English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 4 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

 ☆ Anonymous Litterateur of Social  Media # 4 / सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 4☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

 

  नज़र जिसकी समझ सके

वही  दोस्त  है वरना…

खूबसूरत   चेहरे  तो

दुश्मनों के भी होते हैं…

Just a glance  of  whose,

perceives you, is your friend

  Otherwise even enemies

Too  have  pretty  faces…!

§

हो के मायूस यूँ ना

शाम से ढलते रहिए

ज़िंदगी आफ़ताब है

रौशन निकलते रहिए…

Being  dejected don’t you

ever be the dusking Sun

Life is like the radiant Sun

Keep  rising  resplendently…!

§

  ना इलाज  है 

ना   है दवाई….

ए इश्क तेरे टक्कर 

की  बला  है आई…

Neither  exists  any  cure

Nor is  there  any medicine

O’ love ailment matching you

Has  emerged on  the earth…!

§

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी

सदियों ने  सजा पाई…!

Have also seen such constraints

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries got punished!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 31 – हाँ! मैं टेढ़ी हूँ ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री -शक्ति पर आधारित एक सार्थक एवं भावपूर्ण रचना  ‘हाँ! मैं टेढ़ी हूँ । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 31– विशाखा की नज़र से

☆ हाँ ! मैं टेढ़ी हूँ  ☆

 

तुम सूर्य रहे, पुरुष रहे

जलते और जलाते रहे

मैं स्त्री रही, जुगत लगाती रही

मैं पृथ्वी हो रही

अपने को बचाने के जतन में

मैं ज़रा सी टेढ़ी हो गई

 

मैं दिखती रही भ्रमण करते हुए

तेरे वर्चस्व के इर्दगिर्द

बरस भर में लगा फेरा

अपना समर्पण भी सिद्ध करती रही

पर स्त्री रही तो मनमानी में

घूमती भी रही अपनी धुरी पर

 

टेढ़ी रही तो फ़ायदे में रही

देखे मैंने कई मौसम

इकलौती रही पनपा मुझमें ही जीवन

तेरे वितान के बाकी ग्रह

हुए क्षुब्ध , वक्र दृष्टि डाले रहे

पर उनकी बातों को धत्ता बता

मैं टेढ़ी रही ! रही आई वक्र !

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 5 ☆ नींव के पत्थर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा “विश्व में कविता समाहित या कविता में विश्व?”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 5 ☆ 

☆  नींव के पत्थर ☆ 

महल के कलश कितने भव्य हैं… मीनारें तो देखो कितनी सुंदर हैं…. दीवारों पर की गई पच्चीकारी अद्वितीय है…. छतों पर अद्भुत चित्रकारी है… वातायनों और गवाक्षों पर कैसी मनोहर बेलें हैं… दर्शक भावविभोर रहकर प्रशंसा कर रहे थे।

किसी ने एक भी शब्द नहीं कहा उन सीढ़ियों के लिए जो पूर्ण समर्पण के साथ मौन रहकर उठाये थीं उन सबका भार और अदेखे रह गये महल का असहनीय भार पल-पल अपने सिर पर उठाये नींव के पत्थर।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 8 ☆ त्या कोणत्या क्षणाला……. ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “त्या कोणत्या क्षणाला…….“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 8 ☆

☆ कविता – त्या कोणत्या क्षणाला…….

 

त्या धुंद सुगंधाने,मदहोश जाहलो मी

सगळे कळे तरीही, बेहोश जाहलो मी ।।

 

धुंदीत मती गुंग,गुंगीत प्यायलो मी

संपुर्ण विश्र्व सोडूनी,पेल्यात मावलो मी।।

 

पेले असे शराबी,अडखळत पावलांनी

रिचवीत मात्र गेलो,थरथरती हात दोन्ही।।

 

त्या कोणत्या क्षणाला ,हा येथ धावलो मी

माझ्याच भविष्याच्या,काळ्यास भोवलो मी।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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हिन्दी साहित्य ☆ धारावाहिक उपन्यासिका ☆ पथराई आंखों का सपना भाग -2 ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(प्रत्येक रविवार हम प्रस्तुत कर रहे हैं  श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित ग्राम्य परिवेश पर आधारित  दो भागों में एक लम्बी कहानी  “पथराई  आँखों के सपने ”।   

श्री सूबेदार पाण्डेय जी का आग्रह –  इस बार पढ़े पढ़ायें एक नई कहानी “पथराई आंखों का सपना” की अंतिम कड़ी और अपनी अनमोल राय से अवगत करायें। हम आपके आभारी रहेंगे। पथराई आंखों का सपना न्यायिक व्यवस्था की लेट लतीफी पर एक व्यंग्य है जो किंचित आज की न्यायिक व्यवस्था में दिखाई देता है। अगर त्वरित निस्तारण होता तो वादी को न्याय की आस में प्रतिपल न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों का दंश न झेलना पड़ता। रचनाकार  न्यायिक व्यवस्था की इन्ही खामियों की तरफ अपनी रचना से ध्यान आकर्षित करना चाहता है।आशा है आपको पूर्व की भांति इस रचना को भी आपका प्यार समालोचना के रूप में प्राप्त होगा, जो मुझे एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत कर सकेगा।)

? धारावाहिक कहानी – पथराई आंखों का सपना  ? 

(आपने पढा़—-किस प्रकार मंगरी चकरघिन्नी बनी कभी वकील की चौकी कभी न्यायालय के दफ्तर कभी पुलिस थाने का चक्कर काटती न्याय की आस में भटक रही थी, उसकी आंखों में न्याय पाने की आस तथा सबका उपेक्षित व्यवहार ही उसके साथ होता।  अब आगे पढ़े——)  

दुख जब ज्यादा होता धैर्य जब छूट जाता तो किसी कोने में बैठ चुपचाप रो लेती।  फिर चुप हो जाती इस उम्मीद में अपने दिल को दिलासा दे लेती कि एक न एक दिन सत्य की जीत अवश्य होगी।

इन्ही उम्मीद के सहारे तो उसने अपने बेटे का नाम सत्यजीत रखा था। लेकिन तब उसे कहाँ पता था कि सत्य के पीछे चलती हुई वह एक दिन खुद इस जहाँ से चली जायेगी, और फिर वह सत्य को विजेता होते कभी भी नहीं देख पायेगी।

इन्ही आशा और निराशा के बीच झूलती मंगरी को उत्साह जनक खबर मिली कि उसके मुकदमे की सुनवाई पूरी हो गई है।  न्यायधीश ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। फैसले की तारीख नियत हो गई है।  इस सुखद खबर ने एक बार फिर मंगरी के टूटते हौसले को सहारा दिया।  जिसने उसके दिल में जोत तथा आंखों में भविष्य के सपनें सजा दिये थे।  उसके फड़कते बायें अंग तथा दिल की धड़कन से अपनी विजय का शंखनाद स्पष्ट सुनाई दे रहा था।

लेकिन इंतजार की घड़ियाँ लंबी हो चली थी।  उसके एक एक दिन एक एक युग के समान बीत रहे थे। इस बीच बड़ी मुश्किल से मंगरी ने अपने श्रम तथा घर में रखे अन्न बेच कर ही वकील के फीस का इंतजाम किया था। फिर भी गाँव से शहर के न्यायालय आने के लिए बस के किराये के पैसे कम पड़ रहे थे।

आज फैसले का दिन था, वह सुबह सबेरे बिना कुछ खाये पिये मारे खुशी के खाली पेट ही घर से चल पडी़ थी, गाँव के चौक की तरफ जंहा से बसें जाती है शहर को।  उसने रास्ते के लिए चार मोटी रोटियां तथा अचार के कुछ टुकड़े भर लिए थे अपने झोले में और बस स्टैंड तक पहुँच शहर जाने वाली बस में बैठ गई थी।

