ?

☆ देशातील मुलींची पहिली शाळा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

किती पिढ्या सोसत राहिली,

बाई अनंत अत्याचार…

अचानक,

महात्मा फुलेंना झाला साक्षात्कार!

“ढोल, ढोर और नारी,

सब ताडन के अधिकारी”

असेच होते वास्तव जगाचे !

 ज्योतिबांना लागला  ,

स्त्री शिक्षणाचा ध्यास,

घेतला स्वपत्नीचा अभ्यास!

शिक्षिका बनविले ,

सावित्रीबाईंना —

 सोसला प्रस्थापितांचा त्रास,

परी स्त्री शिक्षणाची आस,

उभयतांमधे कमालीचा,

आत्मविश्वास!

देशातील पहिली मुलींची शाळा,

काढली भिडे वाड्यात,

अन् झाली स्त्री शिक्षणाची,

सुरुवात!!

© प्रभा सोनवणे

१४ नोव्हेंबर २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार

पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विठ्ठल… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ विठ्ठल… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

माती काळी विठ्ठल काळा

पंढरीचा बुक्का काळा ।। ध्रु।।

*

दिंडी निघाली माऊलीची

मुखे नाम भक्ती रसाची

चिपळ्या मृदंग वाजे टाळा

*

संत वैष्णवांचा दाटला मळा

माळा तुळशी घालुनी गळा

गोपीचंदनाचा भाळी टिळा

*

झाले चंद्रभागा तीरी गोळा

भागवत भक्तांचा ह्यो मेळा

खांदी पताका विरक्त सोहळा

*

माती काळी धरती काळी

हिरवे शेती पिके कोवळी

अमृतघनही काळा सावळा

*

भक्ती ओली माया भोळी

विठ्ठलाची कृपा साउली

वैष्णव भक्तीचा हा उमाळा

*

शरीर माझे प्रपंच माझा

अहंकाराचा केवळ बोजा

षड्रिपु पण झाले गोळा

*

द्वारकेचा कृष्ण काळा

पंढरीचा विठ्ठल काळा

चक्रपाणी साधा भोळा

*

रंगामध्ये काय आहे बोला

सर्व वारकरी झाले गोळा

परंपरागत सुख सोहळा

*

पंढरीचा बुक्का काळा

© प्रो डॉ प्रवीण उर्फ जी आर जोशी

ज्येष्ठ कवी लेखक

मुपो नसलापुर ता रायबाग, अंकली, जिल्हा बेळगाव कर्नाटक, भ्रमण ध्वनी – 9164557779 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गाव अन शहर… ☆ मेहबूब जमादार ☆

मेहबूब जमादार 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ गाव अन शहर… ☆ 🖋 मेहबूब जमादार ☆

गाव अन शहर

रेषा धूसर झाल्यात

गावांत स्वच्छ हवा आहे

शहरात प्रदूषणाचा धूर आहे

सगळ्या सुख सोयी

घरोघरी शिरल्यात.

पिठाची गिरणही

घरोघरी आलीय.

सारं काहीं शहरातल

गावांत आहे…

पण तरीही मला कळत नाही

त्या काँक्रिटच्या जंगलात

माणूस का पळत आहे…

वीतभर पोटा साठी तिथे

जावून का? जळत आहे…

© मेहबूब जमादार

मु. कासमवाडी,पोस्ट -पेठ, ता. वाळवा, जि. सांगली

मो .9970900243

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर




मराठी साहित्य – विविधा ☆ व्रतोपासना – ३. अन्नाचा स्वीकार ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

सुश्री विभावरी कुलकर्णी

🔅 विविधा 🔅

व्रतोपासना – ३. अन्नाचा स्वीकार ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

मला घरातील ज्येष्ठ मंडळी कायम स्मरणात असतात. त्यांची काही वाक्ये लहानपणी पासून ऐकतो. त्यावेळी फारसे कळायचे नाही. पण मोठ्यांना उलट प्रश्न विचारण्याचा तो काळ नव्हता. पण त्या मुळे मनावर चांगले संस्कार कोरले गेले. आणि त्यातील काही वाक्ये आत्ता लक्षात येतात आणि ती किती महत्वाची होती हे लक्षात येते. कोणत्याही पदार्थाला नकार दिला की एक वाक्य आजी कायम म्हणायची, कोणाचाही हात मोडू नये. हे ऐकून त्यावेळी आम्ही तोंडावर हात ठेवून हसत असू. मोठ्याने हसलो किंवा उलट बोलले तर मार मिळेल या भीतीने गुपचुप हसायचे. आणि हात कसा मोडतो? हा प्रश्न पडायचा. पण त्याचा अर्थ जसे वय वाढत गेले तसा लक्षात यायला लागला. आणि हे पूर्वीचे संस्कार फार महत्वाचे आहेत हेही जाणवते.

समोर आलेले अन्न आपण स्वीकारले नाही किंवा त्याला नकार दिला तर त्याचा आनादर होतो. आणि ज्या व्यक्तीने आपल्याला दिलेले असते त्या व्यक्तीचाही अपमान होतो. त्यामुळे आपल्याला न आवडणारा पदार्थ समोर आला तर त्याला कधीही नकार देऊ नये. त्याचा आदर करण्यासाठी त्यातील एखादा अल्पसा घास तरी ग्रहण करावा. मी कित्येकदा असा अनुभव घेतला आहे, की एखादा पदार्थ नाकारला तर दिवसभर काहीच खायला मिळत नाही. अगदी जवळ पैसे, स्वतःचा जेवणाचा डबा असेल तरी जेवणासाठी वेळ मिळत नाही.

अजून एक विचार असा आहे, ज्या अन्ना मुळे आपले भरण पोषण होते त्याच अन्नाने आपला अनादर केला तर? आपल्या शरीरात अन्नद्वेष निर्माण झाला तर? आपले जगणे पण अशक्य होऊन जाईल. म्हणून कोणतेही अन्न मना पासून स्वीकारावे. तरच ते चांगले पोषण करते. आपण अन्नाला व पाण्याला भावना देऊ शकतो. त्या भावना अन्न ग्रहण करते. अन्नाला सकारात्मक व चांगल्या भावना देण्यासाठी आपल्या कडे स्वयंपाक करताना पाळायचे काही नियम असतात.

त्यामुळे हे अन्नाचा स्वीकार हे व्रत म्हणून सर्वांनीच आचरणात आणावे. तेच संस्कार आपल्या मुलांवर होणार आहेत. सोपे पण महत्वाचे व्रत आहे ना? माझ्या मताशी सहमत आहात का? नक्की कळवावे.

© सुश्री विभावरी कुलकर्णी

मेडिटेशन,हिलिंग मास्टर व समुपदेशक, संगितोपचारक.

९/११/२०२४

सांगवी, पुणे

📱 – ८०८७८१०१९७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ किरण… – भाग – २ ☆ डॉ. शैलजा करोडे ☆

डॉ. शैलजा करोडे

🌸 जीवनरंग 🌸

☆ किरण… – भाग – २ ☆ डॉ. शैलजा करोडे

(“शोभाताई, तुम्ही स्त्रीरोग तज्ञांची मदत घ्या. तुम्ही सांगितलेली लक्षणे सर्वसाधारण आजाराची ही असू शकतात. पण रक्तस्त्रावासाठी स्त्री रोग तज्ज्ञाचा सल्ला अवश्य घ्या आणि त्यातून काही निष्पन्न झाल्यास आपला इलाज अवश्य करून घ्या”.) – इथून पुढे 

प्रेमाताई, “स्त्रियांना गर्भाशय आणि स्तन कॅन्सरला फार मोठ्या प्रमाणात सामोरे जावे लागते ? नाही का?”

होय माधुरीताई, स्त्रियांना गर्भाशय! गर्भाशय मुख, स्त्री विजांड कोश, आणि स्तन कॅन्सरचा सामना करावा लागतो तर पुरुषांना तोंडाचा, घशाचा, फुफ्फुसांचा कॅन्सर होतो. विशेषतः व्यसनी व्यक्ती ज्या तंबाखू बिडी सिगारेटचे सेवन करतात. दारू आणि तत्सम पदार्थांचे सेवन करतात. त्यांना तोंडाचा, जबड्याचा, घशाचा कॅन्सर हमखास होतो. म्हणून तंबाखूचं सेवन टाळणं, धूम्रपान न करणं, दारू वर्ज्य करणं फार गरजेचं आहे. यासाठी विचार जागृती, समाज जागृती होणं गरजेचं तर आहेच पण प्रत्येक व्यक्तीनं सामाजिक जबाबदारी म्हणून हे कार्य हाती घेतलं तर उद्दिष्ट गाठणं सुकर होईल. सिगारेटच्या पाकिटावर वैधानिक इशारा लिहून सरकार मोकळे होते आणि दुसरीकडे बराच महसूल या उत्पादनांमुळे मिळत असल्याने त्याला खुली बाजारपेठ ही देते. म्हणून प्रत्येक व्यक्तीने जागरूक राहून स्वतःपासून सुरुवात करणे गरजेचे आहे.

कॅन्सरच्या कोणत्या प्रकारांमध्ये मृत्यू ओढवतो हे आमच्या प्रेक्षकांना सांगा प्रेमाताई.

खूप छान प्रश्न विचारलात माधुरीताई. काही कॅन्सर जीव घेणे असतात किंवा त्यावर नियंत्रण मिळवणे कठीण असते ते आहेत, प्रथम क्रमांकाच्या कॅन्सर फुफ्फुसांचा असतो. दुसरा क्रमांक लागतो जठराच्या कॅन्सरचा. माधुरीताई तिसरा क्रमांक लागतो यकृताच्या कॅन्सरचा. चौथा क्रमांक लागतो तो आतड्यांच्या कॅन्सरचा. पाचवा क्रमांक लागतो तो अन्ननलिकेच्या कॅन्सरचा. त्यामुळे या प्रकारच्या कॅन्सरचे लवकर निदान होणे आणि त्यानुसार रुग्णांचा इलाज होणे गरजेचे ठरते की जेणेकरून या आजारावर नियंत्रण मिळवता येईल. याव्यतिरिक्त मेंदूतील ट्युमर, शरीरावर होणाऱ्या गाठी, युरीन ब्लॅडर, गुद् मार्गाचे कॅन्सर ही असतात. जवळ जवळ दोनशे प्रकारचे कॅन्सर असतात. काही जलद गतीने वाढणारे असतात तर काही धीम्या गतीने वाढणारे असतात. सगळ्यात महत्त्वाचं म्हणजे कॅन्सरचं लवकर निदान होणं फार गरजेचं. जेवढं निदान लवकर तेवढं या रोगांवर नियंत्रण मिळवणं सोपं आणि रुग्णांचे आयुष्य वाढणं सहज शक्य होतं.

“प्रेमाताई आपण स्वतःही या जीवघेण्या आजारावर मात केलीय आणि या स्वानुभवातूनच तुम्ही “कॅन्सरशी लढा विजयाकडे एक पाऊल” या संस्थेची स्थापना केलीत. तुम्ही स्वतः आणि या संस्थेची जोडली गेलेली प्रत्येक व्यक्ती एक किरण बनून हजारो कॅन्सर रुग्णांच्या जीवनात नवप्रकाश फैलावत आहात त्यांची मदत करीत आहात. याविषयी थोडं विस्तारांनं सांगा.

अवश्य माधुरीताई. मला कॅन्सर होणं हा माझ्यासाठी ही जीवघेणा अनुभव होता. आणि मी भूतकाळाच्या उदरात शिरून एक एक अनुभव कथन करू लागले.

आम्हा स्त्रियांचा पिंडच तसा. दुखणे अंगावर काढण्याचा. जवळजवळ एका वर्षापासून मला बरं नव्हतं. तापाची कणकण वाटणं, भूक मंदावणं, अतिशय थकवा जाणवणं, निरूत्साही वाटणं, रात्री शांत झोप न लागणं आणि या सगळ्यात महत्त्वाचं मला रक्तस्राव होत होता. सुरुवातीला हे रक्तस्त्रावाचं प्रमाण कमी होतं. त्यात सातत्यही नव्हतं. काही दिवस कोरडेही असत. पण नंतर माझा त्रास वाढू लागला तसे माझे धैर्यही सुटू लागले. मार्च एंड मुळे माझ्या ऑफिसातील कामातून सवड मिळत नव्हती. माझी रजा ही मंजूर होत नव्हती आणि त्यामुळे जास्तच हतबल झाले होते. मार्च महिना संपला. यावेळी आमच्या बँक शाखेला चांगला घसघशीत नफाही झाला होता.

“सर, माझी तब्येत बरी नाही आणि या एप्रिल महिन्यात मला सुट्टी हवी. मुंबईला जाऊन माझं चेकअप करायचंय. “

“ओके मॅडम, आता काही अडचण नाही. आपण पाहिजे तेवढी रजा घ्या. आपलं चेकअप करून घ्या. इलाजही करून घ्या. आणि महत्त्वाचं काळजी करू नका. चिंता सोडा. सगळं चांगलं होईल. ” 

“थँक्यू सर, आपल्या सहकार्याबद्दल आभारी आहे. “

सोनोग्राफीतच माझा रिपोर्ट पॉझिटिव्ह होता. गर्भाशयात पाच सेंटीमीटर ची लांब, रुंद अशी मोठी गाठ होती. पण ही गाठ कॅन्सरची आहे की अन्य कशाची यासाठी एमआरआय करणं किंवा बायोप्सी करणं गरजेचं होतं. एम आर आय मध्ये हे चित्र अधिक सुस्पष्ट झालं. ती गाठ कॅन्सरचीच असून दुसऱ्या ग्रेडची होती.

माझा हा मेलीग्नन्स युटेरियन कार्सिनोमा जीव घेणा आहे की नियंत्रणात येण्याजोगा याचे निदान तर शस्त्रक्रिये नंतरच ठरणार होतं. आजार कितपत पसरलाय किंवा नाही यासाठी लिम्फनोड्स अर्थात लसिका ग्रंथींचं परीक्षण होणं गरजेचं होतं.

आजाराचं निदान ऐकताच तर माझ्या पायाखालची जमीन जणू सरकली होती. मृत्यूच्या पूर्वीचं स्टेशन लागलं होतं. आता माझ्या हातात माझ्या आयुष्याचा किती काळ शिल्लक होता हेच पाहणं महत्त्वाचं होतं. माझे कुटुंबीय, माझे हितचिंतक, शुभचिंतक, माझा मित्र परिवार मला धीर देण्यासाठी एकवटला होता.

कामगार कल्याण केंद्र संचालक विलास पाटील म्हणाले – “मॅडम, तुमच्या आजाराविषयी अतुल चित्रे माझे सहकारी यांनी कळविले. मॅडम, तुम्ही तर आम्हाला शॉकच देताय हा. पण मॅडम तुम्ही घाबरून जाऊ नका. लवकर बऱ्या व्हा. आणि पुन्हा आपल्या कामगार कल्याण केंद्राच्या विविध कार्यक्रमात सामील व्हा. आमच्या शुभेच्छा आहेत तुमच्या बरोबर. ” “धन्यवाद पाटील सर, तुमच्या प्रेम आपुलकीने भरलेल्या शुभेच्छा नक्कीच माझ्या कामी येतील. ठेवते फोन. “

माझे कवी मित्र सदानंद गोरे म्हणाले होते; “मॅडम, घाबरून जाऊ नका. अहो कवी जवळ तर मनाच्या कणखरपणा, आत्म्याची शक्ती असते. या संकटातून तुम्ही नक्कीच सही सलामत बाहेर याल असा विश्वास आहे माझा. ” “सर, तुमच्या विश्वासावर विश्वास आहे माझा. परमेश्वर कृपेने तसेच घडो. ” “घडणारच मॅडम जीवनाकडे पाहण्याचा तुमचा सकारात्मक दृष्टिकोन तुमची हार, तुमचा पराजय नक्कीच होऊ देणार नाही. “

“माई, रडू नकोस तुझ्यासाठी जगातील प्रत्येक डॉक्टरांना मी इंटरनेटवरून हाक देईन आणि तुझ्या आजारावर कशी मात करता येईल शोधून काढील. भलेही या कामात माझ्या आयुष्याची सगळी जमापुंजी खर्च पडली तरी बेहतर पण माझी बहीण माझ्यासाठी अनमोल आहे. ” माझ्या मोठ्या भावाचे हे धीरोदत्त शब्द माझे बळ वाढवीत गेले आणि ऑपरेशन टेबलवर जाण्यासाठी माझे मनोधैर्य वाढत गेले.

ऑपरेशन नंतर पाच-सहा दिवसांनी माझ्या शरीरापासून विलग केलेल्या अवयवाचा रिपोर्ट मिळाला. लसिका ग्रंथी नॉर्मल होत्या. म्हणजे रक्त प्रवाह पर्यंत कॅन्सर पसरला नव्हता. तो फक्त स्थानिक त्या अवयवापुरताच मर्यादित होता. रिपोर्टचे विश्लेषण वाचल्यानंतर कुटुंबीयांसह मलाही धीर आला. आणि गेल्या वीस पंचवीस दिवसांपासून मनावर आलेले दडपण कमी झाले. आजारावर नियंत्रण मिळालेय ही खात्री झाल्याने मलाही धीर वाटला आणि याचा परिणाम म्हणून माझी शारीरिक रिकव्हरी वेगाने होऊ लागली.

– क्रमशः भाग दुसरा 

© डॉ. शैलजा करोडे

नेरुळ नवी मुंबई मो. 9764808391

ईमेल – [email protected] 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈



मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ मी माझ्याच प्रेमात… – लेखिका : सुश्री संध्या बेडेकर ☆ सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ मी माझ्याच प्रेमात… – लेखिका : सुश्री संध्या बेडेकर ☆ सौ. गौरी गाडेकर ☆

काल माझा सत्तरावा वाढदिवस मोठ्या थाटामाटात संपन्न झाला.

हॉटेलात कशाला?? घरीच करु या की, असं वगैरे मी काही म्हणत नाही. किती बिल आलं? हे विचारण्याच्या भानगडीत मी पडत नाही.

आजकाल घरातील प्रत्येक event खूप मजेत पार पडतो. काही टेन्शन नसते. आता राज्य पुढच्या पिढीचे आहे.

आता फ्रंट सीट वर मुलगा, सून बसले आहेत. जनरेशन गॅप भरपूर, म्हणून सर्वच पद्धती बदलल्या आहेत. ते जे म्हणतात ते मी सहर्ष ऐकते.

मी एक गोष्ट नक्की ठरवली आहे •••

जमाने के साथ चलो. नेहमी टीमचा मेंबर रहायचं.

 

कोणाला जेवायला बोलावायचे आहे तर आपण यावेळेस डेक्कनवरील त्या नवीन हॉटेलमध्ये जाऊ. मुलांच्या सुविधेनुसार ते जी वेळ, जागा ठरवितात आणि आम्ही दोघे तयार होतो.

आम्ही नवीन जगाशी adjust झालो आहोत….

आमच्या वेळेस ••• एवढा खर्च का? ••• घरात नाही करता येत का?? •••काय सारखं बाहेर जेवायचं?••• कामाचा कंटाळाच आहे. ••• 

 

या सर्व गोष्टी अजिबात बोलत नाही. रडगाणी गात नाही. काय गरज आहे? आजपर्यंत खूप कष्ट केले. खूप पैसे वाचविले. तो काळ वेगळा होता. पगार जेमतेम होते. येणारे जाणारे भरपूर असत. तेव्हा या आधुनिक पद्धतीचे प्रचलन नव्हते आणि परवडणारे पण नव्हते.

आता मजेत रहायला मिळतंय. घरात सर्व कामाला मावशी आहे. On line बरीच कामं होतात. मग बिघडलं कुठे ? 

 

पन्नास वर्षांपूर्वी जीवनाची परिभाषा आजच्या तुलनेत वेगळी होती. एवढे आधुनिक विचार नव्हते. मनोरंजनाची परिभाषा वेगळी आणि सीमित होती. नातेवाईकांचे घरी येणे, भरपूर दिवस राहणे या सामान्य गोष्टी होत्या. कर्ज काढणे वगैरे गोष्टी नव्हत्या. अंथरूण पाहून पाय पसरावे ही गोष्ट मनावर एवढी बिंबवली होती, की ती लक्ष्मण रेषा ओलांडायला हिम्मत लागायची. हॉटेलिंगची गणना मौजमस्ती मध्ये होत असे. एवढी चमकधमक ही नव्हती. एवढ्या सोयी सुविधा नव्हत्या. झोमॅटो, स्वीगीचा जन्म झाला नव्हता.

 

अर्ध अधिक आयुष्य या परिस्थितीत गेलं. म्हणजे त्याचं मला अजिबात दुःख नाहीये. तेव्हा पण मी मजेतच होते. परिस्थिती प्रमाणेच वागले. आता जबाबदारी संपली आहे, असं जरी मी म्हणत असले तरी अजूनही मी मुलांकडे घराकडे लक्ष देतेच.

