Captain Pravin Raghuvanshi, NM
(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti. An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.
Captain Pravin Raghuvanshi ji is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit. We present an English Version of renoknowned author Ms. Nidhi Saxena ji’s Classical Poetry आ गए तुम ? with title “Is that you?” We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)
त्रुटि सुधार: इंटरनेट पर यह सुप्रसिद्ध कविता कई नामों से चल रही है। उसी क्रम में हमने इसे परम आदरणीया स्व. महाश्वेता देवी जी के नाम से प्रकाशित कर दिया था। बाद में हमें प्रबुद्ध पाठक मित्रों द्वारा ज्ञात हुआ कि यह रचना सुश्री निधि सक्सेना जी की है जिसे हम ससम्मान प्रकाशित कर रहे हैं एवं इस अज्ञातवाश हुई त्रुटि के लिए हम हार्दिक खेद प्रकट करते हैं। हम आदरणीया सुश्री निधि सक्सेना जी की ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाएँ भविष्य में प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे।
आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से इस कविता केअनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.
आ गए तुम,
द्वार खुला है अंदर आओ…!
पर तनिक ठहरो,
ड्योढ़ी पर पड़े पाएदान पर
अपना अहं झाड़ आना…!
मधुमालती लिपटी हुई है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीं
उँडेल आना…!
तुलसी के क्यारे में,
मन की चटकन चढ़ा आना…!
अपनी व्यस्तताएँ,
बाहर खूँटी पर ही टाँग आना।
जूतों संग हर नकारात्मकता
उतार आना…!
बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना…!
वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है,
तोड़ कर पहन आना…!
लाओ अपनी उलझनें
मुझे थमा दो,
तुम्हारी थकान पर
मनुहारों का पंखा झुला दूँ…!
देखो शाम बिछाई है मैंने,
सूरज क्षितिज पर बाँधा है,
लाली छिड़की है नभ पर…!
प्रेम और विश्वास की मद्धम आँच पर
चाय चढ़ाई है,
घूँट घूँट पीना,
सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं है जीना…!
~ महाश्वेता देवी
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☆ Is that you? ☆
Is that you?
Come on in,
the door is open.
Just hold on!
There is a doormat
lying outside the door,
Please drop
your ego there!
Madhu Malti creeper
is wrapped
around the parapet,
Pour all your
heartburns on it!
Offer the grudges
of your mind
Outside,
In the basil-bed!
Please hang
all your preoccupations
On the peg
outside!
Kindly remove
all your negativity
along with your shoes
at the door!
Bring a little mischief
from the naughty children
playing out there!
With the rose,
are grown the smiles,
Pluck
and garland yourself!
Look!
I’ve laid out the evening,
Tied the sun
on the horizon,
Sprayed the carnation
on the sky!
Making the tea
on the slow flame of
love and faith,
Savour it, sip by sip!
Listen friend,
Ever pondered,
Even, life is not
so difficult to live!
© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),
Pune