हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 10 ☆ सपना ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की  स्व. माँ  की स्मृति में  एक भावप्रवण कविता   “सपना”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 10 साहित्य निकुंज ☆

 

☆ सपना 

 

मैं नींद

के आगोश में सोई

लगा

नींद में

चुपके-चुपके रोई

जागी तो

सोचने लगी

जाने क्या हुआ

किसी ने

दिल को छुआ

कुछ-कुछ

याद आया

मन को बहुत भाया

देखा था

सपना

वो हुआ न पूरा

रह गया अधूरा

उभरी थी धुंधली

आकृति

अरेे हूँ मैं

उनकी कृति

वे हैं

मेरी रचयिता

मेरी माँ

एकाएक

हो गई

अंतर्ध्यान

तब हुआ यह भान

ये हकीकत नहीं

है एक सपना

जिसमें था

कोई अपना

 

© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची



मराठी साहित्य – रक्षाबंधन विशेष – ☆ बहिणीची माया. . . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(आज प्रस्तुत है रक्षा बंधन पर्व पर  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की   विशेष कविता बहिणीची माया. . . . !)

 

☆ बहिणीची माया. . . . ! ☆

 

बहिणीची माया, एक प्रयास

ठरते अगम्य  उत्कट प्रवास.

बहिणीची माया, स्वप्नील वाट

स्वतःच बनते निश्चल पायवाट.

बहिणीची माया,  प्रवाही भाषा.

नाजूक राखीची , साजूक रेषा.

बहिणीची माया, व्याकुळ वेदना

पावसाने जाणलेली धरणीची संवेदना.

बहिणीची माया, बकुळीचे फूल

वास्तवाच्या परिमलात, आठवणींचे मूल.

बहिणीची माया, आवर्त  भोवऱ्यात .

मनातले दुःख,   मनाच्या रानात .

बहिणीची माया, वास्तल्याचे वावर

संकटाच्या पाणवठ्यावर, सुखाची पाभर.

बहिणीची माया,  अवीट हौस

कधी न सरणारा ,  नखरेल पाऊस.

बहिणीची माया, रेशमी कुंपण

अलवार नात्याची,  हळुवार गुंफण.

बहिणीची माया, कधी कथा, कधी कविता

वाचायला जाताच, डोळ्यात सरीता

बहिणीची माया,  एक फुलवात

काळजाच्या दारात उजेडाची वात.

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.




मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ☆ आपली नाती आणि आपले ग्रह ☆ – श्रीमति धनश्री कुलकर्णी 

श्रीमति धनश्री कुलकर्णी 

 

(श्रीमति धनश्री कुलकर्णी जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। वे एक संवेदनशील लेखिका और प्रयोगशील  उद्यमी हैं। उन्हें संस्थागत प्रशासन का लगभग 13 वर्षों का अनुभव है। सौ. धनश्री जी भगवत गीता का अभ्यास, अध्ययन और अध्यापन भी करती हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें ज्योतिष शास्त्र का भी ज्ञान है एवं वे सतत अध्ययन कर रही हैं। आज प्रस्तुत है उनका आलेख “आपली नाती आणि आपले ग्रह” जिसमें उन्होने रिश्तों और ग्रहों के सम्बन्धों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।

 

☆ आपली नाती आणि आपले ग्रह ☆

 

घरीदारी सर्वांनी आपल्याला अनुकूल असावे असे वाटत असल्यास आपण हे समजून घेतलं पाहिजे की आपली सर्व नाती आणि आपले ग्रह यांचा थेट संबंध आहे. मी आता कुठे ज्योतिष या विषयाचा थोडा अभ्यास करायला सुरुवात केली, आणि अर्थात स्व:ताची व घरातील मंडळी यांची पत्रिका प्राथमिक अभ्यासासाठी घेतली. आणि मग नाती आणि ग्रह यांचा थेट संबंध 100% आहे असे पटले.

आई चंद्र, वडील सूर्य, भाऊ मंगळ, बहीण (बहीण, मावशी, आत्या) बुध, तुमची पत्नी ही शुक्र तर, सर्व गुरुजन, ज्येष्ठ मंडळी व आपले पितर हे गुरू वडिलांच्या कडील नाती खास करून आजोबा राहू तर आईकडील नाती म्हणजे खास करून मामा हे केतू तर घरातील सेवेकरी मंडळी शनिदेवांचे प्रतिनिधी  आहेत असे लक्षात आले..तुमचं आईशी वागणे चांगले ठेवा, तिची योग्य ती कदर ठेवा तुमचा चंद्र तुम्हांला अनुकूल फळे देईल…मातृदेवो भव चे अक्षरशः पालन करून पहा.. सूर्योपासना कराच पण त्यापेक्षा जास्त पितृदेवो भव या भावाने वडिलांना मान द्या, त्यांच्या कष्टांची जाणीव ठेवून त्यांच्या उतारवयात त्यांना सुखसमाधान कसे मिळेल ते पहा, यश कीर्ती प्रसिद्धी तुमच्या द्वारी चालत येईल, बहिणीचे (बहीण, तिचा पती, तिची मुले) लाड करा, खासकरून ती माहेरी आल्यावर तिला कधीच विन्मुख पाठवू नका, तुमचा व्यापाराची भरभराट झालीच पाहिजे आणि तुमची बुद्धी तुम्हाला कधीच दगा देणार नाही. बहिणीने देखील आपल्या भावाना (मंगळ) नेहमी साहाय्य करावे, आर्थिक शक्य असले तरी उत्तम, नसले तरी मानसिक आधार व कष्टाने देखील सहाय्य करु शकते…भावाशी (पर्यायाने त्याचा संसार, तुमची भावजय, त्यांची मुले) तुमचे चांगले संबंध हे तुमचा पती तुम्हांला नक्कीच अनुकूल होतो,   प्रत्येक पतिने आपल्या पत्नीला असे वागवावे की ती घराची लक्ष्मी आहे, तिला आनंदात ठेवा, सन्मान ठेवा म्हणजे साक्षात लक्ष्मी घरी पाणी भरते याचे प्रत्यंतर येईल. ती घरची लक्ष्मी च असते जीच्या पायांनी वैभवलक्ष्मी घरी येते. याचप्रमाणे घरातील व बाहेरील ज्येष्ठ मंडळी , गुरुजन यांचा सन्मान करण्याने सर्वाधिक शुभग्रह गुरू अधिकाधिक बलवान होतो व त्यांचे आशीर्वाद फलित होत जातात. वडिलांचे आजोबा राहू, स्त्रियांसाठी स्वात:ची सासू तर मामा केतू (दोन पिढ्या आणि पर्यायाने दोन घराणी जोडली जातात) यांची काळजी घ्या राहू केतू अनुकूल झालेच पाहिजेत.

आपल्या घरातील व बाहेरील मदतनीस विशेषतः जे शारीरिक कष्ट करून आपल्याकडून मोबदला घेतात, त्यांची आपण योग्य ती काळजी घेणे  अडी नडीला आर्थिक मदत करणे सणावाराला अधिक मोबदला देणे याने शनिमहाराज आपल्याला अनुकूल होतात व कृपा करतात.आपण आपली सर्व नाती सांभाळू या ग्रह अनुकूल होतीलच आणि पत्रिकेत ग्रह प्रतिकूल दिसतात तरीही पण जर आपण आपल्या नात्यांना बळकट करू तर ते ग्रह देखील अनुकूल होतात…आणि मग नाती देखील बळकट आणि अनुकूल होणारच. सगळ्यात शेवटी एकत्र कुटुंब पध्दतीने राहून एकमेकांचे ग्रह आणि पर्यायाने आयुष्य सुखसमाधानात जगणाऱ्या आपल्या पूर्वजांच्या बुद्धीचे, ज्ञानाचे कौतुक वाटल्याशिवाय कसे राहील! त्याना मनानेच साष्टांग प्रणिपात करून इथेच थांबते.

 

© धनश्री कुलकर्णी, पुणे

मो. 9850896166




आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

( सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा )

 

कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि ।

योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये ।।11।।

 

तन से,मन से,बुद्धि से,या इंद्रिय से मात्र

योगी करते कर्म सब लिप्ति त्याग शुद्धार्थ।।11।।

      

भावार्थ :  कर्मयोगी ममत्वबुद्धिरहित केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्याग कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।।11।।

 

Yogis, having abandoned attachment, perform actions only by the body, mind, intellect and also by the senses, for the purification of the self. ।।11।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – स्वतन्त्रता दिवस विशेष – संस्मरण –☆ संजय दृष्टि – आज़ादी मुबारक ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

संजय दृष्टि  –आज़ादी मुबारक
(15 अगस्त 2016 को लिखा संस्मरण)
 मेरा दफ़्तर जिस इलाके में है, वहाँ वर्षों से सोमवार की साप्ताहिक छुट्टी का चलन है। दुकानें, अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान, यों कहिए  कमोबेश सारा बाज़ार सोमवार को बंद रहता है। मार्केट के साफ-सफाई वाले कर्मचारियों की भी साप्ताहिक छुट्टी इसी दिन रहती है।
15 अगस्त को सोमवार था। स्वाभाविक था कि सारे  छुट्टीबाजों के लिए डबल धमाका था। लॉन्ग वीकेंड वालों के लिए तो यह मुँह माँगी मुराद थी।
किसी काम से 15 अगस्त की सुबह अपने दफ्तर पहुँचा। हमारे कॉम्प्लेक्स का दृश्य देखकर सुखद अनुभूति हुई।  रविवार के आफ्टर इफेक्ट्स झेलने वाला हमारा कॉम्प्लेक्स कामवाली बाई की अनुपस्थिति के चलते अमूमन सोमवार को अस्वच्छ रहता है है। आज दृश्य सोमवारीय नहीं था। पूरे कॉम्प्लेक्स में झाड़ू- पोछा हो रखा था। दीवारें भी स्वच्छ! पूरे वातावरण में एक अलग अनुभूति, अलग खुशबू।
पता चला कि कॉम्प्लेक्स में काम करनेवाली बाई सीताम्मा, सुबह जल्दी आकर पूरे परिसर को झाड़-बुहार गई है। लगभग दो किलोमीटर पैदल चलकर काम करने आनेवाली इस निरक्षर लिए 15 अगस्त किसी तीज-त्योहार से बढ़कर था। तीज-त्योहार पर तो बख्शीस की आशा भी रहती है, पर यहाँ तो बिना किसी अपेक्षा के अपने काम को राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर अपनी साप्ताहिक छुट्टी छोड़ देनेवाली इस  सच्ची नागरिक के प्रति गर्व का भाव जगा। छुट्टी मनाते सारे बंद ऑफिसों पर एक दृष्टि डाली तो लगा कि हम तो  धार्मिक और राष्ट्रीय त्योहार केवल पढ़ते-पढ़ाते रहे, स्वाधीनता दिवस को  राष्ट्रीय त्योहार, वास्तव में सीताम्मा ने  ही समझा।
आज़ादी मुबारक सीताम्मा, तुम्हें और तुम्हारे जैसे असंख्य कर्मनिष्ठ भारतीयों को!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]




हिन्दी साहित्य – स्वतन्त्रता दिवस विशेष – कविता ☆ एक सुखद संयोग ☆ – डॉ. मुक्ता

स्वतन्त्रता दिवस विशेष 

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  आज प्रस्तुत है  डॉ मुक्ता जी की स्वतन्त्रता दिवस पर एक  सामयिक  कविता   “एक सुखद संयोग ”।)

 

   एक सुखद संयोग

 

70 वर्ष के पश्चात्

धारा 370 व 35 ए

के साथ-साथ वंशवाद

पड़ोसी देशों के हस्तक्षेप से छुटकारा

आतंकवाद से मुक्ति

एक सुखद संयोग

हृदय को आंदोलित कर सुक़ून से भरता

 

स्वतंत्रता दिवस से पूर्व स्वतंत्रता

15 अगस्त से पूर्व 5 अगस्त को

दीपावली की दस्तक

जो अयोध्या में 14 वर्ष के पश्चात् हुई थी

दीवाली से पूर्व दीपावली

पूरे राज्य में प्रकाशोत्सव

 

काश्मीर की 70 वर्ष के पश्चात्

गुलामी की ज़ंजीरों से मुक्ति

फांसी के फंदे की भांति

दमघोंटू वातावरण से निज़ात

निर्बंध काश्मीर बन गया केंद्र शासित राज्य

विशेष राज्य का दर्जा समाप्त

लद्दाख के लोगों की

लंबे अंतराल के पश्चात् इच्छापूर्ति

 

लद्दाख…एक केन्द्र-शासित प्रदेश

एक लम्बे अंतराल के पश्चात्

स्वतंत्र राज्य के रूप में प्रतिष्ठित

भाषा व समृद्धि की ओर अग्रसर

 

मात्र चोंतीस वर्षीय युवा सांसद

नामग्याल का भाषण सुन

पक्ष-विपक्ष के नेता अचम्भित

मोदी जी,अमित जी व लोकसभा अध्यक्ष

हुए उसके मुरीद

 

जश्न का माहौल था

पूरे लद्दाख व काश्मीर में

लहरा रहा था तिरंगा झण्डा गर्व से

आस बंधी थी कश्मीरी पंडितों की

उमंग और साध जगी थी

वर्षों बाद घर लौटने की

अपनी मिट्टी से नाता जोड़ने की

उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था

जो छप्पन इंच के सीने ने कर दिखाया

उसकी कल्पना किसी के ज़ेहन में नहीं थी

 