 

जुन्या गोष्टींचा पाढा वाचत बसण्यापेक्षा, आताचे दिवस enjoy करायचे. तेव्हा आरशात स्वतःला बघायला वेळ मिळायचा नाही. आता माझा फोन नेहमी सेल्फी मोड मध्येच असतो. माझे माझे फोटो काढायचे ‌आपल्याच नादात रहायचे.

 

स्वतः मध्ये रमता आलं, की स्वतःपेक्षा बेस्ट option दुसरा कोणीच वाटत नाही.

प्रेशर कुकर सारखं जगायचं. बाहेर किती ही आग लागू दे, आत किती ही प्रेशर असू दे, शिट्या वाजवत जगायचं मजेत.

…. हे सगळं समजेपर्यंत बराच काळ निघून गेला, इतका की आयुष्याची सत्तर वर्षे संपली त्यावेळी मोबाईल नव्हते. मोबाईल आल्यावरही माझ्या हातात येईपर्यंत वेळ गेलाच.

काळ बदलत गेला, तसे माझ्या आजूबाजूचे रिंगण वाढत गेलं. अनेक गोष्टी समजत गेल्या. स्वतःचा आनंद कशात आहे? हे आपल्यालाच शोधायचे असते, हे खूप उशीरा कळलं….

 

स्वतः कसं जगायचं? हे आपणच ठरवायचं असतं म्हणे. हे समजायला आणि पचायला बराच वेळ लागला. घरच्या आजूबाजूच्या आपल्याच माणसांमध्ये एवढी बिझी असायचे की मला मीच शोधता आले नाही. आपल्या स्वतःसाठी वेळ देणे हे चूक नाही, हा गुन्हा नाही. हे फार उशिरा कळलं.

 

मला चांगलं आठवतंय ••• अजयच लग्न झालं होतं तेव्हा त्याने अनिताला सांगितले होते, ‘ की माझ्या आई बाबांनी खूप कष्ट केले आहेत. लहानपणी मी पैशाची चणचण बघितली आहे. म्हणूनच महागड्या वस्तू स्वस्त वाटेपर्यंत कष्ट करायचे आणि तसे पैसे कमवायचे हे मी ठरवलं होतं. आई बाबांनी आणि मी स्वतः शिक्षणावर लक्ष दिलं, त्यामुळे आज मी चांगल्या नोकरीत आहे. माझे म्हणणे असेही नाही की तू घरची कामं कर. दोघीही मजेत रहा. ’

 

अजय अनिताने आमच्या दोघांचे दिवस पालटले.

 

लग्नानंतर अजयला नवीन कार घ्यायची होती तेव्हा आम्ही त्याला सिक्स सीटर कार घे, म्हणजे अनिताचे आई बाबा पण आपल्या बरोबर सहज बाहेर जाऊ शकतील, असा सल्ला दिला. आज बरेचदा आम्ही सर्व एकत्र बाहेर जातो.

 

दोन्ही आई बाबांना मुलं छान सांभाळतात.

 

आधी TV नंतर मोबाईलने आज जगण्याची दशा, दिशा, गती सर्वच बदललंय, विचारांमध्ये तर क्रांतीच आली आहे.

 

आज ज्येष्ठांसाठी आपले शौक, आपल्या इच्छा पूर्ण करण्यासाठी अनेक पर्याय उपलब्ध आहेत ‌

वाचक मंच, जेष्ठ नागरिक संघ अनेक गोष्टी आहेत.

पुढच्या पानावर काही तरी भारी लिहिलं असेल या विचाराने मी रोज एक पाऊल पुढे टाकते.

खूप विचार करत बसत नाही. कोणी सोबत केली तर With you नाही तर Without you.

असा सरळ सोप्पा हिशोब ठेवते.

सध्या मी माझ्याच प्रेमात आहे. मस्त बिनधास्त जगतेय.

एक लक्षात आलंय •••

शेवटी रोजचे खात्यात जमा झालेले १४४० मिनिटे मी कसे घालवायचे? हे माझं मलाच ठरवायच आहे.

लेखिका : संध्या बेडेकर

प्रस्तुती : सौ. गौरी गाडेकर

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