मराठी साहित्य – ☆ मराठी कविता ☆ अष्टादशभुजा देवी महिषासुरमर्दिनी ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है.  आज उनकी कविता  धार्मिक एवं सामयिक है.  आज प्रस्तुत है उनकी कविता  – “अष्टादशभुजा देवी महिषासुरमर्दिनी”.)

 

☆ अष्टादशभुजा देवी महिषासुरमर्दिनी ☆

 

महिषमर्दिनी लक्ष्मी

अष्टादशभुजा देवी

सर्व देवांचे तेज ही

हीच महालक्ष्मी देवी !!१!!

 

ही श्रेष्ठ उत्तम गुणी

वध महिषासुराचा

करण्यास अवतार

केलासे धारण हिचा !!२!!

 

वधुनिया महिषाला

देवकार्य तिने केले

महिषासुर मर्दिनी

म्हणुनचि संबोधिले !!३!!

 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #19 – नऊ रंगांची वस्त्रे ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एकसामयिक एवं सार्थक कविता “धूर्त सारथी”।)

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 19 ☆

 

 ☆ नऊ रंगांची वस्त्रे ☆

 

नऊ दिवस नऊ रंगांची वस्त्रे लेऊन

ती समाजात मिरवते आहे

तरीही मला नाही वाटत

ती माझी जिरवते आहे

 

अक्षराच्या माथ्यावर असलेल्या

अनुस्वाराइतकी लाल टिकली

आणि स्लीवलेस ब्लाउजवर

नेसलेली तिची लाल भडक साडी…

मी कपाळभर रेखाटलेलं भाग्याचं कुंकू

ते मात्र तिला असभ्य पणाचं लक्षण वाटतं

 

आजच्या पिवळ्या रंगालाही

मी सांभाळलंआहे

हळदी कुंकाच्या साक्षीने

 

हिरव्या रंगाची साडी नसली तरी

हातभार हिरव्या रंगाचा चुडा

असतो माझ्या हातात कायम

 

निळ्या आकाशाखाली

मी रांधत असते भाकर

गरिबीच्या विस्तवावर

निसर्गाच्या सानिध्यात

 

राख-मातीने माखलेल्या, राखाडी रंगाच्या

दोनचार जाड्याभरड्या साड्या

आहेत माझ्याकडे, त्याच नेसते मी

ग्रे रंग असेल त्या दिवशी

 

सकाळी सकाळी सूर्याने केलेली

केसरी रंगाची उधळण

दिवसभरासाठी

उर्जा देऊन जाते मला

 

पांढऱ्या शुभ्र फुलांचा गजरा

माळला आहे मी केसांच्यावर

त्याचा गंध सोबत करतो मला दिवसभर

 

आजचा रंग आहे गुलाबी

अगदी माझ्या गालांसारखा

पावडर लावून

पांढराफटक नाही करत मी त्याला

 

अंगणात लावलेल्या वांग्यानी

परिधान केलेला जांभळा रंग

आज माझ्या भाजीत उतरून

कुटुंबाच्या पोटाची सोय करणार आहे

 

नऊ रंगांची नऊ वस्त्रे

माझ्याकडे नसली तरी

निसर्गाच्या नऊ रंगांचा आनंद कसा घ्यायचा

हे शिकवलंय मला निसर्गानंच…!

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (28) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

( विस्तार से ध्यान योग का विषय )

 

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।

सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ।।28।।

 

ऐसी विधि से साध मन,कर योगी अभ्यास

जाता पा सुख शांति सब परब्रम्ह के पास।।28।।

 

भावार्थ :  वह पापरहित योगी इस प्रकार निरंतर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनंद का अनुभव करता है।।28।।

 

The Yogi, always engaging the mind thus (in the practice of Yoga), freed from sins, easily enjoys the infinite bliss of contact with Brahman (the Eternal). ।।28।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – ☆ कविता ☆ महानवरात्रि विशेष – सुनो स्त्रियों ☆ – सुश्री निर्देश निधि

महानवरात्रि विशेष 

सुश्री निर्देश निधि

 

(सुश्री निर्देश निधि जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है.

सुश्री निर्देश निधि जी की साहित्यिक यात्रा जानने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें  >>-सुश्री निर्देश निधि

आज प्रस्तुत हैं महानवरात्रि पर उनकी विशेष कविता “सुनो स्त्रियों”.)

 

(इस कविता का अंग्रेजी भावानुवाद आज के ही अंक में  ☆ Listen ladies ☆ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है. इसअतिसुन्दर भावानुवाद के  लिए हम  कॅप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं. )  

 

☆ सुनो स्त्रियों ☆

 

आज महालया* का शुभ दिन है

और आज तुम्हारे नयन सँवारे जाने हैं

 

तुम्हें कह दिया गया था

सभ्यताओं के आरम्भिक दौर में ही

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तंत्र देवता

 

तुम मान ली गईं वह देवी

जिसके सकल अँगों को ढाल दिया गया था

उनके सुन्दरतम रूप में

 

बस छोड़ दिये गये थे नयन शेष

वे नयन जो देख सकते थे

तुम पर किसी की दृष्टि का स्याह – सफेद रंग

 

दिखा सकते थे तुम्हें मार्ग के गड्ढे

तुम्हारा भला बुरा भी,

और क्यों ना दिखाते भला

तुम्हारे गन्तव्य से भिड़ने के अभ्यस्त विशाल पत्थर भी

संवर कर कदाचित तुम्हें कर सकते थे निरापद

 

तुम्हारे बिन बने नयनों के लिए

सहस्त्रों बरस लम्बा पितृपक्ष

समझो आज खत्म हुआ

 

आज महालया का शुभ दिन है

और आज ही तुम्हारे नयन संवारे जाने हैं

ताकि तुम देख सको वह सब

जो तुम्हारे हित में था, सदियों से

 

जिन गड्ढों में तुम बार – बार गिरीं

बिना आंख की होकर

चल सको उनसे बच कर

 

और वे सदियों से अभ्यस्त

विशाल पत्थर भी कभी

भिड़ न सकें तुम्हारे गंतव्य की शहतीरों से

 

आज महालया का शुभ दिन है और

आज तुम्हारे नयन सँवारे जाने हैं

 

©  निर्देश निधि, बुलंदशहर

 

* महालया – दुर्गा पूजा में स्थापित करने के लिए कलाकार देवी की मूर्ति पूर्ण कर लेता है, बस आँख छोड़ देता है। पितृ पक्ष के बाद महालया में देवी की आंख बनाई जाती है, अब देवी पूर्ण होकर पंडालों या घरों में स्थापित हो जाती हैं.

 

संपर्क – निर्देश निधि, विद्या भवन, कचहरी रोड, बुलंदशहर, (उप्र ) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

 

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – गणित, कविता, आदमी! – ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – गणित, कविता, आदमी! ☆

(माँ सरस्वती की अनुकम्पा ऐसी रही कि गणित की रुक्षता से कविता की सरसता को राह मिली।)

 

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y × Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y)² = X² + 2XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

 

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry – ☆ Mahanavratri Special – Listen ladies ☆ – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

 

(We present an English Version of  Ms.  Nirdesh Nidhi’s Hindi poem ☆ सुनो स्त्रियों ☆   published in today’s issue .  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation. )

 

☆ Listen ladies ☆

 

Today is the auspicious

day of *Mahalaya*

And today your

eyes will be embellished…

 

As you were told

Right in the early phase of civilizations that

*Yatra Narayastu Pujyante Ramante Tatra Devata*

(…where women are worshiped, there deities visit…)

 

You were assumed to

be that goddess

Whose entire body

was molded

in her most beautiful form

Except that

the eyes were left

The eyes that could see the casting of someone’s

ominous eyesight on you…

 

Could show you the pitfalls on the road

Also, could sense the

good and bad for you,

And, why wouldn’t they show after the embellishment!!

Even the huge stones

—always  stumbling block in conquering the summit…

Would now make the journey safe…

 

For your unmade eyes

Consider the end of millennium long Pitrapaksh* today

 

Today is the auspicious day of *Mahalaya*

And, today only your eyes will be embellished

So that you can see all that which is good, and

Has been in your interest for centuries…

 

The perilous  pits will now be negotiated safely,

in which you used to  fall repeatedly,

being  vision-less…

 

And, the huge stones,

always a stumbling block,

dare not venture anymore against your steely resolve

to reach the destination…

 

Today is the auspicious day of *Mahalaya* and

Today is the day of embellishment of your eyes…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

 

**Mahalaya* —The sculptors complete the idols of the Goddess  Durga during the festival of Durga Puja, except the eyes, which they leave, to be installed after the Pitra Paksha. The eyes of the goddess are installed in *Mahalaya*, so that  the statue of goddess is completed and installed in pandals for the worship.

**Pitra paksh* lunar day period in Hindu calendar when Hindus pay homage to their ancestor, especially through food offerings.

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 15 – गांव नहीं जाना बापू …….☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  “व्यंग्य  –गांव नहीं जाना बापू…..” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 15 ☆

 

व्यंग्य – गांव नहीं जाना बापू ….. 

 

जैसई गंगू खुले में शौच कर लोटे का पानी खाली कर रहा था कि उधर से आते एक परिक्रमावासी बाबा दिख गये, गंगू ने जल्दी जल्दी पजामे का नाड़ा बांधा और हर हर नरमदे कह के बाबा को सलाम ठोंक दिया। परिक्रमावासी हाथ में टेकने की लाठी लिए थे, सफेद गंदी सी चादर ओढ़े और गोल-गोल चश्मा लगाए गंगू से गांव का नाम पूछने लगे। गंगू के बार बार बाबा – बाबा कहने पर वे चिढ़ गए बोले – मुझे बाबा मत कहो मेरा नाम “बापू” है….. इन दिनों दोनों राजनीतिक पार्टी के नेता खूब मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं और नर्मदा की परिक्रमा करके राजनीति कर रहे हैं इसलिए मैं भी नर्मदा परिक्रमा के बहाने गांवों के हालात देखने निकला हूँ….. चलो तुम्हारे गांव में कुछ चाय-पानी की हो जाए।

गंगू बापू को लेकर गांव की तरफ चल पड़ा…प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच बैगा बाहुल्य गांव टेकरी में बसा है, पड़ोस में कल – कल बहती पुण्य पुण्य सलिला नर्मदा और चारों ओर ऊंची ऊंची हरी – भरी पहाड़ियों से घिरा गांव पर्यटन स्थल की तरह लग रहा था। रास्ते में गंगू ने बताया – बहुत गरीबी, लाचारी बेरोजगारी और बिना पढ़े लिखे लोगों के इस गांव को सांसद जी ने गोद लिया है गोद लिये तीन साल से हो गए…..?   बापू ने पूछा – सांसद जी कभी तुम्हारे गांव आते हैं?

गंगू ने बताया – दरअसल मंत्री बन जाने से वे बेचारे ज्यादा व्यस्त हो गए तो तीन चार साल से नहीं आ पाए हैं पर जब चुनाव होता है तो थोड़ी देर के लिए हाथ जोड़ने ज़रूर आते हैं।

गंगू को चुहलबाजी में थोड़ा मजा आता है पूछने लगा – बाबा जी, सांसद जी ने अचानक ये गांव क्यों गोद ले लिया जबकि वे तो 30-40 साल से इस एरिया के सांसद हैं ?     बापू फिर नाराज हो गए बोले – तुम से कहा न…. कि बाबा नाम से हमें चिढ़ हो गई है फिर भी तुम बार – बार बाबा – – बाबा कह के चिढ़ाते हो….. हमारा नाम  “बापू” है…

तो सुनो अब तुम्हें विस्तार से बताता हूँ. एक मोहनदास करमचंद गांधी थे उन्होंने ग्राम स्वराज की कल्पना की थी उस गांधी ने चाहा था कि गांव गणतंत्र के लघु रूप हैं इसलिए गांव के गणतंत्र पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की इमारत खड़ी की जाए, अब जे ईवेंट छाप प्रधानमंत्री ने कुछ नया करने के चक्कर में सभी सांसदों को एक – एक गांव विकास के लिए पकड़ा दिया। गांव गोद लो और आदर्श ग्राम बनाओ नही तो बिस्तर लेकर घर जाओ….. अंतरआत्मा से कोई सांसद इस लफड़े में पड़ना नहीं चाहता था तो बिना मन के सांसदों ने गांव गोद ले लिया कई ने तो ऐसा गांव गोद लिया जहां कोई पहुंच न पाए, हालांकि सब जानते हैं कि दिल्ली से गरीबों के उद्धार के लिए चलने वाली योजनाएं नाम तो प्रधानमंत्री का ढोतीं हैं मगर गांव के सरपंच के घर पहुंचते ही अपना बोझा उतार देतीं हैं……… ।

बापू की सब बातें गंगू के सर के ऊपर से निकल रही थीं। गंगू बोल पड़ा – बापू ये आदर्श ग्राम क्या होता है ?

तब बापू ने बताया कि आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत ग्राम के वैयक्तिक, मानवीय, आर्थिक एवं सामाजिक विकास की निरंतर प्रक्रिया चलती है। वैयक्तिक विकास के तहत साफ-सफाई की आदत का विकास, दैनिक व्यायाम, रोज नहाना – धोना और दांत साफ करने की आदतों की सीख दी जानी चाहिए, गांव में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं, स्मार्ट स्कूल में पढ़ाई – लिखाई, सामाजिक विकास के तहत गांव भर के लोगों में विकास के प्रति गर्व और आर्थिक विकास के तहत बीज बैंक, मवेशी हास्टल और खेती – बाड़ी का विकास होना चाहिए….. और बताऊँ कि बस…… ।

गंगू को लगा ये बापू बड़ी ऊंची ऊंची बातें कर रहा है … परिक्रमावासी बाबा जैसा तो लग नहीं रहा है ? फिर….. अरे अभी दो साल पहले गांव में एक परिक्रमावासी बाबा आये थे तो गाँव भर के लड़कों को गांजा – भांग, दारू सिखा गये थे और गांव की अधिकांश नयी उमर की लड़कियों को निकास के भाग गए थे। पर ये बाबा अपने को बापू – बापू कहके बड़ी बड़ी बातें कर रहा है कहीं कोई खोट तो नहीं है ये परिक्रमावासी में…………

गंगू अंदर से थोड़ा डर सा गया पर बापू के कहने पर गांव में बापू के रुकने की जगह तलाशने लगा, पता चला कि पंचायत भवन में सरपंचन बाई की गैया बियानी है तो रुकने के लिए पंचायत भवन में जगह नहीं मिलेगी, हार कर गंगू ने तय किया कि अपने घर की परछी में बापू को सोने की जगह दे दी जाएगी…… घरवाली को पहले से ही हिदायत दे देंगे कि वो बाबा – आबा के चक्कर में पैर – वैर पड़ने बाहर न आये क्योंकि आजकल अधिकांश बाबा लोगों का कोई ठिकाना नहीं है।

जगह तलाशते – तलाशते हारकर गंगू ने बापू से कहा कि गांव में रुकने के लिए कहीं जगह तो है नहीं….. तो एक दिन की बात है बापू हमारे टूटे घर की परछी में रह लेना, पर बापू सच्ची सच्ची बताएं कि आपकी ये ऊंची ऊंची बेसुरी बातें हमारे समझ के बाहर हैं… काहे से कि हमारे गांव में न तो आज तक बिजली लगी, न सड़क बनीं, एक ठो धूल – धूसरित मदरसा जरूर है जिसमें नाक बहाते बिना चड्डी पहने बच्चे पढ़ने को कभी-कभी जाते हैं मास्टर कभी-कभी आता है छड़ी लेकर…. ।

एक  बार जिले से एक बाई बड़ी सी कार में आयी रही तो कह गई थी कि गांव का सिर्फ़ विकास ही विकास होना है इसलिए  तहसील जाकर सब लोग विकास से परिचय कर लेवें। जनधन योजना में खाते खुलवा लें। मजाक सी कर रही थी वो। बैंक यहां से 30-40 किमी दूर हैं कछु कयोस-अयोस का नाम ले रही थी तो वो भी 15-20  किमी दूर सड़क के किनारे खुलो है। गाँव भर में साल भर बीमारी पसरी रहती है, डॉक्टर तो कभी आओ नहीं इस तरफ। जिले वाली बाई जरूर कह गई थी कि गांव में हर हफ्ते डाक्टर आके जांच-पड़ताल करेगा और दवाईयां देगा, पर सालो जे गांव ऐसी जगह बसो है कि कोई आन नहीं चाहत। एक हैंडपंप खुदो तो वा में पानी नहीं निकलो। जिले वाली बाई कह रही थी कि घर -घर में नल लगा देहें…. पर बापू वो दिना के बाद वो बाई का भी कोई अता-पता नहीं मिलो……

