हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ दीपावली विशेष – उल्लू से प्रेम ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

( आज प्रस्तुत है  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी   का दीपावली पर्व पर विशेष व्यंग्य   “उल्लू से प्रेम।)

 

☆ दीपावली विशेष  ☆ व्यंग्य –  उल्लू से प्रेम  

 

इस दीवाली में वो पता नहीं कहां से आ गया। पितर पक्ष में पुड़ी साग और तरह-तरह के व्यंजन लेकर हम इंतजार करते रहे पर एक भी कौए नहीं आये। जब दशहरा आया तो नीलकंठ के दर्शन को हम लोग तरस गए थे। बहुत कोशिश की थी दर्शन नहीं मिले। शहर जो है वो कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया तो ये सब और नहीं दिखते। पर इधर दीवाली के दो दिन पहले से घर के सामने लगे बड़हल के पेड़ पर बिन बुलाए एक उल्लू आकर बैठ गया है। समधन ने पत्नी को डरा दिया है इसलिए पत्नी चाहती है कि इसे किसी भी तरह से यहां से भगाओ, या बड़हल का पेड़ कटवा दो। पिछली दीवाली में आंगन में लगे अमरुद के पेड़ कटवाने के लिए समधन पीछे पड़ गयीं थीं, इस बार अब उल्लू के पीछे पड़ीं हैं। समधन थोड़ा ज्यादा ही सुंदर है और पत्नी से थोड़ा ज्यादा होशियार भी, इसलिए हम भी उसकी झूठी बातों का समर्थन कर देते हैं, पर इस बार भरी दिवाली में समधन हम पति-पत्नी के बीच झगड़ा कराने उतारू हैं। हालांकि दीवाली जब भी आती है तो दुनिया भर के तंत्र मंत्र, भूत-प्रेत की बातों का माहौल बन जाता है। हमने पत्नी को बहुत समझाया कि पहले पता तो कर लें कि अचानक उल्लू क्यों आकर बैठ गया है,भूखा – प्यासा होगा, या किसी ने उसे सताया होगा, किसी सेठ ने उसे पकड़ने की कोशिश की होगी। या हो सकता है कि लक्ष्मी जी पहले से अपने घर का जायजा लेने भेजा हो,…. हो सकता है कि इस बार वो इसी उल्लू में सवार होकर अपने घर आने वालीं हों, पर पत्नी एक भी बात नहीं मान रहीं हैं समधन की बात को बार-बार दुहरा रही है।

रात भर हम आंगन में बैठे रहे… उल्लू हमें देखता रहा, हम उल्लू को देखते रहे। एक चूहा भी मार के लाए कि भूखा होगा तो पेड़ से उतर के चूहा खा लेगा पर वो भी टस से मस नहीं हुआ। हमने पहल करते हुए उससे कहा कि हम भी तो उल्लू जैसे ही हैं… हर कोई तो हमें उल्लू बनाता रहता है।

प्रेम में वो ताकत है कि हर कोई पिघल जाता है सो हमने बड़े प्यार से उल्लू से कहा – उल्लू बाबा, यहां क्यों तपस्या कर रहे हो कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ ?

उल्लू अचानक भड़क गया बोला – सुनो.. हमें बाबा – आबा मत कहना…. बाबा होगा तुम्हारा बाप… समझे, हम महालक्ष्मी के सम्मानजनक वाहन हैं और यहां इसलिए आये थे कि चलो इस दीवाली में कुछ फायदा करा देते पर ये तुम्हारी पत्नी दो दिन से मुझे भगाने के लिए बहुत बड़बड़ा रही है, इस दीवाली में लक्ष्मी जी का इधर से गुजरने का श्यैडुल बना है पर ये मुंह चलाती पत्नी को देखकर लक्ष्मी जी नाराज हो जाएंगी, अब बताओ क्या करें ? हालांकि कि दो दिन में हमने देखा कि तुम बहुत सीधे-सादे सहनशील आदमी हो थोड़ा दंद-फंद भी जानते हो, तो बताओ क्या करना है ?