परन्तु हर बाशिंदा आशान्वित था

एक दिन भारत के विश्व गुरू बनने

व अखण्ड भारत का साकार होगा स्वप्न

अब देश में होगा सबके लिए

एक कानून,एक ही झण्डा

न होगी दहशत, न होगा आतंक का साया

मलय वायु के झोंके दुलरायेंगे

महक उठेगा मन-आंगन

सृष्टि का कण-कण

भारत माता की जय के नारे गूंजेगे

और वंदे मातरम् सब गायेंगे

 

डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो•न• 8588801878




हिन्दी साहित्य – स्वतन्त्रता दिवस विशेष – कविता – ☆ तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक का… ☆ – सौ. सुजाता काळे

स्वतन्त्रता दिवस विशेष

सौ. सुजाता काळे

(आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा रचित स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक का…)

 

तिरंगा ! तू फिरा दे चक्र अशोक का… 

 

हे तिरंगा ! तू फहराता

विशाल नभ पर कायम है ।

 

आन बान और शान में तेरी

हर भारतवासी नतमस्तक है।

 

तेरे अंदर शांति का प्रतीक

फिर क्यों हिंसा की हलचल है?

 

कुसुंबी रक्त सबकी धमनी में

फिर क्यों धर्मा धर्म का भेदा भेद है?

 

हरित धरती से अन्न उपजता

फिर क्यों केसरिया- हरा भेद है?

 

तू लहराता आसमान में

तेरी नज़र सब ओर बिछी है ।

 

सीमाओं को बाँटता मानव

सीमा के अन्दर अंधेर मची है ।

 

गरीबों से लिपटी है गरीबी

सस्ती हुई बेकारी क्यों है?

 

ठेर ठेर चलता विवाद है

धर्म के नाम पर क्यों धूम मची है?

 

तू फिरा दे चक्र अशोक का

और मिटा दे अमानुषता।

 

तुझ सा ऊँचा मानव बन जाए

सदा रहे वह अचल अभेद सा।

 

© सौ. सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684




हिन्दी साहित्य – स्वतन्त्रता दिवस विशेष – कविता – ☆ लहरा के तिरंगा भारत का ☆ – सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

स्वतन्त्रता दिवस विशेष

सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

 

(प्रस्तुत है सुश्री मालती मिश्रा ‘मयन्ती’ जी  द्वारा रचित स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता लहरा के तिरंगा भारत का। )

 

 लहरा के तिरंगा भारत का 

 

लहरा के तिरंगा भारत का

हम आज यही जयगान करें,

यह मातृभूमि गौरव अपना

फिर क्यों न इसका मान करें।

 

सिर मुकुट हिमालय है इसके

सागर है चरण पखार रहा

गंगा की पावन धारा में

हर मानव मोक्ष निहार रहा,

फिर ले हाथों में राष्ट्रध्वजा

हम क्यों न राष्ट्रनिर्माण करें।।

यह मातृभूमि गौरव अपना

फिर क्यों न इसका मान करें

 

इसकी उज्ज्वल धवला छवि

जन-जन के हृदय समायी है

स्वर्ण मुकुट सम शोभित हिमगिरि

की छवि सबको भाई है।

श्वेत धवल गंगा सम नदियाँ

हर पल इसका गान करें

यह मातृभूमि गौरव अपना

फिर क्यों न इसका मान करें

 

नव नवीन पहनावे इसके

भिन्न भिन्न भाषा भाषी

शंखनाद से ध्वनित हो रहे

हर पल मथुरा और काशी

पावन, सुखदायी छवि इसकी

क्यों न हम अभिमान करें

यह मातृभूमि गौरव अपना

फिर क्यों न इसका मान करें।

 

लहरा के तिरंगा भारत का

हम आज यही जयगान करें,

यह मातृभूमि गौरव अपना

फिर क्यों न इसका मान करें।।

 

©मालती मिश्रा मयंती✍️

दिल्ली
मो. नं०- 9891616087



हिन्दी साहित्य – स्वतन्त्रता दिवस विशेष – लघुकथा ☆ देश प्रेम ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

स्वतन्त्रता दिवस विशेष

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  द्वारा  स्वतन्त्रता दिवस   के अवसर पर  रचित लघुकथा देश प्रेम । )

 

  देश प्रेम  

 

छोटा सा गांव साधारण बस्ती। हिन्दूओं के मुहल्ले में एक रशीद खान का मकान। मुसलमान होने के कारण उन्हें ज्यादा किसी के दुख सुख में नहीं बुलाया जाता था। परंतु रशीद मियां सब को अपना समझ हमेशा जा कर खड़े हो जाते। चाहे उन्हें कितना भी बुरा भला कहे। गांव में सभी त्योहार खुशियाली से मनाया जाता। रशीद मियां भी सब में शामिल होते। पर सब उनका मजाक उड़ाया करते।