बापू सुनके सुन्न पड़ गये, काटो तो खून नहीं।

बापू बोले – गंगू…. तुम गांधी जी को जानते हो क्या ? अरे वोई गांधी जिसकी फोटो नोट में छपी रहती है और नोट के पीछे से चश्मे में एक आंख से स्वच्छ देखता है और दूसरी आंख से भारत देख देख के मजाक करता है,   अरे वोई गांधी जिसका नाम ले-लेकर सब नेता लोग अपने अपने बंगले और बड़ी मोटर का जुगाड़ करते हैं और गांव के विकास का पैसा, गरीब के उद्धार का पैसा हजम करके बड़े बड़े पेट बढ़ा लेते हैं……। रोजई – रोज तो गांधी को गोली मारी जाती जाती है।

बापू गांव की उबड़ – खाबड़ गली से गुजरते हुए गंगू के पेट में हवा भरते चल रहे थे, गली में किसी बच्चे के पढ़ने और होमवर्क रटने की आवाज आ रही है.. “मां खादी की चादर ले दे…….. मैं गांधी बन जाऊँ”…… ।

गंगू का घर आ गया था, बापू अंगना में बैठ गए थे,

सरपंच पति वहां से निकले तो गंगू दौड़ के सरपंच पति के कान में खुसरफुसर करते हुए कहने लगा कि खेत में फारिग होने गए थे तो जे परिक्रमावासी टकरा गया, ऊंची ऊंची बात करता है… कहता है मुझे बाबा मत कहो मेरा नाम “बापू” है….. नोट में जो एक डोकरा छपा दिखता है कुछ कुछ उसी के जैसे दिखता है……. और पूंछ रहा था कि गांव में कोई गांधी जी को जानता है कि नहीं……..

सरपंच पति हर हर नरमदे कहते हुए अंगना में बैठ गए। गंगू ने बापू को बताया – जे गांव के सरपंच पति हैं और इनका नाम भी  बापू बैगा है। एक बापू दूसरे बापू को देखकर ऐसे मुस्कराये जैसे पुरानी पहचान हो फिर  बापू बोले – यार सरपंच पति, तुम्हारे गांव में मोबाइल का सिग्नल नहीं मिल रहा है तुम्हारा गांव तो डिजीटल इंडिया को ठेंगा दिखा रहा है।  सरपंच पति ने कहा – बाबा जी, बात जे है कि इस गांव से 20-25 किमी के घेरे में सिग्नल नहीं है गांव के पास एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर एक पेड़ में चढ़ने पर मोबाइल के लहराते संकेत कभी कभी मिलते हैं जैई कारण से यहां कयोस-अयोस बैंक नहीं खुल पाई। जनधन खाता के दस बीस खाता खुले थे बैंक वाले पैसा ले गए रसीद भी नहीं दई पासबुक तो दईच नहीं। फसल बीमा के नाम का भी पैसा खा गए।  8-9 लोगन को मुद्रा योजना में एक – एक बकरा लोन में पकड़ा दिया, बकरी की मांग करी तो बोले अभी बकरा से काम चला लो, गांव में एक भी बकरी नहीं है बिना बकरी के सब बकरा मर गए और अब सबको नोटिस भेजन लगे…… ।

बापू सुनके सुन्न पड़ गये काटो तो खून नहीं……. ।

बापू कहन लगे कि सांसद से बताया नहीं कि ऐसे में गांव आदर्श गांव कैसे बन पाएगा। बापू सांसद जी को बताया था वो बोले जो है सब ठीक-ठाक है। पर भाई ऐसे में ये गांधी के सपनों का गांव नहीं बन पाएगा, सांसद से संवाद नहीं है विकास के नाम पर ठेंगा दिख रहा है, आवास योजना में घर नहीं बने, कोई घरवाली को गैस नहीं मिली, मास्टर पढाने आता नहीं, बेरोजगार युवक गांजा दारू में मस्त हैं, शौचालय बने नही और तुम सरपंच पति हो आदर्श ग्राम बनाने का पैसा कहां गया?

सरपंच पति तैश में आ गया बोला – बापू हमको चोर समझते हो? तुमको क्या मतलब हमारे गांव में विकास हो चाहे न हो…… परिक्रमावासी बनके राजनीति करन आये हो…….

गंगू घबरा गया….. हाथ से पानी का गिलास छिटक के दूर गिरा और बापू अचानक बैठे बैठे गायब हो गए……. ।

सरपंच पति और गंगू तब से आज तक यही सोच रहे हैं कि कहीं नोट में छपा डुकरा भूत बनके तो नहीं आया था। उस दिन के बाद से पूरे इलाके में हवा फैल गई कि गांधी जी भूत बनके सांसद का आदर्श ग्राम देखने आए थे।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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मराठी साहित्य – नवरात्र विशेष लेख – ☆ नवरात्र महोत्सव. . .  एक सृजन ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

नवरात्र विशेष लेख

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। नवरात्र के अवसर पर प्रस्तुत है उनका मराठी आलेख – नवरात्र महोत्सव. . .  एक सृजन)  

☆ नवरात्र विशेष लेख – नवरात्र महोत्सव. . .  एक सृजन ☆

 

आज नवरात्र महोत्सवाचे निमित्ताने  एक सुंदर विषय चर्चेत  आला आहे.  आपण  सर्वजण  या  बदलत्या  काळाचे प्रतिनिधीत्व करतो  आहोत.  केवळ  उलट सुलट विचार,  विधाने करून आपण  श्रद्धा आणि अंधश्रद्धा यांच्यातील तफावत वाढवीत  आहोत.

*नवरात्रीचे धार्मिक महत्त्व समजून घेताना आपण स्वतः धार्मिक आहोत का? याचा विचार करण्याची गरज निर्माण झाली आहे*. हिंदू धर्माव्यतिरिक्त अन्य कोणत्याही धर्मात सण,  उत्सव, परंपरा यांची टिंगल,  टिका केली जात नाही.  आज केवळ आपले नाव चर्चेत यावे म्हणून  धार्मिक कर्मकांडावर टिका करणारे लेखक  घरात मात्र नाना देव पूजताना दिसतात.

*नवरात्र उत्सव हा भक्ती, शक्ती आणि आराध्याविषयी स्नेहभाव व्यक्त करण्याचा उत्सव आहे.  असुर, समाज विघातक मनोवृत्तीचा विनाश,  विवेकाचा  अंकुश, आणि  सद्सद विवेक बुद्धीने षडरिपूंना दिलेला शह म्हणजे नवरात्र उत्सव*.

धार्मिकता  आणि  कार्यप्रवणता यामध्ये  श्रद्धा,  भक्ती  आणि निस्वार्थी सेवाभाव  यांचा समावेश झाला कि आपण  हा उत्सव  ख-या अर्थाने आनंदोत्सव म्हणून साजरा करू शकतो.

नारीशक्ती ही सृजनशीलता  आणि लक्ष्मी प्राप्तीचे प्रतिक मानली गेली आहे.  *नर* आणि *नारी* यांच्यातील एक काना आणि एक वेलांटीचा फरक फार मोठे समाज प्रबोधन घडवणारा आहे.  वास्तविक पहाता  नर,  नारी यांची कार्यशक्ती समान  असली तरी समाजमन त्यात पुरूष प्रधान संस्कृती  अबाधित रहावी म्हणून  काही बंधने  स्त्रियांवर युगानुयुगे लादत आले आहे.  *तू माझी, मी तुझा* हे मानव्याचे बोधवाक्य स्त्री पुरूष एकत्र वावरताना संशयाच्या भोव-यात सापडते.  आपण  आपल्या  अंतर्मनातील काही सुप्त कलागुण  जागृत ठेवण्यासाठी देवापुढे  अखंड नंदादीप,  धान्य पेरणी,  आणि सुमनांची माला  अर्पण करीत आहोत.