– – हम हाथ जोड़ के खडे़ हो गये बोले – गुरु महराज… ऐसा न करना, पचासों साल से लक्ष्मी जी के आने के इंतजार में हमने लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं, प्लीज इस बार कृपा कर दो… लक्ष्मी जी को पटा कर येन केन प्रकारेण ले ही आओ इस बार…. प्लीज सर,

–उल्लू महराज को थोड़ा दया सी आयी बोले – चलो ठीक है विचार करते हैं, पर जरा ये पत्नी को समझा देना हमारे बारे में समधन से बहुत ऊटपटांग बात कर रही थी समधन को नहीं मालुम कि हमें धने अंधेरे में भी सब साफ-साफ दिखता है रात को जहां जहां लफड़े-झफड़े होते हैं उनका सब रिकॉर्ड हमारे पास रहता है,  नोटबंदी की घोषणा के एक – दो दिन पहले सेठों और नेताओं के घर से कितने नोटों भरे ट्रक आर-पार हुए, हमने रात के अंधेरे में देखा है। मोहल्ले की विधवाओं के घर कौन – कौन नेता रात को घुसते हैं वो भी हम अंधेरे में देखते रहते हैं।

तंत्र मंत्र करके बड़े उद्योगपति और नेताओं के सब तरह के लफड़े – झपड़े रात को अंधेरे में देखे हैं ये बाबा जो अपने साथ राम का नाम जोड़ के जेल की हवा खा रहे हैं इन्होंने हजारों उल्लूओं के अंगों के सूप पीकर अपनी यौन शक्ति को बढ़ा बढ़ाके रोज नित नयी लड़कियों की जिंदगी खराब की है।

उल्लुओं के बारे में मनन करने पर हमने पाया कि यों तो तरह-तरह की किस्म के उल्लू सब जगह मिलते हैं जैसे गुजरात तरफ पाये जाने वाले झटके मारने में तेज होते हैं, पर हमें आज तक समझ नहीं आया कि लोग अपने आप को ऊल्लू के पट्ठे क्यों बोलते हैं कई लोगों की चांद में कमल का निशान बना रहता है कमल के ऊपर लक्ष्मी जी को बैठने में सुविधा होती है ऐसे लोगों के पुत्र लक्ष्मी जी को प्रसन्न करके मालामाल हो जाते हैं।

ऊल्लू पहले तो बोलता नहीं है और जब बोलना चालू होता है तो रुकता नहीं है।

बीच में रोक कर हमने पूछा – महराज आप ये लक्ष्मी जी के पकड़ में कैसे आ गये और परमानेंट उनके वाहन बन गए

-तब पंख फड़फड़ा के उल्लू महराज ने बताया कि असल में क्या हुआ कि शेषशैय्या पर लेटे श्रीहरि आराम कर रहे थे और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रहीं थीं, भृगु ऋषि आये और विष्णु जी की छाती में लात मार दी, लक्ष्मी जी को बहुत बुरा लगा विष्णु जी बेचारे तो कुछ बोले नहीं पर लक्ष्मी जी तमतमायी हुई क्रोध में विष्णु जी पर बरस पड़ीं, अपमान को सह नहीं सकीं और श्रीहरि को भला बुरा कहते हुए उनको छोड़ कर भूलोक पहुंच गईं, रात्रि में जब जंगल में उतरीं तो कोई वाहन नहीं मिला हम धोखे से सामने पड़ गये तो गुस्से में हमारे ऊपर बैठ गईं। मुंबई के ऊपर से गुजर रहे थे तो गुस्से में सोने का हार तोड़ कर फेंक दिया और मुंबई अचानक मायानगरी बन गई, सब जगह का रुपया पैसा और दंद – फंद मुंबई में सिमटने लगा,रास्ते भर कुछ न कुछ फेंकतीं रहीं प्यास लगी तो गोदावरी नदी में पानी पीकर किनारे की पर्णशाला में तपस्या करने बैठ गईं और तब से हम पर्मानेंट उनके वाहन बन गए।

इनकी एक बड़ी बहिन अलक्षमी भी है दोनों बहनें आपस में झगड़ती रहतीं हैं, जहां लक्ष्मी जातीं हैं ये बड़ी बहन नजर रखती है और अपने सीबीआई के भाई को चुपके से मोबाइल लगा देती है और सारा कालाधन पकड़वा देती है। कभी-कभी ये अलक्ष्मी उल्लू को अपना वाहन बताने लगती है कहती है कि लक्ष्मी और विष्णु का वाहन गरुड़ है तो ये काहे उल्लू में सवार घूमती है। दीवाली में ये दोनों बहनें कई पड़ोसी औरतों को लड़वा भी देतीं हैं, दिवाली का दिया रखने के चक्कर में पड़ोसी महिलाएं मारा पीटी में उतारू हो जातीं हैं।

बहनें सगी जरूर हैं पर एक दूसरे को पसंद नहीं करतीं।जे लक्ष्मी तो धनतेरस के एक दिन पहले तंत्र साधना करके हवा में लोभ लालच और मृगतृष्णा की तरंगें छोड़ देती है, चारों तरफ धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली की रौनक चकाचौंध देख देख कर ये खूब खुश होती है, सबकी जेबें खाली कराती हुई स्वच्छता का सघन अभियान चलाती है, लोग जीव हत्या करके पाप के भागीदार बनते हैं घर के सब मच्छड़, मकड़ी, कॉकरोच, चूहे आदि की आफत आ जाती है। लोग दीपावली की शुभकामनायें देते हैं कुछ फारमिलिटी निभाते हैं, नकली मावे की मिठाई लोग चटखारे लेकर खाते हैं फिर बात बात में सरकार को दोषी ठहराते हैं। चायना की झालरें और दिये जगमग करते हुए हिंदी चीनी भाई भाई के नारे लगाते हैं। फटाकों की आवाज से कुत्ते बिल्ली गाय भैंस दहक दहक जाते हैं, अखबार वालों की चांदी हो जाती है पर हम उल्लू थे और उल्लू ही रह जाते हैं हमे समझ नहीं आया ये लक्ष्मी ने हमें अमीर क्यूँ नहीं बनाया, जबकि तंत्र साधना में हमारी जाति को इतना महत्वपूर्ण माना गया।

अच्छा सुनो राज की एक बात और बताता हूं यदि दिवाली में लक्ष्मी जी को वास्तव में आमंत्रित करना है तो साथ में सरस्वती और गणेश जी को जरूर बुला लेना  लक्ष्मी यदि धन देती है तो उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल हो इसलिए इन तीनों का समन्वय जरूरी है लक्ष्मी क्रोधी और चंचल है सरस्वती विद्या रूपी धन की देवी है। केवल लक्ष्मी के सिद्ध होने से “विकास” संभव नहीं है। सरस्वती धन की मदान्धता और धन आ जाने पर पैदा होने वाले गुण दोष को जानती है इसलिए भी छोटी-छोटी बातों पर लक्ष्मी सरस्वती से खुजड़ करने लगती है ऐसे समय गणेश जी सब संभाल लेते हैं गणेश जी के एक हाथ में अंकुश और दूसरे हाथ में मीठे लड्डू रहते हैं और वे संयमी और विवेकवान भी हैं। इतना कहते हुए उल्लू जी खर्राटे लेने लगे।

हमने सोचा यदि धोखे से लक्ष्मी जी आ गईं और पूछने लगीं कि बोलो क्या चाहिए…… तो हम तो सीधे कहं देगें…..

“अपना क्या है इस जीवन में सब कुछ लिया उधार………. ।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765



हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष – दीपक बन जाएं…. ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(प्रस्तुत  है  अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी   द्वारा दीपावली पर्व पर रचित यह विशेष कविता   “दीपक बन जाएं….। )

 

☆ दीपावली विशेष – दीपक बन जाएं…. ☆  

 

अब के दीवाली में, हम कुछ ऐसा कर जाएं

जहाँ अंधेरा हो उस देहरी, दीपक बन जाएं

 

बुझे-बुझे चेहरे हो, उनमें

आशा का संचार करें

रहे तिरस्कृत जो अब तक

हम गले लगाकर प्यार करें,

आंसू उनके पोंछे, जो अबतक नहीं मुस्काये

जहाँ अंधेरा हो………………………..।

 

