हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 19 – बेटियाँ…..☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  बेटियों पर आधारित एक भावपूर्ण रचना   “बेटियाँ…..। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 19☆

 

☆ बेटियाँ….. ☆  

 

है अनन्त आकाश बेटियां

उज्ज्वल प्रखर प्रकाश बेटियां

और धरा सी जीवनदायी

जीवन का मधुमास बेटियां।

 

बिटिया से घर-आंगन महके

बिटिया गौरैया सी चहके

सबको सुख पहुंचाती बिटिया

स्वयं वेदनाओं को सह के।

 

बिटिया दर्दों का मरहम है

सृष्टि की कृति सुंदरतम है

निश्छलता करुणा की मूरत

मोहक मीठी सी सरगम है।

 

बिटिया है पावन गीता सी

सहनशील है माँ सीता सी

नवदुर्गा का रूप बेटियाँ

निर्मल मन पावन सरिता सी।

 

बिटिया घर की फुलवारी है

बिटिया केशर की क्यारी है

चंदन की सुगंध है बिटिया

बिटिया शिशु की किलकारी है।

 

बिटिया है आँखों का पानी

कोयल की मोहक मृदु वाणी

बिटिया पहली किरण भोर की

गोधूलि बेला, सांझ सुहानी।

 

संस्कारों की खान बेटियां

दोनों कुल का मान बेटियां

जड़-चेतन सम्पूर्ण जगत का

ज्ञान ध्यान विज्ञान बेटियां।

 

बिटिया चिड़ियों का कलरव है

बिटिया जीवन का अनुभव है

माँ की ममता प्यार पिता का

बिटिया में सब कुछ सम्भव है।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – ☆ लघुकथा ☆ सब्जी मेकर ☆ – डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

 

(डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी जी  लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ, बालकथा, बोधकथा, लेख, पत्र आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं.  आपकी रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. हम अपेक्षा करते हैं कि हमारे पाठकों को आपकी उत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर पढ़ने को मिलती रहेंगी. आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर लघुकथा   “सब्जी मेकर ”.)

 

☆ लघुकथा – सब्जी मेकर ☆ 

इस दीपावली वह पहली बार अकेली खाना बना रही थी। सब्ज़ी बिगड़ जाने के डर से मध्यम आंच पर कड़ाही में रखे तेल की गर्माहट के साथ उसके हृदय की गति भी बढ रही थी। उसी समय मिक्सर-ग्राइंडर जैसी आवाज़ निकालते हुए मिनी स्कूटर पर सवार उसके छोटे भाई ने रसोई में आकर उसकी तंद्रा भंग की। वह उसे देखकर नाक-मुंह सिकोड़कर चिल्लाया, “ममा… दीदी बना रही है… मैं नहीं खाऊंगा आज खाना!”

सुनते ही वह खीज गयी और तीखे स्वर में बोली, “चुप कर पोल्यूशन मेकर, शाम को पूरे घर में पटाखों का धुँआ करेगा…”

उसकी बात पूरी सुनने से पहले ही भाई स्कूटर दौड़ाता रसोई से बाहर चला गया और बाहर बैठी माँ का स्वर अंदर आया, “दीदी को परेशान मत कर, पापा आने वाले हैं, आते ही उन्हें खाना खिलाना है।”

लेकिन तब तक वही हो गया था जिसका उसे डर था, ध्यान बंटने से सब्ज़ी थोड़ी जल गयी थी। घबराहट के मारे उसके हाथ में पकड़ा हुई मिर्ची का डिब्बा भी सब्ज़ी में गिर गया। वह और घबरा गयी, उसकी आँखों से आँसूं बहते हुए एक के ऊपर एक अतिक्रमण करने लगे और वह सिर पर हाथ रखकर बैठ गयी।

उसी मुद्रा में कुछ देर बैठे रहने के बाद उसने देखा कि  खिड़की के बाहर खड़ा उसका भाई उसे देखकर मुंह बना रहा था। वह उठी और खिड़की बंद करने लगी, लेकिन उसके भाई ने एक पैकेट उसके सामने कर दिया। उसने चौंक कर पूछा, “क्या है?”

भाई धीरे से बोला, “पनीर की सब्ज़ी है, सामने के होटल से लाया हूँ।”

उसने हैरानी से पूछा, “क्यूँ लाया? रूपये कहाँ से आये?”

भाई ने उत्तर दिया, “क्रैकर्स के रुपयों से… थोड़ा पोल्यूशन कम करूंगा… और क्यूँ लाया!”

अंतिम तीन शब्दों पर जोर देते हुए वह हँसने लगा।

 

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) – 313 002

ईमेल:  [email protected]

फ़ोन: 9928544749

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ काव्य कुञ्ज – # 9 – फुलवारी की पुकार ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता फुलवारी की पुकार

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 9 ☆

☆  फुलवारी की पुकार

(विधा:मुक्तक कविता)

 

काश ! यह स्कूल उपवन होता,

बनते हम इसकी फुलवारी,

एक ही अर्ज है,

सुनो मन की बात अब हमारी।

 

बालवर्ग मिले दोस्त प्यारे,

ना थी कोई आपसी तकरार,

खेलते-कूदते बीत रहा था समय,

थी एक समय की गुहार,

चल आगे बढ़ प्यारे,

बहुत मिलेगा प्यार और कई फ़नकार

मुडकर ना देख पीछे,

देख आगे और जी ले दुनिया दुलारी,

सुन गुहार समय की,

बढ़ने को आगे हमने की तैयारी।

 

ककहरा से हुई शुरुआत,

फिर आई गणित की बारी,

रटना, याद करना, फिर पाठ पढ़ना,

लगने लगा भारी,

बस्ते के बोझ से,

बचपने की भूल रही है हँसी सारी, क्या करें

ना पढ़ना और ना ही हँसाना,

हुई अनचाही ऐसी लाचारी,

सिसकने-मुरझाने लगी है गुरूजी,

बचपने की आज यह फुलवारी।

 

आज हमें बचपन जीने दो,

मन आप विचारों से उड़ने दो,

कमल से बनती हैं तितलियाँ,

आप ही आप में,

सीखना, खेलना और गाना चाहती है

आप ही आप में,

बनाना चाहती हैं तितलियाँ जैसा

चाहे आप ही आप में,

हाल बहुत बुरा हैं गुरूजी,

दिमाग अब बंद, नहीं मिलती हलकारी।

 

बोझ बने जब पढाई,

फिर कैसे न होगी मन ही मन लड़ाई,

कहते हैं बच्चे फूल होते हैं,

पर क्या हुआ आज यह बेहाल,

बचपन छीना गया हमसे,

कैसे उभरे हम समय के ताल,

फिर से बचपन जीना चाहते है,

सुनाती है यह सारी फुलवारी,

गुरूजी, उजड़ने से पहले फिर एक बार,

खिलना चाहती है बचपन यह फुलवारी।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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हिन्दी साहित्य – विश्व बचत दिवस विशेष ☆ उज्ज्वल भविष्य के लिए धन की बचत कैसे करें? ☆ – श्री कुमार जितेंद्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(विश्व बचत दिवस के अवसर पर श्री कुमार जितेंद्र जी  का विशेष आलेख “उज्ज्वल भविष्य के लिए धन की बचत कैसे करें?” विश्व भर में यह दिवस 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा । भारत में यह 30 अक्टूबर को मनाया जायेगा।

☆विश्व बचत दिवस विशेष ☆ उज्ज्वल भविष्य के लिए धन की बचत कैसे करें? ☆

 

वर्तमान समय में धन कमाने के स्त्रोत तो बहुत अधिक है। कोई बेरोजगार नहीं बैठ सकता है। परन्तु बचत बहुत कम लोग ही कर पाते हैं । क्योंकि बचत करने की जानकारी प्रत्येक इंसान के पास नहीं है। आजकल बढ़ती महंगाई के चलते धन की बचत करना एक चुनौती बनी हुई हैं पर भविष्य के लिए बचत करना भी बहुत जरूरी है । यदि समय रहते धन की  सही जगह पर बचत की जाये तो भविष्य सुनहरा एवं राह आसान होगी परन्तु वर्तमान समय में धन को सुरक्षित रखना मुश्किल हो गया है। न घर में धन को सुरक्षित रखा जा सकता है और नहीं बाहर।  किसी व्यक्ति को ब्याज पर देने से ब्याज के चक्कर में मूल धन भी खोने का डर रहता हैं। तथा समय पर भुगतान नहीं होने का भी खतरा रहता है। दूसरी ओर वर्तमान में बहुत से निजी बैंक भी मेहनत से कमाया हुआ धन को लूटने से  पीछे नहीं रहते हैं। निजी बैंक विभिन्न प्रकार से अधिक ब्याज का लालच देने का विज्ञापन जारी कर लोगों को गुमराह कर देते हैं। तथा वर्तमान में लोग अधिक ब्याज के चक्कर में आकर अपने धन को जमा करा देते हैं। कुछ समय के लिए तो निजी बैंक लोगों के साथ अच्छा संबध बनाए रखते हैं। परन्तु मौका मिलते ही पलायन कर लेते हैं। वर्तमान समय में लाखो लोगो का धन ब्याज के चक्कर में डूब गया है। इसलिए मेहनत के धन को सही जगह पर सुरक्षित रखना जरूरी है। बचत कैसे करें आज के लेख में बताने वाले हैं तो आइए जानें :-

  1. सरकारी बैंक – वर्तमान में धन को सुरक्षित रखना है तो सरकारी बैंको पर विश्वास करना जरूरी है। सरकारी बैंकों में जमा धन के नुकसान होने की बिल्कुल भी संभावना नहीं होती है। सरकारी बैंक भी समय – समय अच्छा ब्याज उपलब्‍ध करवाती है। गरीब और आम लोगों का सहयोग भी करती है। समय – समय पर विभिन्न शिविर लगा कर लोगों को सूचनाओं की जानकारी भी प्रदान करवाती है। तथा अपने धन को सुरक्षित रखने की जानकारी भी देती है। तथा सरकारी बैंक में धन जमा करवाने से किसी प्रकार के बाहरी रूप से नुकसान होने की संभावना बहुत कम होती है। तथा बैंक में एक अच्छी साख जमी रहती है। जिससे भविष्य में किसी आवश्यक कार्य के बैंक से ऋण समय पर मिल सके। इसलिए भविष्य के कदमो को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाना है तो अपने धन को सरकारी बैंको में सुरक्षित रखना होगा।
  2. सरकारी डाक घर – वर्तमान में धन को लंबे समय तक सुरक्षित रखना है तो सरकारी डाक घर भी एक अच्छा मित्र हो सकता है। वर्तमान में डाक घर में विभिन्न प्रकार की योजनाओ संचालन हो रहा है। जिससे अपने धन को एक दीर्घ अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। डाक घर में धन जमा रखने से विभिन्न प्रकार की पॉलिसी के प्रीमियम के अंतर्गत भविष्य में अच्छा धन प्राप्‍त हो सकता है। डाक घर में छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक विभिन्न प्रकार की योजनाओं के उपयोग से धन को भविष्य के जमा किया जा सकता है।
  3. अनावश्यक खर्च पर नियंत्रण – वर्तमान समय में व्यक्ति धन के प्रति इतना लापरवाह हो गया है कि वह सह निर्णय नहीं ले पाता कि धन को किन जगहों पर खर्च करना है और किन जगहो पर नहीं। वर्तमान में देखा जाए तो व्यक्ति विवाह के अवसर पर आँख बंद करके आधुनिक दुनिया के भौतिक संसाधनों पर अनावश्यक रूप धन को इतना खर्च करता है जिसका आंकलन करना मुश्किल हो जाता है। दूसरा कारण मृत्यु भोज – वर्तमान में अनावश्यक धन खर्च का मुख्य कारण मृत्यु भोज भी प्रमुख हैं। वर्तमान परिस्थितियों में एक नजर से देखा जाए तो किसी इंसान की मृत्यु हो जाने के बाद पीछे समाज के कुछ ठेकेदार लोग उस परिवार पर मृत्यु भोज करने का इतना दबाव देते हैं कि वह परिवार मृत्यु भोज करने के लिए मजबूर हो जाता है। मृत्यु भोज पर वर्तमान में इतना धन खर्च करते हैं कि बाद में वह पीड़ित परिवार को आजीवन आर्थिक स्थिति से ऊपर नहीं उठ पाता है। वह उस उधार लिए धन को चुकाने के लिए जिंदगी लगा देता है। अगर वर्तमान में मनुष्य को अपने धन को सुरक्षित रखना है तो अनावश्यक खर्च पर नियंत्रण रखना जरूरी है।
  4. नशीले पदार्थों पर नियंत्रण – पौराणिक काल में देखा जाए तो इंसान नशीले पदार्थों का सेवन बहुत ही कम मात्रा में करता था। जिससे उसके धन की बचत आसानी से हो जाती थी। परन्तु वर्तमान में देखा जाए तो नशीले पदार्थों की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि जिसकी कल्पना करना नामुमकिन हो जाता है। नशीले पदार्थों की बढ़ती मात्रा के कारण वर्तमान में छोटे से लेकर बड़े बुजुर्गों तक नशीले पदार्थों का अधिक सेवन किया जा रहा है। दिन भर की पूरी कमाई का आधा हिस्सा शाम तक नशीले पदार्थों में खर्च लेते हैं। जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति हमेशा – हमेशा के लिए कमजोर हो रही है। जो एक चिंता का विषय है। वर्तमान समय में युवा वर्ग में नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक कर धन को अनावश्यक रूप खर्च होने से सुरक्षित रखा जा सकता हैl
  5. प्रतिस्पर्धा की भावना पर नियंत्रण – प्राचीन समय लोगो की जीवन शैली एक अलग तरह की थी। लोगों में रहने – खाने – पीने की सभी व्यवस्थाओं पर अपना एक नियंत्रण था। किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी। कौन क्या कर रहा है। किसी से कोई मतलब नहीं था। परन्तु आधुनिकीकरण ने मनुष्य जीवन की परिभाषा ही बदल डाली है। वर्तमान में लोगों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। किसी ने अच्छा घर बना लिया है या किसी मशीनरी को खरीद लिया है। दूसरे व्यक्ति भी उसकी तुलना सबके सामने करते हैं कि इसने ऎसा किया… इतना खरीदा… अपने को भी करना चाहिए। जबकि अपने पास आय के इतने स्त्रोत भी नहीं हो सकते हैं। इसलिए वर्तमान समय में मनुष्य को भविष्य के लिए धन को सुरक्षित रखना है। तो प्रतिस्पर्धा की भावना का त्याग करना होगा। तभी धन सुरक्षित हो पाएगा। बचत किये हुआ धन से भविष्य की राह में सुनहरे पंख लगेंगे। राही को अच्छी मंजिल मिल पाएंगी। और राही  को मुस्कराती जिंदगी मिल सके।

 

©  कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – सप्तम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

(विज्ञान सहित ज्ञान का विषय)

 

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।

यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ।।3।।

 

लोग सहस्त्रों में कोई करता एक प्रयत्न

मुझे जानता तत्वतः कोई किंतु नर रत्न।।3।।

 

भावार्थ :  हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है।।3।।

 

Among thousands  of  men,  one  perchance  strives  for  perfection;  even  among  those successful strivers, only one perchance knows me in essence.।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 14 ☆ पहचान ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “पहचान”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 14 ☆

☆ पहचान  

कभी महकती हूँ,

कभी चहकती हूँ;

एक दुनिया खोयी है,

एक दुनिया पायी है!

 

अँधेरे पीछे छूट रहे हैं,

खुशियों के झरने फूट रहे हैं;

कभी तन्हाई थी,

अभी रौशनाई है!

 

अमावस्या ढल रही है,

धूप निकल रही है;

आँखें बनी हैं महताब,

चाल में हैं कई आफताब!

 

ए साईं! तू ही है रखवाला!

ए मौला! इस  रूप में तू ने ही ढाला!

मेरी जब से खुद से पहचान हुई,

दुनिया लग रही है नई नई!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – 2. दीपावली के तीन दिन और तीन शब्ददीप ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

गतवर्ष दीपावली के समय लिखे तीन संस्मरण आज से एक लघु शृंखला के रूप में साझा कर रहा हूँ। आशा है कि ये संस्मरण हम सबकी भावनाओं के  प्रतिनिधि सिद्ध होंगे।  – संजय भरद्वाज

 

☆ संजय दृष्टि  – दीपावली विशेष – दीपावली के तीन दिन और तीन शब्ददीप 

☆ आज दूसरा शब्ददीप ☆

आज बलि प्रतिपदा है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि। देश के अनेक भागों में बोलचाल की भाषा में इसे पाडवा कहते हैं।

शाम के समय फिर बाज़ार में हूँ। बाज़ार के लिए घर से अमूमन पैदल निकलता हूँ। दो-ढाई किलोमीटर चलना हो जाता है, साथ ही पात्र-परिस्थिति का अवलोकन और खुद से संवाद भी।

दीपावली यानी पकी रसोई के दिन। सोचता हूँ फल कुछ अधिक ले लूँ ताकि पेट का संतुलन बना रहे। मंडी से फल लेकर मेडिकल स्टोर की ओर आता हूँ। एक आयु के बाद फलों से अधिक बजट दवाइयों का होता है।

सड़क खचाखच भरी है। दोनों ओर की दुकानों ने सड़क को अपने आगोश में ले लिया है या सड़क दुकानों में प्रवेश कर गई है, पता ही नहीं चलता। दुकानदार मुहूर्त की बिक्री करने में और ग्राहक उनकी बिक्री करवाने में व्यस्त हैं। जहाँ पाँव धरना भी मुश्किल हो उस भीड़ में एक बाइक पर विराजे ट्रिप्सी ( ट्रिपल सीट का यह संक्षिप्त रूप आजकल खूब चलन में है)  मतलब तीन नौजवान गाड़ी आगे ले जाने की नादानी करना चाहते हैं। कोलाहल में हॉर्न की आवाज़ खो जाने से कामयाबी कोसों दूर है और वे बुरी तरह झल्ला रहे हैं। भीड़ मंथर गति से आगे बढ़ रही है। देह की भीड़ में मन का एकांत मुझे प्रिय है। मन खुद से बातें करने में तल्लीन है और देह भीड़ के साथ कदमताल।

किर्रररर .. किसी प्राणी के एकाएक आगे आ जाने से कोई बस ड्राइवर जैसे ब्रेक लगाता है, वैसे ही भीड़ की गति पर विराम लग गया। कौतुहलवश आँखें उस स्थान पर गईं जहाँ से गति शून्य हुई थी। देखता हूँ कि दो फर्लांग आगे चल रही लगभग अस्सी वर्ष की एक बूढ़ी अम्मा एकाएक ठहर गई थीं। अत्यंत साधारण साड़ी, पैरों में स्लीपर, हाथ में कपड़े की छोटी थैली। बेहद निर्धन परिवार से सम्बंध रखने वाली, सरकारी भाषा में ‘बीपीएल’ महिला। हुआ यों कि विपरीत दिशा से आती उन्हीं की आयु की, उन्हीं के आर्थिक वर्ग की दूसरी अम्मा उनके ठीक सामने आकर ठहर गई थीं। दोनों ओर का जनसैलाब भुनभुना पाता उससे पहले ही विपरीत दिशा से आ रही अम्मा भरी भीड़ में भी जगह बनाकर पहली के पैरों में झुक गईं। पूरी श्रद्धा से चरण स्पर्श किये।

पहली अम्मा के चेहरे पर मान पाने का नूर था।  स्मितहास्य दोनों गालों पर फैल गया था। हाथ उठाकर पूरे मन से आशीर्वाद दिया। प्रणाम करने वाली ने विनय से ग्रहण किया। दोनों अपने-अपने रास्ते बढ़ीं, भीड़ भी चल पड़ी।

दीपावली की धोक देना, प्रतिपदा को मिलने जाना, प्रणाम करने की परम्पराएँ जाने कहाँ लुप्त हो गईं! पश्चिम के अंधानुकरण ने सामासिकता की चूलें ही हिलाकर रख दीं। ‘कौवा चला हंस की चाल’.., कौवा हो या हंस हो, हरेक की दृष्टि में दोनों का संदर्भ भिन्न-भिन्न हो सकता है पर संदर्भ से अधिक महत्वपूर्ण है  दोनों का होना।

वर्तमान में सर्वाधिक युवाओं का देश, भविष्य में सर्वाधिक वृद्धों का होगा। परम्पराओं की तरह उपेक्षित वृद्ध या वृद्धों की तरह उपेक्षित परम्पराएँ!  हम अपनी परम्पराओं को धोक देंगे, उनका चरणस्पर्श करेंगे, उनसे आशीर्वाद ग्रहण करेंगे या ‘हाय’ कहकर ‘बाय’ करते रहेंगे?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 11 ☆बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती”  ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है पुस्तक “बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती”  पर  श्री विवेक जी  की चर्चा ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 11  ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती

पुस्तक – बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती

हिन्दी अनुवाद –  अशोक गुप्ता और प्रणय रंजन तिवारी

मूल्य –  225 रु

प्रकाशक – राजपाल प्रकाशन, दिल्ली

☆ डाटर आफ द ईस्ट – बेनजीर भुट्टो- मेरी आप बीती– चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

पाकिस्तान से हमारी कितनी भी दुश्मनी क्यो न हो, हमेशा से वहाँ की राजनीति, लोगों और संस्कृति भारतीयो की रुचि के विषय रहे हैं. यही वजह है कि  बेनजीर भुट्टो की आत्मकथा का हिन्दी रूपांतर राजपाल पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया. काश्मीर के नये हालात ने मुझे अपने बुकसेल्फ से यह पुस्तक निकाल कर एक बार पुनः नये सिरे से पढ़ने के लिये प्रेरित किया. मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब का हिन्दी अनुवाद अशोक गुप्ता और प्रणय रंजन तिवारी ने किया है. पब्लिक फिगर्स द्वारा आत्मकथा लिखना पुराना शगल है, डाटर आफ द ईस्ट, शीर्षक से  बेनजीर भुट्टो ने अपनी आत्मकथा १९८८ में लिखी थी, जिसमें मार्क सीगल ने उनके साथ मिलकर १९८८ से २००७ तक के घटनाक्रम को जब वे पाकिस्तान वापस लौटी को जोड़ा. अंततोगत्वा उनकी हत्या हुई. किताब बताती है कि पाकिस्तान के हालात हमेशा से अस्थिर व चिंताजनक रहे हैं. मेरे पिता की हत्या, अपने ही घर में बंदी, लोकतंत्र का मेरा पहला अनुभव, बुलंदी के शिखर छूते आक्सफोर्ड के सपने, जिया उल हक का विश्वासघात, न्यायपालिका के हाथो मेरे पिता की हत्या, मार्शल ला को लोकतंत्र की चुनौती, सक्खर जेल में एकाकी कैद, कराची जेल में अपनी माँ की पुरानी कोठरी में बंद, सब जेल में अकेले दो और वर्ष, निर्वासन के वर्ष, मेरे भाई की मौत, लाहौर वापसी और १९८६ का कत्लेआम, मेरी शादी, लोकतंत्र की नई उम्मीद, जनता की जीत, प्रधानमंत्री पद और उसके बाद, उपसंहार, इन उपशीर्षको में बेनजीर भुट्टो ने अपनी पूरी बात रखी है.  पुस्तक में वे लिखती हैं कि आतंकवादी इस्लाम का नाम लेकर पाकिस्तान को खतरे में डाल रहे हैँ… फौजी हुकूमत छल कपट और षडयंत्र के खतरनाक खेल खेलती है.. किंबहुना बेनजीर के वक्त से अब पाकिस्तान में आतंक और पनपा है, वहां के हालात बदतर हो रहे हे हैं, जरूरत है कि कोई पैगम्बर आये जो  जिहाद को सही तरीके से वहां के मुसलमानो को समझाये, अमन और उसूलो की किताब  कुरान की मुफीद व्याख्या दुनियां की जरूरत बन चुकी है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ दीपावली विशेष –  मेरे देश में रामराज आ जायेगा ☆ – श्री मनीष तिवारी

श्री मनीष तिवारी 

 

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं ,अपितु राष्ट्रीय  स्तर ख्यातिलब्ध साहित्यकार -कवि  श्री मनीष तिवारी जी  की  दीप पर्व पर  एक  कविता  “मेरे देश में रामराज आ जायेगा।”)

☆ दीपावली विशेष –  मेरे देश में रामराज आ जायेगा ☆

 

जिस दिन अंतर्मन का सारा कलुष दूर हो जाएगा,

जिस दिन मानव का जीवन शोषण से बच जाएगा,

 

जिस दिन भाई विह्वल हो भाई को गले लगाएगा

जिस दिन धवल चंद्रमा नभ में  प्रेम राग ही गायेगा,

 

जिस दिन कहीं किसी को कोई कुत्सित न बहकायेगा,

जिस दिन नीला अम्बर आतिशबाजी से मुस्कायेगा,

 

जिस दिन हर घर बाग सरीखा खुशबू से भर जाएगा

जिस दिन कान्हा की बंशी में मधुर राग छिड़ जाएगा,

 

जिस दिन अहंकार का जग में भाव नहीं भरमायेगा

सच कहता हूँ मेरे देश में रामराज आ जायेगा।

 

आओ हम सब मिलकर के संकल्प यही अब दोहराएं

दीवाली पर हर देहरी को जगमग जगमग कर आये।

 

©  पंडित मनीष तिवारी, जबलपुर ,मध्य प्रदेश 

प्रान्तीय महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम – मध्य प्रदेश

मो न 9424608040 / 9826188236

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हिन्दी साहित्य – ☆ कविता ☆ दीपावली विशेष –  माटी के दीपक जलें ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  आज प्रस्तुत है  उनकी  एक सामयिक रचना  “माटी के दीपक जलें”. ) 

☆ दीपावली विशेष –  माटी के दीपक जलें ☆

 

दीपक से दीपक जला, हुआ दूर अँधियार।

दीवाली में सभी के,रोशन हैं घर द्वार।।

 

लौटे थे वनवास से,आज अवध श्री राम।

झूम उठी नगरी सकल,हुई धन्य अभिराम

 

सदियों से ही हो रही,अच्छाई की जीत

नहीं बुराई ठहरती,यह सनातनी रीत

 

रहे स्वच्छ पर्यावरण,रखें हमेशा ध्यान

बारूदी माहौल से,रखें बचाकर मान।।

 

माटी के दीपक जलें,माटी ही पहचान

माटी से मानव बना,रख माटी का मान

 

आज रोशनी से भरी,घनी अमावस रात

नन्हा दीपक दे रहा,अँधियारे को मात

 

दीवाली की रात का,जगमग है परिवेश

लक्ष्मी माता कर रही,गृह में सुखद प्रवेश।

 

दीवाली की रोशनी,हर लेती अँधियार।

देखो दस्तक दे रहीं,खुशियाँ हर घर द्वार

 

दीपों की यह रोशनी,सबके लिए समान

ऊँच-नीच या पंथ का,कभी न रखती भान।।

 

खूब खरीदी कर रहे,सजा हुआ बाजार

जेब भरे धनवान के,है गरीब लाचार

 

दीप ज्ञान का जब जले,हटे तिमिर अज्ञान

दीप ब्रह्म है दीप शिव,दीप हृदय का गान

 

माँ लक्ष्मी द्वारे खड़ीं,सज्जित वन्दनवार

मिले शरण”संतोष” को,माँ की करुणाधार

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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