ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (13 जनवरी से 19 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (13 जनवरी से 19 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। 14 जनवरी से खरमास समाप्त हो जाएगा। शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे और इस शुभ समयावधि में

मैं पंडित अनिल पांडे आपको 13 जनवरी से 19 जनवरी 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा। मेरा दावा है कि इस साप्ताहिक राशिफल को अगर आप लग्न राशि देखेंगे तो 80% से ज्यादा राशिफल सही मिलेगा। अगर आप इसको चंद्र राशि देखेंगे तो भी 60% से ऊपर बातें सही होगी। अगर आपको यह राशिफल 80% से ऊपर सही नहीं मिलता है तो आप अपनी जन्म तारीख, समय और स्थान मेरे मोबाइल नंबर 8959594400 पर भेज दें। मैं आपको आपकी लग्न राशि बता दूंगा।

इस सप्ताह 14 जनवरी के 3:36 दिन से सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन के कारण विभिन्न राशियों पर पड़ने वाले प्रभाव को हम राशिफल में बताएंगे। इस सप्ताह वक्री मंगल कर्क राशि में, बुध धनु राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा वक्री राहु मीन राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। धन आने की उम्मीद है। भाग्य सामान्य रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। मकर के सूर्य से आपको कम लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 19 जनवरी को आपको कोई भी कार्य वड़ी सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रातः काल स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर सूर्य मंत्रों के साथ सूर्य भगवान को अर्ध्य दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

 इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाग्य से आपको कम सहयोग प्राप्त होगा। धन आने में कुछ बाधू रहेगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। 16 जनवरी के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 जनवरी आपके लिए लाभदायक है।

सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। धन आने की आशा है। धन के खर्चे में कुछ कमी हो सकती है। कार्यालय में आपका विवाद हो सकता है। व्यापार उत्तम चलेगा। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 19 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु जीवनसाथी के साथ में समस्या हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य के स्थान पर आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए। इस सप्ताह भाग्य आपका साथ नहीं देगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 के दोपहर तक का समय विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए शुभ है। 13 जनवरी को आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आप विवाहित हैं तो विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। कार्यालय में आपका काम धाम ठीक रहेगा। भाग्य से कम मदद मिलेगी। प्रयास करने पर आप शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। आपको अपने संतान से सहयोग मिल सकता है। छात्रों की पढ़ाई सामान्य चलेगी। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 16 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए फलदायक है। 14, 15 और 16 की दोपहर तक का समय सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गरीबों के बीच में गुड़ का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी स्थिति उत्तम रहेगी। भाग्य सामान्य साथ देगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। संतान से सहयोग कम मिलेगा। शत्रु शांत रहेंगे। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माता-पिता जी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। लॉटरी इत्यादि में धन न लगाएं। इस सप्ताह आपके लिए तेरह और 19 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। 16 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 17 और 18 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 जनवरी के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने की उम्मीद है। समाज में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। संतान से आपको कोई सहयोग नहीं मिलेगा। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। उस पर अपना नियंत्रण रखें। इस सप्ताह आपके लिए 16 के दोपहर के बाद से 17 और 18 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए फलदायक है। 13 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार बढ़ेगा। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी आ सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं होगा। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए तेरह और 19 जनवरी लाभदायक है। 14, 15 और 16 जनवरी के दोपहर तक का समय आपके लिए सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति भी होगी। कचहरी के कार्यों में सावधानी बढ़ते हैं लंबी यात्रा का योग बन सकता है भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा आपकी संतान से आपको कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक-ठाक हो सकता है। कचहरी के कार्यों में आप सावधान रहें। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के प्रस्ताव सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि संभव है। शत्रुओं को आप इस सप्ताह प्रयास करने पर समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 16 तारीख के दोपहर के बाद से 17 और 18 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दोनों में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पास थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने और सावधानी बरतने पर सफलता मिल सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके शत्रु शांत रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 19 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए हित वर्धक हैं। 16, 17 और 18 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ शब्दांचे गाठोडे… ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे)

 

? कवितेचा उत्सव ?

शब्दांचे गाठोडे☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

शब्दांचे गाठोडे, घेऊन फिरतो

शिदोरी ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्दांनी बांधतो, शब्दांनी सांधतो

आधार ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्द व्यवहारी, नित्य देतो घेतो

तारण ठरतो, शब्द माझा

 *

शब्द भांडताना, सीमा ओलांडतो

बोचरा ठरतो, शब्द माझा

 *

तरी काळजीने, शब्दांना मांडतो

ठसका ठरतो, शब्द माझा

कवी : म. ना. देशपांडे

(होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)

+९१ ८९७५३ १२०५९ 

https://www.facebook.com/majhyaoli/ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “वाद, वितंड आणि चर्चा…” ☆ श्री जगदीश काबरे ☆

श्री जगदीश काबरे

☆ “वाद, वितंड आणि चर्चा…☆ श्री जगदीश काबरे ☆

जगातील कोणत्याही दोन व्यक्ती या कधीच पूर्णपणे एकमताच्या असू शकत नाहीत–अगदी नवराबायकोही कितीही एकमेकांच्या जवळ असले तरीसुद्धा त्यांच्यात मतभिन्नता असतेच. मतभिन्नता असणे हे खरे तर जिवंत मनाचे लक्षण आहे. त्यामुळे दोन विचारी माणसे एकमेकात वादसंवाद करू शकतात; तर दोन अविचारी माणसे मात्र फक्त वितंडवाद घालू शकतात. पण विचारी माणसाचा अहं जेव्हा त्याच्या बुद्धीप्रामण्यावर हवी होतो तेव्हा मात्र समोरच्या माणसाने त्याची एखादी क्षुल्लक चूक दाखवली तरी त्याचा अहं दुखावतो आणि मग तो चूक कबूल करण्याच्या ऐवजी त्या चुकीचे समर्थन करायचा प्रयत्न करताना बेताल होत जातो. ‘समोरचा माणूस आपल्या चुका काढतो म्हणजे काय!’, असा अहंकार त्याला बेताल होण्यास भाग पाडतो. खरे तर असे लहानसहान वाद तात्पुरत्या स्वरूपातील असायला हवेत. हे वाद कानाआड करून पुन्हा नव्याने एकमेकांशी नितळ मनाने आपण संवाद साधायला हवा. पण आपल्या मनात मात्र त्या माणसाविषयी आकस ठेवणारा दृष्टिकोन निर्माण होतो आणि भविष्यात त्याच्याशी वागताना याच चष्म्याने त्याच्याकडे बघत आपण बोलत राहतो.

म्हणून मला असे वाटते की, निदान चळवळीतील कार्यकर्त्यांनी तरी अहंकाराला आपल्या बुद्धीप्रामण्यावर विजय मिळवून देऊ नये. जसे नवराबायकोमध्ये लहानसहान वाद होतात म्हणून ते लगेच घटस्फोटावर जात नाहीत, तसेच चळवळीच्या कार्यकर्त्यांनीसुद्धा आपसातील लहानसहान वादांमुळे एकमेकांना शत्रू न मानता आणि मनभेद न करता मतभेद खुल्या मनाने स्वीकारले पाहिजेत. म्हणूनच म्हटले आहे की, ‘वादे वादे जाय ते तत्त्वबोध:’ पण हे केव्हा शक्य होईल, तर वादांकडे आपण मन प्रगल्भ करणारी चर्चा म्हणून पाहू तेव्हाच. पण वादाकडे जर आपण आपला अपमान करणारे शब्द समजायला लागू तर मात्र वाद हे चर्चा न ठरता हारजीतीच्या खेळावर उतरतात आणि त्यांचे वितंडात रूपांतर होते. ज्या वेळेला माणसाला प्रश्न पडत नाहीत, शंका निर्माण होत नाहीत आणि फक्त आदेश पाळणे, आज्ञाधारकपणा हा गुण समजला जातो त्या वेळेला मात्र कुठलाही वाद होण्याची शक्यता नसते. कारण अशी माणसे फक्त यंत्रमानवासारखी असंवेदनाशील सांगकामे असतात. पण विचारी माणसे संवेदनाशील असल्यामुळे सतत प्रश्न विचारत राहतात, शंका उपस्थित करतात म्हणून त्यांच्यात सतत वादविवाद होत असतात. हे वादविवाद माणसाला नवीन काही शिकण्यास आणि प्रगत होण्यास मदत करणारे असायला हवेत, असे वाटत असेल तर अहंकाराला आपल्या काबूत ठेवायला हवे. अन्यथा आज्ञाधारक मेंढरू आणि आपण यात फरक तो काय?

© श्री जगदीश काबरे

मो ९९२०१९७६८०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ वेळीच मन मोकळं करा … ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

सौ. वृंदा गंभीर

? जीवनरंग ?

☆ वेळीच मन मोकळं करा…  ☆ सौ. वृंदा गंभीर

दादा वहिनी दोघं आनंदात राहत होते. मुलं शिक्षण घेऊन बाहेर पडले होते. त्यांचा संसार आनंदात सुरू होता.

दादा फार शिस्तप्रिय तर वहिनी प्रेमळ मायाळू नाती सांभाळणारी माणुसकी जपणारी……

दादा क्लासवन ऑफिसर म्हणून रिटायर्ड झालेले तर वहिनी एक आदर्श शिक्षिका म्हणून रिटायर्ड झाल्या…….

” नोकरीमुळे सतत बदल्या.. बाहेर राहणं.. मुलांच्या शिक्षणासाठी कधी वेगळं राहणं, असचं आयुष्य गेलेलं…  आता दोघेही रिटायर्ड झाले उर्वरित आयुष्य एकमेकांना द्यायचं एकमेकांच्या सहवासात राहायचं असं ठरवलं… म्हणून मुलांकडे जाणं टाळलं दादांनी…

मस्त मजेत दिवस चालले होते त्यांचे तीर्थ यात्रा, पर्यटन स्थळांना भेट देऊन झाली…

एक दिवस दादांच्या छातीत दुखायला लागले सीमावहिनीला काहीच सुचेना त्यांनी मुलांना कॉल केला. मुलं म्हणाली “ आम्ही कुणाला तरी पाठवतो हॉस्पिटल मध्ये घेऊन जा आम्हाला वेळ नाही. ”

सीमावहिनीला वाईट वाटलं, त्यांनी त्यांच्या विद्यार्थ्याला कॉल केला. तो लगेच आला आणि दादांना हॉस्पिटल मध्ये घेऊन गेला…

दादांची इंजिओग्राफी केली रिपोर्ट मध्ये ब्लॉकेज निघाले त्यांना ताबडतोब आंजिओप्लास्टी करायला सांगितली… वहिनीने मुलांना सांगितलं व डॉक्टरांना ऑपरेशन करा सांगितलं. ऑपरेशन सक्सेस झालं…

दादांची पुढील ट्रीटमेंट सुरू केली. 8 ते 10 दिवसात दादा पूर्वीप्रमाणे झाले.

