(आदरणीया सौ .योगिता किरण पाखले जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। सौ.योगिता जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आप कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी रचनाएँ स्तरीय पत्र पत्रिकाओं / चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित हुई हैं। आज प्रस्तुत है आपकी वर्षा ऋतु पर आधारित शृंगारिक कविता “प्रेमवेड़ा पाऊस”। हम भविष्य में आपकी और चुनिन्दा रचनाओं को प्रकाशित करने की अपेक्षा करते हैं।)
♥ प्रेमवेडा पाऊस ♥
आठवतो मला आजही तो पाऊस
आपल्या प्रेमाची पूरवायचा हौस …… धृ
सरीवर सरी किती धुंद करायच्या
भावनांच्या ओलाव्यात चिंब चिंब भिजवायच्या
डोळ्यांनीच सांगून जायचा,नको ना गं जाऊस
आठवतो मला….. १
ओथंबलेले घन अन भिजले मन थांबवायचे कसे
काही शब्दातच सारे गाणे बसवायचे कसे
माहित होत त्याला म्हणूनच सांगायचा, नको ना गं गाऊस
आठवतो मला….. २
कधी खोडकर कधी हळवा होऊन बरसायचा
डोळ्यातील अश्रूंना उगाचच पावसात भिजवायचा
मी बोलायच्या आतच म्हणायचा, नको ना गं पाहूस
आठवतो मला……. ३
भर पावसात मुद्दामच छत्री विसरायचा
एका छत्रीत( छताखाली) येण्याचा बहाणा शोधायचा
मी बोलण्या आधीच कटू सत्य म्हणायचा, नको ना गं दृष्ट लावूस
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना एक काव्य संसार है । साप्ताहिक स्तम्भ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक कवि हृदय की कल्पना और कल्पना की सीमाओं में बंधी कविता “उडताही नाही आले”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 5 ☆
उडताही नाही आले
बाहेर मला घरट्याच्या पडताही नाही आले
पंखाना धाक असा की उडताही नाही आले
हे बांध घातले त्यांनी हुंदके अडवले होते डोळ्यात झरे असतांना रडताही नाही आले
या काळ्या बुरख्या मागे मी किती दडवले अश्रू पुरुषांची मक्तेदारी नडताही नाही आले
धर्माचे छप्पर होते जातींच्या विशाल भिंती
मज सागरात प्रीतीच्या बुडताही नाही आले
या गोर्या वर्णाचीही मज भिती वाटते आता त्या अंधाराच्या मागे दडताही नाही आले
वरदान मला सृजनाचे नाकार कितीही वेड्या खुडण्याचे धाडस केले खुडताही नाही आले
☆ Laughter Yoga Learning Video for the Beginners ☆
This is a laughter yoga learning video for those who would like to lead laughter yoga sessions on their own. Especially those who have attended a session or two of Laughter Yoga and are fascinated by the concept. This video will give them all the basics in the right perspective and enable them to be good Laughter Yoga anchors/ leaders/ teachers.
It is one of the most beautiful and simple videos on the topic and has been watched widely the world over. Many Laughter Yoga leaders/ teachers have learned and benefited from it.
LINK TO THE VIDEO:
Probationary/ Trainee Officers from all over India come to State Bank Foundation Institute (Chetana), Indore on a regular basis for their initial grooming. All of them have a brief tryst with Laughter Yoga during their stay here. Some days ago, Shiva Prasad K and Barane Tharan expressed desire to conduct laughter sessions on their own when they are back home. They organized a brief learning session encompassing the 4 basic steps of laughter yoga and videographed it. Hope, this video will be useful for all those who have attended a laughter yoga session or two and wish to conduct laughter sessions on their own. Love and Laughter..
विवस्वान ने मनु को ,मनु ने इक्ष्वाकु को समझाया।।1।।
भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।।1।।
I taught this imperishable Yoga to Vivasvan; he told it to Manu; Manu proclaimed it to Ikshvaku. ।।1।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी द्वारा रानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर विशेष रूप से लिखित नाटक। यह नाटक बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक के लिए शिक्षाप्रद गीत, कविता एवं साक्षात्कार का मिला जुला स्वरूप है जो अपने आप में एक प्रयोग से कम नहीं है। साथ ही यह नाटक हमें इतिहास के कई अनछुए पहलुओं से रूबरू करता है। )
☆ नाटक – विश्व इतिहास की पहली महिला योद्धा ..वीरांगना रानी दुर्गावती☆
पात्र-
0 गायन मंडली
1 पुरूष स्वर (1) – पापा
2 बालिका – चीना
3 बालक – चीकू
4 खंडहर की आवाजे – (अनुगूंज में महिला स्वर)
5 पुरूष स्वर (2)
6 साक्षात्कार कर्ता
जिनसे साक्षात्कार लेना है –
० रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति
१. कलेक्टर जबलपुर
२. संग्रहालय अध्यक्ष- जबलपुर रानी दुर्गावती संग्रहालय
३. संग्रहालय अध्यक्ष- मंडला
४. संग्रहालय अध्यक्ष ..दमोह
५. मदन महल , वीरांगना दुर्गावती की समाधि के आम पर्यटक एवं उस परिसर के दुकानदार आदि
चीना- चीकू । मैने तुमसे कोई कहानियो की किताब लाने को कहा था तुम ये कौन सी पुस्तक उठा लाये हो पुस्तकालय से।
चीकू- दीदी यह पुस्तक है ‘रानी दुर्गावती’ वही दुर्गावती, जिसके विषय मे हमारी पाठ्य पुस्तक में छोटा सा पाठ पिछले साल हमने पढा था।
चीना- अरे वाह। तब तो इससे हमे वीरांगना दुर्गावती के विषय में पूरी जानकारी मिल जायेगी।
पापा- हां बच्चो। तुम लोग इस पुस्तक को पूरी तरह पढ डालो, यह छुटिटयो का अच्छा उपयोग होगा। फिर मै तुम्हें वह जगह घुमाने ले जाउंगा जहां दुर्गावती ने वीरगति पाई थी और मदन महल एवं अन्य वे स्थान भी दिखलाउूंगा जिनका संबंधी रानी से रहा है।
चीकू- पापा। हम लोग पुरातत्व संग्रहालय भी चलेगे, वहां भी तो रानी से जुडे अवशेष देखने मिल सकेंगे .
पापा- हां, जरूर। तुम्हे पता है…..
पुरूष स्वर (2)- विश्व इतिहास में रानी दुर्गावती पहली महिला है जिसने समुचित युद्ध नीति बनाकर अपने विरूद्ध हो रहे अन्याय के विरोध मे मुगल साम्राज्य के विरूद्ध शस्त्र उठाकर सेना का नेतृत्व किया और युद्ध क्षेत्र मे ही आत्म बलिदान दिया।
साक्षात्कार कर्ता- और इस विषय मे हमे बता रहे हैं …..
पापा- बच्चो। प्रसिद्ध गीतकार प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव की एक रचना है ‘‘गोंडवाने की रानी दुर्गावती” — जिसमें उन्होनें दुर्गावती का वैसा ही समग्र चित्रण किया है जैसा प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चैहान ने ‘‘खूब लडी मर्दानी” कविता मे रानी झांसी का वर्णन किया था। तुम यह गीत सुनना चाहेागे।
चीकू-चीना- जरूर। जरूर। सुनाइये न पापा
पापा- तो सुनो
गायक मंडली-
गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का
दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।
उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को मां रेवा की घाटी ने
उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी
युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी
दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था
साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राह मे अड़ता था
बादशाह अकबर की आंखो में वह बहुत खटकता था
एक बार रानी को उसने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया
बदले में रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुंचाया
दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न रही वांछित आशा
एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान
पापा- बच्चो। इससे पहले कि हम यह गीत पूरा करें, आओ बात करते है आज विंध्य अंचल की पहचान,को लेकर जिलाधीश जबलपुर से,
साक्षात्कारकर्ता-
चीकू- चीना-पापा हमे उस गीत मे बहुत मजा आ रहा था उसे पूरा सुनवाईये ना।
पापा- अच्छा चलो जैसा तुम लोग चाहो।
गायन मण्डली-
घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा
आती हैं जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे
पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ
रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने
बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उससे हारा
तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका
तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र में रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार
युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार
तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात
भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ
छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार
तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान
पापा- बच्चो। तुम्हें पता है , उस समय तक गौंड़ सेना पैदल व उसके सेनापति हाथियो पर होते थे , जबकि मुगल सेना घोड़ो पर सवार सैनिको की सेना थी .अच्छा चीकू तुम सोचकर बतलाओ कि इस घोड़े और हाथी के अंतर से दोनो सेनाओ की लड़ाई के तरीको में क्या फर्क होता रहा होगा ?
चीकू – .. पापा सीधी सी बात है , हाथी धीमी गति से चलते रहे होंगे और घोड़े तेजी से भागते ही होंगे इसलिये जो मुगल सैनिक घोड़ो पर रहते होंगे वे तेज गति से पीछा भी कर सकते रहे होंगे और जब खुद की जान बचाने की जरूरत होती होगी तो वो तेजी से भाग भी जाते होंगे . पर पैदल गौंडी सेना धीमी गति से चलती होगी और वो जल्दी भाग भी नही सकते रहे होंगे . मैं सही कह रहा हूं न पापा !.
पापा -… बिलकुल सही बेटा . विशाल, सुसंगठित, साधन सम्पन्न मुगल सेना जो घोड़ो पर थी उनसे जीतना संख्या में कम, गजारोही गौंड सेना के लिये लगभग असंभव था, फिर भी जिस तरह रानी ने दुश्मन से वीरता पूर्वक लोहा लिया, वह नारी सशक्तीकरण का अप्रतिम उदाहरण है। आओ बात करते है जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति जी से जो इन ऐतिहासिक मूल्यो को नई पीढ़ी में पुर्नस्थापित करने हेतु महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है-
साक्षात्काकर्ता-
पापा – बच्चो। आओ अब उस गीत को पूरा कर लें।
गयक मडंली-
सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास
फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से यद्यपि हार का था आभास
क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार
घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार
स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती गढ़ मंडला की रानी में
महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे गौंडवाने मे जन जन से जो गई सराही थी
असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में
जीकर दुख मे अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से था किया प्रयाण
है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार
कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दे जो उपहार
कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ और हुआ होता इतिहास
चीना-चीकू- मजा आ गया। इस गीत मे तेा जैसे सारी कहानी ही पिरो दी गई है।
पापा- हां बेटा। दरअसल कोई तारीख अच्छी या बुरी नहीं होती, ये हम होते है, जो अपने कामो से उस तारीख को स्वर्णाक्षरो मे लिख डालते है, या उस पर कालिख पोत देते है, फिर उन्ही घटनाओ को इतिहास मे रचनाकार समेट कर पुस्तक तैयार कर देते है पीढियो के संदर्भेा के लिये।
पुरूष स्वर- (वाचक स्वर) रानी दुर्गावती पर अनेक पुस्तके लिखी गई है, कुछ प्रमुख इस तरह है-
राम भरोस अग्रवाल की गढा मंडला के गोंड राजा
नगर निगम जबलपुर का प्रकाशन रानी दुर्गावती
डा. सुरेश मिश्रा की कृति रानी दुर्गावती
डा. सुरेश मिश्र की ही पुस्तक गढा के गौड राज्य का उत्थान और पतन
बदरी नाथ भट्ट का नाटक दुर्गावती
बाबूलाल चौकसे का नाटक महारानी दुर्गावती
वृन्दावन लाल शर्मा का उपन्यास रानी दुर्गावती
गणेश दत्त पाठक की किताब गढा मंडला का पुरातन इतिहास
इनके अतिरिक्त अंग्रेजी मे सी.यू.विल्स, जी.वी. भावे, डब्लू स्लीमैन आदि अनेक लेखको ने रानी दुर्गावती की महिमा अपनी कलम से वर्णित की है।
महिला अनुगूंज स्वर- इस वीरांगना की स्मृति को अक्षुण्य बनाये रखने हेतु भारत सरकार ने 1988 मे एक साठ पैसे का डाक टिकट भी जारी किया है।
पापा- आओ बच्चो तुम्हे ले चले रानी की पत्थरो पर लिखी ऐतिहासिक इबारत को पढने- ये है मदन महल का किला और यह एक पत्थर आधार शिला बैलेसिंग राक, प्रकृति का अद्भुत करिष्मा, कितना आकर्षक दिखता है इस उॅचाई से, इन पहाडियो पर आओ बात करें इस एतिहासिक स्मारक पर आये इन हमारे जैसे अन्य पर्यटको से।
साक्षात्कार कर्ता-………………………
पर्यटक………………………..
चीना-पापा, जबलपुर मे रानी दुर्गावती के और कौन कौन से स्मारक है?
पापा- बेटे। रानी ने अपने शासनकाल मे जबलपुर मे अनेक जलाशयो का निर्माण करवाया, अपने प्रिय दीवान आधार सिंग, कायस्थ के नाम पर अधारताल, अपनी प्रिय सखी के नाम पर चेरीताल और अपने हाथी सरमन के नाम पर हाथीताल बनवाये थे। ये तालाब आज भी विद्यमान है। प्रगति की अंधी दौड मे यह जरूर हुआ है कि अनेक तालाब पूरकर वहा भव्य अट्टालिकाये बनाई जा रही है।
चीकू- पापा रानी दुर्गावती के समय की और भी कुछ चीजे, सिक्के आदि दिखलाइये ना।
पापा- बेटा, इस विषय मे तुम्हे रानी के नाम पर ही स्थापित रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर की अध्यक्षा बतायेंगी।
साक्षात्कार- संग्रहालय अध्यक्ष से ।
चीना- पापा, दुर्गावती ने और कौन कौन सी लडाइयां लडी थी ?
पापा- बेटा। रानी दुर्गावती ने सर्वप्रथम मालवा के राज बाज बहादुर से लडाई लडी थी, जिसमें बाज बहादुर का काका फतेहसिंग मारा गया था। फिर कटंगी की घाटी मे दूसरी बार बाज बहादुर की सारी फौज का ही सफाया कर दिया गया। बाद मे रानी रूपमती को सरंक्षण देने के कारण अकबर से युद्ध हुआ, जिसमें दो बार दुर्गावती विजयी हुई पर आसफ खां के नेतृत्व मे तीसरी बार मुगल सेना को जीत मिली और रानी ने आत्म रक्षा तथा नारीत्व की रक्षा मे स्वयं अपनी जान ले ली थी .
पुरूष 2 (वाचक स्वर)- नारी सम्मान को दुर्गावती के राज्य मे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। नारी अपमान पर तात्कालिक दण्ड का प्रावधान था। न्याय व्यवस्था मौखिक एवं तुरंत फैसला दिये जाने वाली थी . । रानी दुर्गावती एक जन नायिका के रूप मे आज भी गांव चौपाले में लोकगीतो के माध्यम से याद की जाती हैं .
गायक मडंली-
तरी नाना मोर नाना रे नाना
रानी महारानी जो आय
माता दुर्गा जी आय
रन मां जूझे धरे तरवार, रानी दुर्गा कहाय
राजा दलतप के रानी हो, रन चंडी कहाय
उगर डकर मां डोले हो, गढ मडंला बचाय
हाथन मां सोहे तरवार, भाला चमकत जाय
सरपट सरपट घोडे भागे, दुर्गे भई असवार
तरी नाना………..
वाचक स्वर- ये लोकगीत मंडला, नरसिंहपुर, जबलपुर, दमोह, छिंदवाडा, बिलासपुर, आदि अंचलो मे लोक शैली मे गाये जाते है इन्हें सैला गीत कहते है।
वाचक स्त्री कण्ठ- रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालींजर मे हुआ था . उनके पिता कीरत सिंह चन्देल वंशीय क्षत्रिय शासक थे। इनकी मां का नाम कमलावती था। सन् 1540 में गढ मंडला के राजकुमार दलपतिशाह ने गंधर्व विवाह कर दुर्गावती का वरण किया था। 1548 मे महाराज दलपतिशाह के निधन से रानी ने दुखद वैधव्य झेला। तब उनका पुत्र वीरनारायण केवल 3 वर्ष का था। उसे राजगद्दी पर बैठाकर रानी ने उसकी ओर से कई वर्षो तक कुशल राज्य संचालन किया।
वाचक पुरूष स्वर (2)- आइने अकबरी मे अबुल फजल ने लिखा है कि रानी दुर्गावती के शासन काल मे प्रजा इतनी संपन्न थी कि लगान का भुगतान प्रजा स्वर्ण मुद्राओ और हाथियो के रूप मे करती थी।
चीकू- पापा। मुझे तो लगता है, शायद यही संपन्नता, मुगल राजाओ को गौड राज्य पर आक्रमण का कारण बनी।
चीना- अरे खूब चीकू, तुम तो बडे चतुर बन गये।
पापा- हां बच्चे, तुम बिल्कुल सही हो लेकिन, महत्वपूर्ण बात यह है कि अकबर ने विधवा रानी पर हमला कर, सब कुछ पाकर भी कलंक ही पाया, जबकि रानी ने अपनी वीरता से सब कुछ खोकर भी इतिहास मे अमर कीर्ति अर्जित की।
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । उन्होने यह साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य” प्रारम्भ करने का आग्रह स्वीकार किए इसके लिए हम हृदय से आभारी हैं। प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की प्रथम कड़ी में उनकी एक कविता “तुम्हें सलाम”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति कोम. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज पाँचवी कड़ी में प्रस्तुत है “जैसा खाओ अन्न, वैसा रहे मन” इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
स्वस्थ्य तन में ही स्वस्थ्य मन का निवास होता है. जीवन में सात्विकता का महत्व निर्विवाद है.संस्कारों व विचारो में पवित्रता मन से आती है, मन में शुचिता भोजन से आती है.इसीलिये निरामिष भोजन का महत्व है. बाबा रामदेव ने भी फलाहार तथा शाक सब्जियों के रस को जीवन शैली में अपनाने हेतु अभियान चला रखा है. किन्तु पिछले दिनों सी एस आई आर दिल्ली के एक वैज्ञानिक की लौकी के रस के सेवन से ही मृत्यु हो गई. लौकी के उत्पादन को व्यवसायिक रूप से बढ़ाने के लिये लौकी के फलों में प्रतिबंधित आक्सीटोन के हारमोनल इंजेक्शन लगाया जा रहे हैं.
कम से कम समय में फसलों के अधिकाधिक उत्पादन हेतु रासायनिक खाद का बहुतायत से उपयोग हो रहा है, फसल को कीड़ों के संभावित प्रकोप से बचाने के लिये रासायनिक छिड़काव किया जा रहा है. विशेषज्ञों की निगरानी के बिना किसानो के द्वारा जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिये व किसी भी तरह फसल से अधिकाधिक आर्थिक लाभ कमाने के लिये आधुनिकतम अनुसंधानो का मनमानी तरीके से प्रयोग किया जा रहा है. इस सब का दुष्प्रभाव यह हो रहा है कि पौधों की शिराओ से जो जीवन दायी शक्ति फल, सब्जियों, अन्न में पहुंचनी चाहिये, उसमें नैसर्गिकता का अभाव है,हरित उत्पादनो में रासयनिक उपस्थिति आवश्यकता से बहुत अधिक हो रही है. यही नही खेतों की जमीन में तथा बरसात के जरिये पानी में घुलकर ये रसायन नदी नालों के पानी को भी प्रदूषित कर रहे हैं.
यातायात की सुविधायें बढ़ी हैं, जिसके चलते काश्मीर के सेव, रत्नागिरी के आम, या भुसावल के केले सारे देश में खाये जा रहे हैं,यही नही विदेशों से भी फल सब्जी का आयात व निर्यात हो रहा है. इस परिवहन में लगने वाले समय में फल सब्जियां खराब न हो जावें इसलिये उन्हें सुरक्षित रखने के लिये भी रसायनो का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है.
विक्रेता भी फल व सब्जियां ताजी दिखें इसलिये उन्हें रंगने से नही चूक रहे, फल व सब्जियों की प्राकृतिक चमक तो इस लंबे परिवहन में लगे समय से समाप्त हो जाती है किन्तु उन्हें वैसा दिखाने हेतु क्लोरोफार्म जैसे रसायनो का उपयोग किया जा रहा है. व्यवसायिक लाभ के लिये आम आदि, कच्चे फलों को जल्दी पकाने के लिये कार्बाइड का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है. इथेफान नामक रसायन से केले समय से पहले पकाये जा रहे हैं.
जनसामान्य का नैतिक स्तर इतना गिर चुका है कि केवल धनार्जन के उद्देश्य की पूर्ति हेतु अप्रत्यक्ष रूप से यह जो रासायनिक जहर शनैः शनैः हम तक पहुंच रहा है उसके लिये किसी के मन में कोई अपराधबोध नहीं है. सरकार इतनी पंगु है कि उसका किसी तरह कोई नियंत्रण इस सारी कुत्सित व्यवस्था पर नहीं है. आबादी बढ़ रही है, येन केन प्रकारेण इस बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु हम उत्पादन बढ़ाने की अंधी दौड़ में लगे हुये हैं, किसी को भी इस प्रदूषण के दूरगामी परिणामों की कोई चिंता नहीं है, व्यवस्थायें कुछ ऐसी हैं कि हम बस आज में जीने पर विवश हे.
आर्गेनिक उत्पाद के नाम पर जो लोग नैसर्गिक तरीको से उत्पादित फल व सब्जियां बाजार में लेकर आ रहे हैं वे भी लोगों की इस भावना का अवांछित नगदीकरण ही कर रहे हैं.कथित नैसर्गिक उत्पादो के मूल्य नियंत्रण हेतु कोई व्यवस्था नही है, आर्गेनिक उत्पाद का उपयोग अभिजात्य वर्ग के बीच स्टेटस सिंबाल हो चला है.
बीटी बैगन का मसला
पहली जेनेटिकली मोडिफाइड खाद्य फसल बीटी बैगन के जरिए पैदा हुए विवाद ने ऐसी फसल के बारे में कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाये हैं. देश विदेश में अनेक कृषि अनुसंधान हो रहे हैं, जेनेटिकली मोडिफाइड खाद्य फसलें बनाई जा रही हैं. बीटी बैगन को महिको ने अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो के साथ मिलकर विकसित किया है. बीटी बैगन में मिट्टी में पाया जाने वाला “क्राई 1 एसी” नामक जीन डाला गया है, इससे निकलने वाले जहरीले प्रोटीन से बैगन को नुकसान पहुंचाने वाले फ्रूट एंड शूट बोरर नामक कीड़े मर जाएंगे. दरअसल, बीटी बैगन को लेकर आशकाएं कम नहीं हैं. सामान्यतया एक ही फसल की विभिन्न किस्मों से नई किस्में तैयार की जाती हैं लेकिन जेनेटिक इंजीनियरिंग में किसी भी अन्य पौधे या जंतु का जीन का किसी पौधे या जीव में प्रवेश कराया जाता है जैसे सूअर का जीन मक्का में, इसी कारण यह उपलब्धि संदिग्ध व विवादास्पद बन गई है. बिना किसी जल्दबाजी या अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के दबाव के बहुत समझदारी से विशेषज्ञों की राय के अनुसार इस मसले पर निर्णय लिये जाने की जरूरत है.
