मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #20 – कोजागरी ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एकसामयिक एवं सार्थक कविता  “कोजागरी”।)

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 20 ☆

 

 ☆ कोजागरी ☆

ती सोबतीस माझ्या कोजागरीच माझी
येण्यास सोबतीला होताच चंद्र राजी
मी भाग्यवंत आहे तू भेटलीस येथे
माझे तुझे असूदे आता दिगंत नाते
ग्लासात चंद्र आहे कोजागरी म्हणूनी
ती केशरी मसाला गेली पुरी भिजोनी
ओठास लावलेला प्याला जरी दुधाचा
त्याच्यात गोडवा हा आला कसा मधाचा
ही रात्र पौर्णिमेची हे रूप ही रुपेरी
चंद्रास डाग आहे माझीच प्रीत कोरी
ना वाटली कधीही मज नजर धुंद इतकी
प्याला जरी दुधाचा तू वाटतेस साकी
बागा भरून गेल्या साऱ्याच माणसांनी
दोघेच फक्त आम्ही ह्या चिंब चांदण्यांनी

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 4 – ☆ मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी ☆ – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

(सुश्री ज्योति  हसबनीस जीअपने  “साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी ” के  माध्यम से  वे मराठी साहित्य के विभिन्न स्तरीय साहित्यकारों की रचनाओं पर विमर्श करेंगी. आज प्रस्तुत है उनका आलेख  “मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी” । इस क्रम में आप प्रत्येक मंगलवार को सुश्री ज्योति हसबनीस जी का साहित्यिक विमर्श पढ़ सकेंगे.)

 

☆साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 4 ☆

 

☆ मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी ☆ 

 

मनोव्यापार….माणसाचं मन हा अतिशय गूढ, गहन,  अनाकलनीय आणि तितकाच गुंतागुंतीचा विषय आहे. बहुरूपी, बहुढंगी मनाचे विभ्रम तर बघा जरा, घरी असलो तर बाहेर मोकाट, बाहेर असलो तर घरी सुसाट, देवासमोर श्लोक म्हणतांना देखील आजूबाजूच्या हालचाली टिपण्याचं त्याचं कसब विलक्षण ! कितीही रंजक पुस्तक हातात असू दे खिडकीतून दिसणा-या झाडाच्या फांद्या न्याहाळण्यात ते दंग ! परीक्षा संपण्याधीच त्याचे सुट्टीतले मनसुबे तयार. अप्रिय विषयाला पूर्णविराम न देता त्याचा चघळचोथा करण्यात आनंद मानावा तो त्यानेच ! एखाद्याबद्दलचा आकस, पूर्वग्रह गोंजारत त्याला अढळपद देण्याची दिलदारी दाखवावी ती देखील त्यानेच ! पा-यालाही मागे टाकणारी त्याची चंचलता, वा-यालाही लाजवेल असा त्याचा वेगवान मुक्त संचार, प्रसंगी खुपणारा त्याचा कोतेपणा,तर प्रसंगी गगनाला गवसणी घालणारा त्याचा मोठेपणा…छे..नाही थांग लागत, सारंच अनाकलनीय !

आज काव्यदिंडीतलं तिसरं पाऊल टाकतांना माहेरच्या आठवणीने भरून येतंय, कारण मी बोट धरलंय माझ्या माहेरच्या मायेच्या माणसाचं, खानदेशच्या सुप्रसिद्ध कवयित्री बहिणाबाई चौधरींचं !

 

☆ मन ☆

 

मन वढाय वढाय

उभ्या पिकातलं ढोर

किती हाकला हाकला

फिरी येतं पिकावर

 

मन मोकाट मोकाट

त्याले ठायी ठायी वाटा

जशा वा-यानं चालल्या

पान्याव-हल्यारे लाटा

 

मन लहरी लहरी

त्याले हाती धरे कोन

उंडारलं उंडारलं

जसं वारा वाहादन

 

मन जह्यरी जह्यरी

ह्याचं न्यारं रे तंतर

अरे इचू साप बरा

त्याले उतारे मंतर !

 

मन पाखरू पाखरू

त्याची काय सांगू मात ?

