श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती एक अतिसुन्दर प्रेरक लघुकथा “बिदाई”। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 29 ☆
☆ लघुकथा – बिदाई ☆
माना अम्मा का बाड़ा शहर के कोने पर मशहूर है। गरीब दुखी परिवार जिनके पास रहने सर छुपाने की जगह नहीं। सभी माना अम्मा के बाड़ा में आकर रहते थे।
माना अम्मा को कोई नहीं जानता था कि कहां की है और किस जात बिरादरी की है। सभी उसे मानते थे। और सभी उनका कहना मानते थे। इसलिए उनका नाम माना अम्मा पड़ गया था।
उसी बाड़े में फातिमा और शकुन दोनों का परिवार रहता था। मेहनत मजदूरी कर अपना अपना परिवार चला रहे थे। एक मुस्लिम परिवार और दूसरा हिंदू परिवार परंतु कहीं कोई भेदभाव नहीं।
दीपावली, होली भी साथ-साथ तो ईद, बकरीद भी मिलकर मनाते थे। फातिमा को गर्भ था। फातिमा बच्चा प्रसव के समय बहुत ही परेशान थी। उसका पति बार-बार डॉक्टर से हाथ जोड़कर कह रहा था… “मेरी फातिमा को बचा लीजिए” परंतु डॉक्टर ने कहा… “इनका शरीर बहुत ही कमजोर हो चुका है और खून की बहुत कमी हो गई है। हमारी कोशिश की जा रही है।” परंतु जो होना था वही हुआ नन्हीं सी बच्ची को जन्म देकर फातिमा शांत हो गई ।
शकुन पास में थी अस्पताल में कुछ उसको समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें?? बच्ची को सीने से लगा एक संकल्प लेकर उसे घर ले आए। सभी कहने लगे… कि मुसलमान की लड़की को क्यों पालने जा रही हो! परंतु शकुन को किसी बात की चिंता नहीं थी। और किसी की बात को उसने नहीं सुना ।
अपने पति, पुत्र और उस नन्हीं सी जान को लेकर सदा सदा के लिए बाड़ा से निकलकर दूसरे शहर को चली गई।
आज बिटिया की शादी हो रही है। बिदाई के समय मां के बहते हुए आंसू को बच्ची समझ नहीं पा रही थी। दोनों भाई बहन मां से लिपटे हुए थे और मां कह रही थी.. “बेटे अपनी बहन का अपने से ज्यादा ध्यान रखना। कभी उसे अकेला नहीं करना। हमेशा सुख दुख में उसका साथ देना और कभी मायके की कमी महसूस नहीं होने देना।” बेटा भी मां को अपलक देख रहा था। बहन ने हंसकर कहा… “यह छोड़ेगा तो भी मैं इसे पकड़ कर रखूंगी। आप चिंता ना करें।”
माना अम्मा भी उस शादी में शामिल थी। पुरानी राज की बात को जानकर बहुत ही मंद मंद मुस्कुरा रही थी और अपने आप में गर्व महसूस कर रही थी कि … आज मेरे बाड़े की अहमियत क्या है।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश