English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ आ गए तुम ?/Is that you? – सुश्री निधि सक्सेना ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of renoknowned author  Ms. Nidhi Saxena ji’s  Classical Poetry आ गए तुम ? with title  “Is that you?”   We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

त्रुटि  सुधार: इंटरनेट पर यह सुप्रसिद्ध कविता कई नामों से चल रही है। उसी क्रम में हमने इसे परम आदरणीया स्व. महाश्वेता देवी जी के नाम से प्रकाशित कर दिया था। बाद में हमें प्रबुद्ध पाठक मित्रों द्वारा ज्ञात हुआ कि यह रचना सुश्री निधि सक्सेना जी की है जिसे हम ससम्मान प्रकाशित कर रहे हैं एवं इस अज्ञातवाश हुई त्रुटि के लिए हम हार्दिक खेद प्रकट करते हैं। हम आदरणीया सुश्री निधि सक्सेना जी की ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाएँ भविष्य में प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। 

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता केअनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निधि सक्सेना जी की मूल कविता  – आ गए तुम ? ☆

आ गए तुम,

द्वार खुला है अंदर आओ…!

पर तनिक ठहरो,

ड्योढ़ी पर पड़े पाएदान पर

अपना अहं झाड़ आना…!

 

मधुमालती लिपटी हुई है मुंडेर से,

अपनी नाराज़गी वहीं

उँडेल आना…!

 

तुलसी के क्यारे में,

मन की चटकन चढ़ा आना…!

 

अपनी व्यस्तताएँ,

बाहर खूँटी पर ही टाँग आना।

जूतों संग हर नकारात्मकता

उतार आना…!

 

बाहर किलोलते बच्चों से

थोड़ी शरारत माँग लाना…!

 

वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है,

तोड़ कर पहन आना…!

 

लाओ अपनी उलझनें

मुझे थमा दो,

तुम्हारी थकान पर

मनुहारों का पंखा झुला दूँ…!

 

देखो शाम बिछाई है मैंने,

सूरज क्षितिज पर बाँधा है,

लाली छिड़की है नभ पर…!

 

प्रेम और विश्वास की मद्धम आँच पर

चाय चढ़ाई है,

घूँट घूँट पीना,

 

सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं है जीना…!

 

महाश्वेता देवी

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ Is that you? ☆

 

Is that you?

Come on in,

the door is open.

 

Just hold on!

There is a  doormat

lying outside the door,

Please drop

your ego there!

 

Madhu Malti creeper

is wrapped

around the parapet,

Pour all your

heartburns on it!

 

Offer the grudges

of your mind

Outside,

In the basil-bed!

 

Please hang

all your preoccupations

On the peg

outside!

 

Kindly remove

all your negativity

along with your shoes

at the door!

 

Bring a little mischief

from the naughty children

playing  out there!

 

With the rose,

are grown the smiles,

Pluck

and garland yourself!

 

Look!

I’ve laid out the evening,

Tied the sun

on the horizon,

Sprayed the carnation

on the sky!

 

Making the tea

on the slow flame of

love and faith,

Savour it, sip by sip!

 

Listen friend,

Ever pondered,

Even, life is not

so difficult to live!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune




English Literature – Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 41 – Arjun receives Brahmasiras ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem Arjun receives Brahmasiras . )

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 41

☆ Arjun receives Brahmasiras ☆

  

To the bank of the sacred river Ganga

Drona and his disciple Kuru Princes went one day

As Drona entered the water to bathe

A crocodile grabbed him to everyone’s utter dismay

 

Caught him fiercely and strongly by his thigh

And although he knew how to himself set free

Yet, he summoned all his disciples and yelled,

“From this monster, oh please do save me!”

 

Bewildered the other princes stood

But Arjun quickly aimed at the crocodile;

Five arrows he fired in quick succession

Before the others could, to the facts reconcile.

 

Embracing his pupil Arjun in delight,

Granted him the missile nonpareil and unique.

With a silent mind and body he accepted

Brahmashiras, along with secrets of its use mystique.

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)




English Literature ☆ Weekly Column – Abhivyakti # 20 ☆ Some lines…. between the lines! ☆ Hemant Bawankar

Hemant Bawankar

(All of the literature written by me was for self satisfaction. Now I started sharing them with you all. Every person has two characters. One is visible and another is invisible. This poem shows us mirror.  Today, I present my contemporary poem ‘Some lines…. between the lines!’This poem has been cited from my book “The Variegated Life of Emotional Hearts”.))

My introduction is available on following links.

☆ Weekly Column – Abhivyakti # 20 

☆  Some lines…. between the lines! ☆

❃ ❃ ❃ ❃

We came in the world

to learn and try

Not for suicide

and not for die!

❃ ❃ ❃ ❃

I’m wandering

between

birthplace and graveyard.

I’m hanging

between

painful birth and dangerous death!

❃ ❃ ❃ ❃

You born alone

and

you will die alone.

But,

you can’t live alone.

❃ ❃ ❃ ❃

Death after birth

is definite

and

tracks from birth to death

is the definition of life!

❃ ❃ ❃ ❃

© Hemant Bawankar

Pune

9th August 1977

 




English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 10 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 10/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 10 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

दिल ना चाहे फिर भी यारो 

मिलते जुलते रहा करो…

करो शिकायत गुस्से में ही

कुछ ना कुछ तो कहा करो…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Heart may not desire still 

Friends keep on meeting

Complain even in anger only

But at least say something…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 खामोशियां बोल देती है

ज़िनकी बातें नहीं होती..

दोस्ती उनकी भी क़ायम है

ज़िनकी मुलाक़ातें नहीं होती…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Silence converses with them 

who don’t talk to each other…

Friendship flourishes of those too,  

Who don’t even get to meet…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 बेदाग़ रख महफूज़ रख

मैली न कर तू ज़िन्दगी…

मिलती नहीं इँसान को…

किरदार की चादर नईं…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 Keep it spotless, keep it secure

Your life don’t you ever stain

For man does not receive again

A fresh mask for his character

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या कहना उनका जो हवाओं में 

सलीक़े से  ख़ुशबू घोल देते हैं 

फ़िज़ाएँ मुश्कबार हो जाती हैं   

फ़क़त जिनके खयाल से…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM




English Literature – Poetry ☆ In Search of Paradise ☆ Colonel Jayant Khadilkar

Colonel Jayant Khadilkar

(We proudly welcome Colonel Jayant Khadilkar  on e-abhivyakti.  Colonel Jayant Khadilkar was commissioned in June 1980 into the Corps of Signals. He is an Alumnus of National Defence Academy, Pune and Indian Institute of Science, Bengaluru. Academically brilliant, he was awarded Plaque of Honour in Signals Young Officers Course and Army Chief’s Gold Medal in the Signals Degree Engineering Course. He is an expert in Electronic and Information Warfare.  He was awarded the first prize for his MBA thesis on the use of Decision Making techniques in Electronic Warfare.  Colonel Jayant pursues writing as a hobby, to capture his thoughts on topics of current public interest.  Today, we present his classical poetry In Search of Paradise.)

 

In Search of Paradise

 

Do you eagerly strive to find

that place known as paradise

Where it’s happiness all around

And its people; caring and wise

But, somewhere along the way

Has that search come to a halt?

Caught up in the daily routine

Have you circled back to the start?

Do the work hours feel like torture?

Impossible deadlines adding to misery?

Your close ones, have they drifted apart?

Is family time, now only a fading memory?

Amenities aplenty for physical luxury, but

Emotional comfort still remains wanting

Entertainment starts with a remote click,

Yet, discovering joy is a task so daunting

Why has life become so stressful?

Who has taken that cheer away?

Those fun moments of childhood

Where have those got tucked away?

Try and recollect those growing years

You shall conclude this without doubt

That although amenities were very few

Your spirits were high, and hopes too.

Never repent the past, it’s already history 

Nor worry about the future, it’s still a mystery

Like a child, always live this NOW moment

Life is a precious gift, so treat it as a present

Nurture and protect that child in you

Permit it not to dodge you or slip away

Keep that spirit of enquiry well and alive

And life is sure to respond with a High Five

No more inaction, pray take control

To kick-start your life and put it on a roll

That lost paradise, needs no searching

It’s all around us, and ours for the taking

 

© Col Jayant Khadilkar, Veteran

Pune




English Literature – Poetry ☆ The Ultimate Truth… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Today, we present a poetry depicting the ultimate truth of life, written by Captain Pravin Raghuwanshi ji in loving memory of his mother. Yes, it is true the ultimate destination of all human beings is Panchtatva that connotes the five elements i.e. Ether (Akash), Wind (Vayu), Fire (Agni), Water (Jal) and Earth (Prithvi).  We are emotionally with Captain Pravin Raghuwanshi ji at this moment of grief by praying almighty that may his mother’s  soul rest in peace. 

