हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – * रिटायरमेंट का चैक * – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

रिटायरमेंट का चैक 

(प्रस्तुत है श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी  की एक सार्थक एवं सटीक व्यंग्य कथा।) 

महीने का आखिरी दिन होता है और तोप गाड़ी फैक्ट्री के गेट के सामने ढोल – ढमाके और डांस इंडिया डांस का नजारा देखने लायक होता है। इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि ट्रेफिक जाम हो जाता है, रंग गुलाल और फूलों से सड़क तरबतर हो जाती है। हर महीने की आखिरी तारीख को तोप गाड़ी फैक्ट्री से दस – पन्द्रह लोग रिटायर होते हैं और उनके परिवार, रिश्तेदार और दोस्त भाई ढोल – ढमाके के साथ फैक्ट्री के गेट के सामने डेरा डाल देते हैं। अनुमान है कि ठंड के नौ महीने बाद पैदा हुए लोग जुलाई – अगस्त में ज्यादा रिटायर होते हैं।

आज जानकी प्रसाद का भी रिटायरमेंट है नात – रिश्तेदार और मोहल्ले वाले ढोल – नगाड़ों एवं सजी बग्घी लेकर जानकी प्रसाद का इंतजार कर रहे हैं। गेट के सामने भीड़ ज्यादा बढ़ रही है ढोल – ढमाकों का शोर बढ़ रहा है क्योंकि आज अधिक लोग रिटायर हो रहे हैं जो लोग रिटायर होकर चैक लेकर बाहर आ गए हैं उनके खेमे में उछलकूद बढ़ गई है डांस हो रहे हैं। फूल माला की बिक्री अचानक बढ़ गई है ढोल की थाप पर सब लोग थिरक रहे हैं।

वो देखो माला पहने जानकी प्रसाद फैक्ट्री गेट के सुरक्षा गार्ड से गले मिलकर बिदा ले रहे हैं उनको देखते ही उनके रिश्तेदारों में बिजली सी कौंध गई, ढोल – नगाड़े बजने चालू हो गए मोहल्ले वाले थिरकने लगे। बहू-बेटे फूल माला लेकर दौड़ पड़े और देखते देखते जानकी फूलों से लद गए, चारों तरफ हबड़धबड़ मच गई, रंग गुलाल से रंग गए। दोनों बहू बेटे खुशी से झूम कर नाचने लगे। डांस चालू… ढोल में तेजी… सजी बग्घी तैयार, युवाओं की टोली का सरसराहट लिए नागिन डांस…. वीडियो की बहार…. तड़ा तड़…. भड़ा भड़… सब तरफ उत्साह, उमंग, थिरकन दिख रही है पर इन सबके पीछे नेपथ्य में चुपचाप वो चालीस लाख का चैक हंस रहा है जो रिटायरमेंट में जानकी को मिला है जिसमें बहुओं एवं बेटों की उम्मीद के पंख लग गए हैं। मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों की रिटायरमेंट पार्टी के छप्पन व्यंजन में नजर है इसलिए डांस करके ज्यादा उचक रहे हैं।

सजी हुई चमचमाती बग्घी में जानकी प्रसाद दूल्हे जैसे बैठ चुके हैं। सामने एक चैनल वाले ने माइक अड़ा दिया, पूछ रहा है अब कैसा लग रहा है ? नाईट ड्यूटी जब लगती थी तो काम करते थे कि सो जाते थे ? फैक्ट्री के अंदर जुआ – सट्टा में भाग लिया कि नहीं ?

बड़ा लड़का आ गया, एक हजार रुपये की न्यौछावर कर पत्रकार को दी, जब तक जानकी प्रसाद ने बोल ही दिया – रात सोने के लिए बनी है इसलिए घर हो या फैक्ट्री सोना जरूरी था और सीधी सी बात है कि जब नाईट ड्यूटी लगती थी तो मनमाना ओवरटाइम भी मिलता था। पत्रकार डांस करते हुए अगले ठिकाने तरफ बढ़ गया था। इतने सारे रिटायरमेंट हुए हैं कि सारी सड़कों में जाम लग गया है डांस मोहल्ला डांस चल रहा है। ट्रेफिक पुलिस वाले परेशान हैं जाम की खबर एसपी तक पहुंच गई है और पुलिस फोर्स पहुंच गई है, डांस की भीड़ को तितर-बितर करने डंडे भी चलाये नहीं जा सकते इसलिए पुलिस वाले ढोल की थाप पर मटक रहे हैं। जानकी प्रसाद ये सब देख देख मस्त हो रहा है आज न गांजा मिला है न भाँग, पर मजा उनसे ज्यादा मिल रहा है। सबसे बड़ा जुलूस जानकी का है क्यूँ न हो, जानकी विनम्र रहा है रामलीला में रावण के रोल में हिट हुआ है, लाल झंडे के साथ नारे लगवाने में पापुलर रहा है, मधुर मुस्कान से दिलों को जीता है, अहीर नृत्य में हर बार टॉप पर रहा है तभी न इतने सारे लोग डांस करके पसीना बहा रहे हैं। जानकी को अचानक धर्मपत्नी याद आ गई, वो लेने नहीं आई.. वो घर में थाली सजाकर दिया जलाकर इंतजार कर रही होगी। जानकी को बग्घी में दूल्हे जैसा सुख मिल रहा है फर्क इतना है कि दूल्हे बनकर तन्दुरस्त घोड़े में बैठे थे और आज बग्घी को बुढ़िया घोड़ी खींच रही है। डांस करती टोलियाँ मस्ती में चूर हैं उसे याद आया…. चालीस साल पहले जब बारात निकली थी तो डांस के चक्कर में गोली चल गई थी 30-35 बरातियों को पुलिस पकड़ कर ले गई थी….

जुलूस घर पहुंचने वाला है, घरवाली देख कर दंग हो जाएगी उसको आज समझ आ जाएगा कि दमदार आदमी मिला है। चैक की चिंता में बेटे बहू ने रास्ते भर पानी को पूछा, इसका मतलब चैक में दम तो है। बेटे बहू जानकी से ज्यादा खुश दिख रहे हैं और बीच-बीच में चैक ठीक से रखने की हिदायत भी दे रहे हैं।

रिटायरमेंट ग्रांट पार्टी के लिए मुंबई से बार-बालाओं को खास तरह के डांस के लिए बुलाया गया है रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी इस खबर से खुश हैं।

पान की दुकानों में आजकल डब्बू अंकल के चर्चे चल रहे हैं। विदिशा की शादी के डांसिंग अंकल ने सड़ा सा डांस क्या कर दिया, मुख्यमंत्री ने एंबेसडर बना दिया, स्थूलकाय डब्बू अंकल की नचनिया देह के थिरकने से सोशल मीडिया कांप गया, गोविंदा का दिल थरथराके डांस करने लगा। कुछ जले भुने ताली बजा  बजाकर कहने लगे डब्बू अंकल नर है कि नारी कि ……. ।

जानकी ने चालीस साल फैक्ट्री में नौकरी करी। फैक्ट्री की नौकरी में समय पर गेट के अंदर घुसने का बड़ा महत्व है, हर दिन का जेल जैसा है। सुबह सात बजे हूटर बजने के साथ घुसो, शाम को हूटर बजने पर साईकिल लेकर भागो, चालीस साल में जानकी ने इतना ही सीखा है। चालीस साल पहले जुगाड़ से फैक्ट्री में भर्ती हो गई थी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। लड़किया के बाप ने फैक्ट्री की नौकरी देख के शादी कर दी थी। बारात में सबने गेटपास वाला आई कार्ड देखा था जिसमें नाम के आगे जानकी प्रसाद अहीर लिखा था और दांत निपोरते फोटो लगी थी। सो रिटायरमेंट की पार्टी में धर्मपत्नी के मायके के लोगों की भीड़ रही। सबने खूब मस्ती की, बार-बालाओं के भड़काऊ डांस को देखकर सब पगलाए रहे फिर सबने पेट भर खाया पिया और पार्टी में जानकी प्रसाद तगड़े से उतर गए।

दो चार दिन तो शान्ति रही फिर बहू बेटों को चैक की सेहत की चिंता सताने लगी तब धर्मपत्नी ने चैक छुपा कर संदूक में रखा और अलीगढ़ का ताला लगा दिया।

एक रात जानकी को सपना आया कि चैक को चूहे कुतर रहे हैं तब संदूक से चैक निकाला गया। जानकी चैक लेकर बैंक पहुंचे, बैंक वालों ने चैक देखा और जमा करने से इंकार कर दिया। खाता जानकी प्रसाद यादव के नाम पर था जबकि चैक जानकी प्रसाद अहीर के नाम पर जारी हुआ था। आधार कार्ड देखा गया उसमें भी जानकी प्रसाद यादव लिखा था। जब चैक जमा नहीं हुआ तो जानकी ने बैंक वालों को बताया कि चालीस साल पहले फैक्ट्री में जानकी प्रसाद अहीर के नाम से भर्ती हुए थे। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है तो नये जमाने के लड़कों ने खाता खोलने के फार्म में यादव लिख दिया होगा और आधार भी उसी नाम से बना होगा। क्या है कि जबसे लालू, मुलायम, शरद बड़े नेता बने हैं तब से नयी उमर के लड़कों को यादव लिखने का शौक चरार्या है, जे सालों ने खाते में यादव लिखवा के चैक को डांस करने मजबूर कर दिया है बैंक वाले ने सलाह दी कि फैक्ट्री से जानकी प्रसाद यादव के नाम का चैक बनवा लो तब खाते में चैक जमा हो जाएगा।

जानकी प्रसाद की दौड़ फैक्ट्री तरफ बढ़ने लगी, फैक्ट्री का बाबू एक न माना बोला – चालीस साल से फैक्ट्री के रिकॉर्ड में जानकी प्रसाद अहीर चल रहा था तो चैक भी वही नाम से बनेगा। बाबू ने सलाह दे दी कि कोई दूसरे बैंक में जानकी प्रसाद अहीर नाम से खाता खोल कर जमा कर दो। अब तक जानकी समझ चुका था कि लापरवाही में किसी का बस नहीं है। सलाह सुनकर जानकी बैंक दर बैंक भटकने लगा पर किसी बैंक ने खाता नहीं खोला इसप्रकार चालीस लाख का चैक तीन महीने तक बैंक से फैक्ट्री और फैक्ट्री से बैंक डांस करता रहा पर किसी को दया नहीं आयी। नब्बे दिन बाद एक बैंक वाले ने कह दिया चैक तो मर चुका है अब कोई काम का नहीं रहा। चैक का जीवनकाल तीन महीने का था, जानकी के काटो तो खून नहीं….. अचानक दिमाग में विस्फोट सा हुआ और जानकी का दिमाग खिसक गया…… अंट-संट बकने लगा..कभी नाचने लगता… कभी रोने लगता…. तंग आकर बहू – बेटों ने घर से निकाल दिया।

अब वो कभी बैंक के सामने कभी फैक्ट्री के गेट पर बड़बड़ाता, चिल्लाता, रोने लगता, डांस करने लगता, लोग भीड़ लगाकर मजा लूटते।  एक दिन चैक लेकर फैक्ट्री के गेट में जबरदस्ती घुसने की कोशिश की तो सिक्योरिटी गार्ड ने डण्डा पटक दिया, चैक डांस करते हुए जेब से बाहर गिरा तो जानकी झुक कर नाचने लगा… नाचते नाचते वहीं गिरा और मर गया……….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765



हिन्दी साहित्य – कविता – * रसोई * – सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

रसोई

(कवयित्री सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी का e-abhivyakti में स्वागत है।)

 

जब हर रोज़ रसोई घर में
कैद हो जाती है सांसें
कुछ बदल नहीं सकती हूँ
अपनी सीमाओं को तब
कभी कभी खाने में परोस
दिया करती हूँ ।

अपना भरोसे से भरा परांठा
अपनी खुशी, नाराजगी, उदासी की मिक्स सब्जी
टुटे, बिखरे, सहमे ख्यालों का पुलाव
कभी तीखे, खट्टे, रूखे स्वभाव को
ढेर सारा उंडेल कर
बेस्वाद, बदहजमी वाला खाना
कभी-कभी खाने में परोस देती हूँ ।

खाने की टेबल पर बिछा देतीं हूँ
अपनी अधुरी महत्वाकांक्षाएं से बुना
टेबल क्लोथ
खाली ग्लास में भर देती हूँ
उम्मीदों का पानी ।

थाली, कटोरी, चम्मच जब सब को
भर देती हूँ
अपनी आंखों की नमीं से
मुंह में कैद हुऐ अलफाजों से
कुछ गीले लम्हों से
और थोड़ी सी खामोशी से

तब अस्तित्व टूट कर टेबिल के
नीचे बिखर जाता है
जूठन सा और
आत्मविश्वास सहम जाता है
खरखट सा हो जाता है ।

© मीनाक्षी भालेराव, पुणे 




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

(दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।

नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ।।16।।

ज्येष्ठ युध्ष्ठिर ने किया अनंत विजय से नाद।

नकुल और सहदेव ने भी दिया (शंख) घोष में साथ।।16।।

भावार्थ :  कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥16॥

 

Yudhisthira, the son of Kunti, blew the “Anantavijaya”; and Sahadeva and Nakula blew the “Manipushpaka” and “Sughosha” conches. ।।16।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




पुस्तक समीक्षा / आत्मकथ्य – सच्चाई कुछ पन्नो में – श्री आशीष कुमार

आत्मकथ्य –

सच्चाई कुछ पन्नो में  – श्री आशीष कुमार 

आत्मकथ्य: जिंदगी रंग-बिरंगी है ये हमे हर मोड़ पर अलग-अलग रसों का अनुभव करवाती है । इस पुस्तक में भी कुछ पन्नो की 27 कहनियाँ है नौ रसों में से हर एक रस की 3 कहानियाँ, पहली 9 कहानियाँ एक-एक रस की नौ रसों तक फिर कहानी नंबर 10 से 18 तक फिर उसी क्रम में नौ रसों की एक-एक कहानी ऐसे ही 19 से 27 तक फिर उसी क्रम में नौ रसों की एक-एक कहानी। कुछ कहानियों में सब को आसानी से पता चल जाएगा की वो किस रस की है । कुछ में उन्हें थोड़ा सोचना पड़ेगा इसलिए हर एक कहानी के बाद मैंने लिख दिया है की उस कहानी में कौन सा रस प्रधान है पुस्तक की कहानियों में रसो का क्रम श्रृंगार, हास्य, अद्भुत, शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक एवं वीभत्स हैं।