जैविक खेती ही एक मात्र समाधान
आखिर इस समस्या का निदान क्या है ? भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्ते की जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है. हम भूलें नहीं कि भारत की लंबी संस्कृति लाखों साल की जानी-मानी परखी हुई परंपरा है. इससे धरती की उपजाऊ शक्ति कभी कम नहीं हुई. पिछले कुछ हीं दशकों में रासायनिक खाद का प्रचार-प्रसार किया गया और इसका आयात अंधाधुंध ढंग से हुआ. यदि हम इसी वर्तमान नीति पर चलते रहे तो भारत की खेती का वही हाल होगा जो आज चीन की खेती का हो रहा है. जैविक खेती करने के लिए किसानो को गायों का पालन करना होगा ताकि खेत में ही गोबर और गोमूत्र की उपलब्धि हो सके जिससे जैविक खाद बनाई जावे. महात्मा गांधी की ग्राम स्वायत्तता की परिकल्पना आज भी प्रासंगिक बनी हुई है. “है अपना हिंदुस्तान कहाँ वह बसा हमारे गाँवों में”.. भारत का प्रमुख उद्योग कृषि ही है, अतः देश व समाज के दीर्घकालिक हित में सरकार को तथा स्वयं सेवी संस्थानो को जनजागरण अभियान चलाकर भावी पीढ़ी के लिये इस दिशा में यथाशीघ्र निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है.
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण रचना “आयुष्य साधकाचे”।)
काव्य संग्रह – प्रकाश पर्व – कविराज विजय यशवंत सातपुते
☆ सामाजिक जाणिवा जपणारे….विजयी प्रकाश पर्व☆
कविता ही आभाळाऐवढी विस्तीर्ण असते आणि कवी मोठ्या लकबिने वेदना काळजाशी बाळगत आभाळा एवढ्या कवितेलाच आपल्या सहृदयी कवेत घेतो.
हे कविचं की कवितेचं मोठेपण…हे न उलगडणारं कोडं..!! मात्र तरीही शेवटी या कवितेचा जन्मदाता हा कवीच् असल्याने तो थोरचं..!!
अनेक कवींच्या….नेक कविता बऱ्याच वेळेला सामान्य वाचकांच्या काळजाला हात घालतात..नव्हे नव्हे तर, समाजभान जागवून प्रबोधनाच्या क्रांतीची मशाल पेटवतात.आणि त्यातीलच एका जिंदादिल कवीची ही कविता …!!
आजकालच्या धकाधकीच्या जीवनात स्पर्धात्मक आयुष्य जगताना पैसा आणि भौतिक सुख याचेच राज्य वाढत चालले आहे. या उपभोगिकरणाच्या मायाजालात आयुष्याचे सार मोजले जात असताना, कवितेत आपलं सर्वस्व ओतणारा आणि या कवितांनाच्, जीवनाचे सार मानून नव्या उमेदीने विचार भावनेतून विश्वात्मक होणारा एक जिंदादिलं कवी.. की ज्याच्या नावातच विजय आहे. या विजयाच्या हर्षात्मक विचार -स्पर्शाने मराठी साहित्याच्या दशदिशा आसमंत उजळवणारा लेखक..कवी…साहित्यिक,नव्हे..नव्हे तर याच्या पलीकडे जाऊन अनेकांच्या हृदयात..समाजात मानवतेचा दीप प्रकाशमय ठेवणारा खराखुरा प्रबोधनाचा प्रकाश आणि त्या प्रकाशाचं अखंड प्रकाशमय राहणार पर्व म्हणजे प्रकाशपर्व – उर्फ – कविराज विजय यशवंत सातपुते…!!!
प्रकाशपर्व हा विजयजींचा तिसरा काव्य संग्रह होय.अक्षरलेणी हा त्यांचा पहिला काव्यसंग्रह.
समीक्षक – श्री विक्रम मालन आप्पासो शिंदे
त्याचा दोन आवृत्ती प्रकाशित झाल्या. अजुन देखील काव्य रसिकांच्या मनावर या दोन्ही आवृत्ती राज्य करत आहे. कवितेशीच खऱ्या अर्थाने संसार करणाऱ्या या अवलियाने मराठी साहित्यातील कविता जिवंत ठेवण्यात योगदान दिले आहे, यात शंकाच नाही. प्रकाशपर्व दुसऱ्या काव्यसंग्रहात कविराज विजय सातपुते समाजातील वास्तव टिपणाऱ्या सच्च्या माणसांना म्हणजेच सर्व कवींना व या जगातून निरोप घेवून गेलेल्या आपल्या लहान बहिणीच्या आठवणीत गहीवरताना अंतरात अस्वस्थ करणारी वेदना आणि यातून काळजावर घाव घालणारी कविता म्हणजे फक्त स्वतःच्या आयुष्याचे सार नव्हे तर या कवीचं सर्वस्वच भावार्पण म्हणून अर्पण करतो. . . हे सगळं पाहत असताना कवीच्या विशाल हृदयात स्पंदणारी कविता किती दुःखं झेलत असेल …? किती यातना पचवत असेल…? हे सांगण अवघड आहे. फाटलेल्या आयुष्यात माणसांना जोडत जगणं सांधण्याची विजयजींची भूमिका अचंबित करणारीच आहे. म्हणून प्रकाश पर्व या काव्यसंग्रहातील प्रत्येक कविता मनाला स्पर्शून जाते. कवितेतील व्यथा आपलीच असल्याची ठळकपणे जाणीव होते आणि मग वाचक कवितेच्या प्रेमात पडल्याशिवाय राहत नाही….इतकं काही लपलय त्यांच्या कवितेत.
एक भावार्पण
अंतरीच्या अंधारात
घुसमटणाऱ्या
त्या प्रकाशपर्वा साठी..!
मनाच्या अंतरीच्या अंधारात बहिणीच्या आठवणीमुळे होणारी उलघाल या कविस किती जाळत असावी आणि त्या ममतेच्या वेदना पचविण्याची ही कवीची धडपड..त्यातूनच जन्मास येणार प्रकाशपर्व …सर्व काही अनाकलनीय..!!!
आज खऱ्या अर्थाने समाजात मानवतेच्या आणि सर्जनशील विचारांची देवाण घेवाण करण्याची निर्माण झालेली गरज ओळखून आपल्या अतिशय खास अशा शैलीत कविराज कवितेतून सामाजिक वैचारिक प्रबोधन करत राहतात. याच माध्यमातून आपल्या सर्जनशील विचारांची देवाण घेवाण करताना कवी म्हणतो..
” लेक माझी सासुराला
आज आहे जायची
एक कविता द्यायची
एक कविता घ्यायची”
जाती,धर्म,विद्वेष,अंधश्रद्धा यांना सुरंग लावत कविराजांची लेखणी माणुसकीचा महिमा गाते. माणूस म्हणून जगताना, माणसांबरोबर राहताना ,सुखदुःखाची देवाण घेवाण करताना हा कवी स्वतःचं अस्तित्व शोधत राहिला आणि कवितेनेच यांच्या जगण्याचा यक्षप्रश्न सोडविला आहे. मात्र हे सर्व करत असताना गर्व, प्रसिद्धी, प्रतिभा ,पुरस्कार,सन्मान या मोहमायांचा छेद करत करत हा कवी आणि त्यांची कविता ही फक्त लोकाभिमुख करीत राहिला. साहित्य शारदेची अखंड सेवा करण्यातच ही लेखणी आत्ममग्न झालेली आहे. अस सर्व सदृश्य वास्तव.
ही आपली भावना सांगताना कवी म्हणतो –
“नुरला तो गर्व…आणि उदयास आले प्रकाशपर्व”
“उजेडाच्या गावा जाऊ ..ज्योत क्रांतीची घेवू” या प्रकाशपर्व नावाच्या पहिल्याच कवितेतून व्यक्त होताना राजकीय..धार्मिक..जातीय पक्षांचे झेंडे गाडत समतेची गुढी उभारण्यासाठी आणि ज्ञानाचा प्रकाश दारोदार पोहोचवण्यासाठी कवीची लेखणी सतत तळपत राहते.अशावेळी हा कवी सामाजिक मर्मावर बोट ठेवत स्वतःला यासाठी सर्वप्रथम बदलण्याचं व विवेकी होण्यासाठी आवाहन करतो.अनिष्ट रूढी,प्रथा,कथा,अंधश्रद्धा, अघोरी कृत्ये यांना खोडत व सत्य असत्याची चिकित्सा करत न्यायाची पताका उरी बाळगून क्रांतीला सुरुवात करणारी कविता… हेच कविराज विजय सातपुते यांच्या कवितेचे खास वैशिष्ट आहे.