दादांना घरी आणलं पाहुणे, मित्र मंडळी, ऑफिस मधील स्टाफ वहिनींचे विद्यार्थी सगळे येऊन गेले 

मुलं काही भेटायला आली नाही.

दादांचं मन उदास झालं होतं. ज्या मुलांसाठी जीवाचा आटापिटा करून त्यांना वाढवलं शिकवलं मोठं केलं त्यांना आज बाबांसाठी वेळ नव्हता. सीमावहिनी बोलायच्या “ आहो, मुलं कामात असतील नाहीतर आले असते… ” मनाची समजूत काढत होत्या.

शेवटी न राहवून वहिनींनी समीरला कॉल केला…

वहिनी ” हॅल्लो समीर, आई बोलतेय “

समीर “. हा, आई बोल काय म्हणतेस ? “

वहिनी ” अरे बाबांना घरी आणलंय. तू भेटून जा.. त्यांना बर वाटेल तू आला तर…”

समीर ” आई यायचं होतं ग पण कामच खूप आहे. सुट्टी मिळत नाही.

वहिनी ” ठीक आहे एकदा वेळ मिळेल तेंव्हा येऊन जा. ”

समीरने ‘हो’ म्हणून फोन ठेवला…..

वहिनी आता कबीरला फोन करतात…

“ हॅल्लो कबीर मी आई बोलतेय…”

कबीर “. हा आई बोल…”

वहिनी, ” बाबांना घरी आणलंय.. तू आला नाही भेटायला…”

कबीर, 

“आई खरचं वेळ नाही ग. खूप वाटतं यावं पण काय करू ? फार आठवण येते बाबांची तरी नाही येऊ शकत मी…”

आई, “ बर कबीर ठेवते मी फोन “

कबीर, “ सॉरी आई…”

दादा वहिनी विचार करत बसतात काय कमी केलं आपण, असं का वागतात ही मुलं?

एक दिवस समिरचा मित्र येतो घरी. दादा वहिनींना फार आनंद होतो.

दादा म्हणतात “ अरे या वयात मुलांचा आधार हवा असतो. पण, एकही मुलगा जवळ नाही.. वाईट वाटतं, , , , , , , मुलांना सगळं सुख मिळावं, त्यांचं चांगलं व्हावं म्हणून आम्ही एकमेकांना सोडून राहिलो आज मुलं आम्हाला सोडून दूर गेली. ”

समीरचा मित्र म्हणतो “ काका त्यांना काम असते. शेवटी सरकारी नोकरी आणि प्रायव्हेट नोकरीमध्ये फरक असतो, जबाबदारी असते मोठी.. ती पार पाडावी लागते, नाहीतर घरचा रस्ता दाखवला जातो.

या धकाधकीच्या जीवनात वेळ उरला कुठे जेमतेम पाच ते सहा तास असतात घरी आराम करायला… सुट्ट्या तर बिलकुल नाही. या कॉर्पोरेट च्या जगात जीवनही कॉर्पोरेट होऊन गेलं…”

दादांना वाईट वाटतं…

तो थोडं शांत बसून बोलायला लागतो… ” काका समीर थोडा रागात आहे त्याने कधी बोलून नाही दाखवलं तुम्हाला पण त्याच्या अपेक्षा वेगळ्या होत्या…… त्याला स्पोर्टस मध्ये करियर करायचं होतं… तुम्ही करू दिलं नाही. तुम्ही कॉम्प्युटर इंजिनियर हो म्हणाले त्याची इच्छा नसतांना तो इंजिनियर झाला…

कॉलेजमध्ये असताना त्याला एक मुलगी आवडायची खूप प्रेम करायचा तिच्यावर. तुम्ही लग्नाला होकार दिला नाही आणि नात्यातली मुलगी पसंद केली आणि लग्न केलं त्याच्या मनाविरुद्ध.

तो अजूनही मनात राग धरून आहे… तुम्ही चांगलंच केलं त्याचं करियर घडवलं…

वेळेत मन मोकळं करता आलं नाही, , , , , त्याच्यासाठी काय योग्य अयोग्य हे सांगितलं असतं तर कदाचित हा दुरावा नसता तुमच्यात….. ”

“ बर, मग कबीरचं काय ? त्याचं तर सगळं मनासारखं आहे तो का दूर पळतोय…”

“काका, कबीरचा तुमच्यात जीव होता. त्याला तुम्ही जवळ असावे असं वाटतं होतं. बालपण होतं वडील जवळ नव्हते… तो शिकला वडिलांशिवाय रहायला… मान्य आहे तुमचा वेळ देता येत नव्हता, पण तुम्ही त्यावेळी त्याला समजून सांगितलं असतं मनातील गैरसमज वेळीच दूर केले असते तर?”

…….

