हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द  ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )

 

☆ संजय दृष्टि  – शब्द- दर-शब्द 

 

शब्दों के ढेर सरीखे

रखे हैं, काया के

कई चोले मेरे सम्मुख,

यह पहनूँ, वो उतारूँ

इसे रखूँ , उसे संवारूँ..?

 

तुम ढूँढ़ते रहना

चोले का इतिहास

या तलाशना व्याकरण,

परिभाषित करना

चाहे अनुशासित,

अपभ्रंश कहना

या परिष्कृत,

शुद्ध या सम्मिश्रित,

कितना ही घेरना

तलवार चलाना,

ख़त्म नहीं कर पाओगे

शब्दों में छिपा मेरा अस्तित्व!

 

मेरा वर्तमान चोला

खींच पाए अगर,

तब भी-

हर दूसरे शब्द में,

मैं रहूँगा..,

फिर तीसरे, चौथे,

चार सौवें, चालीस हज़ारवें और असंख्य शब्दों में

बसकर महाकाव्य कहूँगा..,

 

हाँ, अगर कभी

प्रयत्नपूर्वक

घोंट पाए गला

मेरे शब्द का,

मत मनाना उत्सव

मत करना तुमुल निनाद,

गूँजेगा मौन मेरा

मेरे शब्दों के बाद..,

 

शापित अश्वत्थामा नहीं

शाश्वत सारस्वत हूँ मैं,

अमृत बन अनुभूति में रहूँगा

शब्द- दर-शब्द बहूँगा..,

 

मेरे शब्दों के सहारे

जब कभी मुझे

श्रद्धांजलि देना चाहोगे,

झिलमिलाने लगेंगे शब्द मेरे

आयोजन की धारा बदल देंगे,

तुम नाचोगे, हर्ष मनाओगे

भूलकर शोकसभा

मेरे नये जन्म की

बधाइयाँ गाओगे..!

 

‘शब्द ब्रह्म’ को नमन। आपका दिन सार्थक हो।

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 10 – दावत ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “दावत”। इस लघुकथा ने  संस्कारधानी जबलपुर, भोपाल और कई शहरों  में गुजारे हुए गंगा-जमुनी तहजीब से सराबोर पुराने दिन याद दिला दिये। काश वे दिन फिर लौट आयें। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के लिए नमन।)

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 10 ☆

 

☆ दावत ☆

 

दावत कहते ही मुंह में पानी आ जाता है। एक भरी भोजन की थाली जिसमें विभिन्न प्रकार के सब्जी, दाल, चावल, खीर-पूड़ी, तंदूरी, सालाद, पापड़ और मीठा। किसी का भी मन खाने को होता है।

मोहल्ले में कल्लन काले खाँ चाचा की आटा चक्की की दुकान। अब तो सिविल लाइन वार्ड और मार्ग हो गया। पहले तो पहचान आटा चक्की, मंदिर के पास वाली गली। कल्लन  काले खाँ को सभी कालू चाचा कहते थे। क्योंकि उनका रंग थोड़ा काला था। कालू चाचा की इकलौती बेटी शबनम और हम एक साथ खेलते और पढ़ते थे।

शाम हुआ आटा चक्की के पास ही हमारा खेलना होता था। स्कूल भी साथ ही साथ जाना होता। दो दिन से शबनम स्कूल नहीं आ रही थी।

हमारे घर में क्यों कि मंदिर है उसका यहाँ आना जाना कम होता था। बड़े बुजुर्ग लड़कियों को किसी के यहाँ बहुत कम आने जाने देते हैं।

समय बीता एक दिन शाम को शबनम बाहर दौड़ते हुए आई और बताने लगी ” सुन मेरा ‘निकाह’ होने वाला है। अब्बू ने मेरा निकाह तय कर लिया। हमने पूछा “निकाह क्या होता है?”