जो वंचित हैं शिक्षा से

उनको हम विद्या दान करें

आडम्बर में उलझे हैं जो

उनका हम अज्ञान हरें,

दुर्व्यसनों से बचा, सही पथ उनको दिखलायें

जहाँ अंधेरा है………………………….।

 

बनें सहायक उनके हम

जो हैं अशक्त और दीन-हीन

उन्हें स्वच्छता पाठ पढ़ाएं

जिनके तन-मन है मलिन,

कैसे रहे निरोगी निर्मल, उनको समझाएं

जहाँ अंधेरा है………………………..।

 

फोड़ें वहाँ पटाखे हम

हो जहाँ कीटाणु रोगों के

फटे बही-खाते वे, जिन पर

लगे अंगूठे लोगों के,

बनकर हम बारूद, सबक अब उनको सिखलाये

जहाँ अंधेरा है……………..…………….।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 6 – विशाखा की नज़र से ☆ जीवनोत्सव ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना जीवनोत्सव. अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 6  – विशाखा की नज़र से

☆  जीवनोत्सव  ☆

 

खुशी गर तुम हो हमारे जीवन में

तो यूँ छुप के न रहा करो

सम्मुख रहो हमारे

चेहरों पर छा जाया करो

 

दुःख तुम भी हो गर हमारे जीवन में

तो परछाई की तरह रहा करो

चलो भले ही पीछे – पीछे

पर बेड़ियाँ न बना करो

 

रोशनी गर तुम भी हमारे जीवन में

तो दियासलाई में न रहा करो

सर संघचालक बन उजास का

मार्गप्रशस्त किया करो

 

अंधकार तुम भी हो गर हमारे जीवन में

तो वक्त पर ही आया करो

बेवक्त आकर रोशनी से

बिन बात न उलझा करो

 

जीवन तुम सबको लेकर संगसाथ

अनवरत ताल में कदम बढ़ाया करो

प्रखर , मद्धम या बेताल किसी स्वर को

प्रभातफेरी में गूंथ हौले – हौले गुनगुनाया करो

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार – # 21 – व्यंग्य – बड़ा आदमी साइकिल पर ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

 

(आपसे यह  साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं.  हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं.  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं. कुछ पात्र तो अक्सर हमारे गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं.  उन पात्रों की वाक्पटुता को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं ,जो कथानकों को सजीव बना देता है. डॉ परिहार जी ने  एक ऐसे चरित्र का विश्लेषण किया है जो आपके आस पास ही मिल जायेंगे.  एक खानदानी मामूली आदमी की किसी भी हरकत को नजरअंदाज किया जा सकता है किन्तु, एक बड़े आदमी की एक एक हरकत पर समाज की नजर रहती है।   ऐसे सार्थक व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  कलम को नमन. आज प्रस्तुत है उनका ऐसे ही विषय पर एक व्यंग्य  “बड़ा आदमी साइकिल पर  ”.)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 21 ☆

 

☆ व्यंग्य  – बड़ा आदमी साइकिल पर  ☆

 

मगन बाबू ख़ानदानी रईस हैं, वैसे ही जैसे हम ख़ानदानी मामूली आदमी हैं। वे विशाल भवन, पन्द्रह-सोलह कारों और दीगर संपत्ति के स्वामी हैं।

मौजी तबियत के आदमी हैं। नौकरों और परिवार के सदस्यों से उनकी चुहलबाज़ी चलती है। तुफ़ैल मियाँ उनके ख़ास मुँहलगे नौकर हैं। वे जब-तब तुफ़ैल मियाँ के पेट में गुदगुदी मचाते रहते हैं और तुफ़ैल मियाँ नाराज़ी का अभिनय करते, शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करते रहते हैं। एकान्त पाकर मगन बाबू तुफ़ैल मियाँ को कुछ ‘जनता छाप’ गालियाँ भी देते हैं। तुफ़ैल मियाँ ऊपर से ग़ुस्से का प्रदर्शन करते हुए भीतर-भीतर गदगद होते रहते हैं।

उस दिन मगन बाबू अधिक ही मौज में थे। न जाने क्या सूझी कि उन्होंने दीवार से टिकी तुफ़ैल मियाँ की साइकिल एकाएक उठायी और सवार होकर पैडल मारते हुए बंगले के गेट से बाहर निकल गये।

बंगले में तहलका मच गया— ‘बाबूजी साइकिल पर बैठकर निकल गये’, ‘मगन बाबू साइकिल पर बाहर चले गये।’ भारी दौड़-धूप शुरू हो गयी। तुफ़ैल मियाँ चप्पलें फेंककर पीछे-पीछे दौड़े। तीन-चार सेवक और दौड़े। तुरन्त दो कारें गैरेज से निकलीं और बाबूजी की तलाश में दौड़ पड़ीं। मगन बाबू की माताजी ऊपर से उतरकर लॉन में परेशान घूमने लगीं।  बंगले के सारे प्राणी नाना प्रकार की वेशभूषा में लॉन पर जमा होकर उत्सुकता से ख़बर का इन्तज़ार करने लगे।

मगन बाबू उस समय पैडल मारते हुए बाज़ार से गुज़र रहे थे।  पीछे-पीछे चार-पाँच नौकर ‘बाबूजी’ ‘बाबूजी’ चिल्लाते उनके पीछे भाग रहे थे। तुफ़ैल मियाँ उन्हें अपने सर की कसम देते दौड़ रहे थे। लेकिन मगन बाबू मौज में दाहिने-बायें सिर हिलाते बढ़ते जा रहे थे।

बाज़ार के लोग यह कौतुक देख देखकर दूकानों के सामने जमा हो रहे थे। मगन बाबू को सब जानते थे। जो नहीं जानते थे वे दूसरों से पूछ रहे थे, ‘यह क्या है भाई?’ जानकार हँसकर सिर हिलाते, कहते, ‘वे मगन बाबू हैं न? साइकिल पर निकल पड़े हैं। मौजी आदमी हैं। ‘जो मगन बाबू से ज़्यादा परिचित थे,वे उन्हें सम्बोधन करके ‘वाह बाबू साहब’ ‘वाह बाबू साहब’ कह रहे थे। मगन बाबू के इस कौतुक ने पूरे बाज़ार में मौज और दिल्लगी का वातावरण बना दिया था। जहाँ देखो वहाँ ‘मगन बाबू भी क्या हैं!’, ‘मगन बाबू भी खूब हैं!’ सुनायी पड़ रहा था।

साइकिल की रफ़्तार थोड़ी धीमी होते ही तुफ़ैल मियाँ और दूसरे सेवकों ने उनके पास पहुँचकर साइकिल को थाम लिया। तब तक एक कार भी आ पहुँची। मगन बाबू को साइकिल से उतारकर कार में बैठाया गया।  बाज़ार वालों की अच्छी-ख़ासी भीड़ उनके इर्दगिर्द जमा हो गयी थी। ‘अरे वाह रे बाबू साहब!’ ‘धन्य हो बाबू साहब!’ की टिप्पणियाँ चल रही थीं।  मगन बाबू मन्द मन्द हँस रहे थे।

कार के बंगले में दाख़िल होने पर मगन बाबू बाहर निकलकर लॉन में आरामकुर्सी पर फैल गये। उनकी माताजी विह्वल भाव से उनके शरीर पर हाथ फेरने लगीं।  बंगले के सब छोटे-बड़े उन्हें घेरकर खड़े हो गये। उलाहने के स्वर में टिप्पणियाँ आ रही थीं, ‘कुछ तो सोचना चाहिए’, ‘कुछ हो जाता तो?’, ‘बड़ी बेफिक्र तबियत के हैं’, वगैरः वगैरः।  तुफ़ैल मियाँ कह रहे थे, ‘अबकी बार आप ऐसा करके देखिए, लौट के मुझे ज़िन्दा न पाएंगे। ‘ माताजी कह रही थीं, ‘तू क्यों हमको इतना सताता है रे? सब दिन बच्चा ही बना रहेगा? छः बच्चों का बाप बन गया, कुछ तो समझ से काम ले।’ और मगन बाबू आँखें बन्द किये मन्द-मन्द मुस्कराए जा रहे थे।

बंगले के भीतर उनकी पुत्री अपने चाचा से फ़ोन पर बात कर रही थी—-‘आज साइकिल से निकल पड़े।  आफत मच गयी थी। बिलकुल ठीक हैं।  कुछ नहीं हुआ।  मानते नहीं हैं न। कुछ न कुछ मज़ाक करते ही रहते हैं।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश




English Literature – Poetry – ☆ White Swan ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry रूप चतुर्दशी ” published in today’s  ☆ संजय दृष्टि  – रूप चतुर्दशी ☆ We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation. )

☆ White Swan ☆

 

Within me
hisses a black snake
to whom I feed milk
stealthily everyday,
Dress up myself
as white swan,
I go public everyday!
© Captain Pravin Raghuvanshi, NM



मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ मी_माझी – #25 – ☆ आरसा ☆ – सुश्री आरूशी दाते

सुश्री आरूशी दाते

 

(प्रस्तुत है  सुश्री आरूशी दाते जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “मी _माझी “ शृंखला की अगली कड़ी आरसा सुश्री आरूशी जी  के आलेख मानवीय रिश्तों  को भावनात्मक रूप से जोड़ते  हैं.  सुश्री आरुशी के आलेख पढ़ते-पढ़ते उनके पात्रों को  हम अनायास ही अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं से जोड़ने लगते हैं और उनमें खो जाते हैं।  हिंदी में मराठी  शब्द  “आरसा” का अर्थ “दर्पण “है।  सुश्री  आरुशी  जी के इस आलेख ने  सहज ही स्वर्गीय मीनाकुमारी जी के चलचित्र “काजल ” के एक गीत की कुछ पंक्तियों को  मानस पटल पर ला दिया । उन पंक्तियों को आपसे साझा करना चाहूंगा।  उदाहारार्थ – “तोरा मन दर्पण कहलाए / भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए। “  सुश्रीआरुशी जी के संक्षिप्त एवं सार्थकआलेखों  तथा काव्याभिव्यक्ति का कोई सानी नहीं।  उनकी लेखनी को नमन। इस शृंखला की कड़ियाँ आप आगामी प्रत्येक रविवार को पढ़  सकेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मी_माझी – #25 ☆

 

☆ आरसा ☆

 

अत्यावश्यक वस्तू… घरात हा पाहिजेच, निदान ज्या घरात बाईमाणूस राहत आहे त्या घरात तर पाहिजेच… हो ना!

नाही म्हणजे कसं, रोज त्यात पाहायला पाहिजे ना की चेहरा सुंदर झाला आहे की नाही? ते खूप जरुरी आहे, नाही तर सगळाच गोंधळ होईल हो… स्वतःची image, impression, वगैरे सगळं सांभाळावं लागत नाही का ! तेही योग्यच आहे म्हणा…  first impression is the best impression असं कोणीतरी म्हणून ठेवलंय आणि त्यातच आम्ही बऱ्याच वेळा गुंतत जातो…

Impression म्हणजे नेमकं काय हे त्या आरशात पाहिल्यावर कळतं का हो? त्या आरशात नक्की काय काय दिसत असेल? मला तर असं वाटतं की आपल्याला जे दिसायला हवं असेल तेच दिसत असणार… सोयीस्कररित्या… आणि हे सगळं खरंच असतं का? हा प्रश्न स्वतःलाच विचारून स्वतःलाच उत्तर देता आलं पाहिजे, शिवाय खरं आणि खोटं ह्यातील फरक जाणवला की मग योग्य मार्ग नक्की सापडेल, जो शाश्वत असेल…

बाह्यरुपतील चेहरा ह्या काचरुपी आरशात नक्कीच दिसतो, पण मनाचे प्रतिबिंब कुठल्या आरशात दिसेल? शक्यता कमी आहे… कदाचित निरखून पाहिलं तर हे नक्की जाणवेल… मनरुपी डोहात डोकावून पाहायचं धाडस करावंच लागेल कधी ना कधी तरी, जर स्वतःचा खरा चेहरा पाहायचा असेल तर… सर्व मुखवटे दूर करून… तो खोटा मेक अप धुऊन टाकणे गरजेचं आहे, कारण आपले व्यक्तिमत्व आणि जगासमोर ठेवलेले व्यक्तिमत्त्व ह्यात जर फरक असेल तर मानसिक ओढाताण अटळ आहे… शाश्वत अशाश्वत दुनियेतील काय हवं आहे हे मनाशी ठरवणे आवश्यक आहे… मनाची खरी हाक ऐकून त्याप्रमाणे जगणं आवश्यक आहे…

-आरुशी दाते

 

 

© आरुशी दाते, पुणे




मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ लक्ष्मी पूजन ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में  कुछ  विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से  चार कवितायेँ  (1) वसुबारस (अष्टाक्षरी)  (2) धेनू  पूजा (चाराक्षरी)  (3) आली धन त्रयोदशी.. . ! (अष्टाक्षरी)  (4) नर्क चतुर्दशी  (अष्टाक्षरी)आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  महालक्ष्मी जी पर आधारित कविता  लक्ष्मी पूजन (अष्टाक्षरी). शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  नर्क चतुर्दशीहार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – लक्ष्मी पूजन ☆

*अष्टाक्षरी*

अमावस्या  अश्विनाची

दिवाळीचा मुख्य सण

अंधाराला सारूनीया

प्रकाशात न्हाते मन. . . . !

 

धनलक्ष्मी सहवास

घरी नित्य लाभण्याला

करू लक्षुमी पूजन

हवे सौख्य  जीवनाला… !

 

धन आणि अलंकार

राहो अक्षय टिकून

सुवर्णाच्या पाऊलाने

यावे सौख्य तेजाळून.. . . !

 

प्राप्त लक्षुमीचे धन

हवा तिचा सहवास

तिच्या साथीनेच व्हावा

सारा जीवन प्रवास. . . . !

 

सुकामेवा ,  अनारसे

फलादिक शाही मेवा

साफल्याची तेजारती

जपू समाधानी ठेवा.

 

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798




आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (47) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

( योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा )

 

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।

श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ।।47।।

 

सभी योगियों में रमे,जिनके मुझमे प्राण

मेरे मत से श्रेष्ठ वह जो है श्रद्धावान।।47।।

 

भावार्थ :  सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझमें लगे हुए अन्तरात्मा से मुझको निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है।।47।।

 

And among all the Yogis, he who, full of faith and with his inner self merged in Me, worships Me, he is deemed by Me to be the most devout.।।47।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥6॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – दीपावली विशेष – रूप चतुर्दशी ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

प्रबुद्ध पाठकों के लिए आज दीपावली पर्व पर संजय दृष्टि के दूसरा सामयिक अंक भी आपके आत्मसात करने हेतु प्रस्तुत हैं।

 

☆ संजय दृष्टि  – दीपावली विशेष – रूप चतुर्दशी

 

मेरे भीतर

फुफकारता है

काला एक नाग,

चोरी-छिपे जिसे

रोज दूध पिलाता हूँ,

ओढ़कर चोला

राजहंस का, फिर मैं

सार्वजनिक हो जाता हूँ।

हर व्यक्ति मन के सौंदर्य से सम्पन्न हो। रूप चतुर्दशी की बधाई एवं शुभकामनाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता संग्रह ‘योंही’ )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ नर्क चतुर्दशी ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से दो कवितायेँ  (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  अन्य दो सामयिक कवितायेँ  (1)  आली धन त्रयोदशी.. . ! (2)  नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  हार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – नर्क चतुर्दशी ☆

*अष्टाक्षरी*

वध नरकासुराचा

आली वद्य चतुर्दशी .

पहाटेचे शाही स्नान

मांगलिक चतुर्दशी. . . . . !

 

अपमृत्यू टाळण्याला

करू यमाला तर्पण.

अभ्यंगाने प्रासादिक

करू क्लेष समर्पण. . . . !

 

नारी मुक्ती आख्यायिका

आनंदाची रोजनिशी

फराळाच्या आस्वादाने

सजे नर्क चतुर्दशी. . . . . !

 

एकत्रित मिलनाची

लाभे पर्वणी अवीट

गळाभेट घेऊनीया

जागवूया स्नेहप्रीत.. . . !

 

रोषणाई, फटाक्याने

होई साजरा  उत्सव.

दारी नाचे दीपावली

मनोमनी दीपोत्सव. . . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.