हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 8 ☆ मन ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “मन ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 8 ☆

☆  मन  ☆

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

घर के एक एक कोने में मेरा मन,

न जाने कहाँ कहाँ भटकता मेरा मन,

इस मन को पकड़ लेना चाहती हूँ, मन ही मन में,

कभी रोकती हूँ, कभी टोकती हूँ, ना जाए इधर उधर मेरा मन,

कभी पतंग सा  उड़ता मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

कभी घूमने निकलूँ तो, चाट के ठेले पे ललचाता मेरा मन,

कभी रंगीन कपड़ों की दुकानों पर, रुक जाता मेरा मन,

कभी पार्क में बैठूँ तो, पता नहीं कहाँ खो जाता मेरा मन,

कभी पुरानी  यादों में मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

दीपावली के फटाकों से उत्साहित मेरा मन,

होली के रंगों से रंगा हुआ मेरा मन,

बैसाखी मे नाचता हुआ मेरा मन,

हर त्यौहार में आनन्दित मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

 

हर दुख में रोता चीखता मेरा मन,

किसी सहारे, किसी कंधे को ढूँढता मेरा मन,

हर उम्र में ढूँढता, माँ की गोद को मेरा मन,

क्योंकि आकाश की अन्तहीन सीमा में मेरा मन,

भावों की सरिता में मेरा मन, इन्द्रधनुष सा मेरा मन।

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आधिपत्य ☆ डॉ मौसमी परिहार

डॉ मौसमी परिहार

(संस्कारधानी जबलपुर में  जन्मी  डॉ मौसमी जी ने “डॉ हरिवंशराय बच्चन की काव्य भाषा का अध्ययन” विषय पर  पी एच डी अर्जित। आपकी रचनाओं का प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारण। आकाशवाणी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘युगवाणी’ तथा दूरदर्शन के ‘कृषि दर्शन’ का संचालन। रंगकर्म में विशेष रुचि के चलते सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ पटकथा लेखक और निर्देशक अशोक मिश्रा के निर्देशन में मंचित नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत। कई सम्मानों से सम्मानित, जिनमें प्रमुख हैं वुमन आवाज सम्मानअटल सागर सम्मानमहादेवी सम्मान हैं।  हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को ई- अभिव्यक्ति में साझा करने की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर विचारणीय कविता  ‘आधिपत्य’ )   

 ☆ कविता  – आधिपत्य ☆

 

जेठ की तपती

धूप के साथ

दस्तक देती  बारिश में

 

कीट पतंगों की

बल्ले बल्ले हो जाती है

घर के बाहर राज

करते करते,,

घर के अंदर भी

अपना आधिपत्य जमा लेते है

 

और बिना वजह

जहरीली दवा या चप्पल से

कुचले जाते है

 

महिलाएं यूं तो

बड़े से बडा दुःख

सहन कर जाती है

फिर क्यों अचानक

कॉकरोच का छिपकली

के दिख जाने से ही

उंसकी चीख  निकल जाती है

 

© डॉ मौसमी परिहार

संप्रति – रवीन्द्रनाथ टैगोर  महाविद्यालय, भोपाल मध्य प्रदेश  में सहायक प्राध्यापक।

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 47 – गुरूने दिला ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण कविता  ” गुरूने दिला”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 46 ☆

☆ गुरूने दिला ☆

 

गुरुने दिला हा। ज्ञानरूपी वसा। वाटू घसघसा । सकलांना।।१।।

गुरूने दिधली।ज्ञानाची शिदोरी ।अज्ञान उधारी।संपविण्या।।२।।

करिता प्राशन ।ज्ञानामृत  गोड । संस्काराची जोड। लाभे तया।।३।।

गुरू उपदेश।  उजळीतो दिशा। पालटेल दशा जीवनाची।।४।।

गुरूविना भासे ।तमोमय सृष्टी । देई दिव्य दृष्टी । गुरू माय।।५।।

गुरू जीवनाचा।असे शिल्पकार । जीवना आकार ।लाभलासे।।६।।

गुरू माऊलीला।करू या वंदन । जीवन चंदन। सुगंधीत।।७।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Yoga Nidra by Swami Satyananda Saraswati ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Yoga Nidra by Swami Satyananda Saraswati ☆ 

Video Link >>>>

Yoga Nidra by Swami Satyananda Saraswati

Yoga Nidra is a powerful technique in which you learn to relax consciously. It is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation. During the practice of yoga nidra, one appears to be asleep, but the consciousness is functioning at a deeper level of awareness. Here, the state of relaxation is reached by turning inwards, away from outer experiences.

