हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 272 ☆ व्यंग्य – दो हैसियतों का किस्सा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘दो हैसियतों का किस्सा‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 272 ☆

☆ व्यंग्य ☆ दो हैसियतों का किस्सा

बब्बन भाई पुराने नेता हैं। राजनीति के सभी तरह के खेलों में माहिर। लेकिन इस बार वे विवाद में पड़ कर सुर्खियों में आ गये। बात यह हुई कि अपनी जाति के एक सम्मेलन में जोशीला भाषण दे आये कि हमें अपनी जाति की रक्षा करना चाहिए, अपनी जाति के अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए, हमारी जाति का गौरवशाली इतिहास है, हमारी जाति की जानबूझकर उपेक्षा की जा रही है।

अखबारों ने उनके भाषण को उछाल दिया और उनकी लानत-मलामत शुरू कर दी कि बब्बन भाई जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता ने अपनी जाति की वकालत क्यों की। विरोधियों को मौका मिल गया। उन्होंने वक्तव्य दे दिया कि बब्बन भाई जातिवादी, संकीर्ण विचारों वाले हैं और कहा कि वे अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

इसी हल्ले-गुल्ले की पृष्ठभूमि में मैं बब्बन भाई के दर्शनार्थ गया। बब्बन भाई उस वक्त कुछ खिन्न मुद्रा में तख्त पर मसनद के सहारे अधलेटे थे। सामने मेज़ पर पानदान था और उसकी बगल में दो टोपियां तहायी रखी थीं— एक सफेद और दूसरी पीली।

मैंने उनके बारे में उठे विवाद का ज़िक्र किया तो बब्बन भाई कुछ दुखी भाव से बोले,  ‘दरअसल बंधुवर, इस प्रकार के विवाद नासमझी से पैदा होते हैं। अखबार वाले यह नहीं समझते कि आदमी की दो हैसियत होती हैं, एक उसकी निजी हैसियत और दूसरी सामाजिक या सार्वजनिक हैसियत। अब मैं सार्वजनिक जीवन में आ गया तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि मेरी निजी हैसियत खत्म हो गयी। यही नासमझी सारे विवाद की जड़ में है।’

मैंने कहा, ‘लेकिन बब्बन भाई, क्या निजी हैसियत और सामाजिक हैसियत अलग-अलग हो सकती है?’

बब्बन भाई आश्चर्य से बोले, ‘क्यों नहीं हो सकती भाई? मैं एक जाति, धर्म में पैदा हुआ। मैंने जाति, धर्म को चुना तो है नहीं। तो जन्म के कारण मेरी धार्मिक, जातिगत हैसियत तो अपने आप बन गयी न? और जब हैसियत बन गयी तो धर्म से, जाति से अलग कैसे रहूंगा भला?’

मैंने कहा, ‘लेकिन आपकी पार्टी तो धर्मनिरपेक्ष और जातिवाद के खिलाफ होने की घोषणा करती है।’

बब्बन भाई मसनद पर मुट्ठी पटक कर बोले, ‘मैं भी वही मानता हूं, एकदम सौ प्रतिशत ।लेकिन सार्वजनिक हैसियत में। सार्वजनिक हैसियत में तो मैं पार्टी के सिद्धान्तों से टस से मस नहीं होता। आपने अभी पंद्रह दिन पहले राजनगर में दिये गये मेरे भाषण की रिपोर्ट नहीं पढ़ी?’

मैंने कहा, ‘बब्बन भाई, यह तो भारी घालमेल है। एक ही शरीर में दो आत्माएं कैसे रहती हैं?’

बब्बन भाई जैसे आहत हो गये, बोले, ‘भैया, कूवत हो तो दो क्या पच्चीस आत्माएं रह सकती हैं। अब आप न समझ सको तो मेरा क्या दोष?’

फिर बोले, ‘वैसे आप जैसे कनफ्यूज़्ड लोगों को समझाने के लिए मैंने रास्ता निकाल लिया है।’

वे उन दो टोपियों की तरफ इशारा करके बोले, ‘ये टोपियां देख रहे हैं न? इनमें से सफेद टोपी मेरी सार्वजनिक हैसियत की टोपी है और पीली टोपी निजी हैसियत की। जब मेरा दृष्टिकोण व्यापक, मानवीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय होता है तब मैं सफेद टोपी लगाता हूं। तब धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक-सामाजिक समानता और राष्ट्रीय हितों पर ऐसा भाषण देता हूं कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

‘जब जाति और धर्म की भावना ठाठें मारने लगती है, समानता राष्ट्रीयता की बातें मूर्खता लगने लगती हैं, दूसरे धर्म और दूसरी जातियां अपने खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं, तब पीली टोपी लगा लेता हूं। तब जाति और धर्म पर प्राण न्यौछावर करने की बात करता हूं। उस दिन  मैं अपनी जाति की सभा में पीली टोपी लगाये था, लेकिन अखबार वालों ने जबरदस्ती बदनाम कर दिया।’

मैंने कहा, ‘ये तो जैकिल और हाइड वाली कहानी हो गयी।’

बब्बन भाई बोले, ‘ जैकिल और हाइड वाली कहानी कहां हुई,भाई?जैकिल तो दवा पीकर हाइड बनता था। हमारे दोनों रूप तो हमारे जन्म और हमारे सेवा-भाव से पैदा हुए हैं। फिर हाइड तो जैकिल की दुष्ट आत्मा थी। मेरे तो दोनों ही रूप शुभ हैं— एक राष्ट्र के लिए तो दूसरा धर्म और जाति के लिए।’

मैंने कहा, ‘कई बार जाति और धर्म का हित राष्ट्र के खिलाफ चला जाता है।’

वे बोले, ‘बकवास है। यह सब तुम जैसे लोगों के दिमाग का फितूर है। जब समूह का भला होगा तो राष्ट्र का भी भला होगा।’

मैंने कहा, ‘लेकिन विभिन्न समूहों में आपस में विरोध हो तो?’

बब्बन भाई बोले, ‘तो जो समूह ताकतवर हो उसका भला होना चाहिए। इसी में राष्ट्र का हित है। सरकार को भी ऐसे ही समूह का साथ देना चाहिए।’

मैंने कहा, ‘छोटी जातियों के बारे में आपका विचार क्या है?’

बब्बन भाई बोले, ‘सार्वजनिक हैसियत से बोलूं या निजी हैसियत से?’

मैंने कहा, ‘पहले सार्वजनिक हैसियत में बोलिए।’

उन्होंने झट से सफेद टोपी पहन ली और गंभीर मुद्रा बनाकर एक सुर में शुरू हो गये — ‘नीची जातियों का उत्थान हमारा कर्तव्य है। नीची जातियों ने सदियों अपमान और तकलीफ की जिन्दगी गुजारी है। हमारा कर्तव्य है कि उन्हें सुविधाएं देकर राष्ट्र की मुख्यधारा में लायें और अपने पूर्वजों की गलतियों का प्रायश्चित करें। हमें गांधी बाबा के दिखाये रास्ते पर चलना है और इस काम में कोई विरोध हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’

मैंने कहा, ‘अब निजी हैसियत से हो जाए।’

उन्होंने फौरन सफेद टोपी उतार कर पीली टोपी पहन ली। टोपी पहनने के साथ उनकी भवें तन गयीं और स्वर ऊंचा हो गया। गरज कर बोले, ‘ये छोटी जातियां जो हैं, हमारे सिर पर बैठ गयी हैं। ये हमारी सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है। आदमी की श्रेष्ठता जन्म से भगवान निश्चित कर देता है। जो श्रेष्ठ है वही श्रेष्ठ रहना चाहिए, उसमें सरकारी हस्तक्षेप महापाप है। पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, इसी तरह आदमियों में भी अन्तर अनिवार्य है। सभी उच्च जातियों को चाहिए कि एक होकर अपनी श्रेष्ठता और पवित्रता की रक्षा करें और सरकार पर दबाव डालें कि जो व्यवस्था सनातन काल से चली आयी है उसमें बेमतलब हेरफेर करने की कोशिश न करे।’

वे एकदम से चुप हो गये जैसे चाबी खतम हो गयी हो।

मैंने कहा, ‘कमाल है, बब्बन भाई। आपसे तो गिरगिट भी मात खा गया। धन्य हैं आप।’

बब्बन भाई कुछ लज्जित होकर बोले, ‘मजाक छोड़िए। कम से कम आपको यकीन तो हुआ कि आदमी की निजी और सामाजिक हैसियत अलग-अलग हो सकती है।’

आठ दिन बाद सुना कि एक सभा में भाषण देते बब्बन भाई पर विरोधियों ने हमला बोल दिया। उनकी खासी धुनाई हो गयी। देखने गया तो वे जगह  जगह पट्टियां बांधे लेटे थे। चेहरा सूजा था।

मैंने पूछा, ‘किस हैसियत से पिटे, बब्बन भाई?’

बब्बन भाई कराह कर बोले, ‘यह भी कोई पूछने की बात है? सार्वजनिक हैसियत में पिटा। मंच पर राजनीतिक भाषण दे रहा था। सफेद टोपी पहने था।’

मैंने कहा, ‘निजी हैसियत में पिटना कौन सा होता है?’

बब्बन भाई आंखें मींचे हुए बोले, ‘जब जमीन-जायदाद, चोरी-चकारी, बलात्कार के मामले में पिटाई हो तो वह निजी हैसियत में पिटना होता है।’

मैंने कहा, ‘रुकिए, बब्बन भाई, अभी आपकी तकलीफ दूर करता हूं।’

मैंने उन्हें पीली टोपी पहना दी, कहा, ‘मैंने आपकी हैसियत बदल दी है। अब आपकी तकलीफ कम हो जाएगी।’

बब्बन भाई ने नाराज़ होकर टोपी उतार फेंकी। बोले, ‘तकलीफ की भी कोई हैसियत होती है क्या? टोपी बदलने से क्या तकलीफ चली जाएगी? मसखरी करने के लिए यही वक्त मिला था तुम्हें?’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – अवरुद्ध रास्ता – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “– अवरुद्ध रास्ता –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी ☆ — अवरुद्ध रास्ता — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

महात्मा अपने पीछे आने वालों का मार्ग दर्शन कर रहा था। पर एक जगह आने पर महात्मा स्वयं अटक गया। आगे रास्ता तो था, लेकिन एक पारदर्शी दीवार ने उसे रोक लिया था। उसके पुण्य का यही परीक्षण था। महात्मा के रूप में उसका जितना अर्जन था वह इतने के लिए ही था। इसके अतिरिक्त अमानवीय कर्मों के कारण आगे का उसका रास्ता अवरुद्ध होता।

***

© श्री रामदेव धुरंधर
27 – 10 — 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 273 – किमाश्चर्यमतः परम् ! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 273 ☆ किमाश्चर्यमतः परम् ! ?

देख रहा हूँ कि एक चिड़िया दाना चुग रही है। एक दाना चोंच में लेने से पहले चारों तरफ चौकन्ना होकर देखती है, कहीं किसी शिकारी के वेश में काल तो घात लगाये नहीं बैठा। हर दाना चुगने से पहले, हर बार न्यूनाधिक यही प्रक्रिया अपनाती है।

माना जाता है कि पशु-पक्षी बुद्धि तत्व में विपन्न हैं पर जीवन के सत्य को सरलता से स्वीकार करने की दृष्टि से वे सम्पन्न हैं। मनुष्य में बुद्धितत्व विपुल है पर  सरल को  जटिल करना, भ्रम में रहना, मनुष्य के स्वभाव में प्रचुर है।

मनुष्य की इसी असंगति को लेकर यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया था,

दिने दिने हि भूतनि प्रविशन्ति यमालयम्।शेषास्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।।

अर्थात प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, तब भी शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ बने रहने की इच्छा करते हैं। क्या इससे बड़ा कोई आश्चर्य है?

