आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌।

अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌।।8।।

क्योंकि सूझता अब नहीं,मुझको कोई उपाय

मन का ताप न मिटेगा,स्वर्ग राज्य भी पाय।।8।।

 

भावार्थ :   क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके।।8।।

 

I do not see that it would remove this sorrow that burns up my senses even if I should attain prosperous and unrivalled dominion on earth or lordship over the gods. ।।8।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – * आधुनिक भारत के इतिहास लेखन में जवरसिंग का योगदान * – श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

आधुनिक भारत के इतिहास लेखन में जवरसिंग का योगदान

 

(प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का  सामाजिक माध्यमों और आधुनिक तकनीक के सामंजस्य के सदुपयोग/दुरुपयोग पर अत्यंत सामयिक, सटीक एवं सार्थक व्यंग्य।) 

 

आप जवरसिंग को नहीं जानते. उसे जानना जरूरी है. वो इन दिनों ‘आधुनिक भारत का इतिहास’ लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. हालाँकि उसकी पृष्ठभूमि से नहीं लगता कि वो इतिहास लेखन जैसी महती परियोजना पर काम कर रहा होगा, मगर सच यही है. उसके लिखे इतिहास के चुनिन्दा अंश प्रस्तुत करने से पहले मैं, संक्षेप में, उसकी पृष्ठभूमि बताना चाहता हूँ.
जवरसिंग हमारे दफ्तर में साढ़े पैंतीस साल चपरासी के पद का निर्वहन करते हुए तीन महीने पहले सेवा निवृत्त हुआ. बायो-डाटा में उसकी शैक्षणिक योग्यता पाँचवी तक लिखी हुई थी मगर अपने नाम के पांच अक्षरों से ज्यादा वो कभी नहीं लिख सका. हाँ, वो हिंदी पढ़ लेता था. अखबार घंटों पढ़ता था. दोपहर का टैब्लॉयड ‘जलती मशाल’ उसका पसंदीदा अखबार रहा. क्राईम न्यूज़ सबसे पहले पढ़ता. जब जब दफ्तर में हमारे पास उसके लायक जरूरी काम होता वो अखबार पढ़ने में तल्लीन हो जाता और तब तक तल्लीन ही रहता जब तक हमारा काम बिना उसके भी पूरा न हो जाए. वो प्रखर राजनैतिक चेतना का धनी था. दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को सामने बैठाकर घंटों समकालीन राजनीति पर अपना अभिमत देता. उसके किसी श्रोता में इतनी हिम्मत नहीं होती कि उससे असहमत हो जाए, बल्कि वे उसके लिए समोसा-चाय लेकर आते. उसके अन्दर एक अदम्य विश्वास कूट-कूट कर भरा था कि भारत सहित दुनिया के तमाम राष्ट्र-प्रमुख यदि उसकी सलाह से चलें तो देश-विदेश की सारी समस्याएं घंटो में सुलझाई जा सकती हैं. बहरहाल, उसकी सेवा निवृत्ति पर हम सबने कंट्रीब्यूट करके उसे एक स्मार्ट फ़ोन गिफ्ट किया था. फिर उसने सबसे तेज़, सबसे ज्यादा डाटा, सबसे सस्ता देने वाली कंपनी से इन्टरनेट पैक लिया, अपनी पोती से व्हाट्सऐप करना सीखा.
जिस रोज़ व्हाट्सऐप पर उसकी पहली पोस्ट मुझे मिली मैं कदाचित विस्मित रह गया. जवरसिंग और इतना लंबा मैटर! खुद ने मोबाइल पर टाईप किया या किसी से लिखवाकर मुझे फॉरवर्ड करा!! जो भी हो, मेरे आश्चर्य की वजह उसकी तकनीकी योग्यता में सुधार को लेकर नहीं थी बल्कि उस पोस्ट में झलकती इतिहास की उसकी अनूठी समझ, नायाब और नवीन जानकारी को लेकर थी. उसने पोस्ट में लिखा था कि आज़ादी के लिए अनेक बार जेल जाने वाले, आधुनिक भारत के निर्माता, ‘भारत एक खोज’ के रचयिता किसी भी प्रकार से आदर योग्य महापुरुष नहीं थे. उन्होंने जो भी निर्णय लिए वे देशहित के कभी नहीं रहे. वे जननायक भारत के थे और प्रेम पकिस्तान से करते थे. मैं भौंचक्का रह गया. मुझे लगा कि मेरे पिता, मेरे दादाओं, परदादाओं की पूरी पूरी पीढ़ियाँ गलत थीं, जो उनके एक आव्हान पर जेल जाने और लाठी गोली खाने को उद्यत रहती थीं. मेरी दादी ने आज़ादी के नायक की जो कहानियां मुझे सुनाई थीं जवरसिंग की भेजी गई एक पोस्ट ने उसे धो कर रख दिया.
जवरसिंग ने फिर एक पोस्ट भेजी जिसमें उसने उसी नायक के बारे में बताया कि उनके परदादा   म्लेच्छ थे, कि उन्होंने धर्मान्तरण किया था, कि उनका जन्म इलाहाबाद की एक बदनाम बस्ती में हुआ था. मन किया श्रीमान, कि जवरसिंग के चरण छू लिए जाएँ. कहाँ थे प्रभु आप अब तक ? आप इतने साल साथ रहे मगर कभी बताया नहीं कि किस महापुरुष की अंत्येष्टि में कौन शामिल हुआ, नहीं हुआ, हुआ तो किस विधि से संस्कार करना था, किस विधि से कर दिया गया. आज़ादी का कौन सा सेनानी ईश्कबाज़ी में मसरूफ़ रहता था और अपने जीवन साथी के प्रति बेवफा था. ऐसे ऐतिहासिक तथ्य जुटाने के लिए कितना परिश्रम किया होगा जवरसिंग ने, कितना समय लगाकर कितना अध्ययन किया होगा, !! व्हाट्सऐप नहीं होने के कारण वो मुझे और देश को इतिहास का ये पक्ष पहले बता नहीं सका. थैंक यू ब्रायन एक्टन, आपने व्हाट्सऐप बनाया.
जो फोन हमने गिफ्ट किया था वो स्मार्ट फोन था, जवरसिंग के हाथों में आकर ओवर स्मार्ट हो गया है. इसी से वो इन दिनों लगभग रोज़ ही एक, दो या उससे भी अधिक पोस्ट भेजता है जिनमें उन प्रतिमाओं को खंडित किया हुआ होता जो अब तक पूजनीय बनी रही. उसका राजनैतिक आकलन देखिये श्रीमान – उसने लिखा कि अगर ‘अ’ की जगह ‘ब’, या ‘ब’ की जगह ‘स’, ‘द’, या ‘ढ़’ देश के प्रथम जननायक रहे होते तो क्या से क्या हो गया होता. जवरसिंग जब पोस्ट लिखता है तो आत्मविश्वास से लबरेज़ रहता है. वो बहुत सी ऐसी घटनाओं को शिद्दत से परोसता है जो शायद कभी घटी ही नहीं.  वह अपने जन्म के पूर्व की किसी दिनांक को दो दिवंगत महापुरूषों के बीच हुए संवाद को ऐसे प्रेषित करता है जैसे वो उस बातचीत का चश्मदीद गवाह रहा हो. उसकी एक पोस्ट ने तो मेरे पैरों के नीचे की जमीन ही खिसका दी, लिखा कि अहिंसा से आज़ादी दिलाने वाला अधनंगा फ़कीर तो अंग्रेजों का एजेंट था और स्वतन्त्रता संग्राम की अगुवाई वो इस तरह से कर रहा था कि फिरंगी अधिक से अधिक बरसों तक भारत पर शासन कर सकें. बताईये साहब, सदी के महानायक की समूची साधना पर जवरसिंग के लिखे ने पानी फेर दिया. जवरसिंग की शोध कहती है कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार गुरुवर ने अंग्रेजों के सामने गिड़गिड़ा कर हाँसिल किया. ये तो चंद, चुनिन्दा बानगियाँ हैं श्रीमान, जवरसिंग ने ऐसी ढेर सारी सामग्री जुटा ली है. उन पोस्टों के फॉरवर्ड किये जाने का सिलसिला अनवरत जारी है. जवरसिंग ने अपने ज्ञान-क्षितिज को विस्तार दिया है. अब वो कूटनीति पर भी पोस्ट भेजने लगा है, रक्षा मामलों पर और देश की अर्थनीति पर तो साधिकार पोस्टें भेजता ही रहता है. जवरसिंग अपने इतिहास लेखन की रॉयल्टी नहीं लेता मगर हाँ, वो चाहता है कि उसकी ऐसी पोस्टों को वाईरल किया जाए. इसके लिए कभी कभी वो चैलेंज भी करता है कि तुम सच्चे ये हो या सच्चे वो हो तो इसको जरूर फैलाओ.
जवरसिंग ने हमारे समय के पनिक्करों, बिपिन चंद्राओं, रामचंद्र गुहाओं, रोमिला थापरों के वर्षों के परिश्रम से किये गए शोध और इतिहास लेखन को अपने व्हाट्सऐप अकाउंट के एक क्लिक से झुठला दिया है. मुझे अपने आप पर ग्लानि हो रही है कि इतने बड़े इतिहासविद, जानकार, ज्ञानी आदमी ने मेरे दफ्तर में मेरे साथ मामूली पद पर नौकरी करते हुए जिन्दगी गुजार दी और मुझे पता ही नहीं चला. जिसे हम एक साधारण और लगभग अनपढ़ सहकर्मी समझते रहे वो तो गुदड़ी का लाल निकला. इन दिनों वो अपनी समस्त ऐतिहासिक पोस्टों को सम्पादित करके ग्रंथावली के रूप में प्रकाशित करवाने की परियोजना पर काम कर रहा है. आने वाले वर्षों में, इतिहासविद श्रेणी में, वो पद्मविभूषण सम्मान पाने का मजबूत दावेदार है. वो हमारे समय का ‘अनसंग हीरो’ है. उसने प्रमाणित तथ्यों, खोजपरक लेखों और सबूतों की बिला पर लिखी पुस्तकों से विद्यार्थियों को कक्षा में इतिहास पढ़ाने की जरूरत समाप्त कर दी है. अब इसके लिए जवरसिंह का व्हाट्सऐप अकाउंट है ना !!!
© शांतिलाल जैन 
मोबाइल : 9425019837



मराठी साहित्य – मराठी आलेख – * कुठलाही निर्णय घेताना मुलांना विश्वासात घ्या * – सुश्री रंजना लसणे

सुश्री रंजना लसणे 

कुठलाही निर्णय घेताना मुलांना विश्वासात घ्या

(आदरणीया सुश्री रंजना लसणे जी के शिक्षिका/लेखिका हृदय का अभिनंदन।  इस अत्यंत शिक्षाप्रद एवं हृदयस्पर्शी कथा के लिए सुश्री रंजना जी को सादर नमन)

जून महिना म्हणजे प्रवेशाची गडबड नवीन येणाऱ्या मुलांची ओळख करून घेणे, त्यांच्या आवडी निवाडी जाणून घेणे, एकदम उत्साहाचे वातावरण, मी मुलांशी छान गप्पा मारत होते  एवढयात  एक नवीन विद्यार्थी प्रवेश झाला. नाव ऋषीकेश नावा प्रमाणे  दिसायला सुंदर  गोरागोमटा स्मार्ट  अभ्यासातही चांगला  होता. पाहताच मनात भरावा असं व्यक्तीमत्व, वरकरणी पाहता सर्व काही ठीकठाक वाटायचे, परंतु  दिसतं तसं अजिबात नव्हते. मुलांच्या रोज नवीन तक्रारी,  “मेम याने मला मारलं”. कधी दगड कधी छडी तर कधी लाताळी, बर विचारलं तर एकही शब्द न बोलता गप्प उभा राहायचा समजावून पाहिलं  चिडून पाहिलं एकदोन वेळेस  मारून ही पाहिलं. मुख्याध्यापकांकडे नेऊन टी.सी. देईन असे सांगितले, परंतु काहीच बदल  नव्हता.

एक दिवस तर त्याने एका मुलाचं चक्क  दगड मारून डोके फोडलं. मला या मुलाचं काय करावं खरंच कळत नव्हतं  तीस वर्षाची नोकरी करून मला एका मुलाला समजावून सांगता येतं नव्हतं. मी पुरती हतबल झाले होते. घरच्यांना सांगून पाहावे म्हणून, मुलांना पाठवून “त्याच्या घरून कोणालातरी बोलावून आणा,” असे सांगितले. मुलानी त्याच्या काका म्हणजे मावशीचा नवरा, यांना बोलावून आणले. बहुतेक येताना मुलांनी  काय घडले ते सांगितले असावे.

शाळेत आल्याबरोबर त्यांनी तोंडाने अर्वाच्य शिव्या देत हातातल्या  छडीने बेदम झोडपायला सुरूवात केली. मला ते पहाणे असह्य होऊन “आहो, सोडा त्याला ही काय पद्धत झाली समजावून सांगण्याची, ” म्हणत मी चक्क त्याला त्यांच्या तावडीतून सोडवून घेतले . आणि त्यांना

जायला सांगितलं.  “माजलाय साला,” म्हणत तावातावात ते निघून गेले अन्  मला चक्क चपराक मारल्यासारखं झालं. “सॉरी बेटा” म्हणून त्याला जवळ घेताच, एवढा वेळ मुकाटयाने मार खाणाऱ्या ऋषीला भरून आलं आणि चक्क  मला घट्ट घरून एवढा रडला की अक्षरशः पूर्ण वर्ग रडला.

जवळजवळ पंधरा वीस मिनिटांनी तो शांत झाला.  बाकी मुलांना बाहेर पाठवून त्याची चौकशी केली तेव्हा कळलं की, खरं तर त्याला एकट्या आईला पुण्याला सोडून इथं राहायचं नव्हतं.

त्याचे वडील  सहा महिन्या पूर्वी लाईटचे काम करताना शॉक लागून मरण पावले. आई मामाकडे पुण्याला राहते मामा मामी पण काका सारखेच वागायचे. आई आणि बहिणी यांचे हाल त्याने पाहिलेले होते. दोन मोठ्या बहिणी आई एवढे एकत्र शिवाय याच्या  शिक्षणाचा खर्च एवढे  एकाच ठिकाणी नको म्हणून मावशी उदार अंतःरणाने याला घेऊन आलेली. परंतु सर्वांनी असं अलग अलग राहावे  हे त्याला मान्य  नव्हते . तसेच त्याला आई आणि बहिणींची   काळजी वाटत होती.  “तू नकोस काळजी करू, मी तुझ्या  आईशी नक्की बोलेण, पुढच्या वर्षी तुम्ही नक्कीच एकत्र राहाल, असे मधेच पुण्याच्या शाळेत तुला कोणी घेणार नाही तुझे वर्ष वाया जाईल पुन्हा चौथीत बसायला तुला आवडेल का ? ”  असे म्हटल्यावर त्याला चे पटले . मी आईला सांगते असे म्हणताच तो खूष झाला . चॉकलेट खाऊन खेळायला गेला  आईचा नंबर मिळवून   त्यांना, “ताई, बाळापूरला  आल्यानंतर मला भेटा आणि तो छान अभ्यास करत आहे,” असे ही सांगितले. हे सर्व सगळ्या मुलांच्या  समोर घडल्यामुळे मुलांनी त्याची तक्रार करणे  नुसते बंद  केले असे नाही, तर तो नेहमी  खूष कसा राहील यासाठी ती सारी न सांगताच प्रयत्न करू लागली . वर्षभरात अप्रतिम  अभ्यास केला, एवढेच नव्हे, तर काका सोबत राहून दाढी कटिंग चे कामही शिकला. त्याच्यातील हा बदल पाहून मलाही समाधान वाटलं मधेच दोनचार वेळा तू पुढच्या वर्षी माझ्याकडे राहातोस का विचारलं परंतु स्वारी जागेवरच अडलेली. शेवटी  त्याच्या आईलाच मी घडलेला सर्व प्रकार समजावून सांगितला, ” ताई कुठेही राहिलात तरी काम तर करावेच लागणार कुणीही सगळ्या कुटुंबाला बसून खाऊ घालणार नाही, मग सगळेच गावी राहा सासरच्या लोकांशी गोड बोलून त्यांची मदत घ्या त्याच्या आधाराने जमलं तर एकत्र किंवा वेगळं का असेना राहा. तुम्हाला त्यांची  मदतच  होईल तिथेच राहून काम बाहेर करण्या पेक्षा त्यांची कामे करा, हेही दिवस जातील.” त्यांनाही ते पटले असावे कांही दिवसातच  त्या राहायला गावाकडे आल्या आणि सगळं व्यवस्थित झालं.

