श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “सुघड़ बहू ”। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से समाज को अभूतपूर्व संदेश देने के लिए बधाई ।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 14 ☆
☆ सुघड़ बहू ☆
माधवी बहुत सुशील संस्कार वान लड़की शादी से दुल्हन बन कर ससुराल आई। कुछ दिनों के बाद सभी मेहमानों के जाने के बाद घर के सदस्य बच गये। वहां एक बहुत ही खराब आदत थी, खाना खाने के बाद उसी थाली में कुल्ली कर हाथ धोने की। जो माधवी को कहीं से भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने अपने पतिदेव से कही, उन्होंने भी कह दिया हमारे यहां सभी ऐसा ही करते है। तुम नया कुछ नहीं कर सकती।
माधवी ने भी सब को अच्छी आदत डालने का बीडा उठाया।
खाना परोसने के बाद वह वहीं खड़ी रहती। एक हाथ में पानी और दूसरे हाथ पर हाथ धोने वाला बर्तन। सबको हाथ धुलाती थी। और फिर बर्तन बाहर रख कर आ जाती थी। सबको बहुत बुरा लगता था। कई बातें भी बनती थी। परन्तु जो गलत था उसे वह सुधार रहीं थीं। धीरे-धीरे सभी को समझ आने लगा। वास्तव मे जो जूठे बर्तन उठाये जिसमें सुबह शाम हाथ धोकर कुल्ला किया जाये, तो उसको कितना खराब लगता होगा।
अब तो सब बाहर एक निश्चित जगह पर जाकर हाथ धोने लगे। पतिदेव भी खुश थे कि जो अच्छा काम है। उसे अपना लेना चाहिए। अब तो देखा-देखी सभी इस का ख्याल करने लगे।
माधवी सब के लिये अब “सुघड़ बहु ‘बन गई। उसे भी एक नयी पहल पर अच्छा लगा। अपनी जीत पर मुस्कुराने लगी।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश