हिन्दी साहित्य – पितृ पक्ष विशेष – कविता ☆ कौए -कुछ दोहे ☆ – डॉ. अंजना सिंह सेंगर

डॉ. अंजना सिंह सेंगर

(आज प्रस्तुत है  डॉ. अंजना सिंह सेंगर जी  द्वारा रचित  पितृ पक्ष में कौओं  का महत्वा बताते हुए कुछ दोहे. )

 

☆ कौए -कुछ दोहे 

 

रंग- रूप, आवाज़ से, हुए बहुत लाचार,

मित्रों से सच- सच कहे, कौओं का सरदार।

 

हम कौए काले सही, पर मानुस से नेक।

अपने स्वारथ के लिए, रहे न रोटी सेंक।

 

हम कौए खाते सदा, रोटी को मिल- बांट,

मानुस के गुण श्वान-से, जो देता है डांट।

 

आने के मेहमान का, काग देत संदेश,

ये जगजाहिर बात है, जाने भारत देश।

 

कागा बैठे शीश पे, कहे मनुज शुभ नाहिं,

यह फिजूल की बात है, व्यापी घर- घर माहिं।

 

पितर पक्ष में खोजते, हम कागों को लोग,

वे पुरखों के नाम पर, करते हैं अति ढोंग।

 

कौओं की संख्या घटी, ये चिंता की बात,

कौओं के सरदार को, नींद न आए रात।

 

नहीं मनुज को फिक्र है, हम कौओं की आज,

वह अपने में मस्त है, करता गंदे काज।

 

पशु- पक्षी से प्यार है, कहे मनुज चिल्लाय,

लेकिन खाना दे नहीं, पानी भी चित लाय।

 

सीता माँ  के चरण में, मारा पुरखा चोंच,

बाण चला रघुवीर का, आँख गया वह खोंच।

 

काने कौए हो गए, तब से  कहते लोग,

बुरे कर्म करिए नहीं, आगे खड़ा कुजोग।

 

©  डॉ. अंजना सिंह सेंगर  

जिलाधिकारी आवास, चर्च कंपाउंड, सिविल लाइंस, अलीगढ, उत्तर प्रदेश -202001

ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य- पितृ पक्ष विशेष – कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ पितर चले गये ☆ – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा 16 वर्ष पूर्व लिखी गई लघुकथा “पितर चले गये ” आज भी सामयिक लगती  है.)

 

☆ लघुकथा – पितर चले गये  

 

कौआ सुबह सुबह एक छत से दूसरी छत पर कांव कांव करता हुआ उड़ उड़ कर बैठ रहा था किंतु उसे आज कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा था ।

कल ही पितृ मोक्ष अमावस्या के साथ पितृ पक्ष समाप्त हो गए । इन पन्द्रह दिनों में कौओं को भरपेट हलुआ पूड़ी एवम तरह तरह के पकवान खाने को मिले थे । इसी आस में आज भी कौआ इस छत से उस छत पर भटक रहा था ।

थक हार कर वह एक छत की मुंडेर पर बैठ गया । उसे महसूस हो गया था कि पितर चले गए हैं ।अतः वह पुनः कचरे के ढेर में अपना भोजन तलाशने उड़ गया ।

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी / लघुकथा ☆ इच्छामृत्यु – मोक्ष ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी”

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी” 

 

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है. आज प्रस्तुत है  श्रीमती हेमलता मिश्रा ‘मानवी’ जी की एक मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “इच्छामृत्यु -मोक्ष”.)

 

☆  लघुकथा – इच्छामृत्यु – मोक्ष ☆

 

नहीं नहीं। अब और नहीं। यह असहनीय दर्द—डॉ मुझे मुक्ति दे दो। वैसे भी हर पल मर रहा हूँ, इस दर्द के साथ।

भीष्म पितामह ने भी तो इच्छामृत्यु का वरण किया था। नहीं चाहिए मुझे मोक्ष – – मौत चाहिए मौत।

वरदान के प्रलाप ने डॉ को भी हिला दिया। कैंसर के असहनीय दर्द से जूझता वरदान अकाल मृत्यु या आत्महत्या आदि के बारे में सदियों के संस्कारों की– मोक्ष की परिकल्पनाओं  की बलि देने के लिए सहज ही तैयार था— और उसके करुण क्रंदन ने डॉ को मजबूर कर दिया उसे मोक्ष देने के लिए– आज की पीड़ाओं से मोक्ष देने के लिए। इससे पहले कि वरदान के पुजारी पिता कोई आक्षेप उठाते वरदान को मोक्ष मिल गया। असहनीय दर्द  से मुक्ति पाने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि कार्डियक अरेस्ट ने उसे अपने आगोश में ले लिया और भीष्म की तरह इच्छामृत्यु ‘मोक्ष’ मिल गया।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 10 – अहंकार दहन ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   अहंकार दहन।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 ☆

 

☆ अहंकार दहन 

 

राहु और केतु राहु हिन्दू ज्योतिष के अनुसार असुर स्वरभानु का कटा हुआ सिर है, जो ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण करता है । इसे कलात्मक रूप में बिना धड़ वाले सर्प के रूप में दिखाया जाता है, जो रथ पर आरूढ़ है और रथ आठ श्याम वर्णी घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है । वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु को नवग्रह में एक स्थान दिया गया है । दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त (24 मिनट) की अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है । समुद्र मंथन के समय स्वरभानु नामक एक असुर ने धोखे से दिव्य अमृत की कुछ बूंदें पी ली थीं । सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु को बता दिया । इससे पहले कि अमृत उसके गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया । परंतु तब तक उसका सिर अमर हो चुका था । यही सिर राहु और धड़ केतु ग्रह बना और सूर्य- चंद्रमा से इसी कारण द्वेष रखता है । इसी द्वेष के चलते वह सूर्य और चंद्र को ग्रहण करने का प्रयास करता है । ग्रहण करने के पश्चात सूर्य राहु से और चंद्र केतु से, उसके कटे गले से निकल आते हैं और मुक्त हो जाते हैं ।

केतु भारतीय ज्योतिष में उतरती लूनर नोड को दिया गया नाम है । केतु एक रूप में स्वरभानु नामक असुर के सिर का धड़ है । यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था । यह एक छाया ग्रह है । माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है । कुछ मनुष्यों के लिये यह ग्रह ख्याति दिलाने में अत्यंत सहायक रहता है । केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उलटी दिशा में (180 डिग्री पर) स्थित रहते हैं । चुकी ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है । सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है । तभी, पूर्णिमा के समय यदि चाँद केतु (अथवा राहू) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं । ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि “वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहू”। अंग्रेज़ी या यूरोपीय विज्ञान में राहू एवं केतु को क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं । तथ्य यह है कि ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा इन बिंदुओं में से एक पर सांप द्वारा सूर्य और चंद्रमा की निगलने की समझ को जन्म देता है । प्राचीन तमिल ज्योतिषीय लिपियों में, केतु को इंद्र के अवतार के रूप में माना जाता था । असुरो के साथ युद्ध के दौरान, इंद्र पराजित हो गया और एक निष्क्रिय रूप और एक सूक्ष्म राज्य केतु के रूप में ले लिया । केतु के रूप में इंद्र अपनी पिछली गलतियों, और असफलताओं को अनुभव करने के बाद भगवान शिव की आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो गया ।

दरअसल रावण ने सभी नौ ग्रहों के देवताओं का अपहरण कर लिया था और उन्हें लंका में ले आया था, लेकिन जल्द ही भगवान ब्रह्मा लंका आये और रावण से सभी ग्रहों को मुक्त करने का अनुरोध किया ताकि ब्रह्मांड में जीवन का चक्र प्रभावित न हो । रावण ने उन्हें एक शर्त पर मुक्त किया कि रावण प्रत्येक ग्रह की एक प्रतिलिपि बनायीं, और उन्हें बनाने के बाद उसने सभी ग्रहों के देवताओं को अपने ग्रहों की शक्तियो के सार को प्रत्येक प्रतिलिपि में प्रविष्ट करने का आदेश दिया,एक-एक करके मुख्य ग्रह के अनुसार । इसलिए सूर्य ने रावण द्वारा बनाए गए सूर्य की प्रतिलिपि में अपनी शक्तियों के सार को डाला, चंद्रमा ने रावण द्वारा बनाए गए चंद्रमा की प्रतिलिपि में अपनी शक्तियों को सम्मिलित किया आदि आदि अन्य ग्रहो ने भी किया । इसके बाद रावण ने सभी नौ ग्रहो को मुक्त कर दिया ।

तब रावण ने लंका का अपना निजी राशि चक्र बनाया जिससे लंका के प्रत्येक हिस्से पर एक ही तरह का प्रभाव पड़े और सभी प्रतिलिपि ग्रहों को रावण द्वारा परिभाषित गति के साथ आगे बढ़ने का आदेश दिया गया, इसका अर्थ है कि लंका में कभी भी कोई नुकसान या खतरा नहीं होगा किसी भी परिस्थिति में । भगवान हनुमान, रावण की शक्ति और बुद्धि से आश्चर्यचकित थे । फिर उन्होंने अपने मस्तिष्क में सोचा कि लंका को यदि कोई नुकसान पहुँचाना है, तो इन प्रतिलिपि ग्रहों को किसी भी तरह से मुक्त करना होगा । रावण भी भगवान हनुमान को लगभग एक मिनट तक देखता रहा, आखिर में उन्होंने भगवान हनुमान से कहा, “तो तुम हो वो शरारती वानर जिसने मेरे सबसे खूबसूरत बगीचे को नष्ट कर दिया और मेरे बेटे अक्षय कुमार को भी मार डाला, क्या तुम सजा के लिए तैयार हो?”

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 7 ☆ अब कहाँ है रास्ता? ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  एक भावप्रवण कविता  ‘अब कहाँ है रास्ता?’।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 8 

☆ अब कहाँ है रास्ता?

अमन के नाम पर झगड़े होते हैं
खून -खराबे, आगजनी, मारकाट होती है
इन्सा का इन्सा से नहीँ रहा वास्ता
अब कहाँ है रास्ता?

 

दिन में गलबाँहें डालते हैं दोस्त जो
पीठ में खंज़र वे ही चुभाते हैं
दोस्तों का दोस्तों से मिट गया है राब्ता
अब कहाँ है रास्ता?

 

आज़ाद देश में नारी पर होता अत्याचार है
मासूम सी कलियों को ये ही कुचलते हैं
नारी के जीवन की करूण है दास्ताँ
अब कहाँ है रास्ता?

 

© सौ. सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 7 ☆ डोंगर दऱ्या ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी  भावप्रवण कविता  डोंगर दऱ्या.  श्रीमती उर्मिला जी  के द्वारा ग्राम्य परिवेश का शब्द चित्र अत्यंत मोहक है  एवं  नेत्रों के सम्मुख  एक सुन्दर ग्राम का सम्पूर्ण  दृश्य परिलक्षित होता है. श्रीमती उर्मिला जी  को ऐसी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 7 ☆

 

☆ डोंगर दऱ्या ☆

 

माझ्या म्हायेरास्न आईनं सांगावा धाडला!

सुटीत पोरास्नी घिऊन ये की, महाडला !

 

आठव आली मला माज्या देखन्या गावाची !

लगबगीनं तयारी केली मी

आईकडं जान्याची !

आई म्हनं वाट वळनावळनाची  लागती तुला गाडी !

रित्यापोटी नग निगूस ,खा आवळ्याची वडी !!

 

निसर्गातल्या कुशीतलं देखनं माज गाव !

हायती धा बारा घरं आन् येकच बाव !

भातखाचरातनं चालल्यात पान्याचं पाट !

पुलाजवळ उभी -हाऊन यस्टी बगं प्यासेंजरची वाट !!

 

डोंगरदऱ्यातंन व्हात्यात

झुळुझुळू झरं. !

साऱ्या रस्त्यानं कोसळत्यात धबाबा धबधबं !!

ल ई छान रंगीबेरंगी फूलपाखरांचं थवं !

थुईथुई नाचत्यात मोर फुलवून सुंदर पिसारं !!

 

डोंगरघाटातनं गेल्याव दिसं  रांगड गाव छान !

हिरवंहिरवं गालिचे अन् पाचूचं रान !

गोठ्यात शेपूट हालवीत बघं

देखनी कपिला गाय !

हाती भाकरतुकडा घिऊन दारी हुबी माजी माय !!

 

©® उर्मिला इंगळे, सातारा

!! श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

( विस्तार से ध्यान योग का विषय )

 

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते ।

निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ।।18।।

 

हो मन वश में और जब कामनाओं का नाश

तभी योग की सिद्धि का हो सकता विश्वास।।18।।

 

भावार्थ :  अत्यन्त वश में किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भलीभाँति स्थित हो जाता है, उस काल में सम्पूर्ण भोगों से स्पृहारहित पुरुष योगयुक्त है, ऐसा कहा जाता है।।18।।

 

When the perfectly controlled mind rests in the Self only, free from longing for the  objects of desire, then it is said: “He is united.” ।।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 17 ☆ औरत धूर्त और खतरनाक नहीं – एंजेलीना ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है  डॉ मुक्ता जी  का  आलेख “औरत धूर्त और खतरनाक नहीं – एंजेलीना”.  डॉ . मुक्ता जी ने इस आलेख के माध्यम से  यू• एन• एच• सी• आर• की गुडविल एंबेसेडर हॉलीवुड अभिनेत्री  एंजेलीना के कथन को व्यापक विस्तार दिया है और नारी के सम्मान एवं अधिकारों के प्रति समाज में सजगता का सन्देश दिया है. साथ ही वे कदापि नहीं मानती  कि पुरुषों एवं बच्चों  के खिलाफ अपराध को किसी भी तौर से कमतर आँका जाये. उन्होंने  इस विषय पर अपनी बेबाक राय रखी है। अब आप स्वयं पढ़ कर आत्म मंथन करें  कि – हम इस दिशा में क्या कर सकते हैं?  आदरणीया डॉ मुक्ता जी  का आभार एवं उनकी कलम को इस पहल के लिए नमन।) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 17 ☆

 

☆ औरत धूर्त और खतरनाक नहीं – एंजेलीना ☆

 

हॉलीवुड की अभिनेत्री एंजेलीना का यह कथन समाज के तथाकथित सफेदपोश लोगों को कटघरे में खड़ा कर देता है, जो अपने अधिकार छीने जाने पर आवाज़ दबाने को तैयार नहीं. वे ऐसी महिलाओं के पक्षधर नहीं हैं। परंतु एंजेलिना उस अवधारणा को बदलने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहती हैं, “जो अन्याय से थक चुकी महिलाओं को ‘अस्वाभाविक और खतरनाक’ बताते हैं… समाज में निर्मित नियमों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाली महिलाओं को असामान्य करार देते हुए, उनके लिए ‘अजीब, चरित्रहीन और खतरनाक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।”

आधुनिक युग में ऐसी सोच पर कायम रहना लज्जा-स्पद है। यू• एन• एच• सी• आर• की गुडविल एंबेसेडर अभिनेत्री ने कहा कि – “उनके इस आलेख का मतलब पुरुषों व बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध को कमतर आंकना नहीं है।”

आश्चर्य होता है यह देख कर कि 21वीं सदी में भी ऐसी मानसिकता हावी है। समान अधिकारों व अन्याय के विरुद्ध मांग उठाने वाली महिलाओं को अस्वाभाविक व असामान्य करार करना,उन्हें विचित्र, चरित्रहीन, धूर्त व खतरनाक कहना…क्या यह महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है? क्या गीता का संदेश त्याज्य है ‘यदि अधिकार मांगने से न मिले तो उसे छीन लेना श्रेयस्कर है’…अपराध नहीं है? क्या ऐसी नकारात्मक पुरुष मानसिकता को स्वीकारना अनिवार्य है?

शायद नहीं…संसार के प्रत्येक जीव को अपने ढंग से जीने का अधिकार है। यदि परिस्थितियां उसके प्रतिकूल हैं, तो उनका विरोध न करने वाले मनुष्य को आप क्या कहेंगे… शायद ज़िन्दा लाश…क्योंकि जिस इंसान में आत्मसम्मान,स्वाभिमान व अधिकारों के प्रति सजगता नहीं है, वह अस्तित्वहीन है,त्याज्य है।

हाँ !अधिकार व कर्त्तव्य अन्योन्याश्रित हैं। एक का अधिकार दूसरे का कर्त्तव्य है। सो! आवश्यकता है दायित्व-वहन की, एक-दूसरे के प्रति प्यार,सम्मान व समर्पण की… जिसकी अनुपालना दोनों के लिए आवश्यक है।

स्त्री व पुरुष गाड़ी के दो पहिए हैं। यदि एक कमज़ोर होगा, तो दूसरे की गति स्वतः धीमी पड़ जाएगी।

दूसरे शब्दों में समाज की उन्नति के लिए तालमेल व सामंजस्य आवश्यक है अन्यथा समाज में मासूमों की भावनाओं पर कुठाराघात होता रहेगा और लूट- खसोट, दुष्कर्म व हत्या के मामले बढ़ते रहेंगे, इनकी संख्या में निरंतर इज़ाफा होता रहेगा…चहुं ओर अव्यवस्था का साम्राज्य बना रहेगा।

सो!इसके लिये आवश्यकता है…नारी की भावनाओं, सोच व दृष्टिकोण को अहमियत देने की, उसके द्वारा समाज हित में किए गए योगदान व उसकी प्रति- भागिता अंकित करने की… यह तभी संभव हो पायेगा, जब वर्षों से प्रचलित रूढ़ियों, अंधविश्वासों व दकियानूसी मान्यताओं द्वारा दासता की ज़ंजीरों से मुक्त करवा पाना संभव होगा…उसे दोयम दर्जे का न स्वीकार कर, मात्र कठपुतली नहीं, संवेदनशील समाज के विशिष्ट अंग के रूप में स्वीकारेगा। यदि हम समाज को उन्नत करना चाहते हैं, तो हमें नारी को मात्र भोग्या व उपयोगिता की वस्तु नहीं, समाज के अभिन्न अंग के रूप में  स्वीकारना होगा। जैसाकि सर्वविदित है कि एक सुशिक्षित बालिका दो घरों को सुव्यवस्थित करती है, आगामी पीढ़ी को सुसंस्कृत करने में संस्कारित करती है और समाज को एक नई दिशा प्रदान करती है।

बच्चे,सुखद परिवार की सुदृढ़ नींव होते हैं और माता -पिता की अनमोल विरासत व अभिन्न दौलत।अर्थात् जिनके बच्चे शिक्षित ही नहीं, सुसंस्कारित व शालीन होते हैं, मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते…वे माता-  पिता संसार में सबसे अधिक सौभाग्यशाली व निर्धन हो कर भी सबसे अधिक धनी होते हैं।

चलिए!विचार करते हैं इसके मुख्य उपादान पर। ..यदि आप अपनी पत्नी की भावनाओं का सम्मान कर, उसे बराबर का दर्जा देते हैं, उसका तिरस्कार नहीं करते, उसके त्याग व योगदान की सराहना करते हैं… सामाजिक विषमता, विश्रृंखलता व विसंगतियों का विरोध करने पर, दाहिने हाथ की भांति उसके साथ खड़े रहते हैं…उसकी भावनाओं का तिरस्कार कर, उसे अपमानित नहीं करते तो आप एक-दूसरे के प्रतिपूरक हैं, एक महत्वपूर्ण कड़ी है तथा आप परिवार व समाज को उन्नत व समृद्ध  बना सकते हैं।

स्मरण होंगे.. आपको अंग्रेज़ी के यह मुहावरे ‘चैरिटी बिगिंस एट होम और ‘निप दी इविल इन दी बड ‘ अर्थात् घर से ही प्रारंभ होती, बुराई को प्रारंभ में ही दबा देना चाहिए अन्यथा वह कुत्तों की तरह समाज को दूषित कर देगी स्वस्थ समाज की शांति को लील जाएगी। महिलाओं को सम्मान व समान दर्जा देना, उसकी सद्भावनाओं व सत्कर्मों का बखान करना… आगामी पीढ़ी को सुसंस्कारों से सिंचित कर सकता है। हां! आवश्यकता है उसके बढ़ते कदमों को व यथोचित योगदान को देख सराहना करना। यदि वह उसे अपनी जीवनसंगिनी, हमसफ़र व शरीक़ेहयात समझ उससे शालीनता से व्यवहार करेगा तो वह यह सबके हित में होगा अन्यथा समाज से आतंक व अराजकता का शमन कभी नहीं होगा…समाज में सदैव भय, डर व आशंका का माहौल बना रहेगा… समाज में फैली कुरीतियों-दुष्प्रवृत्तियों का अंत नहीं कभी सम्भव नहीं होगा। राम राज्य की स्थापना का स्वप्न व समन्वय-सामंजस्य का स्वप्न कभी साकार नहीं होगा। शायद यह  कपोल-कल्पना बनकर रह जाएगी। आइए! हम सब इस यज्ञ में अहम् की समिधा डालें क्योंकि अहम द्वंद्व व संघर्ष का जनक है, जिसका परिणाम हम परिवारों में माता-पिता के अलगाव के रूप में तथा बच्चों को एकांत की त्रासदी से जूझते हुए एकाकीपन के रूप में देखते हैं। संयुक्त परिवार व्यवस्था के टूटने पर वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या, महिलाओं की असामाजिक कृत्यों में प्रतिभागिता, फ़िरौती, हत्या आदि संगीन जुर्मों में लिप्तता हमारी नकारात्मक सोच को उजागर करती है। आइए!हम सब स्वस्थ समाज की संरचना में  योगदान दें,जहां सब को यथोचित सम्मान मिल पाये। अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि अधिकारों की मांग करना, न मिलने पर प्रतिरोध कर बग़ावत का झंडा उठाना,अन्याय को सहन करने की प्रतिबद्धता को नकारना, महिलाओं के चरित्र का प्रमाण-पत्र नहीं है और न ही ऐसी महिलाओं का,जो समाज में व्याप्त अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाती हैं…उन्हें अस्वाभाविक व  खतरनाक समझने का कोई औचित्य है। इस लाइलाज रोग से निज़ात पाने का एकमात्र उपाय है…समाज की सोच को परिवर्तित कर, नारी को दोयम दर्जे का न समझ, समानता का दर्जा प्रदान किया जाये। शायद!इसके परिणाम- स्वरूप लोगों की दूषित मानसिकता में परिवर्तन हो जाये।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – अस्तित्व ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – अस्तित्व ☆

 

ढूँढ़ो, तलाशो,

अपना पता लगाओ

ग्लोब में तुम जहाँ हो

एक बिंदु लगाकर बताओ,

अस्तित्व की प्यास जगी

खोज में ऊहापोह बढ़ी

कौन बूँद है, कौन सिंधु है..?

ग्लोब में वह एक बिंदु है या

ग्लोब उसके भीतर एक बिंदु है..?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 15 ☆ अक्सर ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की एक  प्रेरणास्पद एवं भावप्रवण कविता  “अक्सर ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 15  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ अक्सर

 

अपने ही दिखाते है

सपना

और अपने ही देते हैं धोखा

अक्सर।

 

वक्त देती है

तरह तरह के इम्तिहान

सिखाती है जंग

अक्सर।

 

टूटे हुए अहसास

मिलता है जख्म

दे जाते है सीख

अक्सर।

 

मुश्किलों का तूफान

डराने का

करें प्रयत्न

कोशिश होती विफल

अक्सर।

 

मंजिल की करतें है तलाश

करते रहेंगे प्रयत्न

जीवन में

मानेंगे नहीं हार

अक्सर।

 

असफलता ही

दिलाती सफलता

मिलती है प्रेरणा

अक्सर।

 

© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची

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