हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ काश्मीर दर्शन ☆ – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  पृथ्वी के स्वर्ग – काश्मीर पर एक अभूतपूर्व कविता “काश्मीर दर्शन”।) 

 

 ☆ काश्मीर दर्शन ☆

 

नभ चुम्बी हिमाच्छादित पर्वत शिखरों से अति भासमान

भारत माता के दिव्य भाल काश्मीर तुम हो अनुपम विधान

 

तुम इस धरती पर स्वर्ग सुखद अति शांति दाई सौंदर्य धाम

हर कंण हर वन हर वृक्ष नदी हर जलधारा मोहक ललाम

 

तुम प्रकृति सुंदरी के निवास पावन आकर्षक  प्रभावन

तुम परम अलौकिक सुंदरतम रूप तुम्हारा कांतिमान

 

दिखता नहीं भू भाग कोई जो हो तुम सा सुंदर महान

हर छोर बिछी सुखद हरीतिमा नीचे नीला आसमान

 

गरिमा गौरव से भरे हुए दिखते सैनिक से देवदार

नभतल में मनमोहक घाटी जिनमें बहते निर्झर हजार

 

गिरि शिखर शोभते हैं शिव से जो तन पर धारे भस्म राग

जो निर्निमेष नित शांत नयन जिन में दिखता गहरा विराग

 

दर्शक के मन में श्रद्धा का भर जाता लखकर सहज भाव

हर यात्री पर परिवेश सदा भर देता है पावन प्रभाव

 

पावनता में है सच्चा सुख आनन्द भरा जिसमें अनन्त

सदियों से इससे प्रकृति की गोद में बसते आए साधु संत

 

 

मनमोहक छवि के विविध रूप हर लेते मन के दुख तमाम

ज्यों सोनमर्ग गुलमर्ग झील डल और आकर्षक पहलगांव

 

सरिता वन पर्वत पवन गगन सब देते हैं संदेश मौन

मन के पवित्र स्नेह भाव बिन सुख दे सकता है कहां कौन

 

नित हरी-भरी सुखदाई परम पावन पवित्र है प्रकृति गोद

जिसका दर्शन स्पर्श सदा हर मन  में भर देता प्रमोद

 

सारा पावन परिवेश प्रकृति सब नदी वृक्ष धरती आकाश

देते हैं शुभ संदेश यही सब हिलमिल जग में रहो साथ

 

केसर चैरी अखरोट सेव के बहुत धर्मी हम वृक्ष बाग

धरती मां से पा जीवन रस रहते सुख से सब भेद त्याग

 

हम  भिन्न जाति  और भिन्न रंग पर हममें न कोई भेद

तुम बुद्धिमान मानव आपस में लड़ क्यों करते नए छेद

 

मानव तू भी तज द्वेष द्वंद छल छद्म और कलुषित विचार

अपने अंतरतम की सुन पुकार स्नेह भाव रख बन उदार

 

क्यों फंसकर  विविध प्रलोभन में करता रहता नित नवल घात

है प्रेम भाव में शांति और सुख जो अनुपम  शिव का प्रसाद

 

ऊंचे हिम शिखरों पर ही जहां बसते हैं हिम शिव अमरनाथ

जिनके दर्शन के पुण्य लाभ हित  यात्रा करता देश  साथ

 

हर दिव्य  दृश्य अनमोल शांति शीतलता का मंजुल निखार

सब साथ सदा मिल दर्शक को आध्यात्मिकता में देते उतार

 

लगता यों जगत नियंता खुद है यहाँ प्रकृति में प्राणवान

मिलता नयनो को अनुपम सुख देखो धरती या आसमान

 

जग सब उलझन भूल जहाँ मन को मिलता पावन विराम

हे धरती पर अविरत स्वर्ग काश्मीर तुम्हें शत शत प्रणाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – जीवन की सवारी ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जीवन की सवारी 

भयमिश्रित एक चुटकुला सुनाता हूँ। अँधेरा हो चुका था। राह भटके किसी पथिक ने श्मशान की दीवार पर बैठे व्यक्ति से पूछा,’ फलां गाँव के लिए रास्ता किस ओर से जाता है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मुझे क्या पता? मुझे तो गुजरे 200 साल बीत चुके।’

पथिक पर क्या बीती होगी, यह तो वही जाने। अलबत्ता यह घटनाक्रम किसी को डरा सकता है, चुटकुला है सो हँसा भी सकता है पर महत्वपूर्ण है कि डरने और हँसने से आगे चिंतन की भूमि भी खड़ी कर सकता है। चिंतन इस बात पर कि जो जीवन तुम बिता रहे हो, वह जीना है या गुजरना है?