*विविधतेतून एकता* हे ब्रीदवाक्य जोपासणारे -या आपल्या भारत देशात प्रादेशिक स्तरावर विविधता येणारच.  उत्सव साजरा करताना  चालिरिती भिन्न  असल्या तरी,  कौटुंबिक सलोखा,  सामंजस्य,  सुख, शांती, समाधान,  आणि सेवा भावी मानव धर्म जोपासणारी शिकवण  सर्वत्र एकच  आहे.  नवरात्र  उत्सवात देवीने परीधान केलेल्या  साड्या,  तिचे वाहन, परीधान केलेले अलंकार,  अर्पण केलेले नैवेद्य, हातातील शस्त्रे  आपणास  अंधश्रद्धेपासून परावृत्त करून समस्त मानव जातीच्या कल्याण्यासाठी आदिमाया आदिशक्ती  कशी  जागृत  आहे याचीच प्रचिती देते.

*सारे माझे पण मी सर्वांची* ही शिकवण देणारा हा आनंदोत्सव आहे. यामध्ये  जरूर  काही समाजात अंधश्रद्धा जोपासल्या जात आहेत.  काही  धार्मिक बाबींचे अवडंबर माजवले जात आहे.  एक फुल  श्रद्धेने अर्पण  केले काय  अन लाखभर फुले अर्पण केली काय? शेवटी भाव अत्यंत महत्त्वाचा आहे.  तीच गोष्ट खण,नारळ,  ओटी,  नैवेद्य यांच्या बाबतीत लागू होते. म्हणून  धार्मिक विधी करताना  आलेला *यथाशक्ती*  हा  शब्द  अत्यंत महत्त्वाचा आहे. या पद्धतीने मातामयी देवतेची  आराधना या  उत्सवात  अपेक्षित आहे.

गरबा खेऴणे म्हणजे काय?

हे जर  आपण शोधले तर गरबा (आपल्या भाशेत मडके )हे ब्रम्हांडाचे प्रतिक आहे.गरब्याला ( मडक्याला ) २७ छिद्र असतात. ९ छिद्रांचि १ अशा ३ लाईन असतात ९ गुणिले ३ = २७ नक्षत्रे होत. १  नक्षत्र म्हणजे ४ चरण होय.२७ गुणिले ४ = १०८.नवरात्रात गरबा ( मडके ) मध्यभागि ठेवुन त्या भोवति १०८ वेळा गोल फेरा धराय़चा असतो.त्यामुळे आपल्याला ब्रम्हांडाची प्रदक्षिणा घातल्याचे पुण्य मिऴते अशा १०८ प्रदक्षिणा घातल्या जातात. हेच खरे गरबा खेळण्याचे महात्म्य  होय. अशी पौराणिक माहिती संकलित  आहे.

*उत्पत्ती*, *स्थिती*, आणि *लय*.  हे  नितीतत्व जोपासणा-या देवता  म्हणजे  *सरस्वती* *महालक्ष्मी* आणि *महाकाली* या  आहेत. या  तिनही देवतेची भूत,  भविष्य  आणि वर्तमानातील  शक्तीरूपे आपण नवदुर्गा म्हणून  संबोधित करतो.  वर्तमानातील नारीशक्ती तिचा  आदर सन्मान  हा  दृष्टिकोन ठेवून नवरात्र उत्सव साजरा व्हावा  असे मला वाटते.

स्वतःचे महत्व प्रस्थापित करण्यासाठी समाजात   श्रद्धाळू लोकांना भय दाखवून  अंधश्रद्धा निर्माण केल्या जातात.  कौटुंबिक सौख्याचा विचार करून भोळी भाबडी जनता याला  बळी पडते.  वास्तविक पाहता देवीची जी वाहने  आहेत ती सर्व  वाहने  म्हणजे  हत्येपासून त्यांना देवीने , आदिशक्तीने दिलेले  अभय  आहे. तरीदेखील कोंबडी,  बकरू यांची निष्कारण कत्तल होत आहे.  भूतदया,परोपकार  आणि  अध्यात्मिक  उन्नती हा  या  नवरात्रीचा मुख्य  उद्देश आहे.