युधिष्ठिर ने प्रश्न में ही उत्तर ढूँढ़कर कहा था,

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥

अर्थात प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, तब भी शेष प्राणी अनन्त काल तक यहीं बने रहने की इच्छा करते हैं। क्या इससे बड़ा कोई आश्चर्य हो सकता है?

सचमुच इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है कि लोग रोज़ मरते हैं पर ऐसे जीते हैं जैसे कभी मरेंगे ही नहीं। हास्यास्पद है कि पर मनुष्य चोर-डाकू से डरता है, खिड़की-दरवाज़े मज़बूत रखता है पर किसी अवरोध के बिना कहीं से किसी भी समय आ सकनेवाली मृत्यु को भूला रहता है।

संभवत: इसका कारण ज़ंग लगना है। जैसे लम्बे समय एक स्थान पर पड़े लोहे में वातावरण की नमी से ज़ंग लग जाती है, वैसे ही जगत में रहते हुए मनुष्य की बुद्धि पर अहंकार की परत चढ़ जाती है। सामान्य मनुष्य की तो छोड़िए, अपने उत्तर से यक्ष को निरुत्तर करनेवाले धर्मराज युधिष्ठिर भी इसी ज़ंग का शिकार बने।

हुआ यूँ कि महाराज युधिष्ठिर राज्य के विषयों पर मंत्री से गहन विचार- विमर्श कर रहे थे। तभी अपनी शिकायत लेकर एक निर्धन ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। कुछ असामाजिक तत्वों ने उसकी गाय छीन ली थी। यह गाय उसके परिवार की उदरपूर्ति का मुख्य स्रोत थी।

महाराज ने उससे प्रतीक्षा करने के लिए कहा। अभी मंत्री से चर्चा पूरी हुई भी नहीं थी कि किसी देश का दूत आ पहुँचा। फिर नागरी समस्याओं को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल आ गया। तत्पश्चात सेना से सम्बंधित किसी नीतिविषयक निर्णय के लिए राज्य के सेनापति, महाराज से मिलने आ गए। दरबार के काम पूरे कर महाराज विश्राम के लिए निकले तो निर्धन को प्रतीक्षारत पाया।

उसे देखकर धर्मराज बोले, “आपको न्याय मिलेगा पर आज मैं थक चुका हूँ। आप कल सुबह आइएगा।”

निराश ब्राह्मण लौट पड़ा। अभी वापसी के लिए चरण उठाये ही थे कि सामने से भीम आते दिखाई दिए। सारा प्रसंग जानने के बाद भीम ने ब्राह्मण से प्रतीक्षा करने के लिए कहा। तदुपरांत भीम ने सैनिकों से युद्ध में विजयी होने पर बजाये जानेवाले नगाड़े बजाने के लिए कहा।

उस समय राज्य की सेना कहीं किसी तरह का कोई युद्ध नहीं लड़ रही थी। अत: नगाड़ों की आवाज़ से आश्चर्यचकित महाराज युधिष्ठिर ने भीम से इसका कारण जानना चाहा। भीम ने उत्तर दिया, ” महाराज युधिष्ठिर ने एक नागरिक को उसकी समस्या के समाधान के लिए कल आने के लिए कहा है। इससे सिद्ध होता है कि महाराज ने जीवन की क्षणभंगुरता को परास्त कर दिया है तथा काल पर विजय प्राप्त कर ली है।”

महाराज युधिष्ठिर को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। ब्राह्मण को तुरंत न्याय मिला।

हर क्षण मृत्यु का भान रखने का अर्थ जीवन से विमुखता नहीं अपितु हर क्षण में जीवन जीने की समग्रता है। अपनी कविता ‘चौकन्ना’ स्मरण हो आती है-

सीने की / ठक-ठक / के बीच

कभी-कभार / सुनता हूँ

मृत्यु की भी / खट-खट,

ठक-ठक.. / खट-खट..,

कान अब / चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा / ठक-ठक और /

खट-खट तो / जन्म से ही /

चल रही हैं साथ / और अनवरत..,

आदमी यदि / निरंतर /सुनता रहे /

ठक-ठक / खट-खट / साथ-साथ,

बहुत संभव है / उसकी सोच / निखर जाए,

खट-खट तक / पहुँचने से पहले

ठक-ठक / सँवर जाए..!

मनुष्य यदि ठक-ठक और खट-खट में समुचित संतुलन बैठा ले तो संभव है कि भविष्य के किसी यक्ष को भविष्य के किसी युधिष्ठिर से यह पूछना ही न पड़े कि किमाश्चर्यमतः परम् !

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 219 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 219 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 219) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 219 ?

☆☆☆☆☆

माना कि दूरियाँ

कुछ बढ़ सी गई हैं

लेकिन तेरे हिस्से का वक्त

आज भी तनहा ही गुजरता है…

☆☆

Agreed, distance between us

Has   somewhat  increased…

But the time assigned for you

Still  passes  in  aloofness only…

☆☆☆☆☆

दिल पे कुछ और गुज़रती है

मग़र क्या कीजै

लफ्ज़ कुछ और ही इज़हार 

किये जाते हैं

☆☆

Heart suffers something,

But what to do…

The words express

something else only …!

☆☆☆☆☆

कौन कैसा है

ये ही फ़िक्र रही तमाम उम्र

हम कैसे हैं…

ये कभी भूल कर भी नही सोचा…

☆☆

Life long kept judging others

by solely focussing outwards.

Never paused to assess myself

For introspection looking inwards

☆☆☆☆☆

मेरा ज़मीर बहुत है

मुझे सज़ा के लिए

तू दोस्त है तो नसीहत

न कर ख़ुदा के लिए…

☆☆

My conscience as such is

Good enough to punish me

If you’re my friend; then for

God sake stop counselling!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “कुम्भ, धार्मिक पर्यटन की विरासत…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

?  आलेख – कुम्भ, धार्मिक पर्यटन की विरासत…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 पौष पूर्णिमा के दिन यानी 13 जनवरी 2025 से प्रारंभ होगा और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है।)

भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक दृष्टि तथा एक विचार के साथ विकसित हुई है. भगवान शंकर के उपासक शैव भक्तो के देशाटन का एक प्रयोजन  देश भर में यत्र तत्र स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिंग  हैं. प्रत्येक  हिंदू जीवन में कम से कम एक बार इन ज्योतिर्लिंगो के दर्शन को  लालायित रहता है. और इस तरह वह शुद्ध धार्मिक मनो भाव से जीवन काल में कभी न कभी इन तीर्थ स्थलो का पर्यटन करता है. द्वादश ज्योतिर्लिंगो के अतिरिक्त भी मानसरोवर यात्रा, नेपाल में पशुपतिनाथ, व अन्य स्वप्रस्फुटित शिवलिंगो की श्रंखला देश व्यापी है.

इसी तरह शक्ति के उपासक देवी भक्तो सहित सभी हिन्दुओ के लिये ५१ शक्तिपीठ भारत भूमि पर यत्र तत्र फैले हुये हैं. मान्यता है कि जब भगवान शंकर को यज्ञ में निमंत्रित न करने के कारण सती देवी माँ ने यज्ञ अग्नि में स्वयं की आहुति दे दी थी तो क्रुद्ध भगवान शंकर उनके शरीर को लेकर घूमने लगे और सती माँ के शरीर के विभिन्न हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप पर जिन  विभिन्न स्थानो पर गिरे वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई. प्रत्येक स्थान पर भगवान शंकर के भैरव स्वरूप की भी स्थापना है. शक्ति का अर्थ माता का वह रूप है जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब है शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है.

भारत की चारों दिशाओ के चार महत्वपूर्ण मंदिर, पूर्व में सागर तट पर  भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरी, दक्षिण में रामेश्‍वरम, पश्चिम में भगवान कृष्ण की द्वारिका और उत्तर में बद्रीनाथ की चारधाम यात्रा भी धार्मिक पर्यटन का अनोखा उदाहरण है. जो देश को  सांस्कृतिक धरातल पर एक सूत्र में पिरोती है. इन मंदिरों को 8 वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने चारधाम यात्रा के रूप में महिमामण्डित किया था। इसके अतिरिक्त हिमालय पर स्थित छोटा चार धाम  में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ शिव मंदिर, यमुनोत्री एवं गंगोत्री देवी मंदिर शामिल हैं। ये चारों धाम हिंदू धर्म में अपना अलग और महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखते हैं। राम कथा व कृष्ण कथा के आधार पर सारे भारत भूभाग में जगह जगह भगवान राम की वन गमन यात्रा व पाण्डवों के अज्ञात वास की यात्रा पर आधारित अनेक धार्मिक स्थल आम जन को पर्यटन के लिये आमंत्रित करते हैं.

इन देव स्थलो के अतिरिक्त हमारी संस्कृति में नदियो के संगम स्थलो पर मकर संक्रांति पर, चंद्र ग्रहण व सूर्यग्रहण के अवसरो पर व कार्तिक मास में नदियो में पवित्र स्नान की भी परम्परायें हैं. चित्रकूट व गिरिराज पर्वतों की परिक्रमा, नर्मदा नदी की परिक्रमा, जैसे अद्भुत उदाहरण हमारी धार्मिक आस्था की विविधता के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रामाणिक द्योतक हैं. हरिद्वार, प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन में १२ वर्षो के अंतराल पर आयोजित होते कुंभ के मेले तो मूलतः स्नान से मिलने वाली शारीरिक तथा मानसिक  शुचिता को ही केंद्र में रखकर निर्धारित किये गये हैं, एवं पर्यटन को धार्मिकता से जोड़े जाने के विलक्षण उदाहरण हैं. आज देश में राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन चलाया जा रहा है, स्वयं प्रधानमंत्री जी बार बार नागरिको में स्वच्छता के संस्कार, जीवन शैली में जोड़ने का कार्य, विशाल स्तर पर करते दिख रहे हैं. ऐसे समय  में स्नान को केंद्र में रखकर ही  कुंभ जैसा महा पर्व मनाया जा रहा है, जो हजारो वर्षो से हमारी संस्कृति का हिस्सा है. पीढ़ीयों से जनमानस की धार्मिक भावनायें और आस्था कुंभ स्नान से जुड़ी हुई हैं . हरिद्वार का नैसर्गिक महत्व, ॠषीकेश, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चार धाम, मनसा देवी पीठ तथा माँ गंगा के कारण हरिद्वार कुंभ सदैव विशिष्ट ही रहा है.

प्रश्न है कि क्या कुंभ स्नान को मेले का स्वरूप देने के पीछे केवल नदी में डुबकी लगाना ही हमारे मनीषियो का उद्देश्य रहा होगा ? इस तरह के आयोजनो को नियमित अंतराल पर निर्ंतर स्वस्फूर्त आयोजन करने की व्यवस्था बनाने का निहितार्थ समझने की आवश्यकता है. आज तो लोकतांत्रिक शासन है हमारी ही चुनी हुई सरकारें हैं जो जनहितकारी व्यवस्था सिंहस्थ हेतु कर रही है पर कुंभ के मेलो ने तो पराधीनता के युग भी देखे हैं, आक्रांता बादशाहों के समय में भी कुंभ संपन्न हुये हैं और इतिहास गवाह है कि तब भी तत्कालीन प्रशासनिक तंत्र को इन भव्य आयोजनो का व्यवस्था पक्ष देखना ही पड़ा. समाज और शासन को जोड़ने का यह उदाहरण शोधार्थियो की रुचि का विषय हो सकता है. वास्तव में कुंभ स्नान शुचिता का प्रतीक है, शारीरिक और मानसिक शुचिता का. जो साधु संतो के अखाड़े इन मेलो में एकत्रित होते हैं वहां सत्संग होता है, गुरु दीक्षायें दी जाती हैं. इन मेलों के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नयन के लिये जनमानस तरह तरह के व्रत, संकल्प और प्रयास करता है. धार्मिक यात्रायें होती हैं. लोगों का मिलना जुलना, वैचारिक आदान प्रदान हो पाता है. धार्मिक पर्यटन हमारी संस्कृति की विशिष्टता है. पर्यटन  नये अनुभव देता है साहित्य तथा नव विचारो को जन्म देता है, हजारो वर्षो से अनेक आक्रांताओ के हस्तक्षेप के बाद भी भारतीय संस्कृति अपने मूल्यो के साथ इन्ही मेलों समागमो से उत्पन्न अमृत उर्जा से ही अक्षुण्य बनी हुई है.

जब ऐसे विशाल, महीने भर की अवधि तक चलने वाले भव्य आयोजन संपन्न होते हैं तो जन सैलाब जुटता है स्वाभाविक रूप से वहां धार्मिक सांस्कृतिक नृत्य, नाटक मण्डलियो के आयोजन भी होते हैं, कला  विकसित होती है. प्रिंट मीडिया, व आभासी दुनिया के संचार संसाधनो में आज  इस आयोजन की  व्यापक चर्चा हो रही  है. लगभग हर अखबार प्रतिदिन कुंभ की खबरो तथा संबंधित साहित्य के परिशिष्ट से भरा दिखता है. अनेक पत्रिकाओ ने तो कुंभ के विशेषांक ही निकाले हैं. कुंभ पर केंद्रित वैचारिक संगोष्ठियां हो रही  हैं, जिनमें साधु संतो, मनीषियो और जन सामान्य की, साहित्यकारो, लेखको तथा कवियो की भागीदारी से विकीपीडिया और साहित्य संसार लाभांवित हुआ है. कुंभ के बहाने साहित्यकारो, चिंतको को  पिछले १२ वर्षो में आंचलिक सामाजिक परिवर्तनो की समीक्षा का अवसर मिलता है. विगत के अच्छे बुरे के आकलन के साथ साथ भविष्य की योजनायें प्रस्तुत करने तथा देश व समाज के विकास की रणनीति तय करने, समय के साक्षी विद्वानो साधु संतो मठाधीशो के परस्पर शास्त्रार्थो के निचोड़ से समाज को लाभांवित करने का मौका यह आयोजन सुलभ करवाता है. क्षेत्र का विकास होता है, व्यापार के अवसर बढ़ते हैं.

कुंभ सदा से धार्मिक ही नहीं एक साहित्य और पर्यटन का सांस्कृतिक आयोजन रहा है, और भविष्य में तकनीक के विकास के साथ और भी बृहद बनता जायेगा. इस वर्ष कोविड के विचित्र संक्रमण काल में हरिद्वार कुंभ नये चैलेंज लिये आयोजित हो रहा है, हम सब की नैतिक व धार्मिक  सामाजिक जबाबदारी है कि हम कोविड प्रोटोकाल का खयाल व सावधानियां रखते हुये ही कुंभ स्नान व आयोजन में सहभागिता करें, क्योंकि यदि मन चंगा तो कठौती में गंगा. और मन तभी चंगा रह सकता है जब शरीर चंगा रहे.

प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ इसी धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक कार्यों की हमारी विरासत का साक्षी बना हुआ है।

(चित्र – इंटरनेट से साभार)

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “सड़क पर (नवगीत संग्रह)” – रचनाकार: आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ समीक्षा – आचार्य प्रताप ☆

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “सड़क पर (नवगीत संग्रह)” – रचनाकार: आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ समीक्षा – आचार्य प्रताप

कृति : सड़क पर (नवगीत संग्रह)

रचनाकार: आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ 

प्रकाशन: समन्वय प्रकाशन अभियान

प्रथम संस्करण: वर्ष २०१८

मूल्य: २५०/-

पृष्ठ: ९६

आवरण पेपरबैक बहुरंगी, कलाकार मयंक वर्मा

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

महामारी के उस कठिन काल में जब सारा विश्व एक अदृश्य शत्रु से जूझ रहा था, तब मेरे हाथों में आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नवगीत संग्रह ‘सड़क पर’ आया। किंतु जीवन की व्यस्तताओं और दायित्वों के बीच यह कृति अनछुई रह गई। आचार्य जी का बार-बार आग्रह होता रहा कि इस कृति का संस्कृत में अनुवाद करूँ। उनकी प्रेरणा और विश्वास मेरे लिए सम्मान का विषय था, किंतु मैं अपनी सीमाओं से भलीभाँति परिचित था।

‘न’ कहना मेरे स्वभाव में नहीं और ‘हाँ’ कहकर उनकी अपेक्षाओं को निराश करना मेरे संस्कारों में नहीं। अतः मैं टालता रहा, कभी समय की कमी का बहाना बनाकर, तो कभी अन्य व्यस्तताओं का उल्लेख कर। किंतु आज जब इस कृति को गहराई से समझने का अवसर मिला, तब आचार्य जी की दूरदर्शिता का बोध हुआ।

उनकी यह कृति वास्तव में काल की साक्षी है। ‘सड़क’ के प्रतीक से उन्होंने न केवल जीवन की गति को समझा है, बल्कि उसकी दिशा भी निर्धारित की है। उनकी दृष्टि में जब कोई कवि किसी रचना के अनुवाद का प्रस्ताव रखता है, तो वह मात्र भाषांतरण नहीं चाहता, बल्कि उस रचना में निहित जीवन-दर्शन को नई भाषा में, नए परिवेश में, नई संवेदना के साथ प्रस्तुत करने की अपेक्षा रखता है।

आज पश्चाताप होता है कि मैं उनकी इस दूरदर्शी सोच को समय रहते नहीं समझ पाया। संस्कृत भाषा की समृद्ध परंपरा में ‘सड़क पर’ जैसी आधुनिक कृति का अनुवाद न केवल दो भाषाओं का सेतु बनता, बल्कि प्राचीन और नवीन विचारधाराओं के बीच एक नया संवाद भी स्थापित करता।

आचार्य जी की प्रेरणा वास्तव में साहित्य के क्षेत्र में नए प्रयोगों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी। उनकी दृष्टि में भाषाएँ सीमाएँ नहीं बनातीं, बल्कि संवेदनाओं को विस्तार देती हैं। यही कारण है कि वे एक आधुनिक हिंदी कृति को संस्कृत के वैभव से जोड़ना चाहते थे।

अब जब समय बीत चुका है, तब उनकी इस दूरदर्शिता को समझते हुए मन में एक संकल्प जागता है कि भले ही विलंब हुआ है, किंतु अब इस कार्य को पूर्ण करने का प्रयास करूँगा। क्योंकि कभी-कभी देर से समझी गई बात भी जीवन को एक नई दिशा दे सकती है।

साहित्य की विभिन्न विधाओं में नवगीत का स्थान विशिष्ट है। यह विधा समकालीन जीवन की जटिलताओं और चुनौतियों को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती है। इसी परंपरा में आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ का नवगीत संग्रह ‘सड़क पर’ एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सामने आया है। यह संग्रह वर्ष २०१८ में समन्वय प्रकाशन अभियान से प्रकाशित हुआ। ९६ पृष्ठों का यह संग्रह आधुनिक जीवन की विसंगतियों, आशाओं और सामाजिक यथार्थ का एक जीवंत दस्तावेज है। आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ का नवगीत संग्रह ‘सड़क पर’ समकालीन हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह संग्रह वर्तमान समय की विसंगतियों और चुनौतियों को एक नवीन काव्यात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करता है। ‘सड़क’ यहाँ केवल एक भौतिक मार्ग नहीं, बल्कि जीवन-यात्रा का एक सशक्त प्रतीक बन कर उभरती है।

संग्रह में ‘सड़क’ शीर्षक से नौ कविताएं संकलित हैं, जो जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित करती हैं। कवि ने ‘सड़क’ के प्रतीक के माध्यम से समकालीन जीवन की जटिलताओं को समझने और समझाने का प्रयास किया है। जब वे लिखते हैं – “सड़क पर जनम है, सड़क पर मरण है, सड़क खुद निराश्रित, सड़क ही शरण है” – तो यह पंक्तियां जीवन के यथार्थ को गहराई से व्यक्त करती हैं।

भाषायी दृष्टि से यह संग्रह उल्लेखनीय है। कवि ने सहज और प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है, जो पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है। जैसे:

“रही सड़क पर अब तक चुप्पी,

पर अब सच कहना ही होगा।”

इन पंक्तियों में भाषा की सरलता के साथ विषय की गंभीरता भी बनी हुई है।

‘सलिल’ जी की कविताओं में संवेदना का स्तर बहुआयामी है। वे समाज की विसंगतियों को देखते हैं, उन पर व्यंग्य करते हैं, और साथ ही समाधान की दिशा भी सुझाते हैं। उनकी कविताएं व्यक्तिगत अनुभवों से निकलकर सामाजिक चेतना तक विस्तृत होती हैं।

संग्रह की एक विशिष्ट उपलब्धि है इसका आशावादी दृष्टिकोण। विषमताओं के बीच भी कवि आशा की किरण तलाशता है। जब वे कहते हैं – “कशिश कोशिशों की सड़क पर मिलेगी, कली मिह्नतों की सड़क पर खिलेगी” – तो यह आशावाद स्पष्ट झलकता है।

इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आने वाले ‘सलिल’ जी की कविताओं में तर्क और भावना का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है। उदाहरण के लिए:

“आज नया इतिहास लिखें हम

अब तक जो बीता सो बीता

अब न आस-घट होगा रीता”

माता-पिता को समर्पित कविता में मूल्यों के प्रति कवि की प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है:

“श्वास-आस तुम

पैर-कदम सम,

थिर प्रयास तुम”

संग्रह में सामाजिक यथार्थ की गहरी समझ दिखाई देती है। कवि लिखते हैं:

“सड़क पर शरम है,

सड़क बेशरम है

सड़क छिप सिसकती

सड़क पर क्षरण है!”

हालांकि, कुछ स्थानों पर विषय की पुनरावृत्ति और पारंपरिक नवगीत की सीमाओं का अतिक्रमण भी दिखाई देता है। कहीं-कहीं भाव-विस्तार में संयम की आवश्यकता महसूस होती है।

‘सड़क पर’ हिंदी नवगीत को एक नई दिशा प्रदान करता है। यह संग्रह न केवल काव्य-संग्रह है, बल्कि समय का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है। इसमें व्यक्त आशावाद और कर्मठता का संदेश आज के समय में विशेष प्रासंगिक है। यह पुस्तक साहित्य के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और काव्य-प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ्य सामग्री है। आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने अपनी तकनीकी पृष्ठभूमि और काव्य प्रतिभा का सुंदर समन्वय करते हुए एक सार्थक रचना प्रस्तुत की है, जो निश्चित रूप से हिंदी नवगीत परंपरा में अपना विशिष्ट स्थान रखेगी।

 

समीक्षा – आचार्य प्रताप

साभार – समन्वय प्रकाशन अभियान, जबलपुर, मध्यप्रदेश 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 575 ⇒ हठ – कड़ी ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हठ – कड़ी।)

?अभी अभी # 575 ⇒ हठ – कड़ी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जो किसी अपराधी को हाथों में बांधी जाती है, वह हथकड़ी होती है। आज बँधी है, कल छूट जाएगी, हो सकता है, वह अपराधी न हो। और अगर हो भी तो सज़ा काटने के बाद रिहा भी हो सकता है। देश के लिए मर मिटने वालों के लिए क्या फाँसी और क्या हथकड़ी। फिल्मों और आजकल के टीवी सीरियल ने वैसे भी हथकड़ी को मज़ाक बना दिया है। कई निर्माता निर्देशकों का ऐसा कोई सीरियल नहीं होगा, जिसमें नायक-नायिका ने हथकड़ी न पहनी हो, जेल न तोड़ी हो, और फाँसी के फंदे से वापस न आया हो।

हम इसीलिए हथकड़ी की नहीं हठ-कड़ी की बात कर रहे हैं। हठ एक रोग भी है, और योग भी। आज हम बाल-हठ, त्रिया-हठ और राज-हठ की चर्चा तो करेंगे ही, बाबा  के हठ-योग पर भी सर्च-लाइट डालेंगे।।

तो क्यों न त्रिया चरित्र के बजाय बाबा के हठयोग से ही शुरुआत की जाए। हठयोग प्रदीपिका के अनुसार ह (हकार) हमारी सूर्य नाड़ी अर्थात इड़ा है, और ठ (ठकार )चंद्र नाड़ी सुषुम्ना है। साधारण भाषा में प्राणायाम द्वारा सूर्य-चंद्र (उष्ण-शीतल)का सम अवस्था में सुषुम्ना में प्रवेश होता है, लेकिन अगर योग के नाम पर केवल कठिन आसन और यात्राएं ही निकाली जाएँ, तो वह केवल एक हठ के नाम पर बाजारवाद फैलाना ही है, जिसका समय समय पर राजनैतिक फायदा वैसे ही उठाया जा सकता है, जैसा धर्म के नाम पर राजनीति में होता आया है। कबीर जिस इड़ा पिंगला सुषुम्ना की बात करते हैं, वही अध्यात्म है, वास्तविक हठ योग है।

हठ को आप ज़िद कह दें, जुनून कह दें, चाहें तो एक तरह का पागलपन कह दें। सभी प्रकार के हठ में बाल-हठ निर्दोष और मासूम होते हुए भी दिलचस्प और श्रेष्ठ है। बच्चों जैसी ज़िद कभी कभी बड़े-बूढ़े भी करते हैं, लेकिन अगर एक बार बच्चा ज़िद पर आ गया, तो आकाश पाताल एक कर देता है। वह केवल माँ की सूझ-बूझ ही होती है, जो बच्चे की ज़िद पूरी करने के लिए आसमान के चाँद को जल के थाल में उतरने के लिए मज़बूर कर देती है। बच्चे के पहाड़ जैसे हठ को एक छोटा सा खिलौना पल भर में समतल कर उसके मन को बहला सकता है।।

त्रिया हठ पर अधिक कहना उचित नहीं ! हम सब अपनी गृहस्थी लिए बैठे हैं। जो गुज़र रही है मुझ पर, उसे कैसे मैं बताऊँ। सबके अपने अपने किस्से हैं, अनुभव हैं। एक त्रिया का हठ हमने देखा, जब उसमें राजहठ भी शामिल हो गया। यानी करेला और नीम चढ़ा।

राज हठ में टके सेर भाजी और टके सेर खाजा बिकना कोई बड़ी बात नहीं ! जब यह राजहठ हिटलर बन जाता है तो दुनिया में तबाही खड़ी कर देता है। दुर्योधन के हठ और धृतराष्ट्र के पुत्रमोह के कारण अगर महाभारत हो सकता है, तो एक चाणक्य के अपमान के कारण समूचे नंद-वंश का संहार। यही हठ अगर नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों के खिलाफ आज़ाद हिंद फ़ौज़ खड़ी करने की हिम्मत देता है तो एक लाठी लंगोटी वाले को न केवल महात्मा का दर्ज़ा दिलवाता है, अपितु बँटवारे का दोषी भी करार दिया जाता है।

नमक सत्याग्रह और जेल भरो आंदोलन से क्या कभी किसी देश को आज़ादी मिली है। स्वदेशी भावना के लिए विदेशी कपड़ों की होली जैसी नौटँकी में अगर दम होता, तो बाबा कब के गाँधीजी के अनुयायी हो जाते।।

गुलज़ार साहब ने एक गीत लिखा, चप्पा चप्पा चरखा चले ! उससे प्रेरित हो, एक बार मोदीजी ने चरखा चला भी दिया। लेकिन किसी ने प्रेरणा नहीं ली। जिस देश में गर्मी के मौसम में भी, गन्ने की चरखी को भी कोई नहीं पूछ रहा, वहाँ चरखे का क्या औचित्य ? अब गाँधी-भक्त  डिजिटल चरखा लाने से तो रहे।

हथकड़ी तो इंसान को केवल एक अपराधी ही घोषित करती है, लेकिन हठ, एक ऐसी हथकड़ी है, जो इंसान खुद अपने हाथ से ही पहन लेता है। उसे हठधर्मिता कहते हैं। केवल अपना नुकसान तो ठीक, महापुरुषों का हठ तो देश के साथ भी खिलवाड़ कर गुजरता है। समझौता एक्सप्रेस भले ही न चलाएं, लेकिन जब हठ का मामला हो, थोड़ा ठहर जाएँ। किसी का कहा मान जाएँ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ त्रिवार वंदन… ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे)

 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ त्रिवार वंदन☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

आज १२ जानेवारी .. स्वामी विवेकानंद यांची जयंती .. 

