हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – गणित, कविता और आदमी..! ? ?

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

 X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y + Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y)2 = X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 7.35 बजे, 13.9.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 




English Literature – Poetry ☆ – ‘Vivekananda’s Teachings…’ – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~ ‘Vivekananda’s Teachings…~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

☆ ~ Vivekananda’s Teachings~? ☆

O ‘ Mankind! Arise, awake to claim your right

To get the inner peace, and  bright divine light

Break free from worldly fear, and ignorance too

And, let the knowledge and humility guide you

 *

Be strong, be fearless, and conquer  your mind

Let divine writ rule, and may your heart be kind

Be in  service  to  all, as you find your own bliss

And with selflessness, you’ll never fall in abyss

 *

May  his  words  inspire,  and  ignite your soul

May  love  and  light, make your  heart  whole

May  you  shine  bright,  with  peaceful  solace

And, may your soul, find its most sacred place

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

24 September 2024

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈



हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆ हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆

✍ हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मतलब पे नहीं झूठ को तू सत्य कहा कर

इतना भी न किरदार से तू दोस्त गिरा कर

*

इंसान करे जैसा है अंजाम भी वैसा

मज़लूम पे ऐसे न सितम देख किया कर

*

मलहम न लगा सकते न कर सकते हवा गर

ज़ख्मों पे किसी के नहीं तू लौन मला कर

*

अल्लाह हर इक वंदे की करता है ख़ता मुआफ़

मतलब नहीं है ये कि ख़ताऐं तू किया कर

*

ये शौक़ ख़राबात के लाते है सड़क पर

फिर क्या तू करेगा बता विरसे को उड़ा कर

*

ये प्यार भी क्या चीज है दो ज़िस्म हों इक जां

खुद अश्क़ बहाते है सनम तुमको सता कर

*

दमकल के नहीं वश का बुझा पाना है देखो

नफ़रत के शरारों से कभी आग लगा कर

*

हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना

यक ज़हती को मजबूत करो दिल को मिला कर

*

भारी कोई हुंडी या खज़ाना मिला है क्या

जो आपने हासिल किया है मुझको भुला कर

*

खरसूदा रिवायात है सदियों से अभी तक

क्या पाया है दुनिया ने मुहब्बत को ज़ुदा कर

*

दे आया है बदले में तू ईमान व पगड़ी

क्या पास अरुण रह गया है ताज को पा कर

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 5 ☆ लघुकथा – जल है तो कल है… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – “जल है तो कल है“।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 5 ☆

✍ लघुकथा – जल है तो कल है… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह 

जल की उपयोगिता और आवश्यकता बताने के लिए तरह तरह के नारे लगाए जा रहे हैं। रणजीत जब भी घर में देखता है कि नल चल रहा है और उसकी मम्मी बर्तन घिस रही है। यानी पानी बेकार बह रहा है। वह चीख पड़ता है, “मम्मी, प्लीज़, नल तो बंद कर दो, पानी बेकार बह रहा है। अगर ऐसे ही पानी बहाना है तो यह स्लोगन क्यों टाँग रखा है, “जल है तो कल है।”

रणजीत घर से बाहर निकल जाता है। उसका मन उदास हो जाता है। अभी वह दस वर्ष का है और सोचता है ” जब मैं जवान होऊंगा तो पानी की हालत क्या होगी।  क्या हम प्यासे ही मर जाएंगे?”  वह अपनी गर्दन झटकता है, “नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अपने भविष्य के लिए कुछ करना होगा।” सोहन की आवाज़ सुनकर वह होश में आता है। सोहन पूछता है,”कहाँ खोए हुए थे।” विचारमग्न अवस्था में रणजीत ने सोहन से पूछा, ” तुम्हारे घर में ऐसा होता है कि नल चलता रहे और पानी बहता रहे।” सोहन बोला, “हाँ होता है, माँ बर्तन माँजती है तो नल चलता रहता है। ऐसे ही नहाते समय भी होता है कि हम साबुन लगा रहे होते हैं पर नल चलता रहता है। लेकिन हुआ क्या?”

रणजीत ने धीरे से कहा, ” यार ऐसे ही चलता रहा तो हम बड़े होकर प्यासे ही मर जाएंगे। हमारे लिए तो पानी बचेगा ही नहीं।  सब कहते हैं, जल है तो कल है, पर कल की चिंता तो किसी को है ही नहीं।”  सोहन बोला, ” हाँ रणजीत मैंने जगह जगह लिखा देखा है, जल है तो कल है, पर पानी बरबाद करते रहते हैं।  मैंने बड़े लोगों के मुँह से सुना है कि जमीन में पानी का लेवल नीचे चला गया है, पीने के पानी का संकट बढता जा रहा है।” रणजीत बोला, ” यही तो मेरी चिंता है पर हम छोटे बच्चे हैं, करें क्या?” सोहन बोला, “कहते तो तुम ठीक हो। क्या स्कूल में अपनी मिस से बात करें। वो बहुत अच्छी हैं और बड़ी भी हैं, हमारी बात सुनेंगी और कुछ करेंगी भी। घर में तो किसी से कहना बेकार है। ऐसी बातों को फालतू समझते हैं।” “तो मिला हाथ, कल मिस से बात करेंगे।” सोहन गर्व से बोला। लेकिन दोनों बच्चों ने और प्रयास किए और अपनी क्लास के बच्चों को भी बताया। पूरी क्लास के बच्चे मिस से बात करने को तैयार हो गए।

जब मिस से बात की तो वह बहुत प्रभावित हुई और उसने कहा कि शुरूआत घर से ही होनी चाहिए। उसने कहा ” घर जाकर एक तख्ती पर लिखना “हमारी रक्षा करो, जल है तो कल है, और हम ही कल हैं।”  और दो दो या चार बच्चे वह तख्ती लेकर अपनी सोसायटी में मेन गेट के पास ऐसे खड़े होना कि आने जाने वाले सभी लोग तख्ती देख पढ सकें।”… “और हाँ अगले दिन तख्ती लेकर स्कूल में आ जाना।” बच्चों ने ऐसा ही किया। लोग रुकते और तख्ती पढकर अपने घर चले जाते।  रणजीत जब अपने घर पहुँचा तो उसकी मम्मी ने बड़े लाड़ से अपने पास बिठाया और दोनों कानों पर हाथ रखकर कहने लगी ” सॉरी रणजीत, ऐसी गलती अब नहीं होगी।” ऐसा ही कुछ सोहन के यहाँ भी हुआ। रणजीत अपनी सफलता पर बहुत खुश हुआ। अगले दिन रणजीत की क्लास के बच्चे स्कूल पहुँचे तो अपने अपने घर के अनुभव मिस को सुनाए। अब मिस ने स्कूल छूटने के समय उन बच्चों को एक कतार में खड़ा कर दिया जहाँ बच्चों को लेने पेरेंट्स आते हैं। सभी बच्चों के पेरेंट्स ने पढा। दूसरे दिन स्कूल के सभी बच्चे तख्ती बनाकर ले आए। और तख्ती हाथ में लेकर स्कूल से निकलने लगे।

 मिस ने बच्चों को समझाया कि जब किसी चौराहे पर लाल बत्ती देखकर तुम्हारी गाड़ी रुक जाए तो गाड़ी से उतर कर सबको तख्ती दिखलाओ। धीरे धीरे तख्ती की खबर मीडिया तक पहुँची। और अखबारों तथा चैनलों पर इसकी चर्चा होने लगी। रणजीत और सोहन बहुत खुश थे कि उन्होंने अपने कल के लिए कुछ तो किया। अपना कल बचाने की दिशा में एक छोटा सा कदम।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : सप्तगिरी सोसायटी, जांभुलवाडी रोड, आंबेगांव खुर्द, पुणे 411046

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 577 ⇒ बहुत बड़ा आदमी ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बहुत बड़ा आदमी।)

?अभी अभी # 577 ⇒ बहुत बड़ा आदमी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

हमारे शहर में जब जैमिनी सर्कस आता था, तो शाम को आकाश से सर्च लाइट चमकती थी और दिन में दो लंबे बांस के ऊपर चलता आदमी जैमिनी सर्कस का प्रचार करता हुआ सड़क पर चलता नज़र आता था। हमारी नज़र में तब वह सबसे बड़ा आदमी नज़र आता था।