म्हणून मन मोकळं वेळेतच करता आलं पाहिजे म्हणजे बालमनावर परिणाम होऊन दुरावा निर्माण होतं नाही.

दादा वहिनी शांत होते नोकरीमुळे मुलांना वेळ देता आला नाही हे खरं आहे पण, हे सगळं त्यांच्यासाठीच केलं ना… आज मुलांना दादा वहिनीच्या प्रॉपर्टीची काही गरज नाही आणि त्यांच्यासाठी मुलांकडे वेळ आणि… अपुरा संवाद दुरावा निर्माण करतो हेच खरं…

© सौ. वृंदा पंकज गंभीर (दत्तकन्या)

न-हे, पुणे. – मो न. 8799843148

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ ज्याचा त्याचा देव्हारा ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? मनमंजुषेतून ?

ज्याचा त्याचा देव्हारा ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

परवा एका उद्योजक मित्राच्या, तुम्ही बरोबर वाचलेत, उद्योजक मित्राच्या बंगल्याच्या वास्तुशांतीला जाण्याचा योग आला ! उद्योगपती मित्र असायला मी कोणी नेता थोडाच आहे ? असो ! तर त्याने दिलेले त्याच्या बंगल्याचे “ध्यान” हे नांव वाचून, खाली घसरणारी ढगळ हाप पॅन्ट, त्यातून अर्धवट बाहेर आलेला मळलेला शर्ट आणि नाकातून गळणारे मोती, असे शाळेत असतांनाचे त्याचे त्या वेळचे ध्यान डोळ्यासमोर आले आणि मी मनांतल्या मनांत हसलो ! पण पठ्याने पुढे मोठ्या मेहनतीने पैसा कमवला आणि त्याच्या बरोबर थोडं फार नांव !

बंगल्यात शिरल्या शिरल्या उजव्या हाताला एक मोठ देवघर होतं. अनेक देवादिकांच्या मोठ मोठ्या तसबीरींनी त्याची भिंत भरून गेली होती, पण माझं लक्ष वेधून घेतलं ते तिथल्या जवळ जवळ माझ्या उंचीच्या शिसवी देव्हाऱ्याने ! मित्राची आई त्या प्रचंड देव्हाऱ्या समोर आतील असंख्य देवांच्या लहान मोठ्या मूर्तिची, स्वतः एका चौरंगावर बसून पूजा करत होती ! मला थोडं आश्चर्यच वाटलं, कारण माझा मित्र पक्का नास्तिक आहे हे मला ठाऊक होतं. म्हणून तो देव्हारा बघून मी त्याला म्हटलं, “अरे तू एवढा देव देव कधी पासून करायला लागलास ?” “कोण म्हणत ?” “अरे मग हे एवढ मोठ देवघर त्यात तो भला मोठा देव्हारा, हे कशाचं लक्षण आहे ?” “तुला खोटं वाटेल, पण आजतागायत मी आपणहून या देवघरात पाऊल ठेवून त्यांच्या पुढे कधीच हात जोडलेले नाहीत किंवा त्यांच्याकडे काहीच मागितलेले नाही ! माझा माझ्या मनगटावर पूर्ण भरोसा आहे !” “मग हे सगळं…. ” “आई साठी ! त्या देव्हाऱ्यात अनेक देव देवता आहेत, पण मी त्या देव्हाऱ्या समोर डोळे मिटून जेव्हा केव्हा उभा राहतो तेव्हा मला फक्त आणि फक्त त्यात माझ्या आईची मूर्ती दिसते, जिला मी मनोमन नमस्कार करतो, जी माझ्यासाठी सार काही आहे !” त्याच्या त्या उत्तराने मी अंतर्मुख झालो हे नक्की!

मध्यन्तरी बऱ्याच वर्षांनी सुट्टीत गावाला गेलो होतो. एकदा सकाळी गावातून फिरता फिरता, माझ्या लहानपणीच्या शाळेवरून जायची वेळ आली. तेवढ्यात मधल्या सुट्टीची घंटा झाली आणि सगळी चिल्ली पिल्ली आपापल्याला वर्गातून शाळेच्या अंगणात, कोणी खेळायला, कोणी डबा खायला बाहेर उधळली ! मी गेट समोर उभा राहून माझे बालपण आठवत उभा राहिलो ! आताही शाळेत डोळ्यात भरेल असा कुठलाच बदल झालेला जाणवला नाही मला ! नाही म्हणायला, शाळेच्या अंगणातलं पारावरच एक छोटंस मंदिर मला कुठे दिसेना. त्या क्षणी मला काय झालं, ते माझं मला कळलच नाही, मी बेधडक शाळेत शिरून हेडमास्टरची रूम गाठली. तर त्यांच्या त्या खुर्चीत एक चाळीशीची स्मार्ट मॅडम बसली होती.

ओळख पाळख वगैरे झाल्यावर मी त्यांना म्हटलं “माझ्या आठवणी प्रमाणे आपल्या शाळेच्या अंगणात पारावर एक छोटस मंदिर होतं, ते दिसलं नाही कुठे ?” “त्याच काय आहे ना जोशी साहेब, ते मंदिर ना मी इथे बदली होऊन आल्यावर फक्त मागच्या अंगणात शिफ्ट केलंय !” “ओके ! मॅडम, मी आपल्या शाळेचा माजी विद्यार्थी असलो तरी मला विचारायचा तसा अधिकार नाही, पण आपल्याला एक प्रश्न विचारला तर राग नाही नां येणार ?” “अवश्य विचारा जोशी साहेब, त्यात राग कसला !” “नाही म्हणजे मला तुम्ही तसं करायच कारण कळेल का ?” “जोशी साहेब मी जेंव्हा इथे चार्ज घेतला, तेंव्हा पहिल्याच दिवशी सगळ्या शिक्षकांना सांगितलं, की मी मंदिर मागे शिफ्ट करणार आहे आणि त्या वेळेस सुद्धा आपल्याला पडलेला प्रश्नच बहुतेकानी मला विचारला !” “मग तुम्ही त्यांना काय सांगितलंत ?” “मी त्यांना म्हणाले, माझी देवावर श्रद्धा आहे पण मी अंधश्रद्ध नाही किंवा त्याचे अवडंबर पण माजवत नाही ! मला असं वाटतं की आज पासून तुम्ही आपापला वर्ग, हाच एक ‘देव्हारा’ मानून, त्यात असलेल्या प्रत्येक विद्यार्थीरुपी नाजूक, ठिसूळ दगडातून सगळ्यांना हवी हवीशी सुबक छान, मूर्ती घडवायच अवघड काम करायच आहे ! तीच त्या प्रभूची सेवा होईल असं मला वाटतं. माझं म्हणणं त्यांना पटलं आणि त्यांनी त्या प्रमाणे वागून, कामं करून गेली सतत पाच वर्ष ‘तालुक्यातील उत्कृष्ट शाळा’ हे बक्षीस आपल्या शाळेला मिळवून दिलं आहे जोशी साहेब !” मॅडमच ते बोलणं ऐकून काय बोलावे ते मला कळेना ! मी त्यांना फक्त नमस्कार केला आणि शाळे बाहेर पडलो ! घरी जातांना, त्या चिमुकल्यांचा चिवचिवाट बराच वेळ कानावर पडत होता !

डिसेंबरचे कडाक्याच्या थंडीचे दिवस होते. कशी कुणास ठाऊक, पण पहाटे पाच वाजताच जाग आली आणि या अशा थंडीत मस्त आल्याचा, गरमा गरम चहा प्यायची इच्छा झाली ! बायकोला उठवायचं जीवावर आलं, म्हटलं बघूया स्टेशनं पर्यंत जाऊन कुठली टपरी उघडी आहे का. कपडे करून खाली उतरलो. रस्त्यावर तसा शुकशुकाट होता. एरवी भुकणारी कुत्री पण दुकानांच्या वळचणीला गप गुमान झोपली होती. लांबून एका रस्त्यावरच्या चहाच्या टपरीचा दिवा पेटलेला दिसला आणि माझा जीव जणू चहात पडला म्हणा नां ! जवळ जाऊन बघितलं तर तो सामानाची मांडा मांडच करत होता. “अरे एक कडक स्पेशल मिळेल का ?” “साहेब पाच मिनिट बसा. आत्ताच धंदा खोलतोय बघा. ” मी बरं म्हणून त्याच्या टपरीच्या बाकडयावर बसलो. थोडयाच वेळात त्याने रोजच्या सवयी प्रमाणे, चहा उकळल्याचा अंदाज घेवून, तो चहा दुसऱ्या भांड्यात एका फडक्याने गाळला. आता फक्त काही क्षणांचाच अवधी आणि ते पृथ्वीवरचे अमृत माझ्या ओठी लागणार होतं ! त्याने मग दोन ग्लास घेवून एका ग्लासात पाणी ओतलं आणि एका ग्लासात चहा. ते पाहून मी आधाशा सारखा हात पुढे केला, पण त्याने माझ्याकडे सपशेल दुर्लक्ष करून, ते दोन ग्लास आपल्या हातात घेतले आणि मेन रोड वर जाऊन काहीतरी मंत्र म्हणून, पहिल्यांदा पाण्याचा आणि नंतर चहाचा ग्लास असे दोन्ही रस्त्यावर ओतले ! मला काहीच कळेना ! इथे त्याच पहिल बोहनीच गिऱ्हाईक चहासाठी तळमळतय आणि त्याने तो चहाचा पहिला ग्लास चक्क रस्त्यावर ओतला ! मी काही विचारायच्या आतच त्याने दुसरा चहाचा ग्लास भरून माझ्या पुढे केला. मी चहा पिता पिता त्याला म्हटलं “अरे तो ताजा चहा आणि पाणी रस्त्यावर कशाला टाकलंस?” “साहेब मी रोजचा पहिला चहा देवाला अर्पण करतो बघा!” “देवाला ? अरे पण मला त्या मेन रोडवर तुझा कुठला मुदलातला ‘देव्हाराच’ दिसत नाही आणि तुला त्यातला देव दिसून त्याला तू तुझा पहिला चहा अर्पण पण केलास ! खरच कमाल आहे तुझी !” “साहेब कमाल वगैरे काही नाही. माझ्या बापाने सुरु केलेली ही टपरी आता मी चालवतोय, पण त्याने शिकवल्या प्रमाणे हा रोजचा रीती रिवाज मी न चुकता पाळतोय बघा ! साहेब शेवटी देव सगळीकडे असतो असं म्हणतातच नां ? प्रश्न फक्त श्रद्धेचा असतो, खरं का नाही ?” त्याच्या या प्रश्नावर मी फक्त हसून मान डोलावली आणि त्याला पैसे देऊन सकाळी सकाळी मिळालेल्या सुविचाराचा विचार करत घरचा रस्ता पकडला !

मंडळी, शेवटी कोणाचा ‘देव्हारा’ कुठे असेल आणि त्यात तो किंवा ती कुठल्या देव देवतांची पूजा अर्चा करत असतील, हे सांगणे तसे कठीणच ! शेवटी, तो चहावाला मला म्हणाला तसं, प्रश्न शेवटी श्रद्धेचा असतो, हेच त्रिकाल बाधित सत्य, नाही का ?

© प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ खोलवर विचार करा – मूळ इंग्रजी लेखक : अनामिक ☆ मराठी अनुवाद व प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे ☆

श्री मेघःशाम सोनवणे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ खोलवर विचार करा – मूळ इंग्रजी लेखक : अनामिक ☆ मराठी अनुवाद व प्रस्तुती – श्री मेघःशाम सोनवणे

… तुमचा जीवनरक्षक कोण आहे??

अनीता अल्वारेज, अमेरिकेतील एक व्यावसायिक जलतरणपटू. तीने जागतिक अजिंक्यपद स्पर्धेदरम्यान स्पर्धक म्हणून इतर स्पर्धकांसह जलतरण तलावात उडी घेतली आणि उडी मारताच ती पाण्याखाली गेल्यावर अचानक बेशुद्ध पडली.

जिथे संपूर्ण जमाव फक्त विजय आणि पराभवाचा विचार करत होता, तिथे अनिता नियोजित वेळेपेक्षा जास्त काळ पाण्याखाली असल्याचे तिच्या प्रशिक्षक अँड्रिया यांच्या लक्षात आले.

जगज्जेतेपदाची स्पर्धा सुरू आहे हे सर्व काही क्षणात अँड्रिया विसरली व एक क्षणही वाया न घालवता आंद्रियाने स्पर्धा सुरू असतांनाही जलतरण तलावात उडी घेतली. तेथे असलेल्या हजारो लोकांच्या काही लक्षात येईपर्यंत अँड्रिया अनितासोबत पाण्याखाली होती.

पाण्याखाली गेल्यावर अँड्रियाने अनिताला स्विमिंग पूलाच्या तळाशी पाण्याखाली बेशुद्ध अवस्थेत पडलेले पाहिले. अशा स्थितीत पाण्याखालून ना हात पाय हलवून इशारा करता येतो, ना मदतीसाठी कुणाला आवाज देणे शक्य होते. अशा परिस्थितीत अँड्रियाने बेशुद्ध अवस्थेतील अनिताला बाहेर काढल्याचे बघून हजारो लोक अक्षरशः सुन्न झाले. आपल्या समयसुचकतेमुळे अँड्रियाने अनिताचा जीव वाचवला.

ही घटना आपल्या आयुष्याशी जोडून बघता आपल्या सर्वांच्या आयुष्यातील एक मोठा प्रश्न सोडवला असल्याचे जाणवेल !

किती माणसं आपल्या आयुष्याशी जोडलेली असतात हे आपल्या लक्षातही येत नाही, आयुष्यात आपल्याला कितीतरी जण दररोज भेटत असतात, पण मनुष्य प्रत्येकाला आपल्या मनातील गोष्ट काही उकल करून सांगू शकत नाही. आपल्या खऱ्याखुऱ्या आयुष्यातही तो कुठेनाकुठेतरी बुडत असतो, कोणत्या ना कोणत्या समस्येला तो सामोरा जात असतो, मनावर कसलातरी दबाव घेऊन तो आयुष्यात अस्वस्थ होत असतो, पण कुणाला ते सांगू शकत नाही, किंवा कुणाला सांगण्याइतपत कुणी जवळचं उपलब्ध नसतं.

जेव्हा माणूस आपल्या वेदना, त्रास कोणाला सांगू शकत नाही, तेव्हा मानसिक ताण इतका वाढतो की तो स्वतःला सगळ्या जगापासून, सगळ्यांच्या नजरेपासून दूर, एकांतात, स्वतः ला चार भिंतीत कैद करून घेतो. ही अशी नाजूक वेळ असते जेव्हा माणूस आतल्याआत बुडायला लागतो, त्याची इच्छा संपलेली असते, सहनशीलतेचा अंत झालेला असतो. ना कोणाशी बोलणे, ना कोणाला भेटणे. ही मानसिक परिस्थिती मानवासाठी सर्वात धोकादायक असते.

जेव्हा माणूस त्याच्या अशा बुडण्याच्या अवस्थेतून जात असतो, तेव्हा इतर सर्व प्रेक्षक ज्याच्या त्याच्या आयुष्यात व्यस्त असतात. हा माणूस मोठ्या संकटात सापडला आहे याची कोणालाच पर्वा रहात नाही. एखादी व्यक्ती काही दिवस गायब झाली तरी काही काळ लोकांच्या ते लक्षातही येत नाही.

अचानक काही घटना घडली तेव्हा लोक जमले तर त्याच्याविषयी विचार करतात, की हा पूर्वी किती बोलायचा, आता तो बदलला आहे किंवा त्याला गर्व झाला आहे की आता तो मोठा माणूस झाला आहे. तो बोलत नाही तर जाऊ द्या, आपल्याला काय करायचं! किंवा त्यांना असं वाटतं की जर तो आपल्याला आता दिसत नाही तर तो त्याच्या आयुष्यात आनंदी आहे, म्हणून तो आपल्याला दिसत नाही.

अनिता एक निष्णात व्यावसायिक जलतरणपटू असूनही ती बुडू शकते तर कोणीही त्यांच्या आयुष्यातील वाईट काळातून जाऊ शकतो, हे समजून घेणे आवश्यक आहे. पण त्या इतर लोकांशिवाय एकादी अशी व्यक्ती असेल जी तुमच्या मनाचा कल, मनःस्थिती ताबडतोब ओळखू शकेल, तिला न सांगता सर्व काही आपसूकच कळेल, तो तुमच्या आयुष्यातील प्रत्येक पैलूवर नेहमी नजर ठेवेल, थोडासा त्रास झाला तरी तो येऊन तुम्हाला तुमच्या समस्या विचारेल.

तुम्ही तुमची वागणूक ओळखा, स्वतःला प्रोत्साहन द्या, तुम्ही स्वतः ला सकारात्मक बनवा आणि अँड्रियासारखे प्रशिक्षक बनून तुम्ही दूसऱ्याचा जीव वाचवा.

आपल्या सर्वांनाच अशा प्रशिक्षकाची खरी गरज आहे… असा प्रशिक्षक कोणीही असू शकतो. तुमचा भाऊ, बहीण, आई, वडील, तुमचे कोणी मित्र, कोणी तुमचे हितचिंतक, कोणी नातेवाईक, कोणीही, जो न सांगता तुमच्या भावना, स्वभावातील बदल ओळखून लगेच सकारात्मक कारवाई करू शकेल.

खोलवर विचार करा व वेळीच शोधा, जीवनातील तुमचा जीवन प्रशिक्षक कोण आहे ते….

 

मूळ इंग्रजी लेखक- अनामिक.

मराठी अनुवाद – मेघःशाम सोनवणे

मो 9325927222

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ “तर समजून घ्यावे की…” – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ अंजली दिलीप गोखले ☆

सौ अंजली दिलीप गोखले

 

📚 वाचतांना वेचलेले 📚

☆ “तर समजून घ्यावे की…” – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ अंजली दिलीप गोखले ☆

वटारलेले डोळे पाहून दबणारी बायकोच, आता डोळे वटारून पाहू लागली की समजून घ्यावे कि, ” इहलोकातील आपले अवतारकार्य शेवटच्या टप्यात आहे. “

कमावत्या मुलांच्या आवाजात कडकपणा आला; तर समजून घ्यावे कि, आपण आता कौटूंबीक जबाबदारीतून हळूहळू अंग काढून घ्यावे.

 बसल्या बसल्या ह्या शेंगातील दाणे काढा, असे जेव्हा सुनबाईने म्हटले तर समजून घ्यावे की, बॉस नावाचे पद यांनी खारीज केले आहे.

वय वर्ष 60 नंतर कुणी आपल्याशी चांगले वागेल ही अपेक्षा ठेवु नका. भाऊबंदकीचे नाते कुटूंबाच्या फाळणी बरोबरच संपुष्टात आले, नातेवाईक देणे / घेणे वादातून संपले,

पत्नीचा ओढा नकळत न टिकणाऱ्या मुलांच्या नात्याकडे वळू लागला.

*

कार्यप्रसंगात नातेवाईक भेटतात, केवळ रामराम होतो, फारसी चौकशी होत नाही, तुम्ही मात्र मनात उजळणी करत असता, ह्याला मी किती मदत केली होती…

सगळे कटू अनुभव जमा झाले असतील, कुणी नाही कुणाचे हा अनुभव गर्द झाला असेल.

नाती बिघडली, सबंध बिघडले, वाट्याला एकटेपण आले, आता कुणाचे फोन येत नाहीत, दुखावलेले मन कुणाला फोन कर असेही म्हणत नाही.

तरीपण एक नातं अजून टिकलं आहे, एक फोन चालु आहे, ते नातं मुलीचं.

तितक्यात मुलीचा फोन येतो, ती विचारते— ” पप्पा गेले होते का दवाखान्यात ? औषधं घेतलीत का ? काय म्हणाले डॉक्टर ? जेवण झालं काय ?” 

नाना प्रश्न काळजीचे, आस्थेचं विचारणं, जिव्हाळ्याचे हेच एकमेव नात उरतं…

थोडा पश्चातापही होत असतो, मुलींसाठी काहीतरी करण्यात मी कमी पडलो, त्यांच्यासाठी काहीतरी करायचे राहून गेले, कसे होणार त्यांचे ?

लोक मुलगा झाला कि, स्वतःला भाग्यवंत समजतात, मला असे वाटते, ज्यांना मुली आहेत ते खरे भाग्यवंत होय.

एरवी दोन तीन मुले जेव्हा वडिलांना कुणाकडे ठेवावे, यावरुन भांडत असतात तेव्हा झालेली चूक सुधारण्या पलीकडे गेलेली असते. तेव्हा मुलगी म्हणते,

“बाबा काळजी करू नका मी आहे ना !!…. “

लेखक : अज्ञात 

संग्रहिका : सौ. अंजली दिलीप गोखले 

मोबाईल नंबर 8482939011

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ खरं सुख … – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री ए. के. मराठे ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? खरं सुख … – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री ए. के. मराठे

सुश्री नीलांबरी शिर्के

( १ )

एकमेकांची सोबत

हेच असतं खरं सुख

सोबत असल्यावर

सहज पेलवतं दुःख

*

जन्म गाठ बांधली की

बांधलकी येते आपसूक

विश्वासाची उशाला मांडी

उघड्यावर मिळे झोपसुख

*

 खडतर कितीही असो वाट

हातात साथ देणारा हात

चालण्याची उमेद मिळते

यश येतच मग टप्प्यात

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

( २ ) 

लोड, तक्क्ये हवेत कशाला

तुझी मांडी असतांना ??

सुख वेगळं काय हवंय 

तुझी सोबत असतांना !!

☆ ☆ ☆ ☆

कवी : श्री ए के मराठे

 कुर्धे, पावस, रत्नागिरी

 9405751698

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “पिता को याद करते हुए…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – पिता को याद करते हुए☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

आज की ही तरह

धुंध में लिपटा और सर्दी में

कंपकपाता एक दिन था

बस्ता लेकर मैं स्कूल में था

जब कोई मुझे बुलाने आया ।

घर पहुंचा तब तक आप विदा हो चुके थे

मुझे जीवन की पाठशाला

और संबंधों के जंगल में

अकेले छोड़ कर , ,

जंगल में रास्ता तलाशता

एक बेटा इतनी दूर निकल आया कि

वह सारा बचपन खो बैठा

आप हर सुबह पहले गीता बांचते

फिर गांव जाने की तैयारी में

साइकिल , जूते खूब चमकाते

यानी मन की सफाई  करते

और बाहर की भी ,,,,,,

फिर आप तैयार होते

एक अच्छा दिन बिताने के लिए

बरसों बीत गए

आप गांव से लौटे नहीं

और न किसी ने दीपावली पर

हाथ पकड़कर मिठाई पटाखे दिलवाए

मेरी पढ़ाई की फिक्र में आप स्कूल आते

पर फिर नहीं पूछा कि  किस हाल में हूं ?

सच

मेरे सपने में जब भी आप आते हो

मैं यही विनती करता हूं

लौट आओ न पिता ,,,

मुझे मेरा बचपन दे दो

आप थे तो बचपन था

आप थे तो किसी चीज़ के लिए

रूठना और मचलना अच्छा लगता था

कितने मेलों में कितनी बार

दिलाए थे खिलौने

अब जीवन ही खिलौना

बन कर रह गया

अब आप नहीं हो

तो बचपन कहां ?

खो गया

जीवन की पाठशाला

और संबंधों के जंगल में

आज की तरह वह एक

धुंध में लिपटा दिन

बहुत याद आता है

पिता आप भी ,,

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – युक्ति… ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ☆

सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी पिछले 40 वर्षों से अधिक समय से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018)

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा युक्ति

? लघुकथा – युक्ति ? सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ?

प्यारी मां,

 मैं जानती हूं अब वह वक्त आ गया है जब तुम पापा के साथ अस्पताल जाकर गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण कराने के लिए डॉक्टर को मोटी फीस देने के लिए तैयार हो जाओगी क्योंकि यह एक अपराध है। इसलिए अपराध को साकार रूप में उतारने के लिए मोटी रकम तो देनी ही पड़ती है ना! जब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारी कोख में फिर से लड़की आ गई है तुम किसी भी स्थिति में मुझे संसार में नहीं आने दोगी क्योंकि एक लड़की के होते दूसरी बार फिर लड़की तुम बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे मरवा कर तुम “चलो बला टली “ के भाव लिए फिर से लड़का प्राप्त करने की कोशिश में लग जाओगी। मां, मैं मरना नहीं चाहती।  मैं भी इस नई दुनिया में आना चाहती हूं। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को देखना चाहती हूं। मां बाप बहन का प्यार पाना चाहती हूं। कितना कुछ है इस सुंदर दुनिया में ! क्या मुझे यह सब देखने, महसूस करने का अधिकार नहीं? मैं जानती हूं एक लड़की के होते तुम दूसरी लड़की क्यों नहीं चाहती ! अपना वंश खत्म होने का भय सताता है ना! पर बदलते जमाने के साथ ही परंपराएं और सोच भी बदल रही है। अब तो वंश औलाद के गुणों से चलता है उसके लिंग के कारण नहीं। अगर फिर भी तुम्हें मेरे जन्म पर आपत्ति है तो एक और समाधान सुझाती हूं। मुझे मरवा कर एक अपराध बोध तुम्हें हमेशा रहेगा इसलिए मुझे जन्म देकर किसी अनाथ आश्रम में दे देना। कोई जरूरतमंद, निःसंतान दंपत्ति मुझे बेटी बना लेंगे। मुझे भी मां-बाप मिल जाएंगे और तुम्हें भी लड़की पाने से निजात मिल जाएगी। बस मुझे जन्म देकर इस संसार में लाने का उपकार मुझ पर कर दो ना प्लीज…

तुम्हारी अजन्मी बेटी

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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