हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 19 ☆ शोहरत ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “शोहरत ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 19 ☆

☆ शोहरत

शोहरत तो मैंने इतनी कमाई

कि वो मेरे रग-रग में फ़ैल गयी…

 

बस, वो मुझे ही जाने क्यों रास नहीं आई!

 

न ही मेरा खून

शोहरत से ज़्यादा लाल हुआ,

न ही मेरे जिगर में

रौशनी के जुगनू उड़े,

न ही मेरी आँखों की रंगत

और बढी!

 

वो भी एक सहेली की तरह आई,

मैंने उसे बहुत वक़्त भी दिया

ताकि मैं उसे पूरी तरह समझ सकूँ,

और शायद अब

कुछ लम्हे मेरे साथ बिता

वो चली जायेगी…

 

वो सिर्फ कुछ पल की सहेली थी,

परछाईं नहीं!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।




English Literature – Classical Poetry – ☆ Anguish of the River… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poetry  “नदी नीलकंठ नहीं होती”   with title  “The Last Metropolis” .  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

सुश्री निर्देश निधि

इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि और कैप्टन साहब के प्रति आभार प्रकट करते हुए इस रचना मूल हिंदी  संस्करण आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं

>>> “नदी नीलकंठ नहीं होती”.

मैं निःशब्द हूँ और स्तब्ध भी हूँ। इस घटना / रचना को तो सामयिक भी नहीं कह सकता। सुश्री निर्देश निधि जी की रचनाओं के सन्दर्भ में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। उनके एक-एक शब्द इतना कुछ कह जाते हैं कि मेरी लेखनी थम जाती है। आदरणीया की लेखनी को सादर नमन।

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में पढ़ें और इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी को अवश्य अवगत कराएँ.

 ☆ Anguish of the River…☆

River is not *Neelkanth, the Lord Shiva — poison digester…

She was once a  playful translucent  river

And me, a carefree ambitious damsel

Used to do *Aachman*, sipping her sacred water while offering her my obeisances…

 

I always stood by her as a solid rock

Kept attending to all

–her frustrations, her vexations, her boisterous predicaments…

I was happy to be a rock to her…

 

But, one day you came, and

Crossed all the limits by embracing me

I didn’t like

your that filthy touch,

In a moment, I got disintegrated,

like millions of sand particles

 

Just resigned to the gloomy

lap of the river

That’s when I realised that

river is not mere flowing water

 

She is a dextrous historian

Scripting historical manuscripts,

Creating cultures, nurturing customs as responsible ancestor…

 

She was also a modern trendsetter

Always altering courses on her freewill…

She is the seeker, a questor!

 

She was a loving-mother incarnate

That’s how I could live the anguish of the river…

 

You have removed even

the womb, intestine, heart,

flesh and marrow from her body…

 

So many times I heard

her sobbings from the palatial garrets

 

Witnessed the river

Repeatedly shedding her tears in the

inner layers of the roads

 

She too wanted to get dispersed as particles in the thin air

Exactly like me!

 

But where could she go?

Where could she get accommodated? Where!!

As she did not have river, just like herself only…

 

I fell on her bosom, tiredly

Kept watching her helplessly,

By choking her face with a dirty cloth

Kept witnessing her sufferings,

Her writhing in agony, even for a breath!

Her misery of breathlessness

Was far worse than my dispersing into particles…

 

River, that joyfully spilled around

its banks for ages

Now, in this epoch, only last few breaths of life are left

Stinking, panting, with last few breaths…!

 

How many times

did I beg of you

If you desire, take my remaining particles; but,

Fill her with few breaths in her chest

By mouth-to-mouth resuscitation,

Just return her past glory

Which you forcibly snatched her of,

By planting *Singi* –poisonous trees

to pull all the poison out of her body…

 

Listen,

River cannot survive

By drinking the poison

Because, river is not the *Neelkanth*, the Lord Shiva…!

 

*Note*:
*Neelkanth*, is the other name of Lord Shiva who drank the poison, without having effect on him; and held it in his neck which became blue; thus called  *Neelkanth* *(Blue Neck)*.

