श्री विवेक चतुर्वेदी
नर्मदा – विवेक की कविता
(प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की एक भावप्रवण कविता – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)
© विवेक चतुर्वेदी
श्री विवेक चतुर्वेदी
नर्मदा – विवेक की कविता
(प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की एक भावप्रवण कविता – श्री जय प्रकाश पाण्डेय)
© विवेक चतुर्वेदी
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग )
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ।।26।।
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।।27।।
देखे वहां पै पार्थ ने,पिता प्रपिता महान
गुरू,मामाओं,भाइयों,मित्र ,पौत्र पहचान।।26।।
थे दोनों सेनाओं में श्वसुर,सुहद,सब लोग
जिन्हें देखकर पार्थ को हुआ बड़ा ही क्षोभ।।27।।
भावार्थ : इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा ,उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। ॥26 और 27॥
Then Arjuna beheld there stationed, grandfathers and fathers, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grandsons and friends, too. (He saw) fathers-in-law and friends also in both armies. The son of Kunti—Arjuna—seeing all these kinsmen standing arrayed, spoke thus sorrowfully, filled with deep pity ।।26 and 27।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
डॉ अ. कीर्तिवर्धन का काव्य संसार – दो काव्य संग्रह लोकार्पित
विद्यालक्ष्मी चैरिटेबल ट्रस्ट तथा एच डी चैरिटेबल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में एस डी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मुजफ्फरनगर के सभागार में विगत 22 दिसंबर 2018 को आयोजित अविस्मरणीय समारोह में डॉ अ कीर्तिवर्धन की दो पुस्तकों “मानवता की ओर” तथा “द वर्ल्ड ऑफ पोइट्री” (The World of Poetry) का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ कीर्ति वर्धन जी द्वारा हाइकु शैली में लिखी तथा भारती विश्वनाथन जी द्वारा स्वरबद्ध की गयी सरस्वती वंदना से किया गया।
पुस्तक के विषय में अपनी बात रखते हुये कीर्तिवर्धन जी ने समाज में घटते संस्कारों व सामाजिक मूल्यों के प्रति चिन्ता जाहिर की और बताया कि उनकी कविता भूतकाल से सीखकर वर्तमान के धरातल पर खड़ी होकर भविष्य की चुनौतियों के लिये समाज को तैयार करने का प्रयास है। मानवीय दृष्टिकोण तथा मानवता भारतीय जीवन शैली है, उसके बिना विश्व कल्याण सम्भव नही है। अपनी चार पंक्तियों के माध्यम से उन्होने कहा –
टूटकर भी किसी के काम आ जाऊँगा,
मैं पत्ता हूँ, गल गया तो खाद बन जाऊँगा।
हो सका तो मुझको जलाना ईंधन के वास्ते,
किसी के काम आ सकूँ, खुशी से जल जाऊँगा।
डॉ अ कीर्तिवर्धन की चुनिंदा कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद ‘द वर्ल्ड ऑफ पोइट्री’ के अनुवादक डॉ राम शर्मा (विभागाध्यक्ष अंग्रेजी जे वी कॉलेज बडौत) के अनुसार कीर्ति जी की कविताएँ सरल, सहज व मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण हैं। आज कीर्ति जी की अंग्रेजी में अनुदित कविताएँ विश्व पटल पर पढी और सराही जाती हैं। श्री रोहित कौशिक जी के अनुसार डॉ कीर्ति वर्धन जी की कविताओं में समाज बदलने की ताकत है। वह आदमी को इन्सान बनने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने आशा जताई कि कीर्ति जी समाज को कुछ और भी बेहतर देने में सक्षम होंगे। श्री राजेश्वर त्यागी जी, मेरठ के अनुसार ‘मानवता की ओर’ मानवीय संवेदनाओं का जीवन्त दस्तावेज है। पुस्तक की अनेक रचनाओं का उल्लेख करते हुये उन्होने कहा कि अपने 52 वर्ष के लेखनकाल में उन्होने मानवीय संवेदनाओं की ऐसी सृजना नही की।
संस्कृत के प्रख्यात विद्वान डॉ उमाकांत शुक्ल जी ने कीर्तिजी की सहृदयता तथा मानवीय दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुये उनकी पूर्व पुस्तकों मुझे इन्सान बना दो, सुबह सवेरे, सच्चाई का परिचय पत्र में भी उनके मानवतावादी दृष्टिकोण की चर्चा की और आशीर्वाद देते हुये कहा कि कीर्तिवर्धन जी अपनी रचनाओं से समाज में मानवता का परचम फहराते रहेंगे और बच्चों में संस्कारों का रोपण करने में संलग्न रहेंगे। प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ एस एन चौहान के अनुसार कीर्तिवर्धन जी अच्छे साहित्यकार के साथ बेहतरीन इंसान भी हैं। उनकी कविताएं इंसानी मूल्यों के प्रति संवेदना, प्रेरणा व स्फूर्ति पैदा करने वाली हैं। उनके अनुसार “मानवता की ओर” एक ऐसी कृति है जो आज के आपाधापी के युग में कल्याण का पथ प्रशस्त कर सकेंगी। कीर्तिजी की बुजुर्गों पर केन्द्रित पुस्तक “जतन से ओढी चदरिया” को सराहते हुए उन्होने कहा कि यदि इसको पढा और समझा जाये तो समाज में वृद्धाश्रम की समस्या समाप्त हो जायेगी। डॉ चौहान ने कीर्तिवर्धन जी की रचनाओं के कन्नड, तमिल, मैथिली, नेपाली, अंगिका, तमिल व उर्दू अनुवादों की भी चर्चा की।
साभार श्री अभिषेक वर्धन, मुजफ्फरनगर
सुश्री मीनाक्षी भालेराव
आणि वसंत आला
(सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी की जीवन के कटु सत्य को उजागर करती हृदयस्पर्शी कविता निश्चित ही आपके नेत्र नम कर देगी।)
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग )
संजय उवाचः
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।24।।
संजय ने कहा-
अर्जुन ने जब यों कहा हृषीकेष से नाथ
दोनों सेना मध्य गये,उत्तम रथ में साथ।।24।।
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ।।25।।
कहा कृष्ण ने पार्थ से देखो कुरूजन सर्व
भीष्म-द्रोण है प्रमुख ओै” राजा कई सगर्व।।25।।
भावार्थ : संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्णचंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवों को देख॥24-25॥
Being thus addressed by Arjuna, Lord Krishna, having stationed that best of chariots, O Dhritarashtra, in the midst of the two armies. In front of Bhishma and Drona and all the rulers of the earth, said: “O Arjuna, behold now all these Kurus gathered together!” ।।24-25।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
Hemant Bawankar
Heart, eyes, and tears
(This poem has been cited from my book “The Variegated Life of Emotional Hearts”.)
These tears are surprising
which are very close to every heart.
There is a strange relationship
amongst heart, tears and eyes.
Even though,
staying away from the heart,
these are close to every heart.
By the way
Eyes cry many times in life.
Sometimes they cry in joy.
Sometimes they cry in sorrow.
Sometimes they cry when we are awake.
Sometimes they cry when we are asleep.
People Say –
the woman is so sensitive
having a source of tears in her eyes.
However,
I had seen him turning away,
and wiping his eyes
at the time of his wife’s adieu.
I had seen tears in his eyes
at adieu of
his sister
and daughter too.
I had seen tears in his eyes
even when, as a social responsibility
he brought one daughter from another home
with the feeling of adieu of
his sister
and daughter too.
I had still seen tears of joy in his eyes
when you had given presence
in your mother’s womb.
I had still seen tears of joy in his eyes
when he preached the good stories
when you were in the womb
so you may get lessons of life
to overcome the life’s trap.
I had seen tears of helplessness in his eyes
when he found himself constrained
to meet your urgent needs.
I had even seen tears in his eyes
when someone could not understand him
when someone could not honour
his feelings
his relationships.
I had still seen tears of joy in his eyes
when you moved ahead
to fight with life’s lessons
rejuvenating yourselves.
These tears are surprising
which are close to every heart.
There is a strange relationship
amongst heart, tears and eyes.
Even though,
staying away from the heart
these are close to every heart.
© Hemant Bawankar
सुश्री ज्योति हसबनीस
प्रेमाला उपमा नाही
(प्रस्तुत है सुश्री ज्योति हसबनीस जी का आलेख प्रेमाला उपमा नाही)
आयुष्याची खुमारी वाढवणारं प्रेम वयाच्या प्रत्येक टप्प्या टप्प्याला किती वेगळं पण तितकंच मनोरम भासतं ना! सोळाव्या वर्षी नजरेचं भिरभिरं आपल्या प्रेमाच्या शोधात असल्यासारखं सतत टेहळणीवर असतं. कधीतरी नजरभेट होते, ह्रदयाची धडधड ओळख पटवते, आणि प्रेम गवसल्याचा आभास होतो. हाती गवसलेल्या प्रेमासाठी काय वाट्टेल ते करण्याची तयारी मनाची असते. कधी सफलतेचा आनंद मिळतो तर कधी वैफल्य गाठी येतं. मागचा पुढचा विचार न करता जीव ओवाळून टाकणारं वेडं प्रेम खरंच कित्येकांची आयुष्य उध्वस्त करतं किंवा उजळून टाकतं, पण मला ह्या प्रेमाचं नेहमीच एक विलक्षण आकर्षण वाटत आलंय. जगण्याचा कैफ, जगण्यातली मस्ती, सारं काही आसूसून अनुभवण्याची आणि त्यासाठी उभ्या दुनियेशी लढा देण्याची ह्या ओढाळ आणि झुंजार प्रेमाची जातकुळ खुपच अनोखी असते.
आयुष्याचं दान कधी उजवं तर कधी डावं, सारं नियतीच्या हातात. मिळालेल्या दानाचा हंसतमुखाने स्वीकार करत, जिवलगाचा हात हाती घेत केलेली वाटचाल, वाट्याला आलेली सुखदु:ख, प्रसंगी परिस्थितीशी केलेली हातमिळवणी तर कधी तिच्याशी केलेले दोन हात सारेच क्षण परस्परांवरील प्रेमाची वीण घट्ट करणारे ठरतात आणि वयाच्या पन्नाशीपर्यंत अतिशय जवाबदार असं प्रेम आकाराला येतं. हे प्रेम उबदार असतं, सुरक्षित असतं, हवंहवंसं वाटणारं असतं, गुंतलेपणातली तृप्ती ल्यालेलं असतं.
सारी वेडी वाकडी नागमोडी वळणं पार करत गतीशील होत जाणारं आयुष्य आणि त्या त्या टप्प्याला फुलणारं आणि परिपक्व होत जाणारं प्रेम अंतिम टप्प्यावर एक वेगळीच उंची गाठतं. ह्या प्रेमाची भाषा मूक असते, समंजस असते, शब्दांच्या आधाराशिवायच व्यक्त होण्याची कला त्याला अवगत झालेली असते, फक्त आणि फक्त नजरेच्या टप्प्यात जिवलगाचा वावर असावा एवढी माफक अपेक्षा हे प्रेम बाळगून असतं. आशा, अपेक्षांच्या पलिकडे गेलेलं हे प्रेम निर्वाणाच्या वाटेवर इंद्रधनुषी साजात झगमगत असतं!
© ज्योति हसबनीस, नागपूर
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग )
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ।।23।।
दुष्ट बुद्धि धृतराष्ट्र के प्रिय जो तथा सहाय
यहां युद्ध का मन बना लड़ने को जो आये।।23।।
भावार्थ : दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा॥23॥
For I desire to observe those who are assembled here to fight, wishing to please in battle Duryodhana, the evil-minded ।।23।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
आत्मनिर्भरता के लिए सेल्फी
“स्वाबलंब की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष ” राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त की ये पंक्तियां सेल्फी फोटो कला के लिये प्रेरणा हैं. ये और बात है कि कुछ दिल जले कहते हैं कि सेल्फी आत्म मुग्धता को प्रतिबिंबित करती हैं. ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि सेल्फी मनुष्य के वर्तमान व्यस्त एकाकीपन को दर्शाती है. जिन्हें सेल्फी लेनी नही आती ऐसी प्रौढ़ पीढ़ी सेल्फी को आत्म प्रवंचना का प्रतीक बताकर अंगूर खट्टे हैं वाली कहानी को ही चरितार्थ करते दीखते हैं.
अपने एलबम को पलटता हूं तो नंगधुड़ंग नन्हें बचपन की उन श्वेत श्याम फोटो पर दृष्टि पड़ती हैं जिन्हें मेरी माँ या पिताजी ने आगफा कैमरे की सेल्युलर रील घुमा घुमा कर खींचा रहा होगा. अपनी यादो में खिंचवाई गई पहली तस्वीर में मैं गोल मटोल सा हूँ, और शहर के स्टूडियो के मालिक और प्रोफेशनल फोटोग्राफर कम शूट डायरेक्टर लड़के ने घर पर आकर, चादर का बैकग्राउंड बनवाकर सैट तैयार करवाया था, हमारी फेमली फोटोग्राफ के साथ ही मेरी कुछ सोलो फोटो भी खिंची थीं. मुझे हिदायत दी थी कि मैं कैमरे के लैंस में देखूं, वहाँ से चिड़िया निकलने वाली है. घर के कम्पाउंड में वह जगह चुनी गई थी जिससे सूरज की रोशनी मुझ पर पड़े और पिताजी के इकलौते बेटे का बढ़िया सा फोटो बन सके. फोटो अच्छा ही है, क्योकि वह फ्रेम करवाया गया और बड़े सालों तक हमारे ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाता रहा.अब वह फोटो मेरी पत्नी और बच्चो के लिये आर्काईव महत्व का बन चुका है.
यादो के एलबम को और पलटें तो स्कूल , कालेज के वे ग्रुप फोटो मिलते हैं जिन्हें हार्ड दफ्ती पर माउंट करके नीचे नाम लिखे होते थे कि बायें से दायें कौन कहां खड़ा है. मॉनिटर होने के नाते मैं मास्साब के बाजू में सामने की पंक्ति पर ही सेंटर फारवार्ड पोजीशन पर मौजूद जरूर हूं पर यदि नाम न लिखा हो तो शायद खुद को भी आज पहचानना कठिन हो. वैसे सच तो यह है कि मरते दम तक हम खुद को कहाँ पहचान पाते हैं, प्याज के छिलको या कहें गिरगिटान की तरह हर मौके पर अलग रंग रूप के साथ हम खुद को बदलते रहते हैं. आफिस के खुर्राट अधिकारी भी बीबी और बास के सामने दुम दबाते नजर आते हैं. शादी में जयमाला की रस्मो के सूत्रधार फोटोग्राफर ही होते हैं वे चाहें तो गले में पड़ी हुई माला उतरवा कर फिर से डलवा दें. शादी का हार गले में क्या पड़ता है, पत्नी जीवन भर शीशे में उतारकर फोटू खींचती रहती है ये और बात है कि वे फोटू दिखती नही जीवन शैली में ढ़ल जाती हैं.
कालेज के दिन वे दिन होते हैं जब आसमान भी लिमिट नही होता. अपने कालेज के दिनो में हम स्टडी ट्रिप पर दक्षिण भारत गये थे. ऊटी के बाटनिकल गार्डेन के सामने खिंचवाई गई उस फोटो का जिक्र जरूरी लगता है जिसे निगेटिव प्लेट पर काले कपड़े से ढ़ांक कर बड़े से ट्रिपाईड पर लगे कैमरे के सामने लगे ढ़क्ककन को हटाकर खींचा गया था, और फिर केमिकल ट्रे में धोकर कोई घंटे भर में तैयार कर हमें सुलभ करवा दिया गया था. कालेज के दिनो में हम फोटो ग्राफी क्लब के मेंम्बर रहे हैं. डार्क रूम में लाल लाइट के जीरो वाट बल्ब की रोशनी में हमने सिल्वर नाइत्रेट के सोल्यूशन में सधे हाथो से सैल्युलर फिल्में धोई और याशिका कैमरे में डाली हैं. आज भी वे निगेटिव हमारे पास सुरक्षित हैं, पर शायद ही उनसे अब फोटो बनवाने की दूकाने हों.
डिजिटल टेक्नीक की क्रांति नई सदी में आई. पिछली सदी के अंत में तस्करी से आये जापानी आटोमेटिक टाइमर कैमरे को सामने सैट करके रख कर मिनिट भर के निश्चित समय के भीतर कैमरे के सम्मुख पोज बनाकर सेल्फी हमने खींची है, पर तब उस फोटो को सेल्फी कहने का प्रचलन नहीं था. सेल्फी शब्द की उत्पत्ति मोबाइल में कैमरो के कारण हुई. यूं तो मोबाईल बाते करने के लिये होता है पर इंटनेट, रिकार्डिग सुविधा, और बढ़िया कैमरे के चलते अब हर हाथ में मोबाईल, कम्प्यूटर से कहीं बढ़कर बन चुके हैं. जब हाथ में मोबाईल हो, फोटोग्राफिक सिचुएशन हो, सिचुएसन न भी हो तो खुद अपना चेहरा किसे बुरा दिखता है. ग्रुप फोटो में भी लोग अपना ही चेहरा ज्यादा देखते हैं . हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा आये की शैली में सेल्फी खींचो और डाल दो इंस्टाग्राम या फेसबुक पर लाईक ही लाईक बटोर लो. अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ साधन हैं सेल्फी. मेरे फेसबुक डाटा बताते हैं कि मेरी नजर में मेरे अच्छे से अच्छे व्यंग को भी उतने लाइक नही मिलते जितने मेरी खराब से खराब प्रोफाइल पिक को लोड करते ही मिल जाते हैं. शायद पढ़ने का समय नही लगाना पड़ता, नजर मारो और लाइक करो इसलिये . शायद इस भावना से भी कि सामने वाला भी लाइक रेसीप्रोकेट करेगा. यूं लड़कियो को यह प्रकृति प्रदत्त सुविधा है कि वे किसी को लाइक करें न करें उनकी फोटो हर कोई लाइक करता है.
सेल्फी से ही रायल जमाने के तैल चित्र बनवाने के मजे लेने हो तो अब आपको घंटो एक ही पोज पर चित्रकार के सामने स्थिर मुद्रा में बैठने की कतई जरूरत नहीं है. प्रिज्मा जैसे साफ्टवेयर मोबाईल पर उपलब्ध हैं, सेल्फी लोड करिये और अपना राजसी तैल चित्र बना लीजीये वह भी अलग अलग स्टाइल में मिनटो में.
जब सस्ती सरल सुलभ सेल्फी टेक्नीक हर हाथ में हो तो उसके व्यवसायिक उपयोग केसे न हों. कुछ इनोवेटिव एम बी ए पढ़े प्रोडक्ट मेनेजर्स ने उनके उत्पाद के साथ सेल्फी लोड करने पर पुरस्कार योजनायें भी बना डालीं . कोई कचरे के साथ सेल्फी से हिट है तो कोई देश के विकास में योगदान दे रहा है योगासन की सेल्फी से, तो अपनी ढ़ेर सी शुभकामनायें सभी सेल्फ़ीबाजो को. सैल्फी युग में सब कुछ हो, भगवान से यही दुआ है कि हम सैल्फिश होने से बचें और खतरनाक सेल्फी लेते हुये किसी पहाड़ की चोटी, बहुमंजिला इमारत, चलती ट्रेन, या बाइक पर स्टंट की सेल्फी लेते किसी की जान न जावें.
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८
श्री सदानंद आंबेकर
ब च प न
(श्री सदानंद आंबेकर,गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण से जुड़े हैं एवं गंगा तट पर 2013 से निरंतर प्रवासरत हैं । )