बस तय समय पर अपने गंतव्य पथ की तरफ चली, लेकिन किराया न चुकाने के कारण कंडक्टर ने भुनभुनाते हुये मंगरी को बस से नीचे उतार दिया था।
। उसने हाथ पांव जोड़े लाख अनुनय विनय किया गिड़गिडा़यी लेकिन कंडक्टर ने उसकी एक भी नहीं सुनी।  असहाय मंगरी जाती हुई बस को आंखों से ओझल होने तक हसरत भरे नेत्रों से देखती रही।

मई माह का मध्य महीना भगवान भाष्कर अपने प्रचंड तापवेग से तप रहे थे, ऐसे में तेज पछुआ हवा के थपेड़े गर्म लू का अहसास करा रहे थे, क्या पशु क्या पंछी क्या जानवर क्या इंसान सभी गर्मी के प्रचंड ताप वेग से छांव की ठांव ले बैठे थे।  सहसा मंगरी की तंद्रा भंग हुई।  उन विपरीत परिस्थितियों की परवाह न करके अपने छोटे बच्चे का हाथ थामे लगभग दौड़ने वाले अंदाज में पैदल ही धूप में जलती चलती जा रही थी अपने लक्ष्य की ओर।  न्याय पाने की खुशी में लू की गर्मी तथा तेज धूप की जलन का अहसास ही नहीं था उसे।  उसे जल्दी पडी़ थी कि कहीं उसे न्यायालय पहुचने मे देर न हो जाये और वह अपने भाग्य का फैसला सुनने से वंचित न रह जाय।

वह तेज चाल से लगभग दौडती हुई बच्चे के साथपहुंच न्यायालय के दरवाजे के खंभे के पास खडी़ हांफ रही थीं तथा अपनी उखड़ी सांसों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी कि तभी न्यायिक परिसर में उसके नाम की आवाज गूंजी और वह सुनते ही दौड़ पडी़ न्यायधीश के कक्ष की तरफ। वह न्यायिक कुर्सी के सामने  पंहुची ही थी कि वहीं पर भहरा कर गिर पडी़ उसकी आखें पथरा गईं, मुंह खुला रह गया। न्याय पाने के पहले ही न्याय की आस लिए उसके प्राण पखेरू इस नश्वर संसार से अनंत की ओर उड़ चले।  उसके झोले से बाहर बिखरी रोटियां उसके भूख पीडा़ बेबसी की दास्ताँ बयां कर रहे थे  और न्याय कक्ष में उपस्थित वादी प्रति वादी गण उसकी  आंखों में झांक अपने न्याय का भविष्य तलाश रहे थे। क्योंकि  लगभग उन्ही परिस्थितियों से वे भी दो चार हो रहे थे।  उसकी पथराई आंखों में अब भी अपने बेटे के लिए न्याय पाने का सपना मचल रहा था।

न्याय कक्ष में स्थापित न्याय की देवी के आंखों में बधी पट्टी के नीचे गीलापन मांनो मंगरी की विवशता पर संवेदनायें व्यक्त कर रही थी।  वहीं पर न्यायालय के छत पर टंगे पंखे की खटर पटर की आ रही आवाजों के बीच पंखे के हवा के झोकों  से न्याय की देवी के हाथ में थमें तराजू के पलड़े उपर नीचे होते हुये न्यायिक देरी से हुये वादी के प्रति अन्याय की दुविधा को प्रकट करते जान पडे़ थे और न्यायधीश महोदय अपने माथे पर हाथ धरे सिर नीचे किये चिंतित मुद्रा में कुछ सोच रहे थे।  उनके माथे पर चुहचुहा आई पसीने की बूंदें सबेरे की ओस का आभास करा रही थी।

उनके ठीक सामने दीवार पर उत्कीर्ण सूत्र वाक्य (सत्यमेव जयते) मानों हवा के झोकों से उड़ रहे कानून की किताब के पन्नों को मुंह चिढा़ रहे थे। आज के दिन पहली बार  किसी वादी को मिलने वाला न्यायिक फैसला पढ़ा नहीं जा सका और अन्याय से लड़ने का उसका हौसला समूची कानूनी प्रक्रिया के  सामने यक्ष प्रश्न बन मुंह बाये खडा़ था। जो पुलिसिया तंत्र जीते जी मंगरी को गुजारा भत्ता तथा न्याय नहीं दिलवा सका वही तंत्र आज चाक चौबंद हो पोस्ट मार्टम प्रक्रिया हेतु पांच गज मारकीन  के कपड़े में लिपटी मंगरी की लाश को उठाते हुये संवेदना प्रकट कर रहा था। न्यायिक कक्ष के बाहर खड़े सत्यजीत का हाथ थामे मंगरी का पिता उस अनाथ को परिसर से बाहर ले श्मशान घाट की तरफ बढ़ चला था। मंगरी की चिता को अग्नि का दान करने।

न्यायिक कक्ष में छाई खामोशी अब भी कुछ यक्ष प्रश्न लिए खडी़ थी।

मंगरी की मौत का जिम्मेदार कोन???????

सारे प्रश्न अनुत्तरित।

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Talk on Happiness – XV ☆ जीवन में खुश कैसे रहें? – A Short Talk on Happiness (In Hindi) – Video # 15 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Talk on Happiness – XV ☆ 

जीवन में खुश कैसे रहें? – A Short Talk on Happiness (In Hindi)

Video Link >>>>

Talk on Happiness: VIDEO #15

A short talk on happiness delivered by Jagat Singh Bisht during Laughter Yoga session on Sunday, in view of the upcoming International Day of Happiness on March 20. Gist of the talk: Activity, exercise, yoga, pranayama, meditation, engagement, flow, positive relationships and a meaningful life lead to enduring happiness.

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ विश्व पृथ्वी दिवस , विश्व पुस्तक दिवस और रमज़ान मुबारक ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल

श्री राकेश कुमार पालीवाल

 

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।

लॉक डाउन के इस सप्ताह में कोरोना के आंकड़ों के बीच कुछ दिन विशेष थे जो आये और चले गए।  हम आदरणीय श्री राकेश कुमार पालीवाल जी की  फेसबुक वाल से ऐसे ही तीन दिनों की स्मृतियाँ सजीव करने का प्रयास कर रहे हैं  – विश्व पृथ्वी दिवस , विश्व पुस्तक दिवस और  रमज़ान मुबारक )

☆ अर्थ डे (धरती दिवस) पर : दो पंक्ति मेरी भी ☆

सबसे पहले यह वैज्ञानिक सच कि हमारे सौर मंडल में कोई और ग्रह या किसी ग्रह का कोई ऐसा उपग्रह नहीं है जहां विविध जीवन रूपों के लिए इतनी अच्छा वातावरण है। अभी तक तो सौर मंडल के बाहर भी और कहीं जीवन के निशान नहीं मिले हैं इसलिए धरती ही इकलौती ऐसी जगह है जहां प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत खजाना होने।

हमने इस प्राकृतिक सौंदर्य को पिछले सौ साल में बहुत नष्ट भ्रष्ट किया है। इस सदी के महानतम वैज्ञानिक स्टीफेन हाकिंस धरती को अलविदा कहने से पहले हमें चेता कर गए हैं कि प्रकृति का विनाश करने की यही रफ्तार रही तो यह धरती मनुष्य का बोझ अगले पचास साल भी नहीं झेल पाएगी और मनुष्य के अस्तित्व पर ही खतरा खड़ा हो जाएगा।

सौ साल पहले गांधी ने हमें चेताया था कि यह धरती सारे मनुष्यों और जानवरों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम है लेकिन एक व्यक्ति के लालच के लिए कम है। आज कितने लोगों के कितने लालच धरती की सतह से जंगल मिटा रहे हैं और गर्भ को खोद कर तेल खनिज और गैस आदि निकाल रहे हैं। इसका खामियाजा बढ़ता प्रदूषण, गिरता स्वास्थ और महामारी का खतरा हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा है।

कम शब्दों में अपनी बात समाप्त करते हुए धरती की तरफ से आप सबको अपना यह अशआर अर्ज करता हूं –

अपनी कामना और स्वार्थ की चादर निचोड़ दो

कुछ  दिन को मेरे हाल पर मुझको भी छोड़ दो

–  राकेश क़मर (आर के पालीवाल)

☆ विश्व पुस्तक दिवस पर : गांधी पर गांधी के पौत्र की पुस्तक ☆

इधर हाल ही में राजमोहन गांधी की गांधी पर लिखी शोध पुस्तक A Good Boatman पढ़ी है। पुस्तक का शीर्षक भारत की आजादी के आंदोलन की नाव को गांधी द्वारा ठीक से खेने की तरफ इंगित करता है।

सामान्यत: जब कोई परिजन या नजदीकी रिश्तेदार अपने किसी आत्मीय के बारे में लिखता है तो तो वह जरूरत से ज्यादा तारीफ करने लगता है और अच्छी अच्छी बातों का अतिश्योक्तिपूर्ण तरीके से वर्णन करता है और उसके कमजोर पक्ष को या तो पूरी तरह दरकिनार कर देता है या उसे कुतर्क से उचित ठहराने के कोशिश करता है।

कभी कभी इसका उल्टा भी होता है। लेखक अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता दिखाने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा आलोचनात्मक दृष्टिकोण अख्तियार कर लेता है। गांधी में खुद यह गुण या अवगुण था कि वे अपनी अच्छाइयों से ज्यादा अपनी कमियों को बड़ा करके देखते थे।

इस कृति के लेखक के रूप में राजमोहन गांधी की तारीफ बनती है कि उन्होंने पूरी कोशिश की है कि पाठकों को गांधी को जस का तस दिखाने की कोशिश करें। इसीलिए शायद उन्होंने किताब का नाम Excellent Boatman आदि नहीं रखा।

इस किताब को लिखने के लिए लेखक ने जबरदस्त शोध किया है इसलिए इसमें कुछ ऐसी चीजें भी आ सकी हैं जो गांधी वांग्मय में नहीं हैं। ज्यादातर तथ्यों के साथ उनके रेफरेंस देने से किताब की विश्वसनीयता बढ़ी है।

गांधी के जीवन और विचार को समग्रता से समझने के लिए इस किताब को जरूर पढ़ा जाना चाहिए।

विश्व पुस्तक दिवस पर सभी लेखकों और पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं।

 ☆ रमजान मुबारक

इस बार रमजान में दोहरी परेशानी है। एक तो गर्मी का मौसम है दूसरे कोरोना की वैश्विक महामारी ने भय का माहौल बनाया हुआ है और खाने की चीज़ों की किल्लत हो रही है। ऐसे माहौल में त्योहार को सामूहिक रूप में भी नहीं मना सकते।

चाहे रमजान हो या नव दुर्गों का साप्ताहिक उपवास, वह तन और मन दोनों की शुद्धि और जन कल्याण की सदभावना के लिए होता है। उम्मीद है इस रमजान में भी ऊपर वाले के करम से सब खैरियत रहेगी और रमजान के खत्म होने के पहले महामारी भी खत्म हो जाएगी और हम सब मिलकर अच्छे से ईद मना सकेंगे।

रमजान मुबारक 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

हैदराबाद

(आदरणीय श्री राकेश कुमार पालीवाल जी की फेसबुक वाल से साभार) 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साहित्यकार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – साहित्यकार ☆

-साहित्यकार हूँ, अपने समय का दस्तावेज़ लिखता हूँ।

-जो दस्तावेज़ लिखे, इतिहासकार होता है, साहित्यकार नहीं।

..और सुनो, बीते समय को जानने के लिए उस काल का प्रमाणित इतिहास पढ़ा जाता है, साहित्य नहीं।

हाँ, उन स्थितियों ने अंतर्चेतना को कैसे झिंझोड़ा, अंतर्द्वंद कैसे अपने समय से द्वंद करने उठ खड़ा हुआ, व्यष्टि का साहस कैसे समष्टि का प्रताप बना, कैसे भीतर के प्रकाश ने समय में व्याप्त तिमिर को उजालों से भरकर विचार को प्रभासित किया, यह जानने के लिए तत्कालीन साहित्य पढ़ा जाता है।

जिसका लिखा समय के प्रवाह में दस्तावेज़ बनकर उभरा, वही साहित्यकार कहलाया।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

भोर 3:51 बजे, 24.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 1 – ज़ानी वॉकर ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्ण युग का मसखरा : ज़ानी वॉकर पर आलेख ।)

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 1 ☆ 

☆ हिंदी फ़िल्मों के स्वर्ण युग का मसखरा : ज़ानी वॉकर ☆ 

बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी, जिन्हें फ़िल्मी नाम जॉनी वाकर से जाना जाता था, एक हिंदी फ़िल्म  अभिनेता थे। जॉनी वाकर का जन्म 11 नवम्बर 1926 को ब्रिटिश भारत के खरगोन  जिले (बड़वानी) अब मध्य प्रदेश के मेहतागोव गाँव में एक मिल मजदूर के घर हुआ था। जिन्होंने लगभग 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया था।

बडवानी जिले से जानी वाकर का परिवार इन्दौर आया यहां उनके वालिद कपडा मिल मे नौकरी करने लगे, यहीं उनके साथ वह  हादसा हुआ और वे घर बैठ गये, अब परिवार को पालने की जिम्मेदारी जानीवाकर पर आ गई, इन्दौर मे भी बस कन्डक्टरी करी, ठेले पर सामान बेचा, छावनी इन्दौर मे क्रिकेटर मुशताक अली उनके पडोसी व मित्र हुआ करते थे।

दुर्घटना ने उनके पिता को पंगु करके निरर्थक बना दिया और वे रोज़ीरोटी की तलाश में सपरिवार बंबई चले आए। काजी ने परिवार के लिए एकमात्र कमाऊ सदस्य के रूप में विभिन्न नौकरियां कीं, अंततः वे बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) में बस कंडक्टर बन गए। परिवार के एकमात्र कमाऊ जानी दिन भर कई मील की बसयात्रा के बाद कैंडी, फल, सब्जियां, स्टेशनरी और अन्य सामान फेरी लगाकर बेचते थे।

जॉनी वॉकर बसों में काम करते हुए यात्रियों का मनोरंजन किया करते थे। उन दिनों वामपंथी नाटक संगठन इपटा से जुड़े कलाकार एक कमरे के कम्यून में रहते और बसों से यात्रा करते थे। अभिनेता बलराज साहनी ने उन्हें बस यात्रा के दौरान एक दिन भिन्न-भिन्न भावभंगिमाओं  से चुटकुले बाज़ी और चुहल करते देख गुरुदत्त का पता देकर उनसे मिलने की सलाह दी।  बलराज साहनी और गुरुदत्त उस समय मिलकर बाजी (1951) की पटकथा लिख रहे थे। गुरुदत्त बतौर निर्देशक देवनांद, गीताबाली, कलप्ना कार्तिक और के एन सिंग को लेकर बाज़ी के लिए कलाकारों को ले रहे थे उसमें एक शराबी की भी भूमिका थी। गुरुदत्त ने काजी को शराब पीकर शराबी का अभिनय करने को कहा। काजी ने बिना शराब पिए बड़े बढ़िया अन्दाज़ में शराबी का अभिनय कर दिखाया, उन्हें बाज़ी में एक भूमिका मिली।

