हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – * “मैंने उस दर्द को सीने में छुपा रक्खा है” * – श्री जय प्रकाश पाण्डेय
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
“मैंने उस दर्द को सीने में छुपा रक्खा है”
(प्रस्तुत है श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की एक सार्थक एवं मार्मिक –प्रेरणास्पद कथा।)
तुमने मुझसे पूछा है कि जब मैं 26 साल में विधवा हो गई थी तो फिर से प्रेम करके पुनर्विवाह क्यों नहीं कर लिया। संतान पैदा कर लेतीं, बुढ़ापे का सहारा हो जाता। चैन सुख से जीवन गुजर जाता। ये देशभक्ति, देश सेवा, समाजसेवा के चक्कर में क्यूं पड़ गईं ?
तुम्हारे सवाल का जबाब देना थोड़ा मुश्किल सा है क्योंकि तुम नहीं समझ पाओगे, न्यायालय नहीं समझ पाया, जो अपने आपको देशभक्त कहते हैं ऐसे बड़े नेता नहीं समझ पाए।
दरअसल 25 साल में मेरी शादी बीएसएफ के एक बड़े अधिकारी से हुई, शादी के बाद हम पति पत्नी ने तय किया था कि बच्चा दो साल बाद पैदा करेंगे, होने वाली संतान को ऐसे संस्कार देंगे कि वह बेईमानी, भ्रष्टाचार, लफ्फाजी का विरोध करे और उसके अंदर देशसेवा के लिए जुनून पैदा हो। शादी के बाद उनकी पोस्टिंग कुछ बेहद खतरनाक इलाकों में हुई, उन दिनों माओवादियों का आतंक अपनी चरम सीमा में था। मेरे बहादुर पति में रणनीति कौशल अदभुत था उनके कर्तव्य के जज्बे और समाज के लिए बेहतर करने की उनकी जिजीविषा विख्यात थी। नक्सल आपरेशन के दौरान चरमपंथियों के साथ हुई आमने सामने की लड़ाई में अचानक उनके शहीद हो जाने की खबरों से मेरी पूरी दुनिया धराशायी हो गई, मेरे इर्दगिर्द जो कुछ भी था नष्ट हो गया……. वे बक्से में आये तिरंगे में लिपटे हुए……
मैं बहुत रोई, रोते-रोते मुझे याद आया कि उन्होंने हमेशा मुझसे मजबूत बने रहने के लिए कहा था और ये भी कहा था कि हमारी संतान देशसेवा के लिए हमेशा न्यौछावर रहेगी। रोते रोते मेरे अंदर देशभक्ति और देशसेवा का जज्बा पैदा हो गया। मैंने उनके पोस्टमार्टम होने के पहले डाक्टर से अनुनय-विनय किया कि हमारा परिवार देश के लिए मर मिटा है स्वतंत्रता आंदोलन में हमारे श्वसुर के पिता शहीद हुए थे अभी उनका एकमात्र नाती और मेरे बहादुर पति नक्सल आपरेशन के दौरान शहीद हो गए। पीढ़ियों से देशसेवा के लिए बलिदान देने में हमारा परिवार आगे रहा है। मैंने रोते हुए डाक्टर से मांग की कि पोस्टमार्टम के पहले मृत पति का स्पर्म संरक्षित किया जाए ताकि मैं शहीद की पत्नी आईव्हीएफ तकनीक से मां बनकर संतान पैदा कर सकूं और होने वाली संतान को देशसेवा के लिए देश को समर्पित कर सकूं। गृहस्थ जीवन में मातृत्व सुख पाना हर महिला का सपना होता है और अधिकार भी। परिवार के सभी लोग भी चाहते हैं कि वंश बढ़े और चले…… पर डाक्टर एक ना माना, वह केसरिया गमछा डालकर पोस्टमार्टम करने जब चल पड़ा तो मैंने प्रतिशोध किया, मीडिया के लोगों को बुला लिया। बाद में डाक्टर और मीडिया के लोगों ने सलाह दी कि न्यायालय से ऐसा आदेश प्राप्त करें।
मैंने न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जज से गुहार लगायी – ” मी लार्ड… मेरे पति नक्सल आपरेशन के बहादुर बड़े अधिकारी थे जो नक्सलियों से आमने सामने की लड़ाई के दौरान शहीद हो गए। पति के मरणोपरांत उनके स्पर्म से आईव्हीएफ तकनीक के सहारे वह मां बनना चाहती है, गृहस्थ जीवन में मातृत्व सुख पाना हर महिला का सपना होता है और अधिकार भी। परिवार के सभी लोग भी चाहते हैं कि उनका वंश बढ़े और चले। इसलिए न्यायालय से हाथ जोड़कर विनती है कि मृत पति के पोस्टमार्टम के पहले पति का स्पर्म संरक्षित करने के लिए सरकार को आदेश देंवे।”
जज साहब का कहना था कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान द्वारा तैयार सहायक प्रजनन तकनीक नियम के मसौदे के अनुसार भारत में यह दिशा निर्देश तो हैं कि यदि मौत के पहले स्पर्म संरक्षित किया गया हो तो मरणोपरांत उसके इस्तेमाल से गर्भधारण किया जा सकता है लेकिन मरणोपरांत स्पर्म संरक्षित करने का स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
मैंने फिर गुहार लगाई – “मी लार्ड…. चैक गणराज्य में ऐसा प्रावधान तो है और अन्य देशों में भी मरणोपरांत स्पर्म संरक्षण के प्रावधान हैं। इंसान तो इंसान है वह इसी धरती पर पैदा हुआ है इसलिए इंसानियत के नाते एक शहीद की विधवा के मातृत्व सुख के सपने को साकार करने के लिए उसके पक्ष में निर्णय लेने हेतु निवेदन है। मेरा नेक इरादा है कि मैं वंशवृद्धि के लिए मां बनकर अपनी संतान को देशसेवा के लिए समर्पित करना चाहतीं हूं। इस देश में राजनैतिक दांव-पेंच के निपटान के लिए रात में भी कोर्ट खोली जा सकती है। समलैंगिकों को उनकी मर्जी के अनुसार उनके अधिकार दिए जा सकते हैं। बड़े बड़े मानव अधिकारों के संगठन के लोग अपनी मंहगी गाड़ियों में बड़े बोर्ड लगाकर अपने जलवे दिखा रहे हैं, बड़े बड़े नेता सरकार और न्यायालय के निर्णय की परवाह न करते हुए मंदिर निर्माण के लिए बयानबाजी कर रहे हैं। लिव इन रिलेशनशिप को बढ़ावा देकर समाजिक विकृति पैदा की जा सकती है। धारा 377 लायी जा सकती है तो शहीदों की विधवाओं के सपने और उनके अधिकार देने में क्यों दिक्कत आ रही है जबकि एक शहीद की विधवा शपथपत्र देकर वादा कर रही है कि होने वाली संतान को देश की रक्षा के लिए न्यौछावर कर देगी।”
सरकार ने सरोगेसी नियमन विधेयक पास जरूर कर दिया है पर इस तकनीक का एक स्याह पक्ष यह भी रहा है कि इससे कोख बेचने वाली सरोगेट माताओं को शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, विडंबना है कि अपनी कोख बेचकर दूसरों को संतान सुख देने वाली महिलाओं को इसके एवज में उचित पैसे और मान सम्मान भी नहीं दिया जाता, वे आर्थिक और शारीरिक शोषण की शिकार होतीं हैं।
“मी लार्ड….. आर्मी, बीएसएफ, पुलिस, डिफेंस जैसे विभागों में काम करने वालों के परिवारों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए मेरी मांग उचित है अतः सरकार को तुरंत आदेश दिए जाएं कि मृत पति के पोस्टमार्टम के पहले स्पर्म संरक्षित किया जाए।”
मैं फफक – फफक कर रोती रही पर किसी ने कुछ नहीं सुना, सब अपनी नौकरी बचाने की चिंता में मेरी मांग को अनदेखा कर रहे थे, और बूढ़े सास – श्ववसुर को लोगों ने भड़का के डरा दिया कि सरकार और न्यायालय की पेचीदगियों में पड़ोगे तो बेटे की डेडबाडी खराब हो जाएगी…. बेटे की आत्मा की शांति के लिए जरूरी है कि उसका समय पर दाह संस्कार कर दिया जाए…… मैं मजबूर थी। रोते रोते आंखों में आंसू सूख गए थे। तब से मैं ये जान गई कि उनकी आत्मा की शांति के लिए शहीदों के परिवारों और शहीदों की विधवाओं की बेहतरी के लिए काम किया जाए और अपनी पीड़ा और ख्वाहिश को विस्तार देते हुए दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ा जाए।
शहीद होंने के कारण सरकार पैसे और नौकरी तो दे देगी पर न्यायालय और सरकार मेरे बहादुर पति के स्पर्म की कुछ बूंदे नहीं दे पाई जिससे मातृत्व सुख से वंचित एक शहीद की विधवा बिलखती रह गई, पर मैं हिम्मत नहीं हारने वाली, आखिरी दम तक आर्मी, बीएसएफ, पुलिस, डिफेंस वालों की ऐसी पीड़ित बहनों के लिए लड़ती रहूंगी।
मैं देख रही हूँ कि मेरी बातों को सुनकर तुम्हारी आँखें नम हो रहीं हैं और नम आँखों से सहानुभूति छलक रही है पर मेरे दिल दिमाग में मेरे बहादुर पति की आखिरी दम तक देश सेवा की भावना मेरे अन्दर गुबार बनकर फैल गई है। और सुनो सहानुभूति छलकाने वालों से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है, ऐसे लोगों से मैं सख्त नफरत करतीं हूं।
तुमने प्रश्न किया है इसलिए मैं बता देना चाहती हूं कि मैंने गांव गांव के ऐसे युवकों के घरों को ढूंढ लिया है जिन्होंने बहकावे में आकर नक्सलवाद का रुख किया और मुठभेड़ में मारे गए, नाहक ही उनके बच्चे अनाथ हो गए। इन दिनों ऐसे बच्चों को गोद लेकर उनको अच्छा नागरिक बनाने के प्रयास में व्यस्त हो गईं हूं।
© जय प्रकाश पाण्डेय