हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तब लिखो..! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – तब लिखो..!  ☆

(एक पुरानी रचना, नए कलेवर में)

थोड़ा पढ़ो

कुछ गुनो

कम बोलो

अधिक तौलो,

निरंतर सुनो

अविराम सोचो

हरेक से सीखो

तब लिखो..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #31 – शालीन वारा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “शालीन वारा”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 31☆

 

☆ शालीन वारा ☆

 

दुःख माझे काल आलो सोडुनी होतो वनी

ते पुन्हा श्वानाप्रमाणे काढते मज शोधुनी

 

राहिला शालीन वारा आज कोठे सांग ना

गंध आणिक श्वास नेला आज त्याने चोरुनी

 

हिरवळीवर चालताना चाल थोडी हुरळली

अन् तिच्याशी प्रीत जडता पाय गेले गोठुनी

 

एवढी का थंड आहे सहज होतो बोललो

तापली सूर्याप्रमाणे चूक केली बोलुनी

 

जन्म हा काट्यात जातो ह्या गुलाबाचा तरी

हास्य ओठावर सदोदित सांग येते कोठुनी

 

पान कोरे हे बदामी उडत आले अंगणी

मीच त्यावर नाव माझे घेतले मग कोरुनी

 

कागदावर वचन होते अक्षरांना भान ना

काय पत्राचे करू त्या टाकले मी फाडुनी

 

लाकडांचे देह जळती या इथे सरणावरी

हुंदकाही येत नाही का कुणाचा दाटुनी ?

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८




हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 20 ☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  डा ज्योति गजभिये जी के कहानी संग्रह  “बिन मुखौटों की दुनिया ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.   श्री विवेक जी ने पुस्तक की भूमिका एवं कहानियों के शीर्षक विवरण जिस तरीके से  प्रस्तुत  किया है वह पुस्तक के  उच्च साहित्यिक स्तर  को प्रदर्शित करता है।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 20☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया  

पुस्तक –बिन मुखौटों की दुनिया

लेखिका – डा ज्योति गजभिये

प्रकाशक – अयन प्रकाशन नई दिल्ली

मूल्य –  220 रु  हार्ड बाउंड पृष्ठ 116

☆ कहानी संग्रह  –  बिन मुखौटों की दुनिया – डा ज्योति गजभिये –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

कहानी, अभिव्यक्ति की वह विधा है जो परिवेश को आत्मसात कर इस तरीके से लिखने का कौशल चाहती है कि पाठक उस वर्णन में स्वयं का परिवेश ढ़ूंढ़ सके, घटना को महसूस कर सके. डॉ ज्योति गजभिये मूलतः अहिन्दी भाषी हैं, हिन्दी कहानीकार के रूप में सर्वथा नई है. यद्यपि उनकी क्षणिका, कविता, गजल, शोध प्रबंध की पुस्तकें आ चुकी हैं. उन्होने नासिरा शर्मा के कथा साहित्य पर शोध किया है.

प्रस्तुत किताब में उनकी कुल १४ बेहतरीन कहानियां प्रकाशित हैं. अपनी भूमिका में वे कविता की तरह लिखती हैं “शब्दो को ठोक पीट कर वाक्य तैयार कर रही थी, कहानी लिखते हुये भी जब कविता कही से आकर अपनी झलक दिखला जाती तो उसे समझा बुझाकर वापस भेजना पड़ता”. यह सच है कि महानगरीय वातावरण संवेदना शून्य हो चला है, लोग नम्बरो और घड़ी के कांटो की तरह वहीं के वहीं घूम रहे हैं. यह दशा मनोरोगों को जन्म दे रही है. इसे ज्योति जी ने बारीकी से पकड़ा और अपना कथानक बनाया है.

संग्रह में बिरजू नही मरेगा, कवि सम्मेलन का आखिरी कवि, भूखे भेड़िये, टुकड़ा टुकड़ा प्यार, अनोखा ब्याह, कुलच्छिनी, नये जमाने की लड़की, बिन मुखौटो की दुनियां, फकीर नबाब, मिट्टी की खुश्बू, मन्नत का धागा, हीर का तीसरा जन्म, शेष हो तुम मेरे भीतर तथा  महापुरुष शीर्षको से कहानियां संग्रहित हैं. किसी कहानी को मैं कमजोर नही कह सकता. हां बिन मुखौटो की दुनियां जिस पर पुस्तक का नाम रखा गया है, सच ही प्रभावी कहानी है. कहानियां संवाद शैली में बुनी गई हैं, पठनीय  हैं. फ्लैप पर सूर्यबाला जी ने सही ही लिखा है ज्योति जिसे और परिष्कृत कहानियो की उम्मीद हिन्दी साहित्य जगत को है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 31 – जीवनदान ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  – एक  भावप्रवण शिक्षाप्रद लघुकथा  “ जीवनदान ”।  यदि कोई भी स्त्री साहसपूर्ण सकारात्मक निर्णय ले तो निश्चित ही समाज की  कुरीतियों पर कुठाराघात कर किसी को भी जीवनदान  दिया जा सकता है।  फिर जीवनदान मात्र जीवन का ही नहीं होता, पश्चात्ताप के पश्चात  प्राप्त जीवन भी किसी जीवनदान से काम नहीं है। अतिसुन्दर लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 31 ☆

☆ लघुकथा – जीवनदान ☆

 

