हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 25 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 3 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह गाँधी विचार  एवं दर्शन विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें। डॉ भीमराव  आम्बेडकर जी के जन्म दिवस के अवसर पर हम आपसे इस माह महात्मा गाँधी जी एवं  डॉ भीमराव आंबेडकर जी पर आधारित आलेख की श्रंखला प्रस्तुत करने का प्रयास  कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का तृतीय आलेख  “महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 25 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 3

द्वितीय गोलमेज कांफ्रेस में भी डाक्टर आम्बेडकर ने दलितों के उद्धार हेतु अपनी तार्किक प्रस्तुति देकर विश्व भर के अखबारों में सुर्खियाँ बटोरी। भारत की जनता के बीच उनके तर्क उन्हें अंग्रेज परस्त और हिन्दुओं का दोषी बता रहे थे। जनता में यह भावना बलवती होती जा रही थी कि डाक्टर आम्बेडकर की उक्तियों से अंग्रेज सरकार की भारत को खंडित करने की कूटनीतिक चाल सफल हो रही है। डाक्टर आम्बेडकर का यह तर्क कि अगर मुसलमानों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दे देने से भारत बंटने वाला नहीं है तो दलितों को यह अधिकार मिलने से हिन्दू समाज कैसे बंट जाएगा ? लोगों के गले नहीं उतर रहा था। लन्दन में गांधीजी और आम्बेडकर दोनों  अल्पसंख्यक समुदाय व अस्पृश्यों के लिए निर्वाचन हेतु आवंटित किये जाने वाले स्थानों हेतु बनाई गई अल्पसंख्यक समिति के सदस्य थे। गांधीजी के मतानुसार आम्बेडकर अस्पृश्यों के सर्वमान्य नेता नहीं थे। यह समिति भी किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सकी।