अधिकांश लोग अपनी जीवनशैली, अपनी दैनिकता से खुश नहीं होते। वे परिवर्तन जानते हैं पर परिवर्तित नहीं होते। पशु जानता नहीं सो करता नहीं। मनुष्य जानता है पर करता नहीं।

”आपकी रुचि कौनसे क्षेत्र में हैं?”…”मैं नृत्य करती थी। नृत्य मेरा जीवन था पर ससुराल में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता था, तो….”,  “शादी से पहले मैं पत्र-पत्रिकाओं में लिखती थी। पति को यह पसंद नहीं था सो….”, “मैं तो स्पोर्ट्स के लिए बना था पर….”, “घुमक्कड़ी बहुत पसंद है। अब व्यापार में हूँ। बंध गया हूँ….।”

टू व्हीलर पर जब सवारी करते हैं तो अलग ही आनंद आता है। कई बार लगता है मानो हवा में उड़ रहे हैं। यही टू व्हीलर रास्ते में  पंक्चर जाये और ढोकर लाना पड़े तो बोझ लगता है।

जीवन ऐसा ही है। जीवन की सवारी कर हवा में उड़ोगे तो आसमान भी पथ पर  उतर आया अनुभव होगा। जीवन को ढोने की आदत डाल लोगे तो ढोना और रोना, दोनों समानार्थी लगने लगेंगे।

मनोविज्ञान एक प्रयोग है। हाथी के पैर में चार रोज नियमित रूप से रात को बेड़ी डालो, सुबह खोल दो। पाँचवें दिन बेड़ी डालने का ढोंग भर करो। हाथी रोज की तरह खुद को बेड़ी में बंधा हुआ अनुभव करेगा। आदमी बेड़ी के इसी ढोंग का शिकार है।

आमूल परिवर्तन का अवसर हरेक को नहीं मिलता। जहाँ है वहाँ उन स्थितियों को अपने अनुकूल करने का अवसर सबको मिलता है। उस अवसर का बोध और सदुपयोग तुम्हारे हाथ में है।

सुख यदि धन से मिलता तो मूसलाधार बरसात में भागते-दौड़ते, उछलते-कूदते, नहाते, झोपड़ियों में रहने वाले नंगधड़ंग बच्चों के चेहरे पर आनंद नहीं नाचता और कार में बंद शीशों में बैठा बच्चा उदास नहीं दिखता।

शीशा नीचे कर बारिश का आनंद लेने का बटन तुम्हारे ही हाथ में है। विचार करो, जी रहे हो या गुजार रहे हो? बचे समय में कुछ कर गुजरोगे या यूँ ही गुजर जाओगे?

 

समय रहते कुछ कर गुजरो। वह समय आज ही है। शुभ आज।

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©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 11 – घरौंदा ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “घरौंदा ”। यह लघुकथा हमें परिवार ही नहीं पर्यावरण को भी सहेजने का सहज संदेश देती है। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी की कलम को इस बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से  समाज  को अभूतपूर्व संदेश देने के लिए  बधाई ।)

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 11 ☆

 

☆ घरौंदा  ☆

 

गाँव कहते ही मन में बहुत ही अच्छी बातों का चित्रण हो आता है। बैलों की घंटी, मंदिर में पंडित जी का भजन-श्‍लोक, पनघट से पानी भरकर लाने वाली महिलाओं की टोली, नुक्कड़ पर चाय पकोड़े का छोटा सा टपरा और कई बातें । चारो तरफ हरियाली । ये बात अब और है कि अब गाँव भी ईट सीमेंट का हो गया । हरियाली और चौपाल जैसे खतम सी हो गई ।

बहरहाल गांव का चित्रण – सुन्दर छोटा सा एक गाँव। गाँव में मुखिया अपने परिवार सहित रहते थे । छोटे छोटे दो पुत्र और उनकी धर्मपत्नी । सभी उनका आदर सत्कार करते थे । मुखयानी तो पुरे गाँव को अपना सा प्रेम करती थी । हमेशा सेवा सत्कार में जुडी़ रहती थी । साफ सुथरा उनका घर और आँगन के बीच एक आम का वॄक्ष। जैसे-जैसे बच्‍चे बड़े हो रहे थे,  आम का पेड़ भी उनकी खुशियों पर दिन रात शमिल था। और हो भी क्यों न मुखिया जी थक हार कर आते और आम के पेड़ के नीचे ही खाट बिछा आराम करते और सब उसकी छांव में बैठे रहते । पेड़ पर बच्चों का झूला भी बंधा हुआ था। शाम को सभी आम के पेड़ के नीचे बातचीत करते और बच्चे खेलते नजर आते।

 

समय बीतता गया, मुखिया जी ने बड़े बेटे का विवाह तय किया। घर में रौनक बड गई। बड़ी बहु के आने से मुखियानी को समय मिलने में राहत हुई। चौपाल ज्यादा समय तक लगने लगी थीं। समय आनंद से बीत रहा था। तीन साल बाद दूसरे बेटे की शादी भी बड़ी धूमधाम से हुआ। बड़े बेटे को प्रथम पुत्र प्राप्ति हुई। सभी बहुत खुश थे। परिवार पूर्ण रूप से भरा-भरा हो गया था। सभी अपने-अपने कामों पर लगे रहते थे। दिनभर के काम के बाद सभी आम के पेड़ के नीचे बैठ जाते जहाँ और भी महिलाएँ बच्चों सहित आकर बैठ जाते थे। समय बीत रहा था।  कहते हैं जहां चार बरतन होती हैं वहाँ खटकने की आवाज आने लगती है। घर में दिन रात किट-किट होने लगी बहुओं में जरा भी ताल मेल नहीं जम रहा था। सास बिचारी परेशान दिन भर अपना समय आम के पेड़ के नीचे ही बिताने लगी। उसका अपना घरौंदा बन गया। अब मुखिया जी भी बाहर से आते और घर के अंदर जाने के बजाय वही दोनों आम के पेड़ के नीचे खाट डाल कर बैठ जाते। परन्तु खिट-पिट  बन्द नहीं हुई। दोनों भाइयों ने घर का बटवारा कर डाला। आँगन की बारी आई तो बीच में आम का पेड़ आ रहा था। गाँव के पंचो ने सलाह दिया कि दोनों दिवाल बना ले पेड़ नहीं काटने देगें। दोनों ने वैसा ही किया पर बात बनी नहीं। आम के सीजन में जब फल लगने लगे बड़ा भाई छोटे भाई के तरफ के फल ही गिरा देता रात के अंधेरे में छोटा भाई भी फल क्या टहनियाँ भी काट कर गिरा देता था। कभी पूरा पेड़ आम से लदा रहता आज बस ठूंठ की तरह दिखाई दे रहा है। बहाना मिल गया दोनों को पेड़ काटने का। पेड़ काट कर उसका बंटवारा कर लिया गया।

मुखिया की पत्नी ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसका देहांत हो गया। घर से मुखिया जी भी निकल कर कहीं चले गये। पूरा घर वीरान हो चुका। न चिड़ियों की चहचहाहट न बच्चों की नटखट टोली और न महिलाओं का समूह।

दोनों भाइयों को अपने घरौंदे देख बहुत दुख और पश्चाताप हुआ। पर समय निकल चुका था। परन्तु दोनों ने अपनी गलती मान पेड़ और पर्यावरण को बचाने का संकल्प ले अपनी गलती सुधारने का मौका लिया। और आज उसी क्षेत्र में आगे बढ रहे हैं। दोनों बहुओं को भी समझ में आ गया था कि परिवार और घरौंदा दोनों सुख शांति के लिए आवश्यक है। एक बार फ़िर से मुखिया का घर हरा भरा हो गया।

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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #11 – उच्छ्वास मोगऱ्याचा ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण  एवं सार्थक कविता  “उच्छ्वास मोगऱ्याचा”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 11 ☆

? उच्छ्वास मोगऱ्याचा ?