गांव में ठकुराइन कहने से एक अलग ही छवि उभरती थी। कद- काठी से मजबूत अच्छे अच्छों को बातों से हरा देना और जरुरत पड़ने पर  खरी-खोटी बेवजह सुनाना उनका काम था। पूरे गांव में ठकुराइन का ही शासन चलता था। उनके तेज तर्रार रूप स्वभाव के कारण उसका पति जो गांव का सरपंच था, अपनी सब बातों में चुप ही रहता था। जो ठकुराइन कह दे वही सही होता था। किसी में हिम्मत नहीं थी उनकी बात काटने या किसी बात की अवहेलना करने की।

उसका बेटा मां के अनुरूप ही निकला था। घर की बहू और अन्य महिलाओं को सिर्फ घर के काम काज, चूल्हा चौकी तक ही सीमित देखना चाहता था। गरीब घर से बहू ब्याह कर लाने के बाद, बहु पूरा दिन घर में काम करती थी। और बाकी के समय सासू मां की सेवा।

सख्त हिदायत दी गई थी कि घर में पोता ही होना चाहिए। बहु बेचारी सोच-सोच कर परेशान थी। समय आने पर घर में खुशी का माहौल बना, परंतु पोती होने पर उस नन्हीं सी जान को बाहर फेक आने तक की सलाह देने लगी ठकुराइन। बहू ने कहा… “आप जो चाहे सजा मुझे दे, पर बिटिया को मारकर आप स्वयं पाप के भागीदार ना बने।” सासू माँ ने कहा…. “ठीक है इस लड़की का मुंह मुझे कभी ना दिखाना। चाहे तू इसे किसी तरह पाल-पोस कर बड़ा कर, मुझे कोई मतलब नहीं है। परंतु मेरे सामने तेरी लड़की नहीं आएगी।”

माँ ने सभी शर्तें मान ली। बिटिया धीरे-धीरे बड़ी हुई। घर में दूसरा बच्चा पोता भी आ गया। परंतु सासू मां के सामने नन्हीं बच्ची को कभी नहीं लाया जाता था। बड़ी होती गई बिटिया स्कूल में पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी। पढ़ाई करते-करते कब बड़ी हो गई, माँ को पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे सभी प्रकार की परीक्षा पास करते गई और एक दिन IAS परीक्षा पास कर कलेक्टर बन गई।

आज गांव के स्कूल का मैदान खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम था गांव की एक बिटिया का पढ़ लिख कर कलेक्टर बन कर गांव में आना। बिटिया को जिस स्कूल में वह पढ़ी थी उसी स्कूल में सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था। ठकुराइन को महिला मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। पूरा गाँव जय जयकार कर रहा था। दादी नीचे सिर किए बैठी-बैठी सभी का भाषण सुन रही थी। सम्मानित करने के लिए, बिटिया को मंच पर खड़ा किया गया और आवाज़ लगाई गई।

तालियों की गड़गड़ाहट से स्कूल परिसर गूंज उठा। दादी रुंघे गले से और आंखों में पश्चाताप के आंसू लिए अपनी पोती को देख रही थी। लगातार आँसू बह रहे थे। बिटिया ने कहा…. “आज यह सम्मान मैं अपनी दादी के हाथों लेना चाहूंगी। क्योंकि मुझे जीवन दान देकर, दादी ने मुझ पर उपकार किया था। आज इस सफलता पर मेरी दादी ही मेरे लिए सबसे महान है।”

दादी ने नीचे सिर किए ही बिटिया को गले में माला पहनाई और धीरे से कान में पोती को कहा…. “अब मैं समझ गई बिटिया भी बेटों से कम नहीं होती। अगले जन्म में मैं तुम्हारी बिटिया बनकर आना चाहूंगी। ईश्वर से मेरी प्रार्थना है “और कसकर अपने बिटिया रानी को गले से लगा लिया। माँ भी बहुत खुश थी। आज एक महिला ने सारी कुरीतियों को त्याग कर एक लड़की का सम्मान किया और सारा गिला शिकवा भूलकर गर्व से मुस्कुरा रही थी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश




सूचनाएँ/Information ☆ राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान 2019 हेतु बाल कहानियां आमंत्रित ☆ प्रस्तुति -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

सूचनाएँ/Information

☆ राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान 2019 हेतु बाल कहानियां आमंत्रित  ☆

सभी बाल साहित्यकारों से बालकहानी आमंत्रित है. बाल कहानी संदेशप्रद होनी चाहिए. मगर, संदेश या उपदेश सीधा व्यक्त न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए दिनांक 25 फरवरी 2020 तक बाल कहानियाँ सादर आमंत्रित है.
  1. बाल कहानियां पशु पक्षी, जीव जंतु, मूर्तअमूर्त वस्तु के पात्र ले कर रची गई हो.
  2. कहानी में सरस, सरल और सहज वाक्यों को समावेश हो, इस बात का ध्यान रखिएगा. वाक्य छोटेछोटे हो. मंनोरंजक और उद्देश्यपरक कहानियों को प्राथमिकता दी जाएगी.
  3. बालकहानी में कथा तत्व का समावेश हो.
  4. आप की सर्वश्रेष्ठ एक बालकहानी की तीन प्रतियां ए—4 आकार के कागज पर एक ओर लिख कर या टाईप करवा कर भेजे. उस में कहीं नाम,पता या कोई पहचान चिह्न अंकित न हो इस बात का ध्यान रखे. अपना संक्षिप्त परिचय व एड्रेस अलग से A-4 साइज कागज पर लिख भेजे जिसमे कहानी का शीर्षक लिखते हुए मौलिकता की घोषणा भी अंकित करें
  5. इसे पंजीकृत डाक या कूरियर से — राजकुमार जैन राजन,  चित्रा प्रकाशन,  आकोला -312205 (चित्तौड़गढ़) राजस्थान  के पते पर अंतिमतिथि के पूर्व प्रेषित कर दें. ताकि समय सीमा में यह प्राप्तकर्ता को मिल सकें.
  6. एक प्रति जिस में पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर और मेल आईडी लिखा हो. उसे  [email protected]  मेल  पर भेजे के विषय में — राष्ट्रीय बालसाहित्य सम्मान 2019 हेतु बालकहानियां , लिख कर संलग्नक के साथ पहुंचा दे.
  7. कहानी यूनीफॉण्ट या मंगलफोंट में  टाइप कर के वर्ड फ़ाईल में भेजे।
  8. प्रतियोगिता में स्वीकृत और मापदंड पर खरी उतरी  बालकहानियों का एक संकलन प्रकाशित कर, उनके रचनाकारों को समारोह में स्मृति चिह्न, नगद राशि के साथ ससम्मान पुरस्कार के साथ प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार प्रथम ₹. 3100/-, द्वितीय ₹.2100/-, तृतीय ₹.1100 एवम 5 प्रोत्साहन पुरस्कार देय होंगे।
संपादक/ संयोजक
-ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
-राजकुमार जैन राजन



आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।

एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।15।।

 

अन्य ज्ञान औ” यज्ञ से करते मुझे प्रणाम

पूजा करते विविध विधि दे विश्वेश्र्वर नाम।।15।।

 

भावार्थ :  दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

 

Others also, sacrificing with the wisdom-sacrifice, worship Me, the all-faced, as one, as distinct, and as manifold.।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पिंजरा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

(We present an English Version of this Hindi Poetry “पिंजरा”  as  ☆ Caged Willpower ☆.  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation. )

☆ संजय दृष्टि  – पिंजरा ☆

 

पिंजरे की चारदीवारियों में

फड़फड़ाते हैं मेरे पंख

खुला आकाश देखकर

आपस में टकराते हैं मेरे पंख,

मैं चोटिल हो उठता हूँ

अपने पंख खुद नोंच बैठता हूँ

अपनी असहायता को

आक्रोश में बदल देता हूँ,

चीखता हूँ, चिल्लाता हूँ

अपलक नीलाभ निहारता हूँ,

फिर थक जाता हूँ

टूट जाता हूँ

अपनी दिनचर्या के

समझौतों तले बैठ जाता हूँ,

दुःख कैद में रहने का नहीं

खुद से हारने का है

क्योंकि पिंजरा मैंने ही चुना है

आकाश की ऊँचाइयों से डरकर

और आकाश छूना भी मैं ही चाहता हूँ

इस कैद से ऊबकर,

एक साथ, दोनों साथ

न मुमकिन था, न है

इसी ऊहापोह में रीत जाता हूँ

खुले बादलों का आमंत्रण देख

पिंजरे से लड़ने का प्रण लेता हूँ

फिर बिन उड़े

पिंजरे में मिली रोटी देख

पंख समेट लेता हूँ,

अनुत्तरित-सा प्रश्न है

कैद किसने, किसको कर रखा है?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास #1 ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(हम श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा प्रस्तुत उनके यात्रा संस्मरण बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  को हमारे पाठकों के साथ साझा करने के लिए हृदय से आभारी हैं।  श्री अरुण जी ने इस यात्रा के  विवरण को अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में  हमारे पाठकों के लिए उपलब्ध किया है। श्री अरुण जी ने अपने ऐतिहासिक अध्ययन के साथ सामंजस्य बैठा कर इस साहित्य को अत्यंत ज्ञानवर्धक बना दिया है। अक्सर हम ऐसे स्थानों की यात्रा तो कर लेते हैं किन्तु हम ऐसे स्थानों के इतिहास पर कभी ध्यान नहीं देते और मोहक दृश्यों और कलाकृतियों के दर्शन मात्र तक सीमित कर लेते हैं।  यह यात्रा संस्मरण श्रृंखला निश्चित ही आपको एक नूतन अनुभव देगी।  आपकी सुविधा के लिए इस श्रंखला को हमने  चार भागों में विभक्त किया है जिसे प्रतिदिन प्रकाशित करेंगे। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।)

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ बादामी और हम्पी : भूला बिसरा इतिहास  ☆

बंगलौर प्रवास पर हूं। मेरे भतीजे अनिमेष के पास पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। मुझे प्रसन्नता है कि पुस्तकें पढ़ने की जो परिपाटी मेरे माता-पिता ने साठ के दशक में शुरु की थी, वह परम्परा तीसरी पीढ़ी में भी जारी है। मेरे पुत्र अग्रेश, पुत्री निधि और भतीजे अनिमेष के संग्रह में मुझे हमेशा कुछ नया पढ़ने को मिलता है, पर यह सब क़िताबें अंग्रेजी में हैं और उन्हें मैं धीमें धीमें पढ़ता हूं। अब अच्छा है कि मोबाइल में शब्दकोश है सो कठिन व अनजान अंग्रेजी शब्दों के अर्थ खोजने में ज्यादा श्रम नहीं करना पड़ता। अनिमेष ने इतिहास में मेरी रुचि को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी शोधकर्ता जान एम फ्रिट्ज व जार्ज मिशेल दर्शाया लिखित ‘Hampi Vijayanagara’ पुस्तक पढ़ने को दी। किसी विदेशी लेखक भारतीय पुरातत्व व इतिहास पर पुस्तक पढने का यह मेरा प्रथम प्रयास है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मेरी प्रबल इच्छा आंध्र प्रदेश की सीमा पर तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित हम्पी जाने की हो रही है।

अपने आप में राम व बानरराज सुग्रीव की मित्रता संबंधित अनेक कहानियां समेटे यह पर्यटक स्थल कभी विजयनगर राज्य की राजधानी था। वहीं विजयनगर जिसे हम राजा कृष्णदेव राय के दरबारी तेनालीराम की चतुराई के कारण जानते हैं। पहले अंग्रेजों ने और फिर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा 1970 के दशक में इस स्थल का  पुरातत्ववेत्ताओं की उपस्थिति में उत्खनन किया गया।  यह बैंगलोर से  केवल 376 किलोमीटर  दूर स्थित है और होसपेट निकटतम रेलवे स्टेशन  है। मैंने होटल आदि की बुकिंग के लिए  क्लब महिंद्रा के सदस्य होने के लाभ लिया और विजयश्री रिसोर्ट एवं हेरिटेज विलेज, मलपनगुडी , हम्पी रोड होसपेट में एक हेरिटेज कुटिया चार दिन के लिए आरक्षित करवा ली। घूमने के लिए टैक्सी और गाइड तो जरुरी थे ही और इनकी व्यवस्था हम्पी पहुचने के बाद हो गई।  रात भर बंगलौर से हम्पी की बस यात्रा के बाद जब हम रिसोर्ट पहुंचे तो पहला दिन तो आराम की बलि चढ गया। हाँ, शाम जरुर आनंददायक रही क्योंकि रिसार्ट के संचालक राजस्थान के हैं और उन्होंने अपने आगंतुकों के मनोरंजनार्थ राजस्थान के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की व्यवस्था की हुई है।हमने  दुलदुल घोड़ी के स्वागत नृत्य से लेकर मेहंदी लगाना, ग्रामीण ज्योतिष, स्वल्पाहार, जादूगर के कारनामे, राजस्थानी नृत्य व गीत-संगीत, ऊँट, घोड़े व बैलगाड़ी की सवारी के साथ साथ लगभग चौबीस  राजस्थानी व्यंजन से भरी थाली के भोज का भरपूर  आनंद सर पर राजस्थानी पगड़ी पहन कर  लिया।

अपने मार्गदर्शक की सलाह पर हमने तय किया कि पहले दिन बादामी फिर दुसरे दिन हम्पी और तीसरे दिन कोप्पल जिले में रामायण कालीन स्थलों को देखा जाय। दूसरे दिन हम बादामी के गुफा मंदिर देखने गए। बादामी चालुक्य वंश की राजधानी रही है। ब्रम्हा की चुल्लू से उत्पन्न होने  की  जनश्रुति वाले चालुक्य साम्राज्य का दक्षिण भारत के राज वंशों में प्रमुख स्थान है। पुलकेशिन प्रथम (ईस्वी सन 543- 566) से प्रारंभ इस राजवंश के शासकों ने लगभग 210 वर्षों तक कर्नाटक के इस क्षेत्र में राज्य किया और एहोली, पट्टदकल तथा बादामी में अनेक गुफा  मंदिरों व प्रस्तर इमारतों का निर्माण कराया।  कर्नाटक के बगलकोट जिले की ऊंची पहाडियों में स्थित बादामी गुफा का आकर्षण अद्भुत है। बादामी गुफा में निर्मित हिंदू और जैन धर्म के चार मंदिर अपनी खूबसूरत नक्‍काशी, मानव निर्मित अगस्त्य  झील और शिल्‍पकला के लिए प्रसिद्ध हैं। चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफा का दृश्‍य इसके शिल्‍पकारों की कुशलता का बखान करता है। बादामी गुफा में दो मंदिर भगवान विष्‍णु, एक भगवान शिव को समर्पित है और चौथा जैन मंदिर है। गुफा तक जाती सीढियां इसकी भव्‍यता में चार चांद लगाती हैं।6 वीं शताब्दी में चालुक्य राजवंश की राजधानी, बादामी, ऐतिहासिक ग्रंथों में वतापी, वातपीपुरा, वातपीनगरी और अग्याति तीर्थ के रूप में भी प्रसिद्द है। दो खड़ी पहाड़ी चट्टानों के बीच मलप्रभा  नदी के उद्गम स्थल के नजदीक है । बादामी गुफा मंदिर पहाड़ी चट्टान पर नरम बादामी बलुआ पत्थर से तैयार किए गए हैं।बादाम का रंग लिए हुए बादामी के पहाड़ पर चार गुफा मंदिर हैं।

बादामी हम्पी से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन एकल सड़क मार्ग होने के कारण यहाँ पहुचने में तीन घंटे से भी अधिक का समय लगता है। मार्ग में बनशंकरी देवालय है जोकि एक विशाल और आकर्षक मानव निर्मित सरोवर के किनारे अवस्थित है। कतिपय स्थल अब भग्नावस्था में है पर द्रविड शैली में निर्मित देवालय के अन्दर अष्टभुजी बनशंकरी देवी, जिसे शाकाम्बरी देवी भी कहा जाता है, की मूर्ति स्थापित है। बनशंकरी वस्तुतः वन देवी या वनस्पति की देवी है और विभिन्न धार्मिक यात्राओं के आयोजन पर देवी का श्रंगार शाक सब्जियों से किया जाता है।   बनशंकरी देवी को दुर्गा भी माना गया है और इसलिए   देवी के दाहिने हाथ में तलवार, बिगुल,त्रिशूल और  फंदा है तो बायाँ हाथों में कपाल, मानव का कटा हुआ शीष,ढाल व डमरू सुसज्जित है। मंदिर में उपलब्ध शिलालेख के आधार पर मार्गदर्शक ने हमें बताया कि यह मंदिर बादामी के राज्य के पहले से है और राष्ट्रकूट राजाओं ने भी इसका जीर्णोद्वार समय समय पर करवाया।

बादामी का प्रथम गुफा मंदिर  शिव के लिंग रूप  को समर्पित है। प्रवेश मंडप, सभा मंडप व गर्भगृह से युक्त इस गुफा मंदिर का निर्माण काल ईस्वी सं 543 माना गया है।गुफा के प्रवेश द्वार पर शैव द्वारपाल की प्रतिमा है जिसके नीचे गज बृषभ का शिल्प है जो  शिल्प कला के चरमोत्कर्ष का अनूठा उदाहरण है। इस कलाकृति में शिल्पकार ने दोनों प्राणियों का  मुख व देह  इस प्रकार उकेरे हैं की केवल ध्यान से देखने पर ही गजमुख व बृषभ मुख अलग अलग दिखते हैं।।  इस गुहालय में अठारह हाथ के नटराज की आकर्षक मूर्ति है, जो नृत्य  कला की चौरासी संयोजनों को दर्शाता है। सर्पों के अलावा शिव के हाथों में विभिन्न वाद्य यंत्र हैं जो तांडव नृत्य की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त भैंसासुर का वध करती हुई महिषासुर मर्दिनि का शिल्प अति सुन्दर है। इसी गुफा में शिव-पार्वती के अर्धनारीश्वर स्वरुप व शिव और विष्णु के हरिहर स्वरुप का आकर्षक शिल्प देखने योग्य है। इस शिल्प में शिव अर्ध चन्द्र, कपाल, बाघचर्म और अपनी सवारी नंदी से पहचाने जा सकते हैं तो विष्णु को शंख ,चक्र मुकुट धारण किये हुए दिखाया गया है। दोनों देवताओं के पार्श्व में उनकी अर्धांगनी पार्वती व लक्ष्मी भी शिल्पकार ने बड़ी खूबी के साथ उकेरी है।नंदी की सवारी करते शिव पार्वती व उनकी तपस्या में लीन कृशकाय  भागीरथ की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है ।

(बादामी में त्रिविक्रम शुक्राचार्य बुद्ध के रूप में )

बादामी की दूसरे नम्बर की गुफा विष्णु को समर्पित है और इसका निर्माण छठवी शती ईस्वी में किया गया था। यहाँ द्वारपाल के रूप में जय विजय प्रवेश द्वार में खड़े हुए उत्कीर्ण हैं। इस गुफा का आकर्षण बामन अवतार की कथा दर्शाती त्रिविक्रम की मूर्ति है। इस शिल्प में विष्णु की  अपनेबामन फिर  विराट स्वरुप में तीन पाद से भूमंडल नापते हुए, राजा बलि उनकी पत्नी विन्ध्यवली, पुत्र नमुची व गुरु शुक्राचार्य की कलाकृति उत्कीर्ण की गई है। विष्णु के तीसरे अवतार नर वराह व कमल पुष्प पर खडी हुई भूदेवी का शिल्प भी दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त इस गुफा मंदिर में समुद्र मंथन की कथा के माध्यम से विष्णु के  कच्छप अवतार, कृष्ण लीला कथा  के द्वारा कृष्ण अवतार व मत्स्य अवतार को भी बख़ूबी दर्शाया गया है। हमारे मार्गदर्शक से पता चला कि कहीं कहीं शिल्पियों ने अपने नाम भी मूर्तियों के मुखमंडल के पास उकेरे हैं। स्तंभों व गुफा की छत पर भी अनेक पुष्पों, जीव जंतुओं, देवी देवताओं के शिल्प दर्शनीय हैं।

बादामी गुफा के चारों मंदिरों में से तीसरे मंदिर का स्‍वरूप अत्‍यंत ही मनोहारी एवं विशाल है। इस गुफा मंदिर का निर्माण ईस्वी सं 578 में चालुक्य नरेश मंगलेश ने अपने बड़े भाई व पूर्व नरेश कीर्तिवर्मा की स्मृति में करवाया था।  इस मंदिर में शिव और विष्‍णु दोनों के विभिन्‍न रूपों को नक्‍काशी में उकेरा गया है। इसमें त्रिविक्रम, शंकरनारायण (हरिहर),  वराह अवतार को ओजपूर्ण शैली में उत्‍कीर्ण किया गया है। शेषनाग पर राजसी मुद्रा में बैठी हुई विष्णु की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है।इसके अतिरिक्त हिरण्यकश्यप का संहार करते नरसिह व बामन अवतार में विष्णु की प्रतिमा दर्शनीय है। बामन अवतार की मूर्ति सज्जा में बलि के गुरु शुक्राचार्य को बुद्ध के रूप में दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त महाभारत व अन्य पौराणिक कथाओं, विभिन्न वैदिक देवी देवताओं , नृत्य करती स्त्रियाँ को भी सुन्दर शिल्प कला के द्वारा दर्शया गया है। गुफा 3 छत पर भित्तिचित्र भी है जो अब समय की मार झेलते झेलते धूमिल व फीके पड़ गए हैं। यहाँ के  भित्ति चित्र भारतीय  चित्रकला के सबसे पुराने ज्ञात प्रमाणों में से हैं। ब्रह्मा को भित्ति चित्र में हंस  वाहन पर दर्शाया गया है। शिव और पार्वती के विवाह में सम्मिलित विभिन्न हिंदू देवताओं के चित्र भी यहाँ दिखाई देते हैं।।

गुफा 3 के आगे और पूर्व में स्थित, गुफा क्रमांक  4  सबसे छोटी है। यह जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित है। इस गुफा मंदिर का निर्माण काल  7 वीं शताब्दी के बाद हो सकता है। अन्य गुफाओं की तरह, गुफा 4 में विस्तृत नक्काशी और रूपों की एक विविध श्रेणी शामिल है। गुफा में पांच चौकियों वाले प्रवेश द्वार हैं, जिनमें चार वर्ग स्तंभ हैं। गुफा के अंदर बाहुबली, पार्श्वनाथ  और महावीर के साथ  अन्य तीर्थंकरों के शिल्प  हैं। बाहुबली  अपने पैर के आसपास लिपटे दाखलताओं के साथ ध्यान मुद्रा में खड़े हुए हैं। पार्श्वनाथ को पंचमुखी नाग के साथ दिखाया गया है। महावीर एक आसन पर रखे हुए है। चौबीस जैन तीर्थंकर की प्रतिमाएं भीतर के खंभे और दीवारों पर उत्कीर्ण होती हैं। इसके अलावा यक्ष, यक्ष और पद्मावती की मूर्तियां भी हैं।

बादामी से लगभग 22 किलोमीटर दूर पट्टदकल स्मारक समूह हैं, यूनेस्को द्वारा  वर्ष 1987 में पट्टदकल को ‘विश्व धरोहर’ की सूची में शामिल किया गया। चालुक्य साम्राज्य के दौरान पट्टदकल महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था। उस दौरान ‘वातापी’ या  बादामी राजनीतिक केंद्र और राजधानी थी, जबकि पट्टदकल सांस्कृतिक राजधानी थी। यहाँ पर राजसी उत्सव और राजतिलक जैसे कार्यक्रम हुआ करते थे। द्रविड़, उत्तर भारत की नागर शैली तथा द्रविड़ व नागर के मिश्रित शैली  से बने दस   मंदिरों का यह समूह मलप्रभा नदी के किनारे स्थित है व चालुक्य नरेशों के द्वारा ईस्वी सं 733-45 के मध्य  निर्मित है।

यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण मन्दिर विरुपाक्ष मंदिर है, जिसे पहले ‘लोकेश्वर मन्दिर’ भी कहा जाता था। द्रविड़ शैली के इस शिव मन्दिर को विक्रमादित्य द्वितीय (734-745 ई.) की पत्नी लोक महादेवी ने बनवाया था। विरुपाक्ष मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच में भी अंतराल है। विरुपाक्ष मंदिर के चारों ओर प्राचीर और एक सुन्दर द्वार है। द्वार मण्डपों पर द्वारपाल की प्रतिमाएँ हैं। एक द्वारपाल की गदा पर एक सर्प लिपटा हुआ है, जिसके कारण उसके मुख पर विस्मय एवं घबराहट के भावों की अभिव्यंजना बड़े कौशल के साथ अंकित की गई है। मुख्य मण्डप में स्तम्भों पर श्रृंगारिक दृश्यों का प्रदर्शन किया गया है। अन्य पर महाकाव्यों के चित्र उत्कीर्ण हैं। जिनमें हनुमान का रावण की सभा में आगमन, खर दूषण- युद्ध तथा सीता हरण के दृश्य उल्लेखनीय हैं ।

विरूपाक्ष मंदिर के बगल में ही शिव को समर्पित एक और  द्रविड़ शैली की भव्य संरंचना  मल्लिकार्जुन मंदिर है, जिसकी निर्माण कला विरूपाक्ष मंदिर के ही समान है पर आकूति छोटी है। इस मंदिर का निर्माण 745 ईस्वी में चालुक्य शासक विक्रमादित्य की दूसरी पत्नी ने करवाया था।मंदिर के मुख्य मंडप में स्तंभों पर रामायण, महाभारत वैदिक देवताओं की अद्भुत नक्काशी है। एक स्तम्भ में महारानी  के दरबार के दृष्यों को भी बड़ी सुन्दरता से दिखाया गया है।

पट्टदकल के मंदिर समूह में नागर शैली के चार मंदिरों मे से हमने आठवी सदी में निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर को देखा। यह मदिर काफी ध्वस्त हो चुका है गर्भ गृह में काले पत्थर का आकर्षक शिव लिंग स्थापित है। मुख्य द्वार पर गरुड़ व सर्फ़ को दर्शाया गया है। अनेक स्तंभों पर विभिन्न मुद्राओं में स्त्रियों को उकेरा गया है। स्तंभों पर शिव पार्वती विवाह, कृष्ण लीला,रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने आदि का सुन्दर वर्णन प्रस्तर नक्काशी के द्वारा किया गया है।

मलप्रभा नदी के तट पर स्थित, ऐहोल या  आइहोल मध्यकालीन भारतीय कला और वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इस गाँव को यह नाम यहाँ विद्वानों के रहने के कारण दिया गया।बादामी चालुक्य के शासनकाल में यह वास्तु  विद्या व मूर्तिकला सिखाने का प्रमुख केंद्र था।   यह कर्नाटक पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के समृद्ध अतीत को दर्शाता है, जिनमें चालुक्य भी शामिल थे। ऐहोल कुछ वर्षों तक चालुक्यों की राजधानी भी थी। यहां सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर हैं। ऐहोल में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला स्थान दुर्ग मंदिर है जो द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। कहा जाता है कि यह मंदिर एक बौद्ध रॉक-कट चैत्य हॉल के तर्ज पर बनाया गया है। मंदिर में गर्भ गृह के चारो ओर प्रदिक्षणा पथ है तथा बाहरी दीवाल मजबूत चौकोर स्तंभों से वैसी ही बनी है जैसे हमारे संसद भवन में गोल स्तम्भ हैं।बाहरी दीवारों पर नरसिंह, महिषासुरमर्दिनी, वाराह, विष्णु, शिव व अर्धनारीश्वर की सुन्दर व चित्ताकर्षक शिल्पाकृति हैं। आठवी सदी में निर्मित एक देवालय की छत छप्पर जैसी है और इसलिए इसे कुटीर देवालय कहते हैं। लाड खान मंदिर भी  है, भगवान शिव को समर्पित, इस मंदिर का नाम कुछ समय तक यहां निवास करने वाले एक मुस्लिम राजकुमार के नाम पर रखा गया है। यह  पंचायत हॉल शैली की वास्तुकला में चालुक्यों द्वाराईस्वी सं 450 के आसपास बनाया गया था। सूर्य नारायण मंदिर में सूर्य की आकर्षक मूर्ति गर्भगृह में स्थापित है। ऐहोल के सबसे दर्शनीय स्थानों में से एक रावण फाड़ी का गुफा मंदिर है जो एक चट्टानी पहाड़ी के समीप  है जहां से इसे तराशकर बनाया गया है।इस गुफा मंदिर में नटराज शिव, पार्वती, गणेश, अर्धनारीश्वर आदि की सुन्दर मुर्तिया उकेरी गई हैं।  अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में मेगुती जैन मंदिर और गलगनाथ मंदिर के समूह हैं। आइहोल से हमें हम्पी व्वा वापस पहुंचने में लगभग ढाई घंटे का समय लगा।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )




English Literature – Poetry – ☆ Caged Willpower ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry “पिंजरा ” published in today’s edition as ☆ संजय दृष्टि  – पिंजरा  ☆ We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.  Emotions running amok… yet again… )

☆ Caged Willpower ☆

 

Within the walls of cage

my wings flutter viciously,

Cravingly, seeing the open sky

they conflict with each other,

as they get grisly afflicted…

I tear up my wings yet again

Turn my helplessness

into rage,

I shout and yell

Kept looking at ajar blue sky,

Exhausted, I surrender again

Feel shattered with

my compromised routine,

Resign to my futility…

I’m not sad because of captivity

But, to lose myself to myself

Coz, I only have chosen the cage

Though, scared of soaring heights of sky,

But, weary of captivity,

I too want to touch the sky

Knowing well that both together

Was neither possible

nor will it ever be

I wear out in dilemma…

Seeing the inviting open sky

I pledge to fight the cage

But, glancing at the bread in cage,

I fold back the wings

And, never attempt to fly again…

Eternal question remains unanswered

Who has imprisoned whom?

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 28 – व्यंग्य – रजाई में राजनीति ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनका  एक चुटीला व्यंग्य  “रजाई में राजनीति”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) \

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 28 ☆

☆ व्यंग्य – रजाई में राजनीति  

 

जाड़े का मौसम है, हर बात में ठंड…. हर याद में ठंड और हर बातचीत की भूमिका में ठंड की बातें और बातों – बातों में ये रजाई….. वाह रजाई…. हाय रजाई… महासुख का राज रजाई।

सबकी अपनी-अपनी ठंड है और ठंड दूर करने के लिए सबकी अलग अपने तरीके की रजाई होती है। संसार का मायाजाल मकड़ी के जाल की भांति है जो जीव इसमें एक बार फंस जाता है वह निकल नहीं पाता है ऐसी ही रजाई की माया है कंपकपाती ठंड में जो रजाई के महासुख में फंस गया वो गया काम से। ठंड सबको लगती है और ठंड का इलाज रजाई से बढ़िया और कुछ नहीं है। रजाई में ठंड दूर करने के अलावा अतिरिक्त संभावनाएं छुपी रहती हैं रजाई में चिंतन-मनन होता है योजनाएं बनतीं हैं रजाई के अंदर फेसबुक घुस जाती है मोबाइल से बातें होतीं हैं जाड़े पर बहस होती है जाड़े की चर्चा से मोबाइल गर्म होता है रजाई सब सुनती है कई बड़े बड़े काम रजाई के अंदर हो जाते हैं रजाई की महिमा अपरंपार है दफ्तर में बड़े बाबू के पास जाओ तो रजाई ओढ़े कुकरते हुए शुरू में कूं कूं करता है फिर धीरे-धीरे बोल देता है जाड़ा इतना ज्यादा है कि पेन की स्याही बर्फ बन गई है जब पिघलेगी तब काम चालू होगा, अभी रजाई में घुसकर हनुमान जी जाति पर नेताओं के बयान देख रहे हैं। एक चैनल ने हनुमान जी को चीनी कह दिया एक ने जाट बना दिया किसी ने मुसलमान बना लिया, तरह-तरह के नेता और तरह-तरह की बातें।

अधिकांश आफिस के लोग ठंड के बहाने सबको टरका देते हैं और कह देते हैं कि ठंड सबको लगती है आफिस की सब फाइलें ठंड में रजाई ओढ़ के सो रहीं हैं जबरदस्ती जगाओगे तो काम बिगड़ सकता है फिर आफिस के सब लोग रजाई के महत्व पर भाषण देने लगते हैं।

ठंड से मौत के सवाल पर मंत्री जी के मुंह में बर्फ जम जाती है रजाई में घुसे – घुसे कंबल बांटने के आदेश हो जाते हैं अलाव से प्रदूषण फैलता है लकड़ी काटना अपराध है कंबल खरीदने से फायदा है कमीशन भी बनता है। रजाई के अंदर से राजनीति करने में मजा है।

जब से हमने रजाई को आधार से जुड़वाया है तब से रजाई में खुसफुसाहट सी होने लगी है रजाई हमें पहचानने लगी है शुरू – शुरू में नू – नुकुर करती थी अब पहचान गई है आधार ही ऐसी चीज है जिसमें पहचान से लेकर सेवाओं तक में होने वाली धोखाधड़ी ये रजाई पहचानने लगती है। जाड़े में रज्जो की रजाई में रज्जाक घुसने में अब डरता है क्योंकि वो जान गया है कि सरकार ने आधार को हर सेवा से जोड़ने की कवायद कर ली है। पर गंगू रजाई की बात में कन्फ्यूज हो जाता है पूछने लगता है कि यदि रज्जो की रजाई चोरी हो जाएगी तो क्या आधार नंबर की मदद से मिल जाएगी ? इसका अभी सरकार के पास जबाब नहीं है क्योंकि सरकार का मानना है कि भुलावे की खुशी जीवन में कई दफा ज़्यादा मायने रखती है। गंगू की इस बात पर सभी को सहमत होना चाहिए कि यदि कोई इन्टरनेट बैंकिंग या डिजिटल पेमेंट से रजाई खरीदता है तो उसे जीएसटी में पूरी छूट मिलनी चाहिए। हालांकि गंगू ये बात मानता है कि एक देश एक कर प्रणाली (जीएसटी) ने देश का आर्थिक चेहरा बदलने की शुरुआत तो की थी पर गुजरात के चुनाव और पांच राज्यों के चुनाव ने सबको डरा दिया है। जीएसटी और नोटबंदी ने कबाड़ा कर दिया।

जाड़े में चुनाव कराना ठीक नहीं है रजाई के दाम बढ़ने से वोट बंट जाने का खतरा बढ़ जाता है जयपुरी रजाई के दाम तो ऐसे बढ़ते हैं कि दाम पूछने में जाड़ा लगने लगता है। जैसे ही ठंड का मौसम आता है गंगू को अपने पुराने दिन याद आते हैं उसे उन दिनों की ज्यादा याद आती है जब पूस की कंपकपाती रात में खेत की मेढ़ में फटी रजाई के छेद से धुआंधार मंहगाई घुस जाती थी और दांत कटकटाने लगते थे भूखा कूकर ठंड से कूं… कूं करते हुए रजाई के चारों ओर रात भर घूमता था और रातें और लंबी हो जातीं थीं, पर पिछले दो साल से ठण्ड में कुछ राहत इसलिए मिली कि नोटबंदी के चक्कर में कोई बोरा भर नोट खेत में फेंक गया और गंगू ने बोरा भर नोट के साथ थोड़ी पुरानी रुई को मिलाकर नयी रजाई सिल ली थी नयी रजाई में नोटों की गर्मी भर गई थी जिससे जाड़े में राहत मिली थी इस रजाई से ठंड जरूर कम हुई थी पर अनजाना डर बढ़ गया था जो सोने में दिक्कत दे रहा था गंगू ने कहीं सुन लिया था कि नोटबंदी के बाद बंद हुए पुराने नोट पकडे़ जाने पर सजा का प्रावधान है। गंगू चिंतित रहता है कि भगवान की कृपा से पहली बार नोटभरी रजाई सिली और ठंड में राहत भी मिली पर ये साले चूहे बहुत बदमाशी करते हैं कभी रजाई को काट दिया तो नोट बाहर दिखने लगेंगे और रजाई जब्त हो जाएगी, फिर राजनैतिक पार्टियां इसी बात को मुद्दा बनाकर कांव कांव करेंगी, टीवी चैनल वाले दिनों रात तंग करेंगे…… खैर जो भी होगा देखा जाएगा। अभी तो ये नयी रजाई ओढ़कर सोने में जितना मजा आ रहा है उतना मजा वित्तमंत्री को मंहगी जयपुरी रजाई ओढ़ने में नहीं आता होगा।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765