हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ? ?

आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। विभाजन के बाद पाकिस्तान ने उर्दू को अपनी राजभाषा घोषित किया था। पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) बांग्लाभाषी था। वहाँ छात्रों ने बांग्ला को द्वितीय राजभाषा का स्थान देने के लिए मोर्चा निकाला। बदले में उन्हें गोलियाँ मिली। इस घटना ने तूल पकड़ा। बाद में 1971 में भारत की सहायता से बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।

1952 की इस घटना के परिप्रेक्ष्य में 1999 में यूनेस्को ने 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया।

आज का दिन हर भाषा के सम्मान, बहुभाषावाद एवं बहुसांस्कृतिक समन्वय के संकल्प के प्रति स्वयं को समर्पित करने का है।

मातृभाषा मनुष्य के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मातृभाषा की जड़ों में उस भूभाग की लोकसंस्कृति होती है। इस तरह भाषा के माध्यम से संस्कृति का जतन और प्रसार भी होता है। भारतेंदु जी के शब्दों में,

‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल/ बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।’

हृदय के शूल को मिटाने के लिए हम मातृभाषा में आरंभिक शिक्षा की मांग और समर्थन सदैव करते रहे। आनंद की बात है कि करोड़ों भारतीयों की इस मांग और प्राकृतिक अधिकार को पहली बार भारत सरकार ने शिक्षानीति में सम्मिलित किया। नयी शिक्षानीति आम भारतीयों और भाषाविदों-भाषाप्रेमियों की इच्छा का दस्तावेज़ीकरण है। हम सबको इस नीति के क्रियान्वयन से अपरिमित आशाएँ हैं।

विश्वास है कि यह संकल्प दिवस, आनेवाले समय में सिद्धि दिवस के रूप में मनाया जाएगा। अपेक्षा है कि भारतीय भाषाओं के संवर्धन एवं प्रसार के लिए हम सब अखंड कार्य करते करें। सभी मित्रों को शुभकामनाएँ।

संजय भारद्वाज
अध्यक्ष, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे
?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 20: The Four Jhanas ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Meditate Like The Buddha # 20: The Four Jhanas

“Quite secluded from sense desires, secluded from unwholesome states of mind, one enters upon and dwells in the first jhana, which is accompanied by applied thought and sustained thought with happiness and bliss born of seclusion.”

The Role of Jhanas in Meditation

The Buddha attained enlightenment meditating beneath the Bodhi tree. He expounded two interrelated systems of meditation:

  • Serenity meditation (Samatha Bhavana): Develops a calm, concentrated, and unified mind.
  • Insight meditation (Vipassana Bhavana): Leads to a direct understanding of the true nature of phenomena.

A set of meditative attainments known as jhanas plays a crucial role in both systems. These heightened mental states provide a pleasant abiding in the present moment and deepen meditative absorption.

To attain the jhanas, a meditator must eliminate the five hindrances:

  • Sensual desire
  • Ill will
  • Sloth and torpor
  • Restlessness and worry
  • Doubt

The mind’s absorption in its object arises through five opposing jhana factors:

  • Applied thought
  • Sustained thought
  • Rapture
  • Happiness
  • One-pointedness

The Four Jhanas

  1. The First Jhana

“Quite secluded from sense desires, secluded from unwholesome states of mind, one enters upon and dwells in the first jhana, which is accompanied by applied thought and sustained thought with happiness and bliss born of seclusion.”

  • The initial stage of meditative absorption.
  • Marked by applied and sustained thought, leading to happiness and bliss.
  1. The Second Jhana

“With the stilling of applied and sustained thought, one enters upon and dwells in the second jhana, which has internal confidence and singleness of mind without applied thought, without sustained thought, with happiness and bliss born of concentration.”

  • A deeper state where thought subsides.
  • Inner confidence arises, and bliss is sustained by concentration.
  1. The Third Jhana

“With the fading away of happiness as well, one dwells in equanimity, and mindful and fully aware, feels bliss with the body; he enters upon and dwells in the third jhana.”

  • Happiness transitions into equanimity and deep mindfulness.
  • Bliss is experienced physically with heightened awareness.
  1. The Fourth Jhana

“With the abandoning of pleasure and pain and with the previous disappearance of joy and grief, he enters upon and dwells in the fourth jhana, which has neither-pain-nor-pleasure and has purity of mindfulness due to equanimity.”

  • A state of profound balance where pleasure and pain, joy and grief fade away.
  • Equanimity and purity of mindfulness become fully established.

Conclusion

The jhanas offer a structured path toward deeper concentration and inner peace. Progressing through these states refines the mind, leading to wisdom and ultimately, liberation from suffering.

♥ ♥ ♥ ♥

Please click on the following links to read previously published posts Meditate Like The Buddha: A Step-By-Step Guide” 👉

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 8: Midway Recap ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 9: Experience Your Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 10: Liberate the Mind ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 12: The End of suffering ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 13: A Summary of the Steps ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 14: A Lifetime’s Work ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 18: THE FOUR NOBLE TRUTHS ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

English Literature – Articles ☆ Meditate Like The Buddha # 19: THE NOBLE EIGHTFOLD PATH ☆ Mr. Jagat Singh Bisht ☆

© Jagat Singh Bisht

Laughter Yoga Master Trainer

FounderLifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसाॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब

? रचना संसार # 40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब  

 

पीपल -बरगद सूख  चुके सब,

कोयल नहीं दिखाई दे।

गौरेया पानी को तरसे,

मैना नहीं सुनाई दे।।

 *

मिटी  झोपड़ी  की यादेंं हैं,

आँखों में पल रही नमी।

पनघट ने पहचान गँवाई

होती जल की नित्य कमी।।

बिखरे रंग  प्रेम के सारे ,

रूठे वन-अमराई दे।

 *

व्याकुल है ये साँझ सुनहरी,

भोर निराशा भरी रहे ।

क्रंदन करते बच्चे प्यारे,

भीषण तृष्णा धार बहे।।

मानव निष्ठा हुई अगोचर,

छलना को गहराई दे।

 *

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब,

बदली भोली गाँव छटा।

हवा लगी शहरों की सबको,

झीलों का सौन्दर्य घटा।।

निश्छल हँसी नहीं अधरों पर,

गुल्लक टूटी पाई दे।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #267 ☆ भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 267 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  – पुलवामा के शहीद ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

(पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)

धरती माँ की गोद में, सोये वीर जवान।

कतरा- कतरा बूँद से, सींचा हिंदुस्तान।।

*

माँ के आँसू टपकते, सदा पराक्रम गान।

बच्चा-बच्चा गा रहा, अपना हिंदुस्तान।।

*

मिटते हैं जो देश पर, वे हैं सदा महान।

याद रखेगा देश भी, वीरों का बलिदान।।

*

पुलवामा की याद में, आता हिये उबाल।

बलिदानों के खून से, धरा अभी भी लाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

14/2/2025

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #249 ☆ कलयुग केवल नाम अधारा… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 249 ☆

☆ संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कहे   सनातन   सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम अधारा

*

सदियों  से  थी  आस  हमारी

राम  लला  ने  जो   स्वीकारी

धन्य  अयोध्या  नगरी   हमरी

जहाँ   बना   है   मंदिर  प्यारा

*

भजन  कीर्तन  पूजा  आरती

नित  मंदिर  में   करें   भारती

आओ हम सब मिल कर गाएं

प्रभु  राम  का  नाम  है  प्यारा

*

उत्सव   प्राण  प्रतिष्ठा  का  है

सबकी  फलित  इच्छा  का  है

शिक्षा  सबको   मिले सनातन 

आज  लगाओ  एक  ही  नारा

*

हिंदू   धर्म  सनातन   क्या   है

क्या   मानव  की  मानवता  है

देता   सनातन   उत्तर   सबके

सबसे    न्यारा    धर्म   हमारा

*

हम  सहिष्णुता के  हैं  पुजारी

नफरत,  हिंसा    हमसे   हारी

सत्य, अहिंसा, दया भाव संग

राम  लला  को  प्रेम  है  प्यारा

*

आओ   खुद  के  अंदर  झांके

औरों   के  हम  दोष  न  ताकें

मिलेगा   “संतोष”   तुम्हें   तब

जब  लोगे  प्रभु   राम   सहारा

*

कहे    सनातन    सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम   अधारा

 

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 610 ⇒ उस्तरा (R A Z O R) ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उस्तरा।)

?अभी अभी # 610 ⇒ उस्तरा (R A Z O R) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

हम जिस तरह के उस्तरे की बात कर रहे हैं, उस तरह का उस्तरा केवल बाल काटने और हजामत बनाने वाले हज्जाम के पास ही होता है। प्रचलित भाषा में हम उसे नाई कहते हैं और पढ़े लिखे लोग उसे बार्बर (barber) कहते हैं। इनके संस्थान को कभी केश कर्तनालय अथवा हेयर कटिंग सैलून कहा जाता था।

याद कीजिए दाढ़ी बनाने वाले रेजर और रेजर ब्लेड को। अशोका, टोपाज, इरेस्मिक, विल्टेज, विल्किंसन और जिलेट ब्लेड को। कितने काम की होती थी एक रेजर ब्लेड! भले ही उंगली कट जाए, लेकिन पेंसिल ब्लेड से ही छीलते थे। तब के रबर और चक्कू ही तो आज के इरेज़र (eraser) और शार्पनर (sharpner) हैं। लेकिन जो बात उस्तरे में है, वह आज के इलेक्ट्रिक शेवर में कहां।।

उस्तरा एक जमाने में नाई का प्रमुख औजार होता था। आपकी दाढ़ी यानी हजामत बनाने के पहले एक शेविंग ब्रश से आपके खुरदुरे गालों वाली दाढ़ी पर ख़ूब सारा खुशबूदार शविंग क्रीम लगा दिया जाता था। एक अच्छे भले नौजवान को, शेविंग क्रीम पोत पोतकर, सफेद झाग वाला बाबा बना दिया जाता था। उसके बाद निकलता था ब्रह्मास्त्र यानी उस्तरा। उसे पहले एक काली रबड़ की पट्टी पर फेर फेरकर तेज किया जाता था और उसके बाद तबीयत से गर्दन घुमा घुमाकर हजामत बनाई जाती थी।

अक्सर यह टू इन वन पैकेज ही होता था, यानी दाढ़ी और कटिंग एक साथ। मेरे जैसे कंजूस लोग उसी दिन घर से ही शेव करके जाते थे। फिर भी वह अपनी आदत से बाज नहीं आता था। एक बार पूछता जरूर था, शेविंग कर दूं। अच्छी नहीं बनी है।।

एक समय था जब विशेष अवसरों पर हजामत और बाल काटने की घर पहुंच सुविधा भी उपलब्ध हो जाती थी। तब यह पारिवारिक रस्म खुले आंगन में ही संपन्न की जाती थी। बार्बर महोदय अपना टूल बॉक्स लेकर घर ही पधार जाते थे। जो पेशेवर बाराती होते हैं, वे हर बारात में इसका भरपूर लाभ उठाने से नहीं चूकते।

बाल बढ़ने पर कटिंग कराना भले ही मेरी मजबूरी हो, मैं वहां कभी हजामत नहीं बनवाता। नाई का उस्तरा और अपना सर। वह बड़े प्रेम से बातों में उलझाता, पूरी फसल कब काट लेता है, कुछ पता ही नहीं चलता। पुताई जैसे दाढ़ी पर भी दो दो हाथ चलते हैं। कभी कभी बातों बातों में थोड़ा कट भी जाता है। बड़ी कड़क दाढ़ी है आपकी, एकदम खुरदुरी, सफाई पेश की जाती है। उसका कागज में आफ्टर शेव का झाग वाला साबुन समेटना मुझे पसंद नहीं।।

आजकल के उस्तरों का वह स्तर कहां ! आज के आधुनिक उस्तरो में भी रेजर ब्लेड ही लगाई जाने लगी है। अब पहले जैसी उस्तरे की धार तेज नहीं करनी पड़ती। हम जैसे पुराने लोग ही उनके ग्राहक होते हैं। नई पीढ़ी के लिए तो सर्व सुविधायुक्त मैन्स ‘ पार्लर हैं ना।

वह नाई ही क्या, जिसके हाथ में उस्तरा ना हो। एक जमाना वह भी था, जब समाज और कुटुंब के बुलावे के लिए नाई घर घर आता था, बोलकर संदेश दे जाता था। यानी बेचारा नाई मैसेंजर का काम भी करता था। मोबाइल में व्हाट्सअप संदेश तो अब आने लगे हैं। कितना छोटा शहर था तब, लेकिन कितना परिचित, घर घर संदेश पहुंचाता नाई। अब तो शादी के आमंत्रण भी pdf में आने लग गए हैं। बिना उस्तरे की पांच सौ की घर बैठे हजामत तय है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 242 ☆ राजे आमुचे शिवाजी..! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 242 – विजय साहित्य ?

☆ राजे आमुचे शिवाजी..! ☆

(अष्टाक्षरी रचना)

साल सोळाशेचे तीस

एकोणीस फेब्रुवारी

जन्मा आले शिवराय

गडावर शिवनेरी….! १

*

शिव जन्मोत्सव करू

शौर्य तेज कीर्ती गाऊ

माय जिजाऊंचे स्वत्व

रूप स्वराज्याचे पाहू..! २

*

किल्ले रायरेश्वरात

स्वराज्याची आणभाक

हर हर‌ महादेव

शूर मावळ्यांची हाक…! ३

*

असो पन्हाळीचा वेढा

वध अफ्झल खानाचा

आग्र्याहून सुटकेचा

पेच प्रसंग धैर्याचा…! ४

*

वेगवान‌ हालचाली

तंत्र गनिमी काव्याचे

युद्ध,शौर्य,प्रशिक्षण

मूर्त रूप शासकाचे…! ५

*

लढा मुघल सत्तेशी

स्वराज्याच्या विरोधका

शाही आदिल कुतुब

नष्ट गुलामीचा ठसा…! ६

*

नौदलाचे आरमार

शिस्तबद्ध संघटन

अष्ट प्रधान मंडळ

प्रजाहित प्रशासन…! ७

*

रायगडी अभिषेक

स्वराज्याचे छत्रपती

राजे आमुचे शिवाजी

हृदी जागृत महती…! ८

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ खुशाल टाळा… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆

श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ खुशाल टाळा… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆

खुशाल टाळा टाळणार पण मजला कुठवर

चुकवा रस्ते, द्या गुंगारा

असेन मी तर हर वळणावर

*

नगरीमधुनी खुशाल तुमच्या करा बहिष्कृत

वेसपारच्या वाड्यावस्त्या

उत्सुक माझे करण्या स्वागत

*

लपवाछपवी फसवाफसवी सोपी नाही

क्ष-किरणांच्या नजरेमधुनी

दगा आतला सुटणे नाही

*

गृहीत धरणे सदाकदा मज धोकादायक

प्रशांत सागर परी तळाशी

वडवानल मी खात्रीलायक

*

कृतघ्नतेने तुमच्या भरला गळवट रांजण

आज क्षमेचे शांत चांदणे

उद्या कदाचित अग्निप्रभंजन

*

सोन्याची ही तुमची लंका तुमचे भूषण

अभिमानी ही माझी फकिरी

माझ्यासाठी माझे त्रिभुवन!

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

२५. ११. २०२४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कर्तव्य… ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

? कवितेचा उत्सव  ?

☆ कर्तव्य सुश्री नीलांबरी शिर्के 

काही जळते

जगास कळते

कारण तेथून

येतो धूर

 

प्लॅस्टीक कचरा

गटारी तुंबता

तिथल्या नदिला

येतो पूर

 

 शासनाने

सर्व करावे

असाच असतो

आपला सूर

आपले कर्तव्य

विसरून आपण

 तया पासून

रहातो दूर

 

 

©  सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विवाह समुपदेशन — काळाची गरज ☆ श्री उद्धव भयवाळ

श्री उद्धव भयवाळ

? विविधा ?

☆ विवाह समुपदेशन — काळाची गरज… ☆ श्री उद्धव भयवाळ  

आपल्या भारतीय विवाह संस्थेला जागतिक पातळीवर विशेष महत्त्व प्राप्त आहे. भारतीयांमधील विवाहबंधनाला एक पवित्र नाते मानले जाते. भारतात वैवाहिक संबंध हे केवळ दोन व्यक्तीमधील न मानता दोन कुटुंबातील संबंध असे मानले जातात. पाश्‍चिमात्य देशासारखे विवाह म्हणजे एक करार ही संकल्पना भारतीय संस्कृतीमध्ये नाही. मात्र तंत्रज्ञान आणि आधुनिक समाज व्यवस्था यामुळे नातेसंबंधाचे स्वरूप दिवसेंदिवस बदलत आहे.

आज इंटरनेटच्या माध्यमातून फेसबुकवरूनही विवाह जमवला जात आहे. तसेच मॅरेज ब्युरोमार्फत ऑनलाईन स्थळे सुचवण्याचा जमाना आहे; परंतु त्याचे जसे फायदे आहेत, तसे तोटेही आहेत, हे वधू-वरांच्या पालकांनी लक्षात घ्यायला हवे. सध्या घटस्फोटाचे प्रमाण खूपच वाढत आहे. अगदी क्षुल्लक कारणांवरून, पती-पत्नीतील किरकोळ मतभेदांमुळेदेखील जोडपी न्यायालयात घटस्फोटासाठी धाव घेताना दिसतात. या पार्श्‍वभूमीवर विवाह समुपदेशन ही काळाची गरज झालेली आहे.