आता व्हतं भुईवर

गेलं गेलं आभायात

 

मन चप्पय चप्पय

त्याले नाही जरा धीर

तठे व्हयीसनी ईज

आलं आलं धरतीवर

 

मन एवढं एवढं

जसा खाकसचा दाना

मन केवढं केवढं ?

आभायात बी मायेना

 

देवा कसं देलं मन

अास नाही दुनियात !

आसा कसा रे तू योगी

काय तुझी करामत !

 

देवा आसं कसं मन ?

आसं कसं रे घडलं

कुठे जागेपनी तूले

असं सपनं पडल !

 

© ज्योति हसबनीस,

नागपुर  (महाराष्ट्र)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – ☆ Yoga  Nidra (In Hindi) – योग निद्रा (हिंदी में) ☆ – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 

 ☆ Yoga  Nidra (In Hindi) – योग निद्रा (हिंदी में) ☆ 

 

Video Link >>>>>>

 

 

YOGA NIDRA – योग निद्रा (हिंदी में) 

 

Yoga nidra is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation.

योग-निद्रा पूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है.

A single hour of yoga nidra is as restful as four hours of ordinary sleep.

एक घंटे की योग-निद्रा का अभ्यास चार घंटे की साधारण नींद के बराबर विश्रामदायक है.

Yoga nidra is a more efficient and effective form of psychic and physiological rest and rejuvenation than conventional sleep.

शारीरिक एवं आत्मिक विश्राम प्रदान करने तथा पुनः ऊर्जान्वित करने हेतु, योग-निद्रा, साधारण नींद की अपेक्षा, अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है.

Yoga nidra is a technique which can be used to awaken divine faculties, and is one of the ways of entering samadhi.

योग-निद्रा एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग अपने भीतर दिव्य गुणों को जाग्रत करने के लिए किया जा सकता है, साथ ही साथ यह समाधि की अवस्था में प्रवेश करने का एक साधन भी है.

Most people sleep without resolving their tensions. This is termed ‘nidra’. Nidra means sleep. Yoga nidra means sleep after throwing off the burdens. It is of a blissful, higher quality altogether. Yoga Nidra may be called The Blissful Relaxation.

अधिकतर लोग अपने तनावों का निराकरण किये बगैर सोते है. इसे निद्रा या नींद कहते हैं. योग निद्रा का अर्थ है सभी बोझों को उतार कर सोना. योग निद्रा को आनंदपूर्ण विश्रांति कहा जा सकता है.

सन्दर्भ ग्रंथ: योग निद्रा – स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

(यह विडियो स्वामी सत्यानन्द सरस्वती को समर्पित है)

Music:
Healing by Kevin MacLeod is licensed under a Creative Commons Attribution license (https://creativecommons.org/licenses/…)
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Artist: http://incompetech.com/

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The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer
Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (35) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

 ( मन के निग्रह का विषय )

 

श्रीभगवानुवाच

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्‌।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।35।।

 

भगवान ने कहा-

निश्चय ही मन है बड़ा चंचल औ” अग्राहय

पर अर्जुन अभ्यास से होता वह भी ग्राहय।।35।।

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास (गीता अध्याय 12 श्लोक 9 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए।) और वैराग्य से वश में होता है ।।35।।

 

Undoubtedly, O mighty-armed Arjuna, the mind is difficult to control and restless; but,  by practice and by dispassion it may be restrained! ।।35।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ भीड़ ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा संस्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए  प्रसिद्ध. 

 

कविता – भीड़ ☆

 

