English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ एक शमां हरदम जलती है/A flame remains lit forever…. – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s  Classical Poetry एक शमां हरदम जलती है with title  “A flame remains lit continuously….” .  We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री नीलम सक्सेना चंद्र जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा  

☆ एक शमां हरदम जलती है  ☆

जब कोई डर सताए,

जब कोई दिल दुखाये,

जब बहाव थम सा जाए,

जब पाँव के नीचे शूल ही शूल चुभ रहे हों,

जब लगे कि ख्वाब पूरी तरह टूट गए हों,

और कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा हो,

जब हर साथी साथ छोड़ दे-

तब याद रखना

कि तुम्हारी खुद की रूह के भीतर भी

एक शमां है

जो हरदम जलती रहती है!

 

आँखें बंद कर

दो क्षण को बैठ जाना

और ध्यान देना कुछ लम्हों के लिए

उस शमां पर…

 

उसे देखना सुलगते हुए,

सुनना उसकी बातें

जो तुमको आगे बढ़ने की

प्रेरणा दे रही होंगी,

महसूस करना

उसकी उष्णता

जो तुममें नई स्फूर्ति भर रही होगी…

 

सुनो,

अकेलापन एक मिथ्या है-

तुम अकेले कभी नहीं होते!

अपनी रूह की सुनोगे

तो मुस्कुराते हुए हरदम बढ़ते ही रहोगे!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

पुणे

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

 ☆ A flame remains lit continuously…. ☆

When something scares you,

When someone hurts you,

When the flow is stopped,

When thorns after thorn

prick your feet persistently,

When you feel the dreams

have shattered completely,

When all doors are closed

There seems to be noway out,

When everyone deserts you…

 

Then you must remember-

That even within your own soul

There’s always  a flame

Which keeps on burning incessantly!

 

Close your eyes

Just sit for a while

And, concentrate on that

flame for few moments

Keep gazing it smoldering,

Listen to its words

Which you shall find

Inspiring you

To get up and rise

and  move forward…

You shall feel

Its warmth energizing you…

 

Listen,

Loneliness is utter falsehood

You are never alone!

If you listen to your conscience

You’ll always march forward with tenacity, smilingly!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 8 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 8/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 8 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

 

कौन कहता है कि

दिल सिर्फ सीने में होता है…

तुमको लिखूँ तो

मेरी उँगलियाँ भी धड़कती हैं…

 

 Who says that

 Heart is in chest only

 My fingers also throb

 When I write to you…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

गर यूँही घर में बैठा रहा

मार डालेगी तनहाइयाँ…

चल चलें मैखाने में जरा

ये फ़ना दिल बहल जायेगा…

 

If I keep staying at home like this

The aloofness is going to  kill me

O’ dear  let’s  just  go to the bar…

This dying heart will come alive!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

इक किस्सा अधूरे इश्क़ का

आज भी है दरम्यान तेरे मेरे…

हैं मौजूद साहिलों की रेत पे

पैरों के कुछ निशान तेरे मेरे…

 

A tale of inconclusive love still

exists between us, even today…

Few of our footprints are still

Present on the sand of shores…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

मरता तो कोई नही

किसी के प्यार में…

बस यादें कत्ल करती

रहती है किश्तों-किश्तों में…

 

Nobody ever dies in

someone’s  love…

In installments just the

Memories  keep killing you…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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English Literature – Poetry ☆ The Pandemic Prism ☆ Colonel Jayant Khadilkar

Colonel Jayant Khadilkar

(We proudly welcome Colonel Jayant Khadilkar  on e-abhivyaktiColonel Jayant Khadilkar was commissioned in June 1980 into the Corps of Signals. He is an Alumnus of National Defence Academy, Pune and Indian Institute of Science, Bengaluru. Academically brilliant, he was awarded Plaque of Honour in Signals Young Officers Course and Army Chief’s Gold Medal in the Signals Degree Engineering Course. He is an expert in Electronic and Information Warfare.  He was awarded the first prize for his MBA thesis on the use of Decision Making techniques in Electronic Warfare.  Colonel Jayant pursues writing as a hobby, to capture his thoughts on topics of current public interest.  Today, we present his contemporary poetry The Pandemic Prism.)

The Pandemic Prism

Ever in  the news since late 2019 November

Novel Corona is what we call this character

Spreads through humans to cover its ground

It is invisible but is sure to be lurking around

 

Incomparable suffering it has caused

Travel  and business too, it has paused

With no  definite cure  worth the name

Humans, the sure victims of this game

 

Such is the ferocity of  wretched damnation

That one wrong move may wipe out a nation

So let’s cooperate with authorities to function,

assist in their efforts,  causing no confusion

 

Though we had always turned a blind eye

To one’s  own  greed  and others’  misery

And it required a Corona to shake us all

To pull us out of our self-imposed reverie

 

It’s time to learn to respect each other,

empathise and grant dignity of  labour

For, the next Corona version may require

Any one  of us to be the  front line soldier

 

Nature may have a different shade

of this Corona episode and disaster

For it has caged the greedy humans

And allowed other things to prosper

 

Now  air is ever fresh, waters are clean

Birds’re    chirping,  countryside is green

Even the humankind, although confined

Is  networking  with  gusto so far unseen

 

Forced out of the mindless rush

We  are  back  as being  humans

Instead of  those  rats in the race

without any  feelings or emotions

 

© Col Jayant Khadilkar, Veteran

Pune

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English Literature – Poetry ☆ Division ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “विभाजन” published today as ☆ संजय दृष्टि ☆ विभाजन   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆  The Division ☆

Flow gives rise

to the waves,

Celebrates its creation,

Rejoices over

its rising expansion…

Time-wheel rotates,

But  the expanded

waves divide themselves…

 

With the tired body

and broken heart,

The Flow finds itself

unable to see

the division of its

very own waves…!

 

O’ Mankind!

The relationship,

in this mortal world,

between the parents

and their offsprings,

is something

similar to this only…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 38 – Metamorphosis ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Metamorphosis.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 38

☆ Metamorphosis ☆

When the hard-hearted Westerlies blow

In the icy cold veins,

The blood vessels get choked,

The stony heart stops beating,

And the feelings coagulate into fossil stones!

 

You go into deep sleep,

You hardly breathe

And your survival is a story of disbelief!

 

However,

When you start breathing again,

So happy you are to feel the sunrays

That you turn into a yellow blossom,

A fragrance permeates the being

And you glow like diamond!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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English Literature – Poetry ☆ Silence ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “चुप्पियाँ” published today as ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-8   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆  Silence ☆

Will you

maintain your

silence lifelong?

I laughed,

On the narrowness

of the question,

Silence will

stay with me

Even after

the death…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 7 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 7/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 7 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

कोई रिश्ता नहीं

रहा  फिर  भी,

एक तस्लीम तो

लाज़मी सी  है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

Agreed there remains

no relation now; 

At least, an admittance

Is inevitably desirable…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

गर शतरंज का शौक़ होता

तो तमाम धोखे नहीं खाता

वो मोहरे पर मोहरे चलते रहे 

और मैं रिश्तेदारी निभाता रहा…

 

If only I was fond of chess

Won’t have got cheated at all

They kept on moving pieces

While I kept maintaining kinship!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

एक उम्र  वो  थी  कि 

जादू पर भी यक़ीन था,

एक  उम्र ये  है  कि 

हक़ीक़त पर भी शक़ है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

There once was an age when

I used to believe even in magic,

And now, there’s an age when I

Look at reality with suspicion!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

कोई आदत, कोई शरारत, 

मेरी बातें या मेरी ख़ामोशी

कुछ न कुछ तो उसे जरूर

ही  याद  आता  ही  होगा…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

My habits, or the mischiefs, 

My words or the silence

For sure,  he  must  be 

missing something of mine!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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English Literature – Poetry ☆ Stairs ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “सीढ़ियां ” published today as ☆ संजय दृष्टि  ☆  सीढ़ियाँ   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Stairs ☆

Generations keep

coming and going…

Stairs of age

are simply magical

As the next step is seen

the previous one

instantly disappears,

Constant potential of the

visual  delight of the mount,

Wipes out the

unknown fear of the descent…

When I start loosing

the breath

Dark fathomless bottom below

starts to loom large,

When legs start

shaking up and

Not even an

iota of courage

is left in me,

Even body starts giving

up on walking…

But, the thirst and

hunger  continue

to camp tormently,

Before that,

O’ Lord, the Granter of

the moments of life!

Grant me the departure

of my soul

And, adjust the

remaining steps of the stairs

in my next life…

I’ve always lived

the life my way,

Let me even die

my way only,

Before I become

dependent on someone

Please call me to

Your goodself !

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 37 – Masks ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem Masks.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 37

☆ Masks ☆

I often look at them in awe

And my heart admires the men and women

Who can remain happily

With a mask on their faces!

 

I’ve tried so many times

To put on these masks of pretense;

But have failed miserably

As it falls down so easily!

 

These masked people,

Strong and resilient,

Hold on to them

Even under the most precarious situations,

Are at ease even while stabbing

Their innocent preys

And enjoy the helplessness

On their victim’s face!

 

I admire them for their grit

At going against their conscious’s voice;

I wonder how they are so strong,

May God give them the courage

To face the ultimate truth

Of karma!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ वे लोग / Those people – श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of Mr. Laxmi Shankar Bajpai’s Classical Poetry  वे लोग with title  “Those people.”Mr. Laxmi Shankar Bajpai (Ex-Dy Director General – All India Radio) is a renowned Poet, Gazalkar and Communicator. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi  for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता के मूल लेखक श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी  (पूर्व  उपमहानिदेशक आकाशवाणी ) व  प्रख्यात साहित्यकार एवं गजलकार  एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ. 

 

श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी

 ☆ वे लोग ☆

वे लोग

डिबिया में भर कर पिसी हुई चीनी

तलाशते थे चीटियों के ठिकाने

 

छतों पर बिखेरते थे

बाजरे के दाने

कि आकर चुग सकें चिड़ियां

 

भोजन प्रारंभ करने से पहले

वे लोग, निकालते थे गाय और दूसरे प्राणियों का हिस्सा

 

सूर्यास्त के बाद, वे लोग

नहीं तोड़ने देते थे,

पेड़ से एक पत्ती तक

कि खलल न पड़ जाए

सोए हुए पेड़ों की नींद में

 

जब चिड़ियों के झुंड के झुंड

आ जुटते थे उनकी फसलों पर

तो वे उन्हें भगाने की बजाय

कहते थे.. राम की चिड़ियां..

राम के खेत..

खाओ री चिड़ियो भर भर पेट

 

वे अपनी तरफ से शुरू कर देते थे बात..

अजनबी से पूछ लेते थे उसका परिचय

ज़रूरतमंद की करते थे दिल खोलकर मदद

बस्ती में कोई पूछे किसी का मकान

तो पहुंचा कर आते थे उस मकान तक..

कोई भूला भटका अनजान

मुसाफिर आ जाए रात बिरात

तो करते थे भोजन और विश्राम की व्यवस्था

 

संभव है अभी भी दूरदराज

किसी गांव या क़स्बे में

मौजूद हों उनकी प्रजाति के कुछ लोग

 

काश ऐसे लोगों का

बन सकता एक संग्रहालय

कि आने वाली पीढ़ियों के लोग

जान पाते

कि जीने का एक अंदाज़

ऐसा भी था..

 

© लक्ष्मी शंकर बाजपेयी

मोबाईल  – 9899844933

 

 ☆ Those people….. ☆

 

Those were the people who used

to carry powdered sugar in a tiny casket…

And, search painstakingly

For the anthills to feed the ants…

 

They used to scatter the

millet grains on the roofs

For the birds to come and feed…

 

They would keep water cauldrons outside their houses

For the desperate animals to quench their thirst…

 

Before partaking their meals

They would keep a part of it

For the cows and other animals to feed on…

 

After sunset, they would never allow plucking of

even a leaf from the trees…

Ensuring that the sleeping trees

are not disturbed…

 

When the flocks of birds

Would gather on their crops

Then, instead of driving them away

They would welcome them

Saying, God’s birds, God’s fields…

Have your stomach’s fill…

 

They used to start talking first

on their own, even with strangers

Asking their whereabouts and well-being…

 

They would help needy

people wholeheartedly,

If someone inquired about someone’s address

They would accompany him to that house…

 

If chanced upon any stray

unknown traveller

They would make arrangement for his food and  overnight stay…

 

It may still be  possible,

That, somewhere in some remote village or town,

Some people of this breed are still left…

 

How I wish

A museum could be built

of such people

For the coming generations to

know that

Such people existed, and

This was their style of living…

 

Translated by: Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

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