त्यांना ही काव्य-पुष्पांजली श्रद्धापूर्वक अर्पण – – – 

करितो नमन । त्रिवार वंदन।

भारत नंदन | नरेंद्रासी ।। धृ ॥

*

भूवनेश्वरी मां। विश्वनाथ पिता।

जन्म कोलकाता। नरेंद्राचा || ०१ ||

*

शोध अद्वैताचा । गुरू रामकृष्णा।

भागविली तृष्णा । नरेंद्राची|| ०२ ||

*

भारत भ्रमण । विचार श्रवण ।

शुद्ध आचरण । नरेंद्राचे ।। ०३ ।।

*

शिकागो सभेत । मिळविली दाद।

बंधुभावा साद | नरेंद्राची ।। ०४ ।।

*

शिवाचे आगार । आत्मसाक्षात्कार ।

दिला हा विचार | नरेंद्राने || ०५ ।।

*

कर्म भक्ती ज्ञान । आणि राजयोग।

हेची सारे जग । नरेंद्राचे ।। ०६ ।।

कवी : म. ना. देशपांडे

(होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)

+९१ ८९७५३ १२०५९ 

https://www.facebook.com/majhyaoli/ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (13 जनवरी से 19 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (13 जनवरी से 19 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। 14 जनवरी से खरमास समाप्त हो जाएगा। शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे और इस शुभ समयावधि में

मैं पंडित अनिल पांडे आपको 13 जनवरी से 19 जनवरी 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा। मेरा दावा है कि इस साप्ताहिक राशिफल को अगर आप लग्न राशि देखेंगे तो 80% से ज्यादा राशिफल सही मिलेगा। अगर आप इसको चंद्र राशि देखेंगे तो भी 60% से ऊपर बातें सही होगी। अगर आपको यह राशिफल 80% से ऊपर सही नहीं मिलता है तो आप अपनी जन्म तारीख, समय और स्थान मेरे मोबाइल नंबर 8959594400 पर भेज दें। मैं आपको आपकी लग्न राशि बता दूंगा।

इस सप्ताह 14 जनवरी के 3:36 दिन से सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन के कारण विभिन्न राशियों पर पड़ने वाले प्रभाव को हम राशिफल में बताएंगे। इस सप्ताह वक्री मंगल कर्क राशि में, बुध धनु राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा वक्री राहु मीन राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। धन आने की उम्मीद है। भाग्य सामान्य रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। मकर के सूर्य से आपको कम लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 19 जनवरी को आपको कोई भी कार्य वड़ी सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रातः काल स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर सूर्य मंत्रों के साथ सूर्य भगवान को अर्ध्य दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

 इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाग्य से आपको कम सहयोग प्राप्त होगा। धन आने में कुछ बाधू रहेगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। 16 जनवरी के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 जनवरी आपके लिए लाभदायक है।

सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। धन आने की आशा है। धन के खर्चे में कुछ कमी हो सकती है। कार्यालय में आपका विवाद हो सकता है। व्यापार उत्तम चलेगा। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 19 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु जीवनसाथी के साथ में समस्या हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य के स्थान पर आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए। इस सप्ताह भाग्य आपका साथ नहीं देगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 के दोपहर तक का समय विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए शुभ है। 13 जनवरी को आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आप विवाहित हैं तो विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। कार्यालय में आपका काम धाम ठीक रहेगा। भाग्य से कम मदद मिलेगी। प्रयास करने पर आप शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। आपको अपने संतान से सहयोग मिल सकता है। छात्रों की पढ़ाई सामान्य चलेगी। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 16 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए फलदायक है। 14, 15 और 16 की दोपहर तक का समय सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गरीबों के बीच में गुड़ का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी स्थिति उत्तम रहेगी। भाग्य सामान्य साथ देगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। संतान से सहयोग कम मिलेगा। शत्रु शांत रहेंगे। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माता-पिता जी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। लॉटरी इत्यादि में धन न लगाएं। इस सप्ताह आपके लिए तेरह और 19 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। 16 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 जनवरी के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने की उम्मीद है। समाज में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। संतान से आपको कोई सहयोग नहीं मिलेगा। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। उस पर अपना नियंत्रण रखें। इस सप्ताह आपके लिए 16 के दोपहर के बाद से 17 और 18 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए फलदायक है। 13 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार बढ़ेगा। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी आ सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं होगा। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए तेरह और 19 जनवरी लाभदायक है। 14, 15 और 16 जनवरी के दोपहर तक का समय आपके लिए सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति भी होगी। कचहरी के कार्यों में सावधानी बढ़ते हैं लंबी यात्रा का योग बन सकता है भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा आपकी संतान से आपको कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक-ठाक हो सकता है। कचहरी के कार्यों में आप सावधान रहें। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के प्रस्ताव सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि संभव है। शत्रुओं को आप इस सप्ताह प्रयास करने पर समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 16 तारीख के दोपहर के बाद से 17 और 18 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दोनों में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पास थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने और सावधानी बरतने पर सफलता मिल सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके शत्रु शांत रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 19 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए हित वर्धक हैं। 16, 17 और 18 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ शब्दांचे गाठोडे… ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे)

 

? कवितेचा उत्सव ?

शब्दांचे गाठोडे☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

शब्दांचे गाठोडे, घेऊन फिरतो

शिदोरी ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्दांनी बांधतो, शब्दांनी सांधतो

आधार ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्द व्यवहारी, नित्य देतो घेतो

तारण ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्द भांडताना, सीमा ओलांडतो

बोचरा ठरतो, शब्द माझा

 *

तरी काळजीने, शब्दांना मांडतो

ठसका ठरतो, शब्द माझा

कवी : म. ना. देशपांडे

(होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)

+९१ ८९७५३ १२०५९ 

https://www.facebook.com/majhyaoli/ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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