एखादा कौटुंबिक अगर वैवाहिक वाद जेव्हा कोर्टात जातो, तेव्हा त्याला वेगळेच स्वरूप प्राप्त होते, तो वाद खासगी राहात नाही. कोर्टासमोर पती-पत्नी एकमेकांवर आरोप-प्रत्यारोप करीत राहतात. कोर्टात त्याची नोंद होत राहते. आणि नाती इतकी दुभंगतात की, कधीही न जुळणारी बनतात.

घटस्फोटांच्या वाढत्या प्रमाणामुळे त्यास सामाजिक समस्येचे स्वरूप प्राप्त झाले आहे. वैवाहिक संबंध दृढ, आपुलकीचे आणि प्रेमाचे ठेवण्यासाठी लग्नापूर्वी विवाहपूर्व समुपदेशन आणि लग्नानंतर पुन्हा समुपदेशन याची गरज भासत आहे. लग्नाआधी एकमेकांतील न दिसलेले गुण-दोष जोडप्यांना लग्न होऊन मधुचंद्रानंतर स्पष्ट दिसू लागतात व जोडीदारास दोषांसोबत स्वीकारण्याची मनाची तयारी नसल्याने संबंध टोकास जातात, कधीही न जुळणारे बनतात. त्यामुळे जोडीदार निवडताना आणि निवडल्यानंतर विवाहपूर्व समुपदेशनसुद्धा आजच्या काळात आवश्यक झाले आहे.

विवाहपूर्व समुपदेशनामुळे जोडीदारांना विवाहापूर्वीच एकमेकांना समजून घेण्यास मदत होते व भविष्यातील गुंतागूंत अथवा मतभेदांना अगोदरच फाटा देता येतो. संस्कारातील अंतर व मतभेद यांचे प्रमाण खालच्या पातळीवर आणण्यात मदत होते. तसेच विवाहापूर्वी वधू-वर आपल्या अपेक्षा एकमेकांसमोर उघड न करता एकमेकांपासून काही अपेक्षा ठेवून असतात व त्या अपेक्षा विवाहानंतर पूर्ण झाल्या नाहीत की नात्यामधील गोडवा संपून वाद-विवाद वाढतात. विवाहपूर्व समुपदेशनामुळे जोडीदारांना एकमेकांकडून विवाहानंतरच्या अपेक्षा, आवड-निवड याबाबत उघडपणे बोलण्यास व्यासपीठ प्राप्त होते.

विवाहानंतरचे समुपदेशन तर अत्यंत महत्त्वाची भूमिका बजावते. नवरा-बायकोमधील तुटू पाहणारे नाते योग्य वेळी समुपदेशनाच्या माध्यमातून पुन्हा एकजीव होते. फॅमिली कोर्टामध्ये धाव घेण्यापूर्वीही जोडप्यांना काऊन्सेलिंगद्वारे समजवण्याचा प्रयत्न केला जातो. विवाह समुपदेशनाच्या माध्यमातून

पती-पत्नीच्या दरम्यानच्या समस्यांचा अभ्यास केला जाऊन त्याबाबत योग्य तो आणि परिणामकारक सल्ला दिला जाऊ शकतो. विवाह समुपदेशनाच्याद्वारे पती-पत्नीमधील भांडणाचे मूळ शोधून तसे प्रसंग टाळण्याबाबत मार्गदर्शन मिळू शकते. मुलांचे संगोपन आणि त्यांच्या भविष्याच्या जबाबदारीची जाणीव जोडप्यांना करून दिली जाते. त्यामुळेही जोडप्यांना घटस्फोट घेण्यापासून परावृत्त करता येणे शक्‍य होते. विवाहपूर्व समुपदेशनाद्वारे योग्य मार्गदर्शनामुळे मानसिक स्थिती, स्वभाव लक्षात घेऊन योग्य सल्ला दिला जाऊ शकतो. तसेच लग्नानंतरच्या समुपदेशनाने दोन कुटुंबांतील तुटणारे रेशीमबंध पुन्हा साधण्याचे पवित्र कार्य होते.

त्यामुळेच विवाह समुपदेशन ही काळाची गरज आहे, यात शंका नाही.

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© श्री उद्धव भयवाळ

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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