गुरूजन वध के बाद क्या, रूधिर सिक्त साम्राज्य ?।।5।।
भावार्थ : इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा॥5॥
Better it is, indeed, in this world to accept alms than to slay the noblest teachers. But if I kill them, even in this world all my enjoyments of wealth and desires will be stained with (their) blood. ।।5।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
As social animals we need friends, but we make friends on the basis of trust, which comes about as a result of affection and concern for others. You can’t buy trust or acquire it by use of force. Its source is warm-heartedness.
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं सार्थक कविता ‘हे राम!’)
(मेरे विशेष अनुरोध पर (डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन) द्वारा रचित मेरी प्रिय कविता “पहले क्या खोया जाए ” का मराठी भावानुवाद “काय राह्यलय हरवण्यासारखं ?” कविराज विजय यशवंत सातपुते जी द्वारा किया गया।
यह कविता इतनी मार्मिक है कि मैं कविराज विजय सातपुते जी के शब्दों में – “ये कविता इतनी भावपूर्ण थी कि मै खुद को रोक न सका. रोते रोते ये अनुवाद संपन्न हुआ. मूल रचनाकार जी को शत शत नमन. आज जिन चुनिन्दा लोगों को ये कविता और अनुवाद दिखाया सभी ने एक ही प्रतिक्रिया भेजी . . . . . निःशब्द.”
और मैं स्वयम भी निःशब्द हूँ। )
हिन्दी की मूल कविता एवं मराठी भावानुवाद दोनों ही स्वरूप आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं।
इस अतुलनीय साहित्यिक कार्य के लिए श्री विजय जी का विशेष आभार और मेरा मानना है कि ऐसे प्रयोग होते रहने चाहिए।
( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन ।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ।।4।।
अर्जुन ने कहा-
भीष्म द्रोण गुरू पूज्य हैं , करने को संहार
रण में बाणों से उन्हीं का, कैसा प्रतिकार ? ।।4।।
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लड़ूँगा? क्योंकि हे अरिसूदन! वे दोनों ही पूजनीय हैं॥4॥
How, O Madhusudana, shall I fight in battle with arrows against Bhishma and Drona, who are fit to be worshiped, O destroyer of enemies? ।।4।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(सुश्री ऋतु गुप्ता जी रचित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर का एक सार्थक कविता ‘बेटी’।)
बेटी शब्द का आगाज होते ही
हृदय में सम्पूर्ण माँ बनाने की अद्वितीय अनुभूति होती है
बगैर बेटी जन्मे मानो नारी अधूरी होती है।
उसका पहली बार माँ बोलना
हृदय को मुदित ममतामयी कर जाता है
हर उदित उमंग उल्लासित कर
गरिमामयी पद अतुल्य अभिनंदन पाता है।
कदम पहला उसका उठते ही बेचैन
मन मुद्रा मुसकुराती छवि हो जाती है
उसकी इक-इक भाव भंगिमा
एकटक निहारते नैनों की चमक अद्भुत हो जाती है
विस्मय से भरता जाता उसका बड़ा होना
घर पूरा गूँजता मानों चिड़िया चहचहाती है
पग घूम-घूम जहाँ-जहाँ रखती
धरा धन्य हो अपार आभार प्रकट कर जाती है।
बेटी कभी नहीं होती पराई
जिस्म से कभी नहीं अलग होती परछाई
बड़ी होने पर भी वही आँचल आगोश सदैव लालायित रहते हैं ।
बोझ नहीं आन वह कलेजे का टुकड़ा गौरवान्वित हो कहते हैं।
भावार्थ : इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा ।।3।।
Yield not to impotence, O Arjuna, son of Pritha! It does not befit thee. Cast off this mean weakness of the heart. Stand up, O scorcher of foes! ।।3।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)