उसने बहुत ही भोलेपन से हँसकर कहा “बहुत सारे गहने, नए-नए कपड़े और खाने का सामान मिलता है। हम तो अब निकाह करेंगे। सुन तुम्हारे यहां जो “शादी” होती है उसे ही हम मुसलमान में “निकाह” कहा जाता है।” इतना कहे वह शरमा कर दौड़ कर भाग गई। हमें भी शादी का मतलब माने बुआ-फूफा, मामा-मामी और बहुत से रिश्तेदारों का आना-जाना। गाना-बजाना और नाचना। मेवा-मिठाई और बहुत सारा सामान। उस उम्र में शादी का मतलब हमें यही पता था।

ख़ैर निकाह का दिन पास आने लगा कालू चाचा कार्ड लेकर घर आए। हाथ जोड़ सलाम करते पिताजी से कहे  “निकाह में जरूर आइएगा बिटिया को लेकर और दावत वहीं पर हमारे यहाँ  करना है।” बस इतना कह वह चले गए।

घर में कोहराम मच गया दावत में वह भी शबनम के यहाँ!! क्योंकि हमारे घर शुद्ध शाकाहारी भोजन बनता था। लेकिन पिताजी ने समझाया कि “बिटिया का सवाल है और मोहल्ले में है। हमारा आपसी संबंध अच्छा है, इसलिए जाना जरूरी है।”

घर से कोई नहीं गया। पिताजी हमें लेकर शबनम के यहाँ पहुँचे। उसका मिट्टी का घर खपरैल वाला बहुत ही सुंदर सजा हुआ था। चारों तरफ लाइट लगी थी शबनम भी चमकीली ड्रेस पर चमक रही थी। जहां-तहां मिठाई और मीठा भात बिखरा पड़ा था। हमें लगा हमारी भी शादी हो जानी चाहिए। जोर-जोर से बाजे बज रहे थे और कालू चाचा कमरे से बाहर आए उनके हाथ में नारियल औरकाजू-किशमिश का पैकेट था। उन्होंने पिताजी को गले लगा कर कहा “जानता हूँ भैया, आप हमारे यहाँ दावत नहीं करेंगे पर यह मेरी तरफ से दावत ही समझिए।”

पिताजी गदगद हो गए आँखों से आँसू बहने लगे। ये खुशी के आँसू शबनम के निकाह के थे या फिर दावत की जो कालू चाचा ने कराई। हमें समझ नहीं आया। पर आज भी शबनम का निकाह याद है।

शबनम का निकाह और दावत दोनों कुबूल हुई।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ गुल्लक ☆ – सुश्री मीनाक्षी भालेराव

सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

 

(कवयित्री सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी  की एक भावप्रवण  कविता।) 

 

☆ गुल्लक  ☆

 

ख़रीद कर लाईं थी

बचपन में एक सुंदर सा

मिट्टी का गुल्लक

मेले से।

 

घर लाकर सजा दिया था

एक अलमारी पर

और निहारा करती थी रोज

पर कभी उसमें कुछ

डाला नहीं ।

 

माँ ने कई बार पूछा

क्यों इसमें

कुछ डालती नहीं बेटा ?

मैं कहती माँ मैं इसमें

पैसे नहीं डालूंगी,

कुछ और डालूंगी।

माँ ने सोचा बच्ची है

खेलने दो गूलक से ।

पिता जी ने हमेशा

सिखाया था

अपने स्वाभिमान को

हमेशा बनाएँ रखना।

अगर एक बार

आपका स्वाभिमान

मर गया,

तो

कभी जिन्दा नहीं हो सकता ।

 

तब मेरे छोटे से

मस्तिष्क में

ये बात

घर कर गई थी

कि स्वाभिमान

बहुत बड़ी दौलत है

उस दिन से मैने

थोड़ा-थोड़ा

स्वाभिमान इकट्ठा करना

शुरू कर दिया।

 

रोज़ उस गुल्लक में

थोड़ा-थोड़ा स्वाभिमान

डालने लगी,

डालने लगी अपनी

महत्वाकांक्षा के सिक्के

पर हमेशा खयाल रखा

कि कहीं मेरी महत्वाकांक्षा के सिक्कों से

स्वाभिमान से भरा गुल्लक

टूट न जाए।

 

इसलिए

आज तक वो मेरे पास है

वो मेरा प्यारा गुल्लक।

मैंने उसे टूटने नहीं

दिया है

आज भी मैं ध्यान रखती हूँ

महत्वाकांक्षाओ के नीचे

गुल्लक में

कहीं मेरा

स्वाभिमान दब कर

न मर जाए।

इसलिए हर रोज आज भी

डाल देती हूँ

थोड़ा-थोड़ा स्वाभिमान ।

 

© मीनाक्षी भालेराव, पुणे 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #10 – हिरवी चादर ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण  एवं सार्थक कविता  “हिरवी चादर”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 10 ☆

? हिरवी चादर?

