आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।

कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ।।5।।

 

बिना कर्म के एक क्षण, कभी न कोई व्यक्ति

प्रकृतिदत्त है कर्म के प्रति सबकी अनुरक्ति।।5।।

 

भावार्थ : निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है।।5।।

 

Verily none can ever remain for even a moment without performing action; for, everyone is made to act helplessly indeed by the qualities born of Nature. ।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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English Literature – Poetry – ☆ The end of King Parikshit ☆– Ms Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(We present Ms. Neelam Saxena Chandra ji‘s thought provoking poem based on the mythological character King Parikshit’s Karma and Dharma.)

 

☆ The end of King Parikshit ☆

 

By a snake bite cursed to die

King Parikshit, in a tall tower locks

Isolated from subjects, children and wives

Paces in his room, unable to talk

 

Petrified he is, does not eat or sleep

Finally his curse, to everyone reveals

Every inlet to the tower is guarded

No slithering Naga should come to kill

 

On the seventh day, the famished Parikshit

Disgustedly, darts into a fruit

Hidden inside is a little worm

Which transforms into a serpent’s suit

 

Takshaka is the name

Its deadly fangs into Parikshit’s skin sinks

Spreads rapidly the venom

And soon breathes his last, the king

 

Destiny can never change

The fate of a pauper or royale

Providence decides whatever is deserved

Karma and dharma are inevitable

 

© Ms Neelam Saxena Chandra, Pune 

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ उदासी ☆ – श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 

 

(श्री सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी का e-abhivyakti में स्वागत है। प्रस्तुत है श्री अरोड़ा जी की मानवीय संवेदनाओं पर आधारित लघुकथा ‘उदासी’। हम भविष्य में श्री अरोड़ा जी से उनके चुनिन्दा साहित्य की अपेक्षा कराते हैं।)

 

☆ उदासी ☆

 

‘कभी कभी ऐसा क्यूँ हो जाता है कि बिना वजह हमे उदासी घेर लेती है? ‘

‘ तुम उदास हो क्या?’

‘ उदास तो नहीं पर खुशी भी महसूस नहीं कर पा रहा ।’

‘ मेरा साथ तो तुम्हें पसन्द है और मैं तुम्हारे साथ हूँ । फिर भी तुम उदास हो । कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा मन मुझसे भर गया है ? ‘

‘ ऐसी बातें मत करो । इससे मेरी उदासी बढ़ जायेगी । ‘

‘ फिर तुम भी उदास होने की बात मत करो ।’

‘ यार! एक बात बताओ, जिंदगी क्या  सिर्फ हमारी – तुम्हारी  दिनचर्या का नाम है ? ‘

‘ ऐसा क्यों सोच रहे हो? हम हर दिन उन सारे लोगों से मिलतें हैं, जिनसे हमें कोई न कोई काम होता है । बेमतलब तो किसी से बात नहीं की जा सकती न ।’

‘ बस इसे ही जिंदगी कहते हैं क्या?’

‘ और क्या होती है जिंदगी? आज ऐसा क्या हुआ जो नहीं होना चाहिए था और ऐसा क्या नहीं हुआ जो होना चाहिए था कुछ समझ नहीं आया । आखिर कहना क्या चाहते हो ? ‘

‘ यही कि वो आदमी कितनी शिद्दत से जिन लोगों की जिंदगी के गड्ढे भरने की कोशिश कर रहा था ‘ वो उसी गड्ढे में गिरकर मर गया जिसे उन लोगों ने उसे भरने नहीं दिया । मतलब उसे जबर्दस्ती मार दिया गया ।’

‘ तो क्या इसीलिए उदास हो? ‘

‘ क्या मेरी उदासी के लिए ये वजह काफी नहीं है कि उस आदमी ने जिन लोगों के लिए गड्ढों को भरने की कोशिश की वही उसकी मौत का कारण बन गए! ‘

‘ समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हारे साथ रहकर, तुम्हें पहले से ज्यादा प्यार करूँ या तुम्हें तुम्हारी कँकरीली  उदासियों के बीच  छोड़कर किसी  सरपटी  नरम  राह की राहगीर बन जाऊं ? ‘

‘ अच्छा तो यही होगा कि तुम कोई नरम राह चुन लो ।’

‘ तुम्हें पता भी है कि हर नरमी को कठोर धरातल की जरूरत होती है। नहीं तो वह नरमी कुछ देर बाद धंस कर गड्ढा बन जाती है । और हाँ, तुम्हारी उदासियों से वो आदमी जिन्दा नहीं हो जायेगा ।’

‘ तो क्या करूं? ‘

‘ उठो और उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी जो गड्ढे भरे नहीं जा सके, उसकी वजह खोजों और उन्हें भरने की कोशिश भी करो । फिर देखना वो आदमी फिर से जिन्दा हो उठेगा ।’

वो स्नेह सिक्त मुद्रा में उसे देखने लगा ।

 

© सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ क्षितिज ☆ – श्री दिवयांशु शेखर 

श्री दिवयांशु शेखर 

 

(युवा साहित्यकार श्री दिवयांशु शेखर जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आपने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आपके अनुसार – “मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और स्क्रिप्ट लिखता हूँ। एक लेखक के रूप में स्वयं को संतुष्ट करना अत्यंत कठिन है किन्तु, मैं पाठकों को संतुष्ट करने के लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयत्न करता हूँ। मुझे लगता है कि एक लेखक कुछ भी नहीं लिखता है, वह / वह सिर्फ एक दिलचस्प तरीके से शब्दों को व्यवस्थित करता है, वास्तविकता में पाठक अपनी समझ के अनुसार अपने मस्तिष्क में वास्तविक आकार देते हैं। “कला” हमें अनुभव एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है और मैं जीवन भर कला की सेवा करने का प्रयत्न करूंगा।”)

 

☆ क्षितिज ☆

 

क्षितिज! धरती और आसमान की अनूठी प्रेम कहानी,

ना मानो तो छलावा, अगर मानो तो बड़ी सुहानी ।

इक तरफ जहाँ आसमान मस्ताना,

दूसरी ओर धरती उसके रंगों की दीवानी ।

इक तरफ जहाँ आसमान मातंग दीवाना,

वहीं बेचैन धरती की हर वक़्त खामोश रहने की बेमानी ।

एक बार औरों की तरह मुझ नासमझ को भी आसमान छूने की चाह जगी,

अथक प्रयास के बाद अचानक दूर देखा तो आज मुझे वो चाँदनी नहीं,

वरन धरती और आसमान के अद्भुत मिलन की रात लगी ।

आसमान को पाने की मेरे पास अब मात्र धरती की राह बची,

मैं भागा बेतहाशा, दिल में संजोये एक असंभव सी आशा,

वहाँ पहुँचा तो कुछ ना पाया, हाथ लगी तो सिर्फ निराशा ।

हतोत्साहित मैं, धरती से उठाकर आसमान के तरफ इक पत्थर लहराया,

लेकिन बदकिस्मत वो भी लौटके वापस धरती से टकराया ।

दर्द से धरती के पलकों पे आँसू आया,

मुझ अंधे को कुछ फर्क नहीं, लेकिन आसमान को अब मुझपे गुस्सा आया ।

रौद्र काले रूप में गरज से उसने गुस्ताखी के लिए मुझको हड़काया,

घमंडी मैं अकड़ में उससे जुबान लड़ाया ।

कहा मैंने, ऐ आसमान! तुझे किस बात का अभिमान है?

धरती तो तेरी कभी हो ही नहीं सकती, फिर तुझे किस बात का गुमान है ।

मुझ पर मुस्कुराता वो बोला कि एहसासों की कहानी की लगती कहाँ दुकान है,

और सच्चे प्यार की असल में होती कहाँ जुबान है ।

तुम तो सिर्फ अपने सपनों के लिए मेरे पीछे हो भागते,

पर जो धरती है तुम्हारे पास, उसकी कभी क़द्र ही नही कर पाते ।

तुम्हारे दिये दर्द से अब वो बेदर्द कुछ इस कदर हो गयी है,

तुम्हारे शोर में खुद के दिल की आवाज़ सुनना भूल गयी है ।

मेरा क्या, मैं तो मनोरंजन के लिए रूप, रंग बदलता हूँ,

पर तुम्हारे इशारों पे नहीं केवल उसके लिए ही मचलता हूँ ।

जहाँ मैं केवल उसकी धुन में हूँ गाता,

वहीँ वो तुम निर्ममों की गूंज में, मेरा वो प्रेमराग सुन भी ना पाती ।

जहाँ सब लोग मेरे लिए पागल हैं,

वहीं गुस्ताखी में हर वक़्त करते उसको घायल हैं ।

उसके दर्द में जब भी रोऊँ, तो लोग मेरे आँसू को बारिश हैं समझते,

उसे छेड़ने इक पलक को झपकुं, तो नासमझ तुम उसे बिजली की चमक हो समझते ।

जब भी तुम उम्मीदों से मुझे हो देखते,

मैं मुस्कुराता, और मुझे देख वो भी मुस्कुराती ।

तुम ना हिलो यहीं मज़बूरी उसकी,

नहीं तो अपने इस मचलते आशिक़ के लिए वो भी इठलाती ।

नीचे से देखने पर तुम्हें लगता होगा कि मैंने उसे चारों तरफ से घेर रखा है,

कभी मेरे साथ आकर देखो, तो तुम्हें पता चले कि मैंने नहीं,

वरन उसने मुझे सदा इक छाँव दे रखा है ।

और जहाँ तक है हमारे मिलन कि बात तो हम हमेशा ही हैं मिले,

अगर ना हो यकीन तो वापस वहाँ देखो, जहाँ से तुम थे चले ।

वापस मैंने जब पलटकर देखा तो सच में उनको वहीं मिला पाया,

उनके सच्चे प्रेम और त्याग को जान, वापस मैं बुद्धू घर को आया ॥

पुरजोर बहस हुई

कागज़ और कलम में

 

© दिवयांशु  शेखर

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? बरसात प्रीतीची ? –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक अतिसुन्दर  शृंगारिक भावप्रवण कविता ।  )

 

? बरसात प्रीतीची ?

 

तिच्या नाजूक ओठांवर तिळाने स्वार का व्हावे ?

दिसाया कृष्णवर्णी तो तरी हे भाग्य लाभावे

 

मलाही वाटतो आता नकोसा जन्म हा माझा

मनी या एवढी इच्छा तिच्या ओठीच जन्मावे

 

सखा होण्यातही आता कुठे स्वारस्य हे मजला

उभा हा जन्मही माझा करावा मी तिच्या नावे

 

कळेना सूर मी कुठला तिच्या गाण्यातला आहे

मला तर एवढे कळते तिचे मी शब्द झेलावे

 

तिच्या कोशात मी इतका असा बंदिस्त का झालो ?

मुलायम रेशमी धागे कसे हे पाश तोडावे

 

तिच्या नजरेतली भाषा कळे नजरेस या माझ्या

तिच्या एकेक शब्दांचे किती मी अर्थ लावावे

 

किती बरसात प्रीतीची नदीला पूर आलेला

मिळालेली मने दोन्ही कशाला पूल बांधावे

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – The Best Ice-Breaker For Seminars And Workshops☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga – The Best Ice-Breaker For Seminars And Workshops☆

I have been a behavioural science faculty for a pretty long time now. It is a practice to begin all training programmes, seminars and workshops with a short ice-breaking session. There are numerous ways of de-freezing the participants who come from varied backgrounds and are usually a little tense and anxious before the start of the programme.

Earlier, I tried many different ways of making the participants comfortable and relaxed. Then, I watched Dr Madan Kataria, the founder of Laughter

Yoga movement world-wide, conducting some laughter yoga exercises in the open at the Lokhandwala Park, Mumbai more than a decade ago. It was a ‘eureka’ moment for me. I had found the ultimate ice-breaker. I just had to muster courage to try it.

First, I tried to use Laughter Yoga as an ice-breaker in the training programmes conducted for the employees of the State Bank of India. Especially, I remember distinctly the spark of fun in the eyes of marketing executives of the Bank when they repeatedly enjoyed milk shake laughter exercise. Laughter Yoga gradually became a regular feature for ice-breaking and I enjoyed doing it for batches after batches week after week.

Recently, I was invited, along with my wife Radhika, to conduct a brief wellness break for safety, health and environmental heads of Nestle who had come to Goa (India) for a week long workshop from various countries in the Asia-Oceania-Africa region, Their top bosses from Vevey, Switzerland were also present. Laughter Yoga was an instant hit with them and they continued to relish it all through the span of the workshop. All the barriers melted in no time.

The Director of State Bank Foundation Institute (Chetana), Indore, India confided recently – I don’t know exactly what you do with the participants but after the laughter session they are quite warm, relaxed and non-fussy. The entire atmosphere changes in the campus. Please keep up the good work.

I can now confidently say that a ten minute ice-breaker consisting of clapping, chanting, child-like playfulness and a few laughter exercises like greeting laughter, milk-shake laughter and hearty laughter can do wonders for any corporate training programme or any sort of seminar or workshop. It works without fail with all groups under all circumstances. The road becomes smooth after that and it is ‘Very Good Very Good Yay’ all the way after that..

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (4) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते ।

न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ।।4।।

कर्म न करने मात्र से निष्क्रियता मन जान

न ही कर्म के त्याग से सिद्धि का कर अनुमान।।4।।

भावार्थ :  मनुष्य न तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्मता (जिस अवस्था को प्राप्त हुए पुरुष के कर्म अकर्म हो जाते हैं अर्थात फल उत्पन्न नहीं कर सकते, उस अवस्था का नाम ‘निष्कर्मता’ है।) को यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि यानी सांख्यनिष्ठा को ही प्राप्त होता है।।4।।

 

Not by  the  non-performance  of  actions  does  man  reach  actionlessness,  nor  by  mere renunciation does he attain to perfection. ।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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मराठी साहित्य – आलेख ☆ दप्तर मुक्त  शाळा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। इसके  अतिरिक्त आप एक आदर्श  एवं सम्माननीय शिक्षिका भी हैं । आपका  यह  आलेख निश्चित ही इसका प्रमाण है कि माह में कम से कम एक दिन विद्यार्थियों के लिए “बस्ता मुक्त पाठशाला” प्रयोग उनके सर्वांगीण विकास के लिए कितना आवश्यक है।)

☆ दप्तर मुक्त  शाळा ☆

प्रचलित शिक्षण पद्धती ही कृती प्रधान व विद्यार्थी केंद्रित असल्यामुळे ती विद्यार्थ्यांना आनंददायी कशी वाटेल यावर भर असून घोकंपट्टी, अभ्यास, शिक्षा, सक्ती, या गोष्टींना गौण स्थान प्राप्त झाले असून विद्यार्थी स्वछंदी राहून कृतितून शिकला पाहिजे ही संकल्पना शिक्षण क्षेत्रात स्विकारली गेल्यामुळे .

दप्तर विना शाळा, बाल आनंद मेळावा, गणितीय बाजार सहल वनभोजन/निसर्ग सहल, परिसर भेट/ क्षेत्र भेट इत्यादी उपक्रमांना महत्त्व प्राप्त झाले..

या पैकीच एक उपक्रम  म्हणजे दप्तर विना शाळा महिन्यातून एक दिस आम्ही हा उपक्रम  घेतो. या दिवशी मुलांनी दप्तर न घेता शाळा करावयाची असते.

नुतन वर्षा निमित्त आम्ही आज हा उपक्रम घेतला. ससकाळी मुलांनी सर्व बोर्ड ताब्यात घेतले अगदी सुचना फलक सह सुंर हस्ताक्षरात मुलांनी सर्व फलकांवर शुभेच्छा लेखन केले सुंदर सजावट करून. अगदी रांगोळी काढण्या पासून ते सफाई पर्यंत सर्व कामे मुलांनी एकमेकांच्या सहकार्याने केली. सर्व शिक्षक विद्यार्थी यांना शुभेच्छा देऊन झाल्यानंतर लघु मध्यंतर घेतली. त्या नंतर त्या ऐतिहासिक पात्र ठरवून देण्यात आलेले होते त्या साठी लागणारे ढल तलवार इत्यादी भाला पट्टा , बिचवा वाघनखे इ प्रतिकृती  मुलांच्या मदतीने तयार केल्या त्यामुळे त्यांना हत्यारे व त्यांचे उपयोग समजले. मधल्या सुट्टी नंतर त्यांना ठरवून दिलेल्या पात्रांचे संवाद म्हणून घेतले. त्यांना यू ट्युब वरील व्हीडीओ दाखवल्यामुळे ते बर्याच प्रमाणात मुलांनी हुबेहूब वटवण्याचा प्रयत्न केला त्यामुळे जे पाठांतर रागवून दडपशाहीने झाले नसते ते पाठांतार मुलांनी उत्तम प्रकारे व सहजतेने केले .शिवाय साभिनय सादरीकरण केल्याने वाचन अस्खलीत  केले योग्य स्वराघातासह केले .प्रत्येकाला वेगळा संवाद निवडून घेतलेला असल्यामुळे पूर्ण पुस्तकाची उजळणी झाली तिही न कंटाळता अगदी आनंददायी पद्धतीने. म्हणून महिन्यातून किमान एक दिवस अशी दप्तराविना परंतु नियोजन बद्ध शाळा आवश्य घ्यावी ज्यामुळे अभ्यास तर होतो परंतु तणाव रहीत वातावरणात. यात परस्पर  सहकार्य नेतृत्व धाडस सभाधीटपणा इ गुणांचे मूल्यमापन करता येईल अनेक चांगल्या सवई मुलांना लावता येतील.

शिवाय हा मुलांचा सर्वात आवडता उपक्रम ठरतो.

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga Exchange Programme ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Laughter Yoga Exchange Programme ☆Jagat Singh Bisht

Carolyn Laughalot and Desmond Nicholson, Laughter Yoga Leaders from Eltham Laughter Club, Melbourne, Australia visited Suniket Laughter Club and Laughter Club of State Bank Learning Centre, Indore, India under the exchange programme of Laughter Yoga International Clubs. They also giggled with the school girls of Sarada Ramakrishna School, Indore and laughed with their teachers.

It was an enriching experience for the members of these clubs in Indore as Carolyn and Desmond enthralled them with the Victorian flavour of Laughter Yoga, especially Giggle and Wriggle, New Zealand Rugby Hakka Laughter and Donkey Laughter.

Carolyn and Desmond were guests of Dr Madan Kataria, the founder of Laughter Yoga, at Bangalore. They stayed with us at Indore and we had deep discussions till late in the night on the inner spirit of laughter, new laughter exercises and the manner in which we conduct laughter sessions.

While we appreciated their fusion of energy healing and dance with Laughter Yoga, they loved Follow-the-Leader and Singing+Dancing+Playing+Laughing=Joy incorporated in our laughter sessions. While switching between laughter, they used Hoho Hahaha and deep breathing; whereas in our clubs we use Very Good Very Good Yay more often. They loved Cricket Laughter exercise created in our club and Desmond added a piece to it.

I prepared Indian Chai (Tea) for them every morning while my wife Radhika, who is also a Laughter Teacher, cooked Poha (Rice flakes) for them in the Indorean style which they relished. My mother, who is almost 80 years old, usually doesn’t prefer to move out of house, accompanied us for an excursion to nearby Maheshwar and Mandu, which are places of great historical value, as she felt that it would be too long a day without her new found daughter Carolyn. I had long, leisurely strolls with Desmond, who has a great sense of humour, in the evenings and talked about everything from Cricket to Kashmir and Australian grapes to Indian wine.

We would like to express our gratitude to Dr Madan Kataria who arranged this exchange and would like to share that these exchanges are really great experiences. The Times of India, The Hindustan Times and the local Hindi papers gave a wide coverage to this exchange programme which has been encouraging for the laughter lovers in this part of the country.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)

श्रीभगवानुवाच –

लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।

ज्ञानयोगेन साङ्‍ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्‌।।3।।

 

भगवान ने कहा-

इस जग में निष्ठायें दो,प्रथम कहे अनुसार

सांख्यों की है ज्ञान में योगी कर्माधार।।3।।

      

भावार्थ : श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा (साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम ‘निष्ठा’ है।) मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से (माया से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं, ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहने का नाम ‘ज्ञान योग’ है, इसी को ‘संन्यास’, ‘सांख्ययोग’ आदि नामों से कहा गया है।) और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से (फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवदर्थ समत्व बुद्धि से कर्म करने का नाम ‘निष्काम कर्मयोग’ है, इसी को ‘समत्वयोग’, ‘बुद्धियोग’, ‘कर्मयोग’, ‘तदर्थकर्म’, ‘मदर्थकर्म’, ‘मत्कर्म’ आदि नामों से कहा गया है।) होती है।।3।।

 

In this  world  there  is  a  twofold  path,  as  I  said  before,  O  sinless  one,-the  path  of knowledge of the Sankhyas and the path of action of the Yogis! ।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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