हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆☆ चुनाव प्रबंधन में एमबीए : एडमिशन ओपन्स ☆☆ – श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज  प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का नया व्यंग्य “चुनाव प्रबंधन में एमबीए : एडमिशन ओपन्स ” एक नयी शैली में। मैं श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर ही छोड़ता हूँ। अतः आप स्वयं  पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल  जैन जी से  ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। ) 

 

☆☆ चुनाव प्रबंधन में एमबीए : एडमिशन ओपन्स ☆☆

 

एक प्रतिष्ठित बी-स्कूल की काल्पनिक वेबसाईट के अंग्रेज़ी में होम-पेज का बोलचाल की भाषा में तर्जुमा कुछ कुछ इस तरह है :-

हम हैं भारत के तेजी से बढ़ते बी-स्कूल, और हम प्रारम्भ करने जा रहे हैं – ‘चुनाव प्रबंधन में एमबीए’.

चुनावों में प्राईवेट पॉलिटिकल कंसल्टेंट्सी के तेज़ी से बढ़ते कारोबार और इस क्षेत्र में प्रबंधन स्नातकों के कॅरियर की असीम संभावनाओं को हमारे संस्थान ने पहचाना और आपके लिए खास तौर पर डिझाईन किया है – ‘चुनाव प्रबंधन में एमबीए’.

राजनीति इन दिनों सर्वाधिक लाभ देने वाले व्यापार क्षेत्र में तब्दील हो गई है. पिछले कुछेक दशकों में राजनीति में विनिवेश करने वालों ने छप्परफाड़ प्रॉफ़िट कमाया है. यहाँ कमाई इतनी अधिक हैं कि बहुत से कारोबारी तो खुद राजनेता हो गये हैं. कुछ बिग कार्पोरेट्स ने परिवार के एक दो सदस्यों को ही राजनीति में उतार दिया है, तो कुछ ने अपने प्रतिनिधियों पर जनप्रतिनिधि का चेहरा चढ़ा कर सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करा दी है. लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है. इसके लिए चुनाव जीतना पड़ता है. बड़े कारोबारियों को जीत के लिए हुनरमंदों की तलाश है.

हम जीत दिला सकने वाले हुनरमंद तैयार करते हैं.

विजन :

पेशेवर युवा तैयार करना जो हैंडसम फीस के बदले किसी भी पार्टी को, कभी भी होनेवाले चुनावों में कहीं से भी जीत दिलवा सके.

मिशन :

कि ऐसी मार्केटिंग स्किल्स विकसित करना जो लोकतन्त्र के बाज़ार में ब्रांडेड जननायक को बहुमत से सेल-आउट कर सके,

कि हायकमान की जमीनी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेतृत्व पर निर्भरता समाप्त करना,

कि मानव संसाधन का ऐसा आधार तैयार करना जहां हायकमान कंट्रोल रूम से ईलेक्शन मेनेज कर सकें,

कि ऐसे पेशेवर युवा तैयार करना जो किसी विचारधारा बंधें न हो,

कि फीस ही जिनकी विचारधारा हो,

वैल्यूज :

जीत दिलानेवाला हर मूल्य नैतिक मूल्य है.

सिलेबस इन ब्रीफ़ :

पहले सेमेस्टर में हम कवर करते हैं डाटा मेनिपुलेशन. हम आंकड़े गढ़ना सिखाते हैं. आंकड़े जाति के, धर्म के, भाषा के,आय के, घृणा के, वैमनस्य के, ध्रुवीकरण के, आंकड़े सच्चाईयों से परहेज  के, आंकड़े झूठ से छबि चमकाने के. हम आंकड़े गायब करना भी सिखाते हैं – आंकड़े बेरोजगारी के, आंकड़े किसानों की आत्महत्या के, आंकड़े भय, भूख, भटकाव के. हम आपको ऐसे प्रवीण करेंगे कि आप अपने क्लाईंट से पूरे आत्मविश्वास से झूठ बुलवा सकें. हम सिखाएँगे आपको मुद्दे गढ़ना. मुद्दे भटकाने वाले, मुद्दे डराने वाले, मुद्दे भड़काने वाले, मुद्दे भरम के, मुद्दे जो गैर-जरूरी हों मगर बेहद जरूरी लगें. हम सिखाएँगे वादों की भूल-भूलैया में ले जाकर वोटर को उस जगह छोड़ आना जहाँ वो पाँच साल तक चलता रहे और पहुँचे कहीं नहीं. बाहर निकले तो फिर उसी भूल-भूलैया में घुसने को मचल मचल जाये. वो लुट जाये, मगर खुश हो कि वाह क्या लूटा है सर आपने, मजा आ गया !! नारे गढ़ने की कला का विशेष प्रशिक्षण इसी सत्र में दिया जावेगा. नारे जो वोटर के दिल को छू जाये मगर विवेक की बत्ती बुझा दे.

दूसरे सेमेस्टर में हम आपको क्लाईंट की सकारात्मक, एंटी-क्लाईंट की नकारात्मक खबरें प्लांट करना सिखाएँगे. झूठ में सच का छींटा मार कर क्लाईंट के पक्ष में वोटर का मानस बदल देने की कला में आपको पारंगत कराया जाएगा. मीडिया प्रबंधन भी ऐसा कि हर समय दीखे तो बस आपका क्लाईंट दीखे, सुनाई दे तो बस आपका क्लाईंट सुनाई दे,खुशबू आये तो बस आपके क्लाईंट की, हवाओं में, फिजाओं में, घटाओं में, जल में, थल में, नभ में, अखबार में, रेडियो पे, टीवी पे, मोबाइल पे, होर्डिंग्स पे, पेशाबघर की दीवारों पर चिपके इश्तेहारों तक पे हर तरफ तेरा ही जलवा टाइप. लोग कहें बस अब और कोई ब्रांड नहीं चलेगा. इसी ब्रांड का जनप्रतिनिधि पैक कर दीजिये, कीमत बस एक वोट.

तीसरे सेमेस्टर में हम आपको सिखाएँगे डेमोक्रेसी के पालिका बाज़ार में डिमांड के अनुरूप साँचा बनाना और क्लाईंट को उसमें ढ़ालना. क्लाईंट ढ़ल नहीं पा रहा, उससे पैदल चला नहीं जाता, धूप तेज़ लगती है, धूल से एलर्जी है, बम्बे का पानी पीने से डरता है तो कोई बात नहीं – आप उनसे जनसम्पर्क मत कराईये,  रोड शो करा लीजिए. जीप पर बैठाकर निकालिए, हाथ जुड़वाईये नहीं, लहरवाईए, दोनों ओर. आप तय करेंगे कि वे कब प्रसाद खाएँ कब इफ्तार में जाएँ, मंदिर जाएँ तो किस मंदिर जाएँ, किस कलर का उत्तरीय डाले, धोती पहने कि पायजामा, पायजामा नाड़ीवाला हो कि बटनवाला, जेब फटी रखें कि साबुत. नंगे तो वे अंदर से हैं ही, जीत के लिये जरूरी हो तो वे अनावृत भी रोड शो करने को तैयार हैं. बस आप उनके कान में फूँक भर दें. जीत के रास्ते निकालना हम आपको सिखाएँगे. आखिर आप चुनाव प्रबंधन के गुरु बनने की राह पर जो हैं.

चौथे सेमेस्टर में आपको अपोजिशन में सेंध लगाने का लाईव असाइन्मेंट दिया जायेगा. विपक्ष में से चुन चुन कर विधायकों, सांसदों को जस का तस शीशे में उतारना है आपको. उनकी खरीद फरोख्त के नये नये तरीके ईज़ाद करने हैं. डील डन कराने की कला विकसित करनी है. असाइन्मेंट उस राज्य में करना है जहाँ चुनाव निकट हैं. वहाँ चुनावों से पहले कम से कम दो सांसदों या बारह विधायकों का पाला बदलवाना है. आपके पास सांसदों, विधायकों की डील के लिये पाँच से पच्चीस करोड़ तक का बजट रहेगा. असाइन्मेंट सफलतापूर्वक कंपलीट करना अनिवार्य है आखिर मोटी-मनी दांव पर जो होगी.

कॅरियर नेक्स्ट :

चलिये, अब आप हैं लोकतन्त्र के बाज़ार में प्रत्याशियों की मार्केटिंग के मैनेजमेंट गुरू.

अपना स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं. अलग अलग तरह के पैकेज ऑफर कर सकते हैं – सिर्फ सर्वे कराना है, मुद्दे सुझाना है, बूथ मैनेज करना है, डॉक्टर्ड वीडियो सरकुलेट करना है, बिना सामने आए किसी का चरित्र हनन करना है, कोरट-कचहरी, आयोग, प्रशासन को अपने साँचे में ढ़ाल कर मोटी फीस वसूल कर सकते हैं.

बड़े अवसर आपके सामने हैं, भुनाईये इन्हें. नामी और ऊंचे कार्पोरेट्स कंसल्टेंट्स को मोटी फीस चुका कर पूरा चुनाव अपने पक्ष में कर लेने की योजना पर काम कर रहे हैं. कुछ कमी रही तो मोटी रकम चुकाकर दल बदल करा लेंगे. ये बात और है कि वे जन भागीदारी को सत्ता से दूर करके डेमोक्रेसी के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं लेकिन आपको डेमोक्रेसी से क्या लेना-देना ? आप तो अपने कॅरियर पर ध्यान दीजिये. नये दौर में चुनावों में जीत के लिए एक ऐसा हाईप बनाया जाता है जिसे पूरा कर पाना क्लाईंट के लिये संभव नहीं होता या जो राष्ट्र समाज के लिए दीर्घकालीन रूप से खतरनाक हो, लेकिन वो कंसल्टेंसी फर्म का सिरदर्द नहीं है. आपको क्या ? आपको तो बस जीत दिलाना है, फीस अंटी में डालनी है और अगले प्रोजेक्ट पर लग जाना है. बिंदास काम करिये, आपकी फीस चुनाव आयोग के निर्धारित खर्च का हिस्सा नहीं है.

अपना स्टार्ट-अप शुरू करना नहीं चाहते हैं तो हम कैंपस भी कराते हैं. हम अपने स्टूडेंट्स को इलेक्शन कंसल्टेंसी के क्षेत्र में ऊँचा मुकाम दिलाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं.

एक आकर्षक, स्वर्णिम, उज्जवल कॅरियर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है. तो सोच क्या रहे हैं ? सीटें सीमित हैं – जल्दी कीजिये. एडमिशन ओपन्स.

© श्री शांतिलाल जैन 

F-13, आइवोरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, TT नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ स्मृतियाँ/Memories – #7 – सच्चाई ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “स्मृतियाँ/Memories”में  उनकी स्मृतियाँ । आज के  साप्ताहिक स्तम्भ  में प्रस्तुत है एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति  “सच्चाई।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ स्मृतियाँ/MEMORIES – #7 ☆

 

☆ सच्चाई

 

मै तो उड़ने लगा था झूठे दिखावे की हवा मे

सुना है वो अभी भी सच्चाई की पतंग उड़ाता है ||

 

जवान हो गयी होगी एक और बेटी, इसीलिए आया होगा

वरना कहीं पैसे वाला भी कभी गरीब के घर जाता है ||

 

वो परदेश गया तो बस एक थाली लेकर, जिसमें माँ परोसती थी

बहुत पैसे वाला हो गया है, पर सुना है अभी भी उसी थाली मे खाता है ||

 

सुनते थे वक्त भर देता है, हर इक जख्म को

जो जख्म खुद वक्त दे, भला वो भी कभी भर पाता है ?