राजस,  तामस,  आणि  सात्विक  गुणांचा  समतोल आचारात ,  विचारात आणि  श्रद्धेत कसा जोपासायचा हे शिकवणारा हा  उत्सव  आहे. माणूस कितीही बदलला तरी माणसाला माणसाची गरज लागतेच. हा माणूस कसा ओळखायचा? कसा  टिकवून ठेवायचा?  आणि त्याच्या तील दुर्गुण कसा  नष्ट करायचा हे शिकवणारा हा  नवरात्र  उत्सव  आहे.

*केवळ मनोरंजनाचे साधन म्हणून जर नवरात्र महोत्सव साजरा केला जात असेल तर ते सर्वस्वी चुकीचे आहे.  माणूस  आपला  आहे.  आपण माणूस  आहोत. माणसात देव शोधायचा त्याची उपासना करायची*  इतका  साधा सोपा संदेश नवरात्र महोत्सवाने दिला आहे.  आपण त्याचा कसा  उपयोग करतो हे  आपल्याच हातात आहे.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

 

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मराठी साहित्य – ☆ मराठी कविता ☆ श्रीतुळजाभवानी मातेची अलंकार महापूजा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है.  आज उनकी कविता  धार्मिक एवं सामयिक है.  उनके ही शब्दों में – “श्री छत्रपती शिवरायांना भवानी मातेने प्रसन्न  होऊन तलवार दिली.म्हणून तुळजाभवानी मातेची “तलवार अलंकार” पूजा नवरात्रात केली जाते. त्या फोटोवरुन रचिलेल्या तुळजाभवानी चारोळ्या” – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे)

 

☆ श्रीतुळजाभवानी मातेची अलंकार महापूजा ☆

 

छत्रपती शीवाजींना

तलवार ती भवानी

धर्म रक्षणाचेसाठी

दिली प्रसन्न होऊनी !!१!!

 

श्रीकृष्ण प्रसन्न होता

केली मुरली अर्पण

माता तुळजाभवानी

केले दैत्यांचे मर्दन !!२!!

 

राक्षसांना मारल्याने

भयभीत देवा सर्व

भवानीच्या मुरलीने

स्वर्ग प्राप्ती अनुभव!!३!!

 

शक्तीरुप महापूजा

आवर्जून बांधताती

अलंकार महापूजा

होतं असे नवरात्री !!४!!

 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा

दिनांक:-५-१०-१९

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-17 – स्वार्थ वळंबा ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज  प्रस्तुत है मानव के स्वार्थी ह्रदय पर आधारित एक भावप्रवण कविता  – “स्वार्थ वळंबा। )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 17 ☆ 

 

 ☆ स्वार्थ वळंबा  ☆

 

आज मानवी मनाला स्वार्थ  वळंबा लागला।

कसा नात्या नात्यातील तिढा वाढत चालला।।धृ।।

 

एका उदरी जन्मूनी घास घासातला खाई।

ठेच एकास लागता दुजा घायाळकी होई।

हक्कासाठी  दावा   आज कोर्टात चालला ।।१।।

 

मित्र-मैत्रिणी समान , नाते दुजे न जगती ।

वासुदेव सुदाम्याची जणू येतसे प्रचिती

विष कानाने हो पिता वार पाठीवरी केला ।।२।।

 

माय पित्याने हो यांचे कोड कौतुक पुरविले।

सारे विसरूनी जाती बालपणाचे चोचले।

बाप वृद्धाश्रमी जाई बाळ मोहात गुंतला।।३।।

 

फळ सत्तेचे चाखले मोल पैशाला हो आले ।

कसे सद्गुणी हे बाळआज मद्य धुंद झाले।

हाती सत्ता पैसा येता जीव विधाता बनला।।४।।

 

सोडी सोडी रे तू मना चार दिवसाची ही धुंदी।

येशील भूईवर जेव्हा हुके जगण्याची संधी।

तोडी मोहपाश सारे जागवूनी विवेकाला।।५।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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