ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 – ☆बाल-साहित्य विशेषांक☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 34 ☆बाल साहित्य विशेषांक ☆          

कई बार अनायास ही कुछ संयोग बन जाते हैं। हम प्रयास अवश्य करते हैं किन्तु, ईश्वर हमें संयोग प्रदान करते हैं और हम मात्र माध्यम हो जाते हैं।  अब इस अंक को ही लीजिये।  कुछ रचनाएँ ऐसी आईं जिन्होने इस अंक को लगभग बाल साहित्य विशेषांक का स्वरूप दे दिया। कहते हैं कि –  बाल साहित्य का सृजन अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसके लिए हमें अपने बचपन में जाना होता है। शायद इसीलिए विश्व में बाल साहित्य का अपना एक अलग स्थान है। फिर एक पालक और दादा/दादी/नाना/नानी के तौर पर हम कई बाल सुलभ प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते जिनके उत्तर बाल साहित्य में छुपे  रहते हैं।

आज के अंक में  दैनिक स्तम्भ श्रीमद भगवत गीता के पद्यानुवाद केअतिरिक्त पढ़िये निम्न विशिष्ट रचनाएँ –

  • लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अंकित प्रथम माता-पुत्री द्वय सुश्री नीलम सक्सेना चन्द्र एवं सुश्री सिमरन चंद्रा जी द्वारा रचित अङ्ग्रेज़ी काव्य संग्रहWinter shall fade” की कविता Dreams ☆
  • बाल-साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी की बाल कथा ? लू की आत्मकथा ?
  • प्रसिद्ध मराठी साहित्यकार श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी का मराठी आलेख ? चिमणीचा दात ?
  • प्रसिद्ध हास्य योग प्रशिक्षक, ब्लॉगर, एवं प्रेरक वक्ता श्री जगत सिंह बिष्ट जी की रचना-प्रयोग  ☆ Laughter Yoga Among School Girls in India ☆

आप इसे संयोग कह सकते हैं किन्तु, कई बार हमारे कुछ प्रयोग संयोग बन जाते हैं। विगत में हमने ऐसे ही कुछ विशिष्ट विषयों पर विशेषांक प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हम साहित्य में ऐसे और प्रयोग करने हेतु कटिबद्ध हैं।

यह संभवतः पहली वेबसाइट है जो आपको हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी में प्रतिदिन लगभग 4 से 6 सकारात्मक रचनाएँ प्रस्तुत करती है। आपके  अपने मंच e-abhivyakti को औसतन 250 से 300+ लेखक/पाठक प्रतिदिन पढ़ते हैं और अब तक 19000 से अधिक विजिटर्स पढ़ चुके हैं। आपके सुझाव और रचनाएँ e-abhivyakti को सतत नए आयाम प्रदान करते हैं जिसके लिए हम आपके आभारी हैं।

हम प्रयासरत हैं कि आपको तकनीकी रूप से आगामी अंकों को नए संवर्धित स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सके।

इस यात्रा में मुझे अक्सर मजरूह सुल्तानपुरी जी की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

21 मई 2019

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English Literature – Poetry – ☆ Dreams ☆– Ms Neelam Saxena Chandra & Ms Simran Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(We reproduce this poem taken from the famous poetry collection ‘Winter Shall Fade’ that finds a place in Limca Book of Records for being the first book co-authored by a mother-daughter duo (Ms. Neelam Saxena Chandra ji and Ms Simran Chandra ji ) published by Omji Publishers.) 

Amazon Link: Winter Shall Fade’

 

☆ Dreams ☆

 

I embrace my dreams

Just like the moon

Embraces the moonlight

Or the veil of night

Embraces the stars.

 

I fall in love with them

Little by little

And they come to me

Bit by bit

Kissing me

Hugging me

Skimming me,

As if drizzling upon me

And covering me with affection,

Percolating like fragrance

All over my being

And singing

Some happy numbers.

 

Keep dreaming

For

The relationship

Between dreams and self

Is the most fulfilling…

 

© Ms Neelam Saxena Chandra and Ms. Simran Chandra, Pune 

 

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी – बाल कथा ? लू की आत्मकथा ? श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का e-abhivyakti में स्वागत है।  हम श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी के रूप में एक बाल साहित्यकार को पाकर गौरवान्वित हैं। आपकी विशेष उपलब्धियां हैं  वर्ष – 2008 में 24, 2009 में 25 व 2010 में 16 बाल-कहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन है। इसके अतिरिक्त आप अपने बाल साहित्य के लिए कई सम्मनों/अलंकरणों से अलंकृत हैं।हमें  भविष्य में आपकी चुनिन्दा रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।)

 

? लू  की आत्मकथा ?

 

मैं लू हूँ.  लू यानी गरम हवा. गरमी में जब गरम हवा चलती है तब इसे ही लू चलना कहते हैं. क्या आप मुझे जानते हो ? नहीं ना ? तो चलो, मैं आज अपने बारे में बता कर आप को अपनी आत्मकथा सुनाती हूँ.

अक्सर गरमी के दिनों में गरम हवा चलती है. इसे ही लू चलना कहते हैं. इस वक्त वातावरण का तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है. यह तापमान आप के शरीर के तापमान 37 डिग्री से ​अधिक होता है.

इस ताप पर शरीर की स्वनियंत्रित तापमान प्रणाली शरीर का काम ठीकठाक ढंग से  करती है. इस का काम शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखना होता है. यदि वातावरण का तापमान इस ताप से ज्यादा हो जाता है और आप लोग गरमी में बाहर निकल कर खेलते हैं तो तब तुम्हारे शरीर की यह प्रणाली सक्रिय हो जाती है. इस वक्त यह शरीर से पसीना बाहर निकालती रहती है ताकि तुम्हारे शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखा जा सकें.

पसीना आने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है. पसीना हवा से सूख जाता है. इस से शरीर में पानी की कमी होने लगती है. इस वक्त आप को प्यास लगने लगती है.यदि आप समयसमय पर पानी पीते हो तो शरीर में पानी की पूर्ति हो जाती है.

कभी कभी इस का उल्टा हो जाता है. आप समय समय पर पानी नहीं पीते हो तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस दौरान धूप में खेलने या गरम हवा के संपर्क में आने से और शरीर में पानी की कमी होने से वह अपने सामान्य तापमान को बनाए रखने के लिए अधिक पसीना निकाल नहीं पाता है. इस के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है. शरीर के इस तरह तापमान बढ़ने को लू लगना कहते हैं.

लू लगने का आशय आप के शरीर का तापमान अधिक बढ़ जाना होता है. इस दौरान शरीर अपने तापमान को बनाए रखने में असमर्थ हो जाता है. इस से शरीर को बहुत नुकसान होता हैं. शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस से आप का खून गाढ़ा हो जाता है. जिस से रक्त संचरण में रूकावट आती है. इस रूकावट की वजह से चक्कर आना, उल्टी होना, बेहोशी होना, आंखे जलना जैसी शिकायत होने लगती है. यह सब लू लगने के लक्षण होते हैं.

यदि लू लगने के बाद भी धूप में रहा जाए तो कभी कभी इनसान की मृत्यु हो जाती है. इस कारण गरमी में लू की वजह से कई जनहानि होती रहती है. मगर, आप सोच रहे होंगे कि मैं यानी लू बहुत खतरनाक होती हूं. नहीं भाई, आप का यह सोचना गलत है. मेरे चलने से ही समुद्र के पानी का वाष्पन होता है. इसी की वजह से बरसात आने की संभावना पैदा होती हैं. यदि मैं न होऊं तो आपके बहुत सारे काम रूक जाए.

वैसे आप कुछ सावधानियां रख कर मुझे से बच सकते हो. आप चाहते हो कि मैं आप को नुकसान नहीं पहुंचाऊं तो आप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. गरमी के दिनों में खूब पानी पी कर बाहर खेलना चाहिए. जब भी बाहर जाओ तब सिर पर सफेद कपड़ा या टोपी लगा कर बाहर जाओं. दिन के समय सीधी धूप में न रहो. खूब पानी या तरल पदार्थ पी कर तुम मुझ से और मेरे प्रभाव से बच सकते हो.

बस ! यही मेरी छोटीसी आत्मकथा हैं. यह तुम्हें अच्छी लगी होगी. मैं समझती हूं कि अब आप मुझे अच्छी तरह से समझ गए होंगे. मैं ठीक कह रही हूं ना ?

हाँ. अब ज्यादा गरदन मत हिलाओं. मैं समझ गई हूं कि तुम समझ गए हो. इसलिए अब मैं चलती हूं. मुझे अपने जिम्मे के कई काम करना हैं. कहते हुए लू तेजी से चली गई.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  [email protected]

मोबाइल 9424079675

 

 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga Among School Girls in India ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga Among School Girls in India

One week, we had the most satisfying and fulfilling experience in our journey of Laughter Yoga. We gave a presentation on Laughter Yoga before 100 girl students in the age group of 9 to 15 years and their teachers at Sri Sarada Rama Krishna Misson School,Indore.. The connect was instant and the atmosphere turned ethereal within a few moments.

Earlier, the Principal of the school had shared with us that the students were finding it difficult to concentrate on their studies and appeared sad, tired and depleted of energy. She felt sad that the children were not cheerful at all and faced a lot of stress. When we told her about the benefits of Laughter Yoga, she readily agreed to give it a try in the school.

The Principal and the Teachers were amazed by the simplicity, instant impact and tremendous trans-formative power of Laughter Yoga. They observed that the children listened to the directions given to them with rapt attention and showed a great sense of discipline during the exercise routine. The children enjoyed the session to the hilt especially Milk Shake Laughter, Mobile Laughter, Silent Laughter and Follow The Leader game.

The Principal said she really did not have enough words to thank us for making the children so joyous and exuberant. She would like her teachers to be trained as Laughter Leaders by us soon so that the children could have their daily dose of laughter medicine. We are feeling really content on being a medium for bringing joy in the lives of little school girls.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ।।8।।

अतःनियत सब कर्म कर कर्म अकर्म से श्रेष्ठ

बिना कर्म जीवन भी तो अनुचित और अनिष्ट।।8।।

 

भावार्थ :   तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा ।।8।।

 

Do thou  perform  thy  bounden  duty,  for  action  is  superior  to  inaction  and  even  the maintenance of the body would not be possible for thee by inaction. ।।8।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – ☆ जीडीपी और दद्दू ☆ – श्री रमेश सैनी

श्री रमेश सैनी

(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध वरिष्ठ  साहित्यकार  श्री रमेश सैनी जी  का   एक बेहतरीन व्यंग्य। श्री रमेश सैनी जी ने तो जीडीपी नाम के शस्त्र का व्यंग्यात्मक पोस्टमार्टम ही कर डाला। यह बिलकुल सही है कि जी डी पी एक ऐसा शस्त्र है  जिसकी परिभाषा/विवेचना सब अपने अपने तरीके से करते हैं। यह तय है कि श्री सैनी जी के पात्र दद्दू जी के जी डी पी  से तो अर्थशास्त्री भी हैरान-परेशान  हो जाएंगे ।)

 

☆ जीडीपी और दद्दू ☆

चुनाव के दिन चल रहे हैं और इसमें सभी दल के लोग जीतने के लिए अपने अपने हथियार भांज रहे हैं. उसमें एक हथियार है, जीडीपी. अब यह जीडीपी क्या होता है. हमारे नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं. जीडीपी को समझना उनके बस की बात भी नहीं है. उन्हें तो बस उसका नाम लेना है. हमने कई नेताओं से बात करी. उन्हें जीडीपी का फुल फॉर्म नहीं मालूम. पर बात करते हैं जीडीपी की. वैसे हमारे नेताओं का एक तकिया कलाम है कि जनता बहुत समझदार है. इस जुमले से नेता लोग अपनी कमजोरियों को बहुत ही चतुराई से बचा ले जाते हैं. वे जीडीपी का मतलब भी नहीं समझते हैं. हमारी जनता में से हमारे दद्दू हैं. उनको भी जीडीपी का फुल फॉर्म नहीं मालूम है. किंतु जीडीपी के बढ़ाने में उनका अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष योगदान है, वे अनेक प्रकार से इस प्रयास में लगे हुए हैं.

हमारे दद्दू कहते हैं कि- ठजीडीपी हमारी जीवन शैली है. जीडीपी याने जीवन ढलुआ प्रोग्राम”. इस शैली से अच्छे-अच्छे अर्थशास्त्री जीडीपी में गच्चा खा गए.

दद्दू कहते हैं जब खूबसूरत स्वप्न सुंदरी कहती है- इस लावण्य साबुन से नहाइए. सभी कहते हैं कि जवानी के दिनो में सुंदरी की बात नहीं टालना चाहिए. दद्दू ने भी नहीं टाली और उन्होंने वह लावण्य साबुन खरीदा और नहाने लगे. उन्हें उस साबुन से बहुत प्रेम था. वे सपने में भी साबुन के बहाने स्वप्न सुंदरी को देखते. हमारे दद्दू की नजर साबुन के रैपर बनी स्वप्न सुंदरी की फोटो और उस बट्टी पर बराबर बनी रहती. दादी ने बताया कि साबुन की बट्टी तो उनकी सौतन हो गयीं थी. वे स्वप्न सुंदरी को खुश करने के लिए साबुन की बट्टी खरीदते हैं. उसे किसी को हाथ नहीं लगाने देते. उसे रोज उपयोग करते हैं. जब आधी से कम हो जाती है. तो उसे शौचालय के बाहर में रख देते हैं. जब उससे भी आधी हो जाती और हाथ में पकड़ में नहीं आती है. तब उसे नयी बट्टी में चिपका देते और इस तरह उनका काम चलता. वे उस साबुन से इतना प्यार करते कि नहाते वक्त उस बट्टी को ले जाते, उसे प्यार भरी नजरों से निहारते और बिना साबुन लगाये नहा लेते. इस तरह वे एक महीने  में चार बट्टी की जगह एक बट्टी से काम चला लेते और तीन साबुन बचा कर जीडीपी की ग्रोथ में देश की सेवा करते.

देश की जीडीपी बढ़ाने में हमारे दद्दू का अनेक प्रकार से अतुलनीय योगदान रहा है. वे नया पैजामा सिलवाते. उसे शादी विवाह में पहन कर अपनी शान बखारते, बारात में सबसे आगे चलते, जिससे सबकी नज़र उनके पैजामे पर पड़ सके. जब थोड़ा पुराना हो जाता तो उसे बाजार हाट पहन कर जाते. जब पैजामा नीचे से फटने लगता तो उसे फेंकते नहीं, वरन उसे घुटने के थोड़ा ऊपर से कटवा कर पैताने के दो थैले सिलवा लेते, और ऊपर के हिस्सा से चड्डी का काम लेते. उन्होंने जीवन भर नया थैला नहीं खरीदा और न ही उन्होंने अपने लिए नयी चड्डी भी नहीं खरीदी. इस तरह वे साल में चार थैले और चड्डी बिना खरीदे काम चला लेते. जब थैले फट जाते तो उसे काट छांट कर रुमाल बना लेते और चड्डी के फटने से उसका फर्श पोछने वाला पोछा बन जाता इस तरह वे पैजामे की जान निकलने तक उपयोग करते हैं. अगर कोई घर का सदस्य उनके लिए चड्डी ले आता तो उसे धन्यवाद देने के बजाय इतनी डाँट पिलाते कि उसका दिन का खाना खराब हो जाता था. वे नये थैले, चड्डी और रुमाल खरीदना, पैसे की बरबादी समझते.

दद्दू बचपन में दाँत साफ करने के लिए दाँतौन का उपयोग करते, जो आसानी से मिल जाती थी और दातौन न मिलनेपर राख या कोयले से काम चला लेते. फिर जमाना आया. टूथपेस्ट और ब्रश का. जब पेस्ट खतम होने लगता तो टयूब को हथौड़ी से पीट पीट कर कचूमर निकाल कर पेस्ट बाहर निकल लेते. इतने से वे चुप नहीं बैठते, जब पूरा टयूब पिचक जाता या यों कहें उसकी जान ही निकल जाती है तो फिर वे टयूब को कैंची से काट कर, दो फांक कर देते और ब्रश से पूरी सफाई कर एक दिन का काम चला लेते. इसी तरह ब्रश के बाल घिस जाते तो उससे साईकिल साफ करने का काम लेते. जब ब्रश के बाल पूरी तरह खराब हो जाते तब ब्रश के बालों वाला सिरा काट कर शेष डंडी से पैजामे और चड्डी का नाड़ा डालने का काम ले लेते.

इस सबसे उन्हें बहुत संतोष मिलता. इस तरह से बचत कर देश की आर्थिक स्थिति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते. उनका मानना था कि पैसा कमाना सरल है, पर पैसा खर्च करना कठिन है. इसे संभाल कर करना चाहिए.

****

रमेश सैनी

मोबा. 8319856044  9825866402

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ पिता ☆ – सुश्री सुषमा सिंह

सुश्री सुषमा सिंह 

 

(प्रस्तुत है सुश्री सुषमा सिंह जी की एक अत्यंत भावुक एवं हृदयस्पर्शी कविता “पिता ”।)

 

☆ पिता ☆

 

तुम पिता हो, सृष्टा हो, रचयिता हो, हां, तुम स्नेह न दिखाते थे

मां की तरह न तुम सहलाते हो, पर हो तो तुम पिता ही ना।

जब मैं गिरती थी बचपन में, दर्द तुम्हें भीहोता था

चाहे चेहरा साफ छिपा जाए, पर दिल तो रोता ही था

माना गुस्सा आ जाता था, हम जरा जो शोर मचाते थे

पर उस कोलाहल में कभी-कभी, मजा तुम भी तो पा जाते थे

चलते-चलते राहों में, जब पैर मेरे थक जाते थे

मां गोद उठा न पाती थीं, कांधें तो तुम्हीं बैठाते थे

मां जब भी कभी बीमार पड़ीं, तुम कुछ पका न पाते थे,

कुछ ठीक नहीं बन पाता था, कोशिश कर कर रह जाते थे

उमस भरी उस गर्मी में, कुछ मैं जो बनाने जाती थी

तब वह तपिश, उस गर्मी की, तुमको भी तो छू जाती थी

जरा सी तुम्हारी डांट पर, हम सब कोने में छिप जाते थे

झट फिर बाहर निकल आते, जो तुम थोड़ा मुस्काते थे

मैं जब दर्द में होती थी, व्याकुल तुम भी हो जाते थे

पलकें भीगी होती थीं, फिर आंखें चाहे न रोती थीं

चेहरा जो तुम्हारा तकती हूं, आशीष स्वयं मिल जाता है

मुख से चाहे कुछ न बोलूं, वंदन को सिर झुक जाता है

तुम पिता हो, सृष्टा हो, रचयिता हो

 

© सुषमा सिंह

बी-2/20, फार्मा अपार्टमेंट, 88, इंद्रप्रस्थ विस्तार, पटपड़गंज डिपो, दिल्ली 110 092

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ आकार …..! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।)

 

☆ आकार …..! ☆ 

 

फिरत्या चाकावर मातीला हवा तसा आकार देताना

आयुष्याचा आकार नेहमीच चुकत गेला….

आख्खं आयुष्य गेलं

ह्या फिरत्या चाकावर मातीला हवा तसा आकार देण्यात

पण हे चाक कधी मला हवं तसं

फिरलंच नाही

आणि परिस्थितीला हवा तसा

आकार मला कधी देताच आला नाही

माझी लेकरं लहान असताना

त्यांची कित्येक स्वप्न मी

नाईलाजास्तव माझ्या

पायाखालच्या चिखलात तुडवत गेलो

आणि त्याच्याच स्वप्नांच्या चिखलाची

त्यांच्यासाठीच

मला हवी तशी स्वप्न दाखवत गेलो

पण आता इतकी वर्षे संभाळून ठेवलेल्या

परिस्थितीचा घडा आता

हळूहळू पाझरू लागलाय

पायाखालचा चिखलही

आता पहील्या पेक्षा कमी झालाय

कारण आता…

लेकरांनी

आपआपल्या स्वप्नांचा चिखल

आपआपल्या पायाखाली तुडवायला सुरवात केलीय

पुन्हा नव्याने परिस्थितीला

त्यांना हवा तसा आकार देण्यासाठी….

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga For A Better Sex Life ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga For A Better Sex Life

I have been hesitating for quite a while to share what follows here because the subject remains hush-hush and taboo in the land of Kamasutra and Osho even today.

We had a gentleman, on the wrong side of fifties, in our laughter sessions who was very punctual – a rare virtue in this part of the world – and sincere. He went through and through the literature available on Laughter Yoga and regularly discussed about its health benefits like better respiration, stronger immunity, stress busting, lower blood pressure and cardio-vascular workout.

One day he confided to me over telephone that his married life has improved immensely and he feels happier as a consequence of regular laughter yoga. He and his wife had almost accepted that their sex life was over by virtue of their age but once they started practicing laughter yoga and meditation, the charm of youth slowly revisited them and they enjoyed a more wholesome life.

While most cases of erectile dysfunction have an underlying physical cause, sometimes sexual dysfunction is the result of stress, depression or other psychological and cultural issues. Laughter Yoga gets rid of physical, mental and emotional stress, is a good cure for mild depression and frees one from the psychological problems.

Laughter Yoga may help couples to have a better sex life by relieving stress and bringing about a freer, positive and open approach to life.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

 

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।

कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ।।7।।

मन संयम कर इंद्रियों पर रखना अधिकार

अनुष्ठान यह ही है सव से श्रेष्ठ प्रकार।।7।।

भावार्थ :  किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है ।।7।।

 

But whosoever, controlling the senses by the mind, O Arjuna, engages himself in Karma Yoga with the organs of action, without attachment, he excels! ।।7।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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