Swami Satyananda Saraswati constructed this new system called Yoga Nidra incorporating the essence of tantric scriptures and practices without having complicated ritualistic drawbacks.

Yoga nidra is a simple practice. Choose a quiet room and lie down comfortably. Listen to the instructions and follow them mentally. The most important thing in yoga nidra is to refrain from sleep.

There are several versions of yoga nidra available but this one by Swami Satyananda Saraswati is perhaps the most powerful. It is very effective. I have benefited from it greatly and received a very positive feedback from all my friends to whom I passed it on. I feel it my humble duty to make it available to anyone who may need it.

For all practitioners of yoga nidra, Swami Satyananda Saraswati’s book ‘Yoga Nidra’ will be especially useful.

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम।।2।।

 

सब क्षेत्रों में उपस्थित , मुझे तू क्षेत्रज्ञ जान

क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का ज्ञान है, मेरे ज्ञान समान ।।2।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ अर्थात जीवात्मा भी मुझे ही जान (गीता अध्याय 15 श्लोक 7 और उसकी टिप्पणी देखनी चाहिए) और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ को अर्थात विकार सहित प्रकृति और पुरुष का जो तत्व से जानना है (गीता अध्याय 13 श्लोक 23 और उसकी टिप्पणी देखनी चाहिए) वह ज्ञान है- ऐसा मेरा मत है।।2।।

 

Do thou also know Me as the Knower of the Field in all fields, O Arjuna! Knowledge of both the Field and the Knower of the Field is considered by Me to be the knowledge.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 50 ☆ व्यंग्य – निरगुन बाबू की पीड़ा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘निरगुन बाबू की पीड़ा’। वास्तव में कुछ पात्र हमारे आसपास  ही दिख जाते हैं, किन्तु , उन्हें हूबहू अपनी लेखनी से कागज़ पर उतार देना, डॉ परिहार सर  की लेखनी ही कर सकती है।  ऐसा लगता है जैसे अभी हाल ही में निर्गुण बाबू से मिल कर आ रहे हैं। ऐसे  अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 50 ☆

☆ व्यंग्य – निरगुन बाबू की पीड़ा ☆

निरगुन बाबू चौबीस घंटे पीड़ा से भरे रहते हैं। उन्हें संसार में अच्छा कुछ भी नहीं दिखता। सब भ्रष्टाचार है, सत्यानाश है, बरबादी है।

सबेरे दूधवाला दूध देकर जाता है तो निरगुन बाबू पाँच मिनट तक पतीले को हिलाते खड़े रहते हैं। कहते हैं, ‘देखो, पानी में थोड़ा सा दूध मिलाकर दे गया। ये बेपढ़े लिखे लोग हमारे कान काटते हैं। दुनिया बहुत होशियार हो गयी।’

सब्ज़ी लेने जाते हैं तो सब्ज़ीवालों से घंटों महाभारत करते हैं। घंटों भाव-ताव होता है। कहते हैं, ‘ठगने को हमीं मिले? हमें पूरा बाजार मालूम है। हमें क्या ठगते हो?’  तराजू में से आधी सब्ज़ी निकालकर वापस टोकरी में फेंक देते हैं। कहते हैं, ‘यह सड़ी सब्जी हमारे सिर मत मढ़ो। जानता हूँ कि तुम बड़े होशियार हो।’

सब्ज़ी की तौल के वक्त निरगुन बाबू की चौकन्नी नज़र तराजू के काँटे पर रहती है। हिदायत चलती है—-‘पल्ले पर से हाथ हटाओ। जरा और ऊपर उठाओ। पल्ला नीचे जमीन पर धरा है। डंडी मत मारो।’ तराजू उठाए उठाए सब्ज़ीवाले का हाथ थरथराने लगता है, लेकिन निरगुन बाबू का शक दूर नहीं होता। घर लौटकर कहते हैं, ‘साले सब चोर बेईमान हैं। ठगने के चक्कर में रहते हैं।’

उनकी नज़र में मोची भी बेईमान है और धोबी भी। चप्पल सुधरवाकर कई मिनट उसको उलटते पलटते हैं। फिर भुनभुनाते हैं, ‘दो टाँके मारे और दो रुपये ले लिये। लूट मची है।’

कपड़े धुल कर आने पर निरगुन बाबू उनमें पचास धब्बे ढूँढ़ निकालते हैं। पचास जगह सलवटें बताते हैं।  ‘ससुरे मुफ्त के पैसे लेते हैं। इससे अच्छा तो घर में ही धो लेते।’

नुक्कड़ का बनिया उनकी नज़र में पक्का बेईमान है। कम तौलता है, खराब माल देता है और ज़्यादा पैसे लेता है। यानी सर्वगुणसंपन्न है। लेकिन उससे निरगुन बाबू कुछ नहीं बोलते क्योंकि महीने भर उधार चलता है। उधार का तत्व उनकी तेजस्विता का गला घोंट देता है।

उनके बच्चों के मास्टर बेईमान हैं। कुछ पढ़ाते लिखाते नहीं। जानबूझकर उनके सपूतों को फेल कर देते हैं। एक मास्टर को उन्होंने घर पर पढ़ाने के लिए लगाया था। लेकिन पढ़ाई के वक्त निरगुन बाबू उसके आसपास ही मंडराते रहते थे। नतीजा यह कि एक महीना होते न होते वह मास्टर भाग गया।

राशन की लाइन में लगने वालों को निरगुन बाबू बताते हैं कि कैसे अच्छा राशन खराब राशन में बदल जाता है। बस में बैठते हैं तो सहयात्रियों  को बताते हैं कि कैसे बसों के टायर-ट्यूब और हिस्से-पुर्ज़े बिक जाते हैं। ट्रेन में बैठते हैं तो भाषण देते हैं कि कैसे रेलवे के बाबू लोग पैसे बनाते हैं।

निरगुन बाबू देश के भ्रष्टाचार के चलते-फिरते ज्ञानकोश हैं। एक एक कोने के भ्रष्टाचार की जानकारी उन्हें है। भ्रष्टाचार सर्वत्र है, सर्वव्यापी है, लाइलाज है। दुनिया चूल्हे में धरने लायक हो गयी है।

भ्रष्टाचार का रोना रोने वाले निरगुन बाबू साढ़े दस बजे अपने दफ्तर के सामने ज़रूर पहुँच जाते हैं, लेकिन ग्यारह बजे तक सामने वाले पान के ठेले पर खैनी मलते रहते हैं। निरगुन बाबू नगर निगम के जल विभाग में हैं। ग्यारह बजे कुरसी पर पहुँचने पर यदि उन्हें कोई शिकायतकर्ता इंतज़ार करता मिल जाता है तो उनका माथा चढ़ जाता है। कहते हैं, ‘क्यों भइया, रात को सोये नहीं क्या? हमारे दरसन की इतनी इच्छा थी तो हमसे कहते। हम आपके घर आ जाते।’ आधे घंटे तक मेज कुरसी खिसकाने और पोथा-पोथी इधर उधर करने के बाद उनका काम शुरू होता है।

हर दस मिनट पर निरगुन बाबू दोस्तों से गप लड़ाने या बाथरूम जाने के लिए उठ जाते हैं और उनकी कुरसी खाली हो जाती है। शिकायतकर्ता खड़े उनका इंतज़ार करते रहते हैं। कोई कुछ कहता है तो निरगुन बाबू जवाब देते हैं, ‘आदमी हैं। कोई कोल्हू के बैल नहीं हैं कि जुते रहें।’

हर घंटे में वे चाय के लिए खिसक लेते हैं। लंच टाइम एक से दो बजे तक होता है, लेकिन वे पौन बजे कुरसी छोड़ देते हैं और ढाई बजे से पहले कुरसी के पास नहीं फटकते। लोग काम के लिए घिघियाते रह जाते हैं।

पौने पाँच बजे फिर निरगुन बाबू कुरसी छोड़ देते हैं और पान के ठेले पर पहुँच जाते हैं। वहाँ उनका भाषण शुरू हो जाता है, ‘भइया, बाल पक गये, लेकिन ऐसा अंधेर और भ्रष्टाचार न देखा। दुनिया ससुरी बिलकुल चूल्हे में धरने लायक हो गयी। ‘

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिव्यक्ति # 17 ☆ आलेख  – अमेज़न किंडल – अपने मोबाईल पर ईबुक्स पढ़ें  ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा।  आज प्रस्तुत है  एक आलेख  “अमेज़न किंडल – अपने मोबाईल पर ईबुक्स पढ़ें ”।  अभी भी  60 प्रतिशत से अधिक लेखक पाठक विशेषकर मेरी समवयस्क पीढ़ी सोचती है कि अमेजन किंडल ईबुक्स पढ़ने के लिए उन्हें अमेजन किंडल रीडर खरीदना पड़ेगा। ऐसी कई भ्रांतियां और आपको ईबुक्स की दुनिया से रूबरू कराने का एक छोटा सा प्रयास। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये और पसंद आये तो मित्रों से शेयर भी कीजियेगा । अच्छा लगेगा ।)  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 17

☆ आलेख  – अमेज़न किंडल – अपने मोबाईल पर ईबुक्स पढ़ें    ☆

आज सारा विश्व एक विचित्र समय से गुजर रहा है। जैसा उन्मुक्त जीवन हम सब व्यतीत कर चुके हैं वैसा पुनः जी भी पाएंगे यह हमें स्वप्न सा प्रतीत हो रहा है। आज जब हम सुबह उठकर आदतन चाय के साथ समाचार पत्र पढ़ने के लिए समाचार पत्र उठाने के लिए हाथ बढ़ाते हैं तो मन में पहले यह विचार आता है कि समाचार पत्र को सेनिटाइज़ कैसे करें। इस चक्कर में लोगों ने समाचार पत्र के स्थान पर मोबाइल पर ई-समाचार पत्र पढ़ना प्रारम्भ कर दिया है अथवा टेलीविज़न पर समाचार देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। अब तो यूट्यूब पर भी वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने यूट्यूब समाचार चैनल बना लिए हैं।

अब रही पुस्तकों के प्रकाशन की बात तो यह तय है कि अन्य उद्योगों कि तरह प्रकाशन उद्योग को भी पटरी पर आने में समय लगेगा। आपको अपनी ही पुस्तक को छूने से पहले लगेगा कि इसे सेनीटाइज़ कैसे करें और जिसे आप पुस्तक देंगे वह उसे कैसे स्वीकारेगा? यह भविष्य ही बताएगा। ऐसे में ई-बुक व्यवसाय निश्चित ही एक क्रांतिकारी कदम है।

यदि आपको ईबुक्स के इतिहास जानने में रुचि है तो आप गूगल में सर्च कर सकते हैं अथवा U.S. Government Publishing Office’s (GPO) Government Book Talk! के  निम्न लिंक कर क्लिक कर विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:

The History of eBooks from 1930’s “Readies” to Today’s GPO eBook Services

इसमें कोई दो मत नहीं कि पुस्तक का प्रिंट एडिशन ही सबको भाता है और किसी भी लेखक को अपनी पुस्तक के पेपरबेक या सजिल्द संस्करण को भेंट करने में गर्व का अनुभव होता है। किन्तु, आज पुस्तक प्रकाशन पहले जैसा नहीं रहा जब पुस्तक की गुणवत्ता के आधार पर पुस्तक का प्रकाशन होता था और उसके अनुरूप लेखक को रॉयल्टी प्राप्त होती थी।

आज सेल्फ पब्लिशिंग का समय है। लेखक को अपनी पुस्तक स्वयं के खर्च पर प्रकाशित करनी होती है और स्वयं ही सोशल मीडिया का सहारा लेकर बेचनी होती है, या मुफ्त में बांटनी होती है।

ऐसे समय में लेखकों के लिए ई-बुक एक वरदान है। यदि आपको ई-बुक्स की तकनीकी जानकारी है तो आप इस प्रणाली का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। यह सुविधा अमेज़न द्वारा मुफ्त में उपलब्ध है, जिसे किंडल डाइरेक्ट पब्लिशिंग के नाम से जाना जाता है। आप इसकी विस्तृत जानकारी kdp.amazon.com पर प्राप्त कर सकते हैं। इस माध्यम से आप अपनी पुस्तकों को अमेजन की आवश्यकतानुसार उनके द्वारा तय मानकों में वर्ड फॉर्मेट में पुस्तक तैयार करने  के पश्चात् अमेजन में अपलोड कर   मुफ्त में ई-बुक के रूप में प्रकाशित कर अमेज़न पर बेच सकते हैं। अमेज़न प्लेटफॉर्म वर्तमान में लेखकों को गुजराती, हिन्दी, मलयालम, मराठी और तमिल भाषाओं में ईबुक्स प्रकाशित करने की सुविधा देता है।

लेखक अपनी अङ्ग्रेज़ी पुस्तकों को ईबुक्स और पेपरबेक दोनों संस्करण मुफ्त में प्रकाशित कर सकते हैं। किन्तु, भारत में अङ्ग्रेज़ी का प्रिंट संस्कारण उपलब्ध नहीं है। अभी भारतीय भाषाओं में अमेज़न द्वारा भारत में पेपरबेक संस्कारण की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। सार यह है कि वर्तमान में आप उपरोक्त पाँच भारतीय भाषाओं में ईबुक्स मुफ्त में प्रकाशित कर सकते हैं। प्रत्येक लेखक का डेशबोर्ड होता है जिसमे वे अपने बुकशेल्फ विक्रित पुस्तकों  का लेखा जोखा देख सकते हैं । अमेजन द्वारा निर्धारित रॉयल्टी लेखक के खाते में जमा कर दी जाती है। ईबुक प्रकाशन एक अलग विषय है, जिसकी संक्षिप्त जानकारी मैंने आपको देने का प्रयास किया है। यदि लेखक/पाठक चाहेंगे तो इसकी जानकारी भविष्य के लेखों में दी जा सकती है।

जब मैंने लोगों से ईबुक्स के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि 25% युवा पीढ़ी के लेखकों को ईबुक्स की बेहतर अथवा सतही जानकारी है। किन्तु, 80% प्रतिशत से अधिक लेखक/पाठक इस प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं, विशेषकर मेरी समवयस्क पीढ़ी। मेरे कई समवयस्क मित्रों की पुस्तकों को प्रकाशक ने पेपरबेक और ईबुक फॉर्मेट में प्रकाशित किया है किन्तु जानकारी के अभाव में उन्होंने अपनी पुस्तकों का मात्र पेपरबेक संस्करण ही पढ़ा है और ईबुक अब तक नहीं पढ़ सके हैं। यहाँ हम ईबुक्स को एक पाठक के दृष्टिकोण से देखना चाहेंगे।

यदि हम ईबुक को संक्षिप्त में जानना चाहेंगे तो ईबुक, सामान्य बुक अथवा पुस्तक का डिजिटल संस्करण है। ईबुक को आप वैसे ही पढ़ सकते हैं जैसे आप एक सामान्य पुस्तक पढ़ते हैं। बिलकुल वैसे ही पृष्ठ पलटकर पढ़ सकते हैं जैसे आप सामान्य पुस्तक के पृष्ठ पलटकर पढ़ते हैं।

आप अपनी पुस्तक को उँगलियों से स्क्रीन पर स्पर्श कर वैसे ही पलटा सकते हैं जैसे आप पुस्तक के पृष्ठ पलटते हैं ( कृपया  उपरोक्त चित्र देखें )

अब तो ऐसी ईबुक्स भी आ गईं हैं जिन्हें आप इयरफोन से बिना पढे आडिओ बुक की तरह सुन भी सकते हैं। ईबुक में आवश्यकतानुसार चित्र, ग्राफ, चार्ट आदि भी डाल सकते हैं।  पुस्तक इसके अतिरिक्त आप ईबुक्स में आडिओ, यूट्यूब विडियो या इंटरनेट के किसी भी साइट के लिंक्स दे सकते हैं और पुस्तक पढ़ते हुए उस इंटरनेट साइट पर जाकर वापिस पढ़ना जारी रख सकते हैं। बच्चों के लिए इंटरैक्टिव ईबुक्स भी बाजार में उपलब्ध हैं।

साधारणतया ईबुक EPUB, MOBI, AZW, AZW3, PDF, IBA (iBook), PDF आदि कई फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। IBA (iBook) आईफोन अथवा आईपेड पर पढ़ने वाले ईबुक का फार्मेट है। AZW और AZW3 अमेज़न ईबुक के फॉर्मेट हैं। किसी भी ईबुक को पढ़ने के लिए आपको रीडर डिवाइस की आवश्यकता होगी। अमेज़न ईबुक के लिए किंडल रीडर डिवाइस उपलब्ध है। EPUB सबसे लोकप्रिय ईबुक फॉर्मेट है।

यहाँ हम अमेज़न किंडल ईबुक को अपने एंड्रोएड फोन पर कैसे पढ़ें इसकी जानकारी साझा करने का प्रयास करेंगे।

अमेजन एप्प्स >>>>

आपके एंड्रोएड मोबाइल फोन पर अमेज़न किंडल ईबुक पढ़ने के लिए दो मुख्य एप्प होने चाहिए –

  1. अमेज़न शॉपिंग एप्प (Amazon Shopping, UPI, Money Transfer, Bill Payment App)
  2. अमेज़न किंडल – रीड ईबुक्स, कॉमिक्स अँड मोर (Amazon Kindle – Read eBooks, comics & More App)

उपरोक्त प्रथम अमेज़न शॉपिंग एप्प से आप ईबूक खरीद सकते हैं और दूसरे अमेज़न किंडल एप्प से आप ईबुक पढ़ भी सकते हैं और खरीद भी सकते हैं।

इस प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि जब आप एप्प अपने मोबाइल पर इन्स्टाल करेंगे तो दोनों एप्प में मोबाइल फोन नंबर तथा ईमेल आईडी एक ही होने चाहिए। एप्प इन्स्टाल करने के लिए आपको गूगल प्ले स्टोर में जाना पड़ेगा और उपरोक्त एप्प के नाम डालकर सर्च कर इन्स्टाल करना पड़ेगा।

आज ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले 99.9 प्रतिशत क्रेता अमेज़न एप्प से परिचित हैं। यदि  मेरी समवयस्क पीढ़ी के मित्रों को इसकी जानकारी नहीं है तो इसके लिए अपने परिजनों या मित्रों से जानकारी लेनी चाहिए जो ऑनलाइन शॉपिंग से परिचित हैं अथवा एप्प का उपयोग करते हैं। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है। जब आप ऑनलाइन प्रक्रिया से भलीभाँति परिचित हो जाते हैं तो आप अमेज़न किंडल एप्प से ही सीधे पुस्तक क्रय कर सकते हैं क्योंकि उसमे भी अमेज़न शॉपिंग एप्प की तरह पुस्तक खरीदने के लिए शॉपिंग कार्ट और भुगतान की  सुविधा रहती है।

एक बार एप्प आपके मोबाइल पर इन्स्टाल हो गया फिर ईबुक खरीदना अत्यंत आसान है। आपको जिस लेखक की ईबुक क्रय करना है उस लेखक का नाम डालकर सर्च करें तो आपके स्क्रीन पर उस लेखक कि सभी पुस्तकें दिखाई देंगी। (कृपया  निम्न चित्र देखें ) जिस पुस्तक को आप क्रय करना चाहते हैं उस पर क्लिक कर शॉपिंग कार्ट में जोड़ दें और पेमेंट गेटवे के माध्यम से पेमेंट कर दें।

आप पेमेंट गेट वे से जैसे ही भुगतान करते हैं संबन्धित पुस्तक आपके अमेज़न किंडल रीड एप्प में सिंक्रोनाइज होकर अपने आप आ जाती है जिसे आप अपनी सुविधानुसार कभी भी पढ़ सकते हैं।

यहाँ हमने अमेज़न किंडल ईबुक की चर्चा की है। यदि आप एक तकनीक से वाकिफ हो जाते हैं तो बाजार में उपलब्ध अन्य तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं।  इसी तरह गूगल प्ले बुक्स – ईबुक्स, आडिओ बुक्स अँड कॉमिक्स एप्प और विभिन्न ईबुक रीडर बाजार में उपलब्ध हैं।

ईबुक की सबसे बड़ी सुविधा यह है कि आपको अपने साथ बड़ी बड़ी पुस्तकें लेकर नहीं जाना है और न ही अपने घर में पुस्तकालय बनाना है । आपकी जेब में आपका मोबाइल ही आपकी ईबुक्स का बुक शेल्फ / पुस्तकालय है। फिर एक बार ईबुक आपके मोबाइल में लोड हो गई उसके बाद उसे पढ़ने के लिए आपको इंटरनेट की भी आवश्यकता नहीं है। ये आपके मोबाईल की मेमोरी का ज्यादा स्थान भी नहीं लेतीं और आवश्यकता पड़ने पर आप उन्हें मेमोरी कार्ड में लोड भी कर सकते हैं।  हाँ यदि आपकी ईबुक में कोई आडिओ या यूट्यूब विडियो लिंक है तो आपको इंटरनेट की आवश्यकता पड़ सकती है। आज नहीं तो कल अमेजन अवश्य अन्य देशों की भांति भारत में भी अंग्रेजी पुस्तकों का पेपर बेक संस्करण  ईबुक के  साथ में लाएगा ऐसी कल्पना है। कुछ भारतीय प्रकाशक यह तकनीक अपना रहे हैं किन्तु,, वे  लेखकों  के लिए अत्यंत महँगी हैं अथवा उन्हें एक निश्चित संख्या में पुस्तकें मजबूरन प्रकाशित करना अनिवार्य होता है। आज का समय निश्चित ही ईबुक का है और लेखक किसी भी तरह से  प्रकाशक पर निर्भर नहीं रह सकेंगे।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #48 ☆ सीढ़ियां ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # सीढ़ियां ☆

(दो दिन पूर्व ‘सीढ़ियाँ’ शीर्षक से अपनी एक कविता साझा की थी। पुनर्पाठ में आज पढ़िए इसी शीर्षक की एक लघुकथा।)

“ये सीढ़ियाँ जादुई हैं पर खड़ी, सपाट, ऊँची, अनेक जगह ख़तरनाक ढंग से टूटी-फूटी हैं। इन पर चढ़ना आसान नहीं है। कुल जमा सौ के लगभग हैं। सारी सीढ़ियों का तो पता नहीं पर प्राचीन ग्रंथों, साधना और अब तक के अनुसंधानों से पता चला है कि 11वीं से 20वीं सीढ़ी के बीच एक दरवाज़ा है। यह दरवाज़ा एक गलियारे में खुलता है जो धन-संपदा से भरा है। इसे ठेलकर भीतर जानेवाले की कई पीढ़ियाँ अकूत संपदा की स्वामी बनी रहती हैं।

20वीं से  35वीं सीढ़ी के बीच कोई दरवाज़ा है जो सत्ता के गलियारे में खुलता है। इसे खोलनेवाला सत्ता काबिज़ करता है और टिकाए रखता है।