इन दिनों

जहाँ भी जाता हूँ

मेरे पीछे भीड़ ही भीड़ होती है

घर में, विद्यालय में

अस्पताल में, मुर्दाघर में

गाँव -घर के गलियारों में

बाज़ारों में, मेलों-ठेलों में

जहाँ पुलिस नहीं है उन चौराहों पर तो

और भी अगड़म-बगड़म तरीके से

पैदल भागती,

आँख मूँद सरपट्टा मार सड़क पार जाती

या फिर जाम में फँसी

कारों, बसों, टैंपो, रिक्शों में

भरी हुई यह भीड़

अनावश्यक रूप से पों-पों करते हुए

ठेलती चलती है अजनबीपन को

मुंडन-सुंडन में

शादी-ब्याह में,

बजबजाती वर्षगांठों में

एक अजीब तरह की

कास्मेटिक्स की दुर्गंध छोड़ती हुई भीड़

हमसे सही नहीं जा रही है इन दिनों

जहाँ भी जाता हूँ न जाने क्यों

इंसान तो इंसान मुर्दे तक

भीड़ की शक्ल में घेर कर खड़े हो जाते हैं हमें

कभी-कभी मुझे शक होता है कि-

यह भीड़ सिर्फ मुझे ही दिखती है

या खुद भीड़ को भी

इत्मीनान के लिए लिए पीछे मुड़-मुड़कर भी देखता हूँ

फिर खुद पर ही शर्मिंदा होता हूँ कि कहीं भीड़

कुछ समय के लिए पागल न समझ बैठे

या फिर मुझे पागल घोषित ही न कर दे

हमेशा-हमेशा के लिए

और अचानक बेवजह बात-बेबात मुझपर

ज़ोर-ज़ोर से पत्थर फेंकने लगे यह भीड़

इसी से

बाहर निकलने के नाम भर से चक्कर आते हैं

इन दिनों

जी मिचलाता है

उबकाई आती है

कुछ लार-सी ही

बाहर निकल जाए तो भी

शुकून मिल जाता है मन को

एक दिन पत्नी ने  मुझे बेसिन के पास ओ-ओ करते देखा तो

मज़ाक कर बैठी,

‘लो बहू तुम्हारी ओर से न सही तो

तुम्हारे बाबू जी की ओर से ही सही

खुशखबरी तो सुन रही हूँ कहीं से।’

उसके बाद से तो घर  में ज़ोर से खाँसता तक नहीं हूँ

किसी  के सामने

किसी को भी नहीं बताता

अपनी यह समस्या

कानी चिड़िया को भी नहीं

न ही किसी के पास

इन आलतू-फालतू बातों को सुनने के लिए समय ही है

इतनी गंभीर गोपनीयता के बावजूद

कई महीनों से

बच्चों को लगता है कि

मुझे कुछ मानसिक  समस्या है

लेकिन दिखाने कोई नहीं ले जाता कहीं

अभी कुछ दिनों से मुझे भी लगता है

किसी मनोचिकित्सक को दिखा ही लूँ

पोती को ले जाऊँगा साथ

अभी छोटी है तो क्या

कम से कम इससे

मज़ाक तो नहीं बनूँगा किसी के सामने

मन करता है कि जल्दी  ही चला जाऊँ

‘उपचार से बचाव अच्छा है’

पर,

वहाँ की भीड़ से भी डर रहा हूँ

सोचता हूँ घर से ही न निकलूँ तो ही बेहतर  है

लेकिन यह भी कोई स्थायी समाधान तो नहीं

आखिर करूँ तो करूँ क्या

अपना इलाज़ कराऊँ या उस भीड़ का

जो मुझको

मेरे साथ मेरे अपनों को भी

अपने में विलीन कर लेने के लिए

मेरे पीछे पड़ी है

घर से डॉक्टर के यहाँ तक

चार-पाँच अन्धे मोड़ हैं

बिना हॉर्न दिए भटभटाते हुए

अचानक घुस आते हैं लड़के

मुन्नी भी

भाग लेती है किसी ओर भी

अभी बहुत छोटी है

तो भी उठाई जा सकती है

कितने बड़े-बड़े मॉल हैं

जिनमें भी खो सकती है मेरी मुन्नी

मैं पागल ऐसे  ही नहीं हो रहा हूँ

भीड़ के पिछले इतिहास भी तो हैं

जिनमें खोए लोग

अभी तक खोज-खोज के थक गई हैं

हमारी सरकारें

यह भीड़ भी किसी समुद्र से कम नहीं

जिसमें अपना कोई डूब  जाए तो –

फिर खोजे  ही न मिले ।

 

©  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – क्रोध – ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – क्रोध

 

दोनों में बहस होने लगी थी। विवाद की तीक्ष्णता बढ़ती गई। आक्रोश में दोनों थे पर पहला मनुष्य था, दूसरा क्रोधी था। क्रोध, तर्क का पथ तज देता है, मर्म को चोट पहुँचाने की राह चलता है। इस राह के विनाशकारी मोड़ पर तिलमिलाहट टकराती है।

तिलमिलाहट में क्रोधी ने एक बड़ा पत्थर मनुष्य के सिर पर दे मारा। मनुष्य की मौत हो गई। क्रोधी को फाँसी चढ़ना पड़ा।

यश, संपदा, नेह, सम्बंध, अंतत: समूचे अस्तित्व की बलि ले लेता है क्रोध।

 

मनुष्यता बनी रहे।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 16 – जुग जुग जियो ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  व्यंग्य विधा में एक प्रयोग  “माइक्रो व्यंग्य  – जुग जुग जियो” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 16☆

 

☆ माइक्रो व्यंग्य –  जुग जुग जियो   

 

ये बात तो बिलकुल सही है कि लोगों ने मरने का सलीका बदल दिया है।

रात में सोये और बिना बताए चल दिए, कहीं टूर में गए और वहीं दांत निपोर के टें हो गए, न गंगा जल पीने का आनन्द उठाया न गीता का श्लोक सुना ,…..अरे ऐसा भी क्या मरना?

…..पहले मरने का नाटक कर लो थोड़ी रिहर्सल हो जाय, नात – रिस्तेदार सब जुड़ जाएँ। पहले से रोना धोना सुन लिया जाय। कुछ अतिंम इच्छा पूरी हो जाए।

भई मरना तो सभी को है तो तरीके से मरो न यार,  घर वालों को मोहल्ले पड़ोस से पर्याप्त सहानुभूति बगैरह मिल जाए। अब तुम तो जाय ही रहे हो कुछ पडो़स वालों को भी डराय दो कि लफड़ा किया तो भूत बनके निपटा दूंगा।

यदि दिल के कोई कोने में कोई बचपन की पुरानी प्रेमिका छुपी रह गई हो तो उसको भी कोई बहाने से बुला लिया जाए।

बुलंद इमारत के खण्डहर में भी ताकत होती है, जश्न मनाके मरने का तरीका होना चाहिए।  मरने के पहले अड़ जाओ कि आज ही 500 लोगों को जलेबी पोहा मेरे सामने खिलाओ। अड़ जाओ कि जिस पुलिस वाले ने डण्डे से घुटना तोड़ा था उसको  सामने गुड्डी तनवायी जाए। ऐसी अनेक तरह के अविस्मरणीय मजेदार किस्सों के साथ मरोगे तो मरने का अलग मजा आएगा ………! आदि इत्यादि।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – शरद पूर्णिमा विशेष – ☆ शरद पूर्णिमा – एक तथ्यात्मक विवेचना ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। आज प्रस्तुत है उनका आलेख  “शरद पूर्णिमा  – एक तथ्यात्मक विवेचना”।  यह आलेख उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक  का एक महत्वपूर्ण  अंश है। इस आलेख में आप  नवरात्रि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।  आप पाएंगे  कि  कई जानकारियां ऐसी भी हैं जिनसे हम अनभिज्ञ हैं।  श्री आशीष कुमार जी ने धार्मिक एवं वैज्ञानिक रूप से शोध कर इस आलेख एवं पुस्तक की रचना की है तथा हमारे पाठको से  जानकारी साझा  जिसके लिए हम उनके ह्रदय से आभारी हैं। )

 

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☆ “शरद पूर्णिमा   – एक तथ्यात्मक विवेचना”।

 

आज शरद पूर्णिमा है मेरी पुस्तक पूर्ण विनाशक में से शरद पूर्णिमा पर एक लेख :

क्या आप जानते हैं कि एक पूर्णिमा या पूर्णिमा की रात्रि है जो दशहरा और दिवाली के बीच आती है, जिसमें चंद्रमा पुरे वर्ष में पृथ्वी के सबसे नज़दीक और सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन लोग चंद्रमा की रोशनी की पूर्णता प्राप्त करने के लिए कई अनुष्ठान करते हैं क्योंकि इसमें उपचार गुण होते हैं । इसे शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा (शब्द ‘ कोजागरी’ का अर्थ है ‘जागृत कौन है’ अर्थात ‘कौन जाग रहा है?’) या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात्रि भर चाँदनी में रखने का विधान है । कुछ लोग मानते हैं कि इस रात्रि देवी लक्ष्मी लोगों के घर का दौरा करने के लिए जाती है, और उन लोगों पर खुशी दिखाती है जो उन्हें इस रात्रि जाग कर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हुए मिलते हैं । इसके पीछे एक लोकप्रिय कथा भी है। एक बार एक राजा एक महान वित्तीय संकट में था। तो रानी, अपने पति की सहायता करने के लिए, पूरी रात्रि जागकर देवी लक्ष्मी की पूजा करती है ।जिससे देवी लक्ष्मी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और राजा फिर से धन धन्य से पूर्ण हो जाता है ।

इसे कौमुदी (अर्थ : चन्द्रमा का प्रकाश) उत्सव भी कहा जाता है और इसे दैवीय रास लीला की रात्रि माना जाता है । शब्द, रास का अर्थ “सौंदर्यशास्त्र” और लीला का अर्थ “अधिनियम” या “खेल” या “नृत्य” है । यह हिंदू धर्म की एक अवधारणा है, जिसके अनुसार गोपियों के साथ भगवान कृष्ण के “दिव्य प्रेम” का खेल दर्शया जाता है ।

गोपी शब्द गोपाला शब्द से उत्पन्न एक शब्द है जो गायों के झुंड के प्रभारी व्यक्ति को निरूपित करता है । हिंदू धर्म में भगवत पुराण और अन्य पुराणिक कहानियों में वर्णित विशेष रूप से नाम गोपीका (गोपी का स्त्री रूप) का प्रयोग आमतौर पर भगवान कृष्ण की बिना शर्त भक्ति (भक्ति) अपनाने वाली गाय चराने वाली लड़कियों के समूह के संदर्भ में किया जाता है । इस समूह की एक गोपी को हम सभी राधा (या राधिका) के रूप में जानते हैं। वृंदावन में भगवान कृष्ण के साथ रास करने वाली 108 गोपीका बताई गयी हैं । भगवान कृष्ण ने राधा और वृंदावन की अन्य गोपियों के साथ दिव्य रास लीला इस शरद पूर्णिमा की रात्रि ही की थी । भगवान कृष्ण ने खुद को उनमें से प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य करने के लिए अपनी प्रतिलिपियाँ बनायीं और इसी रात्रि भगवान कृष्ण ने अपने भक्ति रस का प्रदर्शन राधा और अन्य गोपियों के साथ रास-लीला करके किया । यह दिन प्रेमियों द्वारा भी मनाया जाता है। प्रेमी जोड़े पूर्णिमा की इस रात्रि को एक-दूसरे के लिए अपना प्यार व्यक्त करते हैं । आज भी अगर कोई वृंदावन के निधिवन जाता है, और शरद पूर्णिमा की रात्रि वहाँ पर रहता है, तो प्रेम का विशेष रस निधिवन के अंदर उपस्थित वृक्षों से बहने लगता हैं जो किसी भी व्यक्ति के भाव को तुरंत प्रेम के दिव्य रस में बदल देता है। यदि वह व्यक्ति शुद्ध है और खुद को दूसरे के लिए समर्पित करता है। एवं वह जीवन में दूसरों के प्रति घृणा नहीं करता है। तो निधिवन में रात्रि को प्यार की एक सकारात्मक ऊर्जा उसके शरीर से चारों ओर बहने लगती है। लेकिन अगर कोई रात्रि में बुरे इरादे से जो शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से शुद्ध नहीं है, वह निधिवन में जाता है तो वह मर जाता है या पागल हो जाता है”

‘निधि’ का अर्थ है खजाना और ‘वन’ का अर्थ ‘वन या जंगल’ है, इसलिए ‘निधिवन’ का अर्थ है वन का खजाना ऐसे ही ‘वृंदा’ का अर्थ फूलों का समूह है, इसलिए ‘वृंदावन’ का अर्थ कई प्रकार के फूलों से भरा वन है”.