द्वतीय गोलमेज कांफ्रेस के विफल वार्तालाप और गांधी इरविन पैक्ट की असफलता के साथ ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुन: शुरू करने की मांग तेज होने लगी और गांधीजी समेत बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए । जब गांधीजी पूना के निकट यरवदा जेल में बंद थे तभी अंग्रेज सरकार ने कम्युनल अवार्ड की घोषणा अगस्त 1932 में करते हुए राज्यों की विधानसभाओं में अल्पसंख्यक वर्ग के लिए पहले की अपेक्षा दुगने स्थान सुरक्षित कर दिए। अल्पसंख्यकों के साथ दलितों के लिए भी पृथक निर्वाचन मंडल का गठन करने और उनके लिए 71 विशेष सुरक्षित स्थानों के साथ साथ सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ने की छूट दे दी गई। ब्रिटिश प्रधानमंत्री की इस घोषणा के विरुद्ध गान्धीजी ने अपनी पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बीस सितम्बर से आमरण अनशन प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी। गांधीजी की इस घोषणा से मानो पूरे भारत में भूचाल सा आ गया। गांधीजी के इस निर्णय से उनके समर्थक भी भौंचक्के रह गए। स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरु को गांधीजी का इस राजनीतिक समस्या को धार्मिक और भावुकतापूर्ण दृष्टि से देखना पसंद नहीं आया। गांधीजी के आमरण अनशन की घोषणा से लोग घबरा उठे। नेताओं के साथ साथ आम जनता के मन में भी यह भावना प्रबल हो उठी कि अगर गांधीजी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी तो भारत का क्या होगा, स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व कौन ? लोगों को देश का भविष्य सूना और अंधकारमय दिखने लगा। गांधीजी और डाक्टर आम्बेडकर के समर्थकों के बीच आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया तो दूसरी ओर मध्यस्थता की कोशिशें तेज हो चली। पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में 19 सितम्बर को मुंबई में हिन्दू नेताओं की बैठक हुई जिसमे डाक्टर आम्बेडकर भी शामिल हुए। यद्दपि डाक्टर आम्बेडकर का दृढ़ मत था कि वे गांधीजी के प्राण बचाने के लिए ऐसी किसी बात के लिए सहमत नहीं हो सकते जिससे दलितों का अहित हो तथापि वे वार्तालाप के लिए तत्पर रहे। इसके बाद डाक्टर सर तेज बहादुर सप्रू आदि ने यरवदा जेल जाकर गांधीजी से मुलाक़ात की और फिर डाक्टर आम्बेडकर की मुलाक़ात गांधीजी से जेल में करवाई गई। वार्ताओं के अनेक दौर चले और इसमें राजगोपालचारी, घनश्याम दास बिड़ला, राजेन्द्र प्रसाद आदि ने बड़ी भूमिका निभाई। अनशन के छठवें दिन डाक्टर आम्बेडकर ने जब चर्चा के दौरान कटुता भरे शब्दों में कहा कि ‘ये महात्मा कौन होते हैं अनशन करने वाले? उनको मेरे साथ डिनर के लिए बुलाइए।‘ उनके इस कथन पर बड़ा बवाल मचा और दक्षिण भारत के एक अन्य दलित नेता श्री एम सी राजा ने भी उन्हें समझाया व गांधीजी के अछुतोद्धार के प्रयासों की सराहना करते हुए समझौते के लिए दबाब डाला ।  इन सब दबावों व अनेक वार्ताओं के फलस्वरूप 23 सितम्बर 1932 को गांधीजी और आम्बेडकर के बीच समझौता हो गया जिस पर दलितों की ओर से डाक्टर आम्बेडकर व हिन्दू समाज की ओर से मदन मोहन मालवीय ने अगले दिन हस्ताक्षर किये और इस प्रकार गांधीजी के प्राणों की रक्षा हुई। यह समझौता पूना पेक्ट के नाम से मशहूर हुआ और इस प्रकार अछूतों को निर्वाचन में आरक्षण मिला तथा सरकारी नौकरियों में उनके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव बिना योग्यता के अनुरूप स्थान देने के साथ साथ अस्पृश्यता ख़त्म करने और उन्हें शिक्षा में अनुदान देने की बाते भी शामिल की गई। पूना पेक्ट के तहत विधान सभा की कुल 148 सीटें अस्पृश्यों के लिए आरक्षित की गई जोकि कम्युनल अवार्ड के द्वारा आरक्षित 71 सीटों से कहीं ज्यादा थी। इस पेक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए डाक्टर आम्बेडकर को तैयार करने में मदन मोहन मालवीय ने महती भूमिका निभाई और वे डाक्टर आम्बेडकर को यह समझाने में सफल रहे कि राष्ट्र हित में गांधीजी के प्राणों की रक्षा होना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए डाक्टर आम्बेडकर को पृथक निर्वाचन संबंधी अपनी जिद्द छोड़ देनी चाहिए। समझौता हो जाने के बाद डाक्टर आम्बेडकर ने गांधीजी की भूरि-भूरि प्रसंशा की और माना कि अन्य राष्ट्रीय नेताओं की तुलना में गांधीजी दलित समाज के दुःख दर्द को बेहतर समझते हैं। यहाँ यह विचारणीय प्रश्न है कि गांधीजी द्वितीय गोलमेज कांफ्रेंस तक आम्बेडकर की बातों से सहमत न थे फिर वे पूना समझौते के लिए क्यों तैयार हो गए। वस्तुत गांधीजी के उपवास ने आम जनमानस में अस्पृश्यता  को लेकर चिंतन शुरू हुआ और इस बुराई को दूर करने  के प्रति लोगों में जागरूकता आई। अनेक संभ्रांत और प्रतिष्ठित परिवारों के सदस्यों ने दलित समाज के लोगों के साथ बैठकर भोजन किया और इसकी सार्वजनिक घोषणा की, मंदिरों के दरवाजे दलितों के लिए खोल दिए गए, सार्वजनिक कुएं से उन्हें पानी भरने दिया जाने लगा। ह्रदय परिवर्तन कर रुढियों की समाप्ति करने का यही गांधीजी का तरीका था। गांधीजी के उपवास ने एक बार पुन: यह सिद्ध कर दिया कि लोगों के ह्रदय के तारों को झंकृत कर सकने की उनमे अद्भुत कला थी। अगर गांधीजी आमरण अनशन का रास्ता न अपनाते तो हिन्दू समाज दलितों के साथ हो रहे भेदभावों को समाप्त करने में रूचि न दिखलाता और संभवत: इसका दुष्परिणाम देश की राजनीतिक पटल पर पड़े बिना न रहता। मंदिर प्रवेश जैसे मुद्दों पर दलित समाज को लम्बे आन्दोलन करने पड़े उस समस्या से गांधीजी के यरवदा जेल में किये गए अनशन से निजात दिलाने में और सवर्ण हिन्दुओं को इस हेतु मानसिक रूप से तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

……….क्रमशः  – 4

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 22 ☆ कविता – कठपुतली ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता  कठपुतली।  श्रीमती कृष्णा जी ने  कठपुतली के खेल के माध्यम से काफी कुछ  बड़ी ही सहजता से कह दिया है।  वास्तव में जब हम बच्चे थे ,तो कठपुतली का नाच देखने की उत्सुकता रहती थी । अब तो मीडिया ने इस कला को काफी पीछे धकेल दिया  है किन्तु, अब भी कुछ कलाकार इसे जीवित रखे हुए हैं।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 22 ☆

☆ कविता  – कठपुतली ☆

एक बार की बात बताऊँ

कठपुतली का नाच दिखाऊँ

कहा बापू ने हमसे…

हम सभी छोटे बड़े

निकले कठपुतली को देखने

मैने कहा माँ तू चलना

वह बोली- नहीं मै घर की

कठपुतली हूँ.

 

क्या…? मै बोली

वह बोली

बड़ी होगी तो समझेगी

जा अभी तू जा.

 

आओ..आओ नाच देखलो

छम्मक छम्मक नाचे है

काम बड़ा कर जाये है

देखो …अभी सासुरे जायेगी

फिर सासु की डांट खायेगी

 

और फिर पानी भरने घाट …

बड़े बड़े मटको मे जायेगी.

घर मे जनावर को भूसा चोकर डाले…

 

हरी घाँस चरने को देगी

अब घर में  सबको भोजन परसेगी

घर के सारे काम निपटा समेट कर

पति के पैर दबा फिर सोयेगी

भोर होते ही फिर पिछली

दिनचर्या दुहरायेगी.

 

समाप्त हुआ कठपुतली का खेल

मैने देखा जो जो काम करे थी

अम्मा कठपुतली भी वही..करे

बापू से पूछा मैने यही सभी तो

अम्मा घर मे दिनभर करे है

तो बापू अम्मा को कठपुतली कहें…..

 

बेटी की बाते सुनकर वे बोले

नहीं सुनो अगले घर जाने की

तैयारी मे हमने यह कठपुतली का

नाच दिखाया अनजाने में ही

लाडो सब कुछ तूने ज्ञान है पाया

बस अगले बरस कर दूंगा ब्याह तेरा..

तू भी जिम्मेदारी सासुरे की निभा

 

बेटी छटपटाहट की मारी

कभी माँ और कभी कठपुतली को देखे है

 

अंतर क्या कोई बतलाये

इन दोनों की तासीर एक है

यहाँ भी पुरूष चलावे

वहाँ भी वही तमाशा करवावे है.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Talk on Happiness – XI ☆ Happiness Activity: LAUGHTER YOGA – Video # 11 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Talk on Happiness – X ☆ 

Happiness Activity: LAUGHTER YOGA:

Video Link >>>>

Talk on Happiness: VIDEO #11

ACTING LIKE A HAPPY PERSON:

TAKING CARE OF YOUR BODY

One of the happiness activities described by the positive psychologists for taking care of your body is acting like a happy person.

Laughter Yoga suits best in this category. It is voluntary laughter, for no reason, to create instant joy. It’s scientifically proven, easy to learn and a lot of fun.

It’s based on the principle: motion creates emotion. You act happy and you start feeling happy.

We demonstrate three laughter exercises – milk shake laughter, mobile laughter and hearty laughter – in this video. You can practice these any time and feel happier.

“Pretending that you are happy – smiling, engaged, mimicking energy and enthusiasm – not only can you earn some of the benefits of happiness (returned smiles, strengthened friendships, successes at work and school) but can actually make you happier.

“So go for it. Smile, laugh, stand tall, act lively and give hugs. Act as if you were confident, optimistic, and outgoing. You’ll manage adversity, rise to the occasion, create instant connections, make friends, influence people, and become a happier person.”

SONJA LYUBOMIRSKY/ THE HOW OF HAPPINESS

 

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (49) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना)

 

मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌।

व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।। 49 ।।

 

व्यथित न हो , न ही हो भ्रमित लख मम घोर स्वरूप

भय तज , खुश हो देख फिर यह पहला सा रूप  ।। 49 ।।

 

भावार्थ :  मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देखकर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिए और मूढ़भाव भी नहीं होना चाहिए। तू भयरहित और प्रीतियुक्त मनवाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख॥49॥

 

Be not afraid nor bewildered on seeing such a terrible form of Mine as this; with thy fear entirely dispelled and with a gladdened heart, now behold again this former form of Mine.।। 49 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 36 ☆ टुकड़े शाम के☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “टुकड़े शाम के ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 36☆

☆ टुकड़े शाम के ☆

 

हवाएं ज़ोरों से सायें-सायें करती हुई आयीं

और चली गयीं शाम के टुकड़े करती हुई –

उनके जाने के बाद हर तरफ फिर से

ऐसी शान्ति छा गयी जैसे कुछ हुआ ही न हो!

