आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

 

.श्रीभगवानुवाच

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।

श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ।।2।।

 

भगवान ने कहा-

मुझमें मन को लगाकर मुझमें जो अनुरक्त

मेरे मन से श्रेष्ठ वह श्रद्धामय जो भक्त ।।2।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- मुझमें मन को एकाग्र करके निरंतर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए (अर्थात गीता अध्याय 11 श्लोक 55 में लिखे हुए प्रकार से निरन्तर मेरे में लगे हुए) जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।।2।।

 

Those who, fixing their minds on Me, worship Me, ever steadfast and endowed with supreme faith, these are the best in Yoga in My opinion.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 45 – एकांत के इस शोर में ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  नका एक समसामयिक गीत  एकांत के इस शोर में।)

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 45 ☆

☆ एकांत के इस शोर में ☆  

 

एकांत  के  इस  शोर  में

संशय जनित सी भोर में

दिवसाभिनंदन गान है

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

है  मनुजता  पर  चोट  ये

किसकी नियत में खोट ये

क्या सोच कर किसने किया

है  संक्रमित  विस्फोट  ये,

खाली समय,भावी समय का

कर  रहा  अनुमान  है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

एकांत  में  सपने  बुनें

खाली समय में सिर धुनें

या चित्त को  एकाग्र कर

बिखरे  हुए  मोती  चुनें,

नैराश्य है इक ओर,दूजी ओर

शुभ सद्ज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विस्मय हवाओं में भरा

भयभीत है  सारी धरा

उपचार अनुमानित चले

न, निदान है कोई खरा,

अध्यात्म-संस्कृति बोध के संग

खोज में विज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विश्वास है इस यक्ष को

मावस  अंधेरे  पक्ष को

मिलकर समूल मिटायेंगे

फिर से जुटेंगे लक्ष्य को,

आत्म संयम,आस्था

इस देश की पहचान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – संजय ☆

सारी टंकार

सारे कोदंड

डिगा नहीं पा रहे,

जीवन के महाभारत का

दर्शन कर रहा हूँ,

घटनाओं का

वर्णन कर रहा हूँ,

योगेश्वर उवाच

श्रवण कर रहा हूँ,

‘संजय’ होने का

निर्वहन कर रहा हूँ!

 

# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 9:14 बजे, 3अक्टूबर 2015

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 48 – लाॅकडाऊन चे दिवस  ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  “लाॅकडाऊन चे दिवस ।  सुश्री प्रभा जी एवं विश्व में कई लोगों  के जीवन में  ऐसे अनुभव आये हैं जब हमने जीवन का एक नया भयाक्रांत स्वरुप देखा है। पारिवारिक संबंधों  में प्रगाढ़ता एवं जीवन जीने का नया सलीका सीखा है या कहें कि समय ने हमें सिखा दिया है। मानव मन परिवर्तनशील है । भीषण आपदा से गुजरने के बाद शिक्षा लेने के बजाय  बुरे दिन जल्दी ही भूल जाता है । ईश्वर करे उसे सद्बुद्धि दे ।  आरोग्य से बढ़ कर कोई धन नहीं ।  आइये हम सब मिल कर सुश्री प्रभा जी की प्रार्थना की दो  पंक्तियों को सामूहिक स्वरुप दें ।  कहते हैं सामूहिक प्रार्थना  ईश्वर अवश्य सुनते हैं। इस  मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण रचना लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 48 ☆

☆ लाॅकडाऊन चे दिवस ☆ 

22 मार्च ला “कोरोना विषाणू”  चा फैलाव रोखण्यासाठी सर्वत्र कर्फ्यू ठेवण्यात आला. आम्ही पुण्यात सोमवार पेठेत रहातो, माझा मुलगा, सून, नातू पिंपळेसौदागर ला! सध्या मुलगा कंपनी च्या कामासाठी सिंगापूरमध्ये आहे, या शैक्षणिक वर्षात सून आणि नातू सिंगापूरला जाणार होते, तसं प्लॅनिंगही झालं पण अचानक आलेली ही “कोरोना” ची आपत्ती, कर्फ्यू च्या आदल्या दिवशी सून आणि नातू पिंपळेसौदागरहून सोमवार पेठेत रहायला आले..

अलीकडे माझी तब्येत बरी असत नाही, शुगर, बीपी बरोबरच  आता कमरेचं दुखणं, कर्फ्यू नंतर कामवालीला येऊ नकोस म्हणून सांगितलं…..

सून सुप्रिया आणि नातू सार्थक आल्यामुळे घराला घरपण आलं,आल्या आल्या सूनबाईंनी सफाई मोहिम हाती घेतली, तिच्या येण्यानंच घर उजळून निघालं, आज महिनाभर आम्ही एकत्र आहोत , भांड्याला  भांडं ही लागलं नाही की आवाज ही झाला नाही,  सारं कसं सुरळीत चाललंय…तू तू मै मै करायची मानसिकताच नाही….

“कोरोना” चं हे जागतिक संकट…सगळेच हवालदिल, सतत टीव्ही वर “कोरोना” बाधितांचे आणि मृतांचे आकडे…..या संकटाचं निवारण व्हावं म्हणून ईश्वराची प्रार्थना!

नातवाची घरातली किलबिल सुखावणारी, सुरूवातीचे काही दिवस तो कंटाळायचा…एकटाच ना  ! खेळायला मित्र नाहीत…पण त्याला वाचनाची आवड आहे, चित्रकलेची आवड आहे, तो वाचतो, चित्र काढतो, टेरेसवरच्या बागेत जातो, व्यायाम करतो, घरातल्या कामातही मदत करतो, आम्ही पत्ते खेळतो, सापशीडी, कॅरम खेळतो,

आम्ही टीव्ही वर सिनेमा, रामायण, महाभारत पहातो! घरातली सगळी कामं स्वतः करावी लागताहेत, बराचसा भार सूनबाईंनी पेललाय!

अमंगळ टळेल, जगरहाटी परत सुरू होईल, पण हे लाॅकडाऊन चे दिवस ….समजूतदार दिवस कायम आठवणीत रहातील. एखाद्या “गढी” मध्ये  रहाणा-या बायका जशा पूर्वी रहायच्या चार भिंतीत तसंच….फरक इतकाच की नोकर चाकर कुणी नाही, धुणी भांडी, स्वयंपाक पाणी, झाडू पोछा….सारं कसं बिनबोभाट….चार भिंतीत! सतत कानावर येतंय, घरात रहा, सुरक्षित रहा! तेच स्विकारलंय,गरजा खुप कमी झाल्यात…..एक वेगळं जग पहातोय, अनुभवतोय…. शेवटी हे कळतंय जान है तो जहां है!

हे निवांत आयुष्य पुन्हा वेग घेईल ! परिस्थिती माणसाला बरंच काही शिकवेल शहाणं करेल, लाॅकडाऊन चा “हा सिझन” मोठी कामगिरी करून दाखवेल. ॥शुभम् भवतु ॥

सा-या जगाचसाठी मागेन दान देवा

आरोग्य दे  इथे हा लाभो अमोल ठेवा

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆ कविता –नारी अनुशासन की जानी  ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता नारी अनुशासन की जानी।  श्रीमती कृष्णा जी ने  इस कविता के माध्यम से नारी शक्ति पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆

☆ कविता  – नारी अनुशासन की जानी  ☆

 

नारी अनुशासन की जानी

बिगड़ी बात बना के  मानी

 

फँसी भँवर हिम्मत न हारती

नैया पार लगाना  है ठानी

 

अतीत बुरा बातें पुरानी

छोड़ो सभी बातें उबानी

 

आने वाला कल का सवेरा

सुखद सभी हों स्वाभिमानी

 

अज्ञानता  क्षीरण हो जाए

ज्ञान के चक्षु खोले वाणी

 

नदियों का कलरव झरनों ने

हिलमिल सबने खुशी बखानी

 

पाषाणी ह्रदय है हठीला

आँखें करती बेईमानी

 

मौन मनन करता है जब जब

गहरी थाह पढे जब ज्ञानी

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 26 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 4 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह गाँधी विचार  एवं दर्शन विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें। डॉ भीमराव  आम्बेडकर जी के जन्म दिवस के अवसर पर हम आपसे इस माह महात्मा गाँधी जी एवं  डॉ भीमराव आंबेडकर जी पर आधारित आलेख की श्रंखला प्रस्तुत करने का प्रयास  कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का चतुर्थ एवं अंतिम आलेख  “महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 26 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 4

जब डाक्टर आम्बेडकर दलितों के लिए संघर्ष कर रहे थे तब उनका प्रभाव क्षेत्र वर्तमान  महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश का कुछ भू-भाग था। महाराष्ट्र की राजनीति में ब्राह्मणों का अच्छा वर्चस्व था और तब तक नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना भी हो चुकी थी। लेकिन डाक्टर आम्बेडकर को किसी भी रुढीवादी हिन्दू संगठन या बड़े  नेतृत्व का साथ उनके सत्यागृह व अछुतोद्दार आन्दोलन मे नहीं मिला। कतिपय ब्राह्मण मित्रों के अलावा, जिन्होंने डाक्टर आम्बेडकर के आह्वान पर दलितों का यज्ञोपवीत संस्कार किया, रत्नागिरी में नजरबन्द विनायक दामोदर उर्फ़ वीर  सावरकर ने उनका भरपूर साथ दिया। यद्दपि वीर सावरकर रत्नागिरी से बाहर नहीं जा सकते थे तथापि उन्होंने वहां अछूतों के लिए पतितपावन मंदिर की स्थापना की और एक पृथक स्कूल खोलने का प्रस्ताव दिया जहाँ अछूतों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने समय समय पर पत्राचार द्वारा डाक्टर आम्बेडकर के प्रयासों को पूर्ण समर्थन दिया तथा सनातनी हिन्दुओं को भी सामाजिक भेदभाव के लिए लताड़ा। वीर सावरकर की सहमति डाक्टर आम्बेडकर रोटी बेटी सम्बन्ध से भी थी। यद्दपि हिन्दू महासभा के अन्य नेता तथा घनश्यामदास बिडला सरीखे सनातनी हिन्दू अस्पृश्यता  को तो दूर करना चाहते थे पर दलितों के साथ रोटी बेटी सम्बन्ध को लेकर उन्हें आपत्ति थी। गांधीजी उस समय अंग्रेजों की अनेक कूटनीतिक चालों का अपने राजनीतिक अस्त्र सत्य और अहिंसा से जबाब दे रहे थे। मुसलमानों को राष्ट्रीय  आन्दोलन से जोड़ने के उनके प्रयासों की आलोचना की जा रही थी और उसे मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम दिया जा रहा था, दूसरी ओर युवा वर्ग, क्रांतिकारियों के विचारों की ओर आकर्षित होकर, हिंसा का रास्ता अपनाने उत्सुक हो रहा था। ऐसे समय में गांधीजी के सामने बड़ी विकट स्थिति थी वे हिन्दू समाज में संतुलन बनाए रखना चाहते थे साथ ही दलित समुदाय को अलग-थलग भी नहीं होने देना चाहते थे। गांधीजी की सौम्यता भरी नीतियों ने उस वक्त समाज को विघटन से बचाने में बड़ी मदद की।

जब 1937 में गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट के तहत राज्य विधान मंडल के चुनाव हुए तो डाक्टर आम्बेडकर ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के विरुद्ध अपने प्रत्याक्षी खड़े किये फलस्वरूप कांग्रेस वहाँ सबसे बड़े दल के रूप में तो चुनाव जीती पर उसे सरकार बनाने के लिए निर्दलीय विधायकों का साथ लेना पडा क्योंकि डाक्टर आम्बेडकर ने कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसी समय मोहमद अली जिन्ना ने मुसलमानों की पृथकतावादी मांगों को जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया और उनके लिए अलग राष्ट्र की मांग की। इधर डाक्टर आम्बेडकर भी यदाकदा दलितों से हिन्दू धर्म त्यागने की बात करने लगे और मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों के लोग उनपर डोरे डालने लगे। इस दौरान डाक्टर आम्बेडकर को एक दो अवसर पर मुस्लिम लीग ने अपने कार्यक्रमों मे बुलाया और जब कांग्रेस ने आठ राज्यों के अपने मंत्रिमंडल को इस्तीफा देने का निर्देश नवम्बर 1939 में दिया तो मुस्लिम लीग ने इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाया। लीग के इस आयोजन में डाक्टर आम्बेडकर भी भाषण देने पहुंचे। आम जनता में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। उस दौरान जब गांधीजी और कांग्रेस लीग की पृथक राष्ट्र पाकिस्तान बनाने की मांग का विरोध करते हुए अखंड भारत पर जोर दे रहे थे तब डाक्टर आम्बेडकर ने 1940 में ‘थाट्स ऑन पाकिस्तान’ नामक पुस्तक लिखकर मुसलमानों की पृथक राष्ट्र संबंधी मांग का समर्थन कर दिया। जब देश में भारत छोड़ो आन्दोलन जोरों पर था तब भी डाक्टर आम्बेडकर ने इसमें अपनी भागीदारी न दिखाते हुए फ़ौज में दलितों की भर्ती का अभियान चलाया। इस प्रकार हम पाते हैं कि गांधीजी और डाक्टर आम्बेडकर की नीतियों और तरीकों में गंभीर मतभेद थे पर वे दोनों एक बात पर तो सहमत थे वह था अछूतोद्धार।

स्वराज प्राप्ति के बाद गांधीजी के अनुरोध पर ही संविधान सभा में डाक्टर आम्बेडकर को शामिल किया गया और इस प्रकार एक समता मूलक एवं लोकतांत्रिक  संविधान की रचना संभव हो सकी जिसका सपना महात्मा गांधी ने आज़ादी के पहले देखा था और जिसका वायदा उन्होंने डाक्टर आम्बेडकर से पूना पेक्ट के जरिये किया था। डाक्टर आम्बेडकर ने देश को उदार  राजनीतिक लोकतंत्र का संविधान दिया । उनके मतानुसार आर्थिक लोकतंत्र हांसिल करने के अनेक मार्ग यथा व्यक्तिवादी, समाजवादी, साम्यवादी हो सकते हैं, और किसी एक मार्ग का चयन समूह विशेष की तानाशाही का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, इसीलिए उन्होंने  अर्थनीति के निर्धारण का दायित्व चुनी हुई सरकार पर छोड़ा गया और प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण का विरोध किया।   आम्बेडकर  संविधान निर्माण में भी कतिपय विषयों पर आम्बेडकर का गांधीवादियों से टकराव हुआ। आम्बेडकर एक शक्तिशाली केंद्र पर आश्रित व्यवस्था के समर्थक थे । डाक्टर आम्बेडकर मानते थे कि आवश्यकता से अधिक संघवाद पूरे देश में संविधान के समान रूप से क्रियान्वयन को अवरुद्ध करेगा और अस्पृश्यता समाप्ति  जैसे विषयों को अनेक राज्य लागू करने से मना कर देंगे। गांधीजी के समर्थक गाँव के स्तर तक सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्षधर थे वे नए संविधान में प्राचीन भारत के राजनय की झलक देखना चाहते थे और पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह नए संविधान को ग्राम पंचायतों और जिला पंचायतों की आधारशिला पर खडा करना चाहते थे। अंततः डाक्टर आम्बेडकर ने अपने तर्कों से आवश्यकता से अधिक संघवाद के प्रस्तावों को खारिज करवा दिया और इस प्रकार संविधान निर्माण में गांधीजी के ग्राम स्वराज संबंधी चिंतन की उपेक्षा हुई। आगे चलकर  प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण व पंचायती राज्य संबंधी संविधान संशोधन विभिन्न स्वरूपों में इंदिरा गांधी ,राजीव गांधी व नरसिम्हा राव  के प्रधानमंत्रित्व में पारित हुए। त्रिस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था लागू करने  के प्रयास तो 1956 से ही शुरू हो गए थे पर इसे गति प्रदान की राजीव गांधी ने और अंततः 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से गांधीजी का पंचायती राज का सपना 1993 में लागू हुआ। डाक्टर आम्बेडकर ने गांधीवादियों के द्वारा दिए गए अन्य सुझाव जैसे शराब बंदी, ग्रामीण क्षेत्रों कुटीर उद्योगों की स्थापना, सहकारिता को प्रोत्साहन, गौवध  आदि विषयों को भी संविधान के मौलिक विषयों / अधिकारों की बजाय  नीति निर्देशक सिद्धांतों संबंधी अनुछेद में शामिल करवाया।इसके फलस्वरूप यह सभी बातें जो  गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम का हिस्सा रही हैं वे समान रूप से सारे देश में लागू नही की जा सकीं एवं इन्हें संघ के राज्यों पर उचित कदम लेने हेतु अधिकृत कर दिया गया। चूँकि यह सभी बातें संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत वर्गीकृत की गई अत: नागरिकों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं रहा जिससे वे संघ या राज्य पर इसे लागू करने हेतु संवैधानिक अधिकारों के तहत दावा कर सकें। कतिपय राज्यों ने इन नीति निर्देशक सिद्धांतों संबंधी अनुछेद का सहारा लेकर अपने अपने राज्यों में कुटीर उद्योग, सहकारिता, शराब बंदी आदि को सफलतापूर्वक लागू कर गांधीजी के सपनों को साकार किया। लघु एवं ग्रामोंद्योग को लेकर भी सरकारों ने अपने स्तर पर आधे अधूरे प्रयास किये और आपसी तालमेल के अभाव में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके।

इस प्रकार हम देखते हैं कि इन दोनों महापुरुषों में अस्पृश्यता को लेकर गहन मतभेद तो थे पर दोनों के प्रयास एक दूसरे के पूरक थे और उनके प्रयासों ने इन समस्या के निदान में महती भूमिका का निर्वहन किया।  यद्दपि डाक्टर आम्बेडकर ने अनेक बार कठोर रुख अपनाया और अपनी बात पर अडिग रहे तथापि उनके मन में महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा का भाव था और वे यह भलीभांति जानते थे कि देश हित में महात्मा गांधी का स्थान महत्वपूर्ण है। इसी भावना के वशीभूत होकर उन्होंने पूना पैक्ट को स्वीकार किया और इस प्रकार गांधीजी के प्राणों की रक्षा हो सकी। डाक्टर आम्बेडकर ने गांधीजी की, अस्पृश्यता के संबंधी विचारों का दोनों स्तर पर विरोध किया। डाक्टर आम्बेडकर  अस्पृश्यता को सामाजिक बुराई ही नहीं वरन अभिशाप भी मानते थे। वे गांधीजी की दलील से सहमत नहीं थे कि     अस्पृश्यता वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा के कारण नहीं है। उन्होंने गांधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का भी इसी आधार पर विरोध किया और कहा कि जैसे सवर्ण अछूतों को उनके सामजिक अधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं उसी प्रकार अमीर भी गरीबों को अपना धन कैसे दे सकते हैं। वे गांधीजी की इस बात से भी असहमत थे कि जाति प्रथा भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है और यह रोजगार की गारंटी भी देती है। महात्मा गांधी से उनके मतभेद संविधान निर्माण में भी परिलक्षित हुए हैं।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गुनहगार कौन? ☆ – श्री कुमार जितेंद्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(आज प्रस्तुत है  श्री कुमार जितेंद्र जी   की एक समसामयिक कविता  “गुनहगार कौन? ”। 

☆ गुनहगार कौन? ☆

 

इंसान के कुकर्म से, धरा हो गई वीरान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

मशीनों के छेद से, धरा हो गई हैरान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

दौड़ – भाग छोड़ कर, घर में कैद हो गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

परिवार की अपनों से, अब हो रही है पहचान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

कचरे का ढेर लगा के, अंधा हो गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

भूखे – प्यासे तड़प रहे हैं, देख रहा है इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

हवाओं में जहर घोल के, छिप गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

कपड़े से मुह छुपाकर, घूम रहा इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

©  कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ धरती है माँ हमारी ☆ – श्री नरेंद्र राणावत

श्री नरेंद्र राणावत

( आज प्रस्तुत है युवा साहित्यकार श्री नरेंद्र राणावत जी की एक समसामयिक कविता धरती है माँ हमारी.)

☆ धरती है माँ हमारी ☆

 

धरती है माँ हमारी

रखनी है लाज

हम सभी को,

लिया है जन्म

तो कर्ज चुकाने ही होंगे,

क्यू की प्रकृति हमेशा न्याय करती है,

बता दिया इस कोरोना वैश्विक महामारी ने,

कुछ भी नही चलता साथ

केवल हमारी नैसर्गिक प्रकृति ही हमे बचाती है।

 

क्या दिया हमने,क्या बोया हमने?

हिसाब तय है,

आओ हम सब मिलकर

पेड़ पौधे लगाये,

जीव,जन्तु,मनुष्य हम सब पर्यावरण को बचाये,

नही बचा गर इस धरा का

आंचलिक रूप,

तो हम कही का भी नही रह पाएंगे,

त्राहि त्राहि मच जायेगी चारों और

हाहाकर कर बेमौत मर जायेंगे हम सब,

 

इसलिए उठ मनुज

अभी वक़्त है सम्भलने का

समय रहते धरती माँ को बचा ले,

तेरे हर कृत्यों से

मुझ पर

इस तरह का प्रदूषण फैल गया है,

की अब तेरा बोया हुआ ही,

अब वापस लौटा रही हूँ में तुम्हे,

 

© नरेंद्र राणावत  

जिला सचिव रक्तकोष फाउंडेशन जालौर, युवा साहित्यकार व् लेखक

गांव-मूली, तहसील-चितलवाना, जिला-जालौर, राजस्थान

+919784881588

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Meditation/ध्यान – अभ्यास हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें – Meditation Learning VIDEO #1  (Hindi) ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ ध्यान: अभ्यास हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Learning VIDEO #1  (Hindi)

 

ध्यान कैसे करें? यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है.

इस विडियो में ध्यान करने हेतु निर्देश दिए गये हैं जिन्हें सुनते हुए आप ध्यान कर सकते हैं.

ध्यान हेतु निर्देश: सुनते जाएं और ध्यान करें :

आराम से बैठ जाएँ. पीठ सीधी, आखें बंद. पूरा ध्यान अपनी सांस पर. नाक के आसपास साँसों के आवागमन को महसूस करें. अन्दर आती सांस और बाहर जाती सांस के प्रति निरंतर सजग रहें. अगर सांस लम्बी है तो जानें कि लम्बी है, अगर सांस छोटी है तो जानें कि छोटी है. केवल जानना है. सांस जैसी है, वैसी ही रहने दें. यदि मन भटक जाये, तो अपना ध्यान वापस सांस पर लेकर आयें. आँखें बंद रखते हुए, अपनी साँसों के प्रति पूर्णतः सजग होकर, अपने पूरे शरीर को मन ही मन देखें – सिर, कंधे, हाथ, सीना, पेट, पीठ और पैर. भीतर सांस लेते हुए, पूरे शरीर को महसूस करें. बाहर सांस छोड़ते हुए, पूरे शरीर को महसूस करें. भीतर सांस लेते हुए, पूरे शरीर को शिथिल करें, आराम दें. बाहर सांस छोड़ते हुए. पूरे शरीर को शिथिल करें, विश्राम दें. पूरा ध्यान पूरी सजगता से लगातार अन्दर आती सांस और बाहर जाती सांस पर.

अंत में, सबके लिए मंगल कामना. सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो. धीरे-धीरे आंखें खोलते हुए, ध्यान से बाहर आयें.

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (1) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

 

अर्जुन उवाच

एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।

ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।।1।।

 

अर्जुन ने कहा-

भक्त जो भजते आपको,सगुण या निर्गुण मौन

सतत योग रत भक्तों में, अधिक श्रेष्ठ है कौन? ।।1।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- जो अनन्य प्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन-ध्यान में लगे रहकर आप सगुण रूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म को ही अतिश्रेष्ठ भाव से भजते हैं- उन दोनों प्रकार के उपासकों में अति उत्तम योगवेत्ता कौन हैं?॥1॥

 

Those devotees who, ever steadfast, thus worship Thee and those also who worship the Imperishable and the Unmanifested—which of them are better versed in Yoga?।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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