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #19 – घरेलू बजट ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “ घरेलू बजट” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 19 ☆

 

☆  घरेलू बजट 

 

हिन्दू कलैण्डर के हिसाब से दीपावली से दीपावली तक बही खाता रखा जाता है, प्रायः आय व्यय की नई बही बनाकर, उसकी पूजा करके दूकानदार दीपावली के बाद से नया खाता सुरू करते हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से शासकीय रूप से १ अप्रैल से ३१ मार्च का समय वित्त वर्ष के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि राज्य व केंद्र सरकार फरवरी के महीने में सदन में नये वित्तीय वर्ष के लिये बजट प्रस्तुत करती हैं।

बजट का मतलब होता है आमदनी व खर्च का अनुमान.इन दिनो अखबारो, व समाचारो में प्रायः बजट की चर्चा पढ़ने सुनने को मिल जाती है। क्या आपने कभी अपने घर का बजट बनाया है ? आपकी मासिक आमदनी कहां खर्च होती है? क्या आपने कभी इस बात का हिसाब लगाया है कि आपके घरेलू खर्चो पर आपकी आय का कितना हिस्सा खर्च हो रहा है? भविष्य के लिये आप कितनी बचत कर रही हैं? आप ही अपने घर की गृह मंत्री और वित्त मंत्री भी हैं अतः घर के बजट बनाने और उसे क्रियांवित करने की जबाबदारी भी आपकी ही है।

घरेलू बजट बनाने का अर्थ घर के सभी खर्चों का हिसाब लगाने से कहीं बढ़कर है। इसके जरिए आप हिसाब लगा सकती हैं कि आपकी आय में से कितना खर्च होता है और कितना इसमें से बचाया जा सकता है। समय पर बच्चो की फीस, बिजली, पानी, अखबार, दूध किराने के बिलों का भुगतान करना, कर्जों का सही समय पर निपटारा करना और अपने बचत, निवेश लक्ष्यों को हासिल करना भी घरेलू बजट के अंतर्गत आता है।

घर का बजट बनाने का सबसे सही उपाय है कि आप खर्चों के लिए अलग-अलग लिफाफे बनाएं (किराए, बिजली बिल, कार ईएमआई इत्यादि) इसके जरिए आप बिल्कुल सही तरीके से जान पाएंगे कि कि कितना पैसा किस मद पर खर्च हो रहा है। और अगर कुछ बचता है तो आप बची हुई राशि को अगले महीने के लिए बचाकर रख सकते हैं या फिर अपनी बचत के रूप में अलग भी रख सकते हैं।

योजना बनाने से शुरूआत करें

शुरूआत के लिए अपनी छोटी से बड़ी जरूरतों और इच्छाओं की लिस्ट बनाकर देखें। खर्चों को जरूरतों और चाहतों के बीच बांटने से आपको ज्ञात होगा कि जीने के लिए किन चीजों की जरूरत है और कौन-कौन से खर्चे सिर्फ आपकी जीवन-शैली को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक हैं।

बजट का एक उपयुक्त फॉर्मेट बनाएं

आपको अपनी मासिक आय के हिसाब से चलना होगा और इसके आधार पर ही लागत निकालनी होगी। तो सारी अंकगणना और हिसाब-किताब इस तरह से करें कि आपके साल भर का बजट तैयार हो जाए। आमदनी के रूप में वेतन, बच्चो को मिलने वाली स्कालरशिप, मकान किराया, अन्य संभावित इनकम, आदि को एक ओर लिखें। दूसरी ओर की लिस्ट बड़ी होगी, घर के सभी सदस्यो के साथ बैठकर नियमित व आकस्मिक खर्चो को सूची बद्ध करें पिछले साल हुये खर्चो को संभावित मंहगाई के कारण थोड़ा बढ़ाकर जोड़ें। इसके बाद देखें कि आपकी सालाना आमदनी में ये फिट हो रहा है या नहीं।

सिर्फ बजट बनाना ही काफी नहीं है, इसे देखें कि आपका बजट केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि असली जिंदगी में भी सही चल रहा है या नहीं। एक सही बजट वही है जो देखने में भले ही साधारण हो लेकिन आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल साबित हो।हर थोड़े दिनों बाद बजट का विश्लेषण भी कर सकते हैं।

आकस्मिक खर्चों के लिए तैयार रहें…

कार मरम्मत, चिकित्सा खर्च, शादी और जन्मदिन, घरेलू उपकरणों का रख-रखाव, आकस्मिक यात्राएं ऐसे खर्च हैं जिनके लिए आपके बजट में कुछ स्थान जरूर होना चाहिए।

जिम्मेदारियां बांटे-

अगर आपके परिवार में वयस्क और युवा लोग हैं तो बेहतर होगा कि उन्हें भी इस बात की जानकारी हो कि एक पूरे महीने मासिक आमदनी को कैसे चलाया जाता है। इसके अलावा अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उन्हें भी इसकी जानकारी दें और सिखाएं कि बजट कैसे बनाया जाता है। आप निश्चित ही ये देखकर हैरान होंगे कि आपके बच्चों के पास कितने नए और उपयोगी सुझाव हैं।

लक्ष्य निर्धारित करें

हर महीने कुछ पैसे बचाने का लक्ष्य बनाएं और इसके जरिए कुछ हासिल करने पर खुशी महसूस करें। चाहे वो कोई मोबाइल हो, या छुट्टी पर बाहर जाने का प्रोग्राम हो। इसके लिए एक तरीका है कि आप छोटी-छोटी चीजों के लिए क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से बचें और ईएमआई पर वस्तुएं खरीदनें से बचें।

बजट बनाने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं। ये आपकी आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए ना कि कोई बंधन। एक अच्छा बजट आपको पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है। इसके जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं।

आपने सुना होगा कि केंद्र सरकार के खर्चे बढ़ गए हैं। सरकार इन खर्चो को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। इसी तरह आप भी अपने खर्चो को नियंत्रित करें।

प्राथमिकताएं तय करें

सरकार अपने बजट में प्राथमिकता के क्षेत्र तय करती है। वो स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को इस क्षेत्र में रखती है। आपको भी अपने खर्चे की प्राथमिकताएं जरूर तय कर लेनी चाहिए। मसलन अगर आपकी प्राथमिकता ये है कि बच्चो को अच्छी शिक्षा मिले  तो फिर उस पर खर्च करना जरूरी है। अगर आपने कर्ज ले रखा है, तो उसके भुगतान को भी नहीं भूलना चाहिए।

हर साल बजट बनाएं

बजटिंग को आदत में शामिल करें। अगर इसमें कुछ वक्त भी लगे और कुछ झंझट समझ में आए, तो भी इस काम को करें। अगर आपको इसमें कुछ दिक्कत समझ में आती है, तो इसे आसान बनाएं। खर्चो को लिखें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप इसके लिए गंभीर नहीं हैं। इसके लिए आप विशेषज्ञ की सलाह भी ले सकते हैं। जब भी आपको बोनस या अतिरिक्त मुनाफा हो, तो बड़े खर्चो के लिए पैसा बचाएं। मसलन छुट्टियां बिताने के लिए या फिर त्यौहारो पर होने वाले खर्चे के लिए पैसा बचाएं। बचत भी आमदनी ही है।

कहावत है कि जितनी चादर हो पैर उतने ही फैलाने चाहिये, बजट बनाने से आपको अपनी चादर का आकार स्पष्ट रूप से मालूम होता है फिर आप यह तय कर सकती हैं कि आपको चादर बड़ी करनी जरूरी है या पैर सिकोड़कर काम चलाया जा सकता है।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-18 – बहीण ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मानवीय रिश्तों पर आधारित  चारोळी विधा में  रचित एक भावप्रवण कविता  – “बहीण । )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 18 ☆ 

 

 ☆  बहीण  ☆

 

थोरली बहीण

प्रेमळ सावली।

वैराण जीवनी

भासते माऊली।

 

भावा बहिणीचे नाते

जणू मोहरे वसंत ।

रूक्ष तापल्या मनाची

असे पहिली पसंत ।

 

खट्याळ भाऊराया

काढी बहिणीची खोडी।

लाडीक या भांडणात

वाढे जगण्याची गोडी।

 

अनमोल भासे मज

तुझी चोळी अन्  साडी।

नको मोडूस राजसा बहिणीची आस वेडी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

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