अर्थात पहली कहानी श्रृंगार रस दूसरी हास्य ऐसे ही नौवीं कहानी वीभत्स रस की है इसी क्रम में दसवीं कहनी फिर श्रृंगार रस, ग्यारहवी कहानी फिर हास्य रस की है और ऐसे ही उन्नीसवीं कहानी फिर से श्रृंगार रस आदि आदि ….. सत्ताईसवीं कहनी वीभत्स रस की है ।

मैंने इस पुस्तक में सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग किया है जिससे सब आसानी से कहानियों के भावों को समझ सके जहाँ पर कोई वार्तालाप है वहाँ मैने उसे उसी तरह लिखा है जैसे वो हुआ था हिंदी और अंग्रजी दोनों में। कुछ स्थानों पर मैने समान्य बोलचाल से हट कर कहानी के हिसाब से हिन्दी शब्द प्रयोग किये है जिनका अर्थ मैने उन्हीं शब्दों के आगे ( ) के अन्दर अङ्ग्रेज़ी में समझा दिया है।

पुस्तकांश : 

छोले चावल

सितम्बर 2005 से लेकर फरवरी 2006 तक मैने दिल्ली से C-DAC का कोर्स किया था जिसमे उच्च (advanced) कप्म्यूटर की तकनीक पढ़ाई जाती है। हमारा केंद्र दिल्ली के लाजपत नगर 4 में अमर कॉलोनी में था। हमारे अध्ययन केंद्र से मेरे किराये का कमरा बस 150-200 मीटर दूर था। हमारे केन्द्र में सुबह 8 से रात्रि 6 बजे तक क्लास और लैब होती थी। उन दिनों हम रात में लगभग 2-3 बजे तक जाग कर पढ़ाई करते थे। हमारा अध्ययन केन्द्र और मेरा किराये का कमरा बीच बाज़ार में थे।

मेरे साथ मेरे तीन दोस्त और रहते थे। क्योंकि हमारा कमरा बीच बाज़ार में था तो वहाँ खाने और पीने की चीजों की दुकानों और होटलों की कोई कमी न थी। जिस इमारत में तीसरी मंजिल पर हमारा कमरा था उसी मंजिल में भूतल (ground floor) पर एक चाय वाले की दुकान थी चाय वाले का नाम राजेंद्र था उसके साथ एक और लड़का भी काम करता था जिसका नाम राजू था। उस पूरे क्षेत्र में केवल वो ही एक चाय की दुकान थी तो राजेंद्र चाय वाले के यहाँ सुबह 7 से लेकर रात 11 बजे तक काफी भीड़ रहती थी। राजेंद्र की चाय औसत ही थी इसलिए कभी-कभी हम थोड़ा दूर जा कर भी किसी और टपरी पर चाय पी लिया करते थे और अगर कभी देर रात को चाय पीनी हो तब भी हम टहलते-टहलते दूर कहीं चाय पीने चले जाते थे ।

धीरे-धीरे समय के साथ राजेंद्र की दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी। उसकी दुकान पर हमेशा लोगो का ताँता लगा रहता था। राजेंद्र की दुकान पर सभी तरह के लोग आते थे। कुछ वो भी जो लोगो को डराने धमकाने का काम करते थे। कुछ हमारे जैसे पढ़ने वाले छात्र एवं कुछ पुलिस वाले भी । धीरे-धीरे राजेंद्र की चाय की गुणवत्ता घटने लगी। मैं और मेरे मित्र चाय के लिए कोई और विकल्प ढूंढ़ने लगे। हम राजेंद्र की चाय से ऊब गए थे। अचानक एक दिन जब मैं अपने केन्द्र पर जा रहा था मैने देखा की राजेंद्र की चाय की दुकान की बायीं ओर की सड़क पर एक 23-24 साल का लड़का कुछ सामान लगा रहा था वो लड़का देखने में बहुत सुन्दर और हट्टा-कट्टा था एवं बहुत अच्छे घर का लग रहा था। शाम को जब मैं अपने अध्ययन केन्द्र से वापस आ रहा था तो मैने देखा की राजेंद्र की दुकान के बायीं ओर सुबह जहाँ एक लड़का कुछ सामान लगा रहा था वहाँ पर एक नयी चाय की दुकान खुल चुकी थी। उस चाय की दुकान को देख कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। उस चाय की दुकान पर कोई भी ग्राहक ना था। जैसे ही मैने चाय वाले की तरफ देखा उस चाय वाले के मुस्कुराते हुए चेहरे ने मेरी तरफ देख कर बोला ‘भईया चाय पियोगे?’

मैं थका हुआ था मैने कुछ देर सोचा उसकी तरफ देखा और बोला ‘हाँ भईया एक स्पेशल चाय बना दो केवल दूध की’ पांच मिनट के अंदर उसने चाय का गिलास मेरी तरफ बढ़ाया। चाय काफी अच्छी बनी थी मैने चाय पीते-पीते कहा ‘भईया चाय अच्छी बनी है’। उसने कहा ‘धन्यवाद सर’ फिर मैने पूछा की उसका नाम क्या है और वो कहाँ का रहनेवाला है? तो उसने अपना नाम चींकल बताया और वो पंजाब के किसी छोटे से शहर का था। धीरे-धीरे मैने और मेरे तीन साथियो ने राजेंद्र की जगह चींकल की टपरी से चाय पीना शुरू कर दिया। चींकल केवल 1 कप चाय या 1 ऑमलेट भी तीसरी मंजिल तक ऊपर आ कर दे देता था। वह बहुत ही जिन्दादिल लड़का था बड़ा हसमुख सब को खुश रखने वाला। धीरे-धीरे चींकल, चाय वाले से ज्यादा हमारा दोस्त बन गया था। 1 महीने के अंदर ही अंदर राजेंद्र चाय वाले के ग्राहक कम होने लगे और चींकल के बढ़ने लगे।

क्योकि हम लोगो को काफी पढ़ाई करनी होती थी तो हम चींकल की दुकान पर कम ही जाते थे और जो कुछ चाहिए होता था वो तीसरी मंजिल के छज्जे से आवाज़ लगा कर बोल देते थे और चींकल ले आता था। कई बार मैने उससे पूछने की कोशिश की कि वो तो अच्छे घर का लगता है फिर ये चाय बेचने का काम क्यों करता है? पर वो हर बार टाल जाता था। एक दिन जब करीब सुबह के 11 बजे मैं अपने केंद्र जा रहा था तो चींकल ने आवाज़ लगायी और बोला ‘भईया मेरी बीवी ने आज छोले चावल बनाये है आ जाओ थोड़े-थोड़े खा लेते है’ मैने काफी मना किया पर वो नहीं माना और टिफिन के ढक्कन में मेरे लिए भी थोड़े से छोले चावल कर दिए। मैने खा लिए। छोले चावल बहुत ही स्वादिष्ट बने थे।

उस दिन मैं बहुत थक गया था हमारे कंप्यूटर केंद्र में मैं नयी तकनीक में प्रोग्रामिंग सीख रहा था जो मेरी समझ में नहीं आ रहा थी, तो शाम के करीब 6 बजे जब मैं निराश और थक कर कमरे पर वापस जा रहा था तो मैंने देखा की चींकल की दुकान के पास कुछ लोग खड़े है। तीन चार लोग उसे पीटते जा रहे थे और दो लड़के उसकी चाय की टपरी का सामान तोड़ रहे थे। पास ही में राजेंद्र चाय वाला खड़ा हुआ हंस रहा था।  मैं समझ गया कि ये सब राजेंद्र चाय वाला ही करवा रहा था। मैं कुछ बोलने वाला ही था कि राजेंद्र चाय वाले ने मेरी तरफ घूर कर देखा और मैं डर गया। चींकल ने मुझे आवाज़ भी लगायी ‘आशीष भईया’ पर मैं अनसुना कर के आगे निकल गया और अपने कमरे में जाने के लिए इमारत में घुस गया। पता नहीं क्यों मैं डरपोक बन गया था। अगली सुबह वहाँ जहाँ पर चींकल की चाय की दुकान हुआ करती थी उसके कुछ अवशेष पड़े थे मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। चींकल द्वारा खिलाये हुए घर के बने छोले चावल शायद मैं आज भी नहीं पचा पाया हूँ ।

रस : करुण

© आशीष  कुमार 

 




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

 

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।

पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः ।।15।।

हृषीकेष ने पाञ्चजन्य,अर्जुन  ने देवदत्त

भीम वृकोदर ने किया पौड्र शंख उत्तप्त।।15।।

भावार्थ :   श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।।15।।

Hrishikesa blew the “Panchajanya” and Arjuna blew the “Devadatta”, and Bhima, the doer of terrible deeds, blew the great conch, “Paundra” ।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – * ठंड है कि मानती नहीं * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

ठंड है कि मानती नहीं  

सुबह सुबह पड़ोसी लाल कंपकंपाते हुए, दोनों हाथों को रगडते हुए हमारे यहाँ आ धमके और आते ही हमारे ऊपर प्रश्न दाग दिया — ” सिंह साहब, ये ठंड कब जायेगी ? अब तो जनवरी भी खत्म हो गई है । आप तो कहते थे कि मकर संक्रांति के बाद तिल तिल करके ठंड कम होने लगती है । लेकिन कम होने की जगह यह तो बढ़ती ही जा रही है । अब आप ही बताइये ऐसा क्यों हो रहा है ?”

हमने पड़ोसी लाल को आराम से सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए श्रीमती जी को अदरक वाली चाय बंनाने को कहा ।  फिर पड़ोसी लाल की ओर मुखातिब होते हुए कहा — “आप क्यों इतना घबरा रहे हो,  मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार यह जो ठंड पड़ रही है यह लंदन से आयातित है, अपने यहां ठंड का स्टॉक खत्म हो गया था न इसलिये लंदन से ठंड मंगवायी है ।जिस वजह से कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों पर भारी बर्फ बारी होने से ठंड का दौर कुछ लम्बा खिंच गया है लेकिन जैसे दिये की लौ बुझने से पहले और तेजी से जलने लगती है उसी प्रकार ठंड का यह आखिरी दौर है । ठंड अब कुछ दिनों की मेहमान है । हमें मालूम है कि आप रजाई में दुबके  दुबके बोर हो गये हैं और रजाई से छुटकारा पाना चाहते हैं । अभी तक आप सिकुड़े हुए थे,अब अकड़ना चाहते हैं ।”

पड़ोसी लाल ने मुस्कराते हुए कहा –” सिंह साहब,  अच्छा है जो वैज्ञानिकों ने बता दिया, नहीं तो विपक्ष सरकार पर ही इतनी ठंड पड़ने का आरोप लगाकर सरकार से इस्तीफा मांगने लगता । आप तो  जानते हैं, बहुत दिन हो गये सिकुड़े हुए, सिकुड़ने का यही हाल रहा तो फिर सिकुड़े सिकुड़े ही अकड़ न जायें ।इस बार की ठंड में ऐसी घटनायें कुछ ज्यादा ही हो रही हैं । ऐसे में वास्तविक रूप से अकड़ने का मौका हाथ से न निकल जावे । अब तो  अकड़ दिखाने का मौका आ गया है, देखो बजट भी पेश हो गया है । बजट के हलुआ का प्रसाद जो केवल वित्त मंत्रालय के अधिकारियो , नेताओं के अलावा किसी को भी प्राप्त न हो पाता था, इस बार  किसान, मजदूर गरीबों के साथ ही मध्यम वर्ग को भी मिल गया है  । चुनावी वर्ष में ये सभी अकड़ने को तैयार हैं लेकिन ठंड है कि मानती नहीं ।  वसन्त भी एक कोने में दुबका खड़ा है इस इंतजार में कि ठंड जाए तो फिर मैं चहुँ ओर अपना जलवा बिखेरकर जनमानस को बौराना शुरू करूं । बसन्ती बयार भी बहने को बेताब हैं । लेकिन रह रहकर चलने लगती  शीत लहर के कारण वह भी ठिठक जाती हैं । युवा वर्ग भी अपना वसन्त ( वेलेंटाइन डे ) मनाने की तैयारी में है, वह भी अपने शरीर पर लदे जैकेट,स्वेटरों से छुटकारा पाने के लिये छटपटा रहा है ।  किसान कर्ज के बोझ तले दबा है ।उसके पास न रजाई है न स्वेटर  वह ठंड से कंपकंपा रहा है और सरकार कर्ज माफी का अलाव जलाकर खुद अपनी ठंड दूर कर रही है । बेरोजगार सिकुड़ रहा है नोकरी की आस में, कब नोकरी मिले और वह भी अकड़ दिखा सके ।”

पड़ोसी लाल की चिंता की वजह अब समझ आयी ।  हमने कहा — “आप तो ऐसे चिंता कर रहे हैं जैसे इस देश के चौकीदार आप ही हो । अरे भाई ठंड का क्या है ,आज नहीं तो कल चली ही जायेगी । लेकिन आपको भी मालूम है कि ठंड के जाते ही गर्मी अपना असर दिखाने लगेगी इसलिए कुछ दिन और ठंड का मजा ले लो । फिर गर्मी के साथ साथ चुनावी गर्मी का भी आनन्द उठाना।”

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002

 




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।

 

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।

माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ॥14॥

श्वेत अष्वों से युक्त रथ में तब हो आसीन

माधव-पाॅडव सबो ने दिव्य शंख ध्वनि कीन।।14।।

भावार्थ :  इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए॥14॥

Then also,  Madhava  (Krishna),  and  the  son  of  Pandu  (Arjuna),  seated  in  their magnificent chariot yoked with white horses, blew their divine conches ॥14॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




हिन्दी साहित्य – कविता – * गीत * – सुश्री गुंजन गुप्ता

सुश्री गुंजन गुप्ता

(युवा  कवयित्री  सुश्री गुंजन गुप्ता जी का e-abhivyakti में स्वागत है।)

गीत 

मैं चन्दा की  धवल चांदनी,
तू सिन्दूरी शाम पिया।
मन्द-मन्द अधरों में पुलकित,
तू मेरी मुस्कान पिया॥

जैसे ब्रज की विकल गोपियाँ,
उलझ गयी हों सवालों में।
जैसे तम के दिव्य सितारे,
गुम हो जाएँ  उजालों में।
बेसुध हो जाऊँ जिस मधुर-मिलन में,
तू ऐसी मुलाक़ात पिया॥

संदली स्वप्न की मिट्टी में,
बोकर अपने जीवन मुक्ता को।
भावों की नयी कोपलों को,
सींचा नित नयनों के जल से।
भीग जाऊँ जिस प्रेम सुधा से,
तू ऐसी बरसात पिया॥

मैं चन्दा की धवल चांदनी
तू सिन्दूरी शाम पिया।
मन्द-मन्द अधरों में पुलकित
तू मेरी मुस्कान पिया॥

 

© सुश्री गुंजन गुप्ता

गढ़ी मानिकपुर,  प्रतापगढ़़ (उ प्र)




हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – * फूलों के कद्रदाँ * – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

फूलों के कद्रदाँ 

(कई लोगों को अड़ोस-पड़ोस, बाग-बगीचे सोसायटी गार्डेन से फूल चुराने  की एक आम बीमारी है। डॉ  कुन्दन सिंह परिहार  जी की पैनी कलम से ऐसी किसी भी सामाजिक बीमारी से ग्रस्त लोगों का बचना असंभव है। प्रस्तुत है फूल चुराने की बीमारी से ग्रस्त उन तमाम लोगों के सम्मान में  समर्पित एक व्यंग्य)
कहावत है कि मूर्ख घर बनाते हैं और अक्लमन्द उनमें रहते हैं। उसी तरह यह भी कहा जा सकता है कि मूर्ख फूल उगाते हैं और होशियार उनका उपभोग करते हैं।
यकीन न हो तो कभी सबेरे पाँच बजे उठकर दरवाज़े या खिड़की से झाँकने का कष्ट करें।अलस्सुबह जब अँधेरा पूरी तरह छँटा नहीं होता और फूलों के मालिक घर के भीतर ग़ाफ़िल सोये हुए होते हैं तभी हाथों में छोटे छोटे झोले और लकड़ियां लिये फूलों के असली कद्रदानों की टोलियां निकलती हैं।किसी भी घर में फूल देखते ही ये अपने काम में लग जाते हैं। फूल चारदीवारी के पास हुए तो फिर कहना क्या, अन्यथा जैसे भी हों,उन्हें तोड़कर झोले के हवाले किया जाता है।कई बार खींचतान में पूरी डाल ही टूट जाती है। फूलों का मालिक जब सोया था तब घर में बहार थी, सबेरे जब उठता है तो ख़िज़ाँ या वीराना मिलता है। ‘कल चमन था आज इक सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ!’
फूलों की चोरी में कोई निचले दर्जे के लोग या छोकरे ही नहीं होते।इनमें ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें भद्र पुरुष या भद्र महिला कहा जाता है।इन्हें आप रंगे-हाथों पकड़ भी लें तब भी चोरी का इलज़ाम लगाना मुश्किल होता है।
एक सज्जन दूध का डिब्बा लेकर सपत्नीक निकलते हैं। दूध लेकर लौटते वक्त फूलों के दर्शन होते ही पति पत्नी दोनों एक एक पौधे पर चिपक जाते हैं। फायदा यह होता है कि दस मिनट का काम पाँच मिनट में मुकम्मल हो जाता है। स्त्री के साथ होने से मकान-मालिक के द्वारा कोई बड़ी बदतमीज़ी करने का भय कम रहता है।
एक महिला हैं जो स्लीवलेस ब्लाउज़ और मंहगी साड़ी पहन कर सुबह की सैर को निकलती हैं। ‘गंगा की गंगा, सिराजपुर की हाट’ की शैली में सैर के साथ फूलों का संग्रह होता चलता है।
एक और सज्जन हैं जो हाथ में लकड़ी लेकर निकलते हैं जिसके छोर पर कोई कील जैसी चीज़ है। वे चारदीवारी के पार से पौधे की गर्दन कील में फँसाकर अपनी तरफ खींच लेते हैं और फिर इत्मीनान से फूल तोड़ लेते हैं। कील की मदद से दूरियां नज़दीकियों में तब्दील हो जाती हैं।
एक साइकिल वाले हैं जो फूल देखते ही अपनी साइकिल धीरे से स्टैंड पर लगाते हैं और बड़ी खामोशी से झटपट फूल तोड़कर ऐसे आगे बढ़ जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो। अमूमन साइकिल वाले से झगड़ा करने या उसे गालियाँ देने में फूल-मालिक को ज़्यादा दिक्कत नहीं होती।ये सज्जन भी कई बार फूल-मालिकों की गालियाँ खा चुके हैं, लेकिन वे ‘स्थितप्रज्ञ’ के भाव से आगे बढ़ जाते हैं। पीछे से कितनी भी गालियां आयें, वे पीछे मुड़ कर नहीं देखते, न ही उनके पुष्प-संग्रह के कार्यक्रम में कोई तब्दीली होती है।
कुछ महिलाएं घर की बेटियों को लेकर फूलों के विध्वंस को निकलती हैं। माताएँ एक तरफ खड़ी हो जाती हैं और बेटियाँ फूलों पर टूट पड़ती हैं। देश की भावी माताओं को ट्रेनिंग दी जा रही है।आगे यही माताएँ अपनी संतानों को फूल चुराने की ट्रेनिंग देंगीं। परंपरा आगे बढ़ेगी। पुण्य कमाने के काम में कैसा पाप?
किशोरों की टोलियाँ अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर पुष्प-संहार के लिए निकलती हैं। शायद इनके जनक-जननी घर में आराम से सो रहे होंगे।जब पुत्र अपने विजय-अभियान से लौटेंगे तब माता-पिता नहा धो कर पूजा-पाठ में लगेंगे। देश की अगली पीढ़ी का ज़रूरी प्रशिक्षण हो रहा है।आगे रिश्वतखोरी और कमीशन-खोरी करने में दिक्कत नहीं होगी।अभी से मन की हिचक निकल जाये तो अच्छा है। शायद इसी को अंग्रेजी में ‘पर्सनैलिटी डेवलपमेंट’ कहते हैं। ये लड़के उन्हें बरजने वाले गृहस्वामियों को दूर से कमर हिलाकर मुँह चिढ़ाते हैं। बात बढ़े तो पत्थर भी फेंक सकते हैं।
एक दिन सबेरे सबेरे हल्ला-गुल्ला सुना तो आँख मलते बाहर निकला।देखा, सामने के मकान वाले नवीन भाई स्लीवलेस ब्लाउज़ वाली मैडम से उलझ रहे थे।
मैडम गुस्से से कह रही थीं,’थोड़े से फूल तोड़ लिये तो कौन सी आफत आ गयी। फूल कोई खाने की चीज़ है क्या?’
नवीन भाई ने उसी वज़न का उत्तर दिया,’आपको पूछ कर फूल तोड़ना चाहिए था। इस तरह चोरी करना आपको शोभा नहीं देता।’
मैडम चीखीं,’व्हाट डू यू मीन?मैं चोर हूँ? जानते हैं मेरे हज़बैंड मिस्टर सोलंकी आई ए एस अफसर हैं।’
नवीन भाई हार्डवेयर के व्यापारी हैं।आई ए एस का नाम सुनते ही वे ‘हार्डवेयर’से बिलकुल ‘साफ्टवेयर’ बन गये। हकलाते हुए बोले,’मैडम,मेरा मतलब है आप कहतीं तो मैं खुद आपको फूल दे देता।’
मैडम बोलीं,’वो ठीक है, लेकिन आप किस तरह से बात करते हैं! आप में ‘मैनर्स’ नहीं हैं।’
वे अपना झोला नवीन भाई की तरफ बढ़ाकर बोलीं,’आप अपने फूल रख लीजिए।आई डोंट नीड देम।’
नवीन भाई की घिघ्घी बँधने लगी, बोले,’नईं नईं मैडम।आप फूल रखिए। मैंने तो यों ही कहा था।आप रोज फूल ले सकती हैं।गुस्सा थूक दीजिए।’
मैडम अपना झोला लेकर चलने लगीं तो पीछे से नवीन भाई बोले,’अपने हज़बैंड से,मेरा मतलब है ‘सर’ से, मेरा नमस्ते कहिऐगा।’
फूल चुराने वालों में से कइयों को देखकर ऐसा लगता है कि वे महीनों नहाते नहीं होंगे। फिर सवाल यह उठता है कि वे किस लिए फूल चुराते हैं?लगता यही है कि ये सज्जन दूसरों को पुण्य कमाने में मदद करते होंगे। इस बहाने आधा पुण्य उन्हें भी मिल जाता होगा।
पूछने पर कुछ पुष्प-चोरों से मासूम सा जवाब मिलता है कि देवता पर चोरी के फूल चढ़ाने से ज़्यादा पुण्य मिलता है। उस हिसाब से अगर देवता पर चढ़ाने के लिए दूकानों से नारियल और प्रसाद चुराये जाएं तो पुण्य की मात्रा दुगुनी हो जाएगी।
© कुन्दन सिंह परिहार



आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (13) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।

सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्‌।।13।।

सब वीरों ने भी बजा अपने अपने वाद्य

शंख,भेरी,पणवानको से किया तुमुल निनाद।।13।।

भावार्थ:  इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ ।।13।।

Then (following Bhishma), conches and kettle-drums, tabors, drums and cow-horns blared forth quite suddenly (from the side of the Kauravas); and the sound was tremendous ।।13।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)