श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी बाल लघुकथा “चाँटा”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #9 ☆
☆ चाँटा ☆
रोज की तरह प्रार्थना हुई. छात्र पंक्तिबद्ध जाने लगे,‘‘ ठहरो !’’ तभी बाहर से आते हुए प्रधानाध्यापक की आवाज गूँजी.
“आज सभी छात्रों के नाखून, कपड़े व बालों की साफ सफाई देखी जाएगी.”
वे दो दिन पहले इस की चेतावनी दे चुके थे. सभी कक्षाध्यापक अपनी अपनी कक्षा के छात्रों के नाखून, कपड़े व बाल देखने लगे.
“क्यों रे! तेरे बाल कैसे हो रहे हैं. ” मोहन सर चिल्ला कर बोले, “देख तेरे बुश्शर्ट की कॉलर”. उन्होंने उस छात्र की गंदी कालर पकड़ कर कहा, “ये कितनी गंदी हो रही है.”
छात्र उद्दंड था. तपाक से बोला, “सर ! पहले अपने बुश्शर्ट की कॉलर देख लीजिए. वह कितनी गंदी हो रही है.” उस का जवाब सुन कर सभी छात्र हँसने लगे. तभी प्रधानाध्यापक ने चिल्ला कर कहा, “चुप. ये क्या तमाशा लगा रखा है.’’ फिर वे उद्दंड छात्र की ओर देख कर बोले, “तू यहाँ रूक.” फिर अन्य छात्रों को तेज आवाज में कहा, “बाकी सब अपनी अपनी कक्षा में चल दो.”
सभी छात्र चुपचाप चले गए. इधर उद्दंड छात्र घबरा रहा था. अब उसे चाँटे लगना तय है.
मगर, मोहन सर, बहुत शर्मिंदा थे. छात्र ने सभी के सामने उन्हें जोरदार शब्दों का चाँटा जो मार दिया था.
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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