हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शिक्षा – दीक्षा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆  शिक्षा – दीक्षा

जो धान बोता है, उसके खेत में धान लहलहाता है। गेहूँ बोने वाला, गेहूँ की फसल पाता है। जिसने चना रोपा, उसने चना काटा। आम उगाने वाला आम का स्वामी हुआ। दीक्षा, जीवन को सरलता और सहजता प्रदान करती है। सरल और सहज के घर आनंद वास करता है।

शिक्षित ईर्ष्या बोता है, सम्मान काटना चाहता है। षड्यंत्र रोपता है, यश उगा देखने की इच्छा करता है। पैसा, पद, जुगाड़ से बनी अपनी अस्थायी स्थिति से स्थायी लाभ लेना चाहता है। बीज के तत्व और कोख में होनेवाली प्रक्रिया परिवर्तित करने की विफल कुचेष्टा, कुंठा और अवसाद को घर करने देती है।

सुना है कि सरकार बच्चों के ऑनलाइन अध्ययन अभियान का नामकरण ‘दीक्षा’ करने जा रही है। काश सारे शिक्षित, दीक्षित हो सकें!

कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से।)
( 2.9.18, प्रातः 6:59 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 47 – लघुकथा – सहोदर ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम लघुकथा  “सहोदर ।  एक कहावत है कि- शक के इलाज की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी। वास्तव में कुछ अपवाद छोड़ दें तो हमारी समवयस्क पीढ़ी ने जिस तरह से मुंहबोले रिश्ते निभाए हैं,  वैसी अगली पीढ़ी किस स्तर तक निभा पाएंगी , भविष्य ही बताएगा। एक अतिसंवेदनशील विषय पर लिखी गई एक अतिसंवेदनशील सफल लघुकथा।  इस सर्वोत्कृष्ट  लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 47 ☆

☆ लघुकथा  – सहोदर

खन्ना साहब और वर्मा जी की गहरी दोस्ती थी।

दोनों एक ही मोहल्ले में घर के आस-पास रहते थे। एक हादसे में अचानक वर्मा जी और उनका साल भर का बेटा दुनिया से चल बसा। दोस्त की पत्नी और रिश्ते में बहन बन चुकी, वर्मा जी की  पत्नी ममता की जिम्मेदारी खन्ना साहब पर आ गई।

कुछ दिनों बाद खन्ना साहब की धर्मपत्नी को जुड़वा संतान हुए।

उन्होंने एक उठाकर ममता की आंचल पर डाल दिया। भरा पूरा परिवार खुश रहने लगा और ममता भी अपना दर्द भूल गई। सुधीर ममता के पास धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और गुस्सैल स्वभाव के होने के कारण कुछ ना कुछ बातें हो जाती थी। अक्सर मां बेटे में कहा सुनी होती थी।

घर में फिर अचानक जोर जोर से बातचीत और सामान फेंकने की आवाज आ रही थी। खन्ना साहब जो कीआर्मी से रिटायर हो चुके थे। दौड़ कर ममता के घर पहुंचे। सुधीर अपने मां के साथ फिर से झगड़ा कर रहा था। कह रहा था…. कि हमेशा मेरी सही गलत पर यह खन्ना क्यों टांग अडाता है, मैं क्या पढ़ता हूं, भविष्य में क्या बनूंगा, इसकी जिम्मेदारी वह लेने वाला कौन होता है? ना वह हमारा सगा संबंधी, ना रिश्तेदार, और ना ही हमारे कोई हितैषी!!!! पापा रहे नहीं तो दोस्त भी नहीं है। आपके साथ उनका क्या????? संबंध है आज मैं जानना चाहता हूं। युवा वर्ग होने के कारण वह बौखला गया था। घर में खन्ना जी के दखल अंदाजी उसको परेशान कर रही थी। अपने बेटे की बात सुन आज ममता बर्दाश्त न कर सकी। उसने सारा बर्तन अलमारी कपड़े सभी फेंक दिए। बर्तनों की आवाज से खन्ना साहब और उनकी धर्मपत्नी दौड़कर आए।

जैसे ही उन्होंने यह माजरा सुना कसकर एक जोरदार थप्पड़ दिया उनका हाथ लगते ही.. सुधीर और जोर जोर से बोलने लगा…. क्या रिश्ता है हमारी मां के साथ आपका। अब तो खन्ना आंटी जोर से चिल्ला कर बोली…. बेटा है तू हमारा मैंने तुझे जन्म दिया है। बंटी का जुड़वा भाई है तू सहोदर है उसका।