साऊ,राजर्षी, शंभूराजा या व्यक्ती चारित्रांवरच्या त्यांच्या खऱ्या इतिहासाची .. योगदानाची… परिवर्तनाची साक्ष देणाऱ्या कवितांचा महिमा हा केवळ अगाधच आहे. क्रांतिज्योतीची गौरव गाथा आपल्या कवितेतून गाताना कवी म्हणतो की,
“समाज नारी साक्षर करण्या
झटली माता साऊ रे..
क्रांतिज्योती ची गौरव गाथा
खुल्या दिलाने गाऊ रे..!”
बुद्धाचा मध्यम मार्ग ते भारतीय संविधान याद्वारे समतेचा मार्ग सांगत असतानाच बाबासाहेबांना अभिवादन करताना कवी म्हणतो की –
“हे भिमराया गाऊ किती रे
तुझ्या यशाचे गान
जगण्यासाठी दिले आम्हाला
अभिनव संविधान..!!”
प्रकाशपर्व या कवी विजय यांच्या काव्यसंग्रहात विविध विषयांच्या चौफेर उधळणाऱ्या ,कधी विद्रोह करणाऱ्या ,प्रेमाच्या,नात्याच्या,मातेच्या, क्रांतीच्या, अभिवादनाच्या, स्वातंत्र्याच्या, भुकेच्या, परिवर्तनाच्या, बहुजनांच्या..सत्याच्या सर्वच कविता वाचकाला मंत्रमुग्ध करतात.एकाच शैलीत व्यक्त न होता, विविध प्रकारात कविता मांडण्याची शैली हे यांच्या कवितेचं वेगळेपण आहे.फक्त लिखाणातूनच नव्हे तर वास्तविक तशाच पद्धतीचं जीनं हा माणूस चौफेर जगतो यामुळे फक्त कवितेचीचं नाही तर कवीच्या जगण्याचीच उंची वाढली आहे.असा हा प्रतिभा संपन्न कवी…उत्तरोत्तर अष्टपैलू बनत जातो.
पुरस्कारांच्या पलीकडची मराठी साहित्य शारदेची सेवा कवीला अजुन खुणावत राहो.. त्यांच्याकडून साहित्याची आजन्म सेवा व्हावी आणि वसंत बापट यांनी कवी विजय यांना दिलेली ‘कविराज’ ही पदवी दिवसेंदिवस साहित्य सौंदर्याने झळकत राहो हीच सदिच्छा.
(तळटीप – बुकगंगा. कॉम वर कविराज विजय यशवंत सातपुते यांचा “प्रकाशपर्व” हा काव्यसंग्रह सवलतीच्या दरात विक्रीस उपलब्ध आहे तरी रसिकांनी याचा लाभ घ्यावा. तसेच 7743884307 या नंबर वर संपर्क करून हा “प्रकाशपर्व” काव्यसंग्रह आपण घरपोच मिळवू शकता.)
Have you ever had the experience of laughter meditation?
It is one of the most intense and beautiful experiences that you can ever have. But you have to experience it yourself. It is a mystery. It cannot be told in words by anyone to you.
When you laugh, you forget the past. You can’t bother about the future. And, you are oblivious of the surroundings. Laughter starts to flow like a fountain. There is no laugher, it’s only laughter. The laugher mingles with laughter and they become one. It is something Divine. It is pure and pristine bliss. The mind becomes serene and radiant like the full moon.
I have got my deepest fulfilment while conducting laughter meditation. The participants feel cathartic and fully liberated. All the pain and agony has gone. It feels so good and light. There is no trace of physical, mental or emotional stress anywhere near. Every molecule of the universe is tranquil. All the blockages are cleared. Consciousness flows happily and freely. You become a part of the joyous cosmic dance. A Sufi inside you starts singing the most enchanting melodies.
Laughter opens a beautiful door to transcendence.
Laughter meditation is a state of no mind. Complete mindlessness. But it is total existence. You have a feel of totality for the first time. It is a paradise that you can create on your own. Anytime, anywhere.
According to Dr Madan Kataria, the founder of laughter yoga, “Laughter meditation is the purest kind of laughter and a very cathartic experience that opens up the layers of your subconscious mind and you will experience laughter from deep within.”
In some of the Zen monasteries, every monk has to start his morning with laughter, and has to end his night with laughter – the first and the last thing every day. Says Osho, “If you become silent after your laughter, one day you will feel God also laughing, you will hear the whole existence laughing – trees and stones and stars with you!”
I recommend laughter meditation for all those who face a lot of stress at the workplace. It is also beneficial for students and homemakers.