 

© आशीष कुमार  

 

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # 4 ☆ रेशमी आठवणीं ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

सुश्री स्वप्ना अमृतकर

(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हमने  आपका  “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती” शीर्षक से प्रारम्भ
किया है। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की कविता “रेशमी आठवणीं ”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -4 ☆ 

☆ रेशमी आठवणीं ☆ 

 

अलवारपणे वार्‍र्याची झुळूक येता

गुलाबी गालांस मोरपंखी हर्ष होता.. १

 

गोड गुपीत दडलेले मनाच्या कवाड्यांत

रेशमी आठवणींची उदी बाहेर पडे सुवांसात..२

 

धुंडता सहवास तुझा सुरुच फेरफटका

शहारले तन तिभे मनाला नाही सुटका..३

 

मेघधुनीतुन कर्णाला ऐकू येते तुझी शीळ

तेव्हा मेघमल्हार मज सुचवी कवितेची ओळ….४

 

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ YOGA NIDRA by Swami Satyananda Saraswati ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

☆YOGA NIDRA by Swami Satyananda Saraswati

Video Link : YOGA NIDRA by Swami Satyananda Saraswati

Yoga Nidra is a powerful technique in which you learn to relax consciously. It is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation. During the practice of yoga nidra, one appears to be asleep, but the consciousness is functioning at a deeper level of awareness. Here, the state of relaxation is reached by turning inwards, away from outer experiences.
Swami Satyananda Saraswati constructed this new system called Yoga Nidra incorporating the essence of tantric scriptures and practices without having complicated ritualistic drawbacks.
Yoga nidra is a simple practice. Choose a quiet room and lie down comfortably. Listen to the instructions and follow them mentally. The most important thing in yoga nidra is to refrain from sleep.
There are several versions of yoga nidra available but this one by Swami Satyananda Saraswati is perhaps the most powerful. It is very effective. I have benefited from it greatly and received a very positive feedback from all my friends to whom I passed it on. I feel it my humble duty to make it available to anyone who may need it.
For all practitioners of yoga nidra, Swami Satyananda Saraswati’s book ‘Yoga Nidra’ will be especially useful.

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (12) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

 

काङ्‍क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।

क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ।।12।।

 

कर्म सिद्धि अभिलाषा वाले देवों को जपते जग में

कर्मो से मानव जल्दी ही सिद्धि प्राप्त करते सब है।।12।।

 

भावार्थ :  इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग देवताओं का पूजन किया करते हैं क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है।।12।।

 

Those who long for success in action in this world sacrifice to the gods, because success is quickly attained by men through action. ।।12।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ☆ तरूणांसमोर पर्याय काय? ☆ – श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है। आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है। एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटते।  हम भविष्य में श्री कपिल जी की और उत्कृष्ट रचनाओं को आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है   युवाओं  के जीवन पर सोशल मीडिया , विभिन्न एप्स , ऑन लाइन/ऑफ लाइन गेम्स आदि के  उनकी शिक्षा, नौकरी एवं सामाजिक जीवन पर  विचारोत्तेजक आलेख  तरूणांसमोर पर्याय काय?।)

 

☆ तरूणांसमोर पर्याय काय? ☆

 

माणुस कितीही लढवय्या असला तरी जर त्याच्या लढण्याला योग्य दिशा नसेल. किंवा कशासाठी लढतोय हे स्पष्ट नसेल. तर त्याच्या लढण्यालाही अर्थ उरत नाही. माणसाचा स्वभाव चंचल आहे. मन अस्थिर आहे. हे त्या गोष्टीमध्ये जास्त गुंतते ज्याच्यामुळे वेळ वाया जातो. ज्याच्याने वेळ कामांस येईल असं खुप कमी होतांना दिसतं. आणि आजच्या काळात वेळ वाया घालवण्यासाठी नवनवीन माध्यमे उपलब्ध आहेत. त्यात मोबाईल, टि. व्ही. संच वगैरे अशा अनेक गोष्टी आहेत.  असं म्हटलं जातं कि एका नाण्याचे दोन बाजू असतात. या साधनाच्याही आहेत. फायदे आणि नुकसान प्रत्येक गोष्टीचा असतो. तसं यांचही आहे. काही फायदा वगळता तोटेही बघायला मिळतात.

आज इंटरनेट मुळे जग जवळ आलं असलं. तरी जवळची माणसं दुर गेलेली दिसतात. इंटरनेटच्या या जगात शाॅर्ट मॅसेज सर्व्हीसचा बोलबाला आहे. कारण फेसबुक व्हाटसअॅप वगैरे अशा अनेक अॅप आहेत ज्यांच्याद्वारे पुर्ण माहिती न देता ती एडिट करून प्रसारित केली जाते. किंवा कोण कोणाबद्दल काय बोललं हे फक्त दाखवलं जातं. मग तो का बोलला, कशाबद्दल बोलला याचं कोणाला काहीही घेणं देणं नसतं. याच एडिटींगच्या आणि शाॅर्ट मॅसेज सर्व्हीस मुळे कधी कधी संकुचित विचार होऊन सामाजिक एकोपाही धोक्यात येतो.

आज फेसबुक व्हाटसअॅप वगैरे यांसारख्या सोशल मिडियावर अनेक गृप स्थापन केले जातात. आणि या गृपमध्ये ही अपूर्ण माहीती काॅपी पेस्ट करण्याचे काम सर्रासपणे होताना दिसतं. याच गृपमधुन अस्वीकारार्ह पोस्टही टाकल्या जातात. त्यातुन कधी कधी अघटीतही घडतं. म्हणुन सोशल मिडिया वापरणं वाईट आहे असं मी म्हणणार नाही. पण आपन त्याचा कसा वापर करतो. ही गोष्ट इथे महत्वाची ठरते. जसा सोशल मिडियाद्वारे भडकाऊ अस्वीकारार्ह किंवा अश्लील पोस्ट टाकल्या जातात. त्याच सोशल मिडियावर राष्ट्रीय एकात्मतेच्या, सामाजिक बांधिलकीच्या, विज्ञान व तंत्रज्ञान, महापुरूषाच्या माहितीच्या आणि आजच्या तरुण पिढीसाठी उपयुक्त अशा स्पर्धां परीक्षाच्या- उद्योग धंद्याच्याही पोस्ट टाकल्या जातात. आता यातुन आपल्याला कोणत्या पोस्ट फाॅरवर्ड  करायच्यात किंवा डिलीट करायच्या ते वापरकर्तावर अवलंबून आहे.

पण प्रश्न असा आहे कि या सोशल मिडिया किंवा टेलेव्हिजन संच यामध्ये अडकून राहणा-या आणि या असल्या पोस्टने आजची तरूण पिढी तर बळी नाही ना पडत. याचा आधी विचार करायला हवा. कारण हीच तरुण पिढी देशाचा आधारस्तंभ आहे. माझ्या म्हणण्याचा अर्थ असा कि असल्या आक्षेपार्ह किंवा अस्वीकारार्ह पोस्ट न टाकता काही माहीती तंत्रज्ञानाच्या किंवा इतरही उपयोगाच्या पोस्ट केल्या तर तरूणांना त्याचा फायदाच होईल. आणि अप्रत्यक्ष देशाचा विकासालाही हातभार लागेल. आता ते वापरकर्ता वर अवलंबून आहे कि काय पोस्ट करावं नि काय डिलीट.

आणि जर समजा हि तरूणाई या सोशल मिडियापासुन लांबच राहीली तर अनेक गेम्स सध्या उपलबध आहेत. जसं पबजी, सब वे , वगैरे. या गेममध्ये असा काही अडकून जातात कि आजुबाजुला काय घडतंय. याचं भानच उरत नाही. एकप्रकारे विचार करण्याचा वाटाच बंद होऊन जातात. याचं गेम्स मुळे मुलांचे जिवही गेलेयत. जास्त काळ मोबाईलकडे पाहत राहिल्याने अंधत्वही आल्याच्या बातम्या मध्यंतरी वाचायला मिळाल्या होत्या. तरी ही तरूण पिढी त्यातुन बाहेर निघायला तयार नाही. यामुळे समाजाचं आणि देशाचंही नुकसान होत आहे. मोबाईल, टी व्ही, इंटरनेटचा वापर सिमित करून जर ही तरूणाई उद्योग धंद्यात गुंतली तर ते देशाच्या विकासाला  नक्किच पोषक ठरणार आहे.

आज नवनवीन तंत्रज्ञान विकसित होतंय. शेतीसाठी उपयुक्त माहिती किंवा घरगुती उद्योगांची माहीती आत्मसात केली तर स्वत उद्योग धंदे स्थापन करू शकतात. अशी महीती मोबाईलवर एका क्लिकने मिळते. यामुळे काही अंशी बेरोजगारीही कमी व्हायला मदत होईल. दरवर्षी डिग्री घेऊन लाखो मुलं बाहेर पडताहेत. डिग्री घेतल्या घेतल्या नोकरीच्या शोधात निघणा-या मुलंचाही एक वेगळाच ताफा आहे. डिप्लोमा, इंजिनियरींग, मेकॅनिकल वगैरे असंख्य विषयांत डिग्री संपादन करून मुलं महिन्याच्या एक तारखेला कंपन्यांच्या गेटवर काम मागण्यासाठी उभे राहतात. नाहीतर वर्षानुवर्षे न संपणारा एम.पी.एस.सी., यु.पी.एस.सी च्या मार्गावर चालतात. पण दरवर्षी डिग्रीधारक विद्यार्थी आणि आणि वर्षभरात निघालेल्या जागा यांत खुप मोठी तफावत असते. म्हणुन याही क्षेत्रात डाळ न शिजलेले विद्यार्थी एक तर गावाकडे परत जाऊन वाडिलोपार्जित शेती सांभाळतात. किंवा पुणे, मुंबई सारख्या बड्या शहरात एम. आय. डी. सी. चा रस्ता धरतात. आणि हे भविष्यातले क्लास वन क्लास टू चे अधिकारी आठ दहा हजाराची नोकरी करतात. एकप्रकारे स्वेच्छित गुलामगिरीच स्विकारता. आणि आपल्यापेक्षा कमी शिकलेल्या किंवा न शिकलेल्या अनुभवी लोकांच्या हाताखाली काम करतात. मी असं म्हणत नाही कि कमी शिकलेला किंवा न शिकलेला माणुस अज्ञानी असतो. त्या माणसांत असलेली क्षमता आणि त्याच्याकडे असलेल्या कौशल्याचा जोरावर तो इथपर्यंत आलेला असतो.

पण होत काय कि हा डिग्री घेउन हेल्परचं काम करणारा मुलगा जास्त करून सोबत काम करणा-यांच्या रडारवर असतो. खरं तर त्याचं शिक्षण त्यांच्या रडारवर असतं. उदा. बघा एखादा दहावी, बारावीचा मुलगा काम करत असेल आणि सोबतच एखादा डिप्लोमा इंजिनियर झालेला मुलगा काम करत असेल. आणि दोघांकडून काही चुक झाली तर उच्च शिक्षित म्हणुन डिप्लोमा वालाला टारगेट केलं जातं. त्यासाठी काही शब्द ठरलेली असतात. कि काय फायदा एवढ्या शिक्षणाचा, शिकला तेवढा चुकला,  आणि कोणता मास्तर होता रे तुला शिकवायला वगैरे असे शब्द बोलले जातात. त्याला बिचा-याला बोलता येत नाही. मुकाट्याने ऐकून घ्यावं लागतं. आणि शिक्षित मुलापेक्षा, त्याच्या डिग्रीपेक्षा आपण कसे सिकंदर आहोत हा भाव चेह-यावर आणला जातो.

परिणामी त्या मुलाला आपल्या शिक्षणाची लाज वाटायला लागते. त्याच्या आयुष्यात जे काही वाईट घडतं त्याला तो त्याच्या शिक्षणाला जबाबदार मानतो. यातूनच त्याला नैराश्य येते. आणि या नैराश्यातुन तो वाईट मार्गाला लागतो. पण अशा वेळी नैराश्याने ग्रसून न जाता अशा परिस्थितीत शांत डोकं ठेवून विचार करायला हवा. कारण याही प्रसंगात आपल्याकडे अनेक वाटा शिल्लक असतात. पण त्या वेळेवर दिसत नाही. कारण त्या शिक्षणाबददलच्या भयंकर रागाने मेंदू काबीज केलेला असतो. म्हणुन त्याला कोणतीही वाट दिसत नाही. आणि तो वाईट गोष्टींकडे आकर्षिला जातो. अशा वेळी स्वतःला शांत ठेवून जर उपाय किंवा मार्ग शोधले तर त्याचा नक्किच फायदा होईल. त्यात स्वयंरोजगार हा एक पर्याय असू शकतो. आपल्या शिक्षणाची तमा न बाळगता जर छोटे मोठे व्यवसाय स्थापन केले तर ती सुखी भविष्याची पेरणी ठरू शकेल. पण ते करायला आपन धजत नाही. कारण शिक्षण म्हणजे नोकरी ब्रीदवाक्यच बनून गेलंय. ही मानसिकता बदलनं गरजेचं आहे.

आणि दुसरा म्हणजे डायरेक्ट सेलिंगचा ही एक पर्याय राहू शकतो.  काही अपवाद वगळता आणि भविष्यात ऑनलाईन पकड पाहता डायरेक्ट सेलिंग हा एक सक्षम पर्याय बनून उभा राहू शकतो. पण डायरेक्ट सेलिंग म्हटलं म्हणजे लोकं सहसा त्याच्या कडे लक्ष देत नाही. कारण आधीच्या कंपन्यानी केलेली फसवणूक लगेच लक्षात येते. पण अशाही कंपन्या आहेत कि जे कित्येक वर्षापासून खंबीरपणे उभ्या आहेत. आणि अनेक लोक यात कमालीचे यशस्वी होतांना दिसताहेत.

वरिल दोन्ही मार्गांमध्ये गरज आहे ती *रिस्क* घेण्याची. कारण उद्योग करायचे झालं म्हणजे भांडवल आलंच. त्यासाठी पैसा लागतो. चालला तर ठिक नाही तर शुन्य. म्हणुन हा रिस्क कोणी घेऊ इच्छित नाही. पण इथे एक गोष्ट लक्षात घ्यावी लागेल. कोणत्याही फिल्डमध्ये रिस्क आहेच. मग नोकर बनून दुस-याच्या हाताखाली काम करून रिस्क घेण्यापेक्षा स्वत मालक बनून रिस्क घेण्यात काय हरकत आहे. कारण आधीच पंधरा- सोळा वर्षे शिक्षणात टाकली. त्यात वय लग्नाच्या दिशेने कुच करतेय. आणि स्पर्धां जास्त असल्यामुळे यशस्वी होण्याचे कमी चान्सेस. नोकरीही नाही किंवा रोजगाराचा पर्याय उपलब्ध नसेल तर हे पर्याय नक्किच तारणहार ठरू शकतील. म्हणुन तरूणांनी नैराश्याने खचुन न जाता हिंमतीने आणि आत्मविश्वासाने उभे राहून परिस्थितीवर मात करायला हवी. तेव्हाच तो एक लढवय्या शोभेल.

 

© कपिल साहेबराव इंदवे

मा. मोहीदा त श ता. शहादा

जि. नंदुरबार

मो  9168471113

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-35 – कविराज विजय यशवंत सातपुते (सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर …. अभिव्यक्ती ठरली अग्रेसर!)

कविराज विजय यशवंत सातपुते

अतिथि संपादक – ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–35  

 

(मैं कविराज विजय यशवंत सातपुते  जी का हृदय से आभारी हूँ। उन्होने मेरा आग्रह स्वीकार कर आज के अंक के लिए अतिथि संपादक के रूप में अपने उद्गार प्रकट किए। श्री दीपक करंदीकर जी, महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे के माध्यम से आपसे संपर्क हुआ और पता ही नहीं चला कि कब मित्रता हो गई।  ई-अभिव्यक्ति के मराठी साहित्य को इन ऊंचाइयों तक पहुंचाने में आदरणीय कविराज विजय यशवंत सातपुते जी का विशेष योगदान रहा है।  आपके माध्यम से वरिष्ठ, अग्रज एवं नवोदित साहित्यकारों को ई-अभिव्यक्ति से जोड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मराठी साहित्य का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। यदि ई-अभिव्यक्ति इस यज्ञ में मराठी साहित्य और साहित्यकारों से पाठकों को कुछ अंश तक भी जोड़ने में सफल हुआ तो यह हमारा सौभाग्य होगा। – हेमन्त बावनकर)

 

? सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर .. 

         . . . अभिव्यक्ती ठरली  अग्रेसर. !  ?

 

ई-अभीव्यक्ती डॉट कॉम हे हिंदी, मराठी व इंग्रजी भाषिक साहित्यिकांसाठी हेमंत बावनकर यांनी सुरू केलेले व्यासपीठ चांगलेच नावारूपाला आले आहे. वाचकांचे वाढते प्रमाण लक्षात घेता या  उपक्रमाचे यथोचित कौतुक व्हायला हवे.

संगणक तंत्रज्ञान विकसित झाल्याने जग एकमेकांशी जास्त जवळ आले आहे. ही जवळीक एकता,  साहित्य, संस्कृती, परंपरा आणि  इतिहास यांची सांगड घालणारी ठरावी यासाठी हेमंत बावनकर  आजही  कार्यरत आहेत.

कथा, कविता  आणि लेख यातून प्रत्येक जण व्यक्त होत आहे. आपल्या कलेतून समाज प्रबोधन करीत आहे.  आबालवृद्धांना उपयुक्त  असे लेखन मराठी, हिंदी व इंग्रजी भाषेतून या साईटवरून प्रसारित होत आहे.  सोशल नेटवर्किंग साईट वर ही  उपलब्धी साहित्याचा प्रचार  आणि प्रसार करण्यात  अग्रेसर ठरली आहे.

मराठी भाषिकांना सुरू केलेले हे नियमित साप्ताहिक स्तंभलेखन मराठी भाषा संवर्धनाचे महत्त्व पूर्ण कार्य करीत आहे.  अनेक  उत्तम कविता,  कथा, लेख वाचकांसमोर येत  आहेत. माणूस विचारांनी  एकमेकांशी जोडला जातोय ही घटना सामान्य नसून जागतिक  आहे. या लेखन संघटनाबद्दल त्यांचे मनापासून आभार.   मराठी, हिंदी भाषिकांना प्रकाशझोतात आणण्यासाठी त्यांनी  उभारलेल्या या साहित्य चळवळीस,  अभिनव साहित्य  उपक्रमास दिवसेंदिवस उत्तम यश मिळते  आहे. भाषा कोणतही असो, प्रतिभावंत साहित्यिकाची अभिव्यक्ती रसिकांपर्यत पोहोचविण्याचे महत्त्व पूर्ण कार्य  हेमंत जी करीत आहेत.

विविध प्रकारच्या विषयावर प्रसारित होणाऱ्या लेखातून समाजप्रबोधन तर होतेच  आहे. या  उपक्रमात लिहिणा-या लेखकांना प्रसिद्धी तर मिळतेच  आहे पण त्यांना रसिकांच्या प्रतिसादातून मिळणारे प्रोत्साहन त्यांचा दैनंदिन लेखन कला व्यासंग वाढवतो आहे. कौटुंबिक प्रांतिक,  प्रादेशिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक विचारांनी हे व्यासपीठ ज्ञानदान करते आहे. माणूस माणसाच्या जवळ आणण्याचे काम त्याचे साहित्य करीत  असते.

आपण काय लिहतो? कसे लिहितो? का लिहितो याचे आकलन  आपोआपच होते  आहे. या  उपक्रमातील लेखक जास्तीत जास्त लोकांपर्यत पोहोचावा. जागतिक स्तरावर कवी, कवयित्री लेखक यांचे  लेखन  अनुवादित व्हावे या हेतूने सुरू झालेला हा  उपक्रम  अतिशय स्तुत्य  आणि प्रशंसनीय आहे.

हेमंत बावनकर यांनी माणूस जोडण्याचे  अभियान हाती घेतले आहे .या  अभियानात लेखकांनी दिलेले योगदान तितकेच प्रशंसनीय आहे.  वाचन संस्कृती टिकविण्यासाठी उचलेले हे पाऊल  सोशल नेटवर्किंग साईट वर जास्तीत जास्त प्रवास करून जागतिक स्तरावर  विचारांचे आदान प्रदान करण्यात यशस्वी ठरो या शुभेच्छा.

 

✒ विजय यशवंत सातपुते, पुणे

अतिथि संपादक- ई-अभिव्यक्ति

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

5 जुलै 2019

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 6 ☆ सीता ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  “सीता ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 6 ☆

 

☆ सीता ☆

 

सीता! तुम भूमिजा

धरती की पुत्री

जनक के प्रांगण में

राजकुमारी सम पली-बढ़ी

 

अनगिनत स्वप्न संजोए

विवाहोपरांत राम संग विदा हुई

परन्तु माता कैकेयी के कहने पर

तुमने पति का साथ निभाने हेतु

चौदह वर्ष के लिए वन गमन किया

नंगे पांव कंटकों पर चली

और नारी जगत् का आदर्श बनी

 

परन्तु रावण ने

छल से किया तुम्हारा अपहरण

अशोक वाटिका में रही बंदिनी सम

अपनी अस्मत की रक्षा हित

तुम हर दिन जूझती रही

तुम्हारे तेज और पतिव्रत निर्वहन

के सम्मुख रावण हुआ पस्त

नहीं छू पाया तुम्हें

क्योंकि तुम थी राम की धरोहर

सुरक्षित रही वहां निशि-बासर

 

अंत में खुशी का दिन आया

राम ने रावण का वध कर

तुम्हें उसके चंगुल से छुड़ाया

अयोध्या लौटने पर दीपोत्सव मनाया

 

परन्तु एक धोबी के कहने पर

राम ने तुम्हें राजमहल से

निष्कासित करने का फरमॉन सुनाया

लक्ष्मण तुम्हें धोखे से वन में छोड़ आया

 

तुम प्रसूता थी,निरपराधिनी थी

राम ने यह कैसा राजधर्म निभाया…

वाहवाही लूटने या आदर्शवादी

मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने के निमित्त

भुला दिया पत्नी के प्रति

अपना दायित्व

 

सीता! जिसने राजसी सुख त्याग

पति के साथ किया वन-गमन

कैसे हो गया वह

हृदयहीन व संवेदनविहीन

नहीं ली उसने कभी तुम्हारी सुध

कहां हो,किस हाल में हो?

 

हाय!उसे तो अपनी संतान का

ख्याल भी कभी नहीं आया

क्या कहेंगे आप उसे

शक्की स्वभाव का प्राणी

या दायित्व-विमुख कमज़ोर इंसान

जिसने अग्नि-परीक्षा लेने के बाद भी

नहीं रखा प्रजा के समक्ष

तुम्हारा पक्ष

और अपने जीवन से तुम्हें

दूध से मक्खी की मानिंद

निकाल किया बाहर

 

क्या गुज़री होगा तुम पर?

उपेक्षित व तिरस्कृत नारी सम

तुमने पल-पल

खून के आंसू बहाये होंगे

नासूर सम रिसते ज़ख्मों की

असहनीय पीड़ा को

सीने में दफ़न कर

कैसे सहलाया होगा?

कैसे सुसंस्कारित किया होगा

तुमने अपने बच्चों को…

शालीन और वीर योद्धा बनाया होगा

 

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ने पर

झल्लायी होगी तुम लव कुश पर

और उनके ज़िद करने पर

पिता-पुत्र के मध्य

युद्ध की संभावना से आशंकित

तुमने बच्चों का

पिता से परिचय कराया होगा

‘यह पिता है तुम्हारे’

कैसे सामना किया होगा तुमने

राम का उस पल?

 

बच्चों का सबके सम्मुख

रामायण का गान करना

माता की वंदना करना

और अयोध्या जाने से मना करना

देता है अनगिनत प्रश्नों को जन्म

 

क्या वास्तव में राम

मर्यादा पुरुषोत्तम

सूर्यवंशी आदर्श राजा थे

या प्रजा के आदेश को

स्वीकारने वाले मात्र संवाहक

निर्णय लेने में असमर्थ

कठपुतली सम नाचने वाले

जिस में था

आत्मविश्वास का अभाव

वैसे अग्नि-परीक्षा के पश्चात्

सीता का निष्कासन

समझ से बाहर है

 

गर्भावस्था में पत्नी को

धोखे से वन भेजना…

और उसकी सुध न लेना

क्या क्षम्य अपराध है?

राम का राजमहल में रहते हुए

सुख-सुविधाओं का त्याग करना

क्या सीता पर होने वाले

ज़ुल्मों व अन्याय की

क्षतिपूर्ति करने में समर्थ है

 

अपनी भार्या के प्रति

अमानवीय कटु व्यवहार

क्या राम को कटघरे में

खड़ा नहीं करता

प्रश्न उठता है…

आखिर सीता ने क्यों किया

यह सब सहन?

क्या आदर्शवादी.पतिव्रता

अथवा समस्त महिलाओं की

प्रेरणा-स्रोत बनने के निमित्त

 

आज भी प्रत्येक व्यक्ति

चाहता है

सीता जैसी पत्नी

जो बिना प्रतिरोध व जिरह के

पति के वचनों को सत्य स्वीकार

गांधारी सम आंख मूंदकर

उसके आदेशों की अनुपालना करे

आजीवन प्रताड़ना

व तिरस्कार सहन कर

आशुतोष सम विषपान करे

पति व समाज की

खुशी के लिये

कर्तव्य-परायणता का

अहसास दिलाने हेतु

हंसते-हंसते अपने अरमानों का

गला घोंट प्राणोत्सर्ग करे

और पतिव्रता नारी के

प्रतीक रूप में प्रतिष्ठित हो पाए।

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #4 ☆ शब्द तुम मीत मेरे ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की  शिक्षाप्रद लघुकथा  शब्द तुम मीत मेरे”।

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #4  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ शब्द तुम मीत मेरे 

 

शब्द तुम मीत मेरे

शब्द में

छुपे अर्थ सारे

मैं कहती जाऊं

तुम सुनते जाना

शब्द मेरे तुम सो न जाना

नहीं कहूंगी कुछ भी व्यर्थ

तुम खोना न शब्द अपने अर्थ

शब्द बढ़ते ही जाएंगे

सागर नदिया पार लगाएंगे।

 

आएंगे शब्द

इतिहास ग्रंथों से

वे आएंगे तरह तरह के रूप में

बदलेंगे अपना वेश

जाना चाहेंगे देश-देश

पहनेंगे अपनत्व का जामा

बढ़ाएंगे दोस्ती का हाथ

जब उन्हें मिल जाएंगे

अपने शब्दों के अर्थ

तब वे तुम्हें पहचानेंगे नहीं

रख देंगे कुचलकर

तुम्हें बता दिया जाएगा

देश और समाज का दुश्मन

होशियार हो जाओ

शब्द तुम …..

 

चारों ओर घेरा है गिद्ध का

उपदेश सही है बुद्ध का

शब्दों को सही चुनों

बोलने से पहले गुनों

शब्द तुम…….

 

© डॉ भावना शुक्ल

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प सहावे #6 ☆ पावसाचे मुक्त चिंतन. . .  समाज पारावरून . . . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं  ।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पावसाचे मुक्त चिंतन. . .  समाज पारावरून . . . !” ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – पुष्प सहावे  #-6 ☆

 

☆ पावसाचे मुक्त चिंतन. . .  समाज पारावरून . . . ! ☆

 

आला पाऊस पाऊस

तन मन भुलवीत

पानाफुलांचा पिसारा

आनंदाने फुलवीत . . . !

 

अनादी अनंत काळापासून या पावसाने वेड लावले आहे. संपूर्ण चराचर व्यापून टाकणारा हा पाऊस तन  आणि मनावर  अधिराज्य गाजवतो. प्रतिक्षा करायला लावणारा हा पाऊस  आल्यावर मात्र तनामनावर मोहिनी घालतो.

पावसाची नऊ नक्षत्रे वजा केली तर बाकी शून्य उरते. . . . बिरबलाची ही चातुर्य बुद्धी विचार करण्यासारखी आहे.  आपला भारत देश हा शेती प्रधान देश आहे.  यामुळे पावसावर आपले सारे भवितव्य अवलंबून आहे. हा पाऊस डोळ्यातले पाणी  आनंदाश्रू त परीवर्तित करतो.  स्नेह, प्रेम, आपुलकी, जिव्हाळा, माया, ममता सा-या भावनांचा  एक थेंब माणसाला माणुसकीचे नाते जोडायला पुरेसा ठरतो.

माणूस जेव्हा  एकटा  असतो ना तेव्हा  अनेक ताणतणाव, चिंता, काळजी, क्लेश, उलट सुलट विचार यांनी स्वतःच वादाच्या भोवऱ्यात  अडकतो. प्रश्नांचे  आवर्त चक्रीवादळाप्रमाणे मनात घोंघावत  असताना कुणीतरी येतो, केलेल्या कामाची पावती देतो,  अपयश आले  असल्यास धीरान परीस्थिती हाताळण्याचा सल्ला देतो तेव्हा ही व्यक्ती देवदूत वाटते. तिन दिलेला दिलासा मनाला  उभारी देतो. मन मोकळे होते. जाणिवा नेणिवांच्या मोकळ्या  अवकाशात सृजनशील विचारांची पेरणी  आपल्याला  आपल्या ध्येयाकडे घेऊन जाते.

समाजपारावर बारमाही बरसणार्‍या प्रापंचिक तक्रारी या मोसमात दूर होतात.  आषाढ महिन्यात पावसाचे आगमन चराचराला चैतन्य बहाल करून जाते. हिरवा शालू  धरतीला सुजलाम सुफलाम करून जातो. बळीराजान केलेल्या कष्टाच सार्थक होत. पाण्याने भरलेले ढग  असो,  किंवा भरून  आलेले मन  असो बरसून गेल्यावरच बरे वाटते.

गरमागरम चहा, कॉफी, किंवा गरमागरम भजी पावसाळ्यात त्याचा  आस्वाद घेण्याची लज्जत  अवर्णनीय आहे.  पाऊस हा शब्दच मनात चलबिचल सुरू करतो. पावसाळ्यात भिजण्याची मजा  आणि पावसाच्या पाण्यात भिजवून ठेवलेला ताणतणाव माणसाला माणूस करतो. स्नेहाचा  ओलावा भावभावना सांभाळून  एकमेकाच्या काळजात रूजतो आणि सुखसमृद्धीची सुगी आकारास येते.

हा पाऊस खर तर प्रत्येकाच्या जिव्हाळ्याचा विषय.  टाळताही येत नाही  अन सांगताही येत नाही  असा विषय. तरीही हा पाऊस प्रत्येक जण आपापल्या परीने  अनुभवीत रहातो.  आबाल वृद्धांना आकर्षित करणारा हा पाऊस कवी, कवयित्री चे हळवे व्यासपीठच. मनातल्या भाव भावना शब्दात व्यक्त करताना  आठवणींच्या सरी झरू लागतात आणि साहित्य जन्माला येते. सारे शब्दालंकार व नवरस घेऊन शब्द सरी कोसळत असताना माणूस व्यक्त होतो. कलाकार आणि रसिक एकमेकांना भेटण्याचा हा सोहळा  आकाश  आणि धरतीच्या मिलना इतकाच सुंदर, पवित्र  आणि शब्दातीत आहे.

कथा, कादंबरी, कविता, लेख, नाटक यातून बरसणार्‍या  पावसाने शारदीय  सारस्वतात  अनोखे दालन निर्माण केले आहे. बालकविता पावसाशिवाय अपूर्णच आहेत. पाऊसावर कविता न करणारा कवी, कवयित्री जसे दुर्मीळच तसाच पाऊस न आवडणारी, पावसात न भिजलेली व्यक्ती दुर्मीळच.

सृष्टी चक्रात महत्त्व पूर्ण  असलेला हा पाऊस  अतीवृष्टी आणि दुष्काळ  या दोन्ही रूपातून दर्शन देतो. त्याला हवा तेव्हा येतो. हवा तसा कोसळतो. चराचरात सामावतो. माणसाच्या मनात  आणि निसर्गाच्या कणाकणात सामावणारा पाऊस समाज पारावर असाच चघळत रहावा कधी चेष्टेतून, कधी नाष्ट्यातून  तर कधी सुजलाम सुफलाम  अशा शेतीप्रधान राष्टातून.

 

मेघ नभीचे मनी दाटले

झालो मी साकार.

नभवलयी या शब्दपाखरे

दिसती काव्याकार. . . !

 

ये कविते ये,  अलगद  ओठी

स्थान तुझे स्विकार. . . . !

 

नभवलयी या ,ऋतू पाखरे

करती स्वैराचार .

झाड  होऊनी थांब नभी तू

सृजन ते स्विकार. . . . !

 

ये कविते ये,  अलगद  ओठी

स्थान तुझे स्विकार. . . . !

 

नभवलयी या, रंग फुलांचे

प्रतिभेचा दरबार.

कुंचल्यातुनी रंगव सारे

मनातले सरकार. . . !

 

ये कविते ये,  अलगद  ओठी

स्थान तुझे स्विकार. . . . !

 

नभवलयी या पाऊस धारा

अपुली जीवनाधार

देण्या जीवन कृष्ण घनातून

घे नवा अवतार. . . . !

 

ये कविते ये,  अलगद  ओठी

स्थान तुझे स्विकार. . . . !

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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