स्कूलों में ध्वजारोहण का कार्यक्रम 15 अगस्त —26 जनवरी का होता तो सब कहते ये रशीद मियाँ देश प्रेम क्या जानेगा? इसे तो कुछ मतलब ही नहीं है। परंतु रशीद मियां सब की बातों को सुन अनसुना कर देते थे। दिन बीतते गए।

15 अगस्त राष्ट्रीय पर्व आया गांव में सभी खुश थे तिरंगा फहराने की बात को लेकर। बाहर से भी आदमी आते थे। इस बार ज्यादा तैयारी हो रही थी क्योंकि  अधिकारियों ने बताया कि एक महत्वपूर्ण पुरस्कार गाँव में किसी व्यक्ति को मिलने वाला है। जिसने अपने होशियारी से गाँव को नष्ट होने से बचा लिया। दुश्मन के मंसूबे  को अपने सूझबूझ से नष्ट किया है। सभी हैरान थे ऐसा कौन सा व्यक्ति है। जिसको इतनी  चिन्ता है। गाँव के सभी लोग एकत्रित हुए। बीच गाँव के स्कूल प्रांगण में सभी कार्य पूर्ण होने के बाद वह घड़ी आ गई जिसका सभी को इंतज़ार था। माइक से एनाउंस किया गया कि आदरणीय रशीद खान आगे आये और ये सम्मान ग्रहण कर हमें अनुग्रहीत करें। सभी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। किसी के मुँह से कुछ बोल नहीं निकले। रशीद मियाँ को सब मुसलमान कहकर उनका देश प्रेम को लेकर मजाक उड़ाया जाता था। आज उनके कारण ही सब गाँव वाले बच गए और एक नया जीवन मिला। रशीद खान को सम्मानित कर सभी बहुत खुश हुए। पर सभी अपने व्यवहार से शर्मिंदा महसूस कर रहे थे। उन्हें लग रहा था हम तो दिखावे में देश भक्ति करते हैं। पर असली देश भक्त तो रशीद खान निकले।

पूरा गांव आज रशीद खान को बधाई दे रहा है और रशीद मियाँ अपने को सब के बीच पा कर बहुत खुश थे।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 




हिन्दी साहित्य- स्वतन्त्रता दिवस विशेष – कविता – ☆ हमारी स्वतन्त्रता ☆ – सुश्री ऋतु गुप्ता

स्वतन्त्रता दिवस विशेष

सुश्री ऋतु गुप्ता

 

(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी  द्वारा रचित स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष कविता हमारी स्वतन्त्रता )

 

 हमारी स्वतन्त्रता 

 

कहने को हमें स्वतंत्र हुए वर्षों व्यतीत हुए

पर क्या हम सही मायने में स्वतंत्र हो पाए

पाश्चात्य संस्कृति अपनाने से कब चूक पाए

अपने संस्कारों को हृदय में जगह क्या दे पाए ?

 

यह अनगिनत अनगुथे सवाल जहन में

उतरते जाते हैं बस यूं ही कई बार

क्यों हमारे ख्याल पाश्चात्य संस्कृति में गिरफ्त

होकर रह गये पर रहती निरुत्तर हर बार।

 

कैसी विडंबना यह कि अपनी ही संस्कृति व

संस्कार नीरस लगने लगे हैं?

विरासत में मिले कायदे-कानून भी कहीं न

कहीं पांबदी से लगने लगे हैं।

 

माना तरक्की की है हर क्षेत्र में हमने बहुत

पर असली रूतबा खोने लगे हैं

इस भेड़ चाल में फंस स्वार्थप्रस्थ हो अपनी

कर्मठता व शौर्य को पीछे छोड़ने लगे हैं।

 

स्वछंद सही मायने में दरअसल तभी कहलायेंगे

जब मनोबल कभी किसी हाल में न गिरने देंगें

सुनेंगे सबकी, सीखेंगे, समझेंगें हर किसी से पर

आत्मसम्मान व संस्कारों की बलि न चढ़ने देंगें।

 

उन सब परतन्त्रता की बेड़ियों को तोड़ देगें जो हमारी

जन्मभूमि के हित में न हो जिनके लिए स्वतंत्र हुए

तब जाकर हम सही मायने में यह एहसास फिर कर

पायेंगे वाकई खुली हवा में साँस लेने के काबिल हुए।

 

© ऋतु गुप्ता, दिल्ली