उस दौर में साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ा होने से मुस्लिम कलाकारों को हिंदू नाम देने का चलन चल पड़ा था जैसे देविका रानी ने यूसुफ़ खान को दिलीप कुमार नाम दिया था वैसे ही मुस्लिम कलाकारों को मीना कुमारी, मधुबाला, नरगिस इत्यादि नाम  मिले थे। गुरुदत्त जब उसी दिन शाम को के एन सिंग के साथ जॉनीवाकर ब्रांड की स्कॉच व्हिस्की का ज़ाम चढ़ा रहे थे, उन्होंने दो पेग चढ़ाने के बाद पहले सुरूर में ही के एन सिंग के मशवरे पर क़ाज़ी को जॉनीवाकर नाम दे दिया था। इस प्रकार फ़िल्मी पर्दे पर जॉनीवाकर नामक मसखरे का आगमन हुआ।

उसके  बाद ज़ानी वाकर गुरुदत्त की सभी फ़िल्मों में दिखाई दिए। वे मुख्य रूप से हास्य भूमिकाओं के अभिनेता थे लेकिन पटकथा में उनकी भूमिका कथानक को आगे बढ़ाने वाली होती थी न कि ज़बरजस्ती ठूँसने वाले बेहूदा हँसोडियों जैसी।  राजेंद्र कुमार के साथ मेरे महबूब, देवानंद के साथ सीआईडी, गुरुदत्त के साथ प्यासा, दिलीप कुमार के साथ मधुमती और राजकपूर के साथ चोरी-चोरी जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टार बना दिया। वे 1950 और 1960 के दशक में नायक  के साथ फ़िल्म सुपर हिट होने की गारंटी हुआ करते थे।  1964 में गुरुदत्त की मृत्यु से उनका केरियर  प्रभावित हुआ। फिर उन्होंने बिमल रॉय और विजय आनंद जैसे निर्देशकों के साथ काम किया लेकिन 1980 के दशक में उनका करियर फीका पड़ने लगा। वे कहते थे कि “उन दिनों हम साफ-सुथरी कॉमेडी करते थे। हम जानते थे कि जो व्यक्ति सिनेमा में आया है, वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आया है … कहानी सबसे महत्वपूर्ण हुआ करती थी। कहानी चुनने के बाद ही अबरार अल्वी और गुरुदत्त उपयुक्त अदाकार  ढूंढते थे, अब यह सब उल्टा हो गया है … वे एक बड़े नायक के लिए एक कहानी लिखाते हैं जिसमें फिट होने के लिए हास्य अभिनेता एक चरित्र बनना बंद कर दिया है, वह दृश्यों के बीच फिट होने के लिए कुछ बन गया है। कॉमेडी अश्लीलता की बंधक बन गई थी। मैंने 300 फिल्मों में अभिनय किया और सेंसर बोर्ड ने कभी भी एक लाइन भी नहीं काटी।”

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 34 ☆ सुन ऐ जिंदगी! ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “ सुन ऐ जिंदगी! ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 34 ☆

 ☆ सुन ऐ जिंदगी! ☆

सुन ऐ जिंदगी!

तुम चाहती थी ना

कि मैं डूब जाऊँ

यह लो आज मैं

समंदर की गहराई में हूँ ।

 

तुम चाहती थी ना

कि मैं छुप जाऊँ

यह लो आज मैं

समंदर की भँवर में हूँ ।

 

तुम चाहती थी ना

कि मैं बिखर जाऊँ

यह लो आज मैं

रेगिस्तान में बिखर गई हूँ ।

 

तुम चाहती थी ना

कि मैं बिसर जाऊँ

यह लो आज दुनिया ने

मुझे बिसरा दिया है ।

 

सुन ऐ जिंदगी!

अब तो तुम खुश हो ना??

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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