 

स्वाती नक्षत्राचा थेंब

असे चातकाचा प्राण

एका थेंबात भिजतो

त्याचा आषाढ श्रावण

 

धरतीचं हे काळीज

फाटते हो ज्याच्यालाठी

भावविश्व गंधाळते

जेव्हा होती भेटीगाठी

 

तिच्या डोळ्यात पाऊस

त्याची वाट पाहणारा

त्याचा खांदा हा शिवार

तेथे बरसती धारा

 

माझ्या घामाच्या धारांना

तुझ्या धारांचा आधार

काळ्या ढेकळांची व्हावी

येथे हिरवी चादर

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (35) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन )

( ज्ञान की महिमा )

 

यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।

येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ।।35।।

 

जिसे समझ फिर नासमझी का मोह न हेागा तुझे कभी

ब्रम्ह और निज रूप में देखेगा जग सकल को तू तब ही।।35।।

 

भावार्थ :  जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन! जिस ज्ञान द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को निःशेषभाव से पहले अपने में (गीता अध्याय 6 श्लोक 29 में देखना चाहिए।) और पीछे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में देखेगा। (गीता अध्याय 6 श्लोक 30 में देखना चाहिए।)।।35।।

 

Knowing that, thou shalt not, O Arjuna, again become deluded like this; and by that thou shalt see all beings in thy Self and also in Me! ।।35।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है ☆ – डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

 

(डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं । आज प्रस्तुत है श्रावण माह के पवित्र अवसर पर आपका  आलेख “देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है”

 

संक्षिप्त साहित्यिक परिचय

  • दो काव्य संग्रह प्रकाशित हाइकू छटा एवं अन्तहीन पथ (मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद हिन्दी अकादमी के सहयोग से …)
  • कहानीं संग्रह प्रकाशाधीन
  • स्थानीय विभिन्न समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन,आकाशवाणी एवं दूरदर्शन एवं अन्य चैनल पर प्रस्तुति एवं साक्षात्कार।
  • 15 राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध आलेख

 

☆ देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है

 

या सृष्टिः स्त्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति  यया प्राणिनः प्राणवन्तः,
प्रत्यक्षाभिः प्रपत्रस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः1

कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के मंगलाचरण में शिव की आराधना इस प्रकार की है’ जो विधाता की प्रथम सृष्टि जल स्वरूपा है एवं विधिपूर्वक हवन की गई सामग्री को वहन करने वाली अग्निरूपाा मूर्ति है, जो हवन करने वाली अर्थात् यजमानरूपा मूर्ति है, दो कालों का विधान करने वाली अर्थात् सूर्य एवं चन्द्र रूपा मूर्ति है, श्रवणेन्द्रिय का विषय अर्थात् शब्द ही है गुण जिसका, ऐसी जो संसार को व्याप्त करके स्थित है अर्थात् आकाश रूपा मूर्ति, जिसे सम्पूर्ण बीजों की प्रकृति कहा गया है अर्थात् पृथ्वी रूपा मूर्ति तथा जिससे सभी प्राणी प्राणों से युक्त होते हैं अर्थात् वायुरूपा मूर्ति-इन प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगत होने वाली मूर्तियों से युक्त ‘शिव’ आप इन आठों मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। कालिदास ने स्वयं माना है कि हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही हैं। अर्थात एक मात्र शिव की ही सत्ता है, शिव से अतिरिक्त  कुछ भी नहीं है। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं।

शिव स्त्रोत में शिव की प्रार्थना के साथ शिव के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार किया गया है

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।

संसार का कल्याण करने वाले शिव नागराज वासुकि का हार धारण किये हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, ऐसे नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

वेद वेदांग ब्राह्मण ग्रंथ,तैत्तरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता वाजसनेयी संहिता इन संहिताओं में शिव के विराट स्वरूप का शिव शक्ति का, मंत्रों में वर्णन पढ़ने को आज भी सर्वसुलभ है..

नमः शिवाय च शिवतराय च (वाजसनेयी सं. १६/४१,
यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। (वाजसनेयी सं. ११/५१)

शिव की महत्ता सृष्टि रचना से पूर्व भी रही होगी शिव ही संसार के नियन्ता है पोषक हैं संघारक है शिव यानि कल्याण, मंगल, शुभ, के देवता। संसार के कण-कण में शिव है। ऐसे निराकारी  शिव की साधना के लिए शिव रात्रि में व्रत पूजापाठ का बहुत विधान है निम्न मंत्र में व्रत की महिमा का वर्णन प्रत्यक्ष है…

देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तु ते।
कुर्तमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रभावाद्धेवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

देव को देव महादेव नीलकंठ आपको नमस्कार है। हे देव  मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूं। देव आपके प्रभाव से मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें। इस भांति पूजन करने से आदिदेव शिव प्रसन्न होते हैं।

सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है शिव मंदिरों में सोमवार के दिन बड़ी भक्ति भाव के साथ कांवड़िए दूर दराज से गंगाजल लाकर भगवान भोले का अभिषेक करते हैं। वेदों में शिवलिंग पर चढ़ने वाले बिल्वपत्र के वृक्ष की महिमा असाधारण मानी गई है । प्रार्थना करते हैं कि बिल्वपत्र अपने तपो-फल से आध्यात्मिक शक्ति से  दरिद्रता को मिटाए और शिव उपासक को ‘श्री’कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे। इस वृक्ष की डालियाँ फल और पत्ते सभी की महिमा वर्णित है।

…पतरैर्वेदस्वरूपिण स्कंधे वेदांतरुपया तरुराजया ते नमः।

आदित्यवर्णे तपसोऽध्जिातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाहया अलक्ष्मीः।।

महाशिवरात्रि पूजा में शिवलिंग पर चढाने के लिए धतूरे का फल, बेलपत्र, भांग, बेल, आंक का फूल, धतूरे का फूल, गंगा जल, दूध शहद, बेर, सिंदूर फल, धूप, दीप को आवश्यक माना गया है।

परम कल्याणकारी शिव की महिमा अनंत है। शिव अनन्त, शिव कृपा अनन्ता ….भगवान शिव की स्तुति रामचरित मानस के अयोध्याकांड में तुलसीदास ने इस प्रकार की है…

सुमिरि महेसहि कहई निहोरी,

बिनती सुनहु सदाशिव मोरी’।

‘आशुतोष तुम औघड़ दानी,

आरति हरहु दीन जनु जानी।।’

भारत के कोने-कोने में आज भी प्राचीन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में शिव मंदिरों की भव्यता को एवं उस मन्दिर की मान्यता को शिव रात्रि के पर्व पर बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों के द्वारा श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ शिव का पूजन करते हुए देखा जाता है। ग्रामीण इलाकों में छोटे छोटे पत्थरों को शिव का प्रतीक मान कर महिलाएं  बच्चे बच्चियां शिव रात्रि पर व्रत करते, पूजन करते हैं जल चढ़ाते शिव के भजन कीर्तन करते हुए शिवमय हो जाते हैं। हिमालय गाथा के उत्सव पर्व में लेखक सुदर्शन जी ने लिखा है कि महाशिवरात्रि का उत्सव कृष्ण चतुर्दशी के फागुन माह में मनाया जाता है यह पर्व महाशिवरात्रि से आरंभ होकर 1 सप्ताह तक चलता है। यह उत्सव पर्व कुल्लू, के रघुनाथ जी मंडी के माधवराव जी की शोभायात्रा निकाली जाती है।

महाशिवरात्रि के पर्व पर राजा चित्रभानु की कथा का प्रसंग पुराणों में पढ़ने को मिलता है, भले ही आज के लोग इस कथा को कपोल कल्पित कल्पना माने पर यह हमारे ऋषि-मुनियों के आत्मज्ञान और साधना का निचोड़ है। जिन्होंने कथाओं के माध्यम से सृष्टि की प्रत्येक रचना की महत्ता को किसी न किसी रूप में प्रकट की है।
पौराणिक कथाओं में नीलकंठ की कहानी सबसे ज्यादा चर्चित है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था। भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया और नीलकंठ महादेव कहलाये।

शिव ही हैं, जो बंधन, मोक्ष और सुख-दुख के नियामक हैं। समस्त चराचर के स्वामी संसार के कारण स्वरूप रूद्र रूप में संसार के सृजनकर्ता, पालक और संहारक सबका कल्याण करें। श्रीशिवमहापुराण रुद्र संहिता के दशमें अध्याय में ब्रह्मा विष्णु संवाद में विष्णु कहते है कि हे ब्रह्मन वेदों में वर्णित शिव ही समस्त सृष्टि के कर्ता-धर्ता भर्ता, हर्ता,  परात्पर परम ब्रम्ह परेश निर्गुण नित्य, निर्विकार परमात्मा अद्वैत अच्युत अनंत सब का अंत करने वाले स्वामी व्यापक परमेश्वर सृष्टि पालक सत रज तम तीनों गुणों से युक्त सर्वव्यापी माया रचने में प्रवीण,ब्रह्मा विष्णु महेश्वर नाम धारण करने वाले, अपने में रमण करने वाले, द्वन्द्व से रहित, उत्तम शरीर वाले, योगी,गर्व को दूर करने वाले दीनों पर दया करने वाले, सामान्य देव नहीं, देवों के देव हैं, महायोगी हैं।

 

© डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत
असिस्टेंट प्रोफेसर, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
9425339116

 

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – सैडिस्ट ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )

 

☆ संजय दृष्टि  – सैडिस्ट 

 

रास्ते का वह जिन्न,

भीड़ की राह रोकता

परेशानी का सबब बनता,

शिकार पैर पटकता

बाल नोंचता

जिन्न को सुकून मिलता

जिन्न हँसता,

पुराने लोग कहते हैं-

साया जिस पर पड़ता है

लम्बा असर छोड़ता है..,

 

रास्ता अब वीरान हो चुका,

इंतज़ार करते-करते

जिन्न बौरा चुका

पगला चुका,

सुना है-

अपने बाल नोंचता है

सर पटकता है,

अब भीड़ को सकून मिलता है,

झुंड अब हँसता है,

पुराने लोग सच कहते थे-

साया जिस पर पड़ता है

लम्बा असर छोड़ता है..।

 

आपका दिन निर्भीक बीते।

 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

आपका दिन निर्भीक बीते।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #7 – जंगल ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  सातवीं  कड़ी में उनकी  एक सार्थक कविता  “जंगल ”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #7  ☆

 

☆ जंगल ☆

 

बियाबान जंगल से

मिलती हैं उसे रोटियां,

अनजान जंगल से

मिटती है बच्चों की भूख,

खामोश जंगल से

जलता है उसका चूल्हा,

परोपकारी जंगल से

बनता है उसका घर,

अनमने जंगल से

बुझती है उसकी प्यास,

बहुत ऊँचे जंगल से

मिलती है उसे ऊर्जा,

उजड़े जंगल से

सूख जाते हैं उसके आंसू,

अब प्यारे जंगल से

भगाने की हो रही हैं बातें।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ पत्र पेटिका ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी की कवितायें हमें मानवीय संवेदनाओं का आभास कराती हैं। प्रत्येक कविता के नेपथ्य में कोई न कोई  कहानी होती है। मैं कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हृदय से आभारी हूँ जिन्होने इस कविता के सम्पादन में सहयोग दिया। आज प्रस्तुत है कविता “पत्र पेटिका”। इस पत्र पेटिका का महत्व मेरी समवयस्क पीढ़ी अथवा मेरे वरिष्ठ जन ही जान सकते हैं।  इस पत्र पेटिका से हमारी मधुर स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं जिन्हें श्री सूबेदार पाण्डेय जी ने अपनी कविता के माध्यम से पुनः जीवित कर दिया है। )

 ☆ पत्र पेटिका ☆

 

मै पत्र-पेटिका वहीं खडी़,

युगों से जहां खडी़ रही मै

सर्दी-गर्मी-वर्षा सहती,

सदियों से मौन पडी़  हूँ मै…

 