☆  The Ultimate Truth… ☆

(We dedicate today’s issue of e-abhivyakti in honour of respected mother Late Durga Singh Raghuvanshi ji.)

 

In midst of crowd of

Some royal paths

Some golden lanes,

Few roads of luxurious opulence

Many avenues of extravagance,’

Numerous gleaming pathways of possessions,

There remains a solitary

narrow dusty track

As a sentinel of aspirations of soil

Keeping alive the potential of

grass to grow, again and again

I’ve always listened to my heart

Each time, at every crossroad

I chose the dusty trail…

 

O’ laughers of my lonely journey!

O’ choosers of luxurious paths!

One day, you’ll have to return to me

Like bird flying high returning

to earth, to perch in its nest…

No matter, however high you fly,

No matter, however much you amass…

 

No matter, however much you

indulge in limitless luxuries,

Mingling of your perishable body in the mother earth,

And, the grass abode being your final shelter

Is the ultimate truth…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM




English Literature – Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 40 – Realization…. ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem Realization…. .  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 39 

☆ Realization…. ☆

Time, like wind,

Often uproots you and throws you

Akin to a muddied yellow leaf

On untrodden paths

Making you feel defenceless!

 

You realize

The futility of your existence,

You fathom out slowly

That you are a zilch,

You don’t even know

Where your future is going to take you!

 

In this state of utter helplessness,

One fine day,

The realization dawns

That though the trail

May be of a muddied yellow leaf,

But you are not actually one;

You have the power

To steer your life’s car

With full force and conviction

And take it to a desired destination

With efforts and sincerity!

 

You insert the key,

You blow the horn,

And then march ahead

Like an enlightened Buddha!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)




English Literature – Weekly Column – From Nidhi’s Pen # 10 ☆ Chemistry Teacher ☆ Dr. Nidhi Jain

Dr. Nidhi Jain  

(Dr. Nidhi Jain is an assistant professor at Bharti Vidyapeeth, College of Engineering, Pune. She selected teaching as her profession, but it was a dream to be a litterateur. Her first book कुछ लम्हे  is a culmination of her interest. Her time management of family,  profession (Teaching in engineering science) and literature is exemplary. Today we present her poem “Chemistry teacher “.)

☆ Weekly Column ☆ From Nidhi’s Pen  #10 ☆ 

☆ Chemistry teacher 

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the chemical bond acting between the friendship.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the mechanism of relationship.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the fusion of thoughts that trigger anger.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the catalyst that that makes people happy.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand magnetism that holds the bond of marriage.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the physical and chemical reaction in human brains that brings war among human being.

 

Though I am a chemistry teacher,

but I never understand the enzymatic reaction why God implanted corona virus on human being

 

©  Dr. Nidhi Jain,  Pune




English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 9 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 9/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 9 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

 

दीदार की तलब हो तो

नज़रें जमाये रखिये,

क्योंकि नक़ाब हो या नसीब, 

सरकता  तो  जरूर है…

 

If urge of her glimpse is there

Then keep an eye on it patiently

Coz whether it’s the  mask or

luck , it moves for sure…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

चलो अब ख़ामोशियों 

की गिरफ़्त में चलते हैं…

बातें गर ज़्यादा हुईं तो 

जज़्बात खुल जायेंगे..!!

  

Let’s get arrested now in

the regime of silence …

If we kept talking anymore

Emotions may get revealed…!!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

बादलों का गुनाह नहीं कि 

वो  बेमौसम  बरस  गए!! 

दिल  हलका  करने का 

हक  तो  सबको हैं ना!!

 

 It’s not the crime of clouds

If they rained unseasonably!

After all everyone is entitled 

To lighten burdened sorrows

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

काश नासमझी में ही

 बीत जाए ये ज़िन्दगी

समझदारी ने तो हमसे बहुत कुछ छीन लिया…

 

Wish  life could pass 

In  imprudence only

Wiseness alone 

did snatch a lot…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM




English Literature – Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 39 – Providence…. ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem Providence…. .  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 39

☆ Providence…. ☆

You are just a straw

Floating with the gush of wind,

Going wherever destiny takes you.

 

Your finiteness

In the vastness of infiniteness

Is just an illusion

Making you falsely fantasise your worth.

 

Your knowledge, wisdom or health

May only give you inner strength

To dree the inevitable,

Your faith, commitment and character

May make you prudent

To face the inexorable;

But your path still remains undefined,

You still remain weightless

In the entirety of the universe.

 

The flow of life,

Depends not upon the straw,

But the wind that carries it.

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)