समय समय की बात है ! जैसे जैसे हम बड़े होते गए, बड़े और बहुत बड़े आदमी की परिभाषा बदलती चली गई। सड़क पर खड़े पुलिस वाले से, पुलिस बाबा राम राम कहना, बड़े फख्र की बात थी, और जब वह जवाब देता, तो यही फीलिंग आती थी, मानो किसी बड़े आदमी से मिलकर आ रहे हों। जब कोई बड़ा आदमी पूछता, बेटा, बड़े होकर क्या बनोगे, तो मुँह से झट से पुलिस वाला ऐसा निकलता था, मानो अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की बात कही हो।।

ईश्वर की निगाह में हर इंसान बराबर है। आदमी की एक जात होती है, लेकिन हर आदमी की अपनी औकात भी होती है। आप सुविधा की दृष्टि से इन्हें छोटा आदमी, आम आदमी, बड़ा आदमी और बहुत बड़ा आदमी कह सकते हैं।

छोटा आदमी बड़ा सुखी होता है, वह सिर्फ आदमी बनना चाहता है। उसे बड़ा आदमी नहीं बनना ! बड़ा आदमी बनना इतना आसान भी नहीं। खूब पढ़ना-लिखना, धंधा-व्यापार करना, रिश्वत लेना-देना, शेयर मार्केट पर नज़र रखना सबके बस की बात नहीं। राजनीति में चालाक, धूर्त, बेईमान और स्वार्थी बने बिना क्या कोई बड़ा आदमी बना है। ईमानदार बनने और दिखने में बड़ा अंतर होता है।।

कोशिश करके छोटा आदमी, आदमी भी बना रह सकता है, और बड़ा आदमी भी बन सकता है, लेकिन बहुत बड़ा आदमी बनना इतना आसान नहीं ! आपकी पहुँच किसी बड़े आदमी तक तो आसानी से हो सकती है, लेकिन बहुत बड़े आदमी तक पहुँचने के लिए आपको कम से कम बड़ा आदमी तो बनना ही होगा।

हममें से बहुत, बड़े आदमी बन गए, लेकिन उनमें से जो बहुत बड़े आदमी बन गए, वो हमसे बहुत दूर चले गए। अब हम उनके महज प्रशंसक बन रह गए। आप whatsapp पर अपने मित्रों, रिश्तेदारों और परिचितों से जुड़ सकते हो। कई बड़े आदमी आपके फेसबुक फ़्रेंड भी हो सकते हैं। लेकिन बहुत बड़ा आदमी आजकल केवल ट्विटर पर उपलब्ध होता है, और फेसबुक पर वायरल होता है।।

बहुत बड़े आदमी आजकल ट्वीट करते हैं। ट्विटर पर उनके प्रशंसकों के आंकड़े आते हैं। बहुत बड़े आदमी के प्रशंसक ही फेसबुक पर उसका मोर्चा संभाल लेते हैं। बहुत बड़े आदमी का सम्मान उनका सम्मान होता है, और बहुत बड़े आदमी का अपमान, उनका अपना अपमान। आप बहुत से बड़े आदमियों को जानते होंगे, लेकिन वे आपको नहीं, केवल अपने प्रशंसकों को जानते हैं। हर आदमी किसी बहुत बड़े आदमी को जानता है, लेकिन बहुत बड़ा आदमी उस आदमी को नहीं जानता।

बहुत से आदमी आज भी ऐसे हैं जो सिर्फ बिग बी और मोदी जी को ही बहुत बड़ा आदमी मानते हैं। बहुत बड़े आदमी को जाना नहीं जाता, सिर्फ माना जाता है। इसमें आखिर अपना क्या जाता है। आप जिसे चाहें बड़ा आदमी मानें, जिसे चाहे, बहुत बड़ा आदमी, आपकी मर्जी, आपकी पसंद। बस, उसमें एक खूबी हो, वह आदमी पहले हो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 55 – मिस मैचिंग…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मिस मैचिंग।)

☆ लघुकथा # 55 – मिस मैचिंग  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

एक रिसोर्ट में पार्टी हैं ऑफिस के सभी लोग अपने परिवार के साथ आ रहे हैं। मेरे बॉस सुशांत सर ने कहा है कि तुम्हें जरूर आना है। तुम ठीक 1:00 बजे पहुंच जाना अरुण ने फोन पर कहा। घर के काम और सभी की सेवा में रोज लगी रहती हो देखना देर नहीं होनी चाहिए?

प्राची ने अपनी सास से कहा कि मां मुझे ऑफिस की पार्टी में जाना है घर का सारा काम हो चुका है मैं 11:00 बजे निकलती हूं तभी समय पर वहां पहुंच पाऊंगी।

सास ने हां कर दी बोली तुम जाओ तुम्हारे पति को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। उसने जीवन में कोई काम अच्छा नहीं किया। लेकिन, तुम्हें चुनकर हमारे लिए यह काम सबसे अच्छा किया है।

वह तैयार होकर पीले परिधान में जाती है पर उसका उसे शूट के साथ का दुपट्टा नहीं मिल रहा था इसलिए उसने लाल रंग का दुपट्टा डाला और एक पीला शॉल लेकर घर से बाहर निकली।

उसे विचार आया कि क्यों ना मैं सिटी बस में बैठकर आराम से जाती हूं, एंजॉय करते हुए जैसे कॉलेज में अपनी सखियों के साथ जाती थी। बस में बैठकर उसने कंडक्टर से कहा जब सिटी पार्क आएगा तो मुझे बता देना ।

बस पूरी खचाखच भरी थी उसमें कुछ बेचने वाले भी चढ़ गए थे। कई लोग खरीद भी रहे थे।  उसने भी दो कान के झुमके और चूड़ियां खरीद लिया।

फिर सोचने लगी की कॉलेज के दिन कितने अच्छे थे तब अरुण मेरा कितना ख्याल भी रखते थे लेकिन यह नहीं पता था कि वह अकाउंटेंट और गणित में इतना खो जाएंगे। एक-एक चीज का हिसाब किताब रखेंगे। अब तो पल-पल और सांसों का भी हिसाब किताब रखते हैं।

काश! मैं भी कुछ काम करती लेकिन घर में सब लोगों के चेहरे पर खुशी देखकर मुझे एक  शांति मिलती है।

तभी फोन की घंटी बाजी। उसने उठाया और कहा हेलो इतनी देर से मैं तुम्हें फोन कर रहा हूं तुम फोन उठा क्यों नहीं रही हो, घर से निकली या नहीं?

हां मैं घर से निकल चुकी हूं आप चिंता मत करो  सिटी पार्क में आपको मिल जाऊंगी। आधे घंटे में मैं वहां पहुंच जाऊंगी। अरे तुम तो जल्दी आ गई। ठीक है मैं भी ऑफिस से वहां पर पहुंच जाता हूं। वह जैसे ही बस से उतरती है तो देखती है कि अरुण वहीं पर खड़ा है। तुमने झूठ क्यों कहा कि तुम देर से पहुंचोगे।

यह तुमने क्या पहन रखा है?

आज के दिन पीला कलर का कपड़ा पहनना चाहिए और मुझे दुपट्टा नहीं मिल रहा था ? आजकल फैशन भी यही है?

अरुण धीरे से मुस्कुराया। तुम अच्छी लग रही हो।

मैं या मेरे कपड़े प्राची ने कहा।

तुम्हारे कपड़े भी हमारी तरह है हम लोग भी अलग होकर एक है मिस मैचिंग।

प्राची ने कहा – जिस तरह खिचड़ी संक्रांति में सब कुछ डालकर बनती है हम लोग भी ऐसे हैं।

दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रिसोर्ट में जल्दी जल्दी जाने लगते हैं।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचनाएँ/Information ☆ डॉ. ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को बाल साहित्य कार्यों के लिए मिला मानद डॉक्टरेट – अभिनंदन ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

डॉ. ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को बाल साहित्य कार्यों के लिए मिला मानद डॉक्टरेट – अभिनंदन ☆

प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ. ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए विश्व संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण आयोग द्वारा मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया है। डॉ. क्षत्रिय को यह सम्मान बाल साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान और समाज सेवा के लिए दिया गया है। उनकी कई बाल पुस्तकें बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और उन्होंने बच्चों के मन में पढ़ने की आदत डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

डॉ. क्षत्रिय ने न केवल बाल साहित्य के माध्यम से बल्कि विभिन्न सामाजिक कार्यों के माध्यम से भी समाज सेवा की है। उन्होंने कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम किया है और जरूरतमंद लोगों की मदद की है।

विश्व संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण आयोग के निदेशक मंडल ने डॉ. क्षत्रिय के कार्यों को देखते हुए उन्हें यह सम्मान देने का निर्णय लिया। आयोग का मानना है कि डॉ. क्षत्रिय ने बाल साहित्य और सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है।

इस अवसर पर डॉ. क्षत्रिय ने कहा, “मुझे यह सम्मान मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं इस सम्मान को समर्पित करता हूँ अपने सभी पाठकों को, जिन्होंने हमेशा मुझे प्रेरित किया है।”

💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी को इस विशिष्ट उप्लब्धि के लिए हार्दिक बधाई 💐

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈




मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 256 ☆ तिळगुळ… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 256 ?

☆ तिळगुळ… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

संक्रातीच्या गोड दिवसाच्या ,

अनेक आहेत आठवणी,

हेडसरांच्या घरी,

मिळायची मोठ्ठी तिळवडी!

आईच्या चंद्रकळेवर,

चांदण्याची खडी ,

संक्रातीचा दिवस खूपच छान,

लहानपणी नव्हतंच कसलं भान !

  आत्ताच आला ,

बालमैत्रीणीचा फोन,

“तिळगुळ घे गोड बोल”

म्हटलं, “तिळगुळ घे गोड बोल”!

 

“ओवसून आलीस का ?”

म्हटलं , “नाही गं , तसलं काही नाही करत !”

पूर्वी हे सर्व केलंय रूढी परंपरेनं,

अंतर्मुख झाले तिच्या फोन नं !

पारंपरिक जगणं,

सोडून माणूस म्हणून,

जगण्याचा ध्यास घेतला —

तेव्हापासूनच आयुष्य,

मुक्त होत गेलेलं!

जगण्याचे दोन प्रवाह,

समांतर!!

बदललं आयुष्य पण—

तिळ आणि गुळ तोच —

जीवनाची गोडी वाढवीत,

दरवर्षीच तो संदेश देणारा–

  तिळगुळ घ्या गोड बोला

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार

पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सण संक्रांतीचा… ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे

?  कवितेचा उत्सव  ?

☆ सण संक्रांतीचा… ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

 सण संक्रांतीचा येता,

 सुगीचा हा काळ आला!

निसर्गाच्या लयलुटीचा,

 बहर सर्वत्र पसरला !… १

 *

 निरभ्र आकाशात जमला,

 रंगीत पतंगांचा मेळा!

 आनंद त्याचा लुटण्याला,

 सान – थोर झाले गोळा!… २

 *

 तिळगुळ आणि हलव्याचा,

 सुगंध मनी दरवळला!

 थंडीत शेकोटीचा आनंद,

 जमले सगळे लुटण्याला!… ३

 *

 जात, धर्म, पंथ सगळे,

 विसरून जाती आनंदात!

 एकमेकाप्रती सौहार्दाचा,

 तिळगुळ देऊन सौख्य लुटत!… ४

 *

 होता सूर्याचे संक्रमण,

 दिवस होई मोठा मोठा!

 ऋतुचक्राच्या संगतीत,

 लुटु या आनंदाचा साठा!… ५

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈



मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हिंदमाता- हिंदपुत्र… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हिंदमाता- हिंदपुत्र… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

(राजमाता जिजाऊ व स्वामी विवेकानंद यांचे जयंती थोरवीस)

 एक ज्ञानयोगी एक राजमाता

थोर शौर्यगाथा जिजा नरेंद्र.

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दोन्ही सुसंस्कारे हिंदवी धर्माशी

सज्ञाने कर्माशी अहंः विनाशा.

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भुमी उपासना देशास अखंड

गुलामीस बंड विचार निती.

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 विवेक शिवबा जन्मा प्रजारक्षे

स्वरुप प्रत्यक्षे दुष्टासंहार.

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माऊली जिजाऊ नरेंद्र ज्ञानेश

भारता संदेश हिंदवी गाथा.

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 वंदावे प्रार्थना मुर्तींचे चरण

असावे स्मरण सुस्वराज्याशी.

 

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