श्री जय प्रकाश पाण्डेय
( आज प्रस्तुत है श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का दीपावली पर्व पर विशेष व्यंग्य “उल्लू से प्रेम”।)
☆ दीपावली विशेष ☆ व्यंग्य – उल्लू से प्रेम ☆
इस दीवाली में वो पता नहीं कहां से आ गया। पितर पक्ष में पुड़ी साग और तरह-तरह के व्यंजन लेकर हम इंतजार करते रहे पर एक भी कौए नहीं आये। जब दशहरा आया तो नीलकंठ के दर्शन को हम लोग तरस गए थे। बहुत कोशिश की थी दर्शन नहीं मिले। शहर जो है वो कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया तो ये सब और नहीं दिखते। पर इधर दीवाली के दो दिन पहले से घर के सामने लगे बड़हल के पेड़ पर बिन बुलाए एक उल्लू आकर बैठ गया है। समधन ने पत्नी को डरा दिया है इसलिए पत्नी चाहती है कि इसे किसी भी तरह से यहां से भगाओ, या बड़हल का पेड़ कटवा दो। पिछली दीवाली में आंगन में लगे अमरुद के पेड़ कटवाने के लिए समधन पीछे पड़ गयीं थीं, इस बार अब उल्लू के पीछे पड़ीं हैं। समधन थोड़ा ज्यादा ही सुंदर है और पत्नी से थोड़ा ज्यादा होशियार भी, इसलिए हम भी उसकी झूठी बातों का समर्थन कर देते हैं, पर इस बार भरी दिवाली में समधन हम पति-पत्नी के बीच झगड़ा कराने उतारू हैं। हालांकि दीवाली जब भी आती है तो दुनिया भर के तंत्र मंत्र, भूत-प्रेत की बातों का माहौल बन जाता है। हमने पत्नी को बहुत समझाया कि पहले पता तो कर लें कि अचानक उल्लू क्यों आकर बैठ गया है,भूखा – प्यासा होगा, या किसी ने उसे सताया होगा, किसी सेठ ने उसे पकड़ने की कोशिश की होगी। या हो सकता है कि लक्ष्मी जी पहले से अपने घर का जायजा लेने भेजा हो,…. हो सकता है कि इस बार वो इसी उल्लू में सवार होकर अपने घर आने वालीं हों, पर पत्नी एक भी बात नहीं मान रहीं हैं समधन की बात को बार-बार दुहरा रही है।
रात भर हम आंगन में बैठे रहे… उल्लू हमें देखता रहा, हम उल्लू को देखते रहे। एक चूहा भी मार के लाए कि भूखा होगा तो पेड़ से उतर के चूहा खा लेगा पर वो भी टस से मस नहीं हुआ। हमने पहल करते हुए उससे कहा कि हम भी तो उल्लू जैसे ही हैं… हर कोई तो हमें उल्लू बनाता रहता है।
प्रेम में वो ताकत है कि हर कोई पिघल जाता है सो हमने बड़े प्यार से उल्लू से कहा – उल्लू बाबा, यहां क्यों तपस्या कर रहे हो कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ ?
उल्लू अचानक भड़क गया बोला – सुनो.. हमें बाबा – आबा मत कहना…. बाबा होगा तुम्हारा बाप… समझे, हम महालक्ष्मी के सम्मानजनक वाहन हैं और यहां इसलिए आये थे कि चलो इस दीवाली में कुछ फायदा करा देते पर ये तुम्हारी पत्नी दो दिन से मुझे भगाने के लिए बहुत बड़बड़ा रही है, इस दीवाली में लक्ष्मी जी का इधर से गुजरने का श्यैडुल बना है पर ये मुंह चलाती पत्नी को देखकर लक्ष्मी जी नाराज हो जाएंगी, अब बताओ क्या करें ? हालांकि कि दो दिन में हमने देखा कि तुम बहुत सीधे-सादे सहनशील आदमी हो थोड़ा दंद-फंद भी जानते हो, तो बताओ क्या करना है ?
– – हम हाथ जोड़ के खडे़ हो गये बोले – गुरु महराज… ऐसा न करना, पचासों साल से लक्ष्मी जी के आने के इंतजार में हमने लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं, प्लीज इस बार कृपा कर दो… लक्ष्मी जी को पटा कर येन केन प्रकारेण ले ही आओ इस बार…. प्लीज सर,
–उल्लू महराज को थोड़ा दया सी आयी बोले – चलो ठीक है विचार करते हैं, पर जरा ये पत्नी को समझा देना हमारे बारे में समधन से बहुत ऊटपटांग बात कर रही थी समधन को नहीं मालुम कि हमें धने अंधेरे में भी सब साफ-साफ दिखता है रात को जहां जहां लफड़े-झफड़े होते हैं उनका सब रिकॉर्ड हमारे पास रहता है, नोटबंदी की घोषणा के एक – दो दिन पहले सेठों और नेताओं के घर से कितने नोटों भरे ट्रक आर-पार हुए, हमने रात के अंधेरे में देखा है। मोहल्ले की विधवाओं के घर कौन – कौन नेता रात को घुसते हैं वो भी हम अंधेरे में देखते रहते हैं।
तंत्र मंत्र करके बड़े उद्योगपति और नेताओं के सब तरह के लफड़े – झपड़े रात को अंधेरे में देखे हैं ये बाबा जो अपने साथ राम का नाम जोड़ के जेल की हवा खा रहे हैं इन्होंने हजारों उल्लूओं के अंगों के सूप पीकर अपनी यौन शक्ति को बढ़ा बढ़ाके रोज नित नयी लड़कियों की जिंदगी खराब की है।
उल्लुओं के बारे में मनन करने पर हमने पाया कि यों तो तरह-तरह की किस्म के उल्लू सब जगह मिलते हैं जैसे गुजरात तरफ पाये जाने वाले झटके मारने में तेज होते हैं, पर हमें आज तक समझ नहीं आया कि लोग अपने आप को ऊल्लू के पट्ठे क्यों बोलते हैं कई लोगों की चांद में कमल का निशान बना रहता है कमल के ऊपर लक्ष्मी जी को बैठने में सुविधा होती है ऐसे लोगों के पुत्र लक्ष्मी जी को प्रसन्न करके मालामाल हो जाते हैं।
ऊल्लू पहले तो बोलता नहीं है और जब बोलना चालू होता है तो रुकता नहीं है।
बीच में रोक कर हमने पूछा – महराज आप ये लक्ष्मी जी के पकड़ में कैसे आ गये और परमानेंट उनके वाहन बन गए
-तब पंख फड़फड़ा के उल्लू महराज ने बताया कि असल में क्या हुआ कि शेषशैय्या पर लेटे श्रीहरि आराम कर रहे थे और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रहीं थीं, भृगु ऋषि आये और विष्णु जी की छाती में लात मार दी, लक्ष्मी जी को बहुत बुरा लगा विष्णु जी बेचारे तो कुछ बोले नहीं पर लक्ष्मी जी तमतमायी हुई क्रोध में विष्णु जी पर बरस पड़ीं, अपमान को सह नहीं सकीं और श्रीहरि को भला बुरा कहते हुए उनको छोड़ कर भूलोक पहुंच गईं, रात्रि में जब जंगल में उतरीं तो कोई वाहन नहीं मिला हम धोखे से सामने पड़ गये तो गुस्से में हमारे ऊपर बैठ गईं। मुंबई के ऊपर से गुजर रहे थे तो गुस्से में सोने का हार तोड़ कर फेंक दिया और मुंबई अचानक मायानगरी बन गई, सब जगह का रुपया पैसा और दंद – फंद मुंबई में सिमटने लगा,रास्ते भर कुछ न कुछ फेंकतीं रहीं प्यास लगी तो गोदावरी नदी में पानी पीकर किनारे की पर्णशाला में तपस्या करने बैठ गईं और तब से हम पर्मानेंट उनके वाहन बन गए।
इनकी एक बड़ी बहिन अलक्षमी भी है दोनों बहनें आपस में झगड़ती रहतीं हैं, जहां लक्ष्मी जातीं हैं ये बड़ी बहन नजर रखती है और अपने सीबीआई के भाई को चुपके से मोबाइल लगा देती है और सारा कालाधन पकड़वा देती है। कभी-कभी ये अलक्ष्मी उल्लू को अपना वाहन बताने लगती है कहती है कि लक्ष्मी और विष्णु का वाहन गरुड़ है तो ये काहे उल्लू में सवार घूमती है। दीवाली में ये दोनों बहनें कई पड़ोसी औरतों को लड़वा भी देतीं हैं, दिवाली का दिया रखने के चक्कर में पड़ोसी महिलाएं मारा पीटी में उतारू हो जातीं हैं।
बहनें सगी जरूर हैं पर एक दूसरे को पसंद नहीं करतीं।जे लक्ष्मी तो धनतेरस के एक दिन पहले तंत्र साधना करके हवा में लोभ लालच और मृगतृष्णा की तरंगें छोड़ देती है, चारों तरफ धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली की रौनक चकाचौंध देख देख कर ये खूब खुश होती है, सबकी जेबें खाली कराती हुई स्वच्छता का सघन अभियान चलाती है, लोग जीव हत्या करके पाप के भागीदार बनते हैं घर के सब मच्छड़, मकड़ी, कॉकरोच, चूहे आदि की आफत आ जाती है। लोग दीपावली की शुभकामनायें देते हैं कुछ फारमिलिटी निभाते हैं, नकली मावे की मिठाई लोग चटखारे लेकर खाते हैं फिर बात बात में सरकार को दोषी ठहराते हैं। चायना की झालरें और दिये जगमग करते हुए हिंदी चीनी भाई भाई के नारे लगाते हैं। फटाकों की आवाज से कुत्ते बिल्ली गाय भैंस दहक दहक जाते हैं, अखबार वालों की चांदी हो जाती है पर हम उल्लू थे और उल्लू ही रह जाते हैं हमे समझ नहीं आया ये लक्ष्मी ने हमें अमीर क्यूँ नहीं बनाया, जबकि तंत्र साधना में हमारी जाति को इतना महत्वपूर्ण माना गया।
अच्छा सुनो राज की एक बात और बताता हूं यदि दिवाली में लक्ष्मी जी को वास्तव में आमंत्रित करना है तो साथ में सरस्वती और गणेश जी को जरूर बुला लेना लक्ष्मी यदि धन देती है तो उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल हो इसलिए इन तीनों का समन्वय जरूरी है लक्ष्मी क्रोधी और चंचल है सरस्वती विद्या रूपी धन की देवी है। केवल लक्ष्मी के सिद्ध होने से “विकास” संभव नहीं है। सरस्वती धन की मदान्धता और धन आ जाने पर पैदा होने वाले गुण दोष को जानती है इसलिए भी छोटी-छोटी बातों पर लक्ष्मी सरस्वती से खुजड़ करने लगती है ऐसे समय गणेश जी सब संभाल लेते हैं गणेश जी के एक हाथ में अंकुश और दूसरे हाथ में मीठे लड्डू रहते हैं और वे संयमी और विवेकवान भी हैं। इतना कहते हुए उल्लू जी खर्राटे लेने लगे।
हमने सोचा यदि धोखे से लक्ष्मी जी आ गईं और पूछने लगीं कि बोलो क्या चाहिए…… तो हम तो सीधे कहं देगें…..
“अपना क्या है इस जीवन में सब कुछ लिया उधार………. ।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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