हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष  – काव्य धारा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

( आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित  अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस के अवसर पर  उनकी विशेष रचना  “ काव्यधारा ”। ) 

 

आत्म परिचय 

चित्रकार नहीं फनकार है हम, शब्दों से चित्र बनाते हैं।

रंग, तूलिका को छुआ नहीं,  कलमों से कला दिखाते हैं।

रचना में शब्द हैं रंग भरते, इस कला को नित आजमाते हैं

अपना परिचय क्या दूं सबको,  कुछ भी कहते शरमाते हैं।

पढ़ना लिखना  है शौक मेरा, हम आत्मानंद कहाते हैं।

 

☆ अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष  – काव्य धारा ☆

 

कल्पना के लोक से, शब्द का  लेकर सहारा।

रसासिक्त होकर भाव से, बन प्रकट हो काव्यधारा।

 

गुदगुदाती हो हृदय को, या कभी दिल चीर जाती।

या कभी बन वेदनायें अश्क आंखों से है बहाती।

 

कविता ग़ज़ल या गीत बन, नित नये नगमे सुनाती।

लेखनी से तुम निकल कर, पुस्तकों में आ समाती।

 

नित नयी महफ़िल सजाती,  श्रोताओं के मन लुभाती।

काव्यधारा काव्यधारा,  अनवरत तुम बहती जाती।

 

देख कर तेरी रवानी,  कितने ही दिवाने हो गये।

बांह में तेरी लिपट, ना जाने कितने सो गये।

 

काव्यधारा याद  तेरी, कुछ को महीनों तक रही।

चाह में तुमसे मिलन की, आस दिल में पल रही।

 

इक आस का नन्हा दिया, इस दिल में अब तक जल रहा।

खुद डूबने की चाह ले कर, तेरे ही किनारे पर चल रहा।।

 

-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

सर्वाधिकार सुरक्षित

22-4-2020

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208 मोबा—6387407266

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Talk on Happiness – XIII ☆ Beyond Happiness: A new understanding of happiness and well-being and how to achieve them (Part I) – Video # 13 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Talk on Happiness – XIII ☆ 

Beyond Happiness: A new understanding of happiness and well-being and how to achieve them (Part I)

Video Link >>>>

Talk on Happiness: VIDEO #13

Topic: Beyond Happiness: A new understanding of happiness and well-being and how to achieve them (Part I); Speaker: Jagat Singh Bisht; Forum: ASK Talks (attitude, skills and knowledge for the young minds); Conducted by: State Bank Foundation Institute (Chetana), Indore; Date: 07 February 2013.

This is an excerpt from the inaugural ASK Talk. It is based on the PERMA model (Positive Emotion, Engagement, Relationships, Meaning, Accomplishment) propounded by the renowned Positive Psychologist Dr Martin Seligman, author of ‘Learned Optimism’, ‘Authentic

Happiness’ and ‘Flourish.

Mr Bisht is a Behavioural Science trainer with the State Bank of India (a global Fortune 500 corporate), Laughter Yoga teacher, Life Skills coach, Author and Blogger. The views expressed in this talk are personal.

(Part II of this talk is also available on YouTube)

 

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (51) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन)

 

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।। 51 ।।

 

अर्जुन ने कहा –

सौम्य मानवी रूप यह देख नाथ अब आप

मेरा मन है शांत अब , भय सब हुआ समाप्त  ।। 51 ।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे जनार्दन! आपके इस अतिशांत मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ।। 51 ।।

 

Having seen this Thy gentle human form, O Krishna, now I am composed and restored to my own nature!।। 51 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 27 ☆ लघुकथा – जिद ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “जिद ”। हमने  अपने जीवन  में यह देखा है कि यदि मनुष्य कोई बात मन में ठान ले और उसे पूरी करने पर उतर आये तो उसे सच होने में देर नहीं लगाती। हाँ समय जरूर लग सकता है, लोग जरूर उस पर हंस सकते हैं। किन्तु, अपनी जिद पूर्ण करने वाले मनुष्य भी बिरले ही होते हैं जिनका हम उदहारण बनाने के बजाय उदहारण देते नहीं थकते। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस कथानक को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 27 ☆

☆ लघुकथा – जिद

सबकी तरह उन दोनों के लिए भी लॉकडाउन में समय काटना कठिन हो रहा था. अब तक सारा दिन  मजूरी – हारी में निकल जाता था. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का तो कभी वक्त ही नहीं मिला. रात होते – होते थककर चूर हो जाते थे दोनों.  कभी- कभी  सोचता था वह, अच्छा हुआ  भगवान ने रात तो बनाई वरना—-कोल्हू का बैल . खुद पर हँस पडा,  खाली बैठे – बैठे कुछ भी आता है दिमाग में.  घर में भी क्या कम काम हैं ? पानी लाने के लिए कोसों दूर जाना पडता है, गाँव में कोई कुआँ नहीं है . कुआँ  ? अचानक उसके मन में विचार आया और  उसने पत्नी को बुलाया– अरे  मनिया सुन ना.

मनिया दौडी – दौडी आई – क्या हुआ ?

सुन मनिया! हमारे गाँव में एक भी कुआँ नहीं है, कितनी दूर जाना पडता है पानी लेने के लिए.अरे! तो ये कौन सी नई बात बता रहे हो, रोज तो  जाते हैं पानी लेने,  दो घंटा लग जाता है.  अगर हम दोनों मिलकर अपने घर में ही कुआँ खोद लें तो ? वह मुस्कुराया.

क्या ?? वह चिल्ला पडी  – कुआँ खोदना कोई गुडिया का खेल है का, कुआँ खोदने चले हैं.

मालूम है हमें इतना आसान काम नहीं है पर कोशिश तो कर सकते हैं ना ? सारा दिन बैठे बैठे क्या करते हैं ? ये सोचो अगर  कुआँ में पानी निकल आया तो पूरा जीवन आराम से कट जाएगा.  अपना ही नहीं, अपने बच्चों और गाँववालों का भी दुख हमेशा के लिए दूर हो जायेगा.

हाँ ये बात तो है,उसकी आँखों में चमक आ गई – उसके आँगन  में कुआँ ?  हो सकता है क्या ऐसा ?

सब सपना ही लग रहा था, पर वह भी मुस्कुरा दी.

फिर शुरु हुआ  एक अनोखा सफर, गाँव में जिसने सुना बोले – पागल हो गये हैं मियां- बीबी, दो आदमी कहीं कुआँ खोद सकते हैं उसमें से एक औरत जात ?

पर उन्होंने किसी की ना सुनी. एक ही धुन थी कि अपने गाँव में कुआँ होना ही चाहिए. गाँव वाले बोले- इतनी जल्दी पानी नहीं निकलता, मशीन मंगवानी पडती है.

अब तो अपने सपने को पूरा करने की जिद थी बस.  कुआँ खोदते हुए बीस दिन हो गये थे, लगभग बाईस फीट की गहराई तक खुदाई कर चुके थे, दोनों बच्चे माता पिता को ऊपर से ही देखते रहते थे, रात का समय था अचानक बच्चे खुशी से चिल्ला उठे – अम्माँ देखो कुएँ में तारे उतर आए.

कुएँ में पानी उनके पैरों को चूम रहा था. वे दोनों कुएँ की गहराई में खडे आकाश के तारों को  देख रहे थे, ये तारे उनके दिल में चमक रहे थे.

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 34 – Love ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Love.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 34

☆ Love ☆

I take a stroll

In the buoyant garden nearby,

The fragrance makes me feel

Unsullied and fresh,

The hues around me

Give my heart a dazzling happiness,

I glance at the barrel cactus

Placed near the hedge,

It smiles in full bloom,

I grin back

At the flamboyant red of its flowers

Which look vivacious, vibrant…

 

Who can imagine

That a cactus will blossom

When one looks at its prickly thorns?

It’s the sun’s love

That gives it an intriguing glow

On its arid cheeks…

 

Life is certainly more

Than the panch tatvas;

While they make the body,

It’s love that makes life worth living!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #45 ☆ लॉकडाउन और मैं ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 45 – लॉकडाउन और मैं ☆

समाचारपत्रों में कभी-कभार पढ़ता था कि फलां विभाग में  पेनडाउन आंदोलन हुआ। लेखक होने के नाते  ‘पेनडाउन’ शब्द कभी नहीं भाया। फिर नॉकडाउन से परिचय हुआ। मुक्केबाजी से सम्बंधित समाचारों ने सबसे पहले नॉकआउट शब्द से परिचय कराया।कारोबार के समाचारों ने लॉकआउट का अर्थ समझाया। फिर आया लॉकडाउन। यह शब्द अपरिचित नहीं था पर पिछले लगभग एक माह ने इससे चिरपरिचित जैसा रिश्ता जोड़ दिया है।

जब आप किसी निर्णय को मन से स्वीकार करते हैं तो भाव उसके अनुपालन के अनुकूल होने लगता है। इस अनुकूलता का विज्ञान के अनुकूलन अर्थात परिस्थिति के अनुरूप ढलने के सिद्धांत से मैत्री संबंध है।

इस संबंध को मैंने भ्रमण या पैदल चलने के अभ्यास में अनुभव किया। सामान्यत: मैं सुबह 3 से 3.5 किलोमीटर भ्रमण करता हूँ। इस भ्रमण के अनियमित हो जाने पर पूर्ति करने या लंबी दूरी तय करने का मन होने पर अथवा प्राय: अन्यमनस्क होने पर देर शाम 8 से 10 किलोमीटर की पदयात्रा करता हूँ। चलने के आदी पैर लॉकडाउन के कारण अनमने रहने लगे तो परिस्थिति के अनुरूप मार्ग भी निकल आया। एक कमरे की बालकनी के एक सिरे से दूसरे कमरे की बालकनी के सिरे के बीच तैंतीस फीट के दायरे में पैरों ने तीन किलोमीटर रोजाना की यात्रा सीख ली।

पहले विचार किया था कि लेखन में बहुत कुछ छूटा हुआ है जो इस कालावधि में पूरा करूँगा। बहुत जल्दी यह समझ में आ गया कि नई  गतिविधि का अभाव मेरे लेखन की गति को प्रभावित कर रहा है।  यद्यपि दैनिक लेखन अबाधित है तथापि अपने भीतर जानता हूँ कि जैसे कुछ कार्यालयों में पच्चीस प्रतिशत कर्मचारियों के साथ ही काम हो रहा है, मेरी कलम भी एक चौथाई क्षमता से ही चल रही है। बकौल अपनी कविता,

घर पर ही हो,

कुछ नहीं घटता

कुछ करना भी नहीं पड़ता

इन दिनों..,

बस यही अवसर है

खूब लिखा करो,

क्या बताऊँ

लेखन का सूत्र

कैसे समझाऊँ,

साँस लेना ज़रूरी है

जीने के लिए..,

घटना और कुछ करना

अनिवार्य हैं लिखने के लिए!

अलबत्ता समय का सदुपयोग करने की दृष्टि से सृजनात्मक लेखन का मन न होने पर प्रकाशनार्थ पुस्तकों का प्रूफ देखना, पुस्तकों का अलाइनमेंट या सुसंगति निर्धारित करना जैसे काम चल रहे हैं। पुस्तकों की भूमिका लिखने का काम भी हो रहा है। निजी लेखन की फाइलें भी डेस्कटॉप पर अलग सेव करता जा रहा हूँ।

लॉकडाउन के इस समय में प्रकृति को निहारने का सुखद अनुभव हो रहा है। सूर्योदय के समय खगों की चहचहाट, सूर्यास्त का गरिमामय अवसान दर्शाता स्वर्णिम दृश्य, सामने के पेड़ पर रहनेवाले तोतों और चिड़िया के समूहों का शाम को घर लौटना, कौवों का अपने घोंसले की रक्षा करना, ततैया का पानी पीने आना, पानी पीते कबूतरों का भयभीत होकर भागने के बजाय शांत मन से तृप्त होने तक जल ग्रहण करना, सब साकार होने लगा है।

संभवत: साढ़े तीन दशक बाद कोई सीरियल देखने की आदत बनी। पिछले दिनों ‘रामायण’ का प्रसारण नियमित रूप से देखा। रावण ने अपने अहंकार के चलते सम्पूर्ण असुर जाति का अस्तित्व दांव पर लगा दिया था। लॉकडाउन में अनावश्यक रूप से बाहर घूमनेवाले अति आत्मविश्वास और लापरवाही के चलते मनुष्य जाति के लिए वही भूमिका दोहरा रहे हैं।

हर क्षण जीवन बीत रहा है। इसलिए अपने  समय का बेहतर उपयोग करने के लिए सर्वदा कुछ नया और सार्थक सीखना चाहिए। ख़ासतौर पर उन विषयों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, जिनसे  अबतक अनजान हों या जिनमें प्रवीणता नहीं है।

पाकशास्त्र में प्रवीणता दीर्घ कालावधि और सम्पूर्ण समर्पण से मिलती है। दोनों आवश्यकताएँ पूरी करने में अपनी असमर्थता का भलीभाँति ज्ञान होने के कारण रसोई बनाने के सामान्य ज्ञान पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ। अपने काम के सिलसिले में घर से बाहर    काफी दिन रुकना पड़े तो होटल से मंगाने के बजाय अपना भोजन स्वयं सरलता से बना सकूँ, कम से कम इतना सीख लेना चाहता हूँ। मनुष्य को यों भी यथासंभव स्वावलंबी होना चाहिए।  लॉकडाउन इसका एक अवसर है।

लॉकडाउन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यह है कि यह रोग को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक वैक्सिन है। मेडिकल वैक्सिन आने में लगभग आठ से दस माह की अवधि लग सकती है। ऐसे में लॉकडाउन और सामाजिक- भौतिक दूरी, रोग और वैक्सिन के बीच हमें सुरक्षित रख सकती है। अत: आप सबसे भी अनुरोध है कि घर में रहें, सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें।

 

©  संजय भारद्वाज

संध्या 7:50 बजे, 21.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – सस्वर बुंदेली गीत ☆ बैरन या कैसी बीमारी ? – आचार्य भगवत दुबे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य भगवत दुबे

(आज प्रस्तुत है हिंदी साहित्य जगत के पितामह  गुरुवार परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी  का एक समसामयिक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कविता बैरन  या कैसी बीमारी ?”। हम आचार्य भगवत दुबे जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने मानवता के अदृश्य शत्रु ‘ कोरोना ‘ से बचाव के लिए  शिक्षाप्रद सन्देश अपनी अमृतवाणी के माध्यम से बुंदेली भाषा में दिया है । इस कार्य के लिए हमें श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का सहयोग मिला है,  जिन्होंने उनकी कविता को  अपने  मोबाईल में  स्वरांकित कर हमें प्रेषित किया है। यह गीत समय पर प्राप्त हो गया था किन्तु, अस्वस्थता के कारण सम्पादित करने में विलम्ब हेतु मुझे खेद है – हेमन्त बावनकर )    

आप आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन पी एच डी ( चौथी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा दो एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य जी की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी अस्सी पार होने के बाद भी सक्रियता के साथ निरन्तर साहित्य सेवा में लगे रहते हैं । अभी तक उनकी पचास से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी है। बचपन से ही उनका सानिध्य मिला है। कोरोना की विभीषिका के चलते मानव जाति पर आये भीषण संकट के संदर्भ में आचार्य भगवत दुबे जी से दूरभाष पर बातचीत हुई। लाॅक डाऊन और कर्फ्यू के साये में अपनी दिनचर्या  के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विपदा की घड़ी में सभी लोगों को अपने घर की देहरी के अंदर ही रहना चाहिए, घर से बाहर जाने से बचना चाहिए।अपना एवं अपने परिवार के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए संयमित रहकर अपनी प्रिय अभिरुचि पर काम करते हुए व्यस्त रहना चाहिए।
जब हमने उनसे कोरोना समय पर लिखी रचनाओं की चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इस विकट समय पर साहित्यकारों को जन-जन को जागरुक करने वाली रचनाऐं लिखनी चाहिए और समाज के अंदर फैली हताशा और निराशा को दूर करने के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रचनाऐं पाठक के बीच आनी चाहिए। बुंदेली गीत को टेप कर ई-अभिव्यक्ति पत्रिका में प्रकाशित करने हेतु  प्रेषित किया है।
आप परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी का  प्रेरक एवं शिक्षाप्रद बुंदेली  गीत उनके चित्र अथवा लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें:

आचार्य भगवत दुबे 

शिवार्थ रेसिडेंसी, जसूजा सिटी, पो गढ़ा, जबलपुर ( म प्र) –  482003

मो 9691784464

 

स्वरांकन एवं प्रस्तुति – जय प्रकाश पाण्डेय – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष ☆ पुस्तकें ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित एक समसामयिक विशेष रचना “पुस्तकें”। ) 

 

☆  अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस विशेष ☆ पुस्तकें ☆

 

युग से संचित ज्ञान का भंडार हैं ये पुस्तकें

सोच और विचार का संसार हैं ये पुस्तकें

 

देखने औ” समझने को खोलती नई खिड़कियां

ज्ञानियो से जोड़ने को तार हैं ये पुस्तकें

 

इनमें रक्षित धर्म संस्कृति आध्यात्मिक मूल्य है

जग में अब सब प्रगति का आधार हैं ये पुस्तकें

 

घर में बैठे व्यक्ति को ये जोड़ती हैं विश्व से

दिखाने नई राह नित तैयार हैं ये पुस्तकें

 

देती हैं हल संकटो में और हर मन को खुशी

संकलित सुमनो का सुरभित हार हैं ये पुस्तकें

 

कलेवर में अपने ये हैं समेटे इतिहास सब

आने वाले कल को एक उपहार हैं ये पुस्तकें

 

हर किसी की पथ प्रदर्शक और सच्ची मित्र हैं

मनोरंजन सीख सुख आगार हैं ये पुस्तकें

 

किसी से लेती न कुछ भी सिर्फ देती हैं ये स्वयं

सिखाती जीना औ” शुभ संस्कार हैं ये पुस्तकें

 

पुस्तको बिन पल न सकता कहीं सभ्य समाज कोई

फलक अमर प्रकाश जीवन सार हैं ये पुस्तकें

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 24 ☆ वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक अतिसुन्दर प्रार्थना  “वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 24 ☆

☆ वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो ☆

 

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा

सजा संसार दो

 

शब्द में भर दो मधुरता

अर्थ दो मुझको सुमति के

मैं न भटकूँ सत्य पथ से

माँ बचा लेना कुमति से

 

भारती माँ सब दुखों से

तार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

कोई छल से छल न पाए

शक्ति दो माँ तेज बल से

कामनाएँ हों नियंत्रित

सिद्धिदात्री कर्मफल से

 

बुद्धिदात्री ज्ञान का

भंडार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

भेद मन के सब मिटा दो

प्रेम की गंगा बहा दो

राग-द्वेषों को हटाकर

हर मनुज का सुख बढ़ा दो

 

शारदे माँ! दृष्टि को

आधार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों-सा सजा

संसार दो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 44 ☆ व्यंग्य – बे सिर पैर की ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  एक  व्यंग्य  बे सिर पैर की।  श्री विवेक जी ने  इस व्यंग्य का शीर्षक बे सिर पैर की  रखा है किन्तु, इसमें सर भी है और पैर भी है। हाँ , ढूंढना तो आपको ही पड़ेगा। श्री विवेक जी  की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 44 ☆ 

☆ बे सिर पैर की

बे सिर पैर की बातें मतलब फिजूल बातें, बेमतलब की, निरर्थक बातें. बे सिर पैर की बातें करना भी कोई सरल कार्य नहीं होता. अक्सर शराब के नशे में धुत वे लोग जो दीन दुनियां, घर वार भूल जाते हैं, और जिन्हें केवल बार याद रह जाता है, कुछ पैग लगाकर, बड़े सलीके से  तार्किक बेसिर पैर की बातें करने में निपुण माने जाते हैं. उनके ग्रामोफोन की  सुई जहां अटक जाती है, मजाल है कि नशा उतरते तक कोई उनसे कोई तरीके की बात कर सके.  नेता जी लोगों में  भी बे सिर पैर की बाते करने का यह गुण थोड़ा बहुत पाया ही जाता है. अपनी बे सिर पैर की बातों में उलझाकर वे आपसे अपना मतलब सिद्ध करवा ही लेते हैं. यूं कई कहानीकार भी बे सिर पैर का कथानक बुनने के महारथी होते हैं. टी वी सीरियल्स में सास बहू की ज्यादातर स्क्रिप्ट विज्ञापनों और टी आर पी के बीच इस चकाचौंध और योग्यता से दिखाई जाती हैं कि उस बे सिर पैर की कहानी को एपीसोड दर एपीसोड जितना चाहो उतना बढ़ाया जा सकता है. बे सिर पैर का थाट लेकर ही इन दिनो लोकप्रिय हास्य रियल्टी शो ऐसा मशहूर हो रहा है कि लोग वीक एण्ड की और कपिल की सारे हफ्ते प्रतीक्षा करते हैं.

लेकिन इन दिनो जिस एक बे सिर पैर के वायरस ने सारी दुनियां को कारागार में बदल कर रख दिया है वह है करोना. दुनियां भर में हर कोई अपने घर पर लाकडाउन में रहने को मजबूर है. इस बे सिर पैर के, बेजान, प्रोटीन की खाल में लपटे डी एन ए से सुपर पावर्स तक डरी हुई हैं, पर जिनके दिमागो में धर्मांधता के नशे का खुमार हो वे चाहे मरकज में हो, पाकिस्तान में हों या दुनियां के किसी कोने में हों उन्हें इस करोना से कोई डर नही लग रहा. जिन्हें मानव जीवन के इस संघर्ष काल में भी इकानामी का ग्रोथ रेट दिखता हो, ऐसे सुपर पावर्स के बड़े बड़े हुक्मरान भी इस बेसिर पैर के करोना से  बिना डर इस समय को दुनियां में अपने प्रभुत्व जमाने के मौके के रूप में देख रहे हैं. मेरे जैसे  जो सिरे से, दिमाग से सोचते समझते हैं वे अपने ही बायें हाथ से दाहिने हाथ में सामान लेते हुये डर रहे हैं, और साबुन से हाथ धो रहे हैं. हर व्हाटसएप ऐसे पढ़ रहे हैं,मानो उसमें ही करोना के अंत का ज्ञान छिपा है. आप भी ऐसा ही एक व्हाट्सेपी मैसेज पढ़िये.

मार्च की आखिरी तारीख को एक तांत्रिक एक होटल में गया और  मैनेजर के पास जाकर बोला क्या रूम नंबर १३ खाली है?

मैनेजर ने उत्तर दिया हां, खाली है, आप वो रूम ले सकते हैं.तांत्रिक ने कमरा ले लिया और कमरे में जाते हुये मैनेजर से बोला  मुझे एक चाकू, एक काले  धागे की रील और एक पका हुआ संतरा कमरे में भिजवा दो. मैनेजर ने उत्तर दिया ठीक है, और कहा कि हां, मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने ही है,अगर आपको कोई दिक्कत हो तो आप मुझे आवाज दे सकते हैं. तांत्रिक बोला ठीक है,और वह कमरे में चला गया.आधी रात को तांत्रिक के कमरे से तेज चीखने चिल्लाने की और प्लेटो के टूटने की आवाज आने लगती है, इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन रहता है कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है? अगली सुबह जैसे ही मैनेजर तांत्रिक के कमरे में गया  उसे पता चला कि तांत्रिक होटल से चला गया है और कमरे में सब कुछ ठीक है, टेबल पर चाकू रखा हुआ है, मैनेजर ने सोचा कि जो उसने रात में सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था. बात कहते एक साल बीत गया..एक साल बाद..मार्च की आखिरी तारीख को वही तांत्रिक फिर से उसी होटल में आया और रूम नंबर १३ के बारे में पूछा ? मैनेजर:- हां, रूम नम्बर १३ खाली है आप उसे ले सकते हैं,तांत्रिक :- ठीक है, मुझे एक चाकू, एक काले  धागे की रील और एक पका हुआ संतरा चाहिए होगा. मैनेजर:- जी, ठीक है.उस रात  मैनेजर सोया नही, वो जानना चाहता था कि आखिर रात में उस कमरे में होता क्या है? ज्यादा रात नही हुई थी तभी वही आवाजें फिर से आनी चालू हो गई और मैनेजर तेजी से तांत्रिक के कमरे के पास गया, चूंकि उसका और तांत्रिक का कमरा आमने-सामने था, इस लिए वहाँ पहुचने में उसे ज्यादा समय नही लगा. लेकिन दरवाजा लॉक था, यहाँ तक कि मैनेजर की वो मास्टर चाबी जिससे हर रूम खुल जाता था, वो भी उस रूम १३ में काम नही कर रही थी.

आवाजो से मैनेजर का सिर फटा जा रहा था, आखिर दरवाजा खुलने के इंतजार में वो दरवाजे के पास ही सो गया.अगली सुबह जब मैनेजर उठा तो उसने देखा कि कमरा खुला पड़ा है लेकिन तांत्रिक वहां नही है. वो जल्दी से मेन गेट की तरफ भागा, लेकिन दरबान ने बताया कि उसके आने से चंद मिनट पहले ही तांत्रिक जा चुका था. मैनेजर कसमसा कर रह गया, उसने निश्चय कर लिया कि  वो पता करके ही रहेगा कि आखिर ये तांत्रिक और रूम १३ का राज क्या है. मैनेजर हमेशा चौकस रहने लगा,जहां चाह वहां राह, आखिर एक दिन बाजार में मैनेजर को तांत्रिक दिख ही गया, वह भागता हुआ उसके पास पहुंचा. उसने तांत्रक से पूछा कि आखिर तुम रात को काले धागे, संतरे और चाकू से करते क्या हो?  चीखने की आवाजें कहां से आती हैं ? बताओ.?तांत्रिक ने कहा मैं तुम्हे ये राज बता दूंगा लेकिन अगले साल और शर्त यह है कि तुम ये राज किसी और को नही बताओगे. मैनेजर मान गया. पर इस साल लॉक डाउन के कारण तांत्रिक आ ही नही सका. अब मैनेजर को अगले मार्च की आखिरी तारीख का इंतजार है. लगता है तब तक इस बे सिर पैर की कहानी के राज  सुनने के लिए हम सबको सजग रहना होगा, सुरक्षित रहना होगा. परमात्मा करे कि हमारे वैज्ञानिक उससे बहुत पहले ही  बे सिर पैर के इस करोना वायरस का अंत कर दें वैक्सीन बनाकर.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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