 

उच्छ्वास मोगऱ्याचा तू हा लुटून घ्यावा

प्रीतीत गंध माझ्या त्याचाच हा पुरावा

 

मेंदी, हळद, सुपारी जातील सोडुनी मज

हातात फक्त माझ्या चेहरा तुझा दिसावा

 

आकाश चांदण्यांचे मागीतले कुठे मी

तारा बनून माझ्या तू सोबती असावा

 

मज ओढ सागराची भिजवून टाकते ही

होडीत मासळीवर बरसून मेघ जावा

 

ही लाट उसळते का मेध उसळतो हा

कोण्या मिठीत कोणी लागेच ना सुगावा

 

डोळ्यांमधील वादळ बोलून सर्व जाते

ओठांत शब्द नाही हा वाजतोय पावा

 

मत्सर कशास माझा करतात चांदण्या या

बहुतेक सोबतीला त्यांचा सखा नसावा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (42) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन )

( ज्ञान की महिमा )

 

तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः ।

छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ।।42।।

 

अतःपार्थ!अपने संशय को ज्ञान शस्त्र से छिन्न करो

कर्म योग का करो आचरण उठकर आगे युद्ध करो।।42।।

 

भावार्थ :  इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू हृदय में स्थित इस अज्ञानजनित अपने संशय का विवेकज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्वरूप कर्मयोग में स्थित हो जा और युद्ध के लिए खड़ा हो जा।।42।।

 

Therefore, with the sword of knowledge (of the Self) cut asunder the doubt of the self born of ignorance, residing in thy heart, and take refuge in Yoga; arise, O Arjuna! ।।42।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानकर्मसंन्यास योगो नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥4॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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हिन्दी साहित्य- आलेख – ☆ मित्र और मित्रता ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

मैत्री दिवस विशेष 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है । आप  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है।आज प्रस्तुत है मैत्री दिवस पर आपका विशेष आलेख “मित्र और मित्रता”। 

हम भले ही  मित्रता दिवस वर्ष में एक ही दिन मनाते और मित्रों का स्मरण करते हैं।  किन्तु, मित्रता सारे वर्ष निभाते हैं। अतः  मित्रता दिवस पर प्राप्त आलेखों एवं कविताओं का प्रकाशन सतत जारी है। कृपया पढ़ें, अपनी प्रतिक्रियाएँ दें तथा उन्हें आत्मसात करें।) 

संक्षिप्त परिचय 

शिक्षा : हिंदी साहित्य में एम ए प्रथम, (मेरिट) बी एड और पीएचडी

सम्मान एवं सेवाएँ :

  • महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन सम्मान से सम्मानित
  • महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्व विद्यालय में त्रिदिवसीय संगोष्ठी में आमंत्रित और शोध पत्र वाचन
  • ”हीर कणी” पुरस्कार से सम्मानित
  • इंडियन एयर फोर्स में एजुकेशन इंस्ट्रक्टर के तौर पर सेवाएँ प्रदत्त
  • गृह पत्रिका” किरण ” की 25 वर्ष संपादक रहीं। इस दौरान पत्रिका को और संस्थापक संपादक के रूप में स्वयं को रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय के अनेक पुरस्कार से सम्मानित।
  • अति उत्कृष्टता एवं निष्ठा हेतु एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ के एओसी-इन-सी कमान- कमेंडेशन से सम्मानित।
  • विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन की तीन दशकों से माननीय प्रतिनिधि  एवं सामाजिक साहित्यिक संस्थाओं की सम्मानित पदाधिकारी
  • शिक्षा संस्थानों तथा प्रतिष्ठित सरकारी गैर सरकारी संगठनों में अतिथि वक्ता, अध्यक्ष निर्णायक के रूप में सतत आमंत्रित।
  • पांच दिवसीय बहुभाषी विदर्भ नाट्य समारोह में सम्मानित निर्णायक
  • मेडिकल विषयों से संबंधित तीन डाक्टरों की पुस्तकों का अनुवाद,
  • नागपुर के प्रतिष्ठित डाक्टरों की एन जी ओ एडोल्सेंट चैप्टर की सम्मानित कार्यकर्ता और पुरस्कारों से सम्मानित।
  • इंडियाज हूज हू हेतु नामित रह चुकी।
  • आरंभ से सेवानिवृत्त तक लगभग 30 वर्षों तक महिला आयोग की अध्यक्ष रही।
  • एयरफोर्स वाईव्ज वेलफेयर एसोसिएशन के कार्यक्रमों में २५ वर्ष तक अनवरत सहयोगी
  • अखिल भारतीय अग्नि शिखा मंच की नागपुर ईकाई की अध्यक्ष
  • ”रचना ” की उपाध्यक्ष

☆ मित्र और मित्रता ☆

 

मित्र और मित्रता देखने दिखाने की नहीं, महसूस करने की चीज है।जब तक ब्रम्हांड में हर शै एक दूसरे की मित्र हैं तभी तक यह पृथ्वी और इसके निवासी सुरक्षित हैं। क्षिति जल पावक गगन समीरा – – – इनका संतुलन ही पर्यावरणीय मित्रता  की द्योतक है। “जियो और जीने दो “इस मित्रता की प्रथम शर्त है तो दूसरी ओर survival of the fittest भी अत्यावश्यक है। यह विरोधाभास ही ब्रम्हांड का क्षितिजीय सत्य है। तो चलिए मित्रता-दिवस के व्यापक अर्थों में घुसपैठ करें और ब्रम्हांड की समस्त विधाओं में पर्यावरणीय मित्रता की हिमायत करते हुए इस मित्रता दिवस को वैश्विक मित्रता से जोड़ें।

आसपास का वातावरण शुभ होगा तो दिलों में शुभता अपने आप उद्भासित होगी और मानवीय मित्रता में भी शुभता का आविर्भाव होगा। अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से ही जंगल राज का प्रादुर्भाव होता है। मित्रता अनाम शै बन जाती है।

ना कृष्ण सुदामा की मैत्री आदर्श है ना दुर्योधन कर्ण की–मैत्री के मानदंड परिवर्तनशील होते हैं और होने भी चाहिए। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या? ब्रम्ह सत्य है– मगर यहां मित्रता अपेक्षित ही कब है! मित्रता की परिभाषा में आपका किसी के प्रति अतिरिक्त स्नेह भाव शामिल है जो दिल से होता है। सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है कि कभी-कभी कोई व्यक्ति अनायास आपके दिल के द्वार पर दस्तक देता है एकाएक आपको अच्छा लगने लगता है और कोई बरसों तक निकटता के बावज़ूद भी दिल के करीब नहीं हो पाता—- इसका अर्थ यह नहीं कि वह आपका शुभेच्छु नहीं है शायद वह आपका सबसे बड़ा शुभचिंतक होगा लेकिन दिल बड़ा निर्णायक होता है मित्रता के चयन के मामले में।

मैया को अपना काला कलूटा बदसूरत बेटा भी कनुआ कन्हैया लगता है – – कुछ ऐसा ही अदृश्य अपनापन अनिवार्य होता है  सच्ची मित्रता के संगोपन के लिए। कहावतें पुरानी हुई  – – “The friend in need is a friend indeed”। आजकल ” in need और indeed” की परिभाषाएं बदल गई हैं। आपके अर्थतंत्र के हिसाब से अर्थों के अर्थ निर्धारित किए जाते हैं। कहा जाता था धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपतकाल परखिए चारी ” लेकिन ये मानदंड भी बदल गये हैं। छलछंदी आपतकाल भी वे ही मित्र ले आते हैं जो आपके साथ खडे़ होने का दावा करते हैं।

खैर जिंदगी चल रही थी चल रही है चलती रहेगी हमेशा। बात से बात चल कर बात बनती ही रहेगी फिर हम क्यों  कुछ सोचने पर मजबूर करें अपने आप पर कि काजीजी दुबले क्यों, तो शहर के अंदेशे से चलिए निकल लेते हैं एक हाईकु की पतली गली से – – अर्ज किया है

 

मित्र दिवस

स्वप्न जीवी सच

धूप पावस।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” ✍

नागपुर, महाराष्ट्र

4 अगस्त 2019

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ मित्रता दिवस पर एक पत्र कविता ☆ – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’’

मैत्री दिवस पर विशेष 

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  की   मित्रता पितृ पर दिवस पर विशेष  एक पत्र कविता

 

हम भले ही  मित्रता दिवस वर्ष में एक ही दिन मनाते और मित्रों का स्मरण करते हैं।  किन्तु, मित्रता सारे वर्ष निभाते हैं। अतः  मित्रता दिवस पर प्राप्त आलेखों एवं कविताओं का प्रकाशन सतत जारी है। कृपया पढ़ें, अपनी प्रतिक्रियाएँ दें तथा उन्हें आत्मसात करें।) 

 

☆ मित्रता दिवस पर एक पत्र कविता ☆

 

नमस्कार, प्रिय मित्र!

तुम्हारा पत्र मिला

पढ़कर जाने

सब हालचाल

और कुशल क्षेम

के समाचार,

मैं भी यहाँ मजे में

स्वस्थ, प्रसन्नचित्त हूँ

सह परिवार।।

 

मित्र! तुम्हारा पत्र

सुखद आश्चर्य लिए

कुछ चिंताओं का

मंगलमय हल

अपने संग लेकर

आया है,

संबंधों के घटाटोप

रिश्तों के रूखेपन

भौतिक आकर्षण में

यह बारिश की

पहली फुहार

माटी की सौंधी गंध

प्रेम का शीतल सा

झोंका लाया है।।

 

यूँ तो मोबाइल पर

अक्सर अपनी भी

होती है बातें

पर उन बातों में

तकनीकी मिश्रण

के चलते

अपनेपन वाली

मीठी प्रेम चासनी का

हम स्वाद कहाँ ले पाते।

 

अधुनातन मोबाईल

द्रुतगामी यंत्रो की

भीड़भाड़ में

भटक गए हैं,

कुछ पर्वों, त्योहारों पर

हम रटे रटाये,

बने बनाये शब्द

शायरी, संदेसों के

बटन दबा कर

बस इतने पर

अटक गए हैं।।

 

ऐसे में यह पत्र

तुम्हारा, पाकर

मैं, अपने में

हर्ष विभोर हुआ

संबंधों की पुष्पलता

के रस सिंचन को

लिए लेखनी हाथों में

अंतर्मन का

आकाश छुआ।।

 

लिख – लिख

मिटा रहा हूँ, अब

हर बार शब्द बंजारों को

व्यक्त नहीं कर पाता हूँ

अपने मन के

उद्गारों को

शब्द व्यर्थ हो गए

भाव अंतर में जागे,

मित्र! समझ लेना,

तुम ही, जो लिखना है

अब इसके आगे।।

 

समय समय पर

कुशलक्षेम के पत्र

सदा तुम लिखते रहना,

घर में

सभी बड़े, छोटों को

यथायोग्य

अभिवादन कहना।।

 

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – ईडन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – ईडन

 

…..उस रास्ते मत जाना, आदम को निर्देश मिला। आदम उस रास्ते गया। एक नया रास्ता खुला।

 

….पानी में खुद को कभी मत निहारना। हव्वा ने निहारा। खुद के होने का अहसास जगा।

 

….खूँख़ार जानवरों का इलाका है। वहाँ कभी मत घुसना।….आदम इलाके में घुसा, जानवरों से उलझा। उसे अपना बाहुबल समझ में आया।

 

…..आग से हमेशा दूर रहना, हव्वा को बताया गया। हव्वा ने आग को छूकर देखा। तपिश का अहसास हाथ और मन पर उभर आया।

 

….उस पेड़ का फल मत खाना। आदम और हव्वा ने फल खाया। ईडन धरती पर उतर आया।

 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ दोस्ती लाइलाज मर्ज की दवा ☆ – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

मैत्री दिवस विशेष

श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

(मित्रता दिवस पर मित्रों को समर्पित कविता  दोस्ती लाइलाज मर्ज की दवा”

 

हम भले ही  मित्रता दिवस वर्ष में एक ही दिन मनाते और मित्रों का स्मरण करते हैं।  किन्तु, मित्रता सारे वर्ष निभाते हैं। अतः  मित्रता दिवस पर प्राप्त आलेखों एवं कविताओं का प्रकाशन सतत जारी है। कृपया पढ़ें, अपनी प्रतिक्रियाएँ दें तथा उन्हें आत्मसात करें।))

 

दोस्ती लाइलाज मर्ज की दवा

 

दोस्त दुनिया के सारे लाइलाज मर्ज़ की अनमोल दवा है,

इनमें वो हुनर होता है जो बुढ़ापे में भी जवानी का अहसास करा देते हैं ||

 

दोस्त तो चमन का वह फूल है जो मुरझाते शरीर में जान डाल देता है,

ये जिगर के वो टुकड़े है जो पुरानी यादों को चंद लम्हों में तरोताजा कर देते हैं ||

 

अगर कोई दिल के सबसे नजदीक होते हैं तो वे दोस्त ही होते हैं,

दिल के सारे राज के राजदार और जिंदगी के हमराज ये दोस्त ही तो होते हैं ||

 

जब दोस्त मिलते हैं तो सब एक दूसरे की पुरानी बातें चटकारे लेकर सुनाते हैं,

हसी मजाक करते हुए दोस्त यह भी भूल जाते हैं की सब अब बूढ़े हो चले हैं ||

 

अब सब के परिवार हो गए, समय के बदलाव के कारण दूर होते चले गए,

भूले बिसरे गीतों की तरह जब भी मिलते हैं तो एक झटके में सारी दूरियां खत्म कर देते हैं ||

 

जिंदगी के हर बीते लम्हों को रंगीन बनाकर सुनाने में माहिर होते हैं ये दोस्त,

बचपन की नादानियाँ और जवानी के किस्से ये दोस्त चटकारे ले लेकर सुनाते हैं ||

 

अब सब दोस्त बूढ़े हो चले, हर कोई किसी ना किसी परेशानी से गुजर रहा है,

मगर आज जब भी दोस्त मिलते हैं तो कुछ देर के लिए सब को जवान बना देते हैं ||

 

दोस्तों के साथ बिताये दिनों को याद करके कभी हंसी तो कभी रोना आता है,

सच है, ये दोस्त दुनिया की सारी लाइलाज बीमारियों की अनमोल दवा होते हैं ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #11 – वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज  ग्यारहवीं कड़ी में प्रस्तुत है “वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 11 ☆

 

☆ वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग ☆

किसी भी सामाजिक बदलाव के लिये सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है, और आज ब्लाग वैश्विक पहुंच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज, सस्ते, सर्वसुलभ साधन बन चुके हैं. विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभो के बाद पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई है. आम आदमी की ब्लाग तक पहुंच और उसकी त्वरित स्व-संपादित प्रसारण क्षमता के चलते ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है.

हाल ही अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सफल जन आंदोलन बिना बंद, तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया, और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उनके सम्मुख झुकना पड़ा. उल्लेखनीय है कि इस आंदोलन में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट, मोबाइल एस एम एस, यहां तक कि मिस्डकाल के द्वारा भी तथा ब्लाग लेखन के द्वारा ही अपना महत्वपूर्ण समर्थन दिया.

युवाओ में बढ़ी कम्प्यूटर साक्षरता से उनके द्वारा देखे जा रहे ब्लाग के विषय युवा केंद्रित अधिक हैं.विज्ञापन, क्रय विक्रय, शैक्षिक विषयो के ब्लाग के साथ साथ  स्वाभाविक रूप से जो मुक्ताकाश ब्लाग ने सुलभ करवाया है, उससे सैक्स की वर्जना, सीमा मुक्त हो चली है. पिछले दिनो वैलेंटाइन डे के पक्ष विपक्ष में लिखे गये ब्लाग अखबारो की चर्चा में रहे.प्रिंट मीडिया में चर्चित ब्लाग के विजिटर तेजी से बढ़ते हैं, और अखबार के पन्नो में ब्लाग तभी चर्चा में आता है जब उसमें कुछ विवादास्पद, कुछ चटपटी, बातें होती हैं, इस कारण अनेक ब्लाग हिट्स बटोरने के लिये गंभीर चिंतन से परे दिशाहीन होते भी दिखते हैं. भारतीय समाज में स्थाई परिवर्तन में हिंदी भाषा के ब्लाग बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में हैं,क्योकि ज्यादातर हिंदी ब्लाग कवियों, लेखको, विचारको के सामूहिक या व्यक्तिगत ब्लाग हैं जो धारावाहिक किताब की तरह नित नयी वैचारिक सामग्री पाठको तक पहुंचा रहे हैं. पाडकास्टिंग तकनीक के जरिये आवाज एवं वीडियो के ब्लाग, मोबाइल के जरिये ब्लाग पर चित्र व वीडियो क्लिप अपलोड करने की नवीनतम तकनीको के प्रयोग तथा मोबाइल पर ही इंटरनेट के माध्यम से ब्लाग तक पहुंच पाने की क्षमता उपलब्ध हो जाने से ब्लाग और भी लोकप्रिय हो रहे हैं.

ब्लाग के महत्व को समझते हुये ही बी बी सी, वेबदुनिया, स्क्रेचमाईसोल, रेडियो जर्मनी, या देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं. ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है जो ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संजोकर प्रस्तुत करने का अनोखा कार्य कर रही है.यह सही है कि अभी ब्लाग आंदोलन नया है, पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी, इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी ब्लाग मीडिया और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा, एवं ब्लाग भविष्य में सामाजिक क्रांति का सूत्रधार बनेगा.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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