लाल  रंग की चूनर ओढ़े,

सबको पास बुलाती थी।

अहर्निश सेवा महे का

सबको पाठ पढ़ाती  थी…

 

कोई आता था पास मेरे,

प्यार का इक पैगाम लिये

कोई आता था पास मेरे

प्यार का इक तूफां लिए…

 

कोई सजनी प्रेम-विरह की

पाती रोज इक छोड़ जाती थी

कोई बहना भाई के खातिर

राखी भी दे जाती थी…

 

कोई रोजगार पाने का

इक आवेदन दे जाता था

मैं इन सबका संग्रह कर

मन ही मन इठलाती थी…

 

सुबह-शाम दो बार हर

रोज डाकिया आता था

खोल चाभी से बंद ताले को

सब पत्रों को ले जाता था…

 

हाय, विधाता! आज हुआ क्या

कैसा ये उल्टा दिन आया

बदनज़र लगी मुझको या

घोर अनिष्ट का है साया…

 

टूटे पेंदे, जर्जर काया, बिन ताले,

अपनी किस्मत को रोती हूँ

खामोश खड़ी चौराहे पर खुद

ही अपनी अर्थी ढोती हूँ…

 

 

-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #10 – कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज  दसवीं कड़ी में प्रस्तुत है “कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 10 ☆

 

☆ कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व ☆

 

पुरुषो की तुलना में निरंतर गिरते स्त्री अनुपात के चलते इन दिनो देश में “बेटी बचाओ अभियान”  की आवश्यकता आन पड़ी है.  नारी-अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से समाज ग्रस्त है. सबसे दुखद ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमें आत्ममंथन व चिंतन के लिये विवश कर रही है. एक ओर नारी स्वातंत्र्य की लहर चल रही है तो दूसरी ओर स्त्री के प्रति निरंतर बढ़ते अपराध दुखद हैं.  साहित्य की एक सर्वथा नई धारा के रूप में स्त्री विमर्श, पर चर्चा और रचनायें हो रही हैं, “नारी के अधिकार “, “नारी वस्तु नही व्यक्ति है”, वह केवल “भोग्या नही समाज में बराबरी की भागीदार है”, जैसे वैचारिक मुद्दो पर लेखन और सृजन हो रहा है, पर फिर भी नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में वांछित सकारात्मक बदलाव का अभाव है.

हमारे देश की पहचान एक धर्म प्रधान, अहिंसा व आध्यात्मिकता के प्रेमी  और नारी गौरव-गरिमा का देश होने की है,  फिर क्या कारण है कि इस शिक्षित युग में भी बेटियो की यह स्थिति हुई है कि उन्हें बचाने के लिये सरकारी अभियान की जरूरत महसूस की जा रही है. एक ओर कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी बेटियां अंतरिक्ष में भी हमारा नाम रोशन कर रही हैं, महिलायें राजनीति के सर्वोच्च पदो पर हैं, पर्वतारोहण, खेल, कला,संस्कृति, व्यापार,जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियो ने सफलता की कहानियां गढ़कर सिद्ध कर दिखाया है कि ” का नहिं अबला करि सकै का नहि समुद्र समाय ”  तो दूसरी और माता पिता उन्हें जन्म से पहले ही मार देना चाहते हैं. ये विरोधाभासी स्थिति मौलिक मानवाधिकारो का हनन तथा समाज की मानसिक विकृति की सूचक है.

बेटियों की निर्मम हत्या की  कुप्रथा को जन्म देने में अल्ट्रा साउन्ड से कन्या भ्रूण की पहचान की वैज्ञानिक खोज का दुरुपयोग जिम्मेदार है. केवल सरकारी कानूनो से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के स्थाई प्रयास संभव नही हैं. दरअसल इस समस्या का हल क़ानून या प्रशासनिक व्यवस्था से कहीं अधिक स्वयं ‘मनुष्य’ के अंतःकरण, उसकी आत्मा, प्रकृति व मनोवृत्ति, मानवीय स्वभाव, उसकी चेतना,  मान्यताओ व धारणाओ और उसकी सोच में बदलाव तथा नारी सशक्तिकरण ही इस समस्या का स्थाई हल है.  समाज की  मानसिकता व मनोप्रकृति  में यह स्थाई बदलाव आध्यात्मिक चिंतन तथा ईश्वरीय सत्ता में विश्वास और पारलौकिक जीवन में आज के अच्छे या बुरे कर्मों का तद्नुसार फल मिलने के कथित धार्मिक सिद्धान्तों की मान्यता पर ढ़ृड़ता से संभव है. विज्ञान  धार्मिक आस्थाओ पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, किन्तु सच यह है कि आध्यात्म, विज्ञान का ही विस्तारित स्वरुप है.  विभिन्न धर्मो के आडम्बर रहित धार्मिक विधिविधान वे सैद्धांतिक सूत्र हैं जो हमें ध्येय लक्ष्यो तक पहु्चाते हैं.

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” अर्थात जहाँ नारियो की पूजा होती है वहां देवताओ का वास होता है यह उद्घोष, हिन्दू समाज से कन्या भ्रूण हत्या ही नही, नारी के प्रति समस्त अपराधो को समूल समाप्त करने की क्षमता रखता है, जरूरत है कि इस उद्घोष में व्यापक आस्था पैदा हो. नौ दुर्गा उत्सवो पर कन्या पूजन, हवन हेतु अग्नि प्रदान करने वाली कन्या का पूजन हमारी संस्कृति में कन्या के महत्व को रेखांकित करता है, आज पुनः इस भावना को बलवती बनाने की आवश्यकता है.

पैग़म्बर मुहम्मद  ने कन्या हत्या रोकने के लिये  भाषण देने, आन्दोलन चलाने, और ‘क़ानून अदालत या जेल’ का प्रकरण बनाने के बजाय केवल इतना कहा है कि ‘जिस व्यक्ति के बेटियां हों, वह उन्हें ज़िन्दा गाड़कर उनकी हत्या न कर दे, उन्हें सप्रेम व स्नेहपूर्वक पाले-पोसे, उन्हें नेकी, शालीनता, सदाचरण व ईशपरायणता की उत्तम शिक्षा-दीक्षा दे, बेटों को उनसे बढ़कर न माने, नेक रिश्ता ढूंढ़कर बेटियो का घर बसा दे, तो वह स्वर्ग में मेरे साथ रहेगा’. मुस्लिम समाज कुरानशरीफ की इस प्रलोभन भरी शिक्षा को अपनाकर, बेटी की अच्छी परवरिश से स्वर्ग-प्राप्ति का  अवसर मानकर प्रसन्न हो सकता है और लालच में ही सही पर लड़कियो के प्रति अपराध रुक सकते हैं. जरूरत है इस विश्वास में भरपूर आस्था की.  कुरान में कहा गया है कि परलोक में हिसाब-किताब वाले दिन, ज़िन्दा गाड़ी गई बच्ची से ईश्वर पूछेगा, कि वह किस जुर्म में क़त्ल की गई थी ? इस तरह कन्या-वध करने वालों को अल्लाह ने चेतावनी भी दी है.

ईसाई समाज में भी पत्नी को “बैटर हाफ” का दर्जा तथा लेडीज फर्स्ट की संकल्पना नारी के प्रति सम्मान की सूचक है. जैन संप्रदाय में तो छोटे से छोटे कीटाणुओ की हिंसा तक वर्जित है. इसी तरह अन्य धर्मो में भी मातृ शक्ति को महत्व के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं. किन्तु इन धार्मिक आख्यानो को किताबो से बाहर समाज में व्यवहारिक रूप में अपनाये जाने की जरूरत है.

मनुष्य  कभी कुछ काम लाभ की चाहत में करता है और कभी  भय से, और नुक़सान से बचने के लिए करता है। इन्सान के रचयिता ईश्वर से अच्छा, भला इस मानवीय कमजोरी  को और कौन जान सकता है ? अतः इस पहलू से भी धार्मिक मान्यताओ में रुढ़िवादी आस्था ही सही किन्तु ईश्वरीय सत्ता में विश्वास, पाप पुण्य के लेखाजोखा की संकल्पना, कन्या भ्रूण हत्या के अनैतिक सामाजिक दुराचरण पर स्थाई रोक लगाने में मदद कर सकता है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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