साधना के परिणाम बताते हैं कि 35वीं से 50वीं सीढ़ी के बीच भी एक दरवाज़ा है जो मान- सम्मान के गलियारे में पहुँचाता है। यहाँ आने के लिए त्याग, कर्मनिष्ठा और कठोर परिश्रम अनिवार्य हैं। यदा-कदा कोई बिरला ही पहुँचा है यहाँ तक”…, नियति ने मनुष्यों से अपना संवाद समाप्त किया और सीढ़ियों की ओर बढ़ चली। मनुष्यों में सीढियाँ चढ़ने की होड़ लग गई।

आँकड़े बताते हैं कि 91 प्रतिशत मनुष्य 11वीं से 20वीं सीढ़ी के बीच भटक रहे हैं। ज़्यादातर दम तोड़ चुके। अलबत्ता कुछ को दरवाज़ा मिल चुका, कुछ का भटकाव जारी है। कुबेर का दरवाज़ा उत्सव मना रहा है।

8 प्रतिशत अधिक महत्वाकांक्षी निकले। वे 20वीं से 35वीं सीढ़ी के बीच अपनी नियति तलाश रहे हैं। दरवाज़े की खोज में वे लोक-लाज, नीति सब तज चुके। सत्ता की दहलीज़ शृंगार कर रही है। शिकार के पहले सत्ता, शृंगार करती है।

1 प्रतिशत लोग 35 से 50 के बीच की सीढ़ियों पर आ पहुँचे हैं। वे उजले लोग हैं। उनके मन का एक हिस्सा उजला है, याने एक हिस्सा स्याह भी है। उजले के साथ इस अपूर्व ऊँचाई पर आकर स्याह गदगद है।

संख्या पूरी हो चुकी। 101वीं सीढ़ी पर सदियों से उपेक्षित पड़े मोक्षद्वार को इस बार भी निराशा ही हाथ लगी।

# घर में रहें। सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 34 – मनसा-वाचा-कर्मणा  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री स्वातंत्र्य पर आधारित एक सशक्त रचना  ‘ मनसा – वाचा – कर्मणा । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 34 – विशाखा की नज़र से

☆  मनसा – वाचा – कर्मणा   ☆

कुरीतियों के पंक से निकलकर

अब जाकर पंकज की तरह खिली हैं

स्त्रियाँ

पर चाहती हूँ उनके अस्तित्व

अब भी बना रहे तैलीय आवरण

 

तब तक

जब तक इस पितृसत्तात्मक समाज में

पितृ एवं सत्ता का हो न जाये विघटन

मनसा – वाचा – कर्मणा

समाज स्वीकारें स्त्रियों का स्वतंत्र अस्तित्व

जब पुरुष महसूस करे अंतःकरण से ऊष्मा

तब वह भरे प्रकृति को आलिंगन में

और स्वतःस्फूर्त ही टूट जाये तैलीय दर्पण

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 7 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 7/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 7 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

कोई रिश्ता नहीं

रहा  फिर  भी,

एक तस्लीम तो

लाज़मी सी  है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

Agreed there remains

no relation now; 

At least, an admittance

Is inevitably desirable…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

गर शतरंज का शौक़ होता

तो तमाम धोखे नहीं खाता

वो मोहरे पर मोहरे चलते रहे 

और मैं रिश्तेदारी निभाता रहा…

 

If only I was fond of chess

Won’t have got cheated at all

They kept on moving pieces

While I kept maintaining kinship!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

एक उम्र  वो  थी  कि 

जादू पर भी यक़ीन था,

एक  उम्र ये  है  कि 

हक़ीक़त पर भी शक़ है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

There once was an age when

I used to believe even in magic,

And now, there’s an age when I

Look at reality with suspicion!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

कोई आदत, कोई शरारत, 

मेरी बातें या मेरी ख़ामोशी

कुछ न कुछ तो उसे जरूर

ही  याद  आता  ही  होगा…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

My habits, or the mischiefs, 

My words or the silence

For sure,  he  must  be 

missing something of mine!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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