चौथी पास झाल्यावर  सुट्टी नंतर तो परत आला तेव्हा म्हणाला, “आम्ही सर्वजण आमच्या गावीच राहतो. आम्हाला  असलेली शेती  करतो मीही सुट्टीत आणि सकाळ- संध्याकाळी दुकानात काम करून  आईला मदत करतो.” असे सांगताना  त्याच्या चेहऱ्यावर आनंद ओसंडून वाहात होता.

त्याचे गाव जवळच असल्यामुळे आला की भेटतो “आजी काका पण मदत करतात, ” असे सांगत असतो.

तात्पर्य : एखाद्या निर्णय जरी आपण तो त्यांच्या भल्यासाठी घेत असलो तरीसुद्धा तो घेताना मुले लहान आहेत म्हणून त्यांना गृहीत धरण्यापेक्षा त्यांच मत सुद्धा विचारात घेणे आवश्यक असते. अन्यथा त्यांचे आयुष्य उद्ध्वस्त व्हायला वेळ लागत नाही.

*रंजना लसणे .*

आखाडा बाळापूर

9960128105




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।

यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌।।7।।

हीन भाव से व्यापत है मेरा वीर स्वभाव

शरण शिष्य हूँ, क्या उचित मुझे नाथ समझाव।।7।।

 

भावार्थ :  इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए।।7।।

 

My heart is overpowered by the taint of pity, my mind is confused as to duty. I ask Thee: tell me decisively what is good for me. I am Thy disciple. Instruct me who has taken refuge in Thee. ।।7।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – हास्य व्यंग्य – पादुकाओं  की आत्म कथा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
हास्य व्यंग्य  कथा – पादुकाओं  की आत्म कथा

 

(प्रस्तुत है श्री विवेक  रंजन  श्रीवास्तव जी  का  एक  बेहतरीन  सार्थक हास्य व्यंग्य कथा) 

 

मैं पादुका हूँ. वही पादुका, जिन्हें भरत ने भगवान राम के चरणो से उतरवाकर सिंहासन पर बैठाया था. इस तरह मुझे वर्षो राज काज  चलाने का विशद  अनुभव है. सच पूछा जाये तो राज काज सदा से मैं ही चला रही हूँ, क्योकि जो कुर्सी पर बैठ जाता है, वह बाकी सब को जूती की नोक पर ही रखता है. आवाज उठाने वाले को  को जूती तले मसल दिया जाता है. मेरे भीतर सुखतला होता है, जिसका कोमल, मृदुल स्पर्श पादुका पहनने वाले को यह अहसास करवाता रहता है कि वह मेरे रचे सुख संसार का मालिक है.   मंदिरो में पत्थर के भगवान पूजने, कीर्तन, भजन, धार्मिक आयोजनो में दुनियादारी से अलग बातो के मायावी जाल में उलझे , मुझे उपेक्षित लावारिस छोड़ जाने वालों को जब तब मैं भी छोड़ उनके साथ हो लेती हूं , जो मुझे प्यार से चुरा लेते हैं . फिर ऐसे लोग मुझे बस ढ़ूढ़ते ही रह जाते हैं. मुझे स्वयं पर बड़ा गर्व होता है जब विवाह में दूल्हे की जूतियां चुराकर जीजा जी और सालियो के बीच जो नेह का बंधन बनता है, उसमें मेरे मूल्य से कहीं बड़ी कीमत चुकाकर भी हर जीजा जी प्रसन्न होते हैं. जीवन पर्यंत उस जूता चुराई की नोंक झोंक के किस्से संबंधो में आत्मीयता के तस्में बांधते रहते हैं. कुछ होशियार सालियां वधू की जूतियां कपड़े में लपेटकर कहबर में भगवान का रूप दे देतीं हैं और भोले भाले जीजा जी एक सोने की सींक के एवज में मेरी पूजा भी कर देते हैं. यदि पत्नी ठिगनी हो तो ऊंची हील वाली जूतियां ही होती हैं जो बेमेल जोड़ी को भी साथ साथ खड़े होने लायक बना देती हैं. अपने लखनवी अवतार में मैं बड़ी मखमली होती हूं पर चोट बड़ी गहरी करती हूँ. दरअसल भाषा के वर्चुएल अवतार के जरिये बिना जूता चलाये ही, शब्द बाण से ही इस तरह प्रहार किये जाते हैं, कि जिस पानीदार को दिल पर चोट लगती है, उसका चेहरा ऐसा हो जाता है, मानो सौ जूते पड़े हों. इस तरह मेरा इस्तेमाल मान मर्दन के मापदण्ड की यूनिट के रूप में भी किया जाता है. सच तो यह है कि जिंदगी में जिन्हें कभी जूते खाने का अवसर नही मिला समझिये उन्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव नही है. बचपन में शैतानियो पर मां या पिताजी से जूते से पिटाई, जवानी में छेड़छाड़ के आरोप में किसी सुंदर यौवना से जूते से पिटाई या कम से कम ऐसी पिटाई की धमकी का आनंद ही अलग है.
तेनाली राम जैसे चतुर तो राजा को भी मुझसे पिटवा देते हैं. किस्सा है कि एक बार राजा कृष्णदेव और तेनालीराम में बातें हो रही थीं. बात ही बात में तेनालीराम ने कहा कि लोग किसी की भी बातों में बड़ी सहजता से आ जाते हैं, बस कहने वाले में बात कहने का हुनर और तरीका होना चाहिये. राजा इससे सहमत नहीं थे, और उनमें शर्त लग गई. तेनालीराम ने अपनी बात सिद्ध करने के लिये समय मांग लिया. कुछ दिनो बाद कृष्णदेव का विवाह एक पहाड़ी सरदार की सुंदर बेटी से होने को था. तेनाली राम सरदार के पास विवाह की अनेक रस्मो की सूची लेकर पहुंच गये, सरदार ने तेनालीराम की बड़ी आवभगत की तथा हर रस्म बड़े ध्यान से समझी. तेनालीराम चतुर थे, उन्हें राजा के सम्मुख अपनी शर्त की बात सिद्ध करनी ही थी, उन्होने मखमल की जूतियां निकालते हुये सरदार को दी व बताया कि राजघराने की वैवाहिक रस्मो के अनुसार , डोली में बैठकर नववधू को अपनी जूतियां राजा पर फेंकनी पड़ती हैं, इसलिये मैं ये मखमली जूतियां लेते आया हूँ, सरदार असमंजस में पड़ गया, तो तेनाली राम ने कहा कि यदि उन्हें भरोसा नही हो रहा तो वे उन्हें जूतियां वापस कर दें, सरदार ने तेनाली राम के चेहरे के विश्वास को पढ़ते हुये कहा, नहीं ऐसी बात नही है जब रस्म है तो उसे निभाया जायेगा. विवाह संपन्न हुआ, डोली में बैठने से पहले नव विवाहिता ने वही मखमली जूतियां निकालीं और राजा पर फेंक दीं, सारे लोग सन्न रह गये. तब तेनाली राम ने राजा के कान में शर्त की बात याद दिलाते हुये सारा दोष स्वयं पर ले लिया. और राजा कृष्णदेव को हंसते हुये मानना पड़ा कि लोगो से कुछ भी करवाया जा सकता है, बस करवाने वाले में कान्फिडेंस होना चाहिये.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय  के निर्माण के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय धन एकत्रित कर रहे थे,अपनी इसी मुहिम में  वे  हैदराबाद पहुंचे. वहां के निजाम से भी उन्होंने चंदे का आग्रह किया तो वह निजाम ने कहा की मैं हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए पैसे क्यों दूं? इसमें हमारे लोगों को क्या फायदा होगा. मालवीय जी ने कहा कि मैं तो आपको धनवान मानकर आपसे चंदा मांगने आया था, पर यदि आप नहीं भी देना चाहते तो कम से कम  मानवता की दृष्टि से जो कुछ भी छोटी रकम या वस्तु दे सकते हैं वही दे दें. निजाम ने मालवीय जी का अपमान करने की भावना से  अपना एक जूता उन्हें दे दिया. कुशाग्र बुद्धि के मालवीय जी ने उस जूते की बीच चौराहे पर नीलामी शुरू कर दी .निजाम का जूता होने के कारण उस जूते की बोली हजारो में लगने लगी. जब ये बात निजाम को पता चली तो उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया और उन्होंने अपना ही जूता  ऊंचे दाम पर मालवीय जी से खरीद लिया. इस प्रकार मालवीय जी को चंदा भी मिल गया और उन्होने निजाम को अपनी विद्वता का अहसास भी करवा दिया. शायद मियाँ की जूती मियां के सर कहावत की शुरुआत यहीं से हुयी. भरी सभा में आक्रोश व्यक्त करने के लिये नेता जी पर या हूट करने के लिये किसी बेसुरी कविता पर कविराज पर भी लोग चप्पलें फेंक देते हैं. यद्यपि यह अशिष्टता मुझे बिल्कुल भी पसंद नही. मैं तो सदा साथ साथ जोडी में ही रहना पसंद करती हूं . पर जब पिटाई के लिये मेरा इस्तेमाल होता है तो मैं अकेली ही बहुत होती हूं. हाल ही नेता जी ने भरी महफिल में अपने ही साथी पर जूते से पिटाई कर मुझे एक बार फिर महिमा मण्डित कर दिया है.
वैसे जब से ब्रांडेड कम्पनियो ने लाइट वेट स्पोर्ट्स शू बनाने शुरू किये हैं , मैं अमीरो में स्टेटस सिंबल भी बन गई हूँ, किस ब्रांड के कितने मंहगे जूते हैं , उनका कम्फर्ट लेवल क्या है , यह पार्टियो में चर्चा का विषय बन गया है .एथलीट्स के और खिलाड़ियों के जूते टी वी एड के हिस्से बन चुके हैं. उन पर एक छोटा सा लोगो दिखाने के लिये करोड़ो के करार हो रहे हैं. नेचर्स की एक जोड़ी चप्पलें इतने में बड़े गर्व से खरीदी जा रहीं हैं, जितने में पूरे खानदान के जूते आ जायें . ऐसे समय में मेरा संदेश यही है कि  दुनियां को सीधा रखना हो तो उसे जूती की नोक पर रखो.

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८




English Literature – Poetry – * A Journey called Life! * – Mr Piyush Lokhande

Mr Piyush Lokhande

 

A Journey called Life!

 

Darkness of the night sky with diamonds twinkling,

The stars don’t disappear, they keep blazing.

Mystic and supernatural is the aura rendered blissfully,

For the stars whisper the dialect of the unspoken instinctively.

Roaming-about, discovering places and unraveling hidden secrets sounds so intriguing,

All this doubles and triples while embarking.

Travel ain’t just an activity but a part of our very life,

Making one’s mind ain’t as tough as fire and ice.

Soaring high up above the horizons and limits,

Carving a niche amongst the not so infamous.

Diversified food, culture, ethnicity and religion delivers immortal meaning,

For journey is not meant to be traveled but lived without intervening.

Trivial and insightful thoughts have their value in gold,

Being reciprocative of what your dreams are about knows no threshold.

 

© Mr Piyush Lokhande




मराठी साहित्य – मराठी कविता – * कुटुंब * – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  द्वारा  चारोळी लेखन  विधा  में  “कुटुंब ” शीर्षक से एक प्रयोग ) 

 

*कुटुंब*

(चारोळी लेखन)

चार माणसे, चार स्वभाव

चार कोनात जोडलेली.

कुटुंबातील नाती सारी

जीवापाड जपलेली.

 * * * * * * * * * *

घर असते आकर्षण

कुटुंब असते संरक्षण

माणसांच्या घरकुलात

कुटुंबांचे आरक्षण. . . . !

 * * * * * * * * * *

घर म्हणजे फुलबाग

माणसांनी भरलेली

कुटुंब म्हणजे फळबाग

नात्यांनी लगडलेली. . . . !

 * * * * * * * * * *

दार, खिडक्या, भिंती मध्ये

घर जात खपून

एकेक नात जपताना

अंतर येत फुलून. . . . !

© विजय यशवंत सातपुते, यशश्री पुणे. 

मोबाईल  9371319798




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयोयद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।

यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ।।6।।

समझ न आता उचित क्या !  कल जीतेगा कौन।

जिन्हे मारना पाप , वे खड़े युद्ध हित मौन।।6।।

      

भावार्थ :  हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं ।।6।।

 

I can hardly tell which will be better: that we should conquer them or they should conquer.  Even the sons of Dhritarashtra, after slaying whom we do not wish to live, stand facing us. ।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




मराठी साहित्य – कविता * परीक्षा मायेची * सुश्री स्वप्ना अमृतकर

* परीक्षा मायेची *

सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(सुश्री स्वप्ना अमृतकर  जी की एक  अत्यंत भावप्रवण कविता  “परीक्षा मायेची”)

(कडवे – ५ कडवे , २० ओळी)

 

किती वादळांचे

सावट आलें

किती काहूर

मनी माजलें ,

 

खळगी रीकामी

इवल्या जीवांची

निसर्ग कोप हा

परिक्षा मायेची ,

 

गहन विचारांच्या

भट्टी तापल्या

चिंतेच्या झळा

मायेनेच सोसल्या ,

 

काळजाचे ठोके

अचानक वाढले

मायने पडद्याआड

डोळे मिटले ,

 

नियतीने लेकरांना

अनाथ हो केले

जातांना विंचवीनेच

स्व:अन्नदेह अर्पिले ,

 

© स्वप्ना अमृतकर (पुणे)




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

गुरूनहत्वा हि महानुभावा-ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।

हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुंजीय भोगान्‌रुधिरप्रदिग्धान्‌॥

भीख माँगना –

भीख माँग खाना भला,इस जग में महाराज

गुरूजन वध के बाद क्या, रूधिर सिक्त साम्राज्य ?।।5।।

भावार्थ :  इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा॥5॥

 

Better it is, indeed, in this world to accept alms than to slay the noblest teachers. But if I kill them, even in this world all my enjoyments of wealth and desires will be stained with (their) blood. ।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)