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Originally Written in Hindi by Nirdesh Nidhi

English Translation by Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd), Pune   

 




हिन्दी साहित्य- साहित्यिक कार्यक्रम – ☆ क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019, इंदौर ☆ – श्री दीपक गिरकर

श्री दीपक गिरकर 

☆ क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019, इंदौर☆

☆ कोई भी कला संयम और समय के साथ ही विकसित होती है – सुकेश साहनी☆

‘क्षितिज’ संस्था, इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन , लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवम श्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।

संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।

इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया।

इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथाकारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर, श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी, सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुषअनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।

अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।

व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है। कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।

सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है। विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।

श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की ओर ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।

विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास, श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।

लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसके पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है। सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।

विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन से यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।

श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का   आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।

कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।

श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया। अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की।      इससत्र का संचालन निधि जैन ने किया।

तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।

श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।

श्री बलराम अग्रवाल ने कहा – साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है।  श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।

वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।

आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।

लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।

समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।

इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।

 

प्रस्तुति : दीपक गिरकर,  28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, इंदौर- 452016

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : [email protected]




हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15☆ बुन्देलखण्ड की लोक कथायें ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री अजित श्रीवास्तव जी की प्रसिद्ध पुस्तक “बुन्देलखण्ड की लोक कथायें” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा .  किसी भी भाषा या प्रदेश की लोककथाएं एक पीढ़ी के साथ ही जा रही हैं। ऐसे में उन्हें इस प्रकार के लोककथा संग्रह के रूप में संजो कर रखने की महती आवस्यकता है।  लोक कथाएं हमें अगली पीढ़ी को विरासत में  देने का दायित्व हमारी पीढ़ी को है इसके लिए श्री अजीत श्रीवास्तव जी को साधुवाद।  श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 15  ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – बुन्देलखण्ड की लोककथायें  

 

पुस्तक – बुन्देलखण्ड की लोक कथायें (लोककथा संग्रह)

संग्रहकर्ता  – अजीत श्रीवास्तव

प्रकाशक –  रवीना प्रकाशन दिल्ली

आई एस बी एन – 9789388346597

मूल्य –  २०० रु प्रथम संस्करण २०१९

 

☆ बुन्देलखण्ड की लोककथायें – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

हाल ही में “कौन बनेगा करोड़पति” के एक एपीसोड में बुन्देलखण्ड की एक महिला पहुंची थीं. होस्ट अमिताभ बच्चन से वार्तालाप में उन्होनें बुंदेलखण्डी का प्रयोग किया, प्रतिसाद में  सहज अमिताभ जी ने भी उनसे बुंदेलखण्डी की मधुरता को सम्मान देते हुये ” काय का हो रऔ ”  का जुमला कहा. इस तरह मीडिया में बुंदेलखण्डी भाषा का लावण्य चर्चित रहा. बोलिया और भाषाये  भारत की थाथियां हैं. लोक भाषा में सदियों के अनुभवो का निचोड़ लोक कथा, मुहावरो, कहावतो के जरिये पीढ़ी दर पीढ़ी विस्तार पाता रहा है.

टीकमगढ़ के अजीत श्रीवास्तव पेशे से एक एड्वोकेट हैं. उनका रोजमर्रा के कामो में  ग्रामीण अंचल के किसानो व ठेठ बुंदेलखण्ड के आम लोगों से नियमित वास्ता पड़ता रहता है. इस दिनचर्या का लाभ उठाते हुये उन्होनें बुंदेली लोककथायें जिन्हें स्थानीय लोग “अहाने ” कहते हैं, सुनकर लिख डाले हैं. फिर इन अहाने अर्थात बातचीत में कोट किये जाने वाले लघु दृष्टांत या कथानक को सबके उपयोग हेतु इनका हिन्दी  भाष्य रूपान्तर तैयार कर इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है.

पुस्तक में कुल ११० ऐसी लघु लोककथायें हैं, जो पहले बुंदेली और उसके नीचे ही हिन्दी में प्रकाशित हैं. हर लोककथा कोई संदेश देती है. उदाहरण के लिये एक कथा में कल्पना है कि एक व्यक्ति जो अपने भाग्य को दोष देते परेशान था, पोटली बांधकर किसी दूसरे गांव में जाने की सोचता है, तो उसे उसके साथ जाने को तैयार एक महिला मिली, वह पूछता है तुम कौन, महिला उत्तर देती मैं तुम्हारा भाग्य, तब वह मनुष्य कहता है कि जब तुम्हें साथ ही चलना है तो फिर मैं इसी गांव में क्यो न रहूं ? निहितार्थ स्पष्ट है, जगह बदलने या भाग्य को दोष देने की अपेक्षा जहां है जिन परिस्थितियो में हैं वही मेहनत की जावे तो ही प्रगति हो सकती है.

एक अन्य कथा में बताया गया है कि एक बार घुमते हुये एक राजा किसी किसान के पास पहुंचते हैं, वह गन्ने का रस निकाल रहा था, राजा एक गिलास रस पीते हैं, उन्हें वह बहुत अच्छा लगता है, तो राजा के मन में ख्याल आता है कि किसान इतने अच्छै गन्ने की फसल का लगान कम अदा करता है, लगान बढ़ानी चाहिये. जब राजा अगला गिलास रस पीता है तो उन्हें वह रस अच्छा नही लगता, यह बात राजा किसान से कहता है, तो किसान बोलता है कि महाराज आपने जरूर कुछ बुरा सोचा रहा होगा. राजा मन ही मन सब समझ गये. ” जैसी राजा की नीयत होती है वैसी प्रजा की बरकत ” क्या यह लोककथा आज भी प्रासंगिक नही लगती ?

ऐसी ही रोचक छोटी छोटी कहानियां जो जन श्रुति से अजीत श्रीवास्तव जी ने एकत्रित की हैं बिना तोड़ मरोड़ के यथावत किताब में प्रस्तुत की गई हैं. इस प्रकार किताब लोक के सामाजिक  अध्ययन हेतु भी संदर्भ ग्रंथ बन गई है. मेरी जानकारी में ऐसा कार्य दूसरा देखने को नही मिला है. पुरानी पीढ़ी के साथ ही गुम हो रही इन कहानियो को संग्रहित कर बुंदेली भाषा के प्रति एक बड़ा कार्य किया गया है. जिसके लिये लेखक व प्रकाशक बधाई के सुपात्र हैं.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८




मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #26 – मेघ भक्तीचा ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “मेघ भक्तीचा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 26 ☆

☆ मेघ भक्तीचा ☆

 

कृष्ण डोह हा सावळा

राधा उतरली आत

ठाव घेताना डोहाचा

सारी सरली ही रात

 

वीणा चिपळ्या सोबती

मेघ भक्तीचा बरसे

गाभाऱ्यात तेवणारी

मीरा तेजोमय  वात

 

राधा सत्ययुगातली

कलियुगातली मीरा

तरी सवतीचा खेळ

चाले अजून दोघीत

 

नागवेलीचं हे पान

वाटे नागिणीचा फणा

फास झाडाच्या भोवती

तिनं टाकलेली कात

 

वन सारं बासरीचं

तिच्या सोबती नाचतं

धून राधेच्या प्राणाची

नित्य वाजे बासरीत

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 26 – गुलाबी  गुड़िया ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अत्यंत भावुक लघुकथा    “गुलाबी  गुड़िया ”। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 26 ☆

☆ लघुकथा – गुलाबी  गुड़िया ☆

 

‘आरुषि’ अपने मम्मी-पापा की इकलौती संतान। उसे बहुत ही प्यार से रखा था। सब कुछ आरुषि के मन का होता था। कहीं आना-जाना  क्या पहनना, क्या खाना। छोटी सी आरुषि की उम्र 6 साल थी। खिलौने से दिनभर खेलना और मम्मी पापा से दिन भर बातें करना। सभी को अच्छा लगता था। खिलौने में सबसे प्यारी उसकी एक गुड़िया थी। प्यार से उसका नाम उसने गुलाबी रखा था। दिन भर गुड़िया से बातें करना, उसको कपड़े पहनाना, कभी छोटी सी साइकिल पर बिठा कर चलाना। गुलाबी से मोह इतना कि रात में भी उसे अपने साथ सुलाती थी।

एक दिन मम्मी-पापा के साथ घूमने निकली। आरुषि अपनी गुड़िया को भी ले गई थी। रास्ते में अत्यधिक भीड़ होने की वजह से मम्मी ने कहा “आरू, गुड़िया हम रख लेते हैं। आप संभल कर गाड़ी (दुपहिया वाहन) पर बैठो”। आरुषि गुड़िया को मम्मी को पकड़ा कर पापा के सामने जा बैठी। सब खुश होकर गाना गाते हुए चले जा रहे थे। अचानक सामने से आती ट्रक की चपेट में तीनों बुरी तरह घायल हो गए। अस्पताल में आरुषि और पापा तो बच गए परंतु मम्मी का देहांत हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आरुषि को कैसे समझाया  जाए। अंतिम विदाई के समय सभी की आंखें नम थी। परंतु आरुषि चुपचाप सब कुछ देख रही थी। सभी ने कहा मम्मी भगवान के घर चली गई। जब अर्थी ले जाने लगे, तभी आरुषि दौड़कर अपने कमरे में गई और अपनी प्यारी गुड़िया को लेकर आई और मम्मी के पास रखते हुए बोली “भगवान घर मम्मी अकेले जाएगी, मैं नहीं रहूंगी तो कम से कम गुलाबी के साथ बात करेंगी। सभी शांत और भाव विभोर थे आखिर इस नन्ही बच्ची को कैसे समझाएं।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश




हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 7 ☆ बादल गीत ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “बादल गीत”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 7– बादल गीत ☆

 

हाथ जोड़ कर, अम्मा बोली

हाथ जोड़ कर बाबा

हाथ जोड़ कर/नद्दी-नाले

हाथ जोड़ कर

गइया-बछिया

कुत्ता-बिल्ली, मुर्गा-मुर्गी

हाथ जोड़ कर/भेड़-बकरियां

सब कह रए हैं

रुकजा बादल

–हाथ जोड़ कर, दादा बोले

हाथ जोड़ कर अम्मा

रुकजा बादल

सीड़ गइ /घर की दीवारें

टपकों से घर

भर गओ भैइया

मोड़ा-मोड़ी मचल रहे

बाहर जाबे कों/रुकजा बादल

खेतों में घुटनों तक पानी

मिट्टी बह गइ

आने-जाने की गड़बाटें

पगडंडी के संग /जैसे खो गइं…

रामभरोसे को डुकरा

बीमार धरो है/घर में बादल

हाथ जोड़ कर अम्मा बोली

हाथ जोड़ कर बाबा

रुकजा बादल

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश




आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌।।7।।

 

इससे मुझको याद कर हर दम लड़ संग्राम

ऐसी मन औ” बुद्धि रख निश्चित आठों याम।।7।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा।।7।।

 

Therefore, at all times remember me only and fight. With mind and intellect fixed (or absorbed) in me, thou shalt doubtless come to me alone.।।7।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – आउट ऑफ बॉक्स ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  आउट ऑफ बॉक्स

 

माप-जोखकर खींचता रहा

मानक रेखाएँ जीवन भर

पर बात नहीं बनी..,

निजी और सार्वजनिक

दोनों में पहचान नहीं मिली,

आक्रोश में उकेर दी

आड़ी-तिरछी, बेसिर-पैर की

निरुद्देश्य  रेखाएँ

यहाँ-वहाँ अकारण,

बिना प्रयोजन..,

चमत्कार हो गया!

मेरा जय-जयकार हो गया!

आलोचक चकित थे-

आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग का

ऐसा शिल्प आज तक

देखने को नहीं मिला,

मैं भ्रमित था,

रेखाएँ, फ्रेम, बॉक्स,

आउट ऑफ बॉक्स,

मैंने यह सब

कब सोचा था भला?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 – राजनीति ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक कविता  “राजनीति। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 23 ☆

 

☆ कविता – राजनीति  

 

राजनीतिज्ञ

हाथ देखकर

भूत भविष्य

और वर्तमान

बता सकता है।

राजनीतिज्ञ

ऐसे हाथ

उठा देता है

और

कई बार हाथ

देखने के पहले

काट भी देता है।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765