 

नहीं देखे गए मेरी भावुक नज़रों से

शाम के वो अनगिनत टुकड़े

और बीनने लगी मैं उन्हें

अपनी छोटी और नाज़ुक उँगलियों से-

पर वो टुकड़े तो किसी पैने कांच के टुकड़ों की तरह थे,

बहने लगी मेरी उँगलियों से रक्त की धारा अविरल

और मैं भी हताश होकर बैठ गयी…

 

जब दर्द की पीड़ा से निकलकर

मेरा मन कुछ और सोचने के काबिल हुआ

तब कहीं जाकर यह विचार कौंधा,

“क्या पहले नहीं हुए कभी

शाम के इस कदर टुकड़े?

माना कि यह ज़्यादा पैने थे,

पर ऐसे टुकड़ों को जोड़कर

अगली शाम हरदम फिर आई थी ख़ुशी का पैग़ाम लिए…

 

अगली सुबह के इंतज़ार में

बहते रक्त के बावजूद, मैं हौले से मुस्कुरा उठी-

मुझे पूरा भरोसा था

कि इतनी जुस्तजू भर दूँगी मैं

आफताब के सीने में

कि अगली शाम जब आएगी

तो वो होगी खुशनुमा और मुकम्मल!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 15 ☆ डायरी के पन्ने ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी आज ही लिखी एक रचना  “डायरी के पन्ने”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 15

☆ डायरी के पन्ने ☆

बचपन से लिखी

डायरी के अपरिपक्व पन्ने अब

बेमानी हो गए।

 

कुछ पन्नों को पढ़

भूली बिसरी यादों को याद कर

कुछ शर्माए कुछ मुस्कराये

और थोड़ा सा

रोमानी हो गए।

 

पीले होते पन्नों पर

जो उतारे थे

एक एक लफ्ज

वक्त के आंसुओं से भीगकर वो

आसमानी हो गए।

 

बड़ी शोहरत मिली थी

पन्नों के झूठे किस्सों पर,

अपने तुम्हारे

सच्चे किस्से क्या लिख दिये

नादानी हो गए।

 

एक डायरी ऐसी भी है

क्यों दिखाई ही नहीं देती ताउम्र

कौन लिख रहा है उसे ?

हरेक के जहन में हर पल

ज़िंदगी के हर पल

शीशे के दोनों ओर पाक साफ

जानता हूँ तुम यही कहोगे कि

रूहानी हो गए।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विश्व धरोहर दिवस विशेष – एक धरोहर जगत की ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की एक सामायिक कविता  एक धरोहर जगत की। इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस (World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को मनाया  जाता है।  इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य  हैपूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लायी जा सके। अप्रत्याशित कारणों से 18 अप्रैल को हम ई- अभिव्यक्ति का अंक प्रकाशित न कर सके इसलिए इस कविता के विलम्ब से प्रकाशन के लिए हमें खेद है।

 ☆  विश्व धरोहर दिवस विशेष – एक धरोहर जगत की  ☆

 

विश्व धरोहर दिवस पर

बूढ़ा बरगद रोय

बोन्साई में ढल रहा

थाती सबकी होय

 

देवालय सजने लगे,

बड़ी दूर हैं देव

एक धरोहर जगत की

मानवता की ठेव!!

 

मानव के निर्माण हैं,

सात अजूबे देख!

ईश्वर के निर्माण की,

चित्रगुप्त रचे रेख!!

 

समय धार में बह गए,

राजा रंक फकीर!!

मीनारों ने कब लिखी,

अलग अलग तकरीर!!

 

तलवारों की तिश्नगी,

या तोपों की प्यास!

किले धराशायी हुए,

झूठ धरोहर आस!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 34 ☆ व्यंग्य संग्रह – बारात के झम्मन – श्री सुनील जैन राही ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री सुनील जैन राही जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “बारात के झम्मन” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 34 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   –  बारात के झम्मन 

पुस्तक –  बारात के झम्मन ( व्यंग्य-संग्रह) 

व्यंग्यकार – श्री सुनील जैन राही

प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य – रु 150/- पेपर बेक

ISBN 9789388167741

☆  व्यंग्य– संग्रह – बारात के झम्मन – श्री सुनील जैन राही –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

इस सप्ताह लाकडाउन में पढ़ा खूब पढ़ा. सुनील जैन राही  की व्यंग्य कृति बारात के झम्मन पूरी पढ़ डाली. मजा आया. समीक्षा बिल्कुल नहीं करूंगा, हाँ कंटेन्ट पर चर्चा जरूर करूंगा,   जिससे आप की भी उत्सुकता जागे और आप किताब का आर्डर करने के लिये मन बना लें. सुनील जी स्वयं एक स्थापित समीक्षक हैं, वे स्वयं सैकड़ो किताबों की समीक्षा लिख चुके हैं.  उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक बोधि प्रकाशन से छपी है, त्रुटि रहित संपादन, सुंदर प्रस्तुति बोधि की खासियत है. जन संस्करण अर्थात पेपर बैक संस्करण है.

झम्मन वह साधारण सा बी पी एळ पात्र है जिसके माध्यम से सुनील जी समाज की विसंगतियों को हमें दिखाते हैं. झम्मन की जिंदगी की इन विडम्बनाओ को हम रोजमर्रा अपनी खुद की आपाधापी में खोये रहने के चलते अनदेखा करते रहते हैं. ऐसी विसंगतियां व्यंग्यकार के आदर्श समाज के स्वप्न में उसे कचोटती हैं,और वह अपनी सरल प्रवाहमान शैली में पाठक को अपने पक्ष में बहा ले जाता है. यही लेखकीय निपुणता उनकी सफलता है.

बारात के झम्मन किताब का शीर्षक व्यंग्य ही पहला लेख है. इस छोटे से व्यंग्य में बारातों में लाईट के प्रकाश स्तंभ उठाकर चलने वाले झम्मन की मनोदशा के चित्र अपनी विशिष्ट शैली में सुनील जी ने खिंचे हैं. सामान्यतः हम देखते ही हैं कि सजा धजाकर नाच गाने के साथ बारात को दरवाजे तक लाने वाले, लाईट के हंडे पकड़ने वाले गरीब दरवाजे से ही भूखे लौट जाते हैं. सैकड़ो भरे पेट अतिथियों को तो तरह तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं, किंतु ये सारे गरीब झम्मन लाइट दिखाते नाचते हुये बारातियों पर लुटाये जा रहे रुपये बटोरते रह जाते हैं. यदि इस व्यंग्य को पढ़कर कुछ लोगों के मन में भी यह विचार आ जावे कि बेटी के विवाह के शुभ अवसर पर इन गरीबों को भी खाने के पैकेट ही बांट दिये जाने का लोकाचार बन जावे तो व्यंग्य का उद्देश्य मूर्त हो जावे. वे गरीबों के उस पक्ष पर भी प्रहार करने में संकोच नही करते जो उन्हें नागवार लगता है “झम्मन का दारू चिंतन”, मुफ्तखोर झम्मन, युवाओ को अब रोजगार नही रेवड़ी चाहिये ऐसे ही व्यंग्य हैं.

१२० पृष्ठीय किताब में ४७ ऐसे ही संवेदनशील व्यंग्य प्रस्तुत किये गये हैं. अधिकांश विभिन्न वेबसाइट या प्रिंट मीडीया में छप चुके हैं, किंतु विषय ऐसे हैं कि उनकी प्रासंगिकता दीर्घ कालिक है, और इसलिये इन्हें पुस्तक रूप में प्रकाशन का में स्वागत करता हूं.

कुछ शीर्षक सहज ही अपना मनतव्य उजागर करते हैं यथा चूना हिसाब से लगायें, चुनाव में बगावतियों और बारात में जीजा फूफा की पूंछ टेढ़ी होती है, अमरूद और चुनावी विकास दोनो सीजनल हैं, हाथ जोड़ने का मौसम है अभी वो बाकी ५ साल आप, देश में लोकतंत्र की इन विडम्बनाओ पर मैने अनेक व्यंग्यकारो के कटाक्ष पढ़े हैं, किन्तु जिस सुगमता से सुनील जी हमारे आस पास से उदाहरण उठाकर अपनी बातें कह देते हें वह विशिष्ट है. झम्मन इस बाजार में नेता जी बिक गये हैं सरकार में, हार्स ट्रेडिंग पर जोरदार प्रहार है. फेसबुक पर टपकते दोस्त सोशल मीडिया की हम सब की अनुभूत कथा है. गधे को प्रतीक बनाकर भी कई बेहतरीन व्यंग्य सुनील जी ने सहजता से लिख डाले हैं जैसे होली में गधो का महत्व, राजनीति की गंगा में गधों का स्नान, क्या चुनाव बाद गधो की लोकप्रियता बनी रहेगी ?

मुझे यह व्यंग्य संग्रह कहीं गुदगुदाता रहा, कहीं सोच में डालने में सफल रहा, कहीं मैने खुद के देखे पर अनदेखे दृश्य सुनील जी की लेखनी के माध्यम से देखे. मेरा आग्रह है कि यदि इसे पढ़ आपको उत्सुकता हो रही हो तो किताब बुलवाकर पढ़ डालिये, सारे व्यंग्य पैसा वसूल हैं.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 44 – लघुकथा – पतंग की डोर ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  दो  छोटे भाइयों के संबंधों  के ताने बाने और पिता की भूमिका पर आधारित एक शिक्षाप्रद लघुकथा  “पतंग की डोर ।  इस सर्वोत्कृष्ट विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 44 ☆

☆ लघुकथा  – पतंग की डोर

 

छत में पतंग बाजी चल रही थी। सभी बच्चें, युवा अपने अपने पतंग का मांझा और पतंग संभालकर ऊंचे आकाश में पतंग उड़ा रहे थे। पवन मंद गति से सभी का साथ निभाते हुए  पतंग आगे बढ़ने में सहायक हो रही थी।

रंग-बिरंगे पतंग चारों तरफ दिखाई दे रही थी। दो भाई रोशन और रोहित भी पतंग उड़ा रहे थे। उनके पापा  धीरे-धीरे टहल रहे थे

अचानक हवा तेज हो गई। छोटे भाई रोहित ने आवाज़ लगाई.. भैया मेरी पतंग कटने वाली है, जरा संभाल लेना, शायद डोर उलझ गई है।

बड़े भाई रोशन ने तुरंत अपनी पतंग संभाल, छोटे भाई की भी उलझी हुई मांझा सुधारने लगा।

उसी समय उनके पापा धीरे धीरे चलते आकर कहने लगे.. बेटा तुम दोनों अपनी पतंग का ध्यान रखो। मैं डोर सुलझा कर दोनों का मांझा चरखा संभाल रहा हूं। तुम पतंग गिरने नहीं देना।

दोनों भाई रोशन, रोहित पतंग की डोर संभाले पापा से  जाकर लिपट  गए। उंचाई पर  पतंग हवा के साथ अठखेलियाँ कर रही थीं।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 46☆ गर्भार प्रतिभा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत भावप्रवण कविता  “गर्भार प्रतिभा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 46 ☆

☆ गर्भार प्रतिभा ☆

 

गर्भार प्रतिभा, कधी कुठे प्रसुत होईल

याची काही खात्री देता येत नाही

म्हणूनच तिचे डोहाळे पुरवण्यात

प्रज्ञाही कुठं कमी पडत नाही

 

तिच्या प्रसुतिचा काळ, असू शकतो

नऊ मिनिटे, नऊ तास, नऊ दिवस नऊ महिने किंवा आजूनही काही

उगाच चिरफाड करून

ती आपल्या आपत्याला जन्म देत नाही…

 

प्रसुतीवेदना सहन करण्याची ताकद

आणि जिद्द असते तिच्या मनात

म्हणून ती विहार करत असते

केतकीच्या वनात…

 

कधी प्रेम, कधी वात्सल्य, तर कधी क्रोध

अस एक एक जन्माला येतं आपत्य

आणि प्रत्येक आपत्य सांगतं

आपलं उघडं नागडं सत्य…

 

तिच्या जवळ असतात वजनदार शब्द

आणि प्रतिमा, प्रतीकांचे अलंकार

प्रत्येक आपत्याच्या गळ्यात ते अलंकार घालून

ती देत असते त्याला सौंदर्य अन् आकार

 

कुठलाही सोहळा न करता

ती आपल्या आपत्याला देते गोंडस नाव

देते त्याला वाढण्याचं बळ

मिळावे त्याला नाव, भाव आणि वाव

म्हणून सोसत असते वेदनेची कळ…

 

एक बिजातून जन्मा येते माता अथवा पिता

तरी कुळाचे नाव काढाते सांगे नाव कविता…!

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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