आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (45) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन)

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌।

यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥

अरे,अरे,धिक पाप में गहन फँसे हम आज

जो सुख,राज्य के लोभवश लड़ने चला समाज।।45।।

भावार्थ :  हा! शोक! हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिए उद्यत हो गए हैं।।45।।

 

Alas! We are involved in a great sin in that we are prepared to kill our kinsmen through greed for the pleasures of a kingdom ।।45।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – 87 – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

How is mindfulness of breathing developed and cultivated, so that it is of great fruit and great benefit?
LifeSkills
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore



हिन्दी साहित्य – कविता – * समुद्र पार उड़ी जाती * – डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)

समुद्र पार उड़ी जाती
नदी की धार पर  उछलती
मछली हो
कि धारा भी
गहरे सरोवर की
कमल नाल हो
कि अथाह अक्षुण्ण नीली जलराशि  भी
अपने बारे में  कुछ भी बताती क्यों नहीं
ओ मेरी प्राण प्रिये!
बर्फ पर पसरी हुई दूधिया चाँदनी हो
कि सात घोड़ों के रथ पर सवार
सूरज की स्वर्ण रश्मि भी
फ़सलों की बालों पर तैरती शबनम हो
कि हरित धान्य भी
पवित्र दूर्वा हो पावन संस्कारों  की
कि आरती उतारी जाती थाल की
जलती हुई टिकिया भी हो  कपूर की
जब  हाथ बढ़ाता हूं
तुम्हारी आरती को
लौ से ऊष्मा भर देती हो
और सिर्फ झांक कर आखिर क्यों रह जाती हो
अपने बारे में कुछ बताती क्यों नहीं
समुद्र पार उड़ी जाती
ओ मेरी प्राण गंध प्रिये!
© डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 



आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (44) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन)

 

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।

नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ।।44।।

धर्म रीति का नाश है , कारण एक प्रधान

नरक वास होता है सब ,पुरखों का अवसान।।44।।

भावार्थ :  हे जनार्दन! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आए हैं।।44।।

We have heard, O Janardana, that inevitable is the dwelling for an unknown period in hell for those men in whose families the religious practices have been destroyed! ।।44।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – 86 – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

When mindfulness of breathing is developed and cultivated, it fulfills the four foundations of mindfulness. When the four foundations of mindfulness are developed and cultivated, they fulfill the seven enlightenment factors. When the seven enlightenment factors are developed and cultivated, they fulfill true knowledge and deliverance.
LifeSkills
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore



हिन्दी साहित्य – कविता – * निर्भया * – डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

निर्भया 

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता ‘निर्भया’’)

कितनी और निर्भया बनेंगी
दरिंदगी का शिकार
मनचलों की हवस
मिटाने का उपादान
कब तक लूटी जाएगी
मासूमों की इज़्ज़त
कार,बस या ट्रेन के डिब्बे में
स्कूल,कार्य-क्षेत्र,पार्क के
किसी निर्जन कोने में
या घर के अहाते में
गिद्धों द्वारा नोच-नोच कर
फेंक दिया जाएगा बीच राह
अप्राकृतिक यौनाचार
या अमानवीय व्यवहार कर
कर दी जाएगी उनकी हत्या
घर-परिवार,समाज के बाशिंदे
करायेंगे विरोध दर्ज
कैंडल मार्च कर जुलूस निकालेंगे
और धरना देंगे इंडिया गेट पर
परंतु हमारे देश के कर्णाधारों के
कानों पर जूं नहीं रेंगेगी
और हर दिन ना जाने
कितनी निर्भया होती रहेंगी
उनकी वासना की शिकार
द्रौपदी की भांति नीलाम होगी
उनकी इज़्ज़त चौराहे पर
और कानून
बंद आंखों से हक़ीक़त जान
वर्षों बाद अपना निर्णय देगा
कभी सबूतों के अभाव में
और कभी गवाहों को मद्देनज़र
कर देगा गुनहगारों को
बाइज़्ज़त बरी
कभी नाबालिग
होने की स्थिति में
तीन साल के लिए जेल भेज
कर लेगा अपने कर्त्तव्य की इतिश्री
और सज़ा भुगतने के पश्चात्त्
वे दरिंदे पुन: वही सब दोहरायेंगे
पूर्ण आत्मविश्वास से
दबंग होकर
हां!
यदि किसी जज को
निर्भया में
अपनी बेटी का
अक्स नज़र आएगा
तो वह उसे बीस वर्ष के
कारावास की सज़ा सुना
अपना दायित्व निभायेगा
क्योंकि फांसी की सज़ा पाने पर
वह अपील में जायेगा
या राष्ट्रपति से
 लगायेगा प्राणदान की गुहार
यह सिलसिला निरंतर चलता रहेगा
और कभी थम नहीं पायेगा
मैं चाहती हूं
ऐसा कानून बने देश में
बलात्कारियों को नपुंसक बना
भेज दिया जाए
आजीवन जेल में
प्रायश्चित करने के निमित्त
ताकि उनके माता-पिता को भी
गुज़रना पड़े
वंशहीन होने के दर्द से
जो अपने पुत्रों को
छोड़ देते हैं निरंकुश
मासूमों का करने को शीलहरण
संबंधों की अहमियत को नकार
मर्यादा को ताक पर रख
सब सीमाओं का अतिक्रमण कर
हत्या,लूट व बलात्कार जैसे
जघन्य कर्म करने को नि:संकोच
जिसे देख सीना छलनी हो जाता
सुनामी जीवन में आ जाता
काश!
हमारे देश में
कानून की अनुपालना की जाती
और दुष्कर्म करने वालों से
सख्ती से निपटा जाता
तो बेटियां अमनो-चैन की सांस ले पातीं
मदमस्त हो,थिरकतीं-चहकतीं
उन्मुक्त भाव से नाचतीं
घर-आंगन को महकातीं
स्वर्ग बनातीं
और निर्भय होकर जी पातीं।

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, ईमेल: drmukta51 @gmail.com




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (43) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन)

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः ।

उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ।।43।।

कोई न हो पाती सही पितरों की परवाह

जाति धर्म ,कुल धर्म का ,बहुत कठिन निर्वाह।।43।।

भावार्थ :  इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं॥43॥

By these evil deeds of the destroyers of the family, which cause confusion of castes, the eternal religious rites of the caste and the family are destroyed ।।43।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – 85 – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Sports and life, both run on the same principles and test you in similar ways. A more formal introduction to sporting skills at an early stage will prepare our children to better deal with the ups and downs that they will face in their lifetime. Sport highlights the importance of many values, including discipline, tolerance, harmony, fair play, and most of all – team spirit.
LifeSkills
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore



हिन्दी साहित्य – कविता – * मुक्तक * – डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

मुक्तक

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है सार्थक मुक्तक) 

 

मौन की भाषा

ग़र समझ ले इंसान
मिट जाए द्वैत भाव औ द्वंद्व
            ◆◆◆
रिश्ते आज नीलाम हो रहे
संदेह,संशय,शक,अविश्वास
दसों दिशाओं में
सुरसा की मानिंद फैल रहे
किस पर विश्वास करे इंसान
            ◆◆◆
रिश्तों की डोरी
अलमस्त
भर देती जीवन में उमंग
बरसाती अलौकिक आनंद
महक उठता मन आंगन
            ◆◆◆
खुद से खुदी तक का सफ़र
तय करने के पश्चात् भी
इंसान भीड़ में
स्वयं को तन्हा पाता
अजनबी सम
            ◆◆◆
काश!इंसान समझ पाता
रिश्तों की अहमियत
सम्बंधों की गरिमा
बहती स्नेह, प्रेम की निर्मल सलिला
और जीवन मधुवन बन जाता
            ◆◆◆

© डा. मुक्ता,

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत,drmukta51 @gmail.com




English Literature – In Memory of a Brave Soldier – Major Salman Khan

Major Salman Khan 

 

We proudly remember and extend a grand salute to brave Major Salman Khan who attained Martyrdom for Peace on 7th May 2005. Major Salman Khan was born on 17 November 1978.

Major Salman Khan was honoured by Shaurya Chakra  (Posthumous) on 26th January 2006

 

We are extremely thankful to Mr A A Khan, an author and Maternal Uncle of Major Salman Khan, who provided the information which has been reproduced as received.

© A.A Khan, Allahabad

(If any person gets such authentic information who sacrificed for the Nation, we will be pleased to publish the same.)