मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? दवाचा मोती ? – –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
द्वितीय अध्याय
साँख्य योग
( स्थिरबुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा )
अर्जुन उवाच
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥
अर्जुन ने पूँछा
केशव समझायें मुझे स्थिर प्रज्ञ का रूप
कैसी उसकी रीति गति भाषा रहन अनूप।।54।।
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?।।54।।
What, O Krishna, is the description of him who has steady wisdom and is merged in the Superconscious State? How does one of steady wisdom speak? How does he sit? How does he walk? ।।54।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
ई-अभिव्यक्ति: संवाद–28
यह जीवन चक्र है जिसमें हम जीते हैं। कभी मैंने लिखा था :
The Life after death
is definite
and
the journey
between life and death
is
definition of Life
हम जन्म से मृत्यु तक पाते हैं कि हर समय हमारे सिर पर किसी न किसी का हाथ होता है। वह हाथ माता पिता, गुरु, वरिष्ठ …… या वह वरिष्ठ पीढ़ी जिसने सदैव हमें मार्गदर्शन दिया है।
अभी 17 अप्रैल 2019 के अखबार में भारत सरकार का एक विज्ञापन देखा। मैं नहीं जनता कि कितने लोगों नें उस पर ध्यान दिया है और कितने व्योश्रेष्ठ इस सम्मान के लिए अपना आवेदन देंगे। इस व्योश्रेष्ठ सम्मान का विज्ञापन निम्नानुसार है।
विस्तृत जानकारी के लिए देखें www.socialjustice.nic.in
अब यह हमारा दायित्व बनता है कि हम ढूंढ ढूंढ कर ऐसी पीढ़ी के मनीषियों के लिए उनकी ओर से आवेदन भरने में मदद करें।
आज के लिए बस इतना ही।
हेमन्त बवानकर
24 अप्रैल 2019
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
“सवाल एक – जवाब अनेक (6)”
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के एक प्रश्न का विभिन्न लेखकों के द्वारा दिये गए विभिन्न उत्तरआपके ज्ञान चक्षु तो अवश्य ही खोल देंगे। तो प्रस्तुत है यह प्रश्नोत्तरों की श्रंखला।
वर्तमान समय में ठकाठक दौड़ता समाज घोड़े की रफ्तार से किस दिशा में जा रहा, सामूहिक द्वेष और स्पर्द्धा को उभारकर राजनीति, समाज में बड़ी उथल पुथल मचा रही है। ऐसी अनेक बातों को लेकर हम सबके मन में चिंताएं चला करतीं हैं। ये चिंताएं हमारे भीतर जमा होती रहतीं हैं। संचित होते होते ये चिंताएं क्लेश उपजाती हैं, हर कोई इन चिंताओं के बोझ से त्रास पाता है ऐसे समय लेखक त्रास से मुक्ति की युक्ति बता सकता है। एक सवाल के मार्फत देश भर के यशस्वी लेखकों की राय पढें इस श्रृंखला में………
तो फिर देर किस बात की जानिए वह एकमात्र प्रश्न और उसके अनेक उत्तर। प्रस्तुत है छठवाँ उत्तर दुर्ग, (छत्तीसगढ़) के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री विनोद साव जी की ओर से –
सवाल : आज के संदर्भ में, क्या लेखक समाज के घोड़े की आंख है या लगाम ?
सुश्री ज्योति हसबनीस
थरार
उजाडती किलबिलती रम्य सकाळ,
बागेतला हिरवा चैतन्य खळाळ
लाल साज ल्यालेली गोजिरी लीली
कृष्णकमळ लेवून वेल बहरलेली
नाजुकशी साद अचानक कानी पडली
भिरभिरती नजर त्या दिशेने रोखली
पानांआड दिसत होता झुपकेदार शेपटा
क्षणांत दृष्टीस पडला खारूताईचा मुखडा
वाकून खाली बघत तिचा चालू होता सतत ओरडा
वाळक्या काटकीला घट्ट बिलगला होता तिचा काळजाचा तुकडा
पाळीवर त्या माऊलीची सैरावैरा धावपळ सुरू झाली ,
पिल्लाला वाचविण्याची अखंड धडपड तिची सुरू झाली
करावी का मदत आपण विचार आला मनी
पण विपरित काही घडलं तर… याची भीती होती मनी
लोंबकळून, कसरत करून पिल्लाचा धीर खचला
तोल सावरता सावरता काटकी भवतालचा विळखाच सुटला
असे काही घडेल ह्याची कल्पना होतीच
पण माऊलीच्या धडपडीला यश येईल ह्याचीही खात्री होतीच
काळजात धस्स झाले हो पाहता पडतांना छोटूलीला
पण कोण आनंद झाला म्हणून सांगू , बघून तिला कुमुदिनीवर अलगद विसावतांना
सुर्रकन् उतरून आली खाली खारूताई
कुंडापाशी डोकावून शोधू लागली पिल्लांस आई
बघून पिल्लांस सुखरूप माऊलीचा जीव तो निवला
अलगद पकडून लहानग्यास भर्रकन् झाडाच्या दिशेने पळाला
आईची माया अजोड आहे मनोमन साक्ष पटली
वात्सल्याला तोड नाही खुणगाठ पक्की बांधली
देव तारी त्याला कोण मारी प्रचिती याची आली
सकाळच्या त्या थरार नाट्याने सुरूवात रोमांचक झाली
© सौ. ज्योति हसबनीस
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
द्वितीय अध्याय
साँख्य योग
( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
(कर्मयोग का विषय)
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ।।53।।
सुने प्रवादों को भूला जब होगा मन शांत
पा पायेगी बुद्धि तब सहज योग का प्रांत।।53।।
भावार्थ : भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा ।।53।।
When thy intellect, perplexed by what thou hast heard, shall stand immovable and steady in the Self, then thou shalt attain Self-realisation. ।।53।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
Shri Jagat Singh Bisht
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☆ अविश्वासं फलम् दायकम् ☆
(प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी का सटीक एवं सार्थक व्यंग्य। )
विश्वास बनाये रखने को कहते हैं. “विश्वासं फलम् दायकम्” ढ़ाढ़स बंधाने के काम आता है. भक्त बाबा जी के वचनो पर मगन झूमता रहता है. सदियो से “विश्वासं फलम् दायकम्” का मंत्र फलीभूत भी होता रहा है . अपना सब कुछ , घरबार छोड़कर नवविवाहिता नितांत नये परिवार में इसी विश्वास की ताकत से ही चली आती है और सफलता पूर्वक नई गृहस्थी बसा कर उसकी स्वामिनी बन जाती है. भरोसे से ही सारा व्यापार चलता है.
पर जब मैं नौकरी के संदर्भ में देखता हूं, योजनाओ की जानकारियो के ढ़ेर सारे फार्मेट देखता हूं और टारगेट्स की प्रोग्रेस रिपोर्ट का एनालिसिस करते अधिकारियो की मीटिंगो में हिस्सेदारी करता हूं तो मुझे लगता है कि इनका आधारभूत सिद्धांत ही अविश्वासं फलम् दायकम् होता है. किसी को किसी के कहे पर कोई भरोसा ही नही होता , स्मार्टफोन के इस जमाने में हर कोई फोटो प्रूफ चाहता है . “इफ और बट” वादो के दो बड़े दुश्मन होते हैं . अधिकारी लिखित सर्टिफिकेट से कम पर कोई भरोसा नहीं करता . अविश्वासं फलम् दायकम् के बल पर वकीलो की चल निकलती है, एफीडेविट, और पंजीकरण के बिना न्यायालयो के काम ही नही चलते. अविश्वास के बूते ही रजिस्ट्रार का आफिस सरकार का कमाऊ पूत होता है.
भरी गर्मी में पसीना बहाते चुनावी रैलियां और भाषण करते नेताओ को देखकर विश्वास करना पड़ता है कि इन सब को वोटर पर और तो और खुद की की गई कथित जनसेवा पर तक तन्निक भी भरोसा नही है . वरना भला जिस नेता ने पांच सालो तक वोटर की हर तरह से खिदमत की हो उसे अपने लिये मुंए वोटर से महज एक वोट मांगने के लिये इस तरह साम दाम दण्ड भेद , मार पीट , लूट पाट , खून खराबा न करवाना पड़ता . बेवफा वोटर को लुभाने के लिये जारी सारे घोषणा पत्र , वचन पत्र और संकल्प पत्र यही प्रमाणित करते हैं कि राजनेता वोटर संबंध अविश्वासं फलम् दायकम् के मंत्र पर ही काम करते हैं . चुनाव जीतने से पहले नेता वोटर पर अविश्वास करता है और चुनाव जीत जाने के बाद खुद पर वोटर के अविश्वास को प्रमाणित करने में जुटा रहता है . अविश्वास का ही फल होता है कि शर्मा हुजूरी कुछ जन कल्याण के काम हो ही जाते हैं , क्योकि बजट खतम करने की एक लास्ट डेट होती है , अविश्वासं फलम् दायकम् के चलते ही काम के लिये पर्सु॓एशन किया जाता है, कुछ काम समय पर हो जाते हैं.आाकड़ो में सजा हुआ विकास दरअसल अविश्वासं फलम् दायकम् का ही सुफल होता है. इसलिये कुछ भरोसे लायक पाना हो तो भरोसा ना करिये.
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८
विवेक रंजन श्रीवास्तव
श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
खुशनुमा माहौल में ग़म को उठाए कैसे
ऐसे हालात ग़ज़ल गाएं तो गाएं कैसे
तेरी शहनाई बजी डोली उठी आँगन से
अश्क नादाँ जो बहे उस को छुपाएं कैसे
मोम का दिल हैं मेरा ओ तो पिघल जायेगा
मोम पत्थर सा बनाए तो बनाएं कैसे
गिर गये प्यार के अंबार से तो दर्द हुआ
दर्द सीने में तो हमदर्दी जताए कैसे
मान हम जायेंगे दे के तसल्ली झूठी
मानता दिल ए नही उस को मनाए कैसे
जल गए याद सें लिपटे ही रहे हम तेरे
जल गया हैं जो उसे फिर से जलाए कैसे
वह उठाकर जो चले हैं ये जनाजा मेरा
हाथ उठते ही नहीं दे तो दुआए कैसे
© अशोक भांबुरे, धनकवडी, पुणे.
मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८
श्यामला (ज्योत्स्ना) जोशी
(प्रसिद्ध मराठी गीतकार, संगीतकार एवं गायिका श्यामला(ज्योत्स्ना)जोशी जी का विरह वेदना पर आधारित यह गीत, एक भावप्रवण एवं अनुपम उदाहरण है।
सोडूनी तू जातांना मजला
सांग मी राहू कशी ?
दूर दूर जातांना तुजला
सांग मी पाहू कशी..? //धृ//
भोगलेल्या त्या सुखांना
सांग मी विसरू कशी ?
ओघळणार्या आसवांना
सांग मी अडवू कशी..? //१//
पोळलेल्या भावनांना
सांग मी विजवू कशी ?
रंगविलेल्या त्या स्वप्नांना
सांग मी पुसू कशी..? //२//
या हृदयाच्या यातनांना
सांग मी दावू कशी ?
प्रेम सागर अमर अपुला
सांग बांध घालू कशी..? //३//
तू दिलेल्या त्या गीताला
सांग सूर लावू कशी ?
कंठ माझा दाटून आला
सांग मी गाऊ कशी..? //४//
संशयी नज़रा त्या लोकांच्या
सांग मी टाळू कशी ?
अडखळली पाऊले ही
सांग मी जाऊ कशी..? //५//
निरोप देतांना विरह वेदना
सांग मी लपवू कशी ?
तूच माझा जीवनसाथी
सांग मी पटवू कशी..? //६//
®©- *श्यामला(ज्योत्स्ना)जोशी. पुणे*
*गीतकार-संगीतकार-गायिका*
मो.नं
9823250197
7378327402