सुधीर  तो जैसे कटे पेड़ की तरह दम से गिर धरती पर बैठ गया। सुधीर की मां बोली…. नहीं नहीं यह आपने क्या कह दिया। इसकी मां तो मैं ही हूं और रोते – रोते  वह सुधीर को गले लगा ली।

सुधीर इन सब बातों से अंजान कभी अपनी मां और कभी खन्ना अंकल आंटी को देखने लगा पश्चाताप से भरा हुआ।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 49☆ पाखरे चिंतेत आता ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत भावप्रवण कविता  “पाखरे चिंतेत आता।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 49 ☆

☆ पाखरे चिंतेत आता ☆

वादळाशी झाड भिडते रडत नाही

मुळ इतके घट्ट आहे सुटत नाही

 

पाय, तळवे, लोह झाले पूर्ण आता

पावलांना फार काटे रुतत नाही

 

हिरवळीचा बेगडी आहे दिखावा

पावलांना सुखवणारे गवत नाही

 

फूल बाजारात मिळते दाम देता

गंध-वारा विकत येथे मिळत नाही

 

शांततेचा मंत्र लोका का कळेना ?

मज कळाला मी कुणावर चिडत नाही

 

शेत विकले पाखरे चिंतेत आता

माॕल झाले पोट त्याचे भरत नाही

 

लालसा ही भावनेच्या अग्र भागी

प्रीतिची ही बाग आता फुलत नाही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 4 – काही कणिका ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है ‘काही कणिका’ शीर्षक से कुछ भावप्रवण कणिकाएं।आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 4 ☆ 

☆ काही कणिका 

1.

तप्त रस सोनियाचा

खाली आला फुफाटत

सारा शांतला

फुलाफुलांच्या देहात

 

2.

किती कशा भाजतात

उन्हाळ्याच्या ऊष्ण झळा

तरी झुलतात संथ

बहाव्याच्या फुलमाळा

 

3.

मिठी मातीला मारून

पाने ढाळितात आसू

वर हासतात फुले

शाश्वताचं दिव्य हसू

 

4.

किती आवेग फुलांचे

वेल हरखून जाते

काया कोमल तरीही

उभ्या उन्हात जाळते.

 

5.

किती किती उलघाल

होते काहिली काहिली

एक लकेर गंधाची

सारे निववून गेली.

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  योग निद्रा: स्वामी सत्यानंद सरस्वती (अनुवाद एवं स्वर: जगत सिंह बिष्ट)☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  योग निद्रा: स्वामी सत्यानंद सरस्वती (अनुवाद एवं स्वर: जगत सिंह बिष्ट) ☆ 

Video Link >>>>

योग निद्रा: स्वामी सत्यानंद सरस्वती (अनुवाद एवं स्वर: जगत सिंह बिष्ट)

Yoga Nidra (In Hindi): Swami Satyananda Saraswati

Translation and Voice: Jagat Singh Bisht

#yoganidra #योगनिद्रा #peace #relaxation #stressmanagement

Yoga nidra is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation.

योग-निद्रा पूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है.

A single hour of yoga nidra is as restful as four hours of ordinary sleep.

एक घंटे की योग-निद्रा का अभ्यास चार घंटे की साधारण नींद  के बराबर विश्रामदायक है.

Yoga nidra is a more efficient and effective form of psychic and physiological rest and rejuvenation than conventional sleep.

शारीरिक एवं आत्मिक विश्राम प्रदान करने तथा पुनः ऊर्जान्वित करने हेतु, योग-निद्रा, साधारण नींद की अपेक्षा, अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है.

Yoga nidra is a technique which can be used to awaken divine faculties, and is one of the ways of entering samadhi.

योग-निद्रा एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग अपने भीतर दिव्य गुणों को जाग्रत करने के लिए किया जा सकता है, साथ ही साथ यह समाधि की अवस्था में प्रवेश करने का एक साधन भी है.

Most people sleep without resolving their tensions. This is termed ‘nidra’. Nidra means sleep. Yoga nidra means sleep after throwing off the burdens. It is of a blissful, higher quality altogether. Yoga Nidra may be called The Blissful Relaxation.

अधिकतर लोग अपने तनावों का निराकरण किये बगैर सोते है. इसे निद्रा या नींद कहते हैं. योग निद्रा का अर्थ है सभी बोझों को उतार कर सोना. योग निद्रा को आनंदपूर्ण विश्रांति कहा जा सकता है.

सन्दर्भ ग्रंथ: योग निद्रा – स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

(यह विडियो स्वामी सत्यानन्द सरस्वती को समर्पित है)

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत्‌।

स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।3।।

 

क्या यह क्षेत्र प्रकार क्या? होते कौन विकार

होते क्यों, क्षेत्रज्ञ कौन? क्या है प्रभाव प्रकार ।।3।।

 

भावार्थ :  वह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस कारण से जो हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो और जिस प्रभाववाला है- वह सब संक्षेप में मुझसे सुन।।3।।

 

What the Field is and of what nature, what its modifications are and whence it is, and also who He is and what His powers are-hear all that from Me in brief.।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेष कुशल # 3 ☆ नलियाबाखल से मंडीहाउस तक : किस्सा कामियाब सफ़र का ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक सकारात्मक सार्थक व्यंग्य “नलियाबाखल से मंडीहाउस तक : किस्सा कामियाब सफ़र का।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आप तक उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करते रहेंगे। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल #3 ☆

☆ नलियाबाखल से मंडीहाउस तक : किस्सा कामियाब सफ़र का

आप रम्मू को नहीं जानते.

अरे वोई, जो एक जमाने में कंठाल चौराहे पर, साईकिल खड़ी करके, दोपहर का अखबार चिल्ला चिल्ला कर बेचा करता था. यस, वोई. इन दिनों एक न्यूज चैनल में एडिटर-इन-चीफ हो गया है. प्राईम टाईम के प्रोग्राम कम्पाईल करता है. मुझे भी नहीं पता था.

कुछ दिनों पहले, मैं चैनल बदल रहा था तो जोर की आवाज पड़ी कान में. अरे ये तो अपना रम्मू है. ध्यान से देखा तो वोई निकला. कैसा तो मोटा हो गया है. नाक नक्श में भी थोड़ा बदलाव आया है. चश्मा भी लगने लगा है, इसीलिए पहिचानने में देर लगी. लेकिन मैं आवाज से पहचान गया. चिल्लाने की वैसी ही अदा, वही आवाज़ हॉकरों वाली, उतनी ही लाउड. ख़बरों की वैसी ही अदायगी – ‘महापौर के अवैध सम्बन्ध उजागर. छुप छुप के मिलने की कहानी का पर्दाफ़ाश’. आज वो स्टूडियो के न्यूज रूम से पूरे देश के सामने मुखातिब है. क्या शानदार तरक्की की है रम्मू ने!!!

समाचारों की दुनिया में रम्मू के प्रवेश की छोटी सी मगर दिलचस्प कहानी है. शुरू शुरू में रम्मू अपनी साईकिल पर हांक लगाकर खटमलमार पावडर बेचा करता था. क्या तो हाई पिच गला उसका और क्या मज़बूत फेफड़े पाये उसने!! बंसी काका की उस पर नज़र पड़ी, उन्होंने उसे साथ-साथ ‘जलती मशाल’  अखबार बेचने के लिये राजी कर लिया. शहर का सबसे पॉपुलर टैब्लॉयड, क्राईम की खबरों से भरपूर. रम्मू उसमें से ह्त्या, बलात्कार, डकैती की किसी खबर को बुलंद आवाज़ में दोहराता और सौ-दो सौ प्रतियाँ बेच लेता था. ‘आज की ताज़ा खबर’ की उसकी हांक इतनी जोरदार होती थी कि चार किलोमीटर दूर टॉवर चौराहे पर खड़े लोग जान जाते कि कोई सत्तर साल की वृद्धा बीस साल के युवक के साथ भाग गयी है.

एक दिन बंसी काका ने संपादन का दायित्व भी थमा दिया. वो सुबह सुबह प्रूफरीडर होता, फिर एडिटर, फिर हॉकर. ‘तीन ग्रामीणों की पीट पीट कर हत्या’ जैसी खबर नागालैंड से होती, मगर उसकी गूँज से लगता कि क़त्ल अभी अभी इसी चौराहे पर हुआ है. सनसनी वो तब भी बेचता रहा, अब भी. असल जनसरोकारों से उसे तब भी कोई लेना देना नहीं रहा, अब भी. सरोकार में कमाई, टारगेट में बिक्री. नलियाबाखल से मंडीहाउस तक के उसके सफ़र में ‘जलती मशाल’ की झलक हर पायदान पर महसूस की जा सकती है.

देखिये ना, आज वो विचार भी उसी शिद्दत से बेच लेता है जिस शिद्दत से कभी खटमलमर पावडर बेचा करता था. पोलिटिकल लीनिंग और लाईनिंग वो पजामे की तरह बदलता रहता है. थाने की दलाली का कौशल उसे नेशनल केपिटल में पॉलिटिकल पार्टीज के साथ डील करने में मददगार साबित हो रहा है. वो न्यूज का अल्केमिस्ट है. खबर को बाज़ारी से बाजारू बना देने के हुनर को उसने महारथ में जो बदल लिया है. पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिये रम्मू ‘यलो जर्नलिज्म’ की एक फिट केस स्टडी है. वो राई को पहाड़ और पहाड़ को राई बना सकता है. निर्मल बाबा जैसे प्रोडक्ट उसी ने बाज़ार में चलाये हैं. वो राधे माँ, हनी प्रीत, कंगना रानौत-ह्रितिक रोशन प्रसंगों पर घंटों बहस कर सकता है. बिना जमीर के पत्रकारिता करने की उसने एक नायाब नज़ीर कायम की है. प्राईम टाईम की शुरुआत वो गालियों से करता है, और ताली बजा बजा कर इंफोटेनमेंट का सर्कस जमा लेता है. वो पैनलिस्टों से बौद्धिक बहस नहीं करता उन्हें नचवा लेता है. वो इंटेलेक्चुअल्स को शट-अप बोलने का शऊर रखता है. अपनी आवाज़ के दम पर बीस बीस पैनलिस्टों पर अकेला भारी पड़ता है. कभी-कभी उसके पैनलिस्ट सुनील वाल्सन की तरह होते हैं – वे टीम में चुने तो जाते हैं, मैच नहीं खेल पाते. उनके मुंह खोले बिना ही डिबेट पूरी हो जाती है.  उज्जैन में था तो पाड़े लड़वाता था, अब पैनलिस्ट.

पढ़ने में फिसड्डी रहने का स्याह अध्याय वो बहुत पीछे छोड़ आया है. आज वो किसी भी विषय पर बहस करा लेता है. उसका ज्ञान से कोई लेना देना नहीं. वो विज्ञान, समाजशास्त्र, पर्यावरण, कला-साहित्य जैसे विषयों को बिना पढ़े भी खींच तो ले जाता है मगर सुकून उसे हिन्दू-मुसलमां डिबेट में ही मिलता है. वो अपनी बात किसी भी पैनालिस्ट के मुंह में ठूंस सकता है, उगलवा सकता है, निगलवा सकता है, स्टूडियो में उल्टी करने को मजबूर कर सकता है. ‘जलती मशाल’ तो कभी स्तरीय बना नहीं पाया, अलबत्ता नेशनल न्यूज को उसने ‘जलती मशाल’ के स्तर पर ला खड़ा किया है. वो एक ऐसा कीमियागर है जिसने मामूली खबर को निरर्थक बहस से प्रॉफिट के ढेर में तब्दील करने की तकनीक विकसित की है.

वो रात नौ बजे पड़ोसी मुल्क के पैनालिस्टों के विरुद्ध अपनी कर्णभेदी आवाज़ में जंग का बिगुल बजा देता है दस बजते बजते विजय की दुंदुभी बजाकर उठ जाता है. ‘बूँद बूँद को तरसेगा….’ से ‘कुत्ते की मौत मरेगा ….’ जैसे केप्शन्स भरी चीख़ उसे टीआरपी दिलाती है और टीआरपी विज्ञापन. इन सालों में उसने बहुत कुछ सीखा है, अब वो चैनल में ही कचहरी लगा लेता है. जज, ज्यूरी, एक्सीक्यूशनर सब वही रहता है. घंटे-आधे घंटे में फैसले सुनाने लगा है. फैसले जिनके पार्श्व में सिक्के खनकें तो, मगर सुनाई न दें.

उसका अगला लक्ष्य राज्यसभा की कुर्सी है. रम्मू एक दिन होगा वहां. उस रोज़ हम नलियाबाखल में मिठाई बाँट रहे होंगे और आतिशबाजी तो होगी ही. अब इससे ज्यादा, रम्मू के बारे  और क्या जानना चाहेंगे आप ?

 

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-7 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆  चुप्पियाँ-7

चुप रहो…

…क्यों?

…देर तक

तुम्हारी चुप्पी

सुनना चाहता हूँ!

 कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से।)
( 2.9.18, प्रातः 6:59 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 1 – मन के शब्दार्थ ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आपने ई- अभिव्यक्ति के लिए “साप्ताहिक स्तम्भ -अभिनव गीत” प्रारम्भ करने का आग्रह स्वीकारा है, इसके लिए साधुवाद। आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “मन  के शब्दार्थ “ ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ मन के शब्दार्थ  ☆

छूट गये साथी सब

पेंचदार गैल के

बीत गये दिन जैसे

शापित अप्रैल के

 

चिन्तातुर आँगन को

झाँकते पुकारते

मन के शब्दार्थ को

यों अक्षरशः बाँचते

भीतर तक गहरे

अवसाद मे समाये से

शब्दों की तह को

न ढाँपते उघाड़ते

 

देर तलक छाया मे

छिछलते रहे ऐसे

छाछ बचे अधुनातन

छप्पन के छैल के

 

माथे पर चाँद की

तलाश के विचार से

बीत गई रात बहुत

रोशनी, प्रचार से

शंकायें तैर रहीं

आँखों की कोरो में

व्याकुल तारामंडल

अपने घर वार से

 

खोजती चली आई

वह निशीथ की कन्या-

चाँदनी, झाँक गई

घर में खपरैल के

 

नम्र हुआ जाता है

शापित वह पुष्पराग

जिस पर आ सिमटा है

मुस्कानों का प्रभाग

मन्द मन्द खुशबू के

बिखरे हुये केशों

में जाकर सुलगी है

बरसों को दबी आग

 

हवा की किताबों से

देखो छनकर निकले

आखिर वे प्रेमपत्र

किंचित विगड़ैल के

 

© राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 47 ☆ माइक्रो व्यंग्य – ईगो का ईको ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  माइक्रो व्यंग्य –  इगो का इको। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 47

☆ माइक्रो व्यंग्य –  इगो का इको ☆ 

बीस साल पहले हम साथ साथ एक ही आफिस में काम करते थे। पर वे हमारे सुपर बाॅस थे, गुड मार्निंग करो तो देखते नहीं थे, नमस्कार करो तो ऐटीकेट की बात करते थे। जब हेड आफिस से हमारे नाम पुरस्कार आते तो देते समय सबके सामने कहते कि इनके यही सब दंद फंद के काम है बैंक का काम करने में इनका मन लगता नहीं। हेड आफिस से प्रशंसा पत्र आते तो दबा के रख लेते।

जब तक रिटायर नहीं हुए तब तक फेसबुक में हमारी फ्रेंड रिक्वेस्ट को इग्नोर करते रहे। हार कर जब रिटायर हुए तो बेमन से हमारी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली। पिछले दो साल से उन्हें फेसबुक में लिखा आने वाला वाक्य “हैपी बर्थडे टू यू” बिना श्रम के हम भेज देते थे। वे पढ़ कर रख लेते थे। कुछ कहते नहीं थे रिटायरमेंट के हैंगओवर में रहते।  इस बार से हमने न्यु ईयर की हैप्पी न्यु ईयर भी भेजने लगे। थैंक्यू का मेसेज तुरंत आया हमें बहुत खुशी हुई। मार्च माह में इस बार गजब हुआ जैसई हमनें “हैपी बर्थ डे टू यू” भेजा वहां से तुरंत रिप्लाई आई, “आपका हैप्पी बर्थडे का संदेश ऊपर भेजा जा रहा है। साहब का अचानक हृदयाघात से निधन हो गया था जाते-जाते कह गये थे कि सब मेसेज ऊपर फारवर्ड कर देना फिर मैं देख लूंगा।  जाते समय वे आपको याद कर रहे थे और उनकी इच्छा थी कि आप भी उनके साथ चलते……

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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