आत्मकथ्य: सफर रिश्तों का – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर
(‘सफर रिश्तों का’ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी का एक अत्यंत भावनात्मक एवं मार्मिक कविताओं का संग्रह है। ये कवितायें न केवल मार्मिक हैं अपितु हमें आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में जीवन की सच्चाई से रूबरू भी कराती हैं। हमें सच्चाई के धरातल पर उतार कर स्वयं की भावनाओं के मूल्यांकन के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं। इतनी अच्छी कविताओं के लिए श्री माथुर जी की कलम को नमन।)
आत्मकथ्य: आज के आधुनिक काल में भारतीय संस्कृति में तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में धुंधले पड़ते रिश्तों के मूल्य उनकी महत्वता और घटते मान सम्मान का विभिन्न कविताओं के माध्यम से बहुत भावुक एवं ममस्पर्शी वर्णन किया गया हैं. रिश्तों पर जो सटीक लेखन कविताओं के माध्यम से किया गया हैं वो दिल को छू लेने वाला हैं. “इंसानियत शर्मसार हो गयी “ में बूढ़े माँ बाप की व्यथा का भावुक वर्णन किया हैं. “मृत्यु बोध “ एक बहुत ही भावुक कविता हैं जिसमें मृत्यु होने के बाद सारे रिश्तेदारों का आपके प्रति कितना लगाव हैं बहुत ही दिल छू लेने वाला वर्णन किया हैं. माता पिता के साथ सिकुड़ते रिश्तों की व्यथा का ममस्पर्शी वर्णन करने का प्रयास किया हैं, सभी कविताऐं बहुत ही भावुक एवं मार्मिक हैं. आज रिश्तो की अहमियत कम होती जा रही हैं रिश्ते पीछे छूट रहे हैं.अन्य कविताए भी बहुत भावपूर्ण एवं शिक्षाप्रद हैं. पुस्तक हर उम्र के व्यक्तियों के पढ़ने एवं आत्म मनन करने योग्य हैं. यह पुस्तक सामाजिक मूल्यों, माँ बाप और बच्चों के बीच पुनःआत्मीय रिश्ते स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा सकती हैं.
Excerpts from Author’s Amazon Page : In “Safar Rishto ka,” the author through various poems has made a very touching and heart-rendering description of the decline in the relationship between parents and children in today’s Indian society. In “insaniyat sharmsaar ho gayi” has given an emotional description of the sadness of old parents. “Mrityu bodh” is a very emotional poem in which it is described that after the death how relatives are attached to your heart. Apart from these there are various precise poems on today’s social environment. The book covers for all ages people and must read by them. It is eye opener to the youth.This book can play a vital role in increase of social values and the rebuilt of intimate relationship between parents and children.
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सफर रिश्तों का से एक अत्यंत भावुक कविता >>>
मृत्यु बोध
आसमान रो रहा था लोगों का जमघट भी मेरे चारो और हो रहा था,
कोई बेसुध, कोई रुआंसा तो कोई उदास था, हर कोई यहाँ रो रहा था ||
मैं निष्प्राण सो रहा था, सारा मंजर अपनी आँखों से देख रहा था,
घर पर इतनी भीड़ क्यों है? लोग क्यों रो रहे हैं मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा था ||
जो भी आता सबसे गले लग कर दहाड़ मार मार कर रो रहा था,
सब मेरी ही बातें करके अफ़सोस जताते, समझ नहीं आया ये क्या हो रहा है ||
छोटे छोटे झुण्ड में घर के बाहर खड़े लोग मेरे गुण बयाँ कर रहे थे,
कोई मोबाइल पर कुछ समाचार दे रहा तो कोई पूछ रहा टाइम क्या रखा है ||
कल तक कुछ लोग जो पानी पी पी कर मुझे कोसते नहीं थकते थे,
वो मुझे हर दिल अजीज बता रहे थे, दोस्त भी गले मिलकर रो रहे थे ||
मैंने पूछना चाहा ये सब क्या हो रहा है? माहौल इतना गमगीन क्यों है?
उठने की कोशिश की मगर उठ ना पाया, यमराज मुझे जकड़े हुए बैठे थे ||
यमराज बोले तुम्हें पता नहीं तुम्हारी मृत्यु की प्रक्रिया चल रही है ,
मैं तुम्हें लेने आया हूँ, चित्रगुप्तजी ने मुझे अगले आदेश तक रोक रखा हैं ||
मैं घबरा गया, ओह ! तो मेरी मृत्यु हो गयी, मुझे ले जाने की तैयारी चल रही है,
मैं जिन्दा हूँ, सबको बताना चाहा मगर देखा यमराज रास्ता रोके खड़ा हैं ||
लोगो के दिल में मेरे प्रति इतनी हमदर्दी और प्यार देख मुझे रोना आ गया,
मुझे रोने वालो में कुछ वो थे जो रिश्ता तोड़ गए, कुछ रूठे हुए थे ||
मैंने पितरों, पूर्वजों और माता पिता को याद किया, देखा वो भी रो रहे थे,
चित्रगुप्तजी दुबारा लेखा जांच रहे थे, इधर मेरी जीवन लौ मंद थी ||
अचानक यमराज बोले हे वत्स ! चित्रगुप्त जी ने मुझे वापिस बुलाया है ,
तुम्हारी जिंदगी तो अभी बाकी हैं, हम तुम्हें गलतफहमी में ले जा रहे थे ||
यह सुन मन ख़ुशी से झूम उठा, मेरे शरीर में तुरंत थोड़ी हलचल शुरू हो गयी,
मुझे जिन्दा देख ख़ुशी छा गयी, सबकी आँखों में ख़ुशी के आंसू बह रहे थे ||
गमगीन माहौल जश्न के माहौल में बदल गया, सब मुझ से मिल ख़ुशी जता रहे थे,
मुझे जिन्दा देख पितर, पूर्वज और माता पिता बहुत हर्षित हो रहे थे ||
धीरे-धीरे सभी लोग चले गए, कुछ दिनों में जिंदगी पहले जैसी हो गयी,
जो पहले रूठे हुए थे वे फिर रूठ गए, जो नाराज थे वे फिर नाराज हो गए ||
अचानक घबरा कर मेरी नींद खुली, खुद को पसीने से तरबरतर पाया,
टटोला खुद को तो जिन्दा पाया, ओह ! कितना भयानक सपना था ||
भगवान ने भले ही सपने में मगर जीते जी मुझे मृत्यु बोध करा दिया,
घरवालों रिश्तेदारों सभी का मेरे प्रति अथाह लगाव दिखा, हर एक मेरा अपना था ||
हे भगवान सब के साथ आत्मीय रिश्तों का जो अहसास मृत्यु बोध पर कराया,
उसे बनाये रखना, ना कोई रूठे ना टूटे, जैसे मृत्यु बोध पर जैसा हर कोई मेरा अपना था ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर