English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 218 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 218 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 218) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 216 ?

☆☆☆☆☆

तुमने जैसा चाहा …

वैसे ही ढल गए हम

अब ये शिकवा कैसा

कि बदल गए हम…

☆☆

I have molded myself

the way you wanted, 

Now why this complaint

That I’ve changed…!

☆☆☆☆☆

आओ बनाएं पुल कोई

अपने ही आस पास

अरसा हुआ है आपको

मुझसे मिले हुए…

☆☆

Come let’s build a

Bridge around ourselves

It’s been long time

Since I met you… 

☆☆☆☆☆

संवरने का तो

सवाल ही नही उठता

क्योंकि हम तो

बिखरे ही लाजवाब हैं…

☆☆

No question ever arises

of  embellishing myself…

Coz I’m as such so peerless

Even if I appear unkempt… 

☆☆

निकले हम दुनिया की भीड़ 

में तो पता चला कि… 

हर वो शख्स अकेला ही है

जो दूसरों पर भरोसा करता है…

☆☆

When I stepped out in this

crowded world then realised

That every person is alone only

Who  keeps  trusting  others…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 568 ⇒ एक प्याला सुख ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक प्याला सुख।)

?अभी अभी # 568 ⇒ एक प्याला सुख ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब संसार क्षणभंगुर है, तो सुख भी क्षणभंगुर होता है, यह कोई कहने की बात नहीं है, लेकिन इस क्षणिक सुख का आनंद ही जीवन का वास्तविक आनंद है।

जो इस एक क्षण को जी लिया, वो ज़िन्दगी जी लिया। वो देखो ! साहिर चले आए। जो भी है, बस यही एक पल।

संसार में सुख की तलाश किसे नहीं। अगर घर बैठे गंगा आ जाए तो क्या बुरा ! एक चाय के प्याले में अगर सुख-सागर प्राप्त हो जाए तो क्यों स्वर्ग और वैकुण्ठ की बात की जाए।।

जो चाय नहीं पीते, या पीना नहीं जानते, उनसे स्वर्ग और वैकुण्ठ की बात करना एक नास्तिक को भागवत सुनाने जैसा है। जो नर्क को ही ज़न्नत समझ बैठा हो, उसे क्या ज्ञान दिया जाए।

सुबह-सुबह कड़कती ठण्ड में कड़क चाय का प्याला हाथ में आ जाए तो ऐसा महसूस होता है मानो साक्षात नारायण वैकुण्ठ से प्याले में उतर आए हों। प्याले से उठती हुई भाप और खुशबू फिर किसी शायर की याद दिला देती है।

वो पहली चाय की खुशबू,  

तेरे प्याले से शायद आ रही है।।

चाय पीना भी एक कला है। आंतरिक सुख का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। एक-एक घूँट शराब की तरह चाय पीना शराब जितना ही नशा देता है। चुस्की और सुड़क चस्के के दो विपरीत स्वरुप हैं। तीसरी कसम के ज़माने में चाय लौटे में पी जाती थी। तब वह चाय नहीं चाह थी। जिसे आज हम कप-प्लेट कहते हैं, वह बचपन में कप-बशी थी। आज भी पुरानी स्टाइल से चाय पीने वाले चाय बशी में ही डालकर पीते हैं। उनकी एक सुड़क के साथ कितना सुख भीतर जाता होगा, बस या तो वह जानते हैं, या उनका ईश्वर।

स्वर्ग वाले देवता बड़े चालाक निकले। कामधेनु, कल्पवृक्ष, पारस पत्थर सब अंटी कर लिया पर आदमी भी कम चालाक नहीं। उसने भगवान् से बदले में चाय का एक प्याला माँग लिया। धरती वालों ने स्वर्ग का सुख एक चाय के प्याले में ढूँढ लिया। सोचो साथ क्या जाएगा, का मतलब यही है कि स्वर्ग जाओ या वैकुण्ठ,  वहाँ आपको चाय नसीब नहीं होने वाली।।

इसलिए हे मूर्ख प्राणी ! देर ना कर। अमर घर चल। एक प्याला चाय बना। उसे अपने मुँह से लगा। स्वर्ग का सुख अगर कहीं है, तो इस चाय के प्याले में ही है। इस चाय के प्याले में ही है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्मशान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  दो  उपन्यास “फिर एक नयी सुबह” और  “औरत तेरी यही कहानी” प्रकाशित। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। हाल ही में आशीर्वाद सम्मान से अलंकृत । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता श्मशान… ।)  

☆ कविता ☆ श्मशान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

न तेरा न मेरा न किसी का भी

अधिकार हर किसी का

नहीं देखता अमीर-गरीब

नहीं देखता राजा-रंक

सबके लिए तटस्थ रहता

न किसी में भी भेदभाव रखता

नहीं चाहिए हीरा-चांदी

मात्र नग्न बदन की अपेक्षा

मात्र लाश की राह देखता

लगता है मानो यही करता

सच्चा प्यार इन्सान से

मत कर प्यार फिर भी

आगोश मे लेता इन्सान को

कभी-कभी बुरा लगता है

मुंह मत मोड़ो वास्तविकता से

क्यों लड़ते हो इन्सान

क्यों खून पीते हो दूसरों का,

इक दिन सबको है जाना

ईश्वर की एकमात्र पुकार

रुक जाती जिंदगी धरा पर

खेल रहा परवरदिगार 

उसके पास नहीं खाली समय

कई लोग जलाते है

कई लोग दफनाते है

अपने धर्म के अनुसार

श्मशान में देते जगह

फिर ये लड़ाई क्यों?

फिर ये नफ़रत क्यों?

जब तक चल रही धडकन

कर्मों के आधार पर

फिर से जन्म लोगे

जिसे कहते मनहूस जगह

वही है सच्चाई जिंदगी की

सूर्यास्त होता जिंदगी का

श्मशान है पर्याय जिंदगी का

स्वर्णिम मुख को अपनी ओर से

एक थाह देता श्मशान

हर चिंता से मुक्त करता है

निःस्वार्थ भाव से देखता

सबको यमलोक के द्वार पहुँचाता

यह सांसे धरोहर मात्र प्रभु की

जिसे कोई भी नहीं समझ पाया

श्म़शान से चिढ़ता हर कोई

नहीं बात करना चाहता,

ईश्वर ने भेजा मृत्यु लोक पर

जब चाहेगा बुलावा आयेगा

मृत्यु पर किसी की न हुई विजय

बात मात्र इतनी सी

उजड़ जाता संसार

समझ लो इन्सान

मत कर अहंकार स्वयं पर कभी

हँसते हुए या रोते हुए

जाना है हर किसी को

क्यों न विदा लेते हँसते- हँसते

धरती की आन, बान और शान

इन्सान नहीं दर असल श्मशान है

नहीं रहता मौन श्मशान

जब श्मशान बोलता है

रहता मौन मात्र मानव ।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 218 – कविता – नये साल का गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता नये साल का गीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 218 ☆

☆ कविता – नये साल का गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

कुछ ऐसा हो साल नया,

जैसा अब तक नहीं हुआ.

अमराई में मैना संग

झूमे-गाये फाग सुआ…

*

बम्बुलिया की छेड़े तान.

रात-रातभर जाग किसान.

कोई खेत न उजड़ा हो-

सूना मिले न कोई मचान.

प्यासा खुसरो रहे नहीं

गैल-गैल में मिले कुआ…

*

पनघट पर पैंजनी बजे,

बीर दिखे, भौजाई लजे.

चौपालों पर झाँझ बजा-

दास कबीरा राम भजे.

तजें सियासत राम-रहीम

देख न देखें कोई खुआ…

स्वर्ग करे भू का गुणगान.

मनुज देव से अधिक महान.

रसनिधि पा रसलीन सलिल

हो अपना यह हिंदुस्तान.

हर दिल हो रसखान रहे

हरेक हाथ में मालपुआ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७.१२.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (6 जनवरी 2025 से 12 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (6 जनवरी 2025 से 12 जनवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

नए वर्ष के नए सप्ताह की मधुर बेला में मैं पंडित अनिल पांडे नए वर्ष में आपकी सफलता की कामना करते हुए इस सप्ताह आपके अच्छे समय के बारे में बताने हेतु प्रस्तुत हुआ हूं।

इस सप्ताह सूर्य धनु राशि में, मंगल कर्क राशि में, बक्री बुध धनु राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, शुक्र और शनि कुंभ राशि में तथा राहु मीन राशि में रहेंगे। इस सप्ताह चंद्रमा को छोड़कर अन्य कोई ग्रह अपना राशि परिवर्तन नहीं कर रहा है।

आइए अब हम राशिवार राशिफल के चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने का योग है। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। शत्रुओं से सावधान रहें। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। 8 और 9 जनवरी आपके लिए किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 6 और 7 जनवरी को आपको कोई भी कार्य करने के पहले पूरा सोच विचार करना चाहिए। इस सप्ताह आपके पास 10 और 11 तारीख को धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। गलत रास्ते से धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। दुर्घटनाओं से अपने आप को बचाने का प्रयास करें। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी लाभदायक है। 8 और 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान सूर्य को तांबे के पत्र में जल और लाल पुष्प तथा अक्षत डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अच्छा रहेगा। आपके लिए भी ठीक-ठाक रहेगा। व्यापार उत्तम चलेगा। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपके दबाव में सभी लोग रहेंगे। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सतर्कता बरते। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7और 12 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 10 और 11 जनवरी को आपको संभलकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें। मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

 इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को समाप्त कर सकते हैं। आपका स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। जीवनसाथी माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य भी सामान्य रहेगा। धन आने का सामान्य योग है। भाग्य के स्थान पर आपको अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए फल दायक हैं। 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

 अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम है। विवाह के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। आपके जीवनसाथी का पिताजी का और माता जी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। आपके साथ में थोड़ी बहुत समस्या आ सकती है। कार्यालय के कार्यों में आप सफल रहेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी उत्तम है। 6 और 7 जनवरी को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन उड़द का दान करें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की आराधना करें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

 इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा। शत्रुओं से सावधान रहिएगा। इस सप्ताह आपके शत्रु शांत रहेंगे, परंतु समाप्त नहीं हो पाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 जनवरी हर प्रकार के कार्यों के लिए उपयुक्त है। 8 और 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन गायत्री मंत्र की का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका आपके माता-पिता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध उत्तम रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई अच्छी चलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। शत्रुओं पर आपका निरंतर दबाव रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। धन आने की पूरी संभावना है। भाग्य भी साथ देगा। विवाह प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह संतान से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा परंतु पिताजी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी हितप्रद है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। माता जी को कष्ट हो सकता है। दुर्घटनाओं से आप बचने का प्रयास करें। पेट में कुछ तकलीफ हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 10 और 11 जनवरी को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य आपका साथ देगा। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। कचहरी के कार्यों में सावधानी के साथ काम करने पर सफलता मिलेगी। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से थोड़ा बहुत सहयोग मिल सकता है। छात्रों की पढ़ाई सामान्य रूप से ठीक चलेगी। माताजी पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 जनवरी विभिन्न कार्यों हेतु अनुकूल है। 12 जनवरी को आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 10 और 11 जनवरी किसी भी कार्यों के लिए उपयुक्त हैं। अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने को सोच रहे हैं तो इस दिन आप प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं। सप्ताह के बाकी दिन एक जैसे हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपको कार्यालय के कार्यों में सम्मान मिल सकता है। कचहरी के कार्यों को सावधानी पूर्वक करने पर विजय प्राप्त हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। भाग्य आपका साथ देगा। आपको अपने संतान से सामान्य रूप से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 6, 7 और 12 जनवरी लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – सूचनाएं/Information ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

‘सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

☆ संपादकीय निवेदन ☆

 💐🥇अभिनंदन 🥇💐

आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखक व कवी डाॅ. प्रा. प्रवीण जोशी यांना कोकण मराठी परिषद, गोवा यांचेकडून त्यांचे साहित्यिक कार्याबद्दल जीवन गौरव पुरस्कार जाहीर झाला आहे. हा पुरस्कार त्यांना म्हापसा येथे आयोजित करण्यात आलेल्या विसाव्या शेकोटी साहित्य संमेलनात प्रदान करण्यात आला आहे.

तसेच, ‘ मराठी का शिकावी ‘ या विद्यार्थिनींसाठी आयोजित करण्यात आलेल्या चर्चासत्राचे अध्यक्षपदही त्यांनी भूषविले आहे.

साहित्य क्षेत्रातील त्यांच्या या उज्ज्वल यशाबद्दल ई अभिव्यक्ती समुहातर्फे त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि हार्दिक शुभेच्छा !

 संपादक मंडळ

ई  अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गोवा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ गोवा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

स्वर्गातीत हा सुंदर ठेवा

असाचं आहे आमचा गोवा

*

रुपसुंदरी खाण मराठी

फणस काजुचा गोड मेवा

*

निसर्ग सौंदर्य आणि पर्यटन

अतीथ्य ब्रीदात आहे गोवा

*

कला नाट्य संगीत मुरब्बी

लता, बाकीबाबा, अभिषेकीबुवा

*

दिले घेतले प्रेम तयांचे

माणुसकीचा गोड ठेवा

*

कोकणी भाषा माय मराठी

स्वरात त्यांचा वाटे गोडवा

*

किती प्रेमात चिंब भिजलो

असाच आहे माझा गोवा

*

जन्म इथेच व्हावा वाटे

लाल मातीचा गुण ठरावा

*

सागर किनारी स्नेह लाटा

असाच आमचा आहे गोवा

© प्रो डॉ प्रवीण उर्फ जी आर जोशी

ज्येष्ठ कवी लेखक

मुपो नसलापुर ता रायबाग, अंकली, जिल्हा बेळगाव कर्नाटक, भ्रमण ध्वनी – 9164557779 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ अनोखा स्वेटर ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

🎽 अनोखा स्वेटर ! 🎽 ⭐ श्री प्रमो वामन वर्तक ⭐ 

गुंडा लोकरीचा आठवांचा

सहज हाती लागला,

उब न्यारी जाणवता

स्वेटर विणाया घेतला !

 *

झाडून साऱ्या नात्यांची

मी छान वीण गुंफली,

होता तयार सुंदर नक्षी

मती माझी गुंग जाहली !

 *

तयार होता होता स्वेटर

शिशिर पूर्ण संपून गेला,

नाही कळले कधी मला

वैशाख वणवा लागला !

 पण,

 मनी ठेवला जपून स्वेटर

केली उतारवयाची सोय,

गोष्ट सांगतो गमतीची

भावी शिशिरांचे सरे भय !

भावी शिशिरांचे सरे भय !

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “नदीचा काठ…” ☆ प्रा. भरत खैरकर☆

प्रा. भरत खैरकर

🌸 विविधा 🌸

☆ नदीचा काठ… ☆ प्रा. भरत खैरकर 

नदीचा काठ आता पहिल्यासारखा स्वच्छ राहिला नाही. सकाळपासून संध्याकाळपर्यंत या काठाला आता उसंत नसते. लोक म्हणतात, उन्हाळ्यात नद्या आटतात. मात्र गावची नदी बारमाही सारखीच धो.. धो.. वाहणारी दोन्ही – हातांनी एखाद्या दात्याने भरभरून दान द्यावे. तसं या नदीने आमच्यां गावाला खूप दिलंय. विहिरी आटल्या तरी नदीची धार मात्र खंडत नाही.. शंकराच्या जटेतून निघालेल्या गंगामाईसारखी!!  या नदीची काही कहाणी असेलसं वाटत नाही.

दहा बाय दहाच्या खोलीत आपला संसार छानसा थाटावा, तसा या नदीचा उगम अगदी छोट्या जागेत सामावलेला.. गावापासून चंद्रपूर जिल्ह्यातील खुर्सापार या जंगलातून.. एका डोंगरवजा भागात.. तिची उत्पत्ती झाल्याचे आढळुन येते. एक भला मोठा झरा उंचावरून धबधब्यासारखा अव्याहत खाली वाहतो.. चांदण्यात ही दुधाची धार जणू आकाश धरतीच्या पदरात प्रेमाने टाकतोय.. असं वाटते.

आजूबाजूला उंचच उंच सागवनी वृक्ष.. निसर्गाचं हे रूप पाहात कित्येक सालापासून उभे आहेत. त्या परिसरातील सागाच्या झाडांची वाढ कमालीची झाली आहे. जंगलात सर्वत्र फिरून झाल्यावर निसर्ग याच ठिकाणी इतका ‘खुश’ कसा हे शोधलं तर मुळाशी तो उगम दिसेल..

 साधारण पन्नासेक फुटावरून खालच्या दगडांवर पडणारी ती जाडशी पाण्याची धार हळूहळू घाटदार वळण घेत संथ होते, छोटसं नितळ पाण्याचं तळं.. ते वलयांमुळे अजूनच उठून दिसतं.. मनात भावनांचे हळूवार तरंग उठावे तसे  ह्या पाण्याचे तरंग धारेच्या केंद्रापासून दूरवर काठापर्यंत जाऊन हळूहळू संथ रूप धारण करतात.. मग हे पाणी कड्याकपारीतून मार्ग काढीत. एका नाल्याचं रूप धारण करतं, माणसाचं आयुष्य जसं कधी दुःख तर कधी सुखाच्या अनुभवांनी पुढे पुढे सरकते.. अगदी तस्सच.

या छोट्याशा नाल्याचं, हळूहळू जंगलातून ‘आलेले इतर छोटे छोटे नाले स्वागत करीत त्या नाल्यास येऊन मिळतात, ‘एकमेकां साह्य करू अवघे धरू सुपंथ’ हे या निसर्ग घटकांना कोणी शिकविले कुणास ठाऊक?

आता ही नदी जंगलातील चार-पाच खेड्यांतून आमच्या गावात येते.. ती सरळ गावाच्या मधोमध घुसते..

नदीच्या या घुसखोरीमुळे उगाच एका मोठ्याशा गावाचे दोन भाग झाले. पूर्वेकडचा ‘सिर्सी’ नि पश्चिमेकडचा ‘काजळी’असं नामकरण झाल.

 आता मात्र सिर्सी हेच नाव प्रचलित आहे. तरीही जुन्या माणसांनी ‘कुठं रायतं बाबू?’ म्हटलं का नवीन पोर ‘सिर्सीले रायतो जी !’ उत्तर देतात आणि मग तो माणूस जेव्हा ‘सिर्सी (काजळीच) ना?’ म्हणतो तेव्हा ही पोरं नंद्यांसारखे ‘होजी’ म्हणून होकार भरतात.

नदीमुळे एक बरं झाले.. इतर गावासारखी आमच्या गावाला अजिबात पाण्याची फिकीर करावी लागत नाही. आमच्या लहानपणी आम्ही आईसोबत धुणं धुवायला नदीवर जात होतो.. धुणं धुवायला म्हणजे काय तर तिथं जाऊन काठावरच्या मऊ मऊ रेतीत खेळायला.. पाण्यात पाय ओले करायचे अन् मग आपणच उकीरड्यावर लोळणा-या गाढवासारखं रेतीत लोळायचं.. त्याच्याने ओल्या झालेल्या पायावर रेतीचे मोजे तयार व्हायचे.. जसजशी ऊन तापायची तसतसे त्यातील ओलावा संपल्याने ते मोजे गळून पडायचे! या मोज्याचं आम्हांला तेव्हा भारी अप्रुप वाटायचं.

पायात मोजे घालूनच आमच्या इमारती उभ्या करायचा व्यवसाय चालायचा.. मात्र या इमारती नुसत्या वाळूच्या आणि पाण्याच्या ! हीच त्याची खरी खासियत होती. नानाविध तऱ्हेच्या त्या इमारतीचे ‘स्ल्याब’ मात्र वर्तुळाकारच राहायचे. काही काही इमारतींना कुंपण म्हणून बोटबोटभर.. काड्या सभोवताल लावल्या जायच्या.. त्या रक्षणाचं काम करायच्या… कधीकधी असलाच तर रस्त्यावर सापडलेला सुताचा गुंता येथे तार म्हणून वापरला जायचा.. काहींची घरे एवढी महागडी असायची की त्यांच्या घरात विजेची सोय असायची आणि हे दिवे बाभळीच्या पांढऱ्या काट्यांवर खुपसलेल्या बकरीच्या लेंड्या असायच्या ! काहींच्या घरासमोर किमती मोटारगाड्या.. तुटलेल्या विटांच्या रूपात उभ्या राहायच्या.. रेतीत कोरलेला रस्ता जणू डोंगर पोखरून तयार केल्यासारखा वाटायचा. या सर्व गाड्यांचे डायव्हर मात्र रिमोट कंट्रोलसारखे आपआपल्या जागी बसून फक्त हाताने. गाडी ढकलायचे. बिना ड्रायव्हरचा तो अनोखा प्रवास असायचा.

ज्या कुणाला या चैनीच्या गाडीघोड्यांच्या ‘ लाईफ’ मधे रस नसायचा ते वडिलोपार्जित शेतीचा व्यवसाय करायचे.. नदीकाठाने वाढलेला तरोटा आणि अजून अशाच काही बाही पालेभाजी सदृश वनस्पती उपटून ते ‘मंडई’ मांडत होते.. मग खरेदी करणारे सिगारेटच्या पाकिटच्या, माचीसच्या कव्हरच्या अवमूल्यन न झालेल्या नोटांनी घरच्यासाठी भाजीपाला खरेदी करायचे, काहींचे वावरंही त्या रेतीतच होते. मुख्य म्हणजे रेती चोपडी करून त्यात चौकोनी चौकोनी वाफे करणे खूपच सोपे..

शिवाय उपडलेला काठावरचा तरोटा त्या चौकोनाच्या चौरस्त्यावर एकामागून एक रांगेत लावला की, पाच मिनिटात हिरवंगार शेत दृष्टीस पडे !

असे एक ना अनेक खेळ या नदीकाठावर आम्ही खेळायचो! पडलो, धावलो, मारामाऱ्या सारंसारे येथे केलं. पण मऊशार रेतीवर थोडासाही धक्का कधी लागला नाही. आईने आपल्या पोराला कुशीत घेऊन थोपटावं.. तसंच या काठाने आमचं बालपण जोजावले..

नदीचा काठ आठवला की बालपण ‘फ्कॅशबॅक’ सारखं काठावर जाऊन थांबतं..

नदी, नदीचा उगम, छोटसे तळे, त्यातील तरंग, तिचा गावांपर्यंतचा प्रवास, तिचं गावात प्रवेश करणं.. आम्हां चिमुकल्यांचे तिच्या काठावरचे संसार.. सारं सार

एका पहाटधुक्यासारखे विरळ होत जाऊन गत स्मृतींनी गळा भरून येतो. तेव्हा डोळ्यातील पाणी त्या नदीत जाऊन मिसळत नसेलच कशावरून ??

© प्रा. भरत खैरकर

संपर्क – बी १/७, काकडे पार्क, तानाजी नगर, चिंचवड, पुणे ३३. मो.  ९८८१६१५३२९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ प्रकाशक – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर ☆

श्री प्रदीप केळुस्कर

?जीवनरंग ?

☆ प्रकाशक – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर

(”तुझे काय मत आहे? तुझी पुस्तके खराब केली असे तुला म्हणायचे आहे काय”? 

”होय’ !

त्याच क्षणी मी रागाने जयंताच्या घराबाहेर पडलो ) — इथून पुढे —

अशी घटना घडली त्यामुळे ती पुस्तके दुसर्‍याने प्रकाशीत केली.

प्रश्न – अलेक्झांडर सारखे सुंदर नाटकाचे पुस्तक असूनही त्या पुस्तकाची विक्री फारशी झाली नाही असे म्हणतात, कां?

मी – नुसते पुस्तक छापून चालत नाही, त्याचे मार्केटिंग करावे लागते, त्या पुण्याच्या प्रकाशकाला मार्केटिंगचा काहीच अनुभव नव्हता.

प्रश्न – मुंबईत मराठी पुस्तकांसाठी तुमची दोन दुकाने असताना आणि त्या काळी वाचक मराठी पुस्तकांसाठी तुमच्याच दुकानात येत असताना जयंतरावांची नाटके तुमच्या दुकानात मिळत नव्हती, हे खरे काय?

मी- हे खरे आहे, याचे कारण पुण्याच्या त्यांच्या प्रकाशकाने आमच्या दुकानात पुस्तके ठेवली नाहीत, आमची पुस्तकांची ऑर्डर त्यांनी पुरी केली नाही.

प्रश्न – कॉलेजमधील तुमची मैत्रिण अनघाताई यांनी जयंतरावांशी लग्न केलं, त्यांच्या प्रेम विवाहा बद्दल तुम्हाला कल्पना होती?

मी – मला कल्पना नव्हती.

प्रश्न – अनघाताई मग दूरदर्शनवर निर्मात्या झाल्या त्यांनी ही नोकरी स्विकारताना तुमचा सल्ला घेतला होता काय?

मी- नाही.

प्रश्न – मग अनघाताई दूरदर्शवर गेल्यानंतर तुमचे त्यांच्याबरोबर अनेक फोटो कसे काय दिसतात?

मी – अनघा ही साहित्यीकांच्या आणि कलावंताच्या मुलाखती घ्यायची, तिला साहित्यीकांच्या भेटी घाटी होण्यास माझी मदत व्हायची कारण माझा प्रकाशन व्यवसाय असल्याने या मंडळीत माझी उठबस असायची.

प्रश्न – अनघाताई जयंतरावांना वर्षभरात सोडून गेल्या, त्या सोडून जाणार हे तुम्हाला माहीत होतं का?

मी- नाही.

प्रश्न – अनघाताईनी जयंतरावांशी स्वत:हून लग्न केलं होतं, मग असं काय झालं, की त्या वर्षाच्या आत त्यांना सोडून गेल्या?

मी – याची मला कल्पना नाही, ते तुम्ही अनघाला विचारा.

एवढ्यात त्या मुलाखत घेणार्‍या दोन मुली पैकी दुसर्‍या मुलीने सोबतच्या बॅग मधून एक जूना पेपर बाहेर काढला, ती मुलगी बोलू लागली.

“वसंत सर, जयंतरावानी १९९५ साली कोल्हापूरच्या पुढारीस मुलाखत दिली होती. त्या मुलाखतीत जयंतराव म्हणतात 

– वसंताने म्हणजे तुम्ही माझी म्हणजे जयंतरावांची नाटके प्रकाशीत करायला नकार दिला, खरं तर वसंताचे पब्लीकेशन हे त्या काळी मराठीतील सर्वोत्तम प्रकाशन होते. शिवाय त्यांची मुंबईत स्वत: ची दोन दुकाने होती, म्हणून मला ती पुस्तके पुण्याच्या नवीन प्रकाशकाकडे द्यावी लागली 

आणि येवढ्या चांगल्या पुस्तकांची त्यांनी वाट लावली, ती खपली नाहीत, लोकांपर्यंत पोहचली नाहीत.

मी ओरडलो- हे खोटं आहे. जयंता खोटे बोलत आहे.

पुन्हा तीच मुलगी बोलू लागली.

वसंत सर, जयंतरावांच्या निधनानंतर दुरदर्शच्या प्रतिनिधीने तुमच्या मोठ्या भावाची म्हणजेच जे तुमची दोन्ही दुकाने सांभाळतात, त्या प्रभाकर रावांची मुलाखत घेतली होती, त्याची कॅसेट माझ्या कडे आहे.

त्या मुलाखतीत तुमचे मोठे भाऊ प्रभाकरराव म्हणतात 

जयंतराव हे उच्च दर्जाचे कवी होते, कथा लेखक होते, आम्ही त्यांची पुस्तके सुरवातीस छापली, पण काय झाले कोण जाणे, माझा धाकटा भाऊ वसंत हाच त्यांच्या पुस्तकांच्या आवृत्या काढायला विरोध करू लागला.

मला दरदरून घाम सुटला. एवढ्या मोठ्या श्रोत्यांसमोर या दोन मुली मला उघडं पाडत होत्या,

मी ओरडलो – कोण आहात तुम्ही ? मला पाहुणा म्हणून बोलावलत आणि मलाच खोटारडा ठरवता ? माझा अपमान करता?

“तुमचा अपमान नाही करत सर, आम्ही दोघीनी जयंतरावांच्या साहित्यावर पी. एच. डी केली आहे. त्यांच्या साहित्यात जसजसं खोल जाऊ लागलो, तसें लक्षात आले, एवढ्या ताकदीचा लेखक त्याची तुम्ही काढलेली कविता संग्रह किंवा कथासंग्रह कुठेच उपलब्ध नाही, अगदी वाचनालयात सुद्धा, ज्यांची कुवत नाही. अशा लेखकांच्या तुम्ही तीन चार आवृत्या काढता 

आणि जयंतरावांसारख्या असामान्य लेखकांची पुस्तके मिळत नाहीत. त्यांची पुस्तके खपत नव्हती. मग जयंतराव गेल्यानंतर त्यांच्या साहित्याच्या दरवर्षी आवृत्या कां काढता?आणि त्यांची पुस्तके आता खपतात कशी?

माझा आरोप आहे जयंतरावांच्या पुस्तकांचे अधिकार स्वत:कडे ठेऊन तुम्ही जयंतरावांची फसगत केलीत. असं नाही वाटत? 

त्या दोन मुलींच्या एका पाठोपाठ एक प्रश्नांच्या फैरी झडत होत्या. मी केविलवाणा होऊन ऐकत होतो.

मी खजील होऊन व्यासपीठ सोडले आणि बाहेर येऊन माझ्या गाडीत बसलो. मी गाडी स्टार्ट केली, एव्हढ्यात माझ्या मनात आले ज्या चुका माझ्या हातून झाल्या त्याची कबूली देण्याची हीच वेळ आहे.

मी गाडी बंद केली आणि पुन्हा हॉल मध्ये आलो. हॉलमध्ये येऊन माझ्या खुर्चीवर बसलो. मी बाहेर पडताच हॉलमधील लोक खुर्च्या सोडत होते, त्या दोन मुली पण आपले कागद, लॅपटॉप आवरून निघायच्या बेतात होत्या.

मी स्टेजवर येऊन खुर्चीवर बसताच आयोजकाने माझ्या हातात माईक दिला आणि मी बोलू लागलो.

साहित्य जीवन या ग्रुपने माझ्या मित्राच्या स्मृतिदीनानिमीत्त येथे मला आमंत्रित केले त्या बद्दल आभार.

मंडळी, आयुष्यात काही चुका होतात. मी माझ्या मित्राशी जे वागलो त्याबद्दल माझ्या मनात खंत आहे. जे मनात आहे त्याची कबुली देण्याची या व्यासपीठा सारखे उत्तम व्यासपीठ कदाचीत मला मिळणार नाही.

माझी मुलाखत घेणार्‍या या दोन हुशार मुलींना जयंताच्या साहित्यावर डॉक्टरेट करावीशी वाटली. यातच त्याचे साहित्य काय उंचीचे आहे ते लक्षात येईल.

मंडळी, आता तुम्हाला माझ्याकडून जयंताच्या साहित्याकडे कानाडोळा का झाला किंवा मी जयंताचा द्वेष का केला हे सांगावे लागेल.

यासाठी सुमारे चाळीस वर्षापूर्वीचा काळ आणि त्यानंतर ची दहा वर्षे डोळ्यासमोर आणावी लागतील 

मी, जयंता आणि अनघा एका कॉलेज मध्ये होतो. तिघांनाही लेखन, नाटक, संगीत यांची आवड, जयंता उत्तम कविता करायचा तसेच उत्तम लिहायचा.

अनघा गायिका, उत्तम वाचक, नाटकामध्ये काम करणारी अभिनेत्री, दिग्दर्शिका. मला सर्वच कलांमध्ये उत्तम गती होती.

अनघा वरच्या आर्थिक परिस्थितीत, मी मधल्या आणि जयंता कनिष्ठ. आम्ही तीघे एकत्र संगीत मैफली ऐकायचो, नाटके पहायचो, प्रायोगिक नाटके करायचो.

मला अनघा आवडायची. ती कधी कधी आमच्या घरी यायची. आमच्या दुकानात यायची, माझ्या आई-बाबा बरोबर गप्पा मारायची. माझ्या घरच्यांना वाटत होते की बहुतेक माझं अनघा बरोबर लग्न होईल.

माझ्या व्यवसाया निमित्त मला दोन महीन्यासाठी लंडन ला जावं लागलं. जाण्याआधी जयंताला त्याची नाटके मी आल्यावर छापूया असे सांगून मी लंडन ला गेलो.

दोन महीन्यानंतर मी लंडनहून आलो. मधल्या काळात जयंताने अनघाशी लग्न केले होते आणि त्यांनी खेतवाडीत बिर्‍हाड केले होते. हा मला मोठा धक्का होता.

– क्रमशः भाग दुसरा 

© श्री प्रदीप केळुसकर

मोबा. ९४२२३८१२९९ / ९३०७५२११५२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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