हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आभा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आभा  ☆

 

दैदीप्यमान रहा

मुखपृष्ठ पर कभी,

फिर भीतरी पृष्ठों पर

उद्घाटित हुआ,

मलपृष्ठ पर

प्रभासित है इन दिनों..,

इति में आदि की छाया

प्रतिबिम्बित होती है,

उद्भव और अवसान की

अपनी आभा होती है!

 

# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 11:07 बजे, 25.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44 ☆ व्यंग्य – संशय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी  सामजिक एवं प्रशासनिक प्रणाली पर काफी कुछ कहता एक  व्यंग्य   “संशय” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44

☆ व्यंग्य – संशय ☆ 

सुंदरपुर अब बड़े कस्बे से छोटे शहर में तब्दील हो गया था। सुंदरपुर के सबसे बड़े अमीर सेठ मानिक लाल के यहां चोरी हो गई।  स्थानीय अखबार ने इस बड़ी चोरी में पुलिस के आदमी का हाथ होना बताया। रामदीन ने अखबार में सुबह-सुबह पढ़ा। पुलिस वालों में उत्सुकता हो गई कि बड़े सेठ के यहां किस पुलिस वाले ने लम्बा हाथ मार दिया। रामदीन की एक साल पहले ही पुलिस में नौकरी लगी थी, ईमानदार टाइप का भी था और डरपोंक, सीधा सादा। हालांकि रामदीन पोस्ट ग्रेजुएट था पर गरीबी रेखा के नीचे का आदमी था इसलिए सुंदरपुर थाने में उसे कुत्ता संभालने की ड्यूटी दी गई। जब कहीं चोरी होती तो रामदीन कुत्ते की चैन पकड़ कर कुत्ते के साथ भागता, दौड़ता, रुकता, कुत्ते के नखरे के अनुसार वह इमानदारी से ड्यूटी करता।

सेठ मानिक लाल के यहां की चोरी में लोग पुलिस वाले पर शक कर रहे थे तो वह थाने से कुत्ते को लेकर निकला। पीछे पीछे उसके बड़े साहब लोग जीप से चल रहे थे। दौड़ते – दौड़ते एक जगह वह पुलिस का काला कुत्ता रुक जाता है। रामदीन चारों ओर देखता है दूर दूर तक कहीं कोई नहीं दिखता पीछे से आते पुलिस के साहबों का कुनबा जरुर दिखता है। रामदीन चौकन्ना हो जाता है पास में एक कुतिया कूं कूं करती खड़ी दिखती है। कुत्ता सोचता है – क्या कमसिन कुतिया है? कुत्ते को देखकर कुतिया भी सोचती है – कितना बांका कुत्ता है।

रामदीन सचेत होकर कुत्ते को घसीटते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करता है परन्तु कुत्ता ड्यूटी के नियमों को ताक पर रखकर रामदीन को पीछे घसीटने लगता है और गुस्से में रामदीन के चक्कर लगा लगाकर भौंकने लगता है। रामदीन डर जाता है सोचता है बड़ी मुश्किल से तो नौकरी लगी थी और ये कुत्ता नाराज होकर अपनी ड्यूटी भूल गया है। कहां से बीच में ये कुतिया आ गई। रुक कर रामदीन को लगातार भोंकते कुत्ते को देखकर साहबों ने रामदीन को पकड़ कर हथकड़ी डाल दी। रामदीन बहुत रोया, गिड़गिड़ाता रहा कि सर चोरी नहीं की, ये कुत्ता आवेश में आकर मुझसे बदला ले रहा है। थोड़ी देर के लिए इसका दिमाग भटक गया था, ये चाहता था कि थोड़ी देर के लिए उसे छोड़ दिया जाय पर मैंने देशभक्ति और जनसेवा को आदर्श मानकर इसको अनुशासन का पाठ सिखाया इसीलिए ये नाराज होकर मुझ पर भौंकने लगा।

साहब ने एक न माना बोला –  कुत्ते ने आपको पकड़ा, आपके चारों ओर चक्कर लगा लगा कर भौंका, इसलिए “अवर डिसीजन इज फाइनल।”

दूसरे दिन अखबार में चोरी के इल्ज़ाम में रामदीन की कुत्ता पकडे़ शानदार तस्वीर छपी थी। अखबार की भविष्यवाणी सही थी….

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆ हर तरफ मौत का सामान ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक  समसामयिक भावपूर्ण एवं सार्थक कविता  हर तरफ मौत का सामान।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆

☆  हर तरफ मौत का सामान ☆

 

रास्ते गलियां सुनसान हैं, घर में कैद इंसान है

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है ।

 

दुनिया बंद, इंसान परेशान है,

संभल के जियो,हर तरफ मौत का सामान है ।

 

कैसा समय है  इंसान कैद, पंछी उड़ते गगन में खुला आसमान है,

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है।

 

सब बेहाल परेशान हैं, ना किसी से मिलना ना किसी के घर जाना,

डरा हुआ सा इंसान है, हर तरफ मौत का सामान है।

 

ना बरखा की बूंदे अच्छी लगती, ना कोयल की कूके,

बदलते मौसम से परेशान, हर तरफ मौत का सामान ।

 

मंदिर के दरवाजे बंद, न घंटियों की झंकार,

ना अगरबत्ती की खुशबू  फलती, हर तरफ मौत का सामान ।

 

ना चाकू, ना पिस्तौल है, ना रन है

जीव जंतु औजार हैं, करते बेहाल हैं, हर तरफ मौत का सामान।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से ☆ श्री दिवयांशु शेखर

श्री दिव्यांशु शेखर 

(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की।  आप  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से  ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास  “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक सार्थक कविता  “लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से  )

☆ लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से 

 

मैं देखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई नज़ारे अब बंद दिखते हैं,

बेबाक कदमें अब चंद दिखते हैं,

सड़कों पे फैला हुआ लबों के हँसी की मायूसी,

बीते कल के शोर की एक अजीब सी ख़ामोशी।

 

मैं सुनता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

ना होती वाहनों के शोर की वो घबराहट,

ना पाता किसी अपने ख़ास के कदमों की आहट,

रँगीन गली में अब पदचिन्हों की दुःखभरी कथा,

किनारे खड़े खंभे से आती प्रकाश की अपनी व्यथा।

 

मैं बोलता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई चीजों के मायनें कैसे बदल रहे,

तो कई रिश्ते बंद कमरों में कैसे मचल रहे,

कोई खुद के प्यार में पड़ वर्तमान में कैसे खो रहा,

तो आज भी भविष्य तो कोई बीते कल की मूर्खता में रो रहा।

 

मैं सोचता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

क्या होगा जब वापस सब पहले जैसा शुरू होगा,

कैसा लगेगा जब दिल आजादी से पुनः रूबरू होगा,

सूरज की चमक से तन कैसे पसीने से भींगेगा,

हवा के थपेड़ों से मन कैसे दीवानों की तरह झूमेगा।

 

मैं लिखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,

कई लोग कल दोबारा हाथों को कसकर थामे कैसे खुशी से गायेंगे,

तो कैसे मतलब के कुछ रिश्ते आँखों में आँसू छोड़ जायेंगे,

जब खिड़कियों के जगह दरवाजें खुलेंगे तो वो कितना सच्चा होगा,

जब वापस कई बिछड़े दिल मिलेंगे तो वाकई कितना अच्छा होगा।

 

©  दिव्यांशु  शेखर

कोलकाता

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विश्वास☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “विश्वास )

☆   विश्वास ☆

 

विश्वासाने होतो आहे

अनोळखी ओळखीचा

विश्वासाचा दैवी हात

संसारात प्रगतीचा…!

 

विश्वासाने व्यवहार

विश्वासाने चाले जग

त्याचे असणे नसणे

अंतरीची तगमग. . . !

 

खरे नाते विश्वासाचे

माणसाला घडवीते

कसे जगावे जीवन

जगूनीया दाखवीते….!

 

विश्वासात नको गर्व

नको व्यर्थ  अहंकार

एक मायेचा दिलासा

बाकी सारे निरंकार….!

 

आत्मविश्वासाचे बल

यश, कीर्ती,  समाधान

आहे अंतरीचा सेतू

ठेवी मानव्याची शान….!

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Talk on Happiness – XVI ☆ Are you seeking lasting happiness & peace? Do you want to know how to be healthy, Happy & Wise? – Video # 16 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Talk on Happiness – XVI ☆ 

Are you seeking lasting happiness & peace? Do you want to know how to be healthy, Happy & Wise?

Video Link >>>>

Talk on Happiness: VIDEO #16

A Holistic Approach that will completely transform your entire experience of Life!

Happiness, say the positive psychologists, is the experience of joy, contentment, or positive well-being, combined with a sense that life is good, meaningful, and worthwhile.

In this short talk, I will be outlining a pathway to authentic happiness, well-being and a meaningful life.

I shall share with you a holistic approach, developed through years of deep research and rigorous practice, that will completely transform your entire experience of life.


LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (54) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

 

भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।

ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥54॥

मुझे समझना देखना औ” कर सकना प्राप्त

केवल नैष्ठिक भक्ति से , ही है संभव आप्त ॥54॥

 

भावार्थ :  परन्तु हे परंतप अर्जुन! अनन्य भक्ति (अनन्यभक्ति का भाव अगले श्लोक में विस्तारपूर्वक कहा है।) के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूँ॥54॥

 

But by single-minded devotion can I, of this form, be known and seen in reality and also entered into, O Arjuna!॥54॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 47 ☆ व्यंग्य – प्रेम और अर्थशास्त्र ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘प्रेम और अर्थशास्त्र’।  फ़िल्में देख कर  पैदा हुए सपनों का घर बनाने के लिए घर से भाग कर विवाह करने वाले युवक युवतियों  को जब प्रेम के पीछे छुपे अर्थशास्त्र से रूबरू होना पड़ता है ,तो  उनको डॉ परिहार जी का यह व्यंग्य अर्थशास्त्र के सारे सिद्धांत समझा देता है। ऐसे  अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 47 ☆

☆ व्यंग्य – प्रेम और अर्थशास्त्र ☆

हेमलता का प्रेम उस स्टेज में था जिसमें चाँदनी, बरसात की फुहार, नदी का किनारा ही संपूर्ण ज़िन्दगी होते हैं। रोमांस की चूलें हिलना तब शुरू होती हैं जब उसमें राशन-पानी, बनिये का उधार, बच्चों की पढ़ाई प्रवेश करती है। तब तक सब हरा-हरा होता है।

हेमलता बार बार सुधीर से कहती थी, ‘तुम मेरे साथ शादी क्यों नहीं करते?अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। हम मिलकर सुनहरी जिन्दगी की नींव डालेंगे।’

सुधीर के पाँव ज़मीन पर थे। वह कहता, ‘बाई, तू ठीक कहती है। मैं भी तेरे बिना नहीं रह सकता। लेकिन ज़िन्दगी सुनहरी सोने से होती है।  मैं अभी बेरोज़गार हूँ और बिना रोज़गार के तेरे पिता तेरा हाथ मेरे हाथ में देंगे नहीं। अभी शादी करके मैं तुझे खिलाऊँगा क्या?खाली प्रेम से तो पेट भरने वाला नहीं।’

हेमलता रूठ जाती, कहती, ‘तुम प्रेम के बीच में यह राशन-पानी लाकर सब मज़ा किरकिरा कर देते हो। मेरा प्रेम भूखे पेट ज़िन्दा रह सकता है। तुमने ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म देखी है?उसमें हीरो ने मज़दूरी करके अपने प्रेम को ज़िन्दा रखा था।’

सुधीर माथा ठोककर कहता, ‘बाई, फिल्मों की बातें झूठी होती हैं। उस हीरो ने फिल्मों से बाहर गरीबी देखी भी नहीं होगी। इसके अलावा आजकल जितनी मज़दूरी मिलती है उतने पर प्यार को ज़िन्दा नहीं रखा जा सकता।’

हेमलता शिकायत के स्वर में कहती, ‘तुम बहानेबाज़ हो। शादी न करने के बहाने ढूँढ़ते हो। मुझे प्यार नहीं करते।’

अन्त में प्रेमी ने हथियार फेंक दिये और दोनों ने चुपचाप शादी कर ली।

सुधीर ने एक दोस्त से बीस हज़ार रुपये उधार लिये और एक कमरा किराये पर ले लिया। दोनों के परिवारों ने उनका बायकाट कर दिया।

कुछ दिन खूब रंगीन हवा में तैरते बीते।  घूमना-घामना, सिनेमा देखना, होटल में खाना खाना। फिर ज्यों ज्यों पैसा समाप्ति की तरफ बढ़ने लगा, सुधीर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह दिन भर नौकरी के चक्कर में घूमता।

सिनेमा कम हुआ, सैर-सपाटे सिमट गये,होटल का खाना घट कर नाश्ते पर आ गया, फिर चाय से संतोष होने लगा।

फिर एक दिन घर में दूध आना बन्द हो गया। कारण पता चला तो हेमलता की हालत खराब हो गयी। रुआंसी होकर बोली, ‘चाय के बिना तो मैं मर जाऊँगी।’

सुधीर फिर कहीं से दस हज़ार रुपये लाया। फिर गाड़ी मंथर गति से चली।

एक दिन सुधीर की अनुपस्थिति में मकान-मालिक का कलूटा मुंशी घर में आ गया। तोंद खुजाते हुए बोला, ‘बाई, दो महीने का किराया चढ़ गया है। चुका दो। सेठ बहुत खराब आदमी है, सामान फिंकवा देगा।’

हेमलता की साँस ऊपर चढ़ गयी।

धीरे धीरे घर में कलह शुरू हुई। सुधीर नौकरी के चक्कर में शहर की ख़ाक छानकर आता और अपनी खीझ हेमलता पर उतारता। हेमलता उसे दोष देती। रोना धोना होता। फिर मान-मनौव्वल के बाद सुलह हो जाती। दूसरे दिन फिर वही नोंक-झोंक।

अब सुधीर की हालत देखकर हेमलता को लगता कि नौकरी से पहले शादी करना गलत हो गया। अर्थशास्त्र प्रेम का कचूमर निकालने पर तुल गया था।

इसी तरह रस सूखता रहा। ज़िन्दगी चारदीवारी तक सीमित रह गयी। अकेलापन, सुधीर का इंतज़ार, नमक-दाल की फिक्र। रोमांस पंख लगा कर उड़ गया।

फिर एक दिन सुधीर एक लिफाफा लेकर लौटा। खुशी से बोला, ‘मेरी नौकरी लग गयी। अभी पच्चीस हज़ार मिलेंगे।’

हेमलता खुश होकर बोली, ‘अब तो हमें दिक्कत नहीं रहेगी?’

‘न।’

‘हम सिनेमा देखने जा सकेंगे?’

‘ज़रूर।’

‘घूमने जा सकेंगे?’

‘बिलकुल।’

‘अब मकान-मालिक तो हमें तंग नहीं करेगा?’

‘नहीं।’

‘अब तुम मुझसे लड़ोगे तो नहीं?’

‘नहीं लड़ूँगा।’

खुशी से हेमलता की आँखों में आँसू आ गये। लेकिन लगा कि अर्थशास्त्र उनके रोमांस का कुछ हिस्सा काट ले गया है, जो अब वापस नहीं लौटेगा।

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 48 ☆ ई- अभिव्यक्ति India Book of Records और  Directory of Most Popular Blogs in India में दर्ज ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 48 ☆ ई- अभिव्यक्ति India Book of Records और  Directory of Most Popular Blogs in India में दर्ज 

प्रिय मित्रों,

मैं अभिभूत हूँ और इन पंक्तियों को लिखना मेरे जीवन के अत्यंत भावुक क्षणों में एक हैं। 1 ½ वर्ष  पूर्व जब गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘ सुमित्र’ जी के निम्न आशीर्वचन से ई-अभिव्यक्ति का शुभारम्भ किया था जिसे मैंने गुरुमंत्र की तरह लिया और प्रयास करता हूँ कि उसका सतत पालन करूँ –

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

यह वेबसाइट मैंने स्वान्तः सुखाय बिना किसी अपेक्षा के प्रारम्भ की जिसका साक्षी आपका अपार  स्नेह तथा प्रतिसाद है, जिसे मैं सदैव अपने ह्रदय में संजो कर रखूंगा । यह आपका स्नेह ही है जिसने इस सप्ताह ई- अभिव्यक्ति परिवार को दो सर्वोच्च उपलब्धियां प्रदान की हैं। मैं इन उपलब्धियों को अक्षरशः उद्धृत करने का प्रयास कर रहा हूँ।

India Book of Records

Congratulations, your claim has been finalized as a record titled, ‘ Oldest man to develop a website ’ under India Book of Records 2021. We appreciate the effort and patience shown by you. Your skills have been acknowledged and as per the verification done by the Editorial Board of ‘India Book of Records’, only the best has been selected and approved by us.

The title and content has been created as per our verification and is given below.

RECORD TITLE & DESCRIPTION

Oldest man to develop a website
The record for being the oldest to design and develop a website was set by a 62 year old Hemant Bawankar (born on June 2, 1957) of Pune, Maharashtra. He developed a unique website named e-abhivyakti.com that publishes daily blogs/articles in Hindi, Marathi, and English, as confirmed on April 13, 2020.

दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि है Directory of Most Popular Blogs in India  में स्थान पाना एक गौरवपूर्ण क्षण है जिसके लिए निम्न चिन्ह एवं लिंक हमारी वेबसाइट के होम पेज पर प्रदान किया गया है  –

Indian Blog Directory – Directory of Most Popular Blogs in India

IndiBlogHub Connecting Top Indian Bloggers with Brands

Hello Hemant Bawankar,

Congratulations! Your blog has been approved! (e-abhivyakti) on IndiBlogHub.

हम ई-अभिव्यक्ति में नवीन सकारात्मक तकनीकी एवं साहित्यिक प्रयोगों के लिए कटिबद्ध हैं।

इन उपलब्धियों के लिए आपका ह्रदय तल से आभार ।  

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☆ मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना ☆ 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

हम सदैव मानवीय आधारों पर सकारात्मक साहित्य देने हेतु कटिबद्ध हैं।

ई – अभिव्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार की किसी भी पुष्ट अथवा अपुष्ट वैज्ञानिक जानकारी एवं अफवाहों पर कदापि कोई विमर्श नहीं करता।  इस वैश्विक एवं राष्ट्रीय आपदा में आप सबसे निवेदन है कि सरकार द्वारा तय नियमों का कठोरता से पालन करें। इसी में हम सबकी भलाई है, मानवता की भलाई है।

 

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

26 अप्रैल 2020

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रतीक्षा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रतीक्षा ☆

 

अंजुरि में भरकर बूँदें

उछाल दी अंबर की ओर,

बूँदें जानती थीं

अस्तित्व का छोर,

लौट पड़ी नदी

की ओर..,

मुट्ठी में धरकर दाने

उछाल दिए आकाश की ओर,

दाने जानते थे

उगने का ठौर

लौट पड़े धरती की ओर..,

पद, धन, प्रशंसा, बाहुबल के

पंख लगाकर

उड़ा दिया मनुष्य को

ऊँचाई की ओर..,

……….,………..,

….तुम कब लौटोगे मनुज..?

# घर में रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

श्रीविजयादशमी